उत्तर – पृथ्वी तल से लगभग 80km से 300 km ऊँचाई तक फैले क्षेत्र को आयनमंडल कहा जाता है।
खण्ड-ख : अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
किन्हीं दस प्रश्नों के उत्तर दें।
11. दो विद्युत क्षेत्र रेखाएँ क्यों एक-दूसरे को काट नहीं सकती हैं? क्या दो समविभव सतह काट सकती हैं।
उत्तर –
दो विद्युत क्षेत्र रेखाएँ कभी भी एक-दूसरे को काट नहीं सकती हैं क्योंकि यदि काटती तो प्रतिच्छेद बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाएँ होंगी जो कि एक बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र के दो मान संभव नहीं है। दो समविभव सतह एक-दूसरे को नहीं काट सकती हैं।
12. ρ प्रतिरोधकता वाले तार की लंबाई दुगनी कर दी गयी है। तार की नयी प्रतिरोधकता क्या होगी?
उत्तर –
इसलिए प्रतिरोधकता एक चौथाई हो जाएगी।
13. अनुचंबकीय तथा प्रतिचुंबकीय पदार्थों के उन दो अभिलाक्षणिक गुणधर्मों का उल्लेख कीजिए, जो इन दो प्रकार के पदार्थ के व्यवहार में भेद दर्शाते हैं।
उत्तर –
प्रतिचुंवकीय पदार्थ |
अनुचुंवकीय पदार्थ |
(i) यह प्रबल चुंबकीय क्षेत्र से दुर्बल चुंबकीय क्षेत्र की ओर गति करता है ।
|
(i) यह दुर्बल चुंबकीय क्षेत्र से प्रबल चुंबकीय क्षेत्र की ओर गति करता है। |
(ii) इसकी चुंबकीय प्रवृत्ति अल्प किन्तु ऋणात्मक होती है। |
(ii) चुंबकीय प्रवृत्ति अल्प किंतु धनात्मक होती है। |
14. एक आदर्श परिनालिका का स्वप्रेरकत्व प्राप्त करें।
उत्तर – माना कि N = परिनालिका में कुल घुमावों की संख्या है, जिसकी लंबाई l और cross-sectional area A है। यदि परिनालिका में प्रति इकाई लंबाई में घुमावों की संख्या n है, तब
n = N/l
माना कि परिनालिका में I धारा प्रवाहित हो रही है और परिनालिका के अंदर किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र B है, तब B = μ0nI
15. ट्रांसफॉर्मर क्या है? परिणमन अनुपात से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – ट्रांसफॉर्मर : ट्रांसफॉर्मर का कार्य, उच्च धारा पर निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता को निम्न धारा पर उच्च वोल्टता में तथा निम्न धारा पर उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को अधिक धारा पर निम्न वोल्टता में परिवर्तित करना है। Input voltage और Output voltage के अनुपात को परिणमन अनुपात कहते हैं।
16. स्थिर वैद्युत परिरक्षण क्या है? इसके एक जीवनोपयोगी उपयोग लिखें।
उत्तर – किसी निश्चित क्षेत्र को विद्युत क्षेत्र के प्रभाव से बचाने की प्रक्रिया को स्थिर वैद्युतिकी परिरक्षण (पृथ्वीकरण) कहते हैं। बिजली गिरने के समय बन्द कार या बस में बैठे रहना किसी पेड़ के नीचे या मैदान में खड़े रहने की तुलना में अधिक सुरक्षित रहता है क्योंकि चालक के अन्दर के खोखले भाग में स्थित कण या आवेश ब्राह्म क्षेत्र के प्रभाव से परिरक्षित रहता है।
17. चल कुंडली गैल्वेनोमीटर में रेखीय चुंबकीय क्षेत्र का क्या महत्व है?
उत्तर – त्रिज्य या रेखीय चुंबकीय क्षेत्र के कारण गैल्वेनोमीटर की कुण्डली पर अधिक बल आघूर्ण लगता है जिससे इसकी सुग्राहिता बढ़ती है।
18. L-C-R परिपथ में जब XL > XC या जब परिपथ प्रेरणिक है तब किसी नियम समय में प्रवाहित प्रेरक धारा का समीकरण लिखें।
उत्तर –
19. विद्युत चुंबकीय तरंग में चुंबकीय क्षेत्र सदिश B¯ एवं विद्युत क्षेत्र सदिश E¯ में कौन ज्यादा प्रभावी होता है एवं क्यों ?
उत्तर – ∴ E/B = C या B = E/C ∴ C = 3 x 108 m/s
अत: E>>B
अत: विद्युत क्षेत्र चुंबकीय क्षेत्र की अपेक्षा अधिक प्रभावी होता है l
20. एक इलेक्ट्रॉन जिसकी गतिज ऊर्जा 120 eV है उसका (a) संवेग, (b) दे ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य क्या है ?
उत्तर –
21. क्या होता है जब p-n संधि पर अग्रदिशिक बायस अनुप्रयुक्त किया जाता है ?
उत्तर – Potential barrier कम होता है, अब p-n संधि पर अग्रदिशिक बायस अनुप्रयुक्त किया जाता है।
22. क्षैतिज तरंगें क्या नहीं ध्रुवित की जा सकती हैं ?
खण्ड-ग : लघु उत्तरीय प्रश्न
किन्हीं नौ प्रश्नों के उत्तर दें।
23. नाभिकीय रिएक्टर में मंदक, शीतलक व नियंत्रक छड़ के उपयोग बताइए।
उत्तर –मंदक : तीव्रगामी न्यूट्रॉन्स को धीमा करने के लिए मन्दक का प्रयोग किया जाता है। ग्रेफाइट और भारी जल।
नियंत्रक पदार्थ : शृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित करने तथा अभिक्रिया की एक स्थाई दर बनाये रखने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कैडमियम छड़ें।
शीतलक : शीतलक एक ठण्डा करने वाला पदार्थ है तो रिएक्टर में उत्पन्न ऊष्मा को घटाता है। CO2 और नाइट्रोजन ।
24. आधार बैंड, बैंड की चौड़ाई और फेडिंग क्या होते हैं?
उत्तर – बेस बैंड – बेस बैंड डिजिटल रु में सूचना प्रसारित करता है यह डेटा ट्रांसमिशन के लिए सरल है जो सिगनल को भेजने और प्राप्त करने का कार्य करती है ।
बैंड को चौड़ाई: समस्त आवृत्तियों के संचय को सिगनलों का आवृत्ति स्पेक्ट्रम कहते हैं। किसी सिगनल की आवृत्ति स्पेक्ट्रम की चौड़ाई ही बैंड की चौड़ाई कहलाती है।
BW → Vmax – Vmin
फेडिंग : फेडिंग को शक्ति में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाता है जो तरंगों के पारस्परिक व्यक्तिकरण के कारण ग्राही पर होता है।
25. डायोड का वोल्टेज-धारा अभिलाक्षणिक वक्र खींचें और उसका मुख्य प्राचल का अंकन करें।
उत्तर – डायोड का वोल्टेज-धारा अभिलाक्षणिक वक्र
26. प्रकाश विद्युत प्रभाव के संदर्भ में देहली आवृत्ति कार्य फलन और निरोधी विभव को परिभाषित करें।
उत्तर – देहली आवृत्ति : फोटॉन की न्यूनतम आवृत्ति जो प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन उत्पन्न करती है।
y0 = Φ/h
निरोध विभव : किसी प्रकाश सेल की प्लेट को दिया गया वह न्यूनतम ऋणात्मक विभव जिसपर प्रकाश वैद्युत धारा शून्य हो जाती है।
कार्य फलन : आपतित फोटॉन की ऊर्जा का वह भाग जो धातु पृष्ठ इलेक्ट्रॉन के मात्र उत्सर्जन में व्यय होती है उस धातु का कार्य फलन कहलाता है।
कार्य – फलन Φ = hc/λ
27. किसी आयाम मॉडुलित तरंग का अधिकतम आयाम 10 V तथा न्यूनतम आयाम 2 V पाया जाता है। मॉडुलन सूचकांक μ का मान निश्चित कीजिए।
उत्तर – मॉडुलित सूचकांक (μ) = मॉडुलित तरंग का आयाम / अमॉडुलित तरंग का आयाम या, μ = Vm/Vc
मॉडुलित सूचकांक बढ़ता है जब मॉडुलित तरंगदैर्घ्य घटता है, मॉडुलित तरंगदैर्घ्य दो तरंगदैर्घ्य का अनुपात होता है, जिसे रेडियन में मापा जाता है।
28. अपवर्तनांक 1.55 के काँच से दोनों फलकों की समान वक्रता त्रिज्या के उभयोत्तल लेंस निर्मित करने हैं। यदि 20cm फोकस दूरी का लेंस निर्मित करना है, तो अपेक्षित वक्रता त्रिज्या क्या होगी?
उत्तर – μ = 1.55, ƒ = 20 cm, R1 = R और R2 = -R
जहाँ R1 और R2 दोनों सतहों का radii of curvature है जिससे double convex lens का निर्माण होता है l R=?
