विज्ञान के अद्भुत चमत्कार

विज्ञान के अद्भुत चमत्कार

मोटे काँच के गिलास में गर्म चाय डालने पर गिलास टूट जाता है किन्तु पतले काँच के गिलास में ऐसा नहीं होता, क्यों ?

उत्तर – साधारणत: कोई भी ठोस वस्तु उष्मा पाकर फैलती है क्योंकि उष्मा से पदार्थ के अणुओं को परस्पर बाँधकर रखने वाले सहयोजक बंध ढीले पड़ जाते हैं। जब हम मोटे काँच के गिलास में गर्म चाय डालते हैं तो गिलास की भीतरी सतह गर्म चाय से उष्मा पाकर शीघ्रता से फैलने का प्रयास करती है और बाहरी सतह जिसका तापमान वायुमण्डलीय तापमान के बराबर होता है । उसका भीतरी सतह से दूर होने के कारण वहाँ हो रहे तापीय परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । ऐसा होने से वह अपनी स्थिति का आकार यथावत् बनाए रखता है परन्तु उधर भीतरी सतह से उष्मीय परिवर्तन के कारण हो रहे फैलाव से बाह्य सतह चटक जाती है और गिलास टूट जाता है । इसके विपरीत पतले काँच के गिलास की बाह्य और भीतरी दोनों सतहों में समान तापीय परिवर्तन होता है, जिससे गिलास नहीं टूटता ।

पानी अंगुली में चिपक जाता है, लेकिन पारा नहीं, क्यों ? 

उत्तर– किसी वस्तु को चिपकाने के लिए जो बल प्रयुक्त होता है वह आसंजन व संसजन बल है । आसंजय बल वह बल है जो द्रव और अँगुली के मध्य लगता है । ससंजय बल वह बल है जो द्रव के अणुओं के मध्य लगता है । यही बल द्रव के पृष्ठ तनाव की क्रिया को स्पष्ट करता है । यदि आसंजय बल, ससंजय बल की अपेक्षा अधिक हो, तभी द्रव किसी वस्तु से चिपकता है। पानी में आसंजन बल ससंजय बल की अपेक्षा अधिक होता है जिससे यह हाथ को गीला करता है । इसके विपरीत उच्च पृष्ठ तनाव के कारण पारा हाथ को गीला नहीं करता । दूसरे शब्दों में पारे का ससंजय बल आसंजन बल की अपेक्षा अधिक होती है ।

घड़े में पानी ठण्ड हो जाती है, जबकि अन्य बर्तनों में नहीं, ऐया क्यों ?

उत्तर – घड़े का ठण्डा होना वाष्पीकरण की क्रिया पर आधारित है । मिट्टी के बने घड़े में बाहरी पृष्ठ पर असंख्य छिद्र होते हैं। जिन पर अन्दर का जल रिस-रिसकर इकट्ठा होता है। वायुमण्डल ही हवा जब इनसे टकराती है तो वाष्पीकरण के लिए आवश्यक गुप्त उष्मा अन्दर के जल से ले लेती है जिससे घड़े के अन्दर का पानी ठण्डा हो जाता है । इसके विपरित अन्य बर्तनों की सतह पर छिद्र नहीं होते अतः पानी का वाष्पीकरण नहीं हो पाता जिससे पानी ठण्डा नहीं होता ।

रात में पेड़ के नीचे क्यों नहीं सोना चाहिए ?

उत्तर– पौधे सूर्य के प्रकाश से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। किन्तु रात्रि के समय पेड़-पौधे ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं । इस कारण पेड़ के नीचे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। अतः रात्रि के समय पेड़ के नीचे नहीं सोना चाहिए ।

नहाने के बाद हमें ठण्ड क्यों लगती है ?

उत्तर – जब हम नहाते हैं तो हमें ताजगी महसूस होती है। नहाने के बाद हवा लगने पर हमें ठण्ड अधिक महसूस होती है । क्योंकि पानी का वाष्पीकरण तो वैसे भी होता ही है पर हवा लगने पर वाष्पीकरण की क्रिया तेजी से होने लगती है और नतीजा यह होता है कि इस क्रिया के लिए शरीर द्वारा ऊष्मा खर्च कर दिए जाने के कारण शरीर का तापक्रम गिरता है और हमें ठण्ड महसूस होने लगती है ।

नाखून काटने में दर्द क्यों नहीं होता ?

उत्तर – नाखून मृत कोशिकाओं का बना होता है। नाखून में रुधिर कोशिकाएँ नहीं पाई जाती हैं । अतः इसे काटने पर दर्द नहीं होता ।

एक विशाल जहाज पानी में तैरता रहता है किन्तु ब्लेड पानी में डूब जाता है, क्यों ?

उत्तर – जहाज लोहे की चादर से इस प्रकार बनाया जाता है कि इसके अन्दर काफी खाली जगह होती है । इस कारण उसके थोड़े से ही डूबे भाग द्वारा हटाए गए पानी का भार जहाज यात्रियों और सामान आदि के भार के बराबर हो जाता है । अतः जहाज पानी पर तैरता है । इसके विपरीत ब्लेड द्वारा हटाए गए पानी का भार ब्लेड के भार से कम होता है । अतः ब्लेड पानी में डूब जाता है ।

मनुष्य की याद्दाश्त क्यों चली जाती है ?

उत्तर – बढ़ती हुई उम्र के साथ-साथ जब स्नायु कोशिकाएँ जिनसे मस्तिष्क का निर्माण होता है, धीरे-धीरे मृत होने लगती हैं जिससे मनुष्य की कार्यक्षमता कम होने लगती है । जिस आयु पर यह प्रक्रिया प्रारंभ होती है वह मनुष्यों में अलग-अलग होती है । एक वयस्क व्यक्ति में केवल उतनी की स्नायु कोशिकाएँ होती हैं जितनी उसके जन्म के समय होती है । ये कोशिकाएँ शरीर की वृद्धि के साथ गुणित नहीं होती जैसाकि अस्थि या त्वचा कोशिकाओं में होता है । वास्तव में जैसे-जैसे कोई व्यक्ति आयु में वृद्धि करता हैं तो उसमें स्नायु कोशिकाएँ धीरे-धीरे कम होने लगती है। क्योंकि ये कोशिकाएँ विभाजन नहीं करती अतः मृत कोशिकाओं के स्थान पर नई कोशिकाएँ नहीं बनती बल्कि उनका स्थान ग्लायल कोशिकाएँ ले लेती हैं । सत्तर या अस्सी वर्ष की आयु में लगभग एक चौथाई स्नायु कोशिकाएँ समाप्त हो जाती हैं। यही कारण है कि आयू वृद्धि के साथ-साथ मनुष्य की याद्दाश्त कम हो जाती है। कभी-कभी दुर्घटनावश मनुष्य की स्नायु कोशिकाएँ एकाएक निष्क्रिय हो जाती है, जिससे मनुष्य की याद्दाश्त चली जाती है ।

हम लोग जो बोलते हैं या गीत-संगीत सुनते हैं वह ध्वनि सुनने के पश्चात विलुप्त क्यों हो जाती है ? 

उत्तर – ध्वनि कुछ और नहीं बल्कि तरंगें होती हैं । तरंग उष्मा संवाहक होते हैं जो ऊर्जा को वे जिस माध्यम में गतिमान है उस माध्यम में निरन्तर ट्रांसफर करते हैं । अतः जैसे-जैसे तरंगे आगे बढ़ती हैं, ऊर्जा का क्षय हो जाता है और अन्ततः वह अपनी सारी ऊर्जा स्थानान्तरित कर देती है। इसलिए ध्वनि विलुप्त हो जाती है ।

कुछ पर्वतारोहियों के पहाड़ पर चढ़ते समय उनके नाक से खून क्यों निकलता है ?

उत्तर – द्रव हमेशा अधिक दबाव वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर गतिमान होता है । जैसे-जैसे हम समुद्र तल से ऊँचाई की ओर बढ़ते हैं, वायुमंडलीय दाब कम होता जाता है । पर्वतारोही इस बदली परिस्थिति से तारतम्य नहीं बिठा पाता, इसलिए उनकी नाक से खून निकलने लगता है।

सूर्य का आकार उदय एवं अस्त के समय सामान्य आकार से बहुत बड़ा एवं लाल क्यों दिखाई देता है ?

उत्तर – यह प्रकाश के विकिरण सिद्धांत की वजह से होता है। क्षितिज के समीप वायुमंडल से होकर गुजरनेवाली सूर्य की सफेद रोशनी में से नीली किरणें हवा के कणों द्वारा विकिरण होती है। जबकि लाल किरणें सबसे कम विकिरण होती हैं, इसलिए सूर्य लाल नजर आता है। सूर्य के आकार में परिवर्तन वायुमण्डलीय दबाव की वजह से आता है। चूँकि ऊँचाई घटने पर परिवर्तन की मात्रा बढ़ती है, इसलिए उर्ध्वतल छोटा हो जाता है जबकि क्षितिज जल बढ़ जाता है । इसलिए सूर्य क्षितिज के समीप बड़ा नजर आता है। अर्थात् सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य दिखाई ।

बर्फ का टुकड़ा पारदर्शी होता है पर इसे पीसने पर इसका बुरादा” अपारदर्शी हो जाता है, ऐसा क्यों ? 

उत्तर – जब सफेद रोशनी बर्फ के टुकड़े पर पड़ती है तो उसके लाखों छोटे कणों द्वारा वाष्प परावर्तित हो जाती है । चूँकि बर्फ के बुरादे द्वारा प्रकाश का अवशोषण नहीं होता इसलिए वह अपारदर्शी होता है ।
रेल की सिग्नल बत्ती खतरे की जगह पर प्रायः लाल रंग का ही प्रयोग किया जाता है, अन्य रंगों का नहीं, ऐसा क्यों ?
उत्तर – सभी रंगों की तुलना में लाल रंग का तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होता है । जिसकी वजह से वह दूर से ही पहचाना जा सकता है । इसलिए खतरों से जल्दी आगाह करने के लिए खतरों के सिग्नल लाल रंग के होते हैं ।

बर्फ का टुकड़ा पानी पर तैरता है, क्यों ?

उत्तर – जब पानी बर्फ बनता है तो आयतन में बढ़ जाता है तथा बर्फ का घनत्व कम हो जाता है । अत: बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होने के कारण वह पानी पर तैरता है ।

बल्ब के प्रकाश के रंग एवं टयूब लाइट के प्रकाश के रंग में अन्तर क्यों होता है ?

उत्तर – प्रकाश का रंग उसके स्रोत पर निर्भर करता है । बल्ब का प्रकाश उसमें स्थित टंगस्टन फिलामेन्ट की वजह से मिलता है । जबकि ट्यूब लाईट के प्रकाश का स्रोत उसमें भरी गैस से होती है ।

दौड़ने पर हमें गर्मी अनुभव होने लगती है तथा साथ ही हम तेजी से श्वसन लेते हैं, क्यों ?

उत्तर – दोड़ने पर हमें अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है । अतः तेजी से श्वसन करते हैं तथा अधिक कार्य करना पड़ता है। जिससे अधिक उष्मा उत्पन्न होती है तथा गर्मी अनुभव होती है ।

लालटेन की बत्ती में मिट्टी का तेल बराबर चढ़ता रहता है, क्यों ?

उत्तर– लालटेन की बत्ती में मिट्टी की बत्ती सरन्ध्र होती है । जब इसे तेल में डूबोते हैं तो तेल इसके महीन छेदों में से होकर चारों ओर फैल जाता है और ऊपर तक पहुँच जाता है ।

खेतों में आवश्यकता से अधिक उर्वरक डालने पर पौधे क्यों मुरझाने लगते हैं ?

उत्तर – जड़ों के मूल रोमों में उपस्थित जल खनिज लवणों के घोल की अपेक्षा अधिक तनु होता है । अतः परासरण द्वारा जल भूमि से मूल रोमों में प्रवेश करता है । खेतों से अधिक उर्वरकों का प्रयोग करने से भूमि का विलयन मूल रोमों की अपेक्षा अधिक गाढ़ा हो जाएगा । परिणाम स्वरूप वह परासरण द्वारा मूल रोमों से जल का भूमि की ओर जाना शुरू हो जाएगा और पौधा मुरझाने लगेगा ।

चमगाद्ड रात में आसानी से कैसे उड़ सकते हैं ?

उत्तर – चमगादड़ों से पराश्रव्य तरंगें निकलती हैं, जो कि बाधा से टकराकर पुनः उनके पास पहुँच जाती हैं और उन्हें बाधा का ज्ञान हो जाता है । अतः वे बाधा से बचकर रात्रि में भी आसानी से उड़ लेते हैं ।

बादलों से घिरी रातें स्वच्छ तारों से भरी रातों की अपेक्षा अधिक गर्म होती हैं, क्यों ?

उत्तर – पृथ्वी अपने धरातल की उष्मा विकिरण द्वारा खोती है परन्तु जब बादल होते हैं तो यह उष्मा बादलों द्वारा परावर्तित होकर पुनः वापस पृथ्वी पर लौट आती है जिससे राते गर्म रहती हैं । जब आकाश स्वच्छ रहता है तो पृथ्वी के धरातल की उष्मा आकाश में विलीन हो जाती है और रातें अपेक्षाकृत कम गर्म रहती हैं ।

गिरगिट अपना रंग कैसे बदल लेता है ?

उत्तर – सरीसृप वर्ग के कुछ जन्तु जैसे गिरगिट आदि जिस स्थान पर बैठते हैं उसी स्थान के रंग के अनुसार अपना रंग भी बदल लेते हैं ताकि शत्रु उनको आसानी से न देख पाएं । इन प्राणियों की त्वचा में कुछ विशेष प्रकार की रंजक कोशिकाएँ अथवा मैलेनोफोर होती हैं जो ताप बढ़ने तथा घटने के साथ-साथ सिकुड़ती और फैलती हैं । ये कोशिकाएँ इनके शरीर में स्रावित होने वाले कुछ हार्मोनों द्वारा उत्तेजित होकर रंग बदलती हैं । ये हार्मोन इण्टरमोडिन एसीटिल कोलीन तथा एड्रीनेलिन है । त्वचा की ऊपरी सतह की कोशिकाएँ पीली, उसके नीचे गहरी भूरी तथा काले रंग की और सबसे नीचे सफेद रंग की होती हैं । ताप कम होने से इनका रंग गहरा और ताप बढ़ने से रंग हल्का होने लगता है । रात्रि में विचरण करने वाले सरीसृपों में विपरीत प्रतिक्रिया होती है । लैंगिक तथा भावनात्मक अवस्था का भी इनके रंग पर प्रभाव पड़ता है। पेड़ों पर चढ़नेवाले या उन पर वास करने वाले सरीसृपों में रंग बदलने की प्रवृत्ति अधिक होती है । यह हरा, पीला, भूरा तथा स्टेली रंग बदलते हैं ।

कुत्ता ही जीभ से क्यों पानी पीता है ? घोड़ा, गाय, जैसे जानवर ऐसा क्यों नहीं कर पाते ?

