1. हिस्टोन पर धनात्मक आवेश कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर – हिस्टोन प्रोटीन में क्षारीय अमीनो अम्ल बाहर की ओर स्थित होते हैं फलतः हिस्टोन धनावेशित होता है।
2. किन्हीं दो साइनोबैक्टीरिया का नाम लिखें जो जैव-उर्वरक हों।
उत्तर – दोसायनोजीवाणुओं जो जैव उर्वरक होते हैं, वे हैं— एनाबीना एवं नॉस्टॉक।
3. कदम्ब में किसके द्वारा परागण होता है ?
उत्तर – कदम्ब में चमगादड़ द्वारा पर परागण होता है।
4. शुक्राणु के मध्य भाग में क्या पाया जाता है ?
अथवा, ध्वनि की इकाई क्या है ?
उत्तर – शुक्राणु के मध्य भाग में माइटोकॉण्ड्रिया होता है।
अथवा, ध्वनि की इकाई डेसिबल (dB) है।
5. प्लाज्मिड डी॰एन॰ ए॰ किस सूक्ष्मजीव में पाया जाता है ?
उत्तर – जीवाणु कोशिका में प्लाज्मिड DNA पाया जाता है।
6. टिटैनस किस बैक्टीरिया के कारण होता है ?
उत्तर – क्लोस्ट्रिडियम टिटैनी नामक जीवाणु के कारण टिटैनस रोग होता है।
7. एगारोज का प्रयोग किस काम में किया जाता है ?
उत्तर – एगारोज का प्रयोग जैव प्रद्यौगिकी में होता है।
8. किसी एक फ्लैजेजम बैक्टीरिया का नाम लिखें।
उत्तर – Vibrio Cholerae
9. कृत्रिम बीज का एक उदाहरण दें।
उत्तर – ट्रिटिकेल बीज |
10. एक विलुप्त हो गए प्राणी का नाम लिखें।
उत्तर – वूली मैमथ ।
खण्ड-ख
11. बहुभ्रूणता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – एक बीज में एक से अधिक भ्रूणों के पाये जाने की स्थिति बहुभ्रूणता कहलाता है।
12. आरोपण किसे कहते हैं? यह क्रिया कब प्रारंभ होती है ?
उत्तर – स्त्रियों में ब्लास्टोसिस्ट (कोष्क पुटी) के गर्भाशय स्तर में अंतःस्थापित होने की क्रिया को आरोपण कहते हैं। यह क्रिया निषेचन के सात दिनों के बाद होती है।
13. (a) एकसंकर क्रॉस तथा द्विसंकर क्रॉस के फीनोटिपीक अनुपातों को लिखें।
(b) उत्परिवर्तन को परिभाषित करें।
उत्तर – (a) एकसंकर क्रॉस का फीनोटिपीक अनुपात द्वारा होता है द्विसंकर क्रॉस का फीनोटिपिक अनुपात 9:3:3:1 होता है। (b) जीव संरचना में वह परिवर्तन जिसके कारण संतति में उस जीन द्वारा अभिव्यक्त होने वाले लक्षण परिवर्तित हों, वह उत्परिवर्तन कहलाता है।
14. द्विसंकर (Dihybrid) क्रॉस के जीनोटिपीक अनुपात को लिखें।
अथवा, रेशम के चार किस्म के नाम लिखें।
उत्तर – द्विसंकर क्रॉस का जीनोटिपिक अनुपात 1: 2:1:24:2:1:2: 1 होता है । अथवा, तसर सिल्का, मूंगा सिल्क, मलवरी सिल्क एवं अंडी सिल्क।
15. (a) पॉलीप्लॉइडी को परिभाषित करें। (b) बहु अलील क्या हैं ?
उत्तर – (a) जीवों में गुणसूत्र समुच्चय की संख्या जब दो से अधिक होती है तो वह जीव बहुगुणित एवं यह गुण बहुगुणिता कहलाता है। (b) किसी जीन के तीन या अधिक ऐलील हो तो उसे बहुऐलील कहते हैं। जैसे ABO रक्त समूह का जीन।
16. निम्नलिखित में से कौन-दो दलों के बीच योजक कड़ी है?
(a) प्रोटोप्टेरस (b) पेरिपेटस (c) एकिड्ना (d) आरकिओप्टेरिक्स
उत्तर – पेरीपेटस एवं एकिड्ना दो समूहों के बीच योजक कड़ी है।
17. निम्न को परिभाषित करें- (a) इम्यूनोथीरैपी (b) कीमोथीरैपी –
उत्तर – (a) क्लोनल प्रतिपिण्ड की सहायता से कैंसर रोग का निदान करने की प्रक्रिया को इम्युनोथेरापी कहा जाता है। (b) प्रति कैंसर रसायनों का उपयोग कर कैंसर रोग का निदान करने को कीमोथेरापी कहते हैं।
18. (a) जैव प्रौद्योगिकी की परिभाषा लिखें। (b) क्राई-प्रोटीन को परिभाषित करें।
उत्तर – (a) जैव-प्रौद्योगिकी जीवित जीवों जैसे जीवाणु पादप या जंतु कोशिका अथवा इनके घटकों या एंजाइनों का उपयोग मानव कल्याण के लिए उत्पाद प्राप्त करने का विज्ञान है। (b) क्राई-प्रोटीन एक प्रकार के जीवाणु द्वारा उत्पन्न प्रोटीन है जो उस जीवाणु के cry जीन की अभिव्यक्ति का उत्पाद है।
19. DNA फिंगरप्रिंटिंग को परिभाषित करें।
उत्तर – किसी व्यक्ति के DNA के विशिष्ट स्थल जो व्यक्ति विशिष्ट होता है, के न्यूक्लियोटाइड क्रम को ज्ञात करने की विधि को फिंगरप्रिंटिंग कहते हैं ।
20. निम्नलिखित के उत्तर लिखें –
(a) आण्विक निदान क्या है ? (b) पी०सी०आर० पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर – (a) रासायनिक अणुओं की सहायता से किसी जैव अभियांत्रिकी विधि का उपयोग संभावित रोगकारकों की पहचान के लिए की जाती हो, आण्विक निदान कहलाता है ।
(b) पी०सी०आर० का पूरा नाम पॉलीमरेज शृंखला अभिक्रिया है। जैव प्रौद्योगिकी विधि से अति सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित DNA की पहचान की जाती है ।
21. द्विरूपता एवं बहुरूपता में अंतर स्पष्ट करें।
अथवा, मानव-निर्मित पारिस्थितिक तंत्र के बारे में लिखें।
उत्तर – किसी जीव के दो आकारिक रूपों में पाया जाना द्विरूपिता है जैसे मानव (स्त्री एवं पुरुष) जबकि दो से अधिक रूपों में पाया जाना बहुरूपता है, जैसे मधुमक्खी (नर, मादा एवं सहचर आदि ।)
अथवा,
मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र मानव द्वारा तैयार किया हुआ एवं मानव द्वारा ही व्यवस्थित कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र है। उदाहरण – फुलवारी, कृषि पारिस्थितिक तंत्र, अम्बेरियम आदि ।
22. अंतर परिवर्तित गाय का नाम बताएँ। इसमें कौन-सा विशेष प्रोटीन है ?
उत्तर – गाय – रोजी; प्रोटीन-α-लैक्टस अल्बुमिन ।
खण्ड-ग
23. अलैंगिक जनन मुकुलन से आप क्या समझते हैं ? सोदाहरण लिखें।
उत्तर – इस प्रकार के जनन में जनक के शरीर से कोई बल्ब- सरीखी प्रवर्ध निकल आती है जिसे मुकुल कहते हैं, और फिर यह मुकुल टूटकर जनक के शरीर से अलग हो जाती है जो स्वतंत्र जीव बनाती है।
24. मानव मादा के अंडाशय के अनुप्रस्थ काट (T.S.) का नामांकित चित्र बनाएँ, जिसमें पुटकों के हर स्तर को दर्शाया गया है।
उत्तर – मानव मादा के अंडाशय के अनुप्रस्थ काट (T.S.) का नामांकित चित्र –
25. निम्नलिखित से आप क्या समझते हैं ?
(a) सूक्ष्म उत्परिवर्तन (b) वृहत् उत्परिवर्तन (c) गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन
उत्तर – (a) किसी जीन की संरचना में वह परिवर्तन जिसकी अभिव्यक्ति सूक्ष्म हो, सूक्ष्म उत्परिवर्तन कहलाता है। (b) जीन संरचना में वह परिवर्तन जिसकी अभिव्यक्ति वृहत स्तर पर होती है, वृहत् उत्परिवर्तन कहलाता है। (c) गुणसूत्र की संरचना एवं संख्या में परिवर्तन गुणसूत्री उत्परिवर्तन कहलाता है।
26. जेनेटिक कोड के गुण संक्षेप में लिखें।
उत्तर – जेनेटिक कोड के गुण: प्रयोगों द्वारा जेनेटिक कोड के निम्नलिखित गुणों को वास्तव में सिद्ध किया गया है।
(i) ट्रिप्लेट रूप : जेनेटिक कोड हमेशा ट्रिप्लेट यानी तीन नाइट्रोजनी बेस के समूह में रहता है जो संदेशवाहक (messenger) RNA पर एक क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। चूँकि 20 अमीनो अम्लों के लिए कोडोन होते हैं, इसलिए एक अमीनो अम्ल के लिए निश्चित तौर पर एक से अधिक कोडोन होते हैं।
(ii) अपह्रासित कोड: चूँकि एक अमीनो अम्ल के लिए एक से अधिक कोड होते हैं, अतः, ऐसे अतिरिक्त कोड को अपहासित कोड कहा जाता है। :
(iii) कोमारहित रूप : एक अमीनो अम्ल के कोडोन के तुरंत बाद दूसरे अमीनो अम्ल का कोडोन शुरू हो जाता है यानी दो कोडोन के बीच कोमा का विराम चिह्न नहीं रहता है।
(iv) अतिछादित नहीं रहना संदेशवाहक RNA के किसी कोडोन के तीन में से एक नाइट्रोजन बेस का उपयोग दो अलग-अलग कोडोन में नहीं होता है।
27. भूवैज्ञानिक महाकल्प क्या है? उन्हें जिन महाकल्पों में वर्गीकृत किया गया है। उन महाकल्पों के नाम लिखें।
उत्तर – भूवैज्ञानिक महाकल्प पृथ्वी की उपस्थित काल से अब तक के समयावधि को महाकल्पों में विभाजन को वैज्ञानिक स्केल है। भूवैज्ञानिक काल स्केल को विभिन्न महाकल्पों में बाँटा गया है। ये हैं — पैलियोजोइक, मीसोजोइक एवं सीनोजोइक महाकल्प |
28. मधुमक्खी पालन का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर – पर-परागण : आनुवंशिक रूप से असमान दो पुष्पों के परागकोष से वर्तिकाग्र तक पराग का स्थानांतरण पर-परागण कहलाता है। पर-परागण के विभिन्न अभिकर्मक निम्नलिखित हैं –
(a) अजैविक अभिकर्मक : इसमें जल (eg. लेम्ना में), वायु (eg . मक्का में) शामिल हैं। जिसके आधार पर पर-परागण को क्रमश: हाइड्रोफिली एवं एनीमोफिली कहा जाता है।
(b) जैविक अभिकर्मक : इसमें जंतु शामिल हैं। इन्हीं जंतु के नाम पर पर-परागण का नामाकरण भी किया गया है। ये हैं—
(i) एंटोमोफिली : इसका अभिकर्मक कीट है। जैसे— पैपावर, यूफॉर्बिया मंड आदि में।
(ii) औरनिथोफिली : इसका अभिकर्मक पक्षी है। जैसे— विगनोनिया एवं एगैल में।
(iii) चीरोटेरोफिली : इसका अभिकर्मक चमगादड़ है। जैसे— कदम में।
(iv) मैलकोफिली : इसका अभिकर्मक घोंघा है। जैसे— एरिसोमा एवं अन्य एटॉइड्स में।
29. जीवाणु जनित किन्हीं चार प्रतिजैविक के नाम लिखें।
उत्तर – सिफैलोस्पोरिन, पोलीपोरिन में पॉलीमीक्सिन, थायरोक्सिसिन, सबटिलिन आदि जीवाणुजन्य प्रतिजैविकों में शामिल हैं। स्ट्रेप्टोकाइनेज एंजाइम के उत्पादन में स्ट्रैप्टोकोकस जीवाणु शामिल हैं। साइक्लेस्पोरिन-A का त्पादन ट्राइकोडर्मा पॉलोस्पोरम नामक कवक से होता है। स्टैटिन का उत्पादन मोनॉस्कस पर अस नामक यीस्ट या कवक से होता है ।
30. एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसियंस एक प्राकृतिक संवाहक है। कैसे ?
उत्तर – एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसियंस एक जीवाणु है जो द्विबीजपत्री पादपों को संक्रमित कर उसमें ट्यूमर (पथरी) को प्रेरित करता है। इसमें पथेरी प्रेरक जीन (VIR) T DNA क्षेत्र में उपस्थित रहता है।
जैव तकनौक क्षेत्र में क्लोनिंग वाहक के रूप में इस जीवाणु का प्रयोग किया जाता है। इसके फ्लोनिंग वाहक के रूप में इस जीवाणु का प्रयोग किया जाता है। इसके फलोज्मिड को असंक्रामक बनाकर बांछित बाह्य जीन को इसके TDNA क्षेत्र में प्रवेश कराकर TDNA को निष्क्रिय बना लिया जाता है। फिर इस निष्क्रिय प्लाज्मिक को जीन स्थानांतरण के उपयोग में लाया जाता है। इससे मुक्त जीवाणु को फ्लोनिंग कराकर मुक्त कर दिया जाता है जो अपने होस्ट में पहुँचकर वांछित उत्पाद करना प्रारंभ कर देता है। इस प्रकार यह एक प्राकृतिक संवाहक का कार्य करता है।
31. जीवन चिकित्सा क्या है ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर – चिकित्सा की वह विधि जिसके द्वारा किसी बच्चे या भ्रूण में पहचाने गए जीन दोषों (आनुवंशिक दोषों) का सुधार उपर्युक्त जीनों को शिशु या भ्रूण या व्यक्ति की कोशिकाओं या ऊतकों में प्रवेश कराकर किया जाता हो, जीन चिकित्सा कहलाता है।
32. निम्न के बारे में लिखें – (a) मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (b) इंटरफेरॉन (c) बायोरिएक्टर
उत्तर – (a) मनोक्लोनल एंटीबॉडी एक प्रकार का प्रोटीन है जिसका निर्माण रक्त में एक विशिष्ट एंटीजेन पहुँचने पर होता है। यह रक्त को इम्युनिटी प्रदान करता है। इसकी खोज कोहलर एवं मिलस्टीन ने की थी। एक विशिष्ट प्रकार के लिम्फोसाइट को विलगित कर उसे इनविट्रो संवर्धन कराया जाए तो वह एक प्रकार के ही एंटीबॉडी उत्पन्न करता है। यह प्रजिन विशिष्ट होता है इसे ही मनोक्लोनल एंटीबॉडी कहा जाता है, जैसे —
उपयोग : इसका उपयोग रोग की पहचान, A, B, O रक्त समूह, कैंसर, गर्भ, एलर्जी, विषाणुजन्य रोग एवं कुछ हारमोनों की पहचान में की जाती है।
(b) इंटरफेरॉन प्रतिजैविक रहित प्रोटीन है जो प्रतिजन (विषाणु) आक्रमण के समय सजीव कोशिकाओं द्वारा स्रावित होते हैं। ये विषाणु विभाजन (जनन) दर को हटाकर उसके चारों ओर की कोशिकाओं को विषाणु संक्रमण बचाता है।
(c) बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जन्तुओं एवं मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है। बायोरिएक्टर वांछित उत्पाद पाने के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है। वृद्धि के लिए ये अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैं— तापमान, pH, क्रियाधार, लवण, विटामिन, ऑक्सीजन । जो बायोरिएक्टर सामान्यतया सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है वह विलोडन (स्टिरिग) प्रकार का है।
33. एक जलीय / तालाब पारिस्थितिक तंत्र को नामांकित चित्र द्वारा दर्शाइए ।
उत्तर –
34. निम्नलिखित के उत्तर संक्षेप में लिखें
(a) अम्लीय वर्षा क्या है? (b) मनुष्य पर विकिरण प्रदूषण का प्रभाव क्या है ?
