Father’s Day 2025 पर सिर्फ उपहार देना नहीं, पितरों के ऋण से मुक्ति भी है जरूरी

Father’s Day 2025: हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है. यह दिन पिता के प्रेम, संघर्ष और मार्गदर्शन को सम्मान देने का एक भावनात्मक अवसर होता है. लेकिन हमारी सनातन परंपरा में ‘पिता’ की परिभाषा केवल इस जीवन के पिता तक सीमित नहीं रहती. हमारे पूर्वज, जिन्हें पितर कहा गया है, उनके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इन्हीं से जुड़ा है पितृ ऋण, जो हर इंसान पर जन्म लेते ही लग जाता है.

पितृ ऋण क्या है?

सनातन धर्म के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति पर तीन प्रमुख ऋण होते हैं — देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण. पितृ ऋण का आशय है—माता-पिता और पूर्वजों द्वारा दिए गए जीवन, संस्कार, मूल्यों और संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी. यह केवल भौतिक सेवा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक श्रद्धा, स्मरण और उनके कल्याण हेतु किए गए कर्मों से ही पूर्ण होता है.

पितृ ऋण चुकाने के आध्यात्मिक उपाय

श्राद्ध और तर्पण

पितृ पक्ष या विशेष तिथियों पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करना पूर्वजों को संतोष और शांति देता है. यह उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महत्वपूर्ण माध्यम है.

सेवा और दान

गाय, ब्राह्मण और जरूरतमंदों की सेवा करना पितरों को समर्पित पुण्य कर्म माने जाते हैं. ब्राह्मण भोज, अन्नदान, वस्त्रदान, या गौसेवा के रूप में किया गया दान पितृ ऋण चुकाने में सहायक होता है.

पूर्वजों की स्मृति में कर्म

फादर्स डे के दिन अपने पिता या पूर्वजों की प्रिय गतिविधियों को अपनाना, जैसे कोई धार्मिक अनुष्ठान, सामाजिक सेवा या दान, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है.

जाप, ध्यान और मौन

‘ॐ पितृभ्यः नमः’, ‘ॐ नमः शिवाय’ जैसे मंत्रों का जाप कर पितरों की आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करें. ध्यान, मौन व्रत और आत्मिक साधना भी अत्यंत प्रभावी उपाय हैं.

जल और वृक्ष दान

पितरों की स्मृति में पेड़ लगाना, जल दान करना या कुएं/प्याऊ की व्यवस्था करना भी अत्यंत पुण्यदायी माना गया है.

फादर्स डे आधुनिक संस्कृति का हिस्सा जरूर है, लेकिन यह हमें आत्मचिंतन का अवसर भी देता है—कि जिन पूर्वजों की वजह से हम हैं, उनके ऋण को कैसे चुकाया जाए. पितृ ऋण की भावना हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखती है और जीवन को आत्मिक दिशा देती है.

पितृ पक्ष कब से शुरूं

वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 7 सितंबर की रात 1 बजकर 41 मिनट पर होगा और यह तिथि उसी दिन रात 11 बजकर 38 मिनट तक रहेगी. इस दिन से पितृ पक्ष की शुरुआत मानी जाएगी, जो 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या के साथ समाप्त होंगे.

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