उत्तर– हम जानते हैं कि हजारों साल पहले के प्राणियों और आज के प्राणियों में कई अन्तर पाए जाते हैं पहले सभी प्राणी अपने-अपने ढंग से जमीन या पानी पर रहते थे। जिसको जो भोजन मिला, वह खा लिया । जैसे तैसे एक दूसरे से रक्षा करके जिन्दा रहते थे । पर धीरे-धीरे ये बातें बदलने लगीं ।
बदलते-बदलते कुछ प्राणी मांसाहारी, शिकारी जानवर और कुछ शाकाहारी पालतू जानवर बन गए । इन्हीं मांसाहारी शिकारी जानवरों में से कुत्ता भी एक है जो जीभ से पानी को मुंह में उछालकर पीता है । इसका कारण यह है कि ऐसे जानवरों के जबड़े चौड़े और चबाने में आसानी से हो जाता है। हम लोग होंठों की मदद से बोलने, पीने आदि काम करते हैं । हमारे होंठ मोटे और इतने बड़े होते हैं कि हम उन्हें मोड़कर नली जैसा बना लेते हैं । इसी नली जैसी स्थिति में ही हम पानी को अन्दर खींच पाते हैं। अत: जिन जानवरों के होंठ पतले और जबड़े चौड़े होते हैं वे हमारी तरह होंठो की मदद से पानी नहीं पी सकते । इसलिए मांसाहारी शिकारी जानवर जीभ से पानी को मुँह में उछालकर पीते हैं ।

जंग क्या होती है ? लोहे पर ही जंग क्यों लगती है, अन्य धतुओं पर क्यों नहीं ?

उत्तर – लोहे की सतह पर भूरे- लाल रंग की परत जम जाती है । यह धीरे-धीरे अन्दर तक जाती है और लोहे को कमजोर बनाती है। इसे ही जंग कहते हैं । यह जंग हवा में उपस्थित ऑक्सीजन द्वारा लोहे से क्रिया करने पर बनती है । इस क्रिया के लिए नमी का होना आवश्यक है । नमी चाहे उस पर पानी गिरने से आए या फिर हवा में उपस्थित वाष्प से । इस रसायनिक क्रिया में एक नया पदार्थ बनता है जिसके गुण लोहे एवं हवा दोनों से ही भिन्न होते हैं । लोहे में सामान्य तौर पर उपस्थित कई अशुद्धियाँ जंग लगने की प्रक्रिया को तेजकर देती है। लोहे का कुछ अन्य धातुओं के साथ विशेष अनुपात में मिश्रण बनाने से जग लगना कम या लगभग बंद किया जा सकता में है | ऐसा मिश्रण बनाने के लिए कई विशिष्ट प्रक्रियाएँ करनी पड़ती हैं। ऐसी प्रक्रियाओं में से एक है तुओं को पिघलाना । ऐसे मिश्रण का एक उदाहरण है- स्टनलैंस स्टील ।
अन्य धातुएँ भी हवा में उपस्थित गैसों एवं वाष्प से क्रिया करती हैं और नए पदार्थ बना लेती हैं । उदाहरण के लिए ताँबें पर एक हरी परत जम जाती है जो वाष्प एवं कार्बन डाइऑक्साइड के तांबे के साथ क्रिया करने से बनती है । हाँ, कई धातुओं पर वातावरण का लगभग कोई प्रभाव नहीं होता । अन्य धातुओं की हवा या वाष्प से होने वाली क्रिया से बनने वाले पदार्थ को जंग नहीं कहते हैं । लेकिन धातुओं की नम हवा से क्रिया करने और लोहे पर जंग लगने में सिद्धांत रूप में बहुत अन्तर नहीं है ।

आँसू और पसीने का स्वाद नमकीन क्यों होता है ?

उत्तर – पसीने और आँसुओं में मौजूद सोडियम क्लोराइड के कारण ही इनका स्वाद नमकीन होता है । आँसू और पसीना दोनों लवण के साथ-साथ खनिज तथा कुछ अन्य रसायन होते हैं । जब लवणों की मात्रा शरीर के लिए आवश्यक मात्रा से ज्यादा होती है तब इन्हें बारह निकाल दिया जाता है । मुख्य रूप से तो यह काम गुर्दे करते हैं लेकिन लवणों की कुछ मात्रा पसीने के साथ भी निकाल दी जाती है ।

हीरा चमकीला क्यों होता है

उत्तर – हीरे की चमक का प्रमुख कारण उसका पारदर्शी होना तथा उसके अपवर्तनांक का बहुत अधिक होना है । लाल प्रकाश के लिए इसका अपवर्तनांक 2.407 है और बैंगनी प्रकाश के लिए 2.465 होता है । प्रकाश की किरणें इसके अन्दर जाने के बाद बाहर नहीं आती बल्कि अन्दर ही परिवर्तित होती रहती है । इस सम्पूर्ण आंतरिक अपवर्तन के कारण ही हीरा चमकीला दिखाई देता है ।

जब सैनिक टुकड़ियाँ किसी पुल से गुजरती हैं तो उन्हें कदम मिलाकर चलने के लिए क्यों मना किया जाता है ?

उत्तर– किसी ध्वनि स्रोत द्वारा उत्पन्न ध्वनि तरंग कभी-कभी अन्य निकटवर्ती वस्तु में भी तीव्र कंपन उत्पन्न कर देती हैं । यह केवल तभी संभव है जब निकटवर्ती वस्तु की ध्वनि तरंगों की प्राकृतिक आवत्ति के समान हो । इस सिद्धांत को अनुनाद कहते हैं, यही कारण है कि जब कोई सैनिक दल किसी डोलन पुल से गुजरता है तो सैनिकों को कदम से कदम मिलाकर न चलने का आदेश दिया जाता है अन्यथा उनके कदमों की आवृत्ति पुल की प्राकृतिक आवृत्ति के समतुल्य हो जाने की संभावना रहती है जिससे पुल में तीव्र और खतरनाक अनुनाद कम्पन्न उत्पन्न हो सकते हैं और पुल टूट भी सकता है ।

धूप में कुछ देर बैठने के बाद आलस क्यों आने लगता है ?

उत्तर – सर्दी में सूर्य की गरमाहट वैसे बहुत आरामदेह होती है विशेषकर सर्दियों में खाना खाने के बाद हर कोई धूप में थोड़ी देर लेटना और आराम करना चाहता है ।
वैसे खाने के बाद खून को खाना पचाने के काम में लगा दिया जाता है और दिमाग को भेजे जाने वाले रक्त भी इस काम में लग जाता है, जिसकी वजह से आलस आता है । यदि कोई व्यक्ति चिलचिलाती धूप में थोड़ी देर खड़ा रहे तो उसके शरीर से सारे आवश्यक पदार्थ पसीने के रूप में बाहर निकल जायेंगे और वह व्यक्ति निढाल होकर गिर जाएगा ।

गर्म दूध या चाय में कुछ देर के बाद पपड़ी क्यों जम जाती है ?

उत्तर – दूध या चाय में जमने वाली परत में दूध में विद्यमान एल्बुमिन नामक प्रोटीन के कारण होता है । जैसे सभी प्रोटीन स्वभावतः गर्म होने पर थक्का बनाते हैं । ठीक वैसे ही एल्बुमिन भी करता है । यही थक्काकृत एल्बुमिन गर्म दूध या चाय पर जमकर अन्य अवयवों से हल्का होने के कारण दूध की ऊपरी परत दूध को तेजी से घुमाने पर टूटकर दूध में मिल जाती है ।

अण्डा उबलने पर ठोस क्यों हो जाता है ?

उत्तर – अण्डे का भीतरी भाग एक विशेष प्रकार के प्रोटीन का बना होता है जो पदार्थ को सामान्य ताप पर तरल बनाए रखता है। गर्म करने पर रासायनिक क्रिया के तहत यह प्रोटीन विखंडित होकर ठोस अवस्था धारण कर लेता है । वास्तव में यह प्रोटीन पानी में घुलनशील होता है और गर्म होने पर थक्काकरण की क्रिया से यह जम जाता है। वैसे अण्डे की जर्दी में अपेक्षाकृत अधिक वसा होती है जो इसके गर्म होने पर नर्म बनाए रखती है।

गर्मियों में कुछ लोगों के नाक से खून क्यों गिरने लगता है ?

उत्तर– नाक के अन्दर की सतह और दोनों नाक के छिद्रों के बीच की दीवार नेसल सेप्टग एक पतली और नम झिल्ली श्लेषम या म्यूकस मेम्ब्रेन से ढकी होती है। इसकी तह के पास कई पतली-पतली रक्तशिराएँ रक्त ले जाती हैं । इस झिल्ली के गर्मी में सूखने के कारण हल्के झटके, जोर से छींक या किसी भी अन्य कारण से रक्त शिराएँ टूट जाती हैं और नाक से खून गिरने लगता है ।

यदि बंद कमरे में फ्रिज को चालू करके फ्रिज का दरवाजा खोल दिया जाए तो कमरा गर्म होता है । क्यों और कैसे ?

उत्तर– वास्तव में बंद कमरे में चालू फ्रिज का दरवाजा खोलने से ताप में कोई विशेष अन्तर नहीं आता । इसका कारण बहुत ही साधारण है । फ्रिज के पिछले भाग में एक जालीनुमा यंत्र लगा होता है जो उष्मा विकिरण का कार्य करता है । फ्रिज के खुले दरवाजे से जहाँ से हमें ठंडक मिलती है। फ्रिज के पिछले भाग से ऊष्मा भी उसी अनुपात में उत्सर्जित होती रहती है जब फ्रिज अपने खुले दरवाजे से कमरे में ठंडक लेता है तो उसी अनुपात में फ्रिज का पिछला भाग उष्मा कमरे में छोड़ता है यहाँ पर उम्मा का वही सिद्धांत लागू होता है जिसके अनुसार किसी वस्तु के द्वारा अवशोषित उष्मा की मात्रा के बराबर होता है। अत: कमरा गर्म नहीं होगा बल्कि उसका ताप एक सा बना रहता है।

प्लास्टिक सर्जरी क्या है ?

उत्तर – प्लास्टिक सर्जरी शल्य चिकित्सा की वह शाखा है जिसका उपयोग सामान्यतः शारिक कुरूपता दूर करने में किया जाता है। शरीर के क्षतिग्रस्त ऊतकों को हटाकर नए ऊतक रोपित किए जाते हैं। इसके द्वारा विकृत चेहरे को तंत्रिकाओं ऊतकों आदि की मरम्मत और उनका प्रतिस्थापन किया जाता है

मकड़ी जाल कैसे बनाती है और इस हेतु धगा कहाँ से प्राप्त करती है ?

उत्तर– मकड़ी अपना जाल बुनने के लिए एक प्रकार का रेशमी धागा अपने शरीर से निकालती है जिसे ‘स्पाइडर सिल्क’ कहते हैं। यह रेशमी सदृश्य धागा प्रोटीन से बना होता है और इसका निर्माण मकड़ी की रेशम ग्रंथियों में होता है । मकड़ी वर्ग में सात प्रकार की रेशम ग्रंथियाँ होती हैं। सभी मकड़ियों में कम से कम तीन प्रकार की ग्रंथियाँ तो होती हैं। प्रत्येक प्रकार की ग्रंथि में अलग-अलग प्रकार का रेशम होता है। कुछ ग्रंथियों से तरल रेशम निकलता है जो मकड़ी के शरीर से बाहर आने पर सूख जाता है और कुछ में चिपचिपा रेशम बनता है जो चिपचिपा ही बना रहता है। स्पाइडर रेशम पानी में नहीं घुलता और ज्ञात प्राकृतिक रेशों में यह सर्वाधिक मजबूत रेशा है।
मकड़ी के शरीर के अन्दर स्पिनरेट है जो रेशा ही बुनते हैं, हाथ की अगुलियों की भांति कार्य करते हैं। मकड़ी एक स्पिनरेट को अन्दर बाहर खींच सकती है। यहाँ तक कि सभी स्पिनरेटों को एक साथ बाहर ठेल भी सकती है । अलग-अलग स्पिनरेटो की सहायता से मकड़ी विभिन्न रेशम ग्रंथियों से निकले रेशम को मिलाकर एक बहुत पतला या मोटा और चौड़ी पट्टी वाला रेशम बना सकती है ।
कुछ मकड़ियाँ तो ऐसा चिपचिपा रेखा बनाती हैं जो मोतियों की माला जैसा होता है। कुछ जाति की मकड़ियों में रेशम बुनने के लिए विशेष प्रकार का अंग होता है जिसे ‘क्राइजेलम’ कहते हैं। यह एक अण्डाकार चपटी प्लेट होती है जो स्पिनरेटों के ऊपर लगी होती है। इस प्लेट पर सैकड़ों स्पिनिंग ट्यूबे लगती होती हैं जो चिपचिपे रेशम का अत्याधिक बारीक रेशा बनाती हैं।

चन्द्रमा घटता, बढ़ता है तथा किसी दिन छिप भी जाता है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – वास्तव में चन्द्रमा घटता, बढ़ता या छिपता नहीं है। हमे पृथ्वी से देखने पर ही ऐसा प्रतीत होता है। चन्द्रमा स्वयं प्रकाशमान उपग्रह नहीं है परन्तु सूर्य से प्रकाशित होकर वह प्रकाश को पृथ्वी पर परावर्तित करता है। है सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी की परस्पर बदलती हुई स्थिति के कारण प्रकाशित चन्द्रमा का कुछ भाग ही पृथ्वी पर परावर्तित हो पाता है। चन्द्रमा का घटना और बढ़ना भी इस कारण से ही हमें प्रतीत होता है ।
जब चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है तब हम प्रकाशित चन्द्रमा के पूरे भाग को एक साथ नहीं देख पाते । जब चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य होता है तब चन्द्रमा का प्रकाशित भाग पृथ्वी के दूसरी तरफ होता है । इस स्थिति में चन्द्रमा पृथ्वी से बिलकुल दिखाई नहीं देता। इसे हम अमावस्या कहते हैं। धीरे-धीरे चन्द्रमा का प्रकाशित भाग दिखाई देना आरम्भ होता है और अमावस्या के 14 या 15 दिन पश्चात पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य के मध्य में आ जाती है । अब हम चन्द्रमा के पूरे प्रकाशित भाग को देख सकते हैं । इसे हम पूर्णिमा कहते हैं ।

बन्दूक की गोली लक्ष्य से टकराने पर गर्म क्यों हो जाती है ?

उत्तर – बन्दूक की गोली जब लक्ष्य से टकराती है तो टकराने से पूर्व उसका वेग अधिक होने से उसमें अधिक गतिज ऊर्जा होती है किन्तु लक्ष्य से टकराते ही उसका वेग शून्य हो जाता है। जिससे गतिज ऊर्जा शून्य . हो जाती है । इस कारण बन्दूक की गोली लक्ष्य से टकराने पर गर्म हो जाती है ।

साइकिल ट्यूब फट जाने के तुरन्त बाद स्पर्श करने पर शीतल क्यों लगती है ?