उत्तर – (a) वृहत् रूप में अम्ल वर्षा उन अनेक तरीकों को कहा जाता है जिससे वायुमंडल से अम्ल धरती पर जमा होता है। अम्ल का जमाव आर्द्र या शुष्क हो सकता है। नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO2), उड़नशील कार्बनिक यौगिक (VOC3) तथा (SO2) का उत्पादन कोयला (उद्योगों) तथा पेट्रोलियम (ऑटोमोबाइल) के जलने से होता है। ये गैसें हवा में अति प्रतिक्रियात्मक होती हैं। जल में घुलकर धरती पर अम्ल वर्षा के रूप में आ जाती हैं। अम्ल वर्षा का pH 5.6 से भी कम होता है।
पौधों का प्रभाव – (i) पादपों की पत्तियों, फूलों तथा फलों को नुकसान पहुँचाता है। (ii) फूल उत्पादन को कम करता है।
(b) विकिरण प्रदूषण का मानव पर निम्नांकित प्रभाव हैं – (i) त्वचा का कैंसर होना, (ii) त्वचा पर जलन होना, (iii) नवजात कोशिका का उत्परिवर्तित होना (iv) नाखुन एवं रोमों का नष्ट होना, (v) सबकुटैनियस रक्त स्राव होना, (vi) रक्त कोशिका अनुपातों में अंतर आ जाना, (vii) गिल्टी, आनुवंशिक विकृति उत्पन्न होना, (viii) उपापचयी क्रिया में परिवर्तन (ix) जीवन काल में कमी। अंततः शरीर के सभी अंगों का विघटन; फलतः रोगी की मृत्यु निश्चित हो जाना।
खण्ड-घ
35. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखें
(a) आर०एन०ए० के प्रकार (b) ट्रांसक्रिप्शन (c) ट्रांसलेशन
उत्तर – (a) RNA के प्रकार –
(i) m-RNA : यह DNA के कोड को ग्रहण कर उसे अमीनो अम्ल के रूप में डीकोड (decode) करता है।
(ii) r-RNA : यह m-RNA को DNA से मुक्त करता है। यह राइबोसोम प्रोटीन के साथ मिलकर प्रोटीन संश्लेषण के लिए राइबोसोम की क्रियात्मक इकाई की भूमिका का निर्वहन करता है ।
(iii) t-RNA : यह राइबोन्युक्लियोटाइड का बना सबसे छोटा RNA अणु है। इसमें Recognition site, प्रतिकूट स्थल, राइबोसोम लगाव स्थल एवं अमीनो अम्ल लगाव स्थल स्थित होते हैं। जिनके कारण यह क्रिया कर बहुपेप्टाइड प्रोटीन में बदल जाता है।
(b) ट्रांसक्रिप्शन (अनुलेखन) : DNA की एक रज्जुक से आनुवंशिक सूचनाओं का आरएनए में प्रतिलिपीकरण करने की प्रक्रिया को अनुलेखन कहते हैं। यहाँ भी पूरकता का सिद्धांत अनुलेखन प्रक्रम को नियंत्रित करता है जिसमें एडिनोसिन थाइमिन की जगह पर यूरेसिल के साथ क्षारयुग्म बनाता है। यद्यपि प्रतिकृति प्रक्रम के विपरीत किसी जीव के कुल डीएनए द्विगुणित होकर अनुलेखन के दौरान अपना एक रज्जुक आरएनए के साथ मिलाकर उसी का रूप ले लेता है। इससे डीएनए की लड़ी व जगहों का पता चलता है जो अनुलेखन में भाग लेते हैं। अनुलेखन के दौरान दोनों रज्जुकों की प्रतिलिपीकरण क्यों नहीं होती है।
(c) ट्रांसलेशन (स्थानांतरण) : स्थानांतरण या रूपांतरण वह प्रक्रिया है जिसमें अमीनो अम्लों के बहुकलन से पॉलीपेप्टाइड का निर्माण होता है। अमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम दूत आरएनए में पाए जाने वाले क्षारों के अनुक्रम पर निर्भर करते हैं। अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। पेप्टाइड बंध के निर्माण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कारण प्रथम प्रावस्था में अमीनो अम्ल स्वयं एटीपी की उपस्थिति में सक्रिय हो जाते हैं व सजातीय अंतरण आरएनए से जुड़ जाते हैं।
36. मानव का उद्भव एवं विकास के बारे में वर्णन करें।
उत्तर – लगभग 15 मिलियन वर्ष पूर्व ड्रायोपिथिकस तथा रामापिथिकस नामक नर वानर विद्यमान थे। इन लोगों के शरीर बालों से भरपूर थे तथा गोरिल्ला एवं चिंपैंजी जैसे चलते थे। रामापिथिकस अधिक मनुष्यों जैसे थे जबकि ड्रायोपिथिकस वनमानुष (ऐप) जैसे थे। इथोपिया तथा तंजानिया (चित्र) में कुछ जीवाश्म (फासिल) अस्थियाँ मानवों जैसी प्राप्त हुई हैं। ये जीवाश्म विशिष्टताएँ दर्शाते हैं जो इस विश्वास को आगे बढ़ाती हैं कि 3-4 मिलियन वर्ष पूर्व मानव जैसे नर वानर गण (प्राइमेट्स) पूर्वी अफ्रीका में विचरण करते रहे थे। ये लोग संभवत: ऊँचाई में 4 फुट से बड़े नहीं थे, लेकिन वे खड़े होकर सीधे चलते थे।
लगभग 2 मिलियन वर्ष पूर्व ओस्ट्रालोपिथेसिन (आदिमानव) संभवतः पूर्वी अफ्रीका के घास स्थलों में रहता था। साक्ष्य यह प्रकट करते हैं कि वे प्रारंभ में पत्थर के हथियारों से शिकार करते थे, किन्तु प्रारंभ में फलों का ही भोजन करते थे। खोजी गई अस्थियों में से कुछ अस्थियाँ बहुत ही भिन्न थीं। इस जीव को पहला मानव जैसे प्राणी के रूप में जाना गया और उसे हीमो हैबिलिस कहा गया था। उसकी दिमागी क्षमता 650-800 सीसी के बीच थी। वे संभवतः माँस नहीं खाते थे। 1991 में जावा में खोजे गए जीवाश्म ने अगले चरण के बारे में भेद प्रकट किया। यह चरण था – होमो इरैक्टस जो 1.5 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। होमो-इरैक्टस का मस्तिष्क बड़ा था जो लगभग 900 सीसी का था। होमो-इरैक्टस संभवतः माँस खाता था। नियंडरटाल मानव 1400 सीसी आकार वाले मस्तिष्क लिए हुए, 1,00,000 से 40,000 वर्ष पूर्व लगभग पूर्वी एवं मध्य एशियाई देशों में रहते थे। वे अपने शरीर की रक्षा के लिए खालों का इस्तेमाल करते थे और अपने मृतकों को जमीन में गाड़ते थे। होमो-सैंपियंस (मानव) अफ्रीका में विकसित हुआ और धीरे-धीरे महाद्वीपों से पार पहुँचा। धीरे-धीरे विभिन्न महाद्वीपों में फैला, इसके बाद वह भिन्न जातियों में विकसित हुआ। 75,000 से 10,000 वर्ष के दौरान हिमयुग में यह आधुनिक युगीन मानव पैदा हुआ। मानव ने प्रागैतिहासिक गुफा – चित्रों की रचना लगभग 18,000 वर्ष पूर्व की । कृषि कार्य लगभग 10,000 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ और मानव बस्तियाँ बनाना शुरू हुई। बाकी जो कुछ हुआ वह मानव इतिहास के वृद्धि का भाग और सभ्यता की प्रगति का हिस्सा है।
37. क्षय रोग क्या है? यह किस जीवाणु के कारण होता है? इसके रोकथाम के बारे में लिखें।
उत्तर – क्षय रोग : क्षय रोग जीवाणु अन्य वायु संचारित संक्रामक रोग है। यह रोग मुख्य रूप से मानव
फेफड़ा को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त अस्थियाँ आँत, मस्तिष्क भी इस रोग से ग्रसित होता है। क्षयरोग माइक्रोबैक्टीरियम ट्युबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है।
क्षय रोग की रोकथाम : निम्नांकित उपायों द्वारा क्षय रोग की रोकथाम की जा सकती है –
(i) स्वस्थ व्यक्तियों को रोगी द्वारा उपयोग में लाए जा रहे बर्तनों, कपड़ों, चादरों, बिछावनों का उपयोग नहीं करना चाहिए यदि आवश्यकता होने पर उसे अच्छी तरह असंक्रमित कर ही उपयोग में लाना चाहिए। .
(ii) रोगी को सामुदायिक / सार्वजनिक या भीड़-भाड़ वाले जगहों से दूर रखना चाहिए ।
(iii) रोगी से मिलते समय मास्क का प्रयोग करना चाहिए ।
(iv) रोगी का उचित उपचार प्रदान कर उसके रहने की जगह का साफ करते रहना चाहिए ।
(v) रोगी को पौष्टिक आहार देना चाहिए।
38. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखें-
(a) वाहित मल जल उपचार में सूक्ष्मजीव (b) जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव
उत्तर – (a) मूलभूत रूप से उपचार के इस पद में वाहित मल के बड़े कण निस्यंदन (Filtration) तथा अवसादन (Sedimentation) द्वारा भौतिक रूप से अलग कर दिये जाते हैं। इन्हें भिन्न-भिन्न चरणों में अलग किया जाता है। आरंभ में तैरने वाले कूड़े-करकट को अनुक्रमिक निस्पंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके पश्चात् मृदा तथा छोटे पेवल्स को अवसादन द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है। सभी ठोस जो प्राथमिक आयंक (Sludge) के नीचे बैठे कण हैं, ये और प्लावी (supernatent) बहि:स्राव का निर्माण करते हैं। बहि:स्राव को प्राथमिक नि:सादन (setteling) टैंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
(b) यह प्राथमिक उपचार के बाद किया जाता है। प्राथमिक उपचार के पश्चात् वाहित मल को ऑक्सीजन एवं वायवीय सूक्ष्मजीवों के सम्पर्क से होकर गुजारा जाता है। ये कार्बनिक पदार्थों को अहानिकारक पदार्थों जैसे CO2 तथा जल में तोड़ देते हैं। इसमें क्लोरीनीकरण क्रिया द्वारा जीवाणुओं को भी नष्ट कर दिया जाता है। इसे पुनः तृतीय स्तर पर उपचारित किया जाता है।
39. आबादी पर पड़नेवाले जलवायु संबंधी कारकों का वर्णन करें।
उत्तर – तापमान पारिस्थितिक रूप से सबसे ज्यादा प्रासंगिक पर्यावरणीय कारक है। पृथ्वी पर औसत तापमान ऋतु के अनुसार बदलता रहता है। भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर, मैदानों से पर्वत शिखरों की ओर उत्तरोत्तर घटता रहता है। ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तापमान अवशून्य से लेकर ग्रीष्म में ऊष्ण कटिबंधी मरुस्थलों में 50°C से अधिक पहुँच जाता है। आम के पेड़ कनाडा और जर्मनी जैसे शीतोष्ण देशों में नहीं होते हैं और न ही हो सकते हैं। हिम चीते केरल के जंगलों में नहीं मिलते और ट्यूना मछली महासागर में शीतोष्ण अक्षांशों से आगे कभी-कभार ही पकड़ी जाती है। तापमान एंजाइमों की बलगति को प्रभावित करता है और इसके द्वारा आधारी उपापचय, जीव के अन्य कार्यिकीय प्रकार्यों तथा उसकी गतिविधियों को प्रभावित करता है। कुछ जीव तापमानों के व्यापक चरम बिन्दु (100°C से भी अधिक) को सहन कर सकते हैं लेकिन अधिकांश तापमानों की कम चरण सीमा में ही रहते हैं।
2015 (A)
जीव विज्ञान (Biology)
खण्ड-I (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
निम्नलिखित प्रश्न- संख्या 1 से 28 तक के प्रत्येक प्रश्न के लिए एक ही विकल्प सही है। प्रत्येक प्रश्न से सही उत्तर, उत्तर पत्र में चिह्नित करें।
1. जब संतति की उत्पत्ति एकल जनक द्वारा होती है तब यह क्या कहलाता है ?
(A) लैंगिक जनन
(B) अलैंगिक जनन
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) आंतरिक निषेचन
उत्तर – (B) अलैंगिक जनन
2. ‘मुकुलन’ द्वारा जनन किसमें होता है ?
(A) यीस्ट
(B) परामिशियम
(C) पेनिसिलियम
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (A) यीस्ट
3. मानव युग्मकों में गुणसूत्रों की कितनी संख्या होती है ?
(A) 21
(B) 23
(C) 44
(D) 46
उत्तर – (B) 23
4. अंड प्रजक है
(A) मुर्गी
(B) साँप
(C) मगरमच्छ
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (D) इनमें से सभी
5. द्विगुणित है
(A) अंड
(B) पराग
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) युग्मनज
उत्तर – (D) युग्मनज
6. किस फल में बीजचोल खाया जाता है ?
