Raj Khosla Biography:मुकेश की वजह से राज खोंसला का सिंगर बनने का सपना था टूटा

raj khosla biography:फिल्म निर्माता और निर्देशक राज खोंसला का यह जन्मशताब्दी वर्ष है.बीते दिनों उनके जन्मदिन यानी 31 मई को उनकी पहली ऑफिशियल बायोग्राफी “राज खोसला: द ऑथराइज़्ड बायोग्राफी”की भी लॉन्चिंग हुई .दिवंगत फिल्म निर्माता की बेटियों अनीता खोसला और उमा खोसला कपूर के सहयोग से लेखक अंबरीश रॉयचौधरी ने यह किताब लिखी है.वह सिनेमा पर आधारित अपनी एक किताब के लिए नेशनल अवार्ड भी जीत चुके हैं. राज खोंसला की इस बायोग्राफी, उससे जुड़ी चुनौतियों, रोचक पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

बायोग्राफी पर पांच साल का वक्त लगा

उनकी बेटियां काफी समय से अपने पिता की बायोग्राफी पर कुछ काम करवाना चाहती थी. फिल्मफेयर के एडिटर जितेश पिल्लई से उन्होंने अपनी बात शेयर की थी और जितेश ने उन्हें मेरा नाम सजेस्ट किया था. इस किताब को लिखने में पांच सालों का समय गया. इस बायोग्राफी में हमने राज खोंसला को भगवान नहीं बल्कि एक इंसान के तौर पर पेश किया है. उनकी खूबियों ही नहीं बल्कि खामियों पर भी बात की है.

शुरूआती जिंदगी पर बहुत रिसर्च करना पड़ा

शुरूआती दौर चीज ढूंढने थोड़ी मुश्किल थी. उनका स्कूल लाइफ.कॉलेज लाइफ.जब वह बड़े हो रहे थे.विभाजन के बाद उनकी लाइफ में क्या चल रहा था। उसको ट्रैक करना मुश्किल था. सभी को पता है कि वह म्यूजिक की तरफ बहुत ज्यादा रुझान रखते थे.पंडित जगन्नाथ तिवारी से उनकी शास्त्रीय संगीत की ट्रेनिंग हुई थी. सहगल साहब से वह मुतासिर थे. वह उनकी आवाज में गाना गाना चाहते थे. 40 और 50 के दशक की दिक्कत क्या है कि उनके साथ काम किए या उनके साथ रहे ज्यादातर लोग गुजर चुके हैं तो उस पहलू को जानने के लिए बहुत सारा रिसर्च किया गया. उनके चंद इंटरव्यूज मिले. फिल्मफेयर और दूसरी मैगजीन के अलावा अमीन सयानी के साथ एस कुमार का मुकदमा में भी उनको कटघरे में लाया गया था.उस शो का फॉर्मेट वही था.जिसमें उन्होंने अपने बचपन पर बात की है.इसके साथ ही फॅमिली वालों ने भी इस पर जानकारी दी. अब तक पब्लिक डोमेन में जो भी है,उससे ज्यादा हमारी किताब उनके बारे में बताती है.

मुकेश की वजह से सिंगिंग को दिया छोड़

सभी को यह बात पता है कि उन्हें संगीत से बहुत लगाव था. उसे वक्त सहगल साहब माटुंगा मैं रहते थे और उनके घर पर अक्सर महफिले जमती थी तो वह भी उस महफिल का हिस्सा बनते थे. एक दो फिल्मों में उन्होंने गाना भी गया है. मदन मोहन जब कंपोजर के तौर पर फिल्म आंखें से डेब्यू कर रहे थे. यह 1950 की फिल्म है.उन्होंने उस फिल्म में गाना गाया था. उसके बाद भी कुछ चंद फिल्मों में उन्होंने गाना गया था. उन्होंने अभिनय भी किया था एक फिल्म आई थी रेन बसेरा।उसमें उनका एक रोल था. उस वक्त रंजित स्टूडियो बहुत ही फेमस स्टूडियो हुआ करता था. एक दिन वहां से इनको बुलावा आया प्लेबैक सिंगिंग करने के लिए,लेकिन वहां पर उनकी बजाय किसी और को चुन लिया गया था. जिसका राज जी को बहुत ही ज्यादा बुरा लगा था. वहइस कदर आहत हो गए थे कि उन्होंने सिंगिंग छोड़ दिया. वह सिंगर जो चुन लिया गया था वह और कोई नहीं बल्कि मुकेश थे.

