Ajinkya Rahane: ‘मुझे WTC फाइनल के बाद बाहर कर दिया’, अजिंक्य रहाणे ने खुल कर बताई कमजोरी, कैसे हुए टीम से बाहर

Ajinkya Rahane: भारतीय क्रिकेट में तमाम उपलब्धियां हैं, जिनमें विश्वकप से लेकर चैंपियंस ट्रॉफी तक शामिल हैं. लेकिन किसी चुनौतीपूर्ण जगह पर भारत की जीत सबसे ज्यादा मायने रखती है, तो वह जीत जमाने तक याद रखी जाती है. ऐसी ही एक जीत दिलाई थी कप्तान अजिंक्य रहाणे ने. साल 2021 ऑस्ट्रेलिया में बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी, चार मैचों का पहला मैच हो चुका था, लेकिन अचानक भारतीय टीम के कप्तान और स्टार बल्लेबाज विराट भारत लौट आए. उस मझधार में टीम की कमान संभाली अजिंक्य रहाणे ने और भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई. लेकिन इस स्टार को हाल ही समाप्त हुई ऑस्ट्रेलिया सीरीज में शामिल नहीं किया गया. 

रहाणे ने भारत के लिए तीनों प्रारूप खेले, हालांकि यह टेस्ट क्रिकेट था जहां उन्होंने वास्तव में अपना नाम बनाया. फिलहाल वे तीनों प्रारूपों में से किसी में भी भारतीय टीम का हिस्सा नहीं है, लेकिन रहाणे ने अंतरराष्ट्रीय वापसी की उम्मीद नहीं छोड़ी है. हालांकि राष्ट्रीय चयन वास्तव में रहाणे के हाथ में नहीं है, लेकिन पूरे जीवन में बलिदान देने वाले रहाणे जानते हैं कि कैसे शांत रहना है और अपने अवसर का इंतजार करना है. रणजी ट्रॉफी में फिर एक बार 2025 में अपनी टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाने वाले रहाणे ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने अपने जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं पर बात की. 

राष्ट्रीय चयनकर्ताओं ने भले ही युवा खिलाड़ियों पर भरोसा जताया हो, लेकिन  लगभग दो साल पहले वेस्टइंडीज में भारत के लिए खेलने वाले अजिंक्य रहाणे का क्रिकेट करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, लेकिन 36 साल की उम्र में भी उनका जज्बा बरकरार है. उनका कहना है कि उम्र बढ़ने के बावजूद वह खुद को युवा महसूस करते हैं और उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए पूरी तरह फिट हैं. क्रिकेट के प्रति उनका जुनून बरकरार है, और वह कभी भी अपने खेल से संतुष्ट नहीं होते. उनका मानना है कि उनके अंदर अभी भी क्रिकेट बाकी है और वह शीर्ष स्तर पर खेलते रहना चाहते हैं.

शुरुआत से ही रहाणे एक शांत और शर्मीले स्वभाव के खिलाड़ी रहे हैं. हालांकि, अब उन्होंने महसूस किया है कि क्रिकेट के अलावा भी कुछ चीजें आगे बढ़ने के लिए जरूरी होती हैं. उनका कहना है कि पहले वह सिर्फ खेल पर ध्यान देते थे और अपने प्रदर्शन को लेकर ज्यादा बात नहीं करते थे. लेकिन अब उन्हें एहसास हुआ है कि खबरों में बने रहना जरूरी है, वरना लोग उन्हें भुला देते हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि उनके पास कोई पीआर टीम नहीं है और उनका एकमात्र प्रचार उनका क्रिकेट ही है. यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रही है.

हालांकि चयनकर्ताओं से उन्हें कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन उनकी प्रेरणा का स्रोत टेस्ट क्रिकेट बना हुआ है. इस समय वह रणजी ट्रॉफी में मुंबई टीम के लिए खेल रहे हैं और उनका लक्ष्य एक बार फिर भारतीय टीम में वापसी करना है. उन्होंने पहले भी जब टीम से बाहर किया गया था, तो शानदार प्रदर्शन कर वापसी की थी. उन्होंने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल के लिए खुद को तैयार किया और चयनित भी हुए, लेकिन उसके बाद फिर से टीम से बाहर कर दिया गया. इस अनदेखी से उन्हें जरूर दुख हुआ, लेकिन उनका कहना है कि उनके नियंत्रण में सिर्फ खेलना है और वही वह कर रहे हैं.

जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें नहीं लगता कि उनकी प्रतिभा के अनुसार उन्हें और अधिक मौके मिलने चाहिए थे, तो उन्होंने कहा कि वह बहाने नहीं बनाएंगे. उन्होंने माना कि जिस नंबर पर वह बल्लेबाजी करते थे, वहां उनके योगदान की अहमियत थी. कोविड के बाद की पिचों पर बल्लेबाजी औसत गिरा, जिससे उनका प्रदर्शन भी प्रभावित हुआ. हालांकि, उनका कहना है कि उन्होंने जब भी टीम के लिए खेला, अपनी भूमिका को अच्छे से निभाया.

रहाणे ने यह भी बताया कि उन्होंने कभी चयनकर्ताओं से जाकर यह नहीं पूछा कि उन्हें क्यों बाहर किया गया. उन्हें अजीब लगा जब वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल के बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया, जबकि उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी. हालांकि, वह शिकायत करने के बजाय अपने खेल पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी समझते हैं.

रहाणे ने कहा, “मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो जाकर पूछे कि मुझे क्यों हटाया जा रहा है. कोई संवाद नहीं हुआ. कई लोगों ने कहा कि ‘जाओ और बात करो’ लेकिन कोई तभी बात कर सकता है जब दूसरा व्यक्ति बात करने के लिए तैयार हो. अगर वह तैयार नहीं है, तो लड़ने का कोई मतलब नहीं है. मैं आमने-सामने बात करना चाहता था. मैंने कभी मैसेज नहीं किया. मुझे अजीब लगा जब मुझे WTC फाइनल के बाद बाहर कर दिया गया क्योंकि मैंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी. मुझे लगा कि मैं अगली सीरीज के लिए टीम में रहूंगा. शिकायत करने का कोई मतलब नहीं है. मैं केवल वही कर सकता हूं जो मेरे हाथ में है. मुझे विश्वास है कि मैं वापसी करूंगा.

उन्होंने सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया और खुद को फिट और तैयार पाया. उनका कहना है कि उन्होंने अपनी बल्लेबाजी में कई सुधार किए हैं और वह अब भी भारतीय टीम के लिए खेलने के इच्छुक हैं. बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में कप्तानी के बाद उनका करियर अप्रत्याशित रूप से उतार-चढ़ाव भरा हो गया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया है.

उनका मानना है कि भारतीय क्रिकेट में उम्र को लेकर ज्यादा महत्व दिया जाता है, जबकि फिटनेस और फॉर्म अधिक मायने रखती है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कई खिलाड़ी 39-40 की उम्र तक खेले हैं, और सीनियर खिलाड़ियों की उपस्थिति युवा खिलाड़ियों के विकास में मदद करती है.

ड्रेसिंग रूम के माहौल के बारे में उन्होंने कहा कि पहले के समय में सीनियर खिलाड़ियों से सीखने का मौका मिलता था, लेकिन अब हर खिलाड़ी को प्रैक्टिस के लिए समान अवसर मिलता है. रहाणे की पृष्ठभूमि साधारण रही है और उन्होंने हमेशा सादगी से जीवन जीने की कोशिश की है. उनका मानना है कि क्रिकेट ही उन्हें यह पहचान और सम्मान दिला पाया है.

युवा खिलाड़ियों को लेकर उन्होंने कहा कि वह उनकी निजी ज़िंदगी में दखल नहीं देते, लेकिन सही समय पर उन्हें सलाह जरूर देते हैं. उन्होंने कई ऐसे खिलाड़ियों को देखा है, जो गलत फैसलों और दोस्तों के कारण अपने करियर से भटक गए. उनका कहना है कि जब कोई खिलाड़ी अच्छा करता है, तो कई लोग साथ होते हैं, लेकिन बुरा वक्त आते ही वही लोग दूर हो जाते हैं.

रहाणे की सोच हमेशा सादगी भरी रही है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में सेकंड-हैंड वैगनआर खरीदी थी और महंगी कारों की जगह समझदारी से निवेश करना पसंद किया. उन्होंने घरेलू क्रिकेट को लेकर कहा कि उन्हें इसमें कोई परेशानी नहीं है और वह इसे भी पूरी गंभीरता से लेते हैं.

रहाणे की ख्वाहिश है कि जब लोग उन्हें याद करें, तो एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में करें जिसने कभी हार नहीं मानी. उनके लिए क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं बल्कि जुनून है, और वह अब भी देश की सेवा के लिए तैयार हैं.

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