(A) जायफल
(B) लीची
(C) शरीफा
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (B) लीची
7. Eco RI एंजाइम का स्रोत है
(A) Bam HI
(B) E. coli
(C) (A) और (B) दोनों
(D) Hind III
उत्तर – (B) E. coli
8. SO2 प्रदूषण का सूचक है
(A) शैवाल
(B) लाईकेन
(C) कवक
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (B) लाईकेन
9. T-लिम्फोसाइट उत्पन्न होता है
(A) अस्थिमज्जा से
(B) पेट से
(C) थाईमस से
(D) यकृत से
उत्तर – (C) थाईमस से
10. शहद का निर्माण कौन करती है ?
(A) नर मधुमक्खी
(B) रानी मधुमक्खी
(C) कार्यकर्त्ता मधुमक्खी
(D) ‘A’ और ‘B’ दोनों
उत्तर – (C) कार्यकर्त्ता मधुमक्खी
11. वीर्य को किसमें हिमीकृत किया जाता है ?
(A) तरल नाइट्रोजन में
(B) रेफ्रिजरेटर में
(C) बर्फ में
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (B) रेफ्रिजरेटर में
12. निम्नांकित में कौन-सी बीमारी मुर्गियों में होती है ?
(A) स्मट
(B) हैजा
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) रानीखेत
उत्तर – (D) रानीखेत
13. प्रोटोप्लास्ट कल्चर का फ्यूजोजेन क्या है ?
(A) तरल नाइट्रोजन
(B) PEG
(C) लैक्टिक अम्ल
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (B) PEG
14. ऑन्कोलॉजी किसका अध्ययन है ?
(A) कैंसर
(B) ऑन्कोजीन्स
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) विषाणु
उत्तर – (A) कैंसर
15. इडली एवं डोसा का आटा किस सूक्ष्मजीव के प्रयोग से बनाया जाता है ?
(A) जीवाणु
(B) लैक्टोबैसीलस
(C) विषाणु
(D) यीस्ट
उत्तर – (D) यीस्ट
16. Ti- प्लाज्मिड किसमें पाया जाता है ?
(A) एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमिफेसियन्स में
(B) ई० कोलाई में
(C) बी० कोलाई में
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (A) एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमिफेसियन्स में
17. एगारोज किससे प्राप्त किया जाता है ?
(A) समुद्री घास
(B) मक्का
(C) साईकास
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) समुद्री घास
18. यौन संचारित रोग है
(A) खसरा
(B) टी० बी०
(C) गोनोरिया
(D) टायफाएड
उत्तर – (C) गोनोरिया
19. आनुवंशिक कूट में कितने कूट होते हैं ?
(A) 4
(B) 16
(C) 32
(D) 64
उत्तर – (D) 64
20. वर्णांधता में रोगी नहीं पहचान पाता है
(A) लाल तथा पीला रंग
(B) लाल तथा हरा रंग
(C) नीला तथा हरा रंग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) लाल तथा हरा रंग
21. ओपेरॉन मॉडल प्रस्तावित किया था
(A) वाटसन तथा क्रीक ने
(B) निरेनबर्ग ने
(C) जेकॉब तथा मोनाड ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) जेकॉब तथा मोनाड ने
22. एकिडना है
(A) योजक कड़ी
(B) अवशेषी अंग
(C) विलुप्त कड़ी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) योजक कड़ी
23. निम्न में से कौन कीटभक्षी पौधा है ?
(A) ड्रॉसेरा
(B) नेपेन्थीस
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) हाइड्रिला
उत्तर – (C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
24. शुक्राणुजनन का नियंत्रण किसके द्वारा होता है ?
(A) एस्ट्रोजेन
(B) L.H.
(C) एंड्रोजेन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) L.H.
25. मानव रुधिर AB वर्ग में
(A) एंटीबडी उपस्थित होते हैं
(B) एंटीबडी अनुपस्थित रहते हैं
(C) एंटीबडी A उपस्थित होते हैं
(D) एंटीबडी B उपस्थित होते हैं
उत्तर – (B) एंटीबडी अनुपस्थित रहते हैं
26. गोल्डेन राइस में पाया जाता है
(A) विटामिन A
(B) विटामिन B12
(C) विटामिन C
(D) विटामिन D
उत्तर – (A) विटामिन A
27. मेण्डल ने प्रस्तावित किया था
(A) सहलग्नता के नियम
(B) 10% ऊर्जा के नियम
(C) आनुवंशिकता के नियम
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) आनुवंशिकता के नियम
28. मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायक है
(A) कीटनाशक
(B) जैविक खाद
(C) यीस्ट
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (B) जैविक खाद
खण्ड-II (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जीवों में अलैंगिक जनन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – जीवों के प्रजनन की वह विधि जिसमें एक जनक से नई व्यष्टि का जन्म होता हो, अलैंगिक जनन कहलाता है। इसमें जनन कोशिकाओं (युग्मकों) का निर्माण एवं संलयण नहीं होता है। यह जनन प्रायः निम्न श्रेणी के जीवों जैसे— अकोशिकीय जीव, सरल पादप एवं जंतुओं में होता है।
प्रकार : यह द्विविभाजन, बहुविभाजन, मुकुलन, बीजाणु जनन, खण्डी भवन एवं पुनरुद्भवन विधि द्वारा संम्पन्न होता है।
लाभ : नवजात संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है एवं इसकी दर तीव्र होती है तथा सभी संतति सभी गुणों में एक-दूसरे के समान होती हैं।
2. मदचक्र तथा ऋतुस्राव चक्र के बारे में स्पष्ट करें।
उत्तर – जानवरों में जनन प्रावस्था के दौरान अपरास्तनी मादा के अंडाशय की सक्रियता में चक्रित तथा सहायक वाहिका और हॉर्मोन्स में परिवर्तन आने लगते हैं। नॉन प्राइमेट स्तनधारियों, जैसे- गाय, भेंड़, कुत्ता, चूहा, बाघ, इत्यादि में जनन के दौरान ऐसे चक्रिय परिवर्तन होते हैं, इन्हें मदचक्र (ओएस्ट्स साइकिल ) कहते हैं। प्राइमेटों जैसे— बन्दर, गोरीला, ऐप्स एवं मुनष्य में यह ऋतुस्राव चक्र कहलाता है। प्राकृतिक रूप में वनों में रहने वाले अधिकांश स्तनधारी अपने जनन प्रावस्था के दौरान अनुकूल परिस्थितियों में ऐसे चक्रों का प्रदर्शन करते हैं। इसी कारणों से इन्हें ऋतुनिष्ठ अथवा मौसमी प्रजनन कहते हैं।
3. एकसंकर क्रॉस के आधार पर मेण्डल के प्रतिपादित नियमों को लिखें।
उत्तर – एकसंकर क्रॉस के आधार पर मेंडल ने निम्नांकित नियमों को प्रतिपादित किया –
(i) युग्मित कारकों का नियम : प्रत्येक लक्षण दो इकाई कारकों (ऐलील) द्वारा प्रदर्शित होते हैं जो समान गुणसूत्र पर समान स्थान पर स्थित होते हैं ।
(ii) प्रभाविता का नियम : किसी लक्षण के विभिन्न विशेषकों को प्रदर्शित करने वाले दो ऐलीलों (कारकों) में से एक अपने आपको प्रदर्शित करता है जिसे प्रभावी कारक कहते हैं और जो प्रदर्शित नहीं हो पाता है उसे अप्रभावी कारक कहते हैं ।
(iii) पृथक्करण का नियम : एक व्यष्टि में उपस्थित एक लक्षण के दो कारक मिश्रित नहीं होते हैं बल्कि युग्मक निर्माण के समय एक-दूसरे से पृथक व स्पष्ट बने रहते हैं ताकि एक युग्मक एक लक्षण का केवल एक कारक ले जा सकें व हमेशा शुद्ध रहे ।
4. डी० एन०ए० तथा आर०एन०ए० में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – डी.एन.ए. एवं आर.एन.ए. के बीच दो प्रमुख अंतर –
डी० एन० ए० |
आर० एन० ए० |
(i) यह द्विभुजीय संरचना होता है । |
(i) यह एकलभुजीय संरचना होता है । |
(ii) इसमें डिऑक्सी राइबोस शर्करा पाया जाता है । |
(ii) इसमें राइबोस शर्करा पाया जाता है । |
5. रासायनिक विकास के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर – रासायनिक विकास का सिद्धांत ओपेरिन एवं हाल्दाने ने प्रस्तुत की थी जिनके अनुसार आदि पृथ्वी पर जीवन की उत्पादित परमाणुओं को जोड़कर अणु बनने, रासायनिक अभिक्रिया द्वारा अणुओं से कार्बनिक यौगिकों का निर्माण फिर बड़े कार्बनिक अणु और उनके संघनन से प्रथम जीवन संरचना की उत्पत्ति होती है। जिसे बाद में यूरे एवं मिलर ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया।
6. रोग का प्रसार कैसे होता है? संक्षेप में लिखें।
उत्तर – रोगों में संक्रामक रोगों का ही प्रसार होता है ।
यह निम्नांकित तरीके से पूर्ण होता है –
(a) संक्रमित रोगी से सीधे सम्पर्क द्वारा जैसे – दाद।
(b) रोगाणुवाहक जैसे मच्छर, मक्खी आदि द्वारा जैसे – मलेरिया।
(c) संक्रमित पेय एवं खाद्य पदार्थों के ग्रहण द्वारा जैसे – हैजा
(d) संक्रमित साधनों जैसे सूई, शरीर द्रव, रक्त, रक्त सीरम आदि के स्वस्थ मनुष्य शरीर द्रव से संबंध होने से जैसे— AIDS आदि।
7. कुक्कुट फार्म प्रबंधन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर – मुर्गाफार्म में घरेलू मुर्गियों व तत्त्वों, तीतर आदि के देखभाल, उसका जनन क्रिया, लालन-पालन, उसके उत्पादों जैसे- मांस व अंडों के सफल प्रबंधन ही मुर्गीफार्म प्रबंधन कहलाता है। इसकी सफलता के लिए फार्म के क्षेत्रफल के हिसाब से मुर्गियों की संख्या रखना, मुर्गियों को रोगों से बचाव के लिए टीके का प्रयोग, साँपों, बिल्लियों एवं कुत्तों से बचाने की व्यवस्था करना, ठंड-गर्मी से बचाव की व्यवस्था करना तथा पौष्टिक आहार की उपलब्धता आवश्यक है।
8. प्लाज्मिड क्या है? प्लाज्मिड की संरचना तथा उपयोगिता संक्षेप में लिखें।
उत्तर – यह जीवाणु कोशिका में उपस्थित बाह्य नाभिकीय छोटा एवं वर्तुलाकार डी एन ए ० है जो कुछ एक्स्ट्रा क्रोमोजोमल जीन को धारण किए रहता है तथा स्वद्विगुणन क्षमताधारी होता है। जैसे PBR-322, PUC-10 आदि। इनकी लम्बाई लगभग 2700 pb होती है। इसमें द्विगुणन व उपस्थित स्थलन, सेलेव-टेबल मार्कर, क्लोनिंग केंद्र नामक भाग होता है।
9. ट्रांसजेनिक जन्तुओं से क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर – ट्रांसजेनिक जंतुओं के लाभ इस प्रकार हैं- (i) इनसे अधिक दूध, मांस, अंडे का उत्पादन ले सकते हैं। (ii) इस प्रकार से उत्पन्न जीवों में रोग प्रतिरोधी क्षमता उच्च होती है। (iii) इनसे प्राप्त जीव अधिक कार्यशील होते हैं। (iv) ये जंतु आर्थिक संरचना सुदृढ़ करने के आधार स्तंभ हैं।
10. कुल आबादी का रूप क्या-क्या हैं? संक्षेप में लिखें।
उत्तर – ये रूप हैं- – (i) प्रसारशील समष्टि (ii) ह्रासमान समष्टि एवं (iii) स्थिर या परिपक्व समष्टि ।
11. जलोद्भिद्, मरुद्भिद् तथा समोद्भिद् के बारे में सोदाहरण लिखें।
उत्तर – जलोद्भिद् : वे पादप जो केवल जल या अत्यधिक नम मिट्टी में वृद्धि करते हैं, जलोद्भिद् कहलाते हैं। जैसे-कमल, जलकुम्भी आदि ।
मरुद्भिद् : वे पादप जो केवल जब बड़ी अधिक ताप/गर्मी या मरुभूमि में उगते एवं वृद्धि करते हों, मरुद्भिद् कहलाते हैं जैसे – नागफनी ।
समोद्भिद् : वे स्थलीय पादप जो न तो विशेष सूखे और न तो विशेष रूप से नम वातावरण के लिए अनुकूलित हों तथा जिन्हें वृद्धि के लिए साधारण जल की आवश्यकता हों, समोद्भिद् कहलाती है। जैसे- पॉली गोनम, ब्रोमस आदि ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
12. गैस्ट्रलेशन तथा जनन परतों के निर्माण के बारे में सचित्र वर्णन करें।
अथवा,
मानव शुक्राणु की संरचना नामांकित चित्र द्वारा दर्शाइए तथा इसके सभी घटकों के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर – गैस्ट्रलेशन : युग्मनज से गैस्टुला निर्माण की प्रक्रिया गैस्टुलेशन कहलाता है। इसमें कोशिकाएँ छोटे समूह में या पर्त के रूप में गति करती हैं। तीन प्राथमिक जनन स्तरों यथा अन्तश्चर्म (Endoderm), बाह्यचर्म (Ectoderm) एवं मध्यजन स्तर (Mesoderm) कन्दुक भवन का उत्पाद कन्दुक या गेस्टुला कहलाता है।
प्राथमिक जनन स्तरों का बनना : अन्तः कोशिकाएँ संहति कोशिकाएँ या भ्रूणीय गाँठ की कोशिकाएँ पुनः व्यवस्थित होकर भ्रूणीय या जननिक बिम्ब बनाती हैं। जननिक बिम्ब दो स्तरों को विभेदित होती हैं बाह्य अधिकोरक बड़ी स्तंभी कोशिकाओं द्वारा बना होता हैं, अध: कोरक स्तर भ्रूणीय अन्तश्चर्म का कार्य करता है। यह प्रथम प्राथमिक जननिक स्तर है जो पहले विभेदित होता है। अधःकोरक स्तर पार्श्वतः वृद्धि करता है और कोरक गुहा को ऊपर से ढँक लेता है। यह स्तर कोरक गुहा को पीतक कोष में रूपान्तरित कर देता है।
अध: कोरक भ्रूण की बाह्यचर्म या एक्टोडर्म तथा मध्य जनस्तर या मीजोडर्म दोनों का निर्माण करता है। अधिकतर एपीब्लास्ट पार्वतः वृद्धि करता है एवं एक्टोडर्म बनाता है। यद्यपि, एक बिन्दु पर (भ्रूणीय अक्ष का प्रारंभिक प्रमाण होता है।) एपीब्लास्ट कोशिकाएँ प्रचुरोद्भवन कर एक कोशिकीय उभार बनाती हैं जिसे आदि रेखा कहते हैं। ये कोशिकाएँ सतत् रूप से प्रचुरोद्भवन करती हुईं एपीब्लास्ट व हाइपोब्लास्ट के मध्य से बढ़ती रहती हैं। ये तृतीय जनन स्तर मीजोडर्म बनाती है।
अथवा,
मानव शुक्राणु की संरचना तथा इसके घटक –
