Video: दोले तू दोल गोविंदम… से गूंजा सरायकेला, भक्तों संग राधा-कृष्ण ने खेली होली
Dol Yatra in Seraikela| सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश/धीरज कुमार : दोल पूर्णिमा के मौके पर गुरुवार को झारखंड की धार्मिक नगरी सरायकेला में आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली की ओर से राधा-कृष्ण की दोल यात्रा निकाली गयी. राधा-कृष्ण की कांस्य प्रतिमा का शृंगार कर नगर भ्रमण कराया गया. इस दौरान भक्तों ने राधा-कृष्ण पर गुलाल अर्पित करने के बाद एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाकर होली खेली. भक्त और भगवान के इस मिलन को देखने के लिए भारी संख्या में लोग पहुंचे थे.
पारंपरिक शंख ध्वनि और उलुध्वनि से कान्हा का स्वागत
दोल यात्रा के दौरान सरायकेला में जगह-जगह राधा-कृष्ण का स्वागत पारंपरिक शंख ध्वनि एवं उलुध्वनि से हुआ. इस दौरान भक्त पारंपरिक वाद्य यंत्र मृदंग, झंजाल के साथ ‘दोल यात्रा’ में शामिल होकर नृत्य एवं कीर्तन करते नजर आये. राधा-कृष्ण के स्वागत के लिए श्रद्धालुओं ने अपने घर के सामने के हिस्से को गोबर से लेपा. रंग-बिरंगी अल्पना भी बनायी.
दोल यात्रा में घोड़ा नाच बना आकर्षण का केंद्र
दोल यात्रा में घोड़ा नाच आकर्षण का केंद्र रहा. दोल यात्रा के दौरान लोगों में जबर्दस्त उत्साह देखा गया. सरायकेला में दोल यात्र एकमात्र ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है, जब प्रभु अपने भक्तों संग गुलाल खेलने के लिए उसकी चौखट तक आते हैं.
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श्रीकृष्ण की द्वादश यात्राओं में प्रमुख और दुर्लभ है दोल यात्रा
दोल यात्रा का आयोजन हर वर्ष आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली द्वारा किया जाता है. आध्यात्मिक उत्थान श्रीजगन्नाथ मंडली के संस्थापक ज्योतिलाल साहू ने बताया कि जगत के पालनहार श्रीकृष्ण की द्वादश यात्राओं में से एक है दोल यात्रा. क्षेत्र में प्रचलित इस श्लोक ‘दोले तू दोल गोविंदम, चापे तू मधुसूदनम, रथे तू मामन दृष्टा, पुनर्जन्म न विद्यते…’ के अनुसार दोल (झूला या पालकी), रथ और नौका में प्रभु के दर्शन से मनुष्य को जन्म चक्र से मुक्ति मिल जाती है. होली में आयोजित होने वाली इस यात्रा को दुर्लभ यात्रा माना गया है.
महाराज उदित नारायण सिंहदेव के शासन काल में शुरू हुई दोल यात्रा
दोल यात्रा के मुख्य आयोजक सरायकेला के कवि ज्योति लाल साहू बताते हैं कि सरायकेला में दोल यात्रा की शुरुआत वर्ष 1818 में महाराजा उदित नारायण सिंहदेव के शासन काल में हुई थी. राजा-रजवाड़े के समय में इसका आयोजन फागू दशमी से दोल पूर्णिमा तक होता था. वर्ष 1990 से आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली पारंपरिक रूप से दोल यात्रा का आयोजन कर रही है. अब सिर्फ दोल पूर्णिमा के दिन दोल यात्रा होती है.
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