देवानंद ने निर्देशन का सुझाव था दिया

देश में उस वक्त पर अलग-अलग जगह पर अलग-अलग कॉफी हाउसेज बने हुए थे. वह कॉफी हाउसेस, जो टैलेंटेड लोग थे. उनका हब बनता चला गया था. उसे वक्त साउथ मुंबई में एक कॉफी हाउस हुआ करता था तो वहां पर जो गाते थे, जो लिखते थे. जो एक्टिंग करना चाहते थे या फिर करते थे उन सब का उठना बैठना था. इस कॉफी हाउस में राज जी को एक नौजवान युवक मिला था, जो उनके ही गांव के आसपास का था. वह नौजवान देवानंद थे, जो उस एक्टर बन चुके थे.राज जी और उनकी फैमिली का भी कुछ कनेक्शन था. देव साहब के एक और भाई थे. जिनका फिल्मों के साथ कुछ लेना देना नहीं था.वो वकील थे. वह खोसला परिवार के लॉयर थे. राज को देवानंद ने ही कहा था कि तुम फिल्मों के निर्देशन में क्यों नहीं किस्मत आजमाते हो. पहले असिस्टेंट के तौर पर फिल्में बनाना सीख लो और उसके बाद अपनी फिल्में बनाओ.इसके बाद देव साहब ने ही उन्हें गुरु दत्त से मिलवाया और राज जी उनके असिस्टेंट बन गए.

हॉलीवुड से ज्यादा मराठी उपन्यास से थे प्रभावित

गुरुदत्त और देव साहब दोनों उस जमाने में हॉलीवुड की फिल्में बहुत देखा करते थे ताकि सीख सके. यह राज जी में भी आया.उनकी फिल्म मुंबई का बाबू ओ हेनरी के उपन्यास पर थी.मगर मैं फिर भी इस बात को नहीं मानता कि उनकी फिल्में पश्चिम से ज्यादा प्रभावित थी.वह सबसे ज्यादा मराठी उपन्यासों से प्रभावित होते थे.उनकी फिल्म दो रास्ते मराठी उपन्यास नीलमबारी पर आधारित थी. मैं तुलसी तेरे आंगन की उपन्यास असी तुसी प्रीत पर थी. मेरा साया मराठी की एक फ़िल्म थी पाटला उससे प्रेरित थी, जिसके निर्देशक जाने-माने राजा पराँजपे थे.

हिचकॉक से नहीं फ्रैंज काफ्का के थे मुरीद

राज खोसला की तुलना अक्सर हॉलीवुड निर्देशक अल्फ्रेड हिचकॉक से की जाती है। उन्हें हिंदी सिनेमा का हिचकॉक भी कहा जाता है लेकिन वह हिचकॉक से ज्यादा फ्रैंज काफ्का से ज्यादा प्रभावित थे.निर्देशक महेश भट्ट उनके असिस्टेंट रह चुके हैं तो मैं उनसे इस बायोग्राफी के सिलसिले में बात की तो उन्होंने खुद यह बात बताई कि राज जी बहुत ज्यादा फ्रैंज से इंस्पायर थे उनकी पहली फिल्म मिलाप काफ्का के ही एक उपन्यास पर थी.