(1) शीर्ष (Head) : यह शुक्राणु का अग्र, चौड़ा एवं चपटा भाग (4.5 μm लम्बाई 2.5-3.5 μm चौड़ाई) है। शीर्ष के दो भाग किये जाते हैं, केन्द्रकीय एवं टोपी समान एक्रोसोम केन्द्रक (Nucleus) अत्यधिक संघनित होता है। ये केन्द्रकीय रिक्तिकाएँ कहलाती हैं। एक्रोसोम संकरा टोपी समान कोष होता है। यह सिर के 2/3 भाग को ढँके रहता है।
(2) ग्रीवा (Neck) : यह 0.3 μm लम्बा संकरा सिर व मध्य भाग के बीच का क्षेत्र होता है। ग्रीवा भाग में दो तारककाय, कोशिकाद्रव्य उपस्थित होता है। अग्र तारक काय मुक्त रहती है। दूरस्थ तारक काय एक्जोनीम या अक्षीय तन्तु से जुड़ी रहती है।
(3) मध्य भाग (Middle piece) : यह 5-7 μm लम्बा बेलनाकार भाग, शुक्राणु की ग्रीवा व पुचछ के मध्य पाया जाता है। यह लगभग 1 μm व्यास का होता है। इस भाग से एक्जोनीम या अक्षीय तन्तु की सूक्ष्म नलिकाएँ गुजरती हैं। इस भाग पर माइटोकॉण्ड्रियल सर्पिल का आवरण पाया जाता है।
(4) पूँछ (Tail) : यह शुक्राणु का सबसे लंबा लगभग 50 μm लम्बाई वाला भाग होता है। इसकी पूरी लम्बाई में एक्जोनीम या अक्षीय तन्तु उपस्थित रहते हैं। पूँछ शुक्राणु का स्पन्दनशील भाग होता है। यह दो भागों, मुख्य भाग (Main piece) एवं अंतिम सूत्र (End piece) में विभक्त होता है।
13. सहलग्नता तथा सहलग्नता वर्ग क्या हैं? सहलग्नता का प्रभाव एवं इसकी महत्ता के बारे में लिखें।
अथवा,
पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं? पारिस्थितिक तंत्र की संरचना तथा इसके घटकों के बारे में वर्णन करें ।
उत्तर – लिंकेज : एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित एक से अधिक जीन जो साथ-साथ वंशानुगत होता है, लिंक्ड जीन कहलाते हैं और यह घटना लिंकेज कहलाता है।
लिन्केज समूह : लिंकेज ग्रुप रेखीय रूप से व्यवस्थित जीनों का समूह होता है जो गुणसूत्रों पर उपस्थित होते हैं। एक लिन्केज समूह एक प्रकार के गुणसूत्र पर होता है। दो समजात गुणसूत्र जीन स्थिति की संख्या व व्यवस्था में समान होते हैं। इसलिए ये समान प्रकार के लिन्केज समूह रखते हैं। यह लिन्केज समूहों की सीमाओं के रूप में जाना जाता है। एक जीवधारी में उपस्थित लिन्केज समूहों की कुल संख्या एक जीनोम में उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या के या द्विगुणित जीवधारियों में समजात युग्मों की संख्या के बराबर होती है। यह मनुष्य में में 23 ( गुणसूत्रों के 23 जोड़े), खाने योग्य मटर में 7 ( गुणसूत्रों के 7 (गुणसूत्रों के 7 जोड़े), मक्के में 10 (गुणसूत्रों के 10 जोड़े), ड्रोसोफिला मिलेनोगेस्टर में 4 (गुणसूत्रों के 4 जोड़े) होते हैं। लिन्केज समूह का आकार गुणसूत्र के आकार पर निर्भर करता है अर्थात् छोटे गुणसूत्र छोटे लिन्केज समूह वाले होते हैं जबकि लम्बे गुणसूत्र लम्बे लिन्केज समूह वाले होते हैं।
लिन्केज समूहों की महत्ता : (i) लिन्केज समूह व विनिमय की घटना दर्शाती है कि जीन गुणसूत्र पर स्थित होते हैं। (ii) ये जीवधारी की विशिष्ट प्रजातीय व परिवर्तन विशेषकों को बनाये रखते हैं। (iii) लिन्केज, सुधरी हुई प्रजातियों के कारण उनके लक्षण लम्बे समय तक बने रहते हैं। (iv) एक लिन्केज समूह विभिन्न प्रकार के विशेषकों कुछ लाभदायक व कुछ हानिकारक को रखता है। दोनों को अलग करना कठिन होता है। इसीलिए, कुछ सुधरी हुई प्रजातियों में भी हानिकारक विशेषक बने रहते हैं।
अथवा,
जीवमंडल की स्थिरता के लिए ऊर्जा और पदार्थ दोनों आवश्यक हैं। इन दोनों का अजैव एवं जैव घटकों के बीच आदान-प्रदान होता रहता है। जीवमंडल के विभिन्न घटक तथा उसके बीच ऊर्जा और पदार्थ का आदान-प्रदान, सभी एक साथ मिलकर पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं।
किसी पारिस्थितिक तंत्र के निम्नांकित दो घटक होते हैं।
1. अजैव या निर्जीव घटक – जिसमें जीवन नहीं होता है।
2. जैव या जीवीय घटक – जो जीवित होता है।
उपर्युक्त दोनों घटक परस्पर क्रियाशील तथा एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
(1) अजैव या निर्जीव घटक – इसे निम्नांकित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(i) भौतिक वातावरण — इसमें मृदा, जल तथा वायु सम्मिलित हैं।
(ii) पोषक – इसे फिर दो समूहों में बाँटा गया है—(a) अकार्बनिक पदार्थ (b) कार्बनिक पदार्थ।
(a) अकार्बनिक पदार्थ – कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फर, सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम आदि अकार्बनिक पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाते हैं जिसका चक्रण होता रहता है।
(b) कार्बनिक पदार्थ – कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड, धरणिक पदार्थ (humus) इत्यादि कार्बनिक पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र के जैव और अजैव घटकों को जोड़नेवाली कड़ी का कार्य करते हैं ।
(iii) जलवायु-संबंधी कारक – सूर्य की रोशनी, तापक्रम, आर्द्रता आदि मिलकर जलवायु का निर्माण करते हैं। जलवायु संबंधी कारक पारिस्थितिक तंत्र में जीवों की संख्या, उनके वितरण, चयापचय तथा व्यवहार को प्रभावित करते हैं ।
(2) जैव या जीवीय घटक – इस घटक के अंतर्गत पृथ्वी पर उपस्थित सभी प्रकार के जीवों को सम्मिलित किया गया है। इनको निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा गया है।
(i) उत्पादक – हरे पौधे जो भोजन का संश्लेषण करते हैं, उत्पादक कहलाते हैं।
(ii) उपभोक्ता – जो पौधों और उनके विभिन्न उत्पादों को खाते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं।
(iii) अपघटनकर्ता – ये मृत उत्पादक तथा उपभोक्ताओं का अपघटन करते हैं तथा इससे उत्पन्न पोषकों और गैसों को फिर वातावरण में छोड़ देते हैं।
14. सूक्ष्म प्रजनन से आप क्या समझते हैं? सूक्ष्म प्रजनन की विधियों को चित्रों की सहायता से लिखें।
अथवा,
डेयरी फार्म में दुग्ध उत्पादन की मात्रा बढ़ाने तथा उसकी गुणवत्ता सुधारने के क्या क्या उपाय हैं ?
उत्तर – सूक्ष्म प्रजनन- कायिक जनन का यह तरीका नया और अधिक वैज्ञानिक है इस विधि में जिस पौधे को तैयार करना रहना है उसके अनुकुल वृद्धि करने वाला घोल तैयार किया जाता है, इस वृद्धि करने वाले घोल में उक्त पौधे की वृद्धि कर रही कोशा उत्तक या अंग का एक छोटा टुकड़ा रख कर उसे अनुकूल वातावरण में वृद्धि करने के लिए छोड़ दिया जाता है इससे विकसित हुए ऊतक के टुकड़े को अनुकूल परिस्थिति में किसी गमले या प्रजनन स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है, जहाँ वह एक सामान्य सुन्दर और स्वस्थ पौधे के रूप में विकसित हो जाता है।
सूक्ष्म प्रजनन की विधियाँ – (1) उचित एक्सप्लांट का चुनाव तथा उसका अनुर्वरीकरण (2) एक्सप्लांट का पोषक माध्यम पर संपोषित करना (3) स्तम्भ का पोषक माध्यम पर प्रोलीफेरेशन (4) स्तंभ को rooting medium पर स्थानांतरित करना (5) पौध का भूमि में स्थानांतरण ।
सूक्ष्म प्रजनन तीन प्रकार से हो सकता है – (1) कैलस संवर्धन द्वारा multiplication (2) एडवेण्टेसियस स्तम्भ द्वारा multiplication तथा (3) एपिकल तथा एक्सिलरी स्तंभ द्वारा multiplicati
अथवा,
डेयरी फार्म में दुग्ध उत्पादन की मात्रा बढ़ाने तथा उसकी गुणवत्ता सुधारने के उपाय –
नस्ल – अधिक उत्पादन के लिए अच्छी नस्ल का चयन तथा उनकी रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता महत्त्वपूर्ण है। नस्ल के चुनाव में क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
देखभाल- अच्छे उत्पादन के लिए पशुओं की अच्छी देखभाल आवश्यक है। पशुओं को रहने के लिए स्वच्छ आवास, पर्याप्त जल-सुविधा तथा रोगमुक्त वातावरण रहना आवश्यक है। पशु का आवास गृह स्वच्छ, सूखा तथा हवादार होना चाहिए।
भोजन – दुग्ध की उत्पादकता का सीधा संबंध पशुओं को दिए जानेवाले संतुलित आहार की गुणवत्ता तथा मात्रा से होता है। पशुधन का आहार ऐसा होना चाहिए जिसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज तथा विटामिन संतुलित मात्रा में विद्यमान हों।
दुग्ध उत्पादों का भंडारण तथा परिवहन- दुग्ध को निकालने, उसके भंडारण तथा डेयरीफार्म से अन्यत्र ले जाने में विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। दूध देनेवाले पशु तथा दूध निकालनेवाले व्यक्ति की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए अन्यथा सूक्ष्मजीवी दुग्ध को दूहने, भंडारण या परिवहन में खराब कर देंगे। दुग्ध या दुग्ध पदार्थ खराब न होने पाएँ उसके लिए शीत वातावरण की व्यवस्था करनी होगी तथा भंडारण एवं परिवहन के लिए प्रयोग किए गए कण्टेनरों की समुचित सफाई अति आवश्यक है।
पशु चिकित्सा – पशुओं को रोगों से बचाने के लिए पशुओं की नियमित जाँच पशु-चिकित्सक द्वारा किया जाना आवश्यक है। एक पशु में हुई बीमारी का यदि समय पर इलाज नहीं किया गया तब वह रोग डेयरी के अन्य पशुओं में भी लग सकता है।
15. संरक्षण से आप क्या समझते हैं? जैविक स्रोतों का संरक्षण के तरीकों का वर्णन करें
अथवा,
निम्नांकित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें –
(a) प्रतिबंधन एंजाइम (b) हैजा के कारण, लक्षण तथा नियंत्रण l
उत्तर – संरक्षण प्रकृति की जैविक सम्पदा ही सभी जीवों के जीवन का आधार है। एक तरह के पादप से कोई भी जीवन नहीं चल पाएगा इसलिए जैव विविधता ही जीवन का एक मात्र आधार है। हमें सरकारी, गैर सरकारी, सामाजिक एवं वैयक्तिक रूप से जैव विविधता का संरक्षण करना चाहिए ताकि अच्छी वर्षा, अच्छा उत्पादन, गर्मी सामान्य रहे प्रदूषण में कमी हो और जीव मण्डल के सभी जीव संरक्षित रह सके।
संरक्षण दो स्तरों पर किया जा सकता है –
(i) स्थानीय संरक्षण – सम्पूर्ण विश्व के जीव मण्डल की सम्पूर्ण सुरक्षा सम्भव नहीं लगती इसलिए अधिकतम जैव विविधता वाले सघन क्षेत्र को चिह्नित कर लिया गया है जिन्हें “हॉट-स्पॉट” नाम दिये है, प्रारम्भ में फिर हॉट-स्पॉट चिह्नित किये गये। इन हॉट-स्टॉप में. जैव विविधता बहुत अधिक है यहाँ जातीय सघनता और समृद्धि बहुत अधिक है और उनमें स्थानीय जातियों की बहुलता होती है इन क्षेत्रों में पाये जाने वाले जीवों का विशेष सुरक्षा उनके अपने प्राकृतिक आवास में ही प्रदान की गई है इसे ही स्थानीय संरक्षण कहते हैं।
(ii) वाहा स्थानीय संरक्षण- यह जन्तुओं एवं पादपों के संरक्षण की एक व्यापक व्यवस्था है इस व्यवस्था के अन्तर्गत उन पौधों एवं पशुओं पक्षियों को संरक्षित किया जाता है जो विलुप्त होने के कगार पर हैं या संकटग्रस्त हैं। इन विलप्त हो रहे या संकटग्रस्त जीवों और पौधों को उनके अपने पैतृक आवास से स्थानान्तरित कर किसी राष्ट्रीय जन्तु उद्यान चिड़िया घर अजायब घर राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान आदि सुरक्षित जगहों में संरक्षण देने को वाह्य स्थानीय संरक्षण कहते हैं।
अथवा,
(a) प्रतिबंधन एंजाइम : यह एंजाइम डी० एन०ए० के विशिष्ट पैलीन ड्रोमिक न्यूक्लियोटाइट अनुक्रमों को पहचान कर उसे ऐसा काटते हैं कि डी०एन०ए० के दोनों सिरों पर एक लड़ीय भाग रह जाता है। इसे चिपचिपा सिरा कहते हैं। इस एंजाइम का उपयोग आनुवंशिक इंजीनियरिंग में डी० एन०ए० के पुनर्योजन अणु बनाने में किया जाता है।
(b) हैजा के कारण : हैजा का कारण विधियों कॉलेरी नामक जीवाणु है। इस जीवाणु से संदूषित पेय या खाद्य पदार्थ ग्रहण किया जाता है तो यह रोग उत्पन्न होता है।
लक्षण : इससे रोगी को लगातार मल त्यागना पड़ता है। मल का रंग चावल के माड़ की तरह सफेद होता है। इसमें फैटा भी होता है।
नियंत्रण : मल एवं फैटा को तुरंत साफ कर मिट्टी के नीचे दबा देना चाहिए, व्यक्तिगत साफ-सफाई पर ध्यान रखना चाहिए। जल उबालकर पीना चाहिए।
2016 (A)
जीव विज्ञान (Biology)
खण्ड-I (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
निम्नलिखित प्रश्न- संख्या 1 से 28 तक के प्रत्येक प्रश्न के लिए एक ही विकल्प सही है। प्रत्येक प्रश्न से सही उत्तर, उत्तर पत्र में चिह्नित करें।
1. भ्रूणकोष की सेन्ट्रल कोशिका है
(A) प्रारंभिक केन्द्रक
(B) द्वितीयक केन्द्रक
(C) सहायकं कोशिका
(D) ‘A’ और ‘B’ दोनों
उत्तर – (B) द्वितीयक केन्द्रक
2. बीजचोल खाया जाता है
(A) शरीफा का
(B) सेब का
(C) नारंगी का
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (A) शरीफा का
3. उभयलिंगी प्राणी है
(A) मुर्गी
(B) साँप
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) केंचुआ
उत्तर – (D) केंचुआ
4. निम्न में से कौन द्विगुणित संरचना है ?