उत्तर – साइकिल ट्यूब में अधिक दाव पर हवा भरी होती है । जब ट्यूब की हवा का उद्घोष्म प्रसार होता है तो हवा द्वारा कार्य किया जाता है जिससे उसकी आन्तरिक ऊर्जा घटती है तथा हवा का ताप कम हो जाता है । अतः ट्यूब के फटने के तुरन्त बाद उसे छूने पर वह ठण्डी लगती है ।

जो कम्बल हमें जाड़ों में गर्म रखता है । वही बर्फ को पिघलने से भी बचाता है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – कम्बल ऊन का बना होता है । इसके रेशों के बीच वायु भर जाती है । वायु उष्मा का कुचालक होती है जिससे हमारे शरीर की ऊष्मा बाहर नहीं निकलने पाती है और कम्बल हमें गर्म रखता है । कम्बल के रेशों के बीच की वायु कुचालक होने के कारण वायुमण्डलीय उष्मा को अन्दर नहीं जाने देती है और बर्फ को पिघलने से बचाती है ।

यदि किसी पीतल की छड़ को कागज में लपेटकर किसी आग की ज्वाला में रखा जाए तो कागज नहीं झुलसता यदि कागज किसी लकड़ी की छड़ पर लपेटा जाये तो वह तेजी से झुलस जाता है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – पीतल की छड़ उष्मा की सुचालक होती है, अतः कागज को दी गई ऊष्मा शीघ्रता से पीतल की छड़ ले लेती है तथा कागज का ताप इतना नहीं बढ़ पाता कि वह झुलस सके ।
जब लकड़ी की छड़ जो उष्मा कुचालक है, पर लिपटे कागज को उष्मा दी जाती है तो कागज से लकड़ी `ऊष्मा शीघ्रता से नहीं ले पाती है तथा कागज का ताप इतना बढ़ जाता है कि वह झुलस जाता है ।

क्या कारण है कि गर्मियों में कुओं का पानी ठण्डा तथा सर्दियों में गरम रहता है ?

उत्तर– पृथ्वी उष्मा की कुचालक होती है । इसलिए गर्मियों में वायुमंडलीय उष्मा पृथ्वी के अन्दर नहीं जा पाती और पृथ्वी अन्दर से ठण्डी बनी रहती है । जिससे कुएँ का पानी ठण्डा रहता है । इसी प्रकार ठण्ड के मौसम में पृथ्वी की उष्मा बाहर नहीं आ पाती है और अन्दर की मिट्टी गर्म बनी रहती है । जिससे कुओं का पानी गर्म बना रहता है ।

जब हम अपने हाथों को आपस में रगड़ते हैं तो गर्म हो जाते हैं परन्तु केवल एक अधिकतम ताप तक, क्यों ?

उत्तर– जब हम अपने हाथों को आपस में रगड़ते हैं तो रगड़ने में किया गया कार्य उष्मा में बदलता है परन्तु कुछ देर बाद जब हाथों का ताप एक निश्चित ताप के बराबर हो जाता है तो जितनी उष्मा हाथों को रगड़ने से मिलती है, उतनी ही उष्मा बाहर वायुमण्डल में चली जाती है तथा ताप और अधिक नहीं बढ़ पाता है ।

तलघर में दिन के समय ठण्डा और अच्छा लगता है जबकि रात के समय बेचैनी होने लगती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – चूँकि तलघर में सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पाती हैं। इसलिए दिन के समय तलघर अधिक गर्म नहीं हो पाता, जिससे दिन में गर्मी नहीं लगती है । रात्रि के समय पृथ्वी की उष्णता तलघर के वायुमंडल को अधिक समय तक उतना ही गर्म बनाए रखती हैं इसलिए रात्रि को बाहर की अपेक्षा तलघर में बेचैनी महसूस होती है।

कान के पास खाली बर्तन जैसे लोटा आदि रखने पर गुनगुन की ध्वनि आती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर– वायु के कण जब बर्तन के टकराते हैं तो वह कम्पन करता है। उसके कम्पन करने से वायु स्तम्भ के कण भी कम्पन करते हैं । यह कण ही गुनगुन की ध्वनि पैदा करते हैं ।

नल के नीचे रखे घड़े भरने का अनुमान उसकी आवाज से लग जाता है, स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर– नल के नीचे रखे घड़े में जैसे-जैसे पानी भरता है, वायु स्तम्भ की लम्बाई कम होती जाती है । यह वायु स्तम्भ एक बन्द आर्गन पाइप की तरह कार्य करता है । एक विशेष स्थिति में वायु स्तम्भ के कम्पन की आवृत्ति अधिक होती जाती है । आवृत्ति के बढ़ने से ध्वनि तीव्र होती जाती है । इस ध्वनि की तीव्रता से घड़े के भरने का अनुमान लग जाता है ।

किसी वस्तु का ताप धीरे-धीरे बढ़ाने पर पहले लाल रंग की तरंगें दैर्ध्य क्यों दिखाई देती हैं ?

उत्तर – दृश्य क्षेत्र में लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है । जब किसी वस्तु को गर्म करते हैं तो यह बड़ी तरंग दैर्ध्य की विकिरण तरंग दैर्ध्य उत्सर्जित करती है । इसलिए सबसे पहले वस्तुएँ गर्म करने पर लाल रंग की दिखाई देती हैं ।

‘डीजल इंजन की दक्षता ऑटो इंजन से अधिक होती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर– डीजल इंजन की दक्षता ऑटो इंजन से अधिक हो सकती है क्योंकि डीजल इंजन में केवल वायु ही संपीड़ित होती है अत: उद्धेष्म संपीडितं निष्पत्ति अधिक हो सकती है। क्योंकि उसमें विस्फोट होने का कोई खतरा नहीं रहता है । ऑटो इंजन में पेट्रोल वाष्प मिश्रित वायु संपीड़ित होती है । अतः सम्पीड़ित निष्पत्ति अधिक नहीं हो सकती है अन्यथा स्थायी होने से पहले ही पेट्रोल विस्फोटित हो जायेगा ।

जब नीचे उड़ता हुआ वायुयान ऊपर से गुजरता है तो कभी-कभी टी. वी. स्क्रीन पर चित्र कुछ हिलते हुए दिखाई पड़ते हैं, ऐसा क्यों ?

उत्तर– नीचे उड़ता हुआ वायुयान टी. वी. सिग्नल को परावर्तित कर देता है । सीधे आने वाले सिग्नल और परावर्तित सिग्नल में व्यतिकरण के कारण टी. वी. स्क्रीन पर चित्र कुछ हिलते हुए दिखाई देते हैं ।

साबुन के बुलबुले की पतली फिलम पर या पानी की सतह पर तेल की बूंद की पतली फिलम श्वेत प्रकाश डालने पर सुन्दर रंग दिखाई पड़ते हैं, कारण बताएँ ?

उत्तर– फिलम की ऊपरी सतह और निचली सतह से परावर्तित किरणें एक-दूसरे के साथ व्यतिकरण करती हैं । संपोषी व्यतिकरण और विनाशी व्यतिकरण का बनना तरंग दैर्ध्य पर निर्भर करता है । श्वेत प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना होता है अतः फिल्म रंगीन दिखलाई पड़ती है ।

तेज आँधी, तूफान के समय मकान की हल्की छत उड़ जाती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – जब आँधी बहुत तेजी से छत के ऊपर से बहती है तो बरनौली के सिद्धांत से छत के ऊपर हवा का दाब काफी कम हो जाता है । कमरे के अन्दर की हवा जिसका दाब अधिक होता है, छत को ऐसे उठा देती है । इससे आँधी आने पर प्रायः छप्पर या टीन उड़ जाते हैं ।

द्रव की छोटी बूँदे गोलाकार क्यों होती हैं ?

उत्तर – पृष्ठ तनाव गुण के कारण द्रव न्यूनतम क्षेत्रफल में रहने की चेष्टा करता है । इसी गुण के कारण किसी द्रव की बूँदे न्यूनतम क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए अपना गोल बना लेती है । चूँकि गोलीय पृष्ठ का क्षेत्रफल न्यूनतम होता है । अतः द्रव की छोटी बूँदे गोलाकार होती हैं ।

कुत्ते रात में ही क्यों अधिक भौंकते हैं ?

उत्तर – कुत्ता एक वफादार जानवर है । इसके सूंघने की शक्ति इतनी अधिक होती है कि यह दो लाख गुना हल्की गंध को भी पहचान सकता है । यह किसी भी प्राणि-मात्र की आहट और उसकी गंध को मस्तिष्क तंत्रिका से सुरक्षित कर लेता है । इस गंध को दोबारा सूंघने पर उस प्राणी का प्रतिबिम्ब उसके मस्तिष्क तंत्रिकाओं में सुरक्षित हो ।
किसी भी प्राणी के पसीने की गंध या उसके बोलने का उच्चारण यदि रात के सन्नाटे में महसूस किया जाए तो वातावरण शान्त होने के कारण वह जल्दी से मस्तिष्क तंत्रिका को प्रभावित करता है । यही गंध या बोलने की ध्वनि दिन के शोरगुल में कुत्ता कम महसूस कर पाता है। दरअसल दिन में सूर्य के प्रकाश के कारण वातावरण में गर्मी रहती है, जिससे किसी भी प्राणी के पसीने की गंध जल्दी वाष्पित हो जाती है। रात में सूर्य का प्रकाश नहीं होता । इसलिए प्राणियों की गंध कुत्ता जल्दी अपने मस्तिष्क में समोहित कर लेता है। इसी कारण कुत्ता रात में अधिक चौकन्ना हो जाता है और जरा-सी आहट पर भौंकने लगता है ।

हम एक खास आयु तक ही क्यों बढ़ते हैं ?

उत्तर – हम सब के बढ़ने की एक निश्चित उम्र होती है। हमारे शरीर की अन्त स्रावी ग्रंथियाँ बढ़ोत्तरी पर नियंत्रण रखती हैं । विशेषकर थाइराइड ग्रंथि, पिट्यूटरी ग्रंथि और कुछ लिंग ग्रंथियाँ वृद्धि को नियंत्रित करती हैं। जब शिशु जन्म लेता है तो उसकी थाइमस ग्रंथि काफी बड़ी होती हैं। चौदह-पन्द्रह साल की आयु के बाद यह ग्रंथि सिकुड़ने लगती हैं । उस आयु में लिंग ग्रंथियाँ वृद्धि का काम देखती हैं । 20-22 वर्ष की आयु तक व्यक्ति परिपक्व हो जाता है और उस उम्र के बाद उसकी वृद्धि रूक जाती है । इस आयु के बाद वृद्धि करने वाली ग्रंथियों की क्रिया धीमी हो जाती है। इसलिए मनुष्य एक खास आयु तक ही बढ़ता है। वृद्धि की दर अलग-अलग मौसमों, में अलग-अलग होती है। बच्चे जाड़े की अपेक्षा गर्मियों में तेजी से बढ़ते हैं ।

आकाश में ऊंचाई पर उड़ते हुए पक्षियों का छाया पृथ्वी पर नहीं दिखाई देती है, क्यों ?

उत्तर– आकाश में ऊँचाई पर उड़ते हुए पक्षियों की छाया पृथ्वी पर नहीं दिखाई देती है क्योंकि जब प्रकाश उत्पादक अपारदर्शी वस्तु से बहुत बड़ा होता है तो उस वस्तु की छाया एक निश्चित दूरी तक ही बनती है । पक्षियों की तुलना में प्रकाश उत्पादक सूर्य बहुत बड़ा है और पृथ्वी से उसकी दूरी अधिक है । इसलिए पक्षियों की छाया पृथ्वी पर नहीं पड़ती।

नमक खाने से प्यास लगती है, क्यों ?

उत्तर – नमक खाने पर शरीर की कोशिकाओं का जल गुर्दों की ओर आ जाता है जिससे शरीर के अन्य भागों में पानी की अस्थाई कमी हो जाती है, जिसकी पूर्ति करने के लिए हमें प्यास लगती है ।

तारे हमें टिमटिमाते नजर आते हैं क्यों ? 

उत्तर – तारों का प्रकाश हम तक विभिन्न घनत्व वाली वायुमंडलीय परतों से अपवर्तित होकर पहुँचता है जिससे कभी तो तारें का प्रकाश हम तक पहुँचता है और दूसरे समय नही। इससे हमें तारों के टिमटिमाने का अहसास होता है ।

रोशनी की ओर कीट-पतंगें क्यों आते हैं ?

उत्तर – उन्नीसवीं सदी के अन्त में पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय के एस० डब्ल्यू० फास्ट ने इस विषय का अध्ययन काफी गहराई से किया था । बाद में फ्रांस के जे० एच० फैबरें ने इस खोज को आगे बढ़ाया और उसका उचित विवेचन किया । वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ प्रकाश स्रोतों से विशेष प्रकार के विकिरण निकलते हैं । मादा कीटों के पेट में एक ऐसी ग्रंथि होती है जिससे विशेष गंध वाले फीरोमोंस विकिरण निकलते हैं जो वायु में फैल जाते हैं। नर कीट इन विकिरणों की पहचान कर लेते हैं और वे मादा कीटों को पाने की इच्छा से उसकी ओर आकर्षित होते हैं । मादा के शरीर से निकलने वाला विकिरणों की भांति ही प्रकाश स्रोत से भी विकिरण निकलते हैं । जिससे नर कीटों को मादा कीटों की उपस्थित का भ्रम हो जाता है और इसी भ्रम में प्रकाश की ओर खींचने लगते हैं ।

साइनाइड से तत्काल मौत क्यों हो जाती है ?

उत्तर– जैविक क्रियाओं को चलने के लिए एक आवश्यक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है । यह ऊर्जा भोजन के अणुओं जैसे ग्लूकोज के दहन या ऑक्सीजन से मिलती है। ऑक्सीजन यानी भोजन के अणुओं से इलेक्ट्रोनों का निकल जाना और पानी के निर्माण के लिए ऑक्सीजन द्वारा उनका ग्रहण | इलेक्ट्रोन स्थानान्तरण की इस क्रिया में सिटोफ्रोम ऑक्सीडेस एंजाइम सहायता करता है । इस एंजाइम में एक हेम ग्रुप होता है । जिसके केन्द्र पर लोहे का आयन रहता है । यह आयन भोजन के अणुओं से इलेक्ट्रोनों को हटाकर और ऑक्सीजन अणुओं को उनका दान करके दो स्थितियों के बीच घूमता रहता है । इन दोनों स्थितियों में साइनाइड आयन की लौह आयन के प्रति आकर्षण शक्ति रहती है । इसलिए साइनाइड आयन प्रबल रूप से लौह आयनों से बद्ध हो जाते हैं । जब क्रिया पूरी हो जाती है तो एंजाइम निष्क्रिय हो जाता है और जैविक ऑक्सीजन की जीवन दायिनी प्रक्रिया के उत्प्रेरण में अक्षम हो जाता है । ऊर्जा की आपूर्ति नहीं होने से सारी क्रियाएँ ठप्प पड़ जाती हैं और मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।

रोते समय आँसू आते हैं, क्यों ?

उत्तर– हम जब भी रोते है या खुशी के मौके पर हमारी आँखों में आँसू आ जाते हैं। हमारी आँखों के बाहरी कोण के करीब 3 (तीन) अश्रु या लेक्रियल ग्रंथियाँ होती हैं। इनसे स्त्रावित जल सदृश अश्रु, पलकों, कार्निया और कन्जक्विटा को नम बनाए रखता है और इनकी सफाई करके हानिकारक जीवाणुओं से रक्षा करता है । चोट लगने या किसी बाहरी वस्तु के आँख में गिर जाने या दुःख या सुख की भावनाओं से प्रेरित होकर आँसू अधिक मात्रा में स्रावित होकर बहने लगते हैं। जन्म के करीब 4 (चार) महीने बाद मानव शिशु में अश्रु ग्रंथियाँ सक्रिय हो जाती हैं ।

जाड़ों में पहाड़ी चट्टानें फट जाती हैं, क्यों ?