29. किन कारणों से ट्रांसफॉर्मर की दक्षता घटती है?
उत्तर – ट्रांसफॉर्मर में निम्नलिखित पाँच कारणों से ऊर्जा का क्षय होता है तथा उन्हें निम्नलिखित प्रकार से दूर किया जाता है –
(i) फ्लक्स क्षय : प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों का युग्मन ठीक नहीं होता है और प्राथमिक कुण्डली में उत्पन्न चुम्बकीय फ्लक्स सभी द्वितीयक कुण्डली से संबद्ध नहीं होते हैं तथा कुछ क्रोड से न जाकर वायु होकर जाती है।
(ii) ताम्र क्षय : प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों में ताँबे के तार के लपेटों प्रतिरोध के कारण जूल-ऊष्मन प्रभाव से कुछ विद्युतीय ऊर्जा का ताप ऊर्जा में परिवर्तन होता है जिससे कि शक्ति क्षय होती है।
(iii) लौह-क्षय : ट्रांसफॉर्मर के लोहे के क्रोड में भँवर धाराओं के प्रेरण से भी ऊष्मा के रूप में शक्ति क्षय होती है, जिसे लौह-क्षय कहते हैं। लोहे के क्रोड को परतदार बना देने पर लौह-क्षय घटता है।
(iv) शैथिल्य क्षय : कुण्डलियों से प्रत्यावर्ती धाराओं के प्रवाहित होने से लोहे के क्रोड बार- बार चुम्बकित तथा अचुम्बकित होते हैं। इसलिए प्रत्येक चुम्बकन चक्र में कुछ ऊर्जा शैथिल्य के कारण क्षय होती है, जिसे शैथिल्य क्षय कहते हैं। इसे कम करने के लिए सिलिकन लोहे का क्रोड उपयुक्त होता है।
30. नीचे दिए गए NAND गेट संयोजित परिपथ की सत्यमान सारणी बनाइए एवं इस परिपथ द्वारा की जानेवाली यथार्थ तर्क संक्रिया का अभिनिर्धारण कीजिए।
उत्तर – NAND Gate यहाँ यह प्रकट कर रहा है कि केवल एक input और एक output है। जबकि दो input short कर रहा है। NAND Gate के लिए output का मान high होता है, यदि एक या दोनों input का मान low होता है। तथा output का मान कम होता है जब दोनों input का मान high होता है जिसका Truth table नीचे दिया गया है।
जो एक logic operation को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है।
y के स्थान पर Ā लेने पर इस प्रकार यह circuit NOT Gate के operation को वास्तविक रूप A से प्रकट करता है ।
31. एक 100 W का विद्युत बल्ब 220 V तथा 50Hz की ac. विद्युत आपूर्ति पर कार्य करता है। परिकलित कीजिए (i) बल्ब का प्रतिरोध (ii) बल्ब से प्रवाहित वर्ग माध्य मूल विद्युत धारा l
उत्तर –
32. संचार प्रणाली में संचरण के लिए प्रयुक्त तीन विभिन्न विधाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – संचार प्रणाली में संचरण के लिए प्रयुक्त तीन विधाएँ नीचे दिए गए हैं
(i) भूतरंग संचरण: इस विधा में तरंगें भूमि के सतह के अनुदिश संचरित होती है। जैसे-तरंग भूमि के सतह से प्रसारित होती हैं वैसे-वैसे तरंग के क्षेत्र का घटक क्रमशः ऊर्ध्व ध्रुवित हो जाता क्षेत्र का क्षैतिज घटक पृथ्वी के संपर्क से लघु पथित हो जाता है। पृथ्वी पर उस तरंग के गति की दिशा प्ररित आवेश भी बढ़ते जाते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर विद्युत धारा उत्पन्न होती है। तरंग के संचरण के साथ अवशोषण के कारण इसकी तीव्रता क्षीण होती जाती है। अतः तरंग संचरण की यह विधा दूरी के लिए ही उपयुक्त है। इसके द्वारा 500 kHz से 1500 kHz आवृत्ति की तरंगें संचरित की जा सकती हैं।
(ii) क्षोभमंडलीय अथवा अंतरिक्ष तरंग संचरण: 30 MHz-300MHz वाली रेडिया तरंगों को अंतरिक्ष तरंगें कहते हैं। यह तरंगें आयनमंडल को पार कर जाती है। अतः ये तरंगें वायुमंडल में या तो सीधी रेखा में चलते हुए अथवा पृथ्वी के क्षोभमंडल तथा पृथ्वी तल से परावर्तित होकर प्रेषित से ग्राही तक पहुँचती हैं। इसे क्षोभमंडल संचरण भी कहते हैं।
(iii) व्योम तरंग संचरण अथवा आयनमंडलीय संचरण: 2 MHz से 20 MHz के बीच की आवृत्ति वाली विद्युत चुंबकीय तरंगों को व्योम तरंग कहते हैं। ये तरंगें प्रेषित से चलकर वायुमंडल से संचरित होती है तथा क्षोभमंडल को पार कर के आयनमंडल से परावर्तित होती है और वहाँ से ग्राही तक पहुँचती है।
33. दिखाए गए परिपथ में बिन्दुओं X1 तथा X2 पर विभव ज्ञात करें।
उत्तर –
34. बाहरी विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत द्विध्रुव पर लगे बल-आघूर्ण के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर – बल आघूर्ण का व्यंजक : मान लिया कि AB एक विद्युतीय द्विध्रुव है जो समरूप विद्युतीय क्षेत्र में रखा है तथा θ कोण बनाता है। दो बराबर तथा विपरीत बल एक साथ लगाकर बलयुग्म की रचना करते हैं। अतः बलयुग्म का आघूर्ण या बल आघूर्ण,
τ = बल x लम्बवत दूरी
τ = qE x 2l sin θ या, τ = q x 2l Esin θ
या, τ = PE sin θ जहाँ (P = q . 2l)
खण्ड-घ: दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दें।
35. दोलित्र परिपथ के रूप में ट्रांजिस्टर के इस्तेमाल का सिद्धांत बताइए। परिपथ चित्रण के माध्यम से बि दिखाइए कि प्रेरणिक संधारित्र द्वारा पुनर्भरण प्रवर्धन किस प्रकार होता है? दोलित्र की संक्रिया स्पष्ट करें।
उत्तर – दोलित्र वह युक्ति है जिसकी सहायता से बिना किसी बाह्य निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज लगाये किसी निश्चित आवृत्ति का प्रत्यावर्ती वोल्टेज प्राप्त किया जाता है।
कॉमन उत्सर्जक n-p-n ट्रांजिस्टर दोलित्र : चित्रानुसार n-p-n ट्रांजिस्टर का दोलित्र की भाँति विद्युत परिपथ आरेख प्रदर्शित है। इसके दो मुख्य भाग हैं – (i) प्रवर्धक तथा (ii) पुनर्निवेशन भाग l
प्रवर्धक: चित्र से स्पष्ट है कि इसमें ट्रांजिस्टर को उभयनिष्ठ उत्सर्जक की भाँति प्रयुक्त किया जाता है जिससे कि वोल्टेज लाभ बहुत अधिक हो ।
पुनर्निवेशन भाग : यह L-C परिपथ है जिसे संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में एक दाब कुंजी K द्वारा जोड़ा जाता है। आधार-उत्सर्जक परिपथ में एक अन्य कुण्डली L1 जोड़ दी जाती है।
कार्यविधि : जैसे ही दाब कुंजी K दबायी जाती है, संग्राहक परिपथ में लगे L-C परिपथ में विद्युत दोलन आरंभ हो जाता है। आधार-उत्सर्जक परिपथ की कुण्डली L1, L-C परिपथ की कुण्डली L के साथ उचित रूप से युग्मित होती है जिसके फलस्वरूप प्रेरण द्वारा कुण्डली L1 में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है, जिसका मान तथा दिशा बदलती रहती है । इस प्रकार आधार विभव में उच्चावचन होता है जिससे संग्राहक धारा में उच्चावचन उत्पन्न हो जाता है तथा L-C परिपथ के सिरों के बीच नियत आयाम का प्रत्यावर्ती विभव प्राप्त होता है। इसकी आवृत्ति परिपथ में लगे प्रेरकत्व L तथा धारिता C पर निर्भर करती है (आवृत्ति ƒ = 1/2 π√LC)। स्पष्ट है कि L- C परिपथ में लगे संधारित्र C की धारिता बदलकर, दोलित्र की आवृत्ति बदली जा सकती है।
36. प्रकाश – वैद्युत उत्सर्जन प्रभाव क्या है? प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन के नियम क्या हैं? आइंसटीन द्वारा दिए गए इस नियम की व्याख्या को समझाइए।
उत्तर – जब किसी धातु सतह पर उचित आवृत्ति का प्रकाश विकिरण इलेक्ट्रानों के उत्सर्जन की घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं ।