(A) अण्डाणु
(B) शुक्राणु
(C) युग्मनज
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (C) युग्मनज
5. मानव रुधिर O वर्ग में
(A) एंटीजेन अनुपस्थित होते हैं
(B) एंटीबडी अनुपस्थित होते हैं
(C) एंटीजेन उपस्थित रहते हैं
(D) ऐंटीबडी A उपस्थित रहते हैं
उत्तर – (A) एंटीजेन अनुपस्थित होते हैं
6. क्लोरेला निम्न में से क्या है ?
(A) जीवाणु
(B) शैवाल
(C) प्रोटोजोआ
(D) एकल कोशिका प्रोटीन
उत्तर – (B) शैवाल
7. ‘क्राई-जीन’ बॉलकृमि से किस फसल को बचाता है ?
(A) कपास
(B) आम
(C) चाय
(D) गेहूँ
उत्तर – (A) कपास
8. अम्लीय वर्षा के कारक हैं
(A) CO तथा CO2
(B) NO2 तथा SO2
(C) CO2 तथा NO2
(D) N2 तथा NO3
उत्तर – (B) NO2 तथा SO2
9. लाइकेन सूचक है
(A) CO2 प्रदुषण का
(B) SO2 प्रदुषण का
(C) CO प्रदुषण का
(D) जल प्रदुषण का
उत्तर – (B) SO2 प्रदुषण का
10. मानव साधारणतया ध्वनि तीव्रता सहन कर सकता है
(A) 20-30 डेसीबेल
(B) 80-90 डेसीबेल
(C) 120-130 डेसीबेल
(D) 140-150 डेसीबेल
उत्तर – (A) 20-30 डेसीबेल
11. निम्न में से किसमें जल परागण होता है ?
(A) जलकुम्भी
(B) कमल
(C) हाइड्रिला
(D) ‘B’ और ‘C’ दोनों
उत्तर – (B) कमल
12. ट्राइसोमी (2n + 1) के कारण बच्चे मंद बुद्धि के हो जाते हैं, उसे क्या कहते हैं ?
(A) फीलाडेल्फिया
(B) डाउन्स सिंड्रोम
(C) एल्बीनिज्म
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) डाउन्स सिंड्रोम
13. डी एन ए फिंगर प्रीटिंग निम्न में से क्या है ?
(A) डी एन ए टाइपिंग
(B)डी एन ए प्रोफाइलिंग
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) बेस पेयरिंग
उत्तर – (A) डी एन ए टाइपिंग
14. निम्न में से किस डी एन ए अणु में प्यूरिन है ?
(A) A तथा C
(B) C तथा T
(C) A तथा G
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) A तथा G
15. एड्स बीमारी में HIV किस कोशिका को नष्ट करता है ?
(A) B-कोशिका
(B) C – कोशिका
(C) T4 -लिंफोसाइट
(D) ‘A’ और ‘B’ दोनों
उत्तर – (C) T4 -लिंफोसाइट
16. गिर राष्ट्रीय उद्यान विख्यात है
(A) हिरण के लिए
(B) सिंह के लिए
(C) चीता के लिए
(D) पक्षी के लिए
उत्तर – (B) सिंह के लिए
17. न्यूक्लिक अम्ल के नाइट्रोजीनस बेस के बीच कौन-सा बंधन रहता है ?
(A) पेप्टाइड बंधन
(B) इस्टर बंधन
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) हाइड्रोजन बंधन
उत्तर – (A) पेप्टाइड बंधन
18. कैंसर किस कारण से होता है ?
(A) जीवाणु द्वारा
(B) ऑन्कोजीन्स के द्वारा
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) ऑन्कोजीन्स के द्वारा
19. कल्याण सोना किसका किस्म है?
(A) गेहूँ की प्रोन्नत किस्म
(B) सोना
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) गेहूँ की प्रोन्नत किस्म
20. निम्न में से कौन एकल कोशिका प्रोटीन है ?
(A) स्पाइरूलीना
(C) सिनेडेस्मस
(B) क्लोरेला
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (D) इनमें से सभी
21. किससे कृत्रिम बीज का निर्माण किया जाता है ?
(A) कायिक भ्रूण
(B) बहूभ्रूण
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) कायिक भ्रूण
22. B-डी०एन०ए० के एक पूर्ण घुमाव में नाइट्रोजीनस बेस के कितने पेयर्स होते हैं?
(A) 5
(B) 10
(C) 15
(D) 20
उत्तर – (A) 5
23. निम्न में से कौन विषाणुं जनित रोग है ?
(A) फ्लू
(B) पोलियो
(C) एड्स
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (D) इनमें से सभी
24. डोडो है
(A) विलुप्त प्राणी
(B) संकटग्रस्त प्राणी
(C) आपत्तिग्रस्त प्राणी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) विलुप्त प्राणी
25. जीवाणु में पाया जाता है
(A) प्लाज्मिड DNA
(B) RNA
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) प्लाज्मिड DNA
26. द्विसंकर क्रॉस का फीनोटिपिक अनुपात क्या है ?
(A) 1:2:1
(B) 3:1
(C) 9:3:3:1
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) 9:3:3:1
27. सूक्ष्म प्रजनन में कराया जाता है
(A) अलैंगिक प्रजनन
(B) समान आनुवंशिक गुणों वाले पौधों
(C) लैंगिक प्रजनन
(D) ‘A’ और ‘B’ दोनों
उत्तर – (D) ‘A’ और ‘B’ दोनों
28. दूध से दही बनाने में किस जीवाणु का उपयोग होता है ?
(A) क्लोस्ट्रीडियम
(B) लैक्टोबैसीलस
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) स्ट्रेप्टोकोक्कस
उत्तर – (B) लैक्टोबैसीलस
खण्ड-II (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. न्यूक्लियोसाइड तथा न्यूक्लियोटाइड में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर – न्यूक्लियोसाइड एवं न्यूक्लियोटाइड में अंतर –
न्यूक्लियोसाइड |
न्यूक्लियोटाइड |
(i) यह नाइट्रोजनी युक्त क्षार तथा शर्करा के संयोग से बनता है। |
(i) यह नाइट्रोजनी युक्त क्षार, शर्करा तथा फॉस्फेट के संयोग से बनता है। |
(ii) इनका स्वभाव क्षारीय होता है। |
(ii) इनका स्वभाव अम्लीय होता है। |
(iii) यह न्यूक्लियोटाइड का घटक होता है। |
(iii) यह न्यूक्लिक अम्ल तथा ऊर्जा का वाहक है। |
2. क्रमिक विकास क्या है ? लिखें।
उत्तर – क्रमिक विकास किसी आबादी/ जनसंख्या के जीन पूल में वह सूक्ष्म परिवर्तन है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँच कर एक नई जनसंख्या उत्पन्न करता है जो पूर्ववर्ती आबादी के आनुवंशिक रूप से भिन्न होता है। उदाहरण – घोड़े का क्रमविकास।
3. रेबिज बीमारी के कारण, लक्षण तथा नियंत्रण के बारे में लिखें।
उत्तर – रेबिज बीमारी के कारण : रैबिड जंतुओं जैसे बिल्ली, कुत्ते आदि जिसमें इस रोग के विषाणु उपस्थित रहते हैं, के काटने से रेबिज रोग उत्पन्न होता है।
लक्षण : हाइड्रोफोबिया, निगलने में कठिनाई
रोकथाम : रैबिड जंतुओं का रैबिज विषाणु के विरुद्ध टीकाकारण।
4. गेहूँ के चार प्रोन्नत किस्में तथा उनके गुण लिखें।
उत्तर – (क) HD-2824 – उच्च उत्पादकता एवं ससमय बुआई वाला।
(ख) HUW-234 – मध्यम उत्पादकता एवं लेट बुआई वाला ।
(ग) K-8027 – निम्न उत्पादकता एवं वर्षा आधारित लेट बुआई वाला।
(घ) HD-2888 – समय पर बुआई वाला एवं वर्षा आधारित ।
5. बहुविकल्पता के बारे में सोदाहरण लिखें।
उत्तर – बहुविकल्पता : किसी लक्षण की वंशागति का नियंत्रण जब दो से अधिक जीन/ अलील द्वारा होता हो तो स्थिति बहुविकल्पता कहलाता है। जैसे मानव में ABO रक्त समूह की वंशागति।
6. वायुमंडल से नाइट्रोजन स्थिरीकरण के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर – वायुमंडल में उपस्थित आण्विक नाइट्रोजन का किसी पारिस्थितिक तंत्र के जैव-भार, डेट्रिटस एवं ह्यूमस में संचरण फिर यहाँ से वायुमंडल में संचरण जो जैविक क्रियाविधि द्वारा चक्रिक रूप में पूर्ण होता हो, नाइट्रोजन चक्र कहलाता है। यह परिघटना अनेक स्वतंत्रजीवी एवं सिमबायोटिक नाइट्रोजन स्थिरीकारक माइक्रोब्स द्वारा संपन्न होता है ।
7. एंटीबडी के पाँच वर्गों के बारे में नाम सहित लिखें।
उत्तर – IgG, IgM, IgA, IgD एवं IgE
8. बंध्यता पर संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर – बंध्यता : किसी व्यक्ति की वह अवस्था जो उसे प्राकृतिक रूप से जनन करने से रोकता हो बंध्यता कहलाता है।
9. शुक्राणुजनन तथा अंडजनन के बारे में लिखें।
उत्तर – शुक्राणुजनन : वृषण के शुक्रजन नलिका में शुक्राणु निर्माण की क्रिया शुक्राणुजनन कहलाती है।
अंडजनन : अण्डाशय में अंडाणु बनने की क्रिया अंडजनन कहलाती है।
10. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें – (क) रेड डाटा बुक (ख) भारत में सुरक्षित क्षेत्र l
उत्तर – (क) रेड डाटा बुक: IUCN ने एक लाल आँकड़ा पुस्तक’ का रखरखाव किया है जिसमें विभिन्न जातियों के संकटग्रस्त होने के कारणों एवं विवरणों को शामिल किया गया है। इसके निम्न उद्देश्य हैं – (i) संकटग्रस्त जाति विविधता के महत्त्व एवं इसके प्रति जागृति उत्पन्न करना। (ii) जैव विविधता में हुई कमी की सूची तैयार करना ।
(ख) भारत में सुरक्षित क्षेत्र : वह भू या समुद्र का वह भाग जो जैव-विविधता एवं प्राकृतिक एवं संबंधित सांस्कृतिक रिसोर्स को सुरक्षा प्रदान करने एवं बनाए रखने से समर्पित हो सुरक्षित क्षेत्र कहलाता है। भारत में इस समय 581 सुरक्षित क्षेत्र हैं जिसमें 89 राष्ट्रीय पार्क एवं 592 वन्य जीव सैंचुअरी शामिल हैं।
11. सादर्न ब्लॉटिंग तकनीक से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – किसी दिए गए DNA सैंपल के किसी विशिष्ट DNA विन्यास / अनुक्रम / सिक्वेंश का पता लगाने के लिए अपनायी जाने वाली वह जैव अभियांत्रिक तकनीक जिसमें DNA खण्ड को इलेक्ट्रोफोरिसिस द्वारा पृथक कर उसकी पहचान प्रोब हाइब्रिडाइजेशन तकनीक द्वारा किया जाता है, सादर्न ब्लॉटिंग तकनीक कहलाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
12. जेनेटिक कोड से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार तथा गुणों को सविस्तार लिखें।
अथवा,
सूक्ष्मजीवों का उपयोग पादप रोगों तथा पीड़कों के जैव-नियंत्रण कारक के रूप में कैसे किया जाता है?
उत्तर – जेनेटिक कोड : mRNA पर एक जीन से प्रतिलिपिकृत संपूर्ण सूचनाओं को जीन का आनुवंशिक कूट कहते हैं। इसे mRNA के तीन समीपस्थ न्यूक्लियोटाइड्स का समूह द्वारा इंगित किया जाता है जो एक विशेष अमीनों अम्ल का प्रतिनिधित्व करता है।
जेनेटिक कोड के गुण –
(1) जेनेटिक कोड हमेशा तीन नाइट्रोजन बेस के समूह में रहता है जो mRNA पर एक क्रम के रूप में व्यवस्थित रहता हैं, एक एमीनो अम्ल के लिए एक से अधिक codon होते हैं जिसे degenerate code कहते हैं।
(2) एक एमीनो अम्ल के तुरंत बाद दूसरे एमीनो अम्ल का codon शुरू होता है, इनके बीच विराम चिन्ह नहीं लगता है।
(3) हर प्रकार के जीवधारियों में एक ही प्रकार के जेनेटिक कोड का उपयोग होता है।
(4) अधिकांश प्रोटीन या polypeptide में प्रथम एमीनो अम्ल methionine होता है एवं mRNA पर इसके लिए AUG या GUG codons रहते है। वैसे codon जो polypeptide chain बनाने की क्रिया शुरू करते है, उसे AUG प्रारंभ codon कहते हैं।
(5) तीन codon UAA, UAG एवं UGA ऐसे codons होते है जो polypeptide chain के समापन का संकेत देते है, इस लिए इन्हे chain समापन codons कहते है।
अथवा,
पादप रोग रोगकारकों जैसे कवक, जीवाणु, विषाणु, आदि द्वारा उत्पन्न होते हैं जिसे रोग जनक कहा जाता है। अतः पादप रोगों का नियंत्रण इन रोगजनकों एवं पीड़कों के नियंत्रण से संभव है। जब यह नियंत्रण सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है तो ऐसे नियंत्रण को जैव नियंत्रण तथा इन सूक्ष्मजीवों को जैव नियंत्रण कारक कहा जाता है। यह निम्नांकित रूप में होता है –
(i) विषाणु द्वारा नियंत्रण: इसमें विषाणु का उपयोग कीटों के नाश के लिए किया जाता है जिसे पादपों, स्नतधारियों, पक्षियों या लक्ष्यरहित कीटों पर कोई प्रभाव न पड़ता है जबकि लक्षण रोग कारकों/पीड़कों का ये नाश करते हैं। इस विधि से तम्बाकू या बडबॉर्म जिप्सीमॉथ का नियंत्रण किया जाता है।
(ii) जीवाणु द्वारा : बैसिलस थुरिजिएंसिस नामक मृदा जीवाणु का उपयोग बटरफ्लाई कैटरपिलर के नियंत्रण के लिए किया जाता है। इस जीवाणु द्वारा प्राप्त कीटनाशी प्रोटीन को जल में घोलकर, दोषपूर्ण पादपों पर छिड़काव करने से लार्वा की मृत्यु हो जाती है। विरोडी का उपयोग कॉन्ड्रोस्टीरीयम
(iii) कवक द्वारा : इसमें स्वतंत्रजीवी कवक ट्राकोडर्मा पप्यूरीयम द्वारा उत्पन्न फलवृक्षों के जख्मों के उपचार के लिए किया जाता है।
13. तीनों पारिस्थितिक पिरामिडों के बारे में सोदाहरण वर्णन करें।
अथवा,
मानव मादा के अंडाशय का अनुप्रस्थ काट में पुटकों को दर्शाते हुए नामांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर – पारिस्थितिक पिरामिड निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –
(1) जीव संख्या का पिरामिड : इसका प्रत्येक स्तर जीवधारी की संख्या को प्रदर्शित करता है। जीव संख्या के पिरामिड में उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं के सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए किसी प्रति इकाई क्षेत्र में विभिन्न पोषी स्तरों का अध्ययन किया जाता है। यदि प्राथमिक उत्पादकों का आकार उपभोक्ताओं की तुलना में बहुत छोटा होता है तो सीधा पिरामिड बनता है।
(2) जीवभार का पिरामिड : ये तुलनात्मक दृष्टि से अधिक मौलिक हैं क्योंकि ज्यामितीय कारक की जगह खड़ी फसलों का मात्रात्मक सम्बन्ध भी प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार के पिरामिड्स में जीवभार के आधार पर विभिन्न पोषी स्तरों के अन्तर्सम्बन्धों को प्रदर्शित किया जाता है।
(3) ऊर्जा का पिरामिड : प्रत्येक खाद्य श्रृंखला में सभी उत्पादक अपने द्वारा संश्लेषित ऊर्जा का कुछ भाग अपने शरीर में भोजन के रूप में संचित करते हैं। ये संचित पदार्थ उपभोक्ताओं द्वारा प्रयोग में लाये जाते हैं। इन भोज्य पदार्थों का लगभग 90% भाग जन्तुओं के श्वसन में प्रयुक्त हो जाता है तथा शेष 10% भोजन का भाग उनके शरीर निर्माण में प्रयुक्त होता है जो कि अगले स्तर के उपभोक्ताओं को प्राप्त होता है। प्रत्येक स्तर पर संचित ऊर्जा का सम्बन्ध एक ऊर्जा का पिरामिड प्रदर्शित करता है। चूँकि प्रत्येक उपभोक्ता स्तर पर ऊर्जा की कमी होती है। अतः ऊर्जा का सदैव सीधा पिरामिड बनता है।
अथवा,
मानव मादा के अंडाशय के अनुप्रस्थ काट (T.S.) का नामांकित चित्र –
14. विनिमय से आप क्या समझते हैं? विनिमय की क्रियाविधि का वर्णन चित्र सहित करें।
अथवा,
मलेरिया ज्वर के कारण, लक्षण, नियंत्रण तथा इसके रोकथाम के बारे में लिखें।
उत्तर – विनिमय : अर्धसूत्री विभाजन के समय दो समजात गुणसूत्रों के नॉन-सिस्टर क्रोमैटिड्स के बीच जीवों के अदला-बदली की क्रिया को जीन – विनिमय कहते हैं। जीन विनिमय शब्द T.H. Morgan ने दिया था। इस क्रिया द्वारा जीनों का नया संयोजन बनता है।
विनिमय की क्रियाविधि : (i) अर्धसूत्रण के जाइगोटीन प्रावस्था में गुणसूत्र समानांतर रूप से सजकर जोड़ा बनाते हैं। यह क्रिया सिनैप्सिस कहलाती है। यहाँ समजात गुणसूत्रों का युग्म बनता है जिसमें चार क्रोमैटिड्स होते हैं जिसे वाइवैलेंट कहा जाता है। (ii) अब पैकीटीन में समजात गुणसूत्र विवेकपूर्ण घुमावदार कुडली निर्माण द्वारा एक-दूसरे के चारों ओर लिपट जाते हैं। (iii) वाइवैलेंट का प्रत्येक गुणसूत्र एक अनुलंब दरार द्वारा दो क्रोमैटिड्स में टूट जाता है। अब इसे टेट्रावैलेंट कहते हैं जिसमें प्रत्येक गूणसूत्र का दोनों क्रोमैटिड्स गुणसूत्र के सेंट्रोमीयर से आपस में जुड़े होते हैं। (iv) प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों क्रोमैटिड्स भी आपस में कुण्डली बनाकर लिपट जाते हैं जिसके कारण पहले से बना घुमावदार कुण्डली और भी जटिल हो जाती है। (v) अब नॉन-सिस्टर क्रोमैटिड्स में टूटने के कारण समाजत गुणसूत्रों के बीच आकर्षण बल समाप्त हो जाता है। अतः अब ये एक-दूसरे को दूर धकेलते हैं जिसके कारण विलगाव की शुरुआत हो जाती है। विलगाव सेंट्रोमीयर पर शुरू होता है। यह काइज्मा को छोर की ओर धकेलता है। इस क्रिया को टर्मिनेलाइजेशन कहते हैं। अंततः समजात गुणसूत्र अलग हो जाते हैं। जीन विनिमय की क्रिया को ऊपर रेखाचित्रों द्वारा दर्शाया गया है।
अथवा,
मलेरिया : मलेरिया सदियों से मानव का एक विनाशकारी रोग रहा है। इस रोग के कारण अनेक देशों की सेनाएँ बर्बाद हुई हैं, देश बर्बाद हुए हैं तथा अनेक देशों की उन्नति रुकी है। यह एक ऐसा रोग है जिससे मनुष्य कई वर्षों से लड़ता आ रहा है। प्लाज्मोडियम नामक एक बहुत छोटा-सा प्रोटोजोआन इस रोग के लिए उत्तरदायी है। मादा एनाफिलीज मच्छर मलेरिया रोग के लिए वाहक का कार्य करता है।
रोग के लक्षण : (1) मलेरिया में बुखार चढ़ने से पूर्व रोगी की भूख समाप्त हो जाती है, कब्ज हो जाती है, मुँह सूखने लगता है, सिर, पेशियों एवं जोड़ों में दर्द रहने लगता है तथा जी मिचलाने लगता है। (2) रोग का दौरा प्राय: दोपहर के बाद होता है। इसमें रोगी को ठण्ड लगकर कँपकँपी आती है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है, कमर एवं सिर में दर्द होने लगता है और कभी-कभी कै (उल्टी) हो जाती है। इसे दौरे को जूड़ी प्रावस्था कहते हैं। (3) लगभग 1 घण्टे बाद कँपकँपी बन्द हो जाती है और शरीर का ताप बढ़कर 104°–105°F तक हो जाता है। इसे दौरे को ज्वर जन्य प्रावस्था कहते हैं। (4) कुछ घण्टे बाद शरीर से अत्यधिक पसीना निकलता है, ताप कम हो जाता है और रोगी थकावट तथा कुछ कमजोरी के अतिरिक्त स्वयं को स्वस्थ अनुभव करने लगता है।
मनुष्य पर मलेरिया रोग के विशिष्ट प्रभाव : बार-बार के दौरों से कुछ ही दिनों में असंख्य लाल रुधिराणुओं के नष्ट हो जाने के कारण, मलेरिया के रोगी को रक्तक्षीणता हो जाती है। रक्त पतला और शरीर कमजोर हो जाता है। प्रायः तिल्ली बढ़ जाती है जिसे स्पलीज इण्डेक्स कहते हैं। प्रायः पीलिया रोग भी हो जाता है। उपयुक्त इलाज न होने की दशा में रोगी की मृत्यु हो जाती है।
मलेरिया की रोकथाम : कुछ वर्षों से हमारे देश में मलेरिया की पूरी रोकथाम के लिए वृहद् मलेरिया उन्मूलन योजना चलाई जा रही है। इसमें निम्न तीन विधियाँ अपनाई जाती हैं
(1) घरों में दरवाजे एवं खिड़कियों पर जालीदार कपड़ा या जाल लगवाना चाहिए ताकि मच्छर घर में प्रवेश न कर सकें। मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए। शरीर पर उपयुक्त मच्छर नाशक क्रीम लगाकर अथवा मच्छर अगरबत्ती जलाकर मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचना चाहिए।
(2) मच्छरों का विनाश : घरों में D.D.T. आदि छिड़कर मच्छरों का विनाश करना चाहिए। अपने आस-पास गन्दे पानी को जमा होने से रोकना चाहिए क्योंकि यहाँ मच्छरों को पनपने का उचित अवसर होता है। नालियों में मिट्टी का तेल छिड़कने से मच्छरों का विनाश होता है।
मलेरिया का उपचार : मलेरिया के उपचार के लिए 300 वर्षों से कुनैन एक परम्परागत औषधि बनी हुई है। यह रोगी के रुधिर में उपस्थित प्लाज्मोडियम की सभी अवस्थाओं को नष्ट कर देती है।
15. ठोस अपशिष्टों का वर्गीकरण तथा इसके निपटारे का प्रबंधन सविस्तार लिखें।
अथवा,
सूक्ष्मजीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक हैं। कैसे ?
उत्तर – ठोस अपशिष्टों को उनके स्रोत के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इसे मुख्य रूप से तीन वर्गों में बाँटा जाता है। ये वर्ग हैं-
(क) नागरीय अपशिष्ट : ये घरों में उत्पन्न अपशिष्ट हैं जिसमें शाक, सब्जी, फलों आदि के अवयवकृत भाग मल एवं अन्य अव्यवकृत घरेलू ठोस अवशेष आदि ।
(ख) औद्योगिक अपशिष्ट : ये वे ठोस अपशिष्ट हैं जिनका उत्पादन उद्योग से होता है।
(ग) बायोमेडिकल अपशिष्ट : ये वे ठोस अपशिष्ट हैं जिनका उत्पादन अस्पतालों, नर्सिंग होम, दवा कंपनी, चिकित्सकीय उपकरण निर्माण स्थलों आदि जगहों पर होता है। इसमें, सिरिज, डिस्टिल वाटर पॉट, दवा का बर्तन, प्लास्टर, रक्त चढ़ाने वाले उपकरण आदि जिसका उपयोग हो चुका है। को प्रदूषित करते हैं। अतः इनका उचित प्रबंधन आवश्यक है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन : ठोस कचरे का उत्पादन, संग्रहण, परिवहन, स्रोत पृथक्करण, संसाधन, उपचार, पुनः प्राप्ति एवं डिस्पोजल के क्रमिक नियंत्रण को ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन कहते हैं। ठोस कचरे/अपशिष्टों का प्रबंधन निम्नांकित प्रक्रियाओं द्वारा किया जा सकता है
(1) Sanitary land filling: इस प्रक्रिया में कूड़ा-करकट को भूमि पर पतला आवरण के रूप में फैलाकर क्ले मट्टी या प्लास्टिक फोम से ढँक दिया जाता है। इन दिनों जहाँ पर कूड़ा का निपटान करना होता है उसके आधार को अपारगम्य अस्तेर जिसमें क्ले की अनेक परतें जो प्लास्टिक एवं बालू से अस्तासि किया जाता है। यह अस्तर भू-जल को कूड़े के रिसने से बचाता है।
(2) भस्मीकरण (Incineration) : ठोस अपशिष्ट को नष्ट करने की वह प्रक्रिया जिसके द्वारा ठोस कार्बनिक अपशिष्ट को दहन क्रिया द्वारा गैसीय उत्पादों एवं अन्य अहानिकारक अवशेषों में बदला जाता हो, भस्मीकरण कहा जाता है। यह विधि ठोस अपशिष्ट एवं जलीय अपशिष्ट प्रबंधन से प्राप्त ठोस अपशिष्ट डिस्पोजल में लाभकारी होता है।
(3) कम्पोस्टिंग (Composting) : यह एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें कार्बनिक अपशिष्ट जो जैव निम्नीकरणीय होता है का सूक्ष्मजीवों जैसे कवक एवं जीवाणु आदि की क्रियाकलाप द्वारा ह्यूमस (Humus) के सदृश पदार्थ जो जैविक खाद का कार्य करता है, में निम्नीकरण होता है।
प्रक्रिया : इस प्रक्रिया में रसोई से प्राप्त जैव निम्नीकरणीय ठोस अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है।
(4) पायरोलाइसिस (Pyrolysis) : यह एक प्रकार का भस्मीकरण की क्रिया है जिसमें 02 की अनुपस्थिति में जैविक अपशिष्ट का रासायनिक विघटन किया जाता है। यह कार्य नियत दाब एवं 430°C से अधिक के तापमान पर किया जाता है। इस क्रिया द्वारा कार्बनिक अपशिष्ट का रूपांतरण गैस सूक्ष्म मात्रा में द्रव एवं कार्बन व राखयुक्त ठोस अवशेष में हो जाता है। इस प्रकार ठोस कचरा का प्रबंधन उसके प्रकार के आधार पर करने से उपयोगी पदार्थ प्राप्त होता है और पर्यावरण भी प्रदूषण मुक्त रहता है।
अथवा,
सूक्ष्म जीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा मानव जीवन के अनेक क्षेत्रों में उपयोगी व लाभकारी क्रियाकलाप द्वारा मानव कल्याण संभव होता है। अतः सूक्ष्मजीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है। ये क्षेत्र हैं –
(क) घरेलू उत्पादों में सूक्ष्मजीव की भूमिका : दूध से दही निर्माण लैक्टोवैसिलस जीवाणु द्वारा, दूध से योगर्ट (yoghurt) निर्माण स्ट्रेप्टोफोकस लैक्टिस आदि जीवाणु की भूमिका तथा पनीर निर्माण में स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिस का उपयोग होता है। इसके अलावे पावरोटी निर्माण, इडली, ताड़ी, सिरका (vinegar) आदि का निर्माण भी सूक्ष्मजीवों की सहायता से ही होता है।
(ख) औद्योगिक क्षेत्र में : इस क्षेत्र में अल्कोहलीय पेय निर्माण फफूँद की सहायता से, एंटीवायोटिक का निर्माण फफूँद एवं जीवाणु द्वारा, कार्बनिक अम्ल, एंजाइम, विटामिन ( B2, B12) डेक्सटिंग, स्टीरॉइड एवं अमिनो अम्लों तथा स्टैरिन व साइक्लोस्पोरिन ए के निर्माण में भी कवक एवं जीवाणु की सहायता ली जाती है।
(ग) वाहित मलोपचार सूक्ष्म जीवों की सहायता से ही संभव है।
(घ) वायोगैस उत्पादन में मीथैनोजेन जीवाणु की सहायता से संभव है।
(ङ) कृषि क्षेत्र में : कृषि उपज बढ़ाने के लिए खर-पतवारनाशी, नाशक जीवनाशी एवं रोगजनक नाशी का उपयोग जैविक कारक के रूप में जीवाणु, कीट एवं अन्य सूक्ष्म जंतुओं का उपयोग किया जा रहा है जिसके कारण मृदा प्रदूषण, भू-जल प्रदूषण एवं वायु प्रदूषण का नियंत्रण हो जाता है।
इसके अलावे रासायनिक उर्वरक की हानियों से मुक्ति के लिए आजकल जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीवों जैसे राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, क्लोस्टूिडियम, आदि जीवाणु, एजोस्पाइरिलम माइकोराइजा जैसे सहजीवी, नीलहरित शैवाल जैसे ऐनाबीना, साइटोनीमा आदि का उपयोग कर मृदा में नाइट्रोजनसहित अन्य पोषकों की आपूर्ति की जाती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव कल्याण में सूक्ष्म जीव अनेक तरीकों से मानव को लाभ पहुँचा रहे हैं। अतः सूक्ष्मजीव मानव कल्याण के लिए आवश्यक है l
2017 (A)
जीव विज्ञान (Biology)
खण्ड-I (वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
निम्नलिखित प्रश्न संख्या 1 से 28 तक के प्रत्येक प्रश्न के लिए एक ही विकल्प सही है। प्रत्येक प्रश्न से सही उत्तर, उत्तर पत्र में चिह्नित करें।
1. निम्न में से कौन द्विगुणित संरचना है ?