उत्तर – जाड़ों में देखा गया है कि पहाड़ी चट्टानें फट जाती हैं, दरअसल चट्टान के छिद्रों और दरारों से होकर पानी भीतर चला जाता है । जाड़ों में जब पानी जमकर बर्फ बनता है तो उसका आयतन बढ़ जाता है। जिससे भीतरी दाब सीमा से अधिक बढ़ जाता है और चट्टाने फट जाती हैं ।

सूर्य की गर्मी से पत्तियाँ गर्म नहीं होती, क्यों ?

उत्तर– कितनी भी तेज गर्मी क्यों न हो पेड़-पौधों की पत्तियाँ गर्म नहीं होती। दरअसल ये पत्तियाँ सूक्ष्म कोशिकाओं की अनेक परतों से मिलकर बनी होती हैं। प्रत्येक पत्ती की कोशिकाएँ ऊपर और नीचे की ओर बाह्य त्वचाओं से ढकी होती हैं। इन त्वचाओं में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं। ये रंध्र वाल्व की तरह काम करते हैं। साथ ही ये पत्ती और वायमुण्डल के बीच गैसों के विनियम पर नियंत्रण रखते हैं । इन्हीं रंध्रों से पत्ती के भीतर की ऑक्सीजन और जलवाष्प, बाहर आती है । जब रंध्र बंद हो जाते हैं तो गैसों का विनियम रूक जाता है । यही रंध्र पत्तियों के के तापमान को सामान्य बनाएं रखते हैं ।

जन्तुओं को रात में कैसे दिखलाई देता है ?

उत्तर– बिल्ली, गाय, भैंस आदि जन्तुओं तथा अन्य रात्रिचर जन्तुओं के नेत्रों के रक्त पटल में रैटिना के ठीक बाहर की ओर चाँदी के समान चमकते हुए संयोगी ऊतक की यागुआनिन या अन्य रंगों पदार्थ के कणों की एक विशेष परत होती है । अनेक इलेस्मोब्रेन्क मछलियों में यह परत रेटिना की रंग एपीथीलियम की कोशिकाओं में गुआबिन कणों के स्तर के रूप में पाई जाती है । इस रंग परत को रैपीडम लूसिडम कहते हैं । यह परावर्ती होती है और रेटिना पर अतिरिक्त प्रकाश किरणें फेंकती हैं। इसी से रात में इन जंतुओं की आँखें चमकती हैं और इन्हें • धीमी रोशनी में भी दिखाई देता है ।

कपूर पानी में नाचता हैं, क्यों ?

उत्तर– कपूर पानी में घुलनशील है। पानी में जब कपूर घुल जाता है तो पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाता है । इसलिए पानी की सतह पर जहाँ कपूर रहेगा वहाँ पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाएगा। शुद्ध पानी की सतह जहाँ पृष्ठ तनाव अधिक है, कपूर को अपनी ओर आकर्षित करेगा । अतः कपूर उस ओर जाएगा । जहाँ आने पर उस पानी का पृष्ठ तनाव कम हो जाएगा तथा वह फिर से दूसरी ओर जाएगा । यही क्रिया बार-बार होती रहेगी और कपूर नाचता रहेगा ।

हमें प्यास क्यों लगती है ?

उत्तर– हमारे शरीर में पानी की उपस्थिति आवश्यक भी है क्योंकि पानी द्वारा ही हमारे शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और अनेक प्रकार के निरर्थक पदार्थ शरीर से बाहर निकलते रहते हैं । पसीने के रूप में, मूत्र के रूप में और कुछ श्वसन क्रिया के माध्यम से पानी शरीर से बाहर निकलता रहता है ।
मस्तिष्क में स्थित एक छोटा सा प्यास केन्द्र, हाइपोथेलेमस शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखने के लिए एक प्रकार का हार्मोन स्रावित करता है। ये हार्मोन गुर्दे और गले में स्थित तंत्रिकाओं को नियंत्रित करता है । प्यास का अनुभव भी इसी केन्द्र की क्रियाओं का एक भाग है। शरीर में आधा लीटर पानी की कमी होने से प्यास का अनुभव होने लगता है । जैसे-जैसे इसके और भी लक्षण दिखाई देते लगते हैं । जैसे मुँह का सूखना और उस पर एक परत सी बन जाती है। शरीर में 5 लीटर या उससे अधिक पानी की कमी खतरनाक होती है ।

हमारे हाथों में उभरी हुई नसें जिनमें खून बहता है, वे बाहर से नीली या हरी क्यों दिखाई देती हैं ?

उत्तर – रक्त में होमोग्लोबिन नामक लाल पदार्थ होता है । जिसकी विशेषता है कि वह कार्बन डाईऑक्साइड तथा ऑक्सीजन दोनों के साथ प्रतिवत्वर्यता से जुड़ सकता है । होमोग्लोबिन जब शरीर के ऊतकों से कार्बन डाईऑक्साइड को ग्रहण करता है तो वह कार्बोक्सी होमोग्लोबीन कहलाता है । कार्बोक्सी होमोग्लोबिन वाला रक्त अशुद्ध रक्त होता है जो शिराओं से होकर फेफड़ों तक पहुँचता है। फेफड़ों में सांस लेने की प्रक्रिया में होमोग्लोबिन कार्बन डाईऑक्साइड को छोड़कर शुद्ध ऑक्सीजन ग्रहण करता है। यह शुद्ध रक्त धमनियों द्वारा कोशिकाओं तक पहुँचता है । अशुद्ध रक्त का रंग नील-लोहित या बैंगनी होता है । शिराओं की भित्तियाँ पतली होती हैं और ये त्वचा के ठीक नीचे होती हैं । इसलिए ऊपर से शिराओं को देखना आसान होता है । अशुद्ध नील-लोहित रंग के रक्त के कारण शिराएँ हमें नीले रंग की दिखाई देती हैं। शिराओं की तुलना में धमनियों की भित्ति अधिक मोटी होती हैं और काफी गहराई में स्थित होती है। इस कारण लाल रक्त प्रवाहित होने वाली धमनी हमें दिखाई नहीं देती है ।

दूध में खटाई डालने से वह जम जाता है, क्यों ?

उत्तर – दूध में खटाई डालने पर वह जमता नहीं बल्कि फट जाता है । दूध का फटना और जमना दो अलग-अलग क्रियाएँ हैं। ऊपर देखने पर शायद वे एक-सी ही लगे । पर उनमें अन्तर है । जब हम दूध में नींबू का रस या अन्य कोई खट्टी वस्तु डालते हैं, तो दूध फट जाता है और छैना बन जाता है। फटने से दूध में उपस्थित पानी अलग हो जाता है । बचे हुए हिस्से को छैना (पनीर) कहा जाता है । लेकिन जब दूध में जमावन (दही का थोड़ी-सा मात्रा) डाला जाता है, तो दूध जम जाता है ।
ये दोनों ही क्रियाएँ वास्तव में बैक्टीरिया के कारण होती हैं । शायद आप जानते ही होंगे कि बैक्टीरिया या जीवाणु एककोशिय वनस्पति है। ये आकार में इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से देखना असंभव है। बल्कि ये बीज की तरह अनगिनत स्पोर पैदा करते हैं। ये स्पोर प्रतिकूल परिस्थितियों में कई सालों तक ऐसे ही पड़े रहते हैं । अनुकूल परिस्थितियों में इनसे नए जीवाणु बनते हैं ।
जब हम दूध में खटाई डालते हैं तो एक तरह से दूध में मौजूद एक खास किस्म के जीवाणु (स्ट्रप्टोकोकस लेक्टिस) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ तैयार करते हैं । यह जीवाणु सक्रिय होकर दूध में पानी को अलग कर देते हैं और दूध की रासयानिक एवं परमाणिवक रचना को बदलकर एक नया रूप दे देते हैं । इस नए रूप को हम छैना या पनीर के नाम से जानते हैं। छैने में दूध की सारी वसा और दूध के मुख्य प्रोटीन (केसीन) रहते हैं । अलग हुए पानी में भी प्रोटीन, शक्कर और कुछ घुलनशील लवण होते हैं। दूध का जमना भी एक ऐसी ही प्रक्रिया है ।

क्या कारण है कि उच्च सामर्थ्य का विद्युत हीटर मेन्स से लगाने पर घर में जल रहे अन्य बल्बों की रोशनी कुछ मंद पड़ जाती है ?

उत्तर – घर में सभी विद्युत उपकरण समान्तर क्रम में लगे होते हैं । अतः उच्च सामर्थ्य का विद्युत हीटर मेन्स से लगाने पर हीटर में उच्च धारा प्रवाहित होती है । जिससे मेन्स से आने वाले तारों में अत्यधिक विभव पतन हो जाता है । फलस्वरूप बल्ब के सिरों पर विभवान्तर का मान कम हो जाता है । अतः बल्बों की रोशनी कुछ कम हो जाती है ।

ठण्डे दिनों की तुलना में गर्म दिनों में कार इंजन को चालू करना आसान होता है, ऐसा क्यों ? 

उत्तर – ठण्डे दिनों में बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध अधिक तथा गर्म दिनों में कम होता है । इस प्रकार ठण्डे दिनों की तुलना में गर्म दिनों में बैटरी से अधिक धारा प्राप्त होती है अत: कार इंजन को चालू करना आसान हो जाता है ।

हम टेप रिकार्डर से निकली अपनी ही आवाज को क्यों नहीं पहचान पाते ?

उत्तर– जब हम बोलते हैं तो हमारी ध्वनि तन्तुओं से निकली ध्वनि तरंगें दो अलग-अलग रास्तों से होकर हमारे कान तक पहुँचती है। एक तो वायु की तरंगों के माध्यम से होकर पहुँचती हैं और दूसरी हमारे जबड़े और हड्डियों और भीतरी कान के बीच कम्पन से पहुँचती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ध्वनि जो हम सुनते हैं वह दो प्रकार के कम्पनों के परस्पर मिलने से बनी होती है । जब हम अपनी ही आवाज टेप रिकार्डर .. से सुनते हैं तब ऐसा नहीं होता । उस समय आवाज केवल वायु माध्यम से होकर आती है । यही कारण है कि जब हम अपनी आवाज टेप रिकार्डर से सुनते हैं तो वह हमारी वास्तविक आवाज से थोड़ा अलग होती है, इसलिए पहचानना मुश्किल होता है ।

ताली बजाने पर आवाज क्यों उत्पन्न होती है ?

उत्तर – हवा में विद्यमान् अणुओं के कम्पन के कारण ही आवाज उत्पन्न होती है । किसी ध्वनि के सुनने योग्य या श्रवणीय होने के लिए यह आवश्यक है कि अणुओं की कम्पन आवृत्ति की सीमा 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज़ तक हो । इसके साथ ही ध्वनि की तीव्रता भी इतनी होनी चाहिए कि वह हमारे कानों में संवेदन उत्पन्न करने में सक्षम हो । अतः हम सब भी हाथों से ताली बजाते हैं तो ताली बजाते हाथों के चारों ओर के दाब में एक तीव्र परिवर्तन होता है जिससे हवा में अणुओं का कम्पन श्रवणीय तरंग परिसर तक पहुँच जाता है । इस सबसे दाब में परिवर्तन इतना बड़ा होता है कि इससे उच्च तीव्रता की प्रघाती तरंगे उत्पन्न होती हैं और हम आवाज को सुन सकते हैं।

च्यूइंगम मुँह में क्यों नहीं चिपकता है ?

उत्तर – च्यूइंगम चिकल नामक गोंद जैसे पदार्थ का बना होता है। कुछ विशेष उष्ण कटिबंधीय पेड़ों से चिकल को प्राप्त कर इसे सुवासित व स्वादिष्ट बनाया जाता है। चिकल की विशेषता यह है कि यह किसी भी गीले पृष्ठ पर बिलकुल नहीं चिपकता है। यही कारण है कि हमारे मुँह में च्यूइंगम चिपकता नहीं है, जबकि अन्य सूखें पृष्ठों पर यह आसानी से चिपक जाता है ।

एल्युमिनियम फाइल में रखा खाना देर तक गर्म क्यों रहता है ?

उत्तर – एल्युमिनियम धातु होने के नाते उष्मा का अच्छा चालक है परन्तु पॉलिश किया गया या चमकाया गया एल्युमिनियम उष्मा को परावर्तित भी करता है । इसलिए जब एल्युमिनियम की पॉलिश की गई बहुत पतली पन्नी या वर्क में गर्म खाद्य वस्तु को लपेटा जाता है तो उसके अन्दर की उष्मा को वह अन्दर ही सीमित रखने में सहायक होता है और तो और यह खाद्य वस्तु से अधिक उष्मा भी ग्रहण नहीं करता है । इस कारण खाद्य वस्तु अपनी उष्णता खोकर शीघ्र ही ठण्डी नहीं होती। इसी कारण से एल्युमिनियम के वर्क या फाइल में लपेटा गया खाद्य पदार्थ पर्याप्त समय तक गर्म बना रहता है ।

सभी ट्यूब लाइट देखने में एक-सी लगती हैं परन्तु जलने के पश्चात् लाल, हरा या कोई और रंग देती हैं. ऐसा क्यों ?

उत्तर – ट्यूब लाइट में प्रयुक्त काँच की नली की भीतरी सतह एक विशेष प्रकार के पदार्थ से लेपित होती है । इस पदार्थ को प्रतिदीप्त शील पदार्थ या फॉस्फर कहते हैं । ट्यूब लाइट की नली में उत्पन्न पराबैंगनी किरणें इस पदार्थ से टकराकर रोशनी उत्पन्न करती हैं । रोशनी का रंग इसी प्रतिदीप्त शील पदार्थ पर निर्भर करता है । विभिन्न प्रकार के फॉस्फर के प्रयोग से अलग-अलग प्रकार के रंगों की रोशनी प्राप्त की जा सकती है । जैसेकैल्शियम टंगस्टेट से नीला, जिंक सिलिकेट से हरा, मैग्नीशियम टंगस्टेट से नीला सफेद, जिंक बेरिलियम सिलिकेट से पीला सफेद, कैडमियम सिलिकेट से पीला गुलाबी, कैडमियम बोरेट से गुलाबी।

शरीर के किसी भाग में मोच आने से सूजन क्यों आती है ?

उत्तर– शरीर में कहीं भी मोच आने से इस भाग की कोशिकाएँ वृद्धि करना शुरू कर देती हैं। जिसके परिणामस्वरूप सूजन आ जाती है। दरअसल यह सूजन प्रभावित अंग को उपधान देती है। कोशिकाओं की इस आकस्मिक वृद्धि को हाइपर प्लैसिया कहते हैं। कोशिकाओं की बढ़ोत्तरी के अतिरिक्त इनके भीतर विशेष मात्रा में रक्तस्त्राव भी होता है । खरोंचो, चोट लगने से काली हुई आँखों, फ्रैक्चर तथा फोड़े-फन्सियों से आने वाली सूजन को मिथ्या- अर्बुद कहते हैं। इनका उपचार ठंडे पैड या बर्फ की पोटलियाँ सूजे हुए भागों पर रखकर किया जा सकता है । इसके अलावा फ्रैक्चर में आधार के लिए दृढ़ बैंडेज का प्रयोग किया जाता है ।

मनुष्य के हाथ या पैर के सो जाने से क्या तात्पर्य है एवं ऐसा होने से इनमें झनझनाहट क्यों होती है ?