आइंस्टीन द्वारा प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियमों की व्याख्या : प्रकाश वैद्युत प्रभाव के निम्नलिखित नियम हैं
(1) किसी धातु की सतह से प्रकाश – इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
(2) उत्सर्जित प्रकाश – इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
(3) उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधीकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होती है।
(4) यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान (देहली आवृत्ति) से कम है, तो धातु से कोई प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता। यह न्यूनतम आवृत्ति, विभिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होती है।
(5) धातु की सतह पर जैसे ही प्रकाश आपतित होता है तुरन्त उससे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं, अर्थात् प्रकाश के धातु तल पर गिरने और उस तल से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जित होने के बीच कोई समय-पश्चात नहीं होती चाहें प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो।
व्याख्या :
(1) जब किसी धातु पृष्ठ पर आपतित निश्चित आवृत्ति के प्रकाश की तीव्रता बढ़ाई जाती है तो सतह पर प्रति सेकण्ड आपतित फोटॉनों की संख्या उसी अनुपात में बढ़ जाती है, प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hν नियत रहाउ परन्तु फोटॉनों की संख्या बढ़ने से उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की संख्या जाती है, परन्तु उक्त समीकरण से स्पष्ट है कि आवृत्ति ν के निश्चित होने तथा धातु विशेष के लिए ν0 निश्चित होने से पृष्ठ से उत्सर्जित सभी प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek एकसमान होगी। अतः प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर तो आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है, परंतु इनका अधिकतम गतिज ऊर्जा नहीं। इस प्रकार प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम (1) तथा (2) की व्याख्या हो जाती है।
(ii) उक्त समीकरण से यह भी स्पष्ट है कि आपतित प्रकाश की आवृत्ति बढ़ाने पर उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek उसी अनुपात में बढ़ जाती है। इस प्रकार प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम (3) की व्याख्या हो जाती है।
(iii) उक्त समीकरण में यदि ν<ν0 तो Ek का मान ऋणात्मक होगा, जो असंभव है। अतः इससे निष्कर्ष निकलता है कि यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति ν0 से कम है तो प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन सम्भव नहीं है, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हों। इस प्रकार प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम (4) की व्याख्या हो जाती है।
(iv) जब प्रकाश किसी धातु पृष्ठ पर गिरता है तो जैसे ही कोई एक प्रकाश फोटॉन धातु पर आपतित होता है, धातु का कोई एक इलेक्ट्रॉन तुरन्त उसे ज्यों-का-त्यों अवशोषित कर लेता है तथा धातु पृष्ठ से उत्सर्जित हो जाता है। इस प्रकार धातु पृष्ठ पर प्रकाश के आपतित होने तथा इससे प्रकाश- इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जित होने में कोई पश्चता नहीं होती। इस प्रकार प्रकाश वैद्युत प्रभाव के नियम (5) की व्याख्या हो जाती है।
इस प्रकार आइन्स्टीन प्रकाश वैद्युत प्रभाव की घटना को पूर्णरूप से समझाने में सफल हुए। इसके लिए सन् 1921 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1915 में मिलिकन ने आइन्स्टीन के समीकरण का परीक्षण किया और इसे प्रायोगिक परिणामों के अनुरूप पाया।
37. तरंगाग्र एवं द्वितीय तरंगिकाओं को परिभाषित करें। हाइगेंस के सिद्धांत के आधार पर परावर्तन या अपवर्तन के नियम को सत्यापित करें।
उत्तर – तरंगाग्र : प्रकाश के किसी स्रोत से समान दूरी पर चारों ओर ईथर के कणों के कंपन की कलाएँ समांगी माध्यमों में समान होती हैं। ऐसे समान कंपन कला वाले स्पर्श करती हुई आभासी पृष्ठ तरंगाग्र कहे जाते हैं।
द्वितीय तरंगिकाएँ: हाइगेंस की रचना यह बताती है कि नया तरंगाग्र द्वितीयक तरंगों का अग्र आवरण है। प्रकाश की चाल की दिशा से स्वतंत्र होने की स्थिति में द्वितीयक तरंगें गोलीय होती हैं। किरणें तब दोनों तरंगाग्रों के लंबवत् होती है और वहन काल किसी भी किरण की दिशा में समान होता है। इस सिद्धांत से परावर्तन तथा अपवर्तन के सुज्ञात नियम प्राप्त होते हैं।
हाइगेंस के सिद्धांत के आधार पर परावर्तन या अपवर्तन के नियम का व्यंजक –
38. (a) 1.25cm फोकस दूरी का अभिदृश्यक तथा 5cm फोकस दूरी की नेत्रिका का उपयोग करके) वांछित कोणीय आवर्धन 30X होता है। आप संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का समायोजन कैसे करेंगे?
(b) नीचे दिए गए चित्र के अनुसार दो परिपथ दिए गए हैं जिनमें NAND गेट जुड़े हैं। इ दोनों परिपथों द्वारा की जाने वाली तर्क संक्रियाओं का अभिनिर्धारण कीजिए |
उत्तर –
OR Gate के लिए output का मान high होता है यदि एक या दोनों input का मान high हो तथा output का मान low होता है, यदि दोनों input का मान low होता है, यदि दोनों input का मान low होता है। इस प्रकार यह सारणी सही है, A और B के input तथा y के output के रूप में।
39. गॉस के प्रमेय का उपयोग करते हुए आवेशित चालक के नजदीक के बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र ज्ञात करें।
उत्तर – गॉस के प्रमेय के अनुसार, q/4πε0 x 4π = q/ε0
समतल आवेशित चालक के कारण विद्युत क्षेत्र की तीव्रता : माना कि ABCD एक आवेश समतल चालक है जिसपर आवेश का पृष्ठ घनत्व +σ है। इसके कारण इसके निकट स्थिति बिन्दु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। इसके लिए चालक के तल के लम्बवत एक ऐसे बेलन का कल्पना किया जिसके एवं चादर के तल के लम्बवत एक ऐसे बेलन का कल्पना किया जिसके सिरे के केंद्र पर बिन्दु P है। माना कि बेलन का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल तथा चादर का क्षेत्रफल A है। अतः बेलन के दोनों वत्तीय समतल सिरों से होकर गुजरने वाला कुल विद्युत फलक्स
2015 (A)
भौतिकी (Physics)
खण्ड-I (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
निम्नलिखित प्रश्न- संख्या 1 से 28 तक के प्रत्येक प्रश्न के लिए एक ही विकल्प सही है। प्रत्येक प्रश्न से सही उत्तर, उत्तर पत्र में चिह्नित करें।
1. एक विद्युतीय द्विध्रुव दो विपरीत आवेशों से बना है जिनके परिणाम + 3.2 x 10-19 C एवं – 3.2 x 10-19 C हैं और उनके बीच की दूरी 2.4 x 10-10m है l विद्युतीय द्विध्रुव का आघूर्ण है
(A) 7.68 x 10-29 C-m
(B) 7.68 x 10-27 C-m
(C) 7.86 x 10-29 C-m
(D) 7.86 x 10-27 C-m
उत्तर – (B) 7.68 x 10-27 C-m
2. 64 समरूप बूँदें जिनमें प्रत्येक की धारिता 5μF है मिलकर एक बड़ा बूँद बनाते हैं। बड़े बूँद की धारा क्या होगी?