(A) अण्डाणु
(B) भ्रूण पोष
(C) युग्मनज
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (C) युग्मनज
2. ओंकोजीन, इनमें से किसके लिए उत्तरदायी हैं ?
(A) कैंसर
(B) एड्स
(C) क्षय रोग
(D) पोलियो
उत्तर – (A) कैंसर
3. इनमें से कौन पौधा जलोद्भिद है ?
(A) सिंघाड़ा
(B) नागफनी
(C) शीशम
(D) एकेसिया
उत्तर – (A) सिंघाड़ा
4. शरीर के बाहर होने वाले निषेचन को क्या कहते हैं ?
(A) इन विट्रो
(B) इन वीवो
(C) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) इन विट्रो
5. विश्व पर्यावरण दिवस किस तिथि को मनाया जाता है ?
(A) 5th जून
(B) 20th दिसम्बर
(C) 15th मार्च
(D) 7th जुलाई
उत्तर – (A) 5th जून
6. सर्टोली कोशिकाएँ पायी जाती हैं
(A) वृषण
(B) गर्भाशय
(C) अंडाशय
(D) यकृत
उत्तर – (A) वृषण
7.ओपेरॉन मॉडल क्या प्रदर्शित करता है ?
(A) जीन का सिंथेसिस
(B) जीन का एक्सप्रेशन
(C) जीन का रेगुलेशन
(D) जीन का फंक्शन
उत्तर – (D) जीन का फंक्शन
8. निम्नलिखित में से कौन जन्तु उभयलिंगी नहीं है ?
(A) फीता कृमि
(B) केचुआ
(C) घरेलू में
(D) जोंक
उत्तर – (C) घरेलू में
9. इनमें से कौन-सा नाइट्रोजिनस बेस डी० एन०ए० नहीं होता है ?
(A) थाइमिन
(B) युरासिल
(C) गुआनिन
(D) साइटोसिन
उत्तर – (B) युरासिल
10. रेड डाटा बुक में सम्मिलित है
(A) विलुप्त हो रहे पौधों की सूची
(B) दुर्लभ पौधों की सूची
(C) आपत्तिग्रस्त प्राणियों की सूची
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (D) इनमें से सभी
11. पुष्पासन खाया जाता है
(A) शरीफा का
(B) सेब का
(C) नारंगी का
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (B) सेब का
12. डी० एन० ए० इनमें से किसका आनुवांशिक पदार्थ है ?
(A) टी० एम० वी०
(B) बैक्टीरियोफेज
(C) दोनों का
(D) किसी का नहीं
उत्तर – (B) बैक्टीरियोफेज
13. जनसंख्या अधिक होने से क्या होता है ?
(A) आय में कमी
(B) जमीन में कमी
(C) खनिज पदार्थ की कमी
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (D) इनमें से सभी
14. एक्रोसोम इनमें से किसका संभाग है ?
(A) मानव शुक्राणु के सिर का
(B) मानव शुक्राणु के मध्य भाग का
(C) प्रारंभिक डिम्बाणुजनकोशिका का
(D) ब्लास्टोसिस्ट का
उत्तर – (A) मानव शुक्राणु के सिर का
15. इनमें से कौन जीवाणु जनित रोग है ?
(A) कुष्ठ रोग
(B) क्षय रोग
(C) हैजा
(D) इनमें से सभी
उत्तर – (D) इनमें से सभी
16. मनुष्य (पुरुष) में गुण-सूत्र की संख्या है ?
(A) 44 + XX
(B) 44 + XY
(C) 46 + XY
(D) 46 + XX
उत्तर – (B) 44 + XY
17. एसीटाबुलेरिया निम्न में से क्या है ?
(A) जीवाणु
(B) शैवाल
(C) प्रोटोजोआ
(D) एकल कोशिका प्रोटीन
उत्तर – (D) एकल कोशिका प्रोटीन
18. अनुन्मील्य परागण वाले पौधों में निश्चित रूप से होता है
(A) स्व- परागण
(B) पर-परागण
(C) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) स्व- परागण
19. पारिस्थितिक तंत्र के आहार श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह होता है।
(A) एक दिशीय
(B) द्विदिशीय
(C) बहु दिशीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) एक दिशीय
20. इनमें से कौन-सा रक्त समूह सार्वभौमिक रक्तदाता है ?
(A) B
(B) A
(C) AB
(D) O
उत्तर – (D) O
21. एक संकरण क्रॉस का फोनोटिपिक अनुपात क्या है ?
(A) 1:2:1
(B) 3:1
(C) 9:3:3:1
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) 3:1
22. गैंडा अभयारण्य किस राज्य में अवस्थित है ?
(A) असम
(B) पश्चिम बंगाल
(C) उत्तर प्रदेश
(D) बिहार
उत्तर – (A) असम
23. डी०एन०ए० से mRNA बनाने की क्रिया को क्या कहते हैं ?
(A) ट्रांसक्रिप्शन
(B) रिप्लिकेशन
(C) ट्रांसलेशन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) ट्रांसक्रिप्शन
24. WHO के द्वारा ध्वनि प्रदूषण का कौन-सा मानक सही है ?
(A) 20-30 डेसीबल
(B) 45 डेसीबल
(C) 75 डेसीबल
(D) 90 डेसीबल
उत्तर – (A) 20-30 डेसीबल
25. मलेरिया रोग उत्पन्न होता है
(A) नर क्यूलेक्स
(B) मादा एनोफेलीज
(C) मादा एडीस
(D) नर एनोफिलीज
उत्तर – (B) मादा एनोफेलीज
26. किस गैर फली पौधों के जड़ पिंड में जैविक खाद मौजूद है ?
(A) एजोटोबैक्टर
(B) क्लॉस्ट्रिडियम
(C) फ्राँकिया
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A) एजोटोबैक्टर
27. दूध से दही बनाने में किस जीवाणु का उपयोग होता है ?
(A) क्लास्ट्रिडियम
(B) लैक्टोबैसिलस
(C) ‘A’ तथा ‘B’ दोनों
(D) स्ट्रेप्टोकोकस
उत्तर – (B) लैक्टोबैसिलस
28. अर्जित गुणों के वंशागति का सिद्धांत किनके द्वारा किया गया ?
(A) डार्विन
(B) लैमार्क
(C) डे० वरीज
(D) हैकल
उत्तर – (B) लैमार्क
खण्ड-II (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न)
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. डी. एन. ए. की संरचना का वर्णन करें।
उत्तर – वाटसन और क्रिक (Watson and Crick) ने भी DNA की द्विकुंडलिनी संरचना का वर्णन करते समय अर्धसंरक्षी प्रतिकरण का वर्णन किया। इनके अनुसार द्विगुणन के समय दोनों स्ट्रैंड एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं एवं दोनों पुराना स्ट्रैंड टेम्प्लेट का कार्य कर दो संकर DNA के अणु बनाते हैं जिसमें एक स्ट्रैंड पुराना तथा एक स्ट्रैंड नया रहता है । मेसेल्सन तथा स्टाल की परिकल्पना के अनुसार द्विगुणन के समय DNA के दोनों स्ट्रैंड एक-दूसरे से पूर्णरूपेण अलग नहीं होते हैं। एंजाइम की उपस्थिति में दोनों स्ट्रैंड्स एक सिरे या अंतिम छोर से विकुंडलित हो जाते हैं फिर अपनी ओर नए न्यूक्लियोटाइड्स को आकर्षित कर जुड़ते हैं एवं इसके बाद कुंडलित हो जाते हैं। यह एक सतत क्रिया है जो आवश्यकतानुसार चलती है।
क्षार गुग्मन पॉलीन्यूक्लियोटाइड शृंखलाओं की एक खास विशेषता है। ये शृंखलाएँ एक-दूसरे के पूरक हैं इसलिए एक रज्जुक में स्थित क्षार क्रमों के बारे में जानकारी होने पर दूसरी रज्जुक के क्षार क्रमों की कल्पना कर सकते हैं। यदि डीएनए की प्रत्येक रज्जुक के संश्लेषण हेतु टेम्पलेट का कार्य करती हैं। इस तरह से दो द्विरज्जुकीय डीएनए (जिसे संतति डीएनए कहते हैं) का निर्माण होता है जो पैतृक डीएनए अणु के समान होती है। इस कारण आनुवंशिक डीएनए की संरचना के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी मिल सकी। प्रतिकृति के पूर्ण होने के बाद जो डीएनए अणु बनता है उसमें एक पैतृक वह एक नई निर्मित लड़ी रज्जुक होती है। डीएनए प्रतिकृति की यह योजना अर्धसंरक्षी (सेमी कंजर्वेटिव) कहलाती है। अब सिद्ध हो चुका है कि डीएनए का अर्धसंरक्षी प्रतिकृतियन होता है।
2. ग्लोबल वार्मिंग क्या है? उसके प्रभाव और मुक्ति के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर – मानवीय औद्योगिक गतिविधियों के कारण ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ती जा रही है जिसके कारण पृथ्वी का ताप धीरे-धीरे बढ़ रहा है यही घटना ग्लोबल वार्मिंग कहलाती है।
प्रभाव : (i) वायुमंडलीय ताप में वृद्धि । (ii) हिमनद का पिघलना। (iii) समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी। (iv) बड़े एवं सुन्दर शहरों का समुद्र में डुबने की संभावना। (v) अनावृष्टि तथा अतिवृष्टि ।
नियंत्रण के उपाय : (i) वृक्षों के कटाव पर रोक लगाकर। (ii) वृक्षारोपण कार्यक्रम को अपनाकर ।
3. टेस्ट-ट्यूब बेबी किसे कहते हैं ?