उत्तर– जब हमारा हाथ या पैर बहुत देर तक एक ही स्थिति में रहता है तो मस्तिष्क को संदेश ले जाने वाली तंत्रिकाओं के काम में बाधा पड़ती है । इसके अतिरिक्त उस भाग में कुछ देर के लिए रक्त की आपूर्त्ति भी रूक जाती है । यही अवस्था हाथ या पैर का सो जाना कहलाती है। यह एक अस्थायी अवस्था होती है और स्थिति बदलते ही रूका हुआ रक्त प्रवाह फिर से आरम्भ हो जाता है जिसके कारण हमें उस भाग में झनझनाहट सी महसूस होती है।

कुछ पक्षी बिना पंख फड़फड़ाये अधिक ऊचाई पर लम्बे समय तक कैसे उड़ते रहते हैं ?

उत्तर – जो पक्षी बिना पंख फड़फड़ाये अधिक ऊँचाई पर लम्बे समय तक उड़ते रहते हैं वे वास्तव में वातवरण के उष्मीय वायु प्रवाह का उपयोग करते हैं। प्रारम्भ में ये पंक्षी पंख फड़फड़ाकर उड़ते हैं किन्तु वातावरण की इस ऊँचाई पर पहुँचते ही ये पंख फड़फड़ाना बंद कर देते हैं । इसका अर्थ यह है कि उष्मीय वायु प्रवाह से निर्मित झोंकों से इन पक्षियों को स्वयं ही गति मिलती रहती है। ये पक्षी उस ऊँचाई को जान बूझकर छूते हैं ताकि इनकी कम-से-कम ऊर्जा व्यय हो । आपने देखा होगा कि जरा भी नीचे जाने पर ये पुनः पंख फड़फड़ाने लगते हैं ।

संतरे के छिलके का रस आँखों में पड़ते ही आँसू क्यों निकलते हैं ?

उत्तर – संतरे के छिलके के पृष्ठ के नीचे कुछ विशेष ग्रंथियाँ होती हैं जिनमें लिमोनीन एवं टर्पीन जैसे वाष्पशील तेल तथा सिट्रल, ऐल्डिहाइड, जिरेनिऑल, कैडिनीन और लिमेलूल जैसे विभिन्न रसायन विद्यमान होते हैं । ये सभी पदार्थ त्वचा को हानि पहुँचाने में सक्षम हैं। किन्तु आँखें इनके प्रति अधिक संवेदनशील होने से ये आँख में जाते ही तुरन्त प्रतिक्रिया करते हैं । निम्बु वंश के फलोद्यानों के जो कामगार उपरोक्त रसायनों के प्रति संवेदनशील होते हैं, वे अक्सर त्वक्शोथ से पीड़ित रहते हैं ।

किसी वस्तु को स्थिर पानी में फेंकने पर उत्पन्न तरंगे वर्गाकार या आयताकार न होकर वृत्ताकार होती हैं, क्यों ?

उत्तर– छोटी वस्तुओं को स्थिर पानी में फेंकने पर पानी में निर्मित विक्षोभ सभी दिशाओं में समान गति से चलता है । इससे एक समान तरंगों का निर्माण होता है जो हमें वृत्ताकार दिखाई देती है । यहाँ तक कि ईंट जैसी बड़ी वस्तु को पानी में फेंकने पर भी उत्पन्न तरंगें वृत्ताकार होती हैं किन्तु यदि आप किसी लम्बे डण्डे को पानी पर जोर से मारते हैं तब पहले दीर्घायत तरंगों का निर्माण होता है जो बाद में फैलकर वृत्ताकार में बदल जाती हैं ।

जब हम दीया या लैम्प जलाते हैं तो प्रकाश निकलता है और स्टोव जलाने पर उष्मा । जबकि दोनों में मिट्टी का तेल प्रयुक्त होता है, ऐसा क्यों ?

उत्तर– ऐसा नहीं है कि दीया सिर्फ रोशनी देता है और स्टोव केवल उष्मा । प्रायः इन दोनों साधनों से दो प्रकार की ऊर्जा निकलती है। एक में प्रकाश ऊर्जा और दूसरे में उष्मा ऊर्जा । परन्तु होता यह है दीये से निकलने वाली रोशनी को हम प्रयोग करते हैं जबकि इसकी उष्मा पर ध्यान नहीं देते । ठीक इसी तरह स्टोव से निकली | उष्मा का हम पूरा उपयोग करते हैं लेकिन प्रकाश को अनदेखा करते हैं । वस्तुतः इसके लिए उत्तरदायी है इन उपकरणों की बनावट । स्टोव से अधिकतम उष्मा पाने के लिये इसमें वायु संचरण व उष्मारोधन की व्यवस्था भी की जाती है। ये सुविधाएँ दीये या लैम्प में न होने से हवा का पर्याप्त उपयोग कर पाने में ये अक्षय होते हैं । यही कारण है कि दीयों का तापमान बहुत ही कम होता है ।

नाखूनों में छोटे सफेद दाग क्यों पड़ जाते हैं ?

उत्तर– नाखून एक मृत ऊतक है । किन्तु इसके तले में जो सफेद अर्धचन्द्रांक जिसे लुन्युला भी कहते हैं, दिखाई देता है । वही नाखून का जीवित भाग होता है । यह नाखून को बढ़ता है । नाखून के इस अर्धचन्द्रांक सफेद भाग पर यदि कोई चोट लग जाती है या टाइट जूते पहनने से इस पर दबाव पड़ता है तब यह चोट में छोटे-छोटे सफेद दोगों के रूप में दिखाई देती है । इसका अर्थ यह है कि नाखून के इन दागों का भाग इतना मजबूत नहीं है जितना कि शेष भाग । जैसे-जैसे नाखून बढ़ता है वैसे-वैसे सफेद दाग भी ऊपर की ओर बढ़ते हैं और अन्ततः पर्याप्त वृद्धि होने पर नाखून काटे जाने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं ।

सर्दी में शरीर के रोमे खड़े क्यों हो जाते हैं ?

उत्तर – हमारी त्वचा पर पाए जाने वाले रोमे शरीर की उष्मा को शरीर के बाहर निकलने से रोकते हैं । ठण्ड लगने पर हमारे शरीर के रोमे खड़े हो जाते हैं। इस समय ये रोमे हवा की अधिकाधिक मात्रा को अपने में फँसाकर एक जाल का निर्माण करते हैं । यह जाल तत्पश्चात शरीर के लिए रोधी पदार्थ का कार्य करता है । फलस्वरूप हमारे शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ठण्ड से बचाव करने के लिए ही रोमे खड़े होते हैं, इससे शरीर को निरन्तर गर्मी मिलती रहती है ।

फोटोक्रोमैटिक चश्मे के शीशे सूर्य के प्रकाश में काले क्यों हो जाते हैं ?

उत्तर – प्रकाश वर्णिक अर्थात् फोटोक्रोमैटिक चश्मों के लैंसो में सिल्वर हैलाइड के सूक्ष्म क्रिस्टल होते हैं । इन लैंसों में विद्यमान सिल्वर आयोडाइड एवं सिल्वर ब्रोमाइड में एक ऐसा गुण धर्म मौजूद होता है जिसके कारण सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क में आते ही ये आपस का बंधन तोड़कर अलग-अलग हो जाते हैं । एक समय ऐसा आता है जब ये पूर्णत: बिखर जाते हैं । इस समय इनके छोटे-छोटे कण सम्पूर्ण लैंस को ढक लेते हैं । जिसके फलस्वरूप शीशा हमें काला दिखाई देता है । इसके विपरीत चश्में को सूर्य के प्रकाश से हटाने पर बिखरे हुए सिल्वर तथा, हैलाइड के ये सम्पूर्ण कण पुनः आपस में मिल जाते हैं जिससे मूल सिल्वर हैलाइड का फिर से निर्माण होता है और पुनः चश्में के शीशे रंगहीन दिखाई देते हैं ।

बिजली से लगी आग को पानी द्वारा नहीं बुझाना चाहिये, क्यों ?

उत्तर – पानी, बिजली का सुचालक है । अतः बिजली से लगी आग को पानी द्वारा नहीं बुझाना चाहिए । विद्युत करंट पानी की धार के साथ बुझाने वाले व्यक्ति तक पहुँच कर घातक सिद्ध हो सकता है । अर्थात् उस व्यक्ति को करंट लग सकता है जिससे उसकी मृत्यु भी हो सकती है ।
बिजली से लगी आग को बुझाने के लिये विशेष प्रकार के रासायनिक पदार्थ युक्त अग्निशाम यंत्र होते हैं । इन यंत्रों में भरा पदार्थ विद्युत कुचालक होता है ।
कार्बन डाइऑक्साइड युक्त अग्निशामक यंत्र ऐसी आग को बुझाने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है । सूखी रेत का प्रयोग भी बिजली से लगी आग को बुझाने के लिए किया जा सकता है । यह सुनिश्चित होने पर कि आग लगे स्थान को विद्युत आपूर्ति पूर्णतः बंद कर दी गयी है, तब बाग बुझाने के लिए पानी भी प्रयोग में लाया जा सकता है ।

आकाश नीला क्यों दिखाई देता है ?

उत्तर – वायुमण्डल में मौजूद गैसों के अणु ही वास्तव में आसपास के रंग के लिए उत्तरदायी होते हैं । सूर्य का प्रकाश सात रंगों का मिश्रण होता है जिसमें लाल और पीले रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक और नीले एवं बैगनी रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे कम होती है ।
आसमान नीला इसलिए दिखाई देता है क्योंकि गैसों के अणु कम तरंग दैर्ध्य वाले रंगों को अधिक छिटका देते हैं । जब वायुमण्डल में गैस के अणुओं की अपेक्षा बड़े कण मौजूद होते हैं तो वे अधिक तरंग दैर्ध्य वाले रंगों को भी छिटका देते हैं। जिससे नीले रंग की तीव्रता कम हो जाती है तब आसमान हल्का नीला या दूधिया श्वेत दिखाई देने लगता है ।

गैस जलाते समय सिलिन्डर में आग क्यों नहीं पकड़ता ?

उत्तर – गैस का चूल्हा (तरल पेट्रोलियम गैस) जब जलाते हैं तो सिलिन्डर में भरी गैस आग क्यों नहीं पकड़ती ? दरअसल जब हम गैस का चूल्हा माचिस या लाइर से सुलगाते हैं तब चूल्हे के दाहक (स्टोव बर्नर) में तरल पेट्रोलियम गैस वायु से युक्त हो जाती है । वायु से संयुक्त हुए बिना गैस जल ही नहीं सकती । इसके कोई गैस (वास्तव में गैस व वायु का मिश्रण) तभी दहकती है, गैस का दाहन तभी हो पाता है जब गैस चंद अलावा अणुओं की चाल बढ़ाकर ज्वलनांक बिन्दु या प्रज्ज्वलन तक पहुँचा दी जाए। माचिस या लाइटर यही काम करता है । अणुओं की अव्यवस्थित चाल को एक दम से बढ़ा देता है । फलस्वरूप गैस प्रज्वलन ताप तक गर्म होकर जलने लगती हैं ।
सिलिन्डर भी आग पकड़ सकता है बशर्ते उसमें हवा दाखिल हो जाए लेकिन सिलिन्डर में लगा रैग्यूलेटर (गैस विनियामक) ये काम नहीं करने देता है। इससे होकर गैस तो बाहर उठ सकती है लेकिन हवा अन्दर दाखिल नहीं हो सकती । सिलिन्डर का वह छेद सुराख भी तो बहुत संकरा होता है जिससे गैस बाहर आती है फिर खास किस्म की मजबूत रिसावरोधी नली (पाईप) भी सिलिन्डर के मुख से जुड़े विनियंत्रक (रैग्यूलेटर) से जुड़ी होती है जो गैस के दाखिले को रोकती है। यही वजह है कि स्टोव बर्नर (चूल्हे के सुराखों ज्वालकों से) निकली गैस को वायु से संयुक्त होकर जल उठती है और सिलिन्डर में आग नहीं पकड़ता ।

बरसात के मौसम में बादल काले क्यों होते हैं ?

उत्तर – जब प्रकाश किरणें किसी भी वस्तु पर गिरती हैं तो वह वस्तु प्रकाश की कुछ किरणों को परावर्तित कर देती है तथा शेष को अवशोषित कर लेती है। यदि वस्तु चमकीली है तो किरणें ज्यादा परावर्तित होंगी और यदि काली है तो किरणें ज्यादा अवशोषित होंगी । यही नियम वर्षा के बादलों पर भी लागू होता है । इन बादलों में पानी की असंख्य बूँदे होती हैं ये बूँदे सूरज की अधिक-से-अधिक किरणें अवशोषित कर लेती हैं। इससे पृथ्वी तक बहुत ही कम किरणें पहुँच पाती हैं तथा बादल काले होते जाते हैं । धूप नहीं निकल पाती ।
कभी-कभी बरसाती बादल गहरे काले होते हैं और कभी-कभी कम गहरे । बादलों का रंग पानी की बूँदों की संख्या पर निर्भर करता है ।

भगवान् ने हमारी दो आँखें क्यों बनाई हैं ?

उत्तर– भगवान् ने ऐसा क्यों किया यह बताना आम मानव के बस की बात नहीं है। लेकिन विज्ञान की दृष्टि से देखें तो एक आँख से हमें 135 डिग्री क्षेत्र ही दिखाई पड़ता है और दोनों आँखों से देखने पर 180 डिग्री क्षेत्र नजर आता है । बाई आँख किसी वस्तु के दाएँ भाग को देखती है और दाई आँख बाएँ भाग को । दोनों आँखें समान छवि को नहीं देखती । दोनों छवियों को मिलाकर दिमाग में जिआयमी छवि बनती है। हमारी हर आँख अलग चित्र ग्रहण करती है, फिर भी हर वस्तु को दो-दो नहीं देखते बल्कि दोनों आँखें एक ही वस्तु को देखती हैं उनके चित्र दिमाग में एक हो जाते हैं । दृष्टि स्नायु उन्हें एक ही बिन्दु पर ले जाती है । ठीक इसी तरह हम दोनों कानों से एक ही आवाजें सुनते हैं ।

आतिशबाजी रंगीन क्यों दिखाई देती है ? आतिशबाजी की शुरूआत कब हुई ?

उत्तर – आतिशबाजी आमतौर पर पोटैशियम नाइट्रेड, गंधक, कोयला आदि के मिश्रण से बनाई जाती है । आतिशबाजी को रंगीन बनाने के लिए उसमे दो धातुओं स्ट्रोनिशयम और बेरियम के लवण प्रयोग में लाए जाते हैं । इन लवणों को पोटेशियमक्लोरेट के साथ मिलाया जाता है । बेरियम के लवणों से हरा रंग पैदा होता है । स्ट्रोन्शियम नाइट्रेट से लाल रंग का प्रकाश उत्पन्न होता है । इन धातुओं के लवणों का मिश्रण जब आतिशबाजी के साथ जलता । है तो कई रंग पैदा हो जाते हैं और आतिशबाजी रंग-बिरंगी दिखाई देती है ।
वैसे आतिशबाजी की शुरूआत सबसे पहले चीन में हुई थी । सैकड़ों वर्षों के बाद यूरोप, अरब और यूनान के देशों में इसकी जानकारी हुई ।

चोट लगने से अस्थि भंग होने पर प्लास्टर चढ़ाने से अस्थियाँ पुनः कैसे जुड़ जाती हैं ?