(A) 164 μF
(B) 20 μF
(C) 4 μF
(D) 25 μF
उत्तर – (B) 20 μF
3. किलोवाट घंटा (kWh) मात्रक है
(A) ऊर्जा का
(B) शक्ति का
(C) बल आघूर्ण का
(D) बल का
उत्तर – (A) ऊर्जा का
4. विद्युतीय परिपथ के किसी बिन्दु पर सभी धाराओं का बीजगणितीय योग
(A) अनंत होता हैं
(B) धनात्मक होता है
(C) शून्य होता है
(D) ऋणात्मक होता है
उत्तर – (C) शून्य होता है
5. चुम्बकशीलता की विमा है
(A) MLT-2 I-2
(B) MLT2 I-2
(C) MLT2 I2
(D) MLT-2 I
उत्तर – (B) MLT2 I-2
6. L-R परिपथ की प्रतिबाधा होती है
(A) R2 +ω2L2
(B) √R + ωL
(C) R + ωL
(D) √R2 +ω2L2
उत्तर – (D) √R2 +ω2L2
7. विद्युत चुम्बकीय तरंग के संचरण की दिशा होती है
(A) B→ के समांतर
(B) E→ के समांतर
(C) B→ x E→ के समांतर
(D) E→ x B→ के समांतर
उत्तर – (D) E→ x B→ के समांतर
8. जब प्रकाश की एक किरण ग्लास स्लैब में प्रवेश करती है, तो इसका तरंगदैर्घ्य
(A) बढ़ता है
(B) घटता है
(C) अपरिवर्तित रहता है
(D) आँकड़े पूर्ण नहीं हैं
उत्तर – (B) घटता है
9. आयाम माडुलन सूचकांक का मान होता है
(A) हमेशा 0
(B) 1 तथा ∞ के बीच
(C) 0 तथा 1 के बीच
(D) हमेशा ∞
उत्तर – (C) 0 तथा 1 के बीच
10. NOR गेट के लिए बूलियन व्यंजक है
(A) A + B = Y
(B) A‾·‾‾B = Y
(C) A· B = Y
(D) A‾‾+‾‾B = Y
उत्तर – (D) A‾‾+‾‾B = Y
11. एक आवेशित चालक की सतह के किसी बिन्दु पर विद्युतीय क्षेत्र की तीव्रता
(A) शून्य होती है
(B) सतह के लंबवत होती है
(C) सतह के स्पर्शीय होती है
(D) सतह पर 45° पर होती है
उत्तर – (B) सतह के लंबवत होती है
12. मुक्त आकाश का परावैद्युतांक होता है
(A) 9 x 109 mF–1
(B) 1.6 x 10-19 C
(C) 8.85 x 10-12 Fm–1
(D) 8.85 x 10-9 Fm–1
उत्तर – (C) 8.85 x 10-12 Fm–1
13. विद्युत परिपथ की शक्ति होती है
(A) V.R
(B) V2 · R
(C) V2/R
(D) V2 · R.I
उत्तर – (C) V2/R
14. इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (eV) द्वारा मापा जाता है
(A) आवेश
(B) विभवांतर
(C) धारा
(D) ऊर्जा से
उत्तर – (D) ऊर्जा से
15. लेंज का नियम संबद्ध है
(A) आवेश से
(B) द्रव्यमान से
(C) ऊर्जा से
(D) संवेग के संरक्षण सिद्धांत से
उत्तर – (C) ऊर्जा से
16. खगोलीय दूरदर्शी में अंतिम प्रतिबिंब
(A) वास्तविक एवं सीधा
(B) वास्तविक एवं उल्टा
(C) काल्पनिक एवं उल्टा
(D) काल्पनिक एवं सीधा
उत्तर – (C) काल्पनिक एवं उल्टा
17. यदि समान फोकस दूरी के दो अभिसारी की लेंस एक-दूसरे के संपर्क में रखे हों, तब संयोग फोकस दूरी होगी
(A) ƒ
(B) 2ƒ
(C) ƒ/2
(D) 3ƒ
उत्तर – (C) ƒ/2
18. प्रकाश की अनुप्रस्थ तरंग प्रकृति पुष्टि करता है
(A) व्यतिकरण को
(B) परावर्तन को
(C) ध्रुवण को
(D) वर्ण-विक्षेपण को
उत्तर – (C) ध्रुवण को
19. एक पतले फिल्म के रंग का कारण है
(A) प्रकीर्णन
(B) व्यतिकरण
(C) वर्ण-विक्षेपण
(D) विवर्तन
उत्तर – (B) व्यतिकरण
20. यदि प्रत्यावर्ती धारा तथा विद्युत वाहक बल के बीच गुणांक का मान होता है कोण का कलांतर हो, तो शक्ति गुणांक का मान होता है
(A) tan Φ
(B) cos2 Φ
(C) sin Φ
(D) cos Φ
उत्तर – (D) cos Φ
21. स्वप्रेरकत्व का मात्रक है
(A) वेबर
(B) ओम
(C) हेनरी
(D) गॉस
उत्तर – (C) हेनरी
22. डायनेमो के कार्य का सिद्धांत आधारित है
(A) धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर
(B) विद्युत-चुंबकीय प्रेरण पर
(C) चुम्बकीय प्रेरण पर
(D) विद्युतीय प्रेरण पर
उत्तर – (B) विद्युत-चुंबकीय प्रेरण पर
23. एक प्रत्यावर्ती विद्युत धारा का समीकरण I = 0.6 sin 100nt से निरूपित है। विद्युत धारा की आवृत्ति है
(A) 50π
(B) 50
(C) 100π
(D) 100
उत्तर – (B) 50
24. निकेल है
(A) प्रतिचुम्बकीय
(B) अनुचुम्बकीय
(C) लौहचुम्बकीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) लौहचुम्बकीय
25. ब्रुस्टर का नियम है
(A) μ = sin i p
(B) μ = cos i p
(C) μ = tan i p
(D) μ = tan2 i p
उत्तर – (C) μ = tan i p
26. ताप बढ़ने के साथ अर्धचालक का प्रतिरोध
(A) बढ़ता है
(B) घटता है
(C) कभी बढ़ता है और कभी घटता है
(D) अपरिवर्तित होता है
उत्तर – (B) घटता है
27. प्रत्यावर्ती धारा के शिखर मान तथा व मध्य मूल मान का अनुपात है
(A) 2
(B) √2
(C) 1/√2
(D) 1/2
उत्तर – (B) √2
28. T.V. प्रसारण के लिए किस आवृत्ति परास का उपयोग होता है ?
(A) 30 Hz-300 Hz
(B) 30 kHz-300 kHz
(C) 30 MHz-300 MHz
(D) 30 GHz-300 GHz
उत्तर – (B) 30 kHz-300 kHz
खण्ड-II (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. विद्युत द्विध्रुव-आघूर्ण को परिभाषित करें तथा इसका SI मात्रक लिखें।
उत्तर – विद्युत द्विध्रुव के किसी एक आवेश तथा दोनों आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल को विद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण P कहते हैं। इसका S.I. मात्रक (कूलॉम x मीटर) होता है
2. लेजर किरणों की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर – (i) समान कला में सभी तरंगें होती हैं। (ii) सभी तरंगें समान तरंग लंबाई की होती हैं।
3. समानांतर प्लेट संधारित्र में दूसरे प्लेट का क्या कार्य है?
उत्तर – दूसरा प्लेट आकार को स्थिर रखते हुए यह पहली प्लेट के विभव को कम करती है, अतः उसी विभव पर अधिक आवेश संचित हो जाता है।
4. शंट के दो उपयोग लिखें।
उत्तर – शंट के दो उपयोग निम्नलिखित हैं- (i) इसके उपयोग से सुग्राही विद्युत धारामापी या गैल्वेनोमीटर को नुकसान से बचाया जा सकता है। (ii) शंट के उपयोग से धारा को विभक्त किया जाता है तथा शंट के मान को बदलकर धारामापी के परास को बढ़ाया जाता है।
5. धातु के 9 cm त्रिज्या वाले गोले पर 4×10-6 C आवेश दिया गया है। चालक के आवेश की स्थितिज ऊर्जा क्या है ?
उत्तर –
6. यदि दो प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जोड़े जाते हैं तो उनका तुल्य प्रतिरोध 16Ω है। यदि उन्हीं दो प्रतिरोधों को समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है तो तुल्य प्रतिरोध 3Ω होता है। उनका अलग-अलग प्रतिरोध निकालें।
उत्तर –
7. एक ट्रांसफार्मर में ऊर्जा क्षय को नामांकित करें।
उत्तर – ट्रांसफॉर्मर में निम्नलिखित पाँच कारणों से ऊर्जा का क्षय होता है तथा उन्हें निम्नलिखित प्रकार से दूर किया जाता है –
(i) फ्लक्स क्षय : प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों का युग्मन ठीक नहीं होता है और प्राथमिक कुण्डली में उत्पन्न चुम्बकीय फ्लक्स सभी द्वितीयक कुण्डली से संबद्ध नहीं होते हैं तथा कुछ क्रोड से न जाकर वायु होकर जाती है।
(ii) ताम्र क्षय : प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों में ताँबे के तार के लपेटों प्रतिरोध के कारण जूल-ऊष्मन प्रभाव से कुछ विद्युतीय ऊर्जा का ताप ऊर्जा में परिवर्तन होता है जिससे कि शक्ति क्षय होती है।
(iii) लौह-क्षय : ट्रांसफॉर्मर के लोहे के क्रोड में भँवर धाराओं के प्रेरण से भी ऊष्मा के रूप में शक्ति क्षय होती है, जिसे लौह-क्षय कहते हैं। लोहे के क्रोड को परतदार बना देने पर लौह-क्षय घटता है।
(iv) शैथिल्य क्षय : कुण्डलियों से प्रत्यावर्ती धाराओं के प्रवाहित होने से लोहे के क्रोड बार- बार चुम्बकित तथा अचुम्बकित होते हैं। इसलिए प्रत्येक चुम्बकन चक्र में कुछ ऊर्जा शैथिल्य के कारण क्षय होती है, जिसे शैथिल्य क्षय कहते हैं। इसे कम करने के लिए सिलिकन लोहे का क्रोड उपयुक्त होता है।
8. एक प्रत्यावर्ती धारा का समीकरण I = 20 sin 200πt है। धारा की आवृत्ति, शिखर मान तथा वर्ग माध्य मूल मान निकालें।
उत्तर – प्रश्न से I = 20 sin 200πt
परन्तु ac का समीकरण
I = I0 sin ωt = I0 sin 2π nt [∴ ω = 2πn]
9. दो पतले उत्तल लेंस, जिनकी क्षमताएँ 5D तथा 2D हैं एक-दूसरे से 20cm की दूरी पर समाक्षीय रूप में रखे गये हैं। लेंस युग्म की फोकस दूरी तथा क्षमता निकालें।
उत्तर –
10. n– टाइप एवं p-टाइप अर्द्धचालक में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – n – टाइप एवं p-टाइप अर्द्धचालक में अंतर –
11. मॉडुलन को परिभाषित करें। इसके प्रकारों को लिखें।
उत्तर – निम्न आवृत्ति के मूल सिग्नलों को अधिक दूरियों तक प्रेषित नहीं किया जा सकता। इसलिए प्रेषित पर, निम्न आवृत्ति के संदेश सिग्नलों की सूचनाओं को किसी उच्च आवृत्ति की तरंग पर अध्यारोपित किया जाता है जो सूचना के वाहक की भाँति व्यवहार करती है। इस प्रक्रिया को मॉडुलन कहते हैं। इसके तीन प्रकार हैं – (i) आयाम मॉडुलन (ii) कला मॉडुलन (iii) आवृत्ति मॉडुलन।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
12. विद्युत तीव्रता किसे कहते हैं? एक विद्युतीय द्विध्रुव के अक्ष पर स्थित किसी बिन्दु पर विद्युत तीव्रता का व्यंजक प्राप्त करें।
अथवा,
विद्युत फ्लक्स को परिभाषित करें। गॉस के प्रमेय को लिखें एवं सिद्ध करें।
उत्तर – विद्युत क्षेत्र में किसी बिंदु पर स्थित एकांक परीक्षण घन आवेश पर लगने वाले विद्युतीय बल को उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कहते हैं।
विद्युत फ्लक्स : किसी बिन्दु पर विद्युत तीव्रता (E) तथा विद्युत तीव्रता के लम्बवत् उस बिन्दु पर अल्पांशीय क्षेत्र (ds) के गुणनफल को उस क्षेत्र पर विद्युत फ्लक्स (dΦ) कहा जाता है। अर्थात् dΦ = Eds.
गाउस प्रमेय के अनुसार, मुक्त आकाश में किसी बंद पृष्ठ में से कुल वैद्युत फ्लक्स (Φ) का मान पृष्ठ द्वारा घेरे गए कुल आवेश (q) के 1/ε0 गुना के बराबर होता है। माना कि बंद तल S के भीतर O पर + q आवेश है l
13. सूत्र μ2/υ – μ1/u = μ2–μ1/r को स्थापित करें l
अथवा,
प्रकाश के लिए हाइगेंस का तरंग सिद्धांत लिखें। हाइगेंस के प्रकाश तरंग सिद्धांत के आधार पर प्रकाश के परावर्तन अथवा अपवर्तन के नियम को सिद्ध करें।
उत्तर – माना कि SOS’ एक गोलीय उत्तल सतह है जो μ1 एवं μ2 अपवर्तनांक वाले दो माध्यमों को अलग करती है। माना कि गोलीय सतह का केन्द्र O तथा वक्रता केन्द्र C है। पुनः माना कि पृष्ठ के प्रधान अक्ष PC पर एक प्रकाशमान बिंदु P । किरण PS बिंदु M पर आपतित होकर अभिलंब SC की तरफ मुड़कर MI की ओर चली जाती है। दूसरी किरण PO वक्र सतह SOS ‘ पर लंबवत् रूप से आपतित होकर बिना विचलित हुए आगे बढ़ जाती है। किरण PO तथा MI एक-दूसरे को I बिंदु पर काटती है जो P का वास्तविक प्रतिबिंब होता है।
अथवा,
प्रकाश का तरंग सिद्धांत- – प्रकाश अनुप्रस्थ तरंग-गति है। चूँकि तरंग की उत्पत्ति के लिए एक माध्यम आवश्यक है, इसलिए प्रकाश की उत्पत्ति के लिए भी एक माध्यम आवश्यक है। किंतु, सूर्य का प्रकाश निर्वात से चलकर पृथ्वी पर पहुँचता है। अतः, प्रकाश की तरंगों की उत्पत्ति जिस माध्यम में होती है वह द्रव्यात्मक माध्यम नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह माध्यम काल्पनिक है और इसे ईथर (ether) कहा जाता है। यह सर्वत्र एवं सभी पदार्थों में व्याप्त है। यह कम घनत्व के प्रत्यास्थ ठोस के समान है। प्रकाश की तरंग-गति का कारण ईथर-कण का अनुप्रस्थ कंपन है।
ईथर माध्यम में प्रकाश-तरंग का प्रारंभ प्रकाश के स्रोत से होता है। माध्यम के कणों के आपस के प्रत्यास्थ संबंध के कारण स्रोत के स्थान पर उत्पन्न माध्यम कण का अनुप्रस्थ कंपन सभी दिशाओं में सभी कणों में संचारित होता है। किसी भी समय ईथर-कणों के कंपन की जो स्थिति होती है, वह प्रकाश-तरंग की रूपरेखा है।
हाइगेंस के सिद्धांत के आधार पर परावर्तन या अपवर्तन के नियम का व्यंजक :परावर्तन की व्याख्या :
माना कि AB एक समतल तरंगाग्र है जो परावर्तक तथा XX’ पर आपतित होता है। B से चलने वाली किरण v वेग से समय में A’ बिन्दु पर पहुँचती है तथा इतने ही समय में A बिन्दु से परावर्तित किरणें B’ तक पहुँचती है | AB को त्रिज्या मानकर एक चाप खिंचा तथा A’ से इस चाप पर स्पर्श रेखा A’B’ खींचा जो परावर्तित तरंगाग्र को व्यक्त करता है। अब ΔABA‘ एवं A’B’A में BA’ = B’A = vt,
AA’ = A’A
∠ABA’ = ∠A’BA = 90°
ΔABA’ ≅ ΔA’B’A
14. बायो- सावर्ट नियम लिखें और इसका उपयोग करके एक धारावाही वृत्ताकार लुप के अक्ष के किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक प्राप्त करें।
अथवा,
विद्युतीय परिपथ के लिए किरचॉप के नियमों को लिखें। किरचॉफ के नियमों का उपयोग कर एक संतुलित ह्वीटस्टोन सेतु का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर –
अथवा,
प्रथम नियम की व्याख्या – मान लिया कि एक शाखा बिंदु है। धाराएँ I1 तथा I2 बिंदु O की ओर आ रही हैं तथा धाराएँ I3, I4 तथा I5 शाखा बिंदु से बाहर जा रही हैं। किर्कहॉफ के प्रथम नियम से,
(∑I ) अंदर = (∑I ) बाहर
अर्थात I1 + I2 = I3 + I4 + I5
या. I1 + I2 – I3 – I4 – I5 = 0
या, धाराओं का बीजीय योग = 0.
द्वितीय नियम की व्याख्या- यदि दक्षिणावर्ती दिशा को धन दिशा माना जाए तो वामावर्ती दिशा को ऋण दिशा माना जाएगा। तब बंद परिपथ ABC में, विभवांतर R1I1, R2I2 धनात्मक होगा और विभवांतर R3I3 और विद्युत वाहक बल E ऋणात्मक होगा। किर्कहॉफ के द्वितीय नियम से, बंद परिपथ ABC के लिए.
R1I1 + R2I2 – R3I3 – E = 0
∴ विभवांतरों का बीजीय योग = 0.
ह्वीटस्टोन ब्रिज श्रेणीक्रम में जुड़े चार प्रतिरोध P, Q, R तथा S का बना होता है P, Q तथा R, S की संधियों के बीच एक गैलवेनोमीटर G जोड़ा जाता है और S, P तथा Q, R की संधियों के बीच एक सेल जोड़ा जाता है। धारा का वितरण नीचे के चित्र में दिखाया गया है। यदि B तथा D बिंदु समविभवी हों, तो गैलवेनोमीटर से कोई धारा प्रवाहित नहीं होगी। इस दिशा में ब्रिज को संतुलित कहा जाता है।
प्रथम नियम से A बिंदु पर I= I1 + I2·
द्वितीय नियम से परिपथ 1 के लिए ,
–PI1 + SI2 = 0 या PI1 = SI2
तथा परिपथ 2 के लिए ,
–QI1 + RI2 = 0 या QI1 = RI2
समीकरण (i) में (ii) से भाग देने पर, P/Q = S/R.
यही संतुलित ब्रिज के लिए अभीष्ट शर्त है। यदि P, Q तथा R के मान मालूम हों, तो अज्ञात प्रतिरोध S का मान निकाला जा सकता है। इसी सिद्धांत पर मीटर-ब्रिज एवं पोस्टऑफिस बॉक्स से प्रतिरोध का मापन होता है।
15 बोर के सिद्धांत के अभिगृहीतों को लिखें। बोर के सिद्धांत पर हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की व्याख्या करें।
अथवा,
आइंस्टाइन का प्रकाश – विद्युत समीकरण लिखें और उसकी सहायता से प्रकाश- विद्युत प्रभाव की व्याख्या करें ।
उत्तर – बोर सिद्धांत की मान्यताएँ –
(i) नाभिक के गिर्द कुछ ऐसी कक्षाएँ हैं जिसपर चलने से इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा नियत रहती है। इन्हें स्थायी कक्षाएँ कहते हैं ।
(ii) इन कक्षाओं में चलते इलेक्ट्रॉन का नाभिक के गिर्द कोणीय संवेग h/2π का पूर्णांक गुणज होता है।
(iii) इलेक्ट्रॉन ऊर्जा विकिरित करता है यदि वह उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में कूदे तो विकिरित आवृत्ति होगी-
अथवा,
2016 (A)
भौतिकी (Physics)
खण्ड-I (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
निम्नलिखित प्रश्न – संख्या 1 से 28 तक के प्रत्येक प्रश्न के लिए एक ही विकल्प सही है। प्रत्येक प्रश्न से सही उत्तर, उत्तर पत्र में चिह्नित करें।
1. p→ आघूर्ण वाला एक विद्युत द्विध्रुव E→ तीव्रता वाले विद्युतीय क्षेत्र में रखा जाए, लगने वाला टार्क होगा
(A) p→ x E→
(B) p→ · E→
(C) pE
(D) p→ / E→
उत्तर – (A) p→ x E→
2. दिए गए चित्र में A और B के बीच तुल्य धारिता होगी
(A) 6 μF
(B) 18 μF
(C) 9 μF
(D) 1/9 μF
उत्तर – (C) 9 μF
3. विद्युत परिपथ की शक्ति होती है
(A) V · R
(B) V2 · R
(C) V2 / R
(D) V2 · RI
उत्तर – (C) V2 / R
4. चुम्बकीय क्षेत्र की विमा है
(A) I–1 ML0T–2
(B) I0MLT–2
(C) MLT–1
(D) IM–1 L–1T–2
उत्तर – (A) I–1 ML0T–2
5. लेंज का नियम संबद्ध है
(A) आवेश से
(B) द्रव्यमान से
(C) ऊर्जा से
(D) संवेग के संरक्षण सिद्धांत से
उत्तर – (C) ऊर्जा से
6. L-R परिपथ का शक्ति गुणांक होता है
7. जब चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता को चौगुना बढ़ा दिया जाता है, तो लटकती हुई चुंबकीय सूई का आवर्तकाल होता है
(A) दुगुना
(B) आधा
(C) चौगुना
(D) एक-चौथाई कम
उत्तर – (A) दुगुना
8. खगोलीय दूरदर्शक में अंतिम प्रतिबिंब होता है
(A) वास्तविक और सीधा
(B) वास्तविक और उल्टा
(C) काल्पनिक और उल्टा
(D) काल्पनिक और सीधा
उत्तर – (C) काल्पनिक और उल्टा
9. β- किरणें विक्षेपित होती है
(A) गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में
(B) केवल चुम्बकीय क्षेत्र में
(C) केवल विद्युतीय क्षेत्र में
(D) चुम्बकीय एवं विद्युतीय क्षेत्र दोनों में
उत्तर – (D) चुम्बकीय एवं विद्युतीय क्षेत्र दोनों में
10. NOR गेट के लिए बूलियन व्यंजक है
(A) A––•––B = Y
(B) A + B = Y
(C) A • B = Y
(D) A––+––B = Y
उत्तर – (D) A––+––B = Y
11. 64 समरूप बूँदें जिनमें प्रत्येक की धारिता 5uF है मिलकर एक बड़ा बूँद बनाते हैं। बड़े बूँद की धारिता क्या होगी ?
(A) 25 μF
(B) 4 μF
(C) 164 μF
(D) 20 μF
उत्तर – (D) 20 μF
12. विद्युतीय परिपथ के किसी बिन्दु पर सभी धाराओं का बीजगणितीय योग
(A) शून्य होता है
(B) अनंत होता है
(C) धनात्मक होता है
(D) ऋणात्मक होता है
उत्तर – (A) शून्य होता है
13. विद्युत वाहक बल की विमा है
(A) ML2T–2
(B) ML2T–2I–1
(C) MLT–2
(D) ML2T–3I–1
उत्तर – (D) ML2T–3I–1
14. एम्पियर-घंटा मात्रक है
(A) शक्ति का
(B) आवेश का
(C) ऊर्जा का
(D) विभवांतर
उत्तर – (B) आवेश का
15. प्रतिघात का मात्रक है
(A) म्हो
(B) ओम
(C) फैरांडे
(D) एम्पियर
उत्तर – (B) ओम
16. जब प्रकाश की एक किरण ग्लास स्लैब में प्रवेश करती है, तो इसका तरंगदैर्घ्य
(A) घटता है
(B) बढ़ता है
(C) अपरिवर्तित रहता है
(D) आँकड़े पूर्ण नहीं हैं
उत्तर – (A) घटता है
17. जब किसी ऐमीटर को शंट किया जाता है तो इसकी माप सीमा
(A) बढ़ती है
(B) घटती है
(C) स्थिर रहती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) बढ़ती है
18. स्वप्रेरकत्व (self-inductance) का SI मात्रक है ।
(A) कूलॉम (C)
(B) वोल्ट (V)
(C) ओम (Ω)
(D) हेनरी (H)
उत्तर – (D) हेनरी (H)
19. तप्त तार ऐमीटर मापता है प्रत्यावर्ती धारा का
(A) उच्चतम मान
(B) औसत मान
(C) मूल औसत वर्ग धारा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) मूल औसत वर्ग धारा
20. किसी उच्चायी (step-up) ट्राँसफॉर्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी में क्रमश: N1 और N2 लपेट हैं, तब
(A) N1 > N2
(B) N2 > N1
(C) N1 = N2
(D) N1 = 0
उत्तर – (B) N2 > N1
21. इलेक्ट्रॉन-वोल्ट द्वारा मापा जाता है
(A) आवेश
(B) विभवांतर
(C) धारा
(D) ऊर्जा
उत्तर – (D) ऊर्जा
22. डायनेमो के कार्य का सिद्धांत आधारित है
(A) धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर
(B) विद्युत चुंबकीय प्रेरण पर
(C) प्रेरित चुम्बकत्व पर
(D) प्रेरित विद्युत पर
उत्तर – (B) विद्युत चुंबकीय प्रेरण पर
23. चुंबकीय आघूर्ण पर SI मात्रक होता है
(A) JT–2
(B) Am2
(C) JT
(D) Am–1
उत्तर – (B) Am2
24. आप्टिकल फाइबर किस सिद्धांत पर काम करता है ?
(A) प्रकीर्णन
(B) अपवर्तन
(C) वर्ण-विक्षेपण
(D) पूर्ण आंतरिक परावर्तन
उत्तर – (D) पूर्ण आंतरिक परावर्तन
25. जब माइक्रोस्कोप की नली की लंबाई बढ़ायी जाती है तब आवर्धन क्षमता
(A) बढ़ती है
(B) घटती है
(C) शून्य हो जाती है
(D) अपरिवर्तित रहती है
उत्तर – (A) बढ़ती है
26. A तरंगदैर्घ्य वाले फोटॉन की ऊर्जा है
(A) hcλ
(B) hc / λ
(C) hλ / c
(D) λ / hc
उत्तर – (B) hc / λ
27. निम्नांकित में किसे महत्तम बेधन क्षमता है ?
(A) X – किरणें
(B) कैथोड किरणें
(C) α- किरणें
(D) y-किरणें
उत्तर – (D) y-किरणें
28. p-टाइप के अर्धचालक में मुख्य धारा- वाहक होता है
(A) इलेक्ट्रॉन
(B) होल
(C) फोटॉन
(D) प्रोटॉन
उत्तर – (B) होल
खण्ड-II (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न )
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. परावैद्युत शक्ति एवं आपेक्षिक परावैद्युतांक को परिभाषित करें।
उत्तर – परावैद्युत शक्ति : वैद्युत क्षेत्र का तीव्रता का वह अधिकतम मान जहाँ तक परावैद्युत माध्यम अचालक बना रहता है, परावैद्युत शक्ति कहलाता है।
आपेक्षिक परावैद्युतांक: किसी माध्यम का परावैद्युतांक और निर्वात के परावैद्युतांक के अनुपात को माध्यम का सापेक्ष परावैद्युतांक कहा जाता है।
अर्थात् ∈r = ∈/∈0
2. चोक कुण्डली अथवा मोटर प्रवर्तक के उपयोग समझाइए।
उत्तर – चोक कुण्डली : उच्च प्रेरकत्व तथा नगण्य प्रतिरोध के कुंडली को चोक कुण्डली कहा जाता है, जिसका व्यवहार बिना किसी विद्युत ऊर्जा के नष्ट किये ही किसी धारा की शक्ति को कम करने के लिए किया जाता है क्योंकि इससे शक्ति का उपयोग शून्य के बराबर होता है।
मोटर प्रवर्तक : यह एक उच्च प्रतिरोध है जिसे दिष्ट धारा मोटर की कुण्डली के साथ श्रेणीक्रम में लगाया जाता है, जिससे मोटर स्टार्ट करते समय प्रारंभ में जब मोटर में विरोधी वि० वा० बल शून्य होता है, जब मोटर की कुण्डली से होकर अति उच्च धारा नहीं प्रवाहित हो सके, अन्यथा कुण्डली के जलने का भय रहता है।
3. चुम्बकीय फ्लक्स के विमा एवं SI मात्रक बताइए।
उत्तर – चुम्बकीय फ्लक्स के विमा [ML2T-2I-1]; चुम्बकीय फ्लक्स का SI मात्रक वेबर (weber) है।
4. विद्युतीय नेटवर्क के लिए किरचॉफ के दोनों नियम लिखें।
उत्तर – विद्युतीय नेटवर्क के लिए किरचॉफ का नियम – (i) प्रथम नियम: चालकों के जाल में किसी बिन्दु पर मिलने वाली विद्युतधाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। अर्थात् ∑I = 0
(ii) दूसरा नियम : किसी बंद विद्युत परिपथ के प्रत्येक भाग में प्रवाहित होने वाली विद्युतधारा तथा उसके प्रतिरोध के गुणनफल का बीजगणितीय योग परिपथ में लगे कुल वि• वा • बल के बराबर होता है।
5. पूर्ण आंतरिक परावर्तन क्या है ? इसकी शर्तें क्या हैं?