उत्तर – इस विधि में शुक्राणु व अण्डाणु के बीच निषेचन की क्रिया शरीर के अंदर जैसी परिस्थितियों में ही शरीर से बाहर टेस्ट ट्यूब में (किसी पात्र) की जाती है। इसलिए इसे टेस्ट ट्यूब विधि के नाम से ज्यादा के जाना जाता है। इसमें पत्नी/दाता स्त्री के अण्डाणु व पति/दाता पुरुष के शुक्राणु प्रयोगशाला में लाकर निषेचन कराया जाता है जिससे युग्मनज का निर्माण होता है। इस युग्मनज को पत्नी के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है।
4. किसी चार यौन संचारित रोगों के नाम, उनके कारक रोगाणुओं के साथ लिखें।
उत्तर – यौन संचारित रोगों के नाम तथा उनके कारक रोगाणुओं के नाम –
यौन संचारित रोग |
कारक रोगाणुओं का नाम |
1. सुजाक (Gonorrhoea) |
Nisseria gonorrheae |
2. सिफलिश (Syphilis) |
Treponema pallidum |
3. जेनाइटल हर्पिस (Genital Herpes) |
Trichomonas vaginalis |
4. एडस (AIDS) |
HIV (Human Immimo-deficiency Virus) |
5. शुक्राणुजनन एवं अण्डजनन के बीच अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर – शुक्राणुजनन : वृषण के शुक्रजन नलिका में शुक्राणु निर्माण की क्रिया शुक्राणुजनन कहलाती है।
अंडजनन : अण्डाशय में अंडाणु बनने की क्रिया अंडजनन कहलाती है।
6. रक्त के कार्य बताएँ।
उत्तर – रक्त के निम्न कार्य हैं – (i) पचे हुए भोजन का परिवहन । (ii) इंजाइम हार्मोन का परिवहन । (iii) प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट का परिवहन । (iv) टूटे-फूटे कोशाओं को मरम्मत करना । (v) रोग प्रतिरोधी ! क्षमता प्रदान करना।
7. मरुस्थलीय पौधों के पारिस्थितिक अनुकूलन का उल्लेख करें।
उत्तर – मरुस्थलीय पौधों में निम्न अनुकूलन पाये जाते हैं – (i) इनकी जड़ें बहुत लंबी एवं मोटी होती हैं। (ii) तना मोटा एवं मांसल हो जाता है। (iii) रंध्र पत्तियों में धँसा रहता है जो वाष्पोत्सर्जन को कम करता है। (iv) पत्तियों में जल संचय करने योग्य ऊतक होते हैं। (v) पत्तियाँ छोटी, शल्कपत्र या काँटों में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे— नागफनी, एकेशिया इत्यादि ।
8. डी०एन०ए० संपरीक्षक (प्रोब) क्या है? जैव प्रौद्योगिकी में इसके उपयोग बताएँ।
उत्तर – डी० एन० ए० का ऐसे छोटे-छोटे खण्ड जो एक जैविक या अजैविक तंत्र में किसी जीन या एक लंबे डी० एन० ए० अनुक्रम की उपस्थिति को ज्ञात करने में सहायक होते हैं डी० एन० ए० प्रोब कहा जाता है। – जैव प्रौद्योगिकी में इसका उपयोग – (i) इनके द्वारा संक्रामक रोगों का निदान किया जाता है। (ii) व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए। (iii) सूक्ष्मजीवों के परीक्षण में। (iv) मोनोक्लोनल प्रतिरक्षियों को तैयार कराने में। (v) आण्विक निदान में इसका उपयोग किया जाता है।
9. जैव विविधता की परिभाषा लिखें एवं इसके महत्त्व को बताएँ।
उत्तर – पृथ्वी पर पाये जानेवाले विविध प्रकार के पौधों, जंतुओं तथा सूक्ष्मजीवियों के समूह से बनने वाले प्रक्षेत्र को जैवविविधता कहा जाता है।
महत्त्व : (i) पारिस्थितिक तंत्र को सुदृढ़ बनाने में। (ii) दुर्लभ और विलुप्त होने वाले पादप तथा जंतुओं की प्रजाति को संरक्षित करने में। (iii) विश्वव्यापी उष्णता को कम करने में। (iv) समुद्री जलस्तर को निश्चित करने में । (v) हरित घर प्रभाव को कम करने में ।
10. बंध्याकरण क्या है ? इसके तरीकों का उल्लेख करें ।
उत्तर – जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए किये गये सर्जरी विधि को बंध्याकरण कहा जाता है। इस विधि में नर तथा मादा युग्मक के स्थानांतरण को रोक दिया जाता है जिससे निषेचन क्रिया न हो सके और न नये जन्म की संभावना हो। इसमें निम्न तरीकों का उपयोग किया जाता है
(i) नर नसबंदी (Vasectomy) : इसमें पुरुष के नर जनन तंत्र में पाये जाने वाले शुक्रवाही को काटकर अलग-अलग करके धागा द्वारा बाँध दिया जाता है जिससे शुक्राणुओं का स्थानांतरण न हो सके।
(ii) मादा नसबंदी (Tobectomy) : इसमें स्त्री जनन तंत्र में पाये जाने वाले फैलोपियन नलिका को काटकर अलग करके धागा द्वारा बाँध दिया जाता है। जिससे अंडाणु का स्थानांतरण रोका जा सके ।
11. निम्नलिखित को परिभाषित करें – (i) प्रोटोजोअन अन्तः परजीवी (ii) बीजाण्ड |
उत्तर – (a) प्रोटोजोअन अंतः परजीवी : वैसा प्रोटोजोअन्स जो मानव शरीर के आंतरिक भाग में स्थित होकर अपना पोषण प्राप्त करता हो उसे प्रोटोजोअन्स अंतः परजीवी कहा जाता है।
जैसे – इंट- अमीबा हिस्टोलाइटिका, लिशमानिया डोनावानी ।
(b) बीजाण्ड (Ovule) : अंडाशय के अंदर एक अंडाकार संरचना पाई जाती है जिसे बीजांड कहा जाता है यह आठ केन्द्रकों के द्वारा बना होता है। यही निषेचन के बाद बीज में परिवर्तित होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
12. जीन विनिमय को परिभाषित करें। आरेखित चित्रों की मदद से इसकी प्रक्रिया का वर्णन करें।
अथवा,
दोहरा निषेचन से आप क्या समझते हैं? आरेखित चित्रों की मदद से समझाएँ ।
उत्तर – विनिमय : अर्धसूत्री विभाजन के समय दो समजात गुणसूत्रों के नॉन-सिस्टर क्रोमैटिड्स के बीच जीवों के अदला-बदली की क्रिया को जीन – विनिमय कहते हैं। जीन विनिमय शब्द T.H. Morgan ने दिया था। इस क्रिया द्वारा जीनों का नया संयोजन बनता है।
विनिमय की क्रियाविधि : (i) अर्धसूत्रण के जाइगोटीन प्रावस्था में गुणसूत्र समानांतर रूप से सजकर जोड़ा बनाते हैं। यह क्रिया सिनैप्सिस कहलाती है। यहाँ समजात गुणसूत्रों का युग्म बनता है जिसमें चार क्रोमैटिड्स होते हैं जिसे वाइवैलेंट कहा जाता है। (ii) अब पैकीटीन में समजात गुणसूत्र विवेकपूर्ण घुमावदार कुडली निर्माण द्वारा एक-दूसरे के चारों ओर लिपट जाते हैं। (iii) वाइवैलेंट का प्रत्येक गुणसूत्र एक अनुलंब दरार द्वारा दो क्रोमैटिड्स में टूट जाता है। अब इसे टेट्रावैलेंट कहते हैं जिसमें प्रत्येक गूणसूत्र का दोनों क्रोमैटिड्स गुणसूत्र के सेंट्रोमीयर से आपस में जुड़े होते हैं। (iv) प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों क्रोमैटिड्स भी आपस में कुण्डली बनाकर लिपट जाते हैं जिसके कारण पहले से बना घुमावदार कुण्डली और भी जटिल हो जाती है। (v) अब नॉन-सिस्टर क्रोमैटिड्स में टूटने के कारण समाजत गुणसूत्रों के बीच आकर्षण बल समाप्त हो जाता है। अतः अब ये एक-दूसरे को दूर धकेलते हैं जिसके कारण विलगाव की शुरुआत हो जाती है। विलगाव सेंट्रोमीयर पर शुरू होता है। यह काइज्मा को छोर की ओर धकेलता है। इस क्रिया को टर्मिनेलाइजेशन कहते हैं। अंततः समजात गुणसूत्र अलग हो जाते हैं। जीन विनिमय की क्रिया को ऊपर रेखाचित्रों द्वारा दर्शाया गया है।
अथवा,
भ्रूणकोष (embryo sac ) के अंदर पहुँचने के बाद पराग नलिका (pollen tube) से नरयुग्मक (male gametes) बाहर निकल आते हैं। इनमें से एक नरयुग्मक अंड कोशिका (egg cell) से संगलन (fusion) करता है और युग्मनज (zygote) बनाता है। दूसरा नरयुग्मक ध्रुवीय केंद्रकों से संलयन करता है। निषेचन से पूर्व दोनों ध्रुवीय केंद्रक (polar nuclei) मिलकर द्वितीयक केंद्रक बनाते हैं। द्वितीयक केंद्रक तथा नरयुग्मक के संगलन से बनी संरचना को प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक कहते हैं। इस प्रकार निषेचन की क्रिया पूरी होती है। निषेचन की क्रिया में नरयुग्मक का अंड से मिलकर द्विगुणित युग्मनज बनाना तथा द्वितीयक केंद्रक का नरयुग्मक से संलयन द्विनिषेचन कहलाता है द्विनिषेचन की खोज नावाशिन ves 1898 में किया था। उन्होंने फ्रिटिलेरिया (Fritillaria) तथा लिलियम में सर्वप्रथम द्विनिषेचन का पता लगाया था।
13. उचित उदाहरणों के साथ लिंग – निर्धारण की प्रक्रिया का वर्णन करें ।
अथवा,
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन रेखाचित्रों की सहायता से करें।
उत्तर – निषेचन के समय नर तथा मादा युग्मक संयोजित होकर युग्मनज में बदल जाते हैं अत: उसमें बनने वाले नर या मादा का निर्धारण ही लिंग निर्धारण कहा जाता है।
मनुष्य में 46 क्रोमोसोम 23 जोड़े में व्यवस्थित रहते हैं। इनमें 22 जोड़े क्रोमोसोम नर एवं मादा दोनों में एक ही समान होते हैं जिन्हें अलिंग-क्रोमोसोम या ऑटोसोम कहा जाता है। तेइसवाँ जोड़ा भिन्न प्रकार का होता है, जिसे लिंग-क्रोमोसोम कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं. – X और Y | X क्रोमोसोम लंबा और छड़नुमा होता है, Y क्रोमोसोम अपेक्षाकृत बहुत छोटे आकार का होता है। नर में X और Y दोनों लिंग-क्रोमोसोम मौजूद होते हैं, पर मादा में Y क्रोमोसोम अनुपस्थित होता है। उसके स्थान पर एक और X क्रोमोसोम होता है, अर्थात मादा में दो X क्रोमोसोम लिंग-क्रोमोसोम के रूप में होते हैं। ये X और Y क्रोमोसोम ही मनुष्य में लिग – निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते हैं।
मनुष्य में सभी मादा युग्मक या अंडाणु एक ही प्रकार के होते हैं। इनमें 22 ऑटोसोम तथा एक लिंग-क्रोमोजोम (X) रहता है। इन युग्मकों के निषेचन के फलस्वरूप नर या मादा संतति जन्म लेती है। यदि अंडाणु का निषेचन Y क्रोमोसोमसहित नर युग्मक से होता है तो युग्मनज में X एवं Y दोनों लिंग-क्रोमोसोम पहुँच जाते हैं। यह परिवर्धित होकर नर संतति बनाता है। इसके विपरीत X क्रोमोसोम सहित नर युग्मक जब अंडाणु से निषेचित होते हैं तो युग्मनज में दोनों X क्रोमोसोम पहुँच जाते हैं। यह परिवर्धित होकर मादा संतति बनाता है। लिंग-निर्धारण के इस सिद्धांत को हेटेरोगैमेसिस का सिद्धांत कहते हैं।
अथवा,
वृषण के शुक्रजनन नलिका में शुक्राणुओं के बनने की क्रिया शुक्राणुजनन कहलाती है।
क्रियाविधि : शुक्रजनन नलिकाओं के आंतरिक स्तर में शुक्रजन कोशाएँ रहते हैं। यही कोशा समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होकर शुक्राणुजन का निर्माण करते हैं। इन्हीं कोशाओं से प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट का निर्माण होता है प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट का कोशा अर्द्धसूत्रण विभाजन द्वारा विभाजित होकर अगुणित कोशाओं में बदल जाते हैं जिन्हें द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट कोशा कहलाती है यही कोशा रूपांतरित होकर शुक्राणु में बदल जाता है। स्पर्मेटिक का शुक्राणु में परिवर्तन की क्रिया शुक्राणु कायांतरण कहलाती है। संपूर्ण क्रिया को शुक्राणुजनन कहा जाता है।
14. जीन अंतः क्रिया को परिभाषित करें। समुचित संकरण एवं उदाहरणों की मदद से इसका वर्णन करें।
अथवा,
जैव प्रतिरक्षण के मुख्य सिद्धांतों एवं उपयोगों का वर्णन करें।
उत्तर – “जब दो या अधिक जीन एक ही लक्षण को नियंत्रित करते हों तो वे एक-दूसरे की क्रिया को विभिन्न रूपों में प्रभावित करते हैं। इस दशा को ‘जीन अंतःक्रिया’ कहा जाता है।
उदाहरण: गुलबास पौधा (Mirabilis Jalapa or 4 ‘O’ clock plant) ।
जब लाल तथा उजले पुष्प वाले पौधों के मध्य क्रॉस कराया गया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे गुलाबी (Pink) रंग के हो गये। लेकिन दूसरी पीढ़ी में इनका अनुपात: 1:2:1 हो गया। लाल तथा सफेद पुष्पों के प्रजनन से तदनुरूप संतान उत्पन्न होते हैं। किंतु गुलाबी पुष्पों वाली पौधे तीन प्रकार की लाल, गुलाबी तथा उजले रंग के पौधे उत्पन्न करते हैं।
अथवा,
जैव प्रतिरक्षण के मुख्य सिद्धांत एवं उपयोग इस प्रकार हैं – (i) प्रतिरक्षा विज्ञान के द्वारा टीकाकरण का विकास हुआ जो बीमारी फैलने से रोकता है। (ii) टीकाकरण के माध्यम से चेचक, टेटनस, डिप्थीरिया, न्यूमोनिया आदि का बड़े पैमाने पर नियंत्रण संभव हुआ है। (iii) पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम भी तेजी से बढ़ा है। (iv) सूक्ष्म जीव विज्ञान का अध्ययन ने प्रतिजैविकों को बनाने में आत्मनिर्भरता प्रदान की है। (v) जैविकी के अनुसार प्रतिरक्षा तंत्र हमारे स्वास्थ्य को बनाए रखता है। (vi) जैव प्रतिरक्षण पर्यावरण संतुलन में सहायक है।
15. ओजोन परत क्या है ? इससे वायुमण्डल पर पड़ने वाले प्रभाव को लिखें।
अथवा,
आहार जाल क्या है ? उपयुक्त उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट करें।
उत्तर – समतापमंडल के ऊपर पाये जाने वाले ओजोन (O3) को ओजोन परत कहा जाता है। यह ओजोन पर एक छतरी का कार्य करता है। यह सूर्य से निकलने वाली पारा बैंगनी (UV) किरणों को अवशोषित करता है उसे पृथ्वी पर पहुँचने से रोकता है अतः यह हर जीवधारियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
ओजोन गैस का लगातार निर्माण पराबैंगनी किरणों का आण्विक ऑक्सीजन पर पड़ने के कारण होता है। यह आण्विक ऑक्सीजन को कम करता है अतः इससे उत्पादन और विनाश में संतुलन बना रहता है। वर्तमान समय में मानब क्रियाकलापों के द्वारा वातावरण में बढ़ती हुई क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) की मात्रा ओजोन परत को तोड़ने के लिए जिम्मेवार होता है। ओजोन के बनते हुए पतले स्तर को ओजोन क्षय कहा जाता है। ओजोन परत क्षय के निम्न प्रभाव वायुमंडल उत्पन्न होते हैं
(i) ग्लोबल वार्मिंग की समस्या । (ii) हरितघर प्रभाव का उत्पन्न होना। (iii) हिमनद का पिघलना । (iv) समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी । (v) अनेक रोगों का उत्पन्न होना । जैसे— कैंसर, ल्यूकोडरमा, दमा, अलर्जी जन्य रोग ।
अथवा,
पारिस्थितिक तंत्र में सामान्यतः एक साथ कई आहार शृंखलाएँ पाई जाती हैं। ये आहार शृंखलाएँ हमेशा सीधी न होकर एक-दूसरे से आड़े-तिरछे जुड़कर एक जाल-सा बनाती हैं। आहार श्रृंखलाओं के इस जाल को आहार जाल कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि पारिस्थितिक तंत्र का एक उपभोक्ता एक से अधिक भोजन स्रोत का उपयोग करता है, जैसे एक घास के मैदान के पारिस्थितिक तंत्र में पाए जानेवाले जीवों की कड़ियाँ घास और अन्य पौधे, मेढ़क, कीट, सर्प, गिरगिट, बाज, पक्षी तथा खरगोश हैं। बाज पक्षी घास खानेवाले कीटों को भी खा सकता है और साथ-साथ कीटों को खानेवाले मेढ़क या गिरगिट को भी खाता है। इसका परिणाम यह होता है कि ऐसी सारी आहार श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से जाल की तरह जुड़ी हुई रहती हैं। आपस में जुड़ी हुई ऐसी आहार श्रृंखलाएँ आहार जाल का निर्माण करती हैं।
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