उत्तर – चोट लगने पर प्लास्टर से अस्थियाँ जुड़ती है ऐसा नहीं । टूटी हुई अस्थियाँ कई बार अपने स्थान से हट जाती हैं । उन्हें जुड़ने से पहले सही स्थिति में रखना आवश्यक होता है । प्लास्टर चढ़ाकर उस भाग को कस दिया जाता है जिससे वहाँ की टूटी हुई अस्थित सही अवस्था में रहे। अस्थियाँ कैल्शियम की बनी होती है और उस भाग में बनने वाला कैल्शियम ही उन्हें जोड़ने में सहायक होता है ।

पृथ्वी गतिशील है फिर भी स्थिर मालूम पड़ती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर – पृथ्वी लगातार अपनी धुरी पर घूमती रहती है । ऐसा नहीं है कि हमें पृथ्वी की गति का पता नहीं लगता । दिन में सूर्य की बदलती हुई स्थिति से हमें पृथ्वी के घुमने का आभास होता है । पृथ्वी का घूमना हमें महसूस इसलिए नहीं होता क्योंकि पृथ्वी बराबर एक-सी गति से घूम रही है। किसी भी वस्तु की गति का पता उसकी गति में आने वाले परिवर्तन से होता है । पृथ्वी की गति में परिवर्तन न होने के कारण ही हमें ऐसा लगता है और हमारा अस्तित्व भी पृथ्वी की तुलना में कण मात्रा से कम है।

मोर नाचता है उसके आँसू गिरते हैं, इन आँसूओं को मोरनी पीती हैं जिससे वह गर्भवती हो जाती है, क्या यह सच है ?

उत्तर – यह सच नहीं है, वैसे शक ठीक हैं। अधिक विकसित प्राणियों में प्रजनन लैंगिक होता है । समाज में लैंगिक प्रजनन को लेकर सामान्य तौर पर झिझक है । इस मूल जैविक प्रक्रिया को गंदा या अश्लील माना जाता है और इसके बारे में बात करने पर भी बंधन है । इसी कारण मादा के गर्भवती होने के कई अलैंगिक कारण दिये जाते हैं । मोरनी के बारे में भी यह इसी तरह की एक गलत धारणा है ।
लैंगिक प्रजनन में मादा के शरीर में अंडाणुओं का निषेचन नर के शरीर से बने शुक्राणओं द्वारा होना आवश्यक है । निषेचन के बाद ही सम्पूर्ण अण्डा बनता है । जिससे धीरे-धीरे नए प्राणी का विकास होता है । ये अण्डाणु और शुक्राणु प्राणियों के शरीर में उपस्थित विशेष अंगों में बनते हैं। ये दोनों सामान्य कोशिकाओं से भिन्न होते हैं। इनका निकास प्राणियों के प्रजनन तंत्र से जुड़े अंगों से ही हो सकता है । कोई अन्य अंग से नहीं ।

बिजली किस प्रकार चमकती है एवं गर्जना किस प्रकार होती है ?

उत्तर – जब आकाश में बादल छाए होते हैं तो उनमें उपस्थित पानी के छोटे-छोटे कण वायु की रंगड़ के कारण आवेषित हो जाते हैं । कुछ बादलों पर धनात्मक आवेश आ जाता है और कुछ पर ऋणात्मक आवेश । जब एक धनात्मक आवेशित बादल ऋणात्मक आवेशित बादल के पास पहुँचता है तो उनके बीच में लाखों वोल्ट का विद्युत, विभवान्तर पैदा हो जाता है । इतने अधिक विभवान्तर के कारण इनके बीच में वायु में विद्युत धारा बहने लगती है । जैसे ही विद्युत धारा बहती है वैसे ही प्रकाश की एक रेखा-सी उत्पन्न होती है। इसी को हम बिजली का चमकना कहते हैं । विद्युत धारा के कारण बहुत अधिक गर्मी पैदा होती है। जिससे वायु एकदम फैलती है । अचानक फैलाव के कारण वायु के असंख्य अणु एक दूसरे से टकराते हैं। इनके टकराने से पैदा हुई आवाज से ही गर्जना होती है।

पुरूषों की दाढ़ी में बाल आते हैं परन्तु औरतों की दाढ़ी में बाल क्यों नहीं आते ? 

उत्तर – ग्यारह से तेरह वर्ष की उम्र के वयस्कं छोटे बच्चों में यौन ग्रंथियों का विशेष विकास होता है । इस उम्र में पुरूषों की यौन ग्रंथियाँ एन्ड्रोजन हार्मोन पैदा करती है, जो दाढ़ी और छाती के बालों में वृद्धि करती हैं । जबकि स्त्रियों की यौन ग्रंथियाँ एन्ड्रोजन की बजाए एस्ट्रोजन हार्मोन पैदा करती है। इसी वजह से पुरुषों में दाढ़ी होती है स्त्रियों में नहीं ।

गंगा जल क्यों नहीं सड़ता है ? 

उत्तर – गंगा नदी हिमालय स्थित गंगोत्री से निकलती है । वहाँ से यह कुछ विशेष खनिज पदार्थ गंधक आदि अपने साथ बहाकर लाती है। गंगा के पानी में मिले हुए ये खनिज पदार्थ गंगा के पानी को सड़ने से बचाते हैं ।

साँप के कान नहीं होते और वे सुन नहीं सकते, क्या यह सत्य है ?

उत्तर – यह बात सत्य है कि साँप के कान नहीं होते हैं और न ही वे सुन सकते हैं । साँप रेंगकर चलता है । रेंगते समय सारा शरीर जमीन के सम्पर्क में आ जाता है। शरीर की त्वचा में कई तंत्रिकाएँ होती हैं जो बहुत संवेदनशील होती हैं। ये जमीन में चलने वाले हल्के-से-हल्के कम्पनों को भी पहचान लेती हैं। उसकी संवेदनशील त्वचा और उसकी कम्पन पहचानने की शक्ति उसके सुरक्षा साधन हैं । जब कोई मनुष्य या अन्य प्राणी जमीन पर चलते हैं तो साँप उनके पैरों से उत्पन्न कम्पनों को सुनकर एक तरफ हो जाता है ताकि कुचल न जाए ।

हमें जम्हाई क्यों आती है ?

उत्तर– बहुत देर तक एक ही स्थिति में बैठे रहने से या अत्यधिक परिश्रम वाला कार्य करने पर थकान के कारण एक लम्बे समय के बाद हमारे शरीर में श्वसन की धीमी गति के कारण ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आ जाती है । ऑक्सीजन की इस कमी को पूरा करने के लिए ही हमें जम्आई जाती है ।
जम्हाई आते समय हमारा मुँह एकाएक खुल जाता है और एक लम्बी-सी साँस अन्दर लेते हुए हम साँस बाहर छोड़ते हैं । इस क्रिया से हम पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन अपने शरीर में अन्दर लें जाते हैं तथा उतनी ही कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालते हैं ।
यह स्पष्ट है कि जम्हाई का सम्बन्ध नींद आने या थकने से बिल्कुल नहीं है । जम्हाई का अर्थ है शरीर में ऑक्सीजन की कमी । जब काफी समयान्तर पश्चात् आती है जिससे फेफड़ों के फुसफुस कोष शुद्ध वायु से भर जाते हैं और रूधिर ऑक्सीजन युक्त हो जाता है। जम्बाई आने पर उसे सेकना असंभव है। एक मजेदार बात तो यह है कि जम्आई संक्रामक भी हो सकती है। यह एक आम अनुभव की बात है कि एक दूसरे को जम्बाई स्वतः आने लगती है लेकिन ऐसा क्यों होता है इसके स्पष्ट कारण की तलाश है ।

मानव को बुढ़ापा क्यों आता है ?

उत्तर– बच्चे के जन्म के समय उसके शरीर के सभी अंग नए होते हैं। समस्त जैविक प्रक्रियाएँ तेजी से चलती हैं । लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ मानव में जीव वैज्ञानिक परिवर्तन होने लगते हैं जिन्हें रोका नहीं जा सकता । इन्हीं परिवर्तन की वजह से उम्र बढ़ने पर बहुत सी शारीरिक क्रियाएँ धीमी पड़ जाती हैं, नजर कमजोर हो जाती है और बाल सफेद होने लगते हैं। इन्हीं कारणों से मानव को बुढ़ापा आता है ।

गला खराब होने पर नमक के गरारे करने को क्या कहा जाता है ?

उत्तर – आमतौर पर गला खराब होने का मतलब है कफ जम जाना । कफ एक लसलसा पदार्थ है । ऐसा घोल जिसमें पदार्थ के बड़े-बड़े कण विद्युत् आवेश के कारण घुले रहते हैं इमल्शन कहलाता है । कफ भी इमल्शन है । यदि इन कणों का आवेश खत्म कर दिया जाए तो घुलनशील हो जाते हैं । नमक या अन्य लवणों में यह गुण होता है वे इस आवेश को खत्म कर देते हैं । इस प्रकार से गले में मौजूद इमल्शन को साफ करने में नमक मदद करता है ।

शरीर संरक्षण में नमक क्या काम करता है ?

उत्तर – खाद्य पदार्थ के रूप में मछली को दूर-दूर तक भेजने के लिए नमक में रखकर भेजा जाता है । इसके अलावा हम यह भी देखते हैं कि आम, नींबू आदि को नमक के साथ रखने पर वे सड़ते नहीं । इसका कारण समझने के लिए यह देखना जरूरी है कि सड़ना क्या होता है ? वास्तव में सड़ने का अर्थ है कुछ जीवाणुओं की क्रिया से रासायनिक बदलाव । नमक का एक गुण यह है कि वह कुछ जीवाणुओं की क्रिया को रोकने की क्षमता रखता है । दूसरी बात यह भी है कि नमक की मौजूदगी में कुछ जीवणुओं की क्रिया जारी रहती है । परन्तु इन क्रियाओं से कुछ ऐसे पदार्थ पैदा होते हैं जो आगे की क्रिया को रोक देते हैं, इसके कारण सड़ने की क्रिया या तो रूक ही जाती है या धीमी पड़ जाती है ।

दाल पकते समय नमक पहले क्यों नहीं डाला जाता ?

उत्तर – परासरण क्रिया कैसे होती है यह तुमने देखा । दाल गलने का अर्थ भी यही है कि उसमें काफी मात्रा में पानी सोख लिया जाता है। पानी सोखने की यह क्रिया भी परासरण द्वारा होती है । यदि पानी में नमक डाल दिया जाए तो बाहर का घोल ज्यादा गाढ़ा हो जाएगा और दाल के अन्दर पानी नहीं जा पाएगा तो दाल भी नहीं गलेगी ।

हमें छींक क्यों आती है ?

उत्तर– जब कोई पदार्थ नाक के अन्दर चला जाता है तो नाक की म्यूकस झिल्ली में सुरसुराहट-सी होने लगती है। उस पदार्थ को बाहर निकालने के लिये छींक आती है। इसी प्रकार जुकाम होने पर नाक की म्यूकस झिल्ली में सूजन आ जाती है और खुजलाहट होने लगती है, तब दिमाग पसलियों की माँसपेशियाँ और तंतुष्ट (डायाफ्राम) को हुक्म देता है कि तुरन्त छींक आ जाती हैं । छींक आने के बाद शरीर में कुछ ताजगी- सी आ जाती है और आदमी हल्कापन महसूस करता है । विज्ञान के अनुसार छींक आना शरीर की एक प्रतिवर्ती क्रिया (रिफ्लेक्स एक्शन) है जो हमारी इच्छा के बिना होती है। छींक आने पर पूरा शरीर झन्न जाता है और आँखें बंद हो जाती

कुछ लोग नींद में क्यों चलते हैं ?

उत्तर – हमारे मस्तिष्क में एक नींद केन्द्र होता है। सारे दिन के काम करने के परिणाम स्वरूप हमारे शरीर में लैक्टिक ऐसिड और कैल्शियम बनता है। जब कैल्शियम नींद केन्द्र में पहुँचता है तब यह क्रियाशील हो जाता है और हमारे मस्तिष्क का सम्बन्ध शरीर के काम करने वाले अंगों से कट जाता है और नाड़ियों का सम्बन्ध मस्तिष्क से कट जाता है । परन्तु कुछ लोगों में नींद की अवस्था में मस्तिष्क को सुप्तावस्था में रहता है पर शरीर जाग्रत अवस्था में ही रहता है । यह नाड़ियों में कुछ असमान्ता होने के कारण होता है । इसी कारण ये लोग नींद में चलने लगते हैं ।

कुछ जानवर जैसे बिल्ली, कुत्ता, शेर आदि सामने पैर करके क्यों बैठते हैं ?

उत्तर – इस सवाल का उत्तर जानवरों को भाजन तथा रक्षा के तरीकों से जुड़ा है । बिल्ली, कुत्ता, शेर मुख्यतः मांसाहारी हैं । आगे पैर करके बैठने से ये अन्य जानवरों के मुकाबले कहीं अधिक फुरती तथा तेजी से खड़े होकर अपने शिकार (भोजन) पर छलांग लगा सकते हैं। संकट आने पर भी फुरती से भाग- छोड़कर ये अपनी रक्षा कर सकते हैं ।

कुछ लोग सोते हुए खर्राटे क्यों लेते हैं ?

उत्तर– कुछ लोग नाक से साँस लेने की जगह मुँह से साँस लेते हैं । जब तक वे जागते रहते हैं तब तक तो उनके मुँह के अन्दर गले के पास वाली त्वचा खिंची रहती है परन्तु सोते समय यह ढीली पड़ जाती है । मुँह से साँस लेने के परिणाम स्वरूप हवा के दबाव के कारण इसमें कम्पन होता है जिसके कारण आवाज उत्पन्न होती, जो हमें सुनाई देती है ।

चमगादड़ को रात में कैसे दिखाई देता है ?

उत्तर – जब चमगादड़ उड़ता है तब वह अपने मुख से उच्च आवृत्ति की ध्वनि निकालता है । ये पराश्रव्य तरंगे कहलाती हैं और लगभग सीधी रेखाओं में चलती है। चमगादड़ के मुख से निकली हुई ये तरंगे जब वस्तुओं से टकराती हैं तब परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचती हैं । चमगादड़ के कान इन ध्वनि तरंगों के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। जिसकी सहायता से उसे पता चल जाता है कि कौन-सी वस्तु कहाँ स्थित है और उड़ते समय वे उनसे बचकर रहते हैं ।

आँख में आँसू कहाँ से आते हैं या प्याज को जब काटते हैं तब आँखों में आँसू क्यों आते हैं ? 

उत्तर– वास्तव में हमारी आँखों से हमेशा ही आँसू निकलते रहते हैं, लेकिन इतने धीरे-धीरे कि हमें पता ही  नहीं चलता । जानते हो हमारी आँखों के अन्दर ही अन्दर लगभग 10 मिलीलीटर आँसू बह जाते हैं। हमारी आँख के बाहरी कोने में ऊपर की ओर आँसू बनाने वाली ग्रंथियाँ होती हैं । इनके निकले आँसू नलियों द्वारा ऊपरी पलक के नीचे पहुँचकर वहाँ जमा होते हैं । जब हम पलक झपकाते हैं, तो ये आँसू पूरी आँख में फैल जाते हैं । आँसू हमारे दृश्य पटल (कोर्निया, जिससे हम देखते हैं ) को गीला और साफ करते हैं। बाद में ये आँख में ऊपरी ओर निचली पलक के जोड़ के पास बनी एक नली से होते हुए नाक में बह जाते हैं ।
आमतौर पर हमारी आँखों की निचली पलक का सिरा चिकना होता है, इसलिए आँसू बहकर आँख से बाहर नहीं निकलते। यह तो हुई सामान्य अवस्था की बात पर जब किसी कारण वश ग्रंथियों पर दबाव बढ़ जाता है, तो ये आँसू जल्दी-जल्दी निकलते हैं और बाहर बहने लगते हैं। प्याज में एक ऐसा तरल पदार्थ होता है जिमसें गंधक की मात्रा बहुत अधिक होती है। यह तरल पदार्थ हवा के सम्पर्क में आते ही गैस में बदल जाता है। जब गैस के रूप में यह हमारी आँखों तक पहुँचता है तो आँखों में जलन होने लगती है। इस जलन को कम करने के लिए ही आँसू बनाने वाली ग्रंथियाँ आँसू बनाने लगती हैं। इससे प्याज की गैस की सान्द्रता कम हो जाती है और आँखों को राहत मिलती है । आँसू हमारे दृश्य पटल को गीला और साफ रखने के साथ-साथ और भी कई काम आते हैं। ये हमारे दृश्य पटल को चोट से बचाते हैं। दृश्य पटल पर फैलकर यह उसकी सतह को भी एक-सा बनाते हैं । इस तरह की एक-सी सपाट सतह अच्छी दृष्टि के लिए जरूरी होती है । जब हम आँखें बंद करते हैं तो यह पलकों के जोड़ को मजबूती से बंद रखने में भी मदद करते हैं। ये दृश्य पटल को ऑक्सीजन और दूसरे पोषक तत्व भी पहुँचाते हैं ।

अँधेरे में रंग दिखाई नहीं देते है, ऐसा क्यों ?

उत्तर -आपने देखा होगा कि अँधेरा होने पर रंगीन वस्तुएँ हमें दिखाई नहीं देती हैं। यही नहीं रंगविहीन वस्तुएँ भी हमारी नजरों से ओझल हो जाती है। इसका कारण यह है कि देखने के काम में आँखों में स्थित रेटिना की कोशिकाएँ मुख्य भूमिका निभाती हैं। रेटिना आँखों के सबसे अन्दर की परत होती है। जिसमें शंकु या शलाका यानी रॉड के आकार की कोशिकाएँ होती हैं । शंकु आकार वाली कोशिकाओं के कारण ही हम दिन में और तेज प्रकाश में देख सकते हैं और रंगों को सरलता से पहचान जाते हैं । लेकिन कम रोशनी होने पर शलाका कोशिकाओं की सहायता ली जाती है । शलाका कोशिकाएँ शंकु कोशिकाओं की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं । कम प्रकाश में ये देख तो सकती हैं पर रंगों का निर्धारण नहीं कर पाती हैं। दरअसल इसके द्वारा उत्पन्न प्रतिबम्ब स्पष्ट नहीं होते हैं । प्रकाश से अँधेरे में जाने पर शलाका कोशिकाएँ धीरे-धीरे अपनी संवेदना बढ़ाती जाती हैं जिसके कारण अँधेरे में धुँधला – सा दिखाई देता है ।

लोहे की कील पानी में डूब जाती है, परन्तु पारे में तैरती है, ऐसा क्यो ?

उत्तर – लोहे की कील पानी में डूब जाती है लेकिन पारे में वह तैरती रहती है । इसका कारण यह है कि पारे का आपेक्षित घनत्व 13.6 होता है और समान आयतन के पानी और पारे के उत्प्लावन बल या उत्क्षेप में भी 1 : 13.6 का अनुपात होता है । जब लोहे की कील को पारे में डाला जाता है तब उसके द्वारा हटाए गए पारे का उत्प्लावन बल उसके भार से अधिक होता है । जबकि पानी में रहने पर उत्प्लावन बल उसके भार से कम होता है, इस कारण पानी में कील डूब जाती है ।

हमें नींद कैसे आती है ?

उत्तर– हमारे मस्तिष्क में एक बहुत ही जटिल क्षेत्र है जिसे निद्रा केन्द्र कहते हैं । रक्त में घुला हुआ कैल्शियम इस निन्द्रा केन्द्र को नियंत्रित करता है । जब कैल्शियम की एक निश्चित मात्रा रक्त द्वारा निद्रा केन्द्र तक पहुँचा दी जाती है तो हमें नींद आ जाती है ।

किसी बाल्टी में पानी भरकर उसे आड़ा कर दें तो पानी उसमें से बह जाता है। लेकिन बाल्टी का हैन्डल पकड़कर उसे तेजी से चारों ओर घुमाने (जैसा हैमर थ्रो वाले हैमर को घुमाते हैं) से आड़ा होने पर भी पानी नहीं गिरता, ऐसा क्यों ?

उत्तर– किसी भी धुरी के चारों ओर घुमने वाली वस्तु पर दो बल लगते हैं। एक अपकेन्द्रित बल जो वस्तु को धुरी के बाहर एक सरल रेखा में फेंक देना चाहता है । जब बाल्टी को घुमाया जाता है तो उसके पानी को वही अपकेन्द्रित बल गिरने नहीं देता ।

लम्बी लकड़ी जल्दी टूटती क्यों है ?

उत्तर – किसी भी लकड़ी के टूटने के लिए आधूर्ण देखा जाता है जो जितना ज्यादा होगा लकड़ी जल्दी टूटेगी । आधूर्ण लगाए गए बल और अवलम्ब से उसकी दूरी अधिक होती है। अतः कम बल लगाने पर ही इतना आधूर्ण पैदा हो जाता है, जो लकड़ी को तोड़ दे ।

किसी लट्टू को घूमाकर छोड़ देने पर वह कुछ देर तेजी से घूमता रहता है पर थोड़ी देर बाद उसकी रफतार कम होने लगती है और वह रुक जाता है, क्यों ?

उत्तर – ऐसा जड़त्व के कारण होता है । जड़त्व वह घटना जिसके कारण कोई भी स्थिर वस्तु स्थिर ही रहना चाहती है और गतिशील वस्तु गतिशील ही । पृथ्वी इसलिए अपनी धुरी पर एक ही रफ्तार से घुमती रहती है पर पृथ्वी को अंतरिक्ष में हवा के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता जबकि धरती पर घूमने या चलने वाली वस्तु को यह प्रतिरोध झेलना पड़ता है और क्रमशः उसकी रफ्तार कम होती जाती है ।

रेडियो से विभिन्न स्टेशनों की आवाजें आती हैं, ऐसा क्यों ?

उत्तर – रेडियो की घुंडी ही हमें विभिन्न स्टेशनों के कार्यक्रम सुनाई देने लगते हैं । इसका कारण यह है कि विभिन्न रेडियो स्टेशन विभिन्न आवृत्तियों की तरंगे प्रसारित करते हैं। रेडियों में भी एक विद्युत् परिपथ होता है जिसमें विद्युत् कम्पन होते हैं । रेडियो की घुंडी घुमाते ही रेडियो सेट के अन्दर लगे विद्युत् यंत्र धारिता बदलती है जिससे विद्युत् परिपथ की आवृत्ति बदल जाती है। जब यह आवृत्ति किसी स्टेशन द्वारा प्रसारित तरंगों की आवृत्ति के बराबर होती है तो विद्युत् परिपथ इन तरंगों को ग्रहण कर लेता हैं तथा रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम सुनाई देने लगते हैं । इस तरह हम रेडियो की घुंडी घुमाकर विभिन्न स्टेशनों के प्रोग्राम सुनते हैं ।

मक्खी छत पर उल्टी कैसे चल लेती है ?

उत्तर– इसका कारण मक्खी के पैरों की अजीब बनावट है। मक्खी का शरीर तीन भागों में विभाजित है सर, धड़ और अदर । बीच के हिस्स में छः पैर होते हैं, हर पैर के पाँच हिस्से होते हैं । चलने के लिए मक्खी अपने पिछले दो पैरों का उपयोग करती है । वह इन पैरों पर पंजों के बल चलती है । इन पंजों के नीचे गड्डों से खास किस्म का चिपकने वाला तरल पदार्थ निकलता है। इसी पदार्थ के सहारे मक्खी किसी भी सतह पर उल्टी या सीधी चल सकती है । चिपकने वाले पदार्थ के कारण वह सतह से अलग नहीं होती है ।

मुर्दा पानी में क्यों तैरता है ?

उत्तर– किसी वस्तु का पानी पर तैरना उसके घनत्व और उस वस्तु द्वारा हटाए गए पानी की मात्रा पर निर्भर करता है। आमतौर पर जिन वस्तुओं का घनत्व पानी से कम होता है वे पानी पर तैरती हैं और जिन वस्तुओं का घनत्व पानी से अधिक होता है, वे पानी में डूब जाती हैं, साथ ही साथ वही वस्तु पानी में तैरती हैं, जिसके द्वारा हटाए गए पानी का भार उस वस्तु के भार के बराबर होता है ।
मनुष्य के शरीर का घनत्व पानी से कम होता है, इसलिए जीवित मनुष्य पानी में गिर जाने पर कुछ क्षणों के लिए तैरता है । जब उसके शरीर में पानी भर जाता है तो उसका घनत्व बढ़ जाता है और वह पानी में जाता डूब है । जब आदमी मर जाता है तो उसका शरीर पानी में फूलने लगता है। इससे शरीर का आयतन बढ़ जाता है और शरीर का घनत्व कम हो जाता है । जब शरीर का घनत्व पानी से कम हो जाता है तो मुर्दा पानी पर तैरने लगता है।

डबल रोटी में छेद क्यों होते हैं ?

उत्तर – संसार के सभी देशों में डबलरोटी को एक प्रमुख खाद्य पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है । अधिकतर डबलरोटी गेहूँ के आटे या मैदे से बनाई जाती है ।
प्रमाणों के अनुसार डबलरोटी बनाने की शुरूआत ईसा से लगभग 3 हजार वर्ष पूर्व मिस्त्र में हुई थी । खमीर का आविष्कार भी वहीं हुआ था । मैदा की गर्मी और नमी के कारण इसमें मिलाया हुआ ईस्ट बड़ी तेजी से बढ़ता है । इसके बढ़ने में कुछ गैस पैदा होते हैं और उसके बुलबुलों के कारण गुंथा हुआ मैदा का आयतन भी बढ़ जाता है । जब इसे गर्म भट्टियों में सेका जाता है तो गेस के बुलबले फटकर डबलरोटी के छोटे-छोटे छेद पैदा कर देते हैं । इसी खमीर के कारण डबलरोटी में गंध और स्वाद पैदा हो जाता है । यह छेद किसी भी डबलरोटी के टुकड़ों में देखे जा सकते हैं। केक में यह छेद बेकिंग सोडे की वजह से होते हैं ।

इन्द्रधनुष कैसे बनता है इसका आकार धनुषाकार या अर्धवृत्ताकार ही क्यों होता है ?

उत्तर – जब वारिश के बाद सूर्य आकाश में चमकता है तो सूर्य के प्रकाश की किरणें वर्षा की बूँदों में से होकर गुजरती हैं और बूँदे एक छोटे प्रिज्म की भाँति व्यवहार करती हैं जिससे किरणें अपने मार्ग से विचलित होकर सात रंगों में विभक्त हो जाती हैं। इससे एक सुन्दर रंगीन चापीय (वृत्ताकार) प्रतिरूप दिखाई देता है जिसे इन्द्रधनुष कहते हैं । इसकी वृत्ताकार आकृति एक ज्यामितीय सिद्धांत के कारण होती है। यदि भारी वर्षा हुई तो यह आकाश पर पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक फैला हुआ दिखाई देता है । इस रोचक घटना के कारणों में भौतिक विज्ञान के दो नियम हैं परावर्तन व अपवर्तन । सूर्य के प्रकाश की किरणें वर्षा की बूँदों से परावर्तित और अपवर्तित होकर इन्द्रधनुष का रंगीन पैटर्न बनाती हैं ।
यद्यपि भारी वर्षा के दौरान पूर्ण वृत्तीय इन्द्रधनुष बनता है लेकिन पृथ्वी पर स्थित प्रेक्षक को क्षितिज के कारण केवल एक चाप (वृत्त का एक भाग) ही दिखाई देता है। जब सूर्य क्षितिज के पास होता है, तो एक ऊँची पहाड़ी पर या उड़ते गुब्बारे में स्थित प्रेक्षक पूर्ण वृत्तीय इन्द्रधनुष देख सकता है ।

आग गर्म क्यों होती है ?

उत्तर– आग अनिवार्यतः एक रासायनिक अभिक्रिया है जिसमें ईंधन के यौगिक ऑक्सीजन या अन्य ऑक्सीकारकों के साथ अभिक्रिया करके ऑक्सीकृत होते हैं। ऑक्सीजन एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है जिसमें ईंधन के यौगिक के विघटित होने पर प्रचुर मात्रा ऊर्जा मुक्त होती है जो पुन:संयोग अभिक्रिया में बिना उपयोग हुए रहती है । मुक्त ऊर्जा की यही प्रचुर मात्रा प्रकाश में ऊष्मा के रूप में विकरित होती है । इसी ऊष्मा के कारण आग गर्म होती है।

फोटो फिल्म प्रकाश में खराब हो जाती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर– फोटो फिल्मों को प्रकाश में लाने से वह खराब हो जाती है। इसका कारण है कि फोटो फिल्म पर सिल्वर ब्रोमाइड एवं कुछ अन्य रसायनों का लेप चढ़ा होता है, जिसे सुग्राही फिल्म कहा जाता है। कैमरे द्वारा जब प्रकाश की किरणें लैंस द्वारा सुग्राही फिल्म पर पड़ती हैं तब इस फिल्म के सिल्वर ब्रोमाइड में रसायनिक परविर्तन होता है और वस्तु का चित्र फिल्म पर अंकित हो जाता है ।
यह परिवर्तन सिल्वर ब्रोमाइड के अपचयन के कारण होता है। सिल्वर ब्रोमाइड प्रकाश के प्रति तीव्र सुग्राही होता है । इसलिए फोटो फिल्म को प्रकाश में लाने से फिल्म का सिल्वर ब्रोमाइड अपचयित होकर खराब हो जाता है और चित्र खीचने के लायक नहीं रहता ।

पैट्रोल की आग पानी से नहीं बुझती, ऐसा क्यों ?

उत्तर – पैट्रोल की आग पानी से नहीं बुझती है। दरअसल पेंट्रोल आग को पकड़ लेता है । इस आग पर डाला गया पानी पैट्रोल को ढक नहीं पाता और पेट्रोल फिर भी जलता रहता है । इसके विपरीत आग मौजूद रहने के कारण पानी शीघ्र भाप बनकर उड़ जाता है । इसलिए पेट्रोल की आग पानी से नहीं बुझती ।

खराब अंडा पानी पर तैरता है, क्यों ?

उत्तर – खराब अंडा पानी पर तैरता है इसका कारण है कि खराब होने पर अण्डे के घनत्व में कमी आ जाती है जिससे वह तैरने लगता है ।

गोताखोर समुद्र में साँस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन की बजाए गैसों का मिश्रण प्रयोग में लाते हैं, क्यों ?

उत्तर – इसका मुख्य कारण है कि अधिक समय तक साँस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन का प्रयोग फेफड़ों के लिए हानिकारक होता है, इसलिए ऑक्सीजन में अक्रिय गैस हीलियम मिला दी जाती है ।

विद्युत् करैन्ट घातक क्यों होता है ?

उत्तर – विद्युत् का नंगा तार यदि हमारे शरीर के किसी भी अंग को छू जाए तो हमें तुरन्त तेज झटका लगता है । इससे इंसान की मृत्यु भी हो सकती है। दरअसल विद्युत् धारा की तुलना में हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। जिससे विद्युत धारा हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है और ऐसी स्थिति में मांसपेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। हृदय की गति अनियमित हो जाती है और साँस लेने में तकलीफ होने लगती है। साथ ही ऊतक, नाड़ियाँ एवं मांसपेशियाँ गर्म हो जाती हैं । ये विद्युत् धारा शरीर से होकर भूमि में प्रवेश करती रहती हैं । गीला शरीर सूखे शरीर की अपेक्षा अधिक सुचालक होता है। इसलिए गीले शरीर पर करेंट लगने की संभावना अधिक रहती है । आपने विद्युत् कर्मियों को रबर के दस्ताने पहने और लकड़ी की सीढ़ियों पर चढ़े ज़रूर देखा होगा यह दोनों चीजे यानी रबर व लकड़ी विद्युत के कुचालक हैं जिसमें करेंट नहीं लगता ।

तालाब में पानी जमने के बाद भी जीव जन्तु जीवित रहते हैं, ऐसा क्यों ?

उत्तर– समुद्र या तालाब में पानी जमने के बाद भी समुद्री जीव मछली इत्यादि जीवित रहती हैं । इसका कारण यह है कि पानी का घनत्व -4 डिग्री से.ग्रे. पर सबसे अधिक होता है इसलिए -4 डिग्री से.ग्रे. का पानी सबसे नीचे की सतह पर चला जाता है। इससे कम तापमान का पानी क्रमशः ऊपर की परतों में रहता है । यह क्रम घटते क्रम पर रहता है। मसलन जैसे-जैसे तापमान में कमी होती जाती है। वैसे-वैसे पानी ठण्डा होता जाता है। जब सबसे ऊपर की परत का तापमान शून्य डिग्री से. ग्रे हो जाता है तो बर्फ जम जाती है । परन्तु यह केवल ऊपरी परत ही होती है । बर्फ ऊष्मा की कुचालक है । इसलिये नीचे के पानी की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती । यही कारण है कि सतह पर बर्फ जम जाने के बाद भी समुद्री जीव नीचे की पतरों में सुरक्षित रहते हैं ।

भैंस पानी में रहना अधिक पसन्द करती हैं, ऐसा क्यों ?

उत्तर – गर्मी के दिनों में भैंस दिन भर तालाब में बैठे रहना अधिक पसन्द करती हैं। दरअसल उसकी काली त्वचा ऊष्मा विकिरण के अधिकांश भाग को सोख लेती है और बहुत कम भाग को परावर्तित करती है । जिससे उसे गर्मी भी अधिक लगती है । यही कारण है कि भैंस पानी में रहना अधिक पसन्द करती है ।

खिड़की के काँच पर पत्थर मारने से वह टुकड़े-टुकड़े हो जाता है परन्तु गोली दागने पर गोल एक छेद बनाकर पार निकल जाती है, क्यों और कैसे ?

उत्तर – इसका कारण है कि गोली के अधिक वेग के कारण संघात स्थल का काँच गतिशील हो जाता है परन्तु विराम जड़त्व के कारण समीपवर्ती काँच अपनी पूर्व विरामावस्था में ही रहता है । इसलिए जब तक यह भाग गतिशील होने का प्रयत्न करता है, गोली एक स्पष्ट गोल छेद बनाती हुई पार निकल जाती है। परन्तु इसके विपरीत पत्थर का वेग कम होने के कारण समीपवर्ती काँच के भाग भी कम ज़्यादा रूप से गतिमान हो जाते हैं । इस प्रकार काँच के निकटवर्ती क्षेत्र के कण पत्थर के बाहर निकलने से पूर्व ही भिन्न-भिन्न वेंग के साथ गति अवस्था ग्रहण करने का प्रयत्न करते हैं । फलस्वरूप काँच टुकड़े-टुकड़े हो जाता है ।

ऊनी कपड़ों के रन्ध्रों में गर्द एकत्र हो जाने पर गर्द को दूर करने के लिए कपड़ों को छड़ी से पीटा जाता है, ऐसा क्यों ? 

उत्तर – ऊनी कपड़ों के रन्ध्रों में गर्द एकत्र हो जाने पर गर्द को दूर करने के लिए कपड़ों को छड़ी से इसलिए • पीटा जाता है ताकि छड़ी के मार से कपड़ा गतिशील हो जाए और धूल के कण विराम- जड़त्व के कारण अपनी विरामावस्था में ही बने रहकर कपड़े से अलग हो जाए । यही कारण है कि गर्द का सम्पर्क कपड़ें से टूट जाता है।

यदि कोई मनुष्य गाड़ी में असावधनी से बैठा हो और गाड़ी अचानक ही चल दे तो मनुष्य पीछे की ओर गिर पड़ता है, क्यों और कैसे ?

उत्तर – इसका कारण यह है कि शरीर का निचला भाग गाड़ी के साथ आगे की ओर चलता है विराम परन्तु जड़त्व के कारण शरीर का ऊपरी भाग विरामावस्था में ही रहने का प्रयत्न करता है । इसलिए कोई मनुष्य गाड़ी में असावधानी से बैठा हो और गाड़ी अचानक ही चलपड़े तो मनुष्य पीछे की ओर गिर पड़ता है।

चलती हुई गाड़ी में असावधानी से उतरता हुआ मनुष्य आगे की ओर गिर जाता है, क्यों और कैसे ?

उत्तर – इसका कारण है कि मनुष्य का ऊपरी भाग गाड़ी के वेग के साथ गतिशील रहता है । परन्तु उसके नीचे का भाग एकाएक विरामवस्था में आ जाता है । अतः गति – जड़त्व के कारण ऊपरी हिस्सा गतिशील रहने की चेष्टा करता है परन्तु इसके विपरीत नीचला हिस्सा विराम अवस्था में आने की चेष्टा करता है । जिसके कारण मनुष्य आगे की ओर गिर जाता है ।

यदि आग की लपटों के पास काँच लगा दिया जाये तो काफी पास खड़े होकर भी प्रयोग किया जा सकता है, क्यों ?

उत्तर – इसका कारण है कि काँच ऊष्मा किरणों को निकलने देता है । वह दृश्य प्रकाश को निकल जाने देता है जो अधिक ऊष्मा उत्पन्न नहीं करता ।

क्रिकेट के खेल में खिलाड़ी गेंद लपकते समय अपना हाथ पीछे क्यों ले आता है ।

उत्तर – क्रिकेट का खिलाड़ी तेज आती गेंद को रोकने के लिए गेंद को पकड़ने के साथ-साथ पीछे ले जाता है । इसका कारण यह है कि गेंद को रोकने के लिए संवेग परिवर्तन तो निश्चित है यदि खिलाड़ी हाथ को पीछे नहीं ले जायेगा तो गेंद कम समयान्तराल में रूक जायेगी और बल अधिक लगाना पड़ेगा जिससे हाथ में चोट लग सकती है । इसलिए बल कम करने के लिए हाथों को पीछे ले जाकर समयान्तराल को बढ़ा देता है। जिससे बल कम लगाना पड़ता है और गेंद हाथ को बिना चोट पहुँचाए रूक जाती है ।

तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा अचानक रूक जाए तो सवार आगे की ओर गिर जाता है, क्यों और कैसे ?

उत्तर – तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा अचानक रूक जाने पर सवार आगे की ओर इसलिए गिर जाता है क्योंकि घुड़सवार का नीचे का भाग एकाएक विरामावस्था में आ जाता है; परन्तु ऊपरी भाग गति के जड़त्व के कारण पूर्ण वेग से आगे की ओर बढ़ता है । इस कारण घुड़सवार आगे की ओर गिर जाता है ।

मनुष्य, जानवर आदि जाड़ों में अधिक खाना खाते हैं, क्यों और कैसे ?

उत्तर – जाड़ों में वायुमंडलीय ताप कम हो जाता है परन्तु जीवधारियों का ताप उतना ही रहता है । अतः शरीर द्वारा अधिक ऊष्मा की हानि होती है। क्योंकि भोजन से ऊष्मा प्राप्त होती है, अतः शरीर का ताप स्थिर बनाए रखने के लिए वे अधिक खाना खाते हैं ।

जब किसी चालक से धरा प्रवाहित की जाती है तो वह गर्म हो जाता है, क्यों और कैसे ?

उत्तर – चालक का प्रयोग विद्युत ऊर्जा के वितरण या संरचरण के लिए किया जाता है । अतः चालक का अपना प्रतिरोध जितना ज्यादा कम होगा वह उतना ही अधिक उच्च कोटि का माना जाएगा। हर चालक की क्षमता उसमें प्रवाहित हो सकने वाली धारा पर निर्भर करती है। क्षमता से अधिक धारा प्रवाहित होने पर चालक में विद्युत् ऊर्जा का क्षय (लाइन लॉस) भी बढ़ जाता है । विद्युत् ऊर्जा का यह क्षय ही चालाक में ऊष्मा उत्पादन के लिए. उत्तरदायी होता है । ऊष्मा उत्पादन का सीधा सम्बन्ध चालक में प्रवाहित होने वाली धारा और समय से होता है । चूँकि उत्पन्न ऊष्मा धारा के वर्ग, प्रतिरोध एवं समय के समानुपाती होती है ।
अतः अधिक विद्युत् ऊर्जा का क्षय होने पर चालक भी अधिक गर्म हो जाता है और कभी-कभी तो अत्यधिक ऊष्मा सुरक्षा की दृष्टि से भी यह आवश्यक है कि हमेशा यह ध्यान रखा जाए कि चालक में क्षमता से अधिक धारा प्रवाहित न हो ।

रेगिस्तान में दिन बहुत गर्म तथा रातें बहुत ठण्डी हो जाती हैं, क्यों और कैसे ? 

उत्तर – रेत ऊष्मा का अच्छा अवशोषक है, अतः दिन में सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित करके गर्म हो जाती – है और रात में रेत ऊष्मा को अधिक मात्रा में विकिरण द्वारा खोकर ठण्डी हो जाती है।

सुबह के समय पत्तियों पर जल की बूँद (ओस) क्यों जम जाती है ?

उत्तर– जैसे-जैसे पेड़ पौधे बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी जड़ों के ऊतकों की अधिक जल तथा खनिज अवशोषित करने की क्षमता बढ़ती जाती है। इस तरह पौधों में जल की मात्रा के बढ़ने से उनकी जड़ों में दाब उत्पन्न होने लगता है । जो जल को दारू (जाइलम) में और अन्ततः तने में चढ़ने पर बाध्य करता है । चूँकि पौधों की जड़ों में उत्पन्न दाब रात्रि में अधिकतम होता है। इस कारण पानी की छोटी-छोटी बूँदे पत्तियों से बाहर निकलकर किनारों पर सुबह सुबह दिखाई देती हैं । यह प्रक्रिया वाष्पोत्सर्जन (ट्रांसपिरेशन) की प्रक्रिया से भिन्न होती है । इसके अतिरिक्त ओस के कारण बूँदें भी पौधों की पत्तियों पर दिखाई देती है जो उनके ऊपरी सतह पर एकत्रित होती हैं ।

चाय की केतली की बाहरी सतह चमकदार बनाई जाती है तथा खाना बनाने वाले बर्तनों की तली काला तथा खुरदरी बनाई जाती है, ऐसा क्यों ?

उत्तर– यदि कोई वस्तु गर्म है और आप उसे काफी देर तक गर्म रखना चाहते हैं या कोई वस्तु ठण्डी है और आप उसे बाहरी ऊष्मा से बचाना चाहते हैं तो उसका बाहरी तल खूब चमकीला कर देना चाहिए । इसी कारण चाय की केतली ऊष्मा मापी के बाहरी तेल, रेलगाड़ियों के इंजन के भाप की नलियों को भट्टियों में कोयला झोंकने वाले मनुष्यों के लोहे के टोपो को खूब चमका दिया जाता है। इसके विपरीत यदि किसी वस्तु को आप जल्दी गर्म करना चाहते हैं तो बाहरी तल काला तथा खुरदरा होना चाहिए । यही कारण है कि चाय की केतली, पतीली, भगौना, कढ़ाही आदि को बाहर से काला कर दिया जाता है। ऐसा करने से इन बर्तनों में रखा पदार्थ जल्दी पक जाता है । अतः इसे यह निष्कर्ष निकला है कि यदि बर्तन को जल्दी गर्म करना हो तो उसका बाहरी तल काला और खुरदरा होना चाहिए तथा यदि उसे अधिक देर तक गर्म बनाये रखना हो तो उसका बाहरी तल (आन्तरिक तल भी) खूब चमकीला होना चाहिए ।

पहाड़ गर्मियों में ठण्डे होते हैं. ऐसा क्यों ?

उत्तर – पहाड़ी जमीन समतल नहीं होती, जिस कारण अधिकतर स्थानों पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता जिससे अधिकतर भाग गर्म नहीं हो पाते। इन पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं जिससे जमीन के मात्रक क्षेत्रफल को मैदानों की अपेक्षा कम ऊष्मा मिलती है। सूर्य के छिपने पर पृथ्वी विकिरण द्वारा ठण्डी होने लगती है । यह निश्चित द्रव्यमान के लिए पहाड़ों का पृष्ठ क्षेत्रफल मैदानों की अपेक्षा अधिक होता है । अतः पहाड़ बहुत शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं । इसलिए पहाड़ों पर रात और भी ठण्डी होती है । पहाड़ ऊँचाई पर होते हैं जिस कारण वायु का घनत्व बहुत कम हो जाता है । इस कारण विकीर्ण ऊर्जा का वायु के अणुओं द्वारा वापस परावर्तन नहीं होता है । इसलिए पहाड़ गर्मियों में भी ठण्डे होते हैं ।

पहाड़ नीले क्यों दिखाई पड़ते हैं ?

उत्तर – पहाड़ों पर तापमान कम होने के कारण आद्रता अधिक होती है। इससे पानी की महीन बूँदे अस्तित्व में आ जाती हैं । ये बूँदें वायु अणुओं के साथ मिलकर प्रकाश के नीले भाग का प्रकीर्णन सबसे अधिक करती हैं जिससे पहाड़ नीले दिखाई देने लगते हैं ।
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