उत्तर – पूर्ण आंतरिक परावर्तन : किसी सघन माध्यम में ऐसा आपतन कोण जो अपवर्तन के कोण को विरल माध्यम में समकोण पर बदल दे उसे पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन की शर्तें – (i) प्रकाश की किरणों को सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए। (ii) प्रकाश की किरणों के द्वारा सघन माध्यम में बना आपतित कोण क्रांतिक कोण से बड़ा होना चाहिए।
6. एक 16 Ω प्रतिरोध वाले तार को खींचकर उसकी लंबाई दुगुनी कर दी जाती है तो तार का नया प्रतिरोध निकालें।
उत्तर –
7. NAND और NOR गेट की सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर –
8. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के लेंज का नियम लिखें।
उत्तर – विद्युत चुंबकीय प्रेरण के लेंज नियम : “किसी कुंडली में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि वह हमेशा उस कारण का विरोध करती है, जिसके कारण वह स्वयं उत्पन्न होती है।”
प्रयोग : मान लिया कि A एक कुंडली तथा NS एक चुंबक है। इसके नजदीक चुंबक का उत्तर ध्रुव लाते हैं। इससे कुंडली में प्रेरित वि. वा० बल उत्पन्न होती है। इसकी दिशा ऐसी होती है कि वह N ध्रुव की तरह काम करता है। इससे वह NS चुंबक को विकर्षित करती है। अब चुंबक को दूर ले जाते हैं। इससे कुंडली में उत्पन्न प्रेरित वि० वा॰ बल की दिशा ऽ ध्रुव की तरह काम करती है। अतः यह NS चुंबक को आकर्षित करना चाहता है। इस प्रकार दोनों स्थिति में उत्पन्न धारा की दिशा NS चुंबक का विरोध करता है। ठीक इसी प्रकार की घटना दक्षिण ध्रुव के निकट लाने तथा दूर ले जाने के साथ होती है।
9. X – किरणों के किन्हीं दो गुणों को लिखें।
उत्तर – (i) X – किरणें विद्युत चुंबकीय तरंग है।
(ii) X-किरणें का स्थिर द्रव्यमान शून्य लेकिन गतिशील द्रव्यमान hν/ C2 है।
10. पेल्टियर प्रभाव क्या है ?
उत्तर – पेल्टियर प्रभाव में ऊष्मा तारों के छोरों की संधि पर उत्पन्न होती है लेकिन जूल प्रभाव में ऊष्मा पूरे तार पर उत्पन्न होती है। जूल प्रभाव धारा की दिशा से स्वतंत्र होता है लेकिन पेल्टियर प्रभाव धारा की दिशा पर इस अर्थ में निर्भर करता है कि किसी संधि से किसी दिशा में धारा के गुजरने पर यदि संधि गर्म होती है तो धारा की दिशा बदलने पर वही संधि ठंढी होती है। पेल्टियर प्रभाव नगण्य प्रतिरोधों के तारों की संधियों में भी उत्पन्न होते हैं लेकिन जूल प्रभाव से ऊष्मा का अधिक उत्पादन के लिए तार का प्रतिरोध अधिक होना आवश्यक है और नगण्य प्रतिरोध के तार में नगण्य परिमाण की ऊष्मा का उत्पादन होता है।
11. व्योम तरंगों तथा आकाशीय तरंगों की व्याख्या करें ।
उत्तर – आकाशीय तरंगें- इस विधि में प्रेषित्र एण्टिना से रेडियो तरंगों को पृथ्वी तल से अल्प कोण बनाते हुए भेजा जाता है, जो क्षोभमण्डल से परावर्तित होकर अभिग्राही एण्टिना पर पहुँच जाती है । इस विधि द्वारा लगभग 2000 किलोहर्ट्ज तक की आवृत्ति की रेडियो तरंगों को संचरित किया जा सकता है। –
व्योम तरंगें – इस विधि में प्रेषित्र एण्टिना से लगभग ऊर्ध्वाधर प्रेषित्र रेडियो तरंगें आयनमण्डल से परावर्तित होकर अभिग्राही एण्टिना पर पहुँच जाती हैं। इस विधि द्वारा 1500 किलोहर्ट्ज़ से 40 मेगाहर्ट्ज आवृत्ति वाली रेडियो तरंगें प्रसारित की जाती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
12. यौगिक परावैद्युत वाले एक समानान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
अथवा,
X – अक्ष पर d दूरी पर दो आवेश q एवं – 3q अवस्थित हों तो 2q आवेश के तीसरे आवेश को कहाँ रखा जाए कि तीसरे आवेश पर कोई बल न लगे। इस संरचना की स्थितिज ऊर्जा की गणना करें।
उत्तर – जब किसी चालक को आविष्ट किया जाता है तो आवेश की मात्रा छोटी-छोटी इकाइयों में दी जाती है। जब आवेश की पहली इकाई दे दी जाती है तो दूसरी इकाई के देने में विकर्षण बल के विरुद्ध कार्य संपादित होता है क्योंकि आवेशों की प्रकृति समान होती है। इस विकर्षण बल के विरुद्ध जो कार्य संपादित होता है वही चालक में स्थितिज ऊर्जा के रूप में प्रकट होता है।
माना कि किसी चालक पर आवेश q एवं इसकी धारिता C है।
अतः चालक का विभव V‘ = q/C होगा ।
पुनः यदि चालक को अब समान प्रकृति का अत्यल्प आवेश dq दिया जाए तो इस प्रक्रम में किया गया कार्य dW = V‘ x dq
अतः चालक को Q आवेश देने में किया गया कार्य
13. तरंगाग्र एवं द्वितीय तरंगिकाओं को परिभाषित करें। हाइगेंस के सिद्धांत के आधार पर परावर्तन या अपवर्तन के नियम को सत्यापित करें ।
अथवा,
15 cm फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस से कितनी दूरी पर किसी वस्तु को रखा जाए कि उसका तीन गुना आवर्धित प्रतिबिंब प्राप्त हो सके।
उत्तर – तरंगाग्र : प्रकाश के किसी स्रोत से समान दूरी पर चारों ओर ईथर के कणों के कंपन की कलाएँ समांगी माध्यमों में समान होती हैं। ऐसे समान कंपन कला वाले स्पर्श करती हुई आभासी पृष्ठ तरंगाग्र कहे जाते हैं।
द्वितीय तरंगिकाएँ: हाइगेंस की रचना यह बताती है कि नया तरंगाग्र द्वितीयक तरंगों का अग्र आवरण है। प्रकाश की चाल की दिशा से स्वतंत्र होने की स्थिति में द्वितीयक तरंगें गोलीय होती हैं। किरणें तब दोनों तरंगाग्रों के लंबवत् होती है और वहन काल किसी भी किरण की दिशा में समान होता है। इस सिद्धांत से परावर्तन तथा अपवर्तन के सुज्ञात नियम प्राप्त होते हैं।
14. आयाम माडुलेशन एवं आवृत्ति माडुलेशन की व्याख्या करें। प्रेषी एन्टिना की ऊँचाई के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
अथवा,
प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन प्रभाव क्या है ? प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन का नियम क्या है? आइंस्टाइन द्वारा दिए गए इस नियम की व्याख्या को समझाइए ।
उत्तर – आयाम मॉडुलेशन : मॉडुलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंगों का आयाम, मॉडुलक तरंगों के तात्कालिक मान Vm द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है आयाम मॉडुलन कहलाता है।
आवृति मॉडुलेशन : मॉडुलन की वह प्रक्रिया जिसमें वाहक तरंगों की आवृति, मॉडुलक तरंग के आयाम के अनुसार बदलता है, आवृत्ति मॉडुलन कहलाता है ।
प्रेषी ऐंटिना की ऊँचाई के लिए व्यंजक :
प्रेषण ऐंटिना के बिन्दु Q से चलने वाली तरंगें स्पर्श बिंदुओं A एवं B से आगे स्थित स्थानों तक नहीं पहुँचती हैं। अतः प्रसारण का range A तथा B के बीच होगा। माना ऐंटिना की ऊँचाई h है तथा पृथ्वी की त्रिज्या R है |
अथवा,
जब किसी धातु सतह पर उचित आवृत्ति का प्रकाश विकिरण इलेक्ट्रानों के उत्सर्जन की घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं ।
आइंस्टीन द्वारा प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियमों की व्याख्या : प्रकाश वैद्युत प्रभाव के निम्नलिखित नियम हैं
(1) किसी धातु की सतह से प्रकाश – इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
(2) उत्सर्जित प्रकाश – इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
(3) उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधीकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होती है।
(4) यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान (देहली आवृत्ति) से कम है, तो धातु से कोई प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता। यह न्यूनतम आवृत्ति, विभिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होती है।
(5) धातु की सतह पर जैसे ही प्रकाश आपतित होता है तुरन्त उससे इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं, अर्थात् प्रकाश के धातु तल पर गिरने और उस तल से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जित होने के बीच कोई समय-पश्चात नहीं होती चाहें प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो।
व्याख्या :
(1) जब किसी धातु पृष्ठ पर आपतित निश्चित आवृत्ति के प्रकाश की तीव्रता बढ़ाई जाती है तो सतह पर प्रति सेकण्ड आपतित फोटॉनों की संख्या उसी अनुपात में बढ़ जाती है, प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hν नियत रहाउ परन्तु फोटॉनों की संख्या बढ़ने से उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की संख्या जाती है, परन्तु उक्त समीकरण से स्पष्ट है कि आवृत्ति ν के निश्चित होने तथा धातु विशेष के लिए ν0 निश्चित होने से पृष्ठ से उत्सर्जित सभी प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek एकसमान होगी। अतः प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर तो आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है, परंतु इनका अधिकतम गतिज ऊर्जा नहीं। इस प्रकार प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम (1) तथा (2) की व्याख्या हो जाती है।
(ii) उक्त समीकरण से यह भी स्पष्ट है कि आपतित प्रकाश की आवृत्ति बढ़ाने पर उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek उसी अनुपात में बढ़ जाती है। इस प्रकार प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम (3) की व्याख्या हो जाती है।
(iii) उक्त समीकरण में यदि ν<ν0 तो Ek का मान ऋणात्मक होगा, जो असंभव है। अतः इससे निष्कर्ष निकलता है कि यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति ν0 से कम है तो प्रकाश- इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन सम्भव नहीं है, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हों। इस प्रकार प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम (4) की व्याख्या हो जाती है।
(iv) जब प्रकाश किसी धातु पृष्ठ पर गिरता है तो जैसे ही कोई एक प्रकाश फोटॉन धातु पर आपतित होता है, धातु का कोई एक इलेक्ट्रॉन तुरन्त उसे ज्यों-का-त्यों अवशोषित कर लेता है तथा धातु पृष्ठ से उत्सर्जित हो जाता है। इस प्रकार धातु पृष्ठ पर प्रकाश के आपतित होने तथा इससे प्रकाश- इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जित होने में कोई पश्चता नहीं होती। इस प्रकार प्रकाश वैद्युत प्रभाव के नियम (5) की व्याख्या हो जाती है।
इस प्रकार आइन्स्टीन प्रकाश वैद्युत प्रभाव की घटना को पूर्णरूप से समझाने में सफल हुए। इसके लिए सन् 1921 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1915 में मिलिकन ने आइन्स्टीन के समीकरण का परीक्षण किया और इसे प्रायोगिक परिणामों के अनुरूप पाया।
15. स्व-प्रेरकत्व एवं अन्योन्य प्रेरण को परिभाषित करें। दो लम्बी समाक्षीय परिनालिकाओं का अन्योन्य प्रेरकत्व का व्यंजक निकालें।
अथवा,
दिष्टकारी क्या है? संधि डायोड को (i) अग्र वायस अभिलक्षण (ii) पश्च वायस अभिलक्षण में कैसे प्रयोग किया जाता है? p-n संधि डायोड के धारा-विभव अभिलक्षण को ग्राफ पर दर्शाइए ।
उत्तर – स्वप्रेरकत्व : माना कि किसी क्षण एक कुंडली में I धारा प्रवाहित है तो चुंबकीय फ्लक्स Φ प्रवाहित धारा के सीधा समानुपाती होती है। अर्थात् Φ ∝ I या, Φ = LI जहाँ L को कुंडली का स्वप्रेरकत्व या स्वप्रेरण गुणांक कहा जाता है। यह कुंडली के लपेटों की संख्या, अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल तथा क्रोड के पदार्थ की चुंबकशीलता पर निर्भर करती है, जिसपर कि कुंडली लिपटी होती है।
अन्योन्य प्रेरकत्व : माना कि प्राथमिक P तथा द्वितीयक S दो कुंडलियाँ हैं। किसी क्षण प्राथमिक कुंडली से I धारा प्रवाहित होती है तो द्वितीयक कुंडली S से संबद्ध चुंबकीय फ्लक्स उस समय प्राथमिक कुंडली से प्रवाहित धारा के सीधा समानुपाती होता है। अर्थात् Φ ∝ I या, Φ = MI जहाँ M को अन्योन्य प्रेरण गुणांक या अन्योन्य प्रेरकत्व कहते हैं।
परिनालिकाओं का अन्योन्य प्रेरकत्व : S2 परिनालिका S1 परिनालिका को पूर्णतया घेरे हुए हैं। प्रत्येक परिनालिका की लंबाई l तथा अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A लगभग समान है।
N1 = S1 परिनालिकाओं में फेरों की संख्या, N2 = S2 परिनालिकाओं में फेरों की संख्या
अथवा,
दिष्टकारी : दिष्टकारी वह युक्ति है जो प्रत्यावर्ती विभव को दिष्ट विभव में बदलती है।
अग्र वायस अभिलक्षण: चित्रानुसार p-n संधि डायोड के p सिरे को बैटरी के धन सिरे से तथा n सिरे को बैटरी के ऋण सिरे से जोड़ा जाता है। इसे अग्र अभिनति (फॉरवर्ड बायसित) कहते हैं। ऐसा करने से p अर्द्धचालक के विवर (होल) धनात्मक इलेक्ट्रॉड से प्रतिकर्षित होकर p-n संधि की ओर चलते हैं तथा n अर्द्धचालक के इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक इलेक्ट्रोड से प्रतिकर्षित होकर p-n संधि की ओर चलते हैं।
p-n संधि क्षेत्र में ये इलेक्ट्रॉन तथा विवर संयोग करते हैं जिससे बैटरी से धनात्मक सिरे पर सह-बन्धन टूट जाता है तथा एक इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाता है जो धनात्मक सिरे पर प्रवेश करता है। इस क्रिया के फलस्वरूप एक नया विवर बन जाता है जो दायीं ओर p-n संधि की ओर चलता है। बैटरी के ऋणात्मक सिरे के पास n अर्द्धचालक संधि पर विवर से मिलने में नष्ट हो जाते हैं, उन्हें प्रतिस्थापित कर देते हैं। ये इलेक्ट्रॉन संधि पर बायीं ओर चलते हैं तथा संधि पर नये आने वाले विवर से मिलते हैं। इस प्रकार संधि की प्रबल धारा प्रवाहित होने लगती है। जैसे-जैसे p और n सिरों के मध्य विभवान्तर बढ़ाया जाता है, धारा का मान भी तेजी से बढ़ता है।
पश्च वायस अभिलक्षण : चित्रानुसार p-n संधि डायोड के p सिरे को बैटरी के ऋणात्मक सिरे से तथा in सिरे को बैटरी के धनात्मक सिरे से जोड़ा जाता है। इसे उत्क्रम या पश्च अभिनति कहते हैं। ऐसा करने से p अर्द्धचालक के विवर, बैटरी के ऋणात्मक सिरे की ओर आकर्षित होकर p-n संधि से दूर चलते हैं तथा n अर्द्धचालक के इलेक्ट्रॉन, बैटरी के धनात्मक सिरे की ओर आकर्षित होकर p-n संधि से दूर चलते हैं। इस प्रकार संधि के पास न तो कोई विवर रहता है और न कोई इलेक्ट्रॉन। अतः धारा लगभग शून्य हो जाती है। लेकिन चित्र की भाँति संधि से बहुत अल्प धारा (माइक्रो-एम्पियर की कोटि की)
प्रवाहित होती है क्योंकि p अर्द्धचालक में कुछ इलेक्ट्रॉन और n अर्द्धचालक में कुछ विवर ऊष्मीय उत्तेजनाओं के कारण उपस्थित रहते हैं जो कि बाह्य विद्युत क्षेत्र के कारण संधि की ओर गति करते हैं। बहुत अधिक उत्क्रम विभव लगाने पर संधि के पास सह-बन्धन टूट जाते हैं जिससे धारा बिल्कुल बढ़ जाती है।
p-n संधि डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र –
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