टास्क मास्टर नहीं कूल निर्देशक थे

राज जी निर्देशक के तौर पर टास्क मास्टर नहीं थे बल्कि वह बहुत ही कूल और चिल निर्देशक थे. जब तक वह काम करते थे शार्प विजन के साथ करते थे.उन्हें काम करना ही नहीं बल्कि करवाना भी आता था लेकिन चार घंटे शूटिंग होने के बाद वह पैकअप के बहाने ढूंढते थे. सेट पर कोई उनसे मिलने आ गया तो वह फिर बोल देते कि अब पैकअप कर लेते हैं फिर चाय मंगवाओ। व्हिस्की खोलो।बैठो इंजॉय करते हैं. उनके असिस्टेंट जॉन बख्शी ने उनके गुजर जाने के बाद एक मैगज़ीन में लिखा था.80 के दशक में अमेरिका में 2 दिन की छुट्टी होने लगी थी. पांच दिन का ही वर्क कल्चर था.एक दिन मैंने उन्हें यह बात बताई तो उसके बाद से खोंसला फिल्म्स में भी शनिवार और रविवार छुट्टी रहने लगी थी,

मनोज कुमार सेट छोड़कर भाग गए थे

राज की फिल्मों में गाने सिर्फ सुनने के लिए नहीं बल्कि देखने के लिए भी होते थे. वह भी कहानी को आधार देते थे. फिल्म वो कौन थी का नैना बरसे रिमझिम यह गाना सभी को याद होगा. लता जी की आवाज में गाया गया गीत है, लेकिन जब इस गाने की शूटिंग हो रही थी तो उस वक्त तक यह गाना तैयार नहीं था क्योंकि लता मंगेशकर बहुत ज्यादा मशरूफ थी इसलिए वह इसको रिकॉर्ड नहीं कर पाई थी,लेकिन गाने की शूटिंग होनी थी इसलिए राज जी ने मदन मोहन को कहा कि वह अपनी आवाज में इसके स्क्रैच गाकर भेजे. मदन मोहन के दूसरे बेटे समीर कोहली ने मुझे यह बात बताई कि सेट पर पापा की आवाज में यह गाने चलने लगा और साधना जी लिप्सिंग करने लगी. साधना जी के लिप्सिंग में एक मर्द की आवाज सुनकर मनोज कुमार बुरी तरह से डर गए। फिल्म हॉरर जॉनर की भी थी फिर क्या था वह सेट छोड़कर भागे और सभी हंसने लगे.

अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा को अलग अलग किया गया था शूट

फिल्म दोस्ताना में अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और जीनत अमान ने काम किया है ,सभी को पता है कि शत्रु जी हमेशा से लेट लतीफ रहते थे. फिल्म के गीत मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया, उसमें और भी आर्टिस्ट हैं. सभी टाइम पर पहुंच जाते थे,लेकिन शत्रु जी की टाइम पर नहीं आते थे तो राज जी ने उसका भी तोड़ निकाला। उन्होंने शत्रु जी को अलग से किया. गाने को देखते हो आपका एहसास भी नहीं होगा जिस तरह से कैमरा की प्लेसिंग हुई है एडिटिंग हुई है. सब कुछ परफेक्ट है. लगता है कि सभी को साथ में शूट किया गया है.

अमिताभ बच्चन से बात नहीं हो पायी

राज जी की जितनी भी फिल्में हैं.उनके लगभग सभी आर्टिस्ट जो भी जिंदा हैं। मैं उन सभी से बात की है। सिर्फ अमिताभ जी से बात नहीं हो पाई है. मौसमी चटर्जी ,शर्मिला टैगोर,आशा पारेख,धर्मेंद्र और मनोज कुमार तक से मेरी बात हुई है. वहीदा रहमान से भी बात हुई है.अमिताभ जी बहुत ज्यादा मशरूफ थे इसलिए उनका समय नहीं मिल पाया

विवादित लाइफ पर फोकस नहीं

राज जी की निजी जिंदगी में जो भी हालात थे. जो भी सिचुएशन थे. उनको उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से शामिल किया है. मैं तुलसी तेरे आंगन की. सनी और बहुत हद तक प्रेम कहानी जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने दर्द को परदे पर लाया है. वैसे इस बायोग्राफी में फोकस उनके काम पर ज्यादा है . उनकी लाइफ का जो विवादित पहलू है उसे पर मैं ज्यादा गया नहीं हूं. मैं सनसनी फैलाना नहीं चाहता हूं.वे पिता कैसे थे. उस पहलू उनकी खूबियां ही नहीं बल्कि उससे जुड़े खामियों को भी बताया है. वहीदा रहमान और उनके अनबन वाली बात को भी जगह दी गयी है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *