१०वें राष्ट्रपति महामहिम श्री के० आर० नारायणन
१०वें राष्ट्रपति महामहिम श्री के० आर० नारायणन
सार्थक और निरर्थक हुआ तथ्य नहीं पर लग गई तो कुछ और पाताल का पन्द्रह-बीस वर्ष तक का ही संरक्षण यह बात राष्ट्रपति ध्वनियाँ कितनी महत्त्वपूर्ण होती हैं, चाहे वह स्वर हों या व्यंजन यह । उदाहरण के लिये ‘इ’ की मात्रा को ही ले लीजिए। यदि पिता शब्द और अर्थ हो गया, यदि वहीं मात्रा ‘त’ पर लग जाती है तो अर्थ में अन्तर हो जाता है। कहाँ पूति और कहाँ पिता पिता अधिक से अधिक प्रदान कर पाता है परन्तु पति जीवन भर का संरक्षक होता है।
यही बात और राष्ट्रपिता के सम्बन्ध में है। महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता थे, स्वतन्त्र भारत माता की कुछ दिन ही देख-भाल कर सके फिर राष्ट्रपति के क्रम प्रारम्भ हुए। महात्मा गाँधी का स्वप्न साकार हुआ कि भारत का राष्ट्रपति कोई किसान या किसान का बेटा होगा । डा० राजेन्द्र प्रसाद जो स्वयं किसान परिवार के थे, भारत के प्रथम राष्ट्रपति हुए ।
स्वतन्त्रता के पचास वर्षों के विशाल अन्तराल के बाद स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर गाँधी जी का अधूरा स्वप्न तब पूरा हुआ जब भारत के १० वें राष्ट्रपति के पद पर दलित वर्ग आसीन हुए। इससे देश में समता, सुद्भाव और समरसता की सरिता तरंगति हो उठी । राजनीति से दूर देश का वातावरण एक दम श्री राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना भारतीय राजनीति की प्रौढ़ता का परिचायक है। श्री नारायणन को राष्ट्रपति के पद के लिए जिस प्रकार लगभग सर्वसम्मति से चुना गया उससे भारत के इतिहास में एक अत्यन्त को बदलती हुई मानसिकता तथा प्रतिभा और पर चुना जाना यह बताता है कि यह राष्ट्र अब न तो सौरभमय हो उठा।
श्री के० आर० नारायणन को नए गौरवमय पृष्ठ जुड़ा है। श्री नारायणन भारत योग्यता के परिचायक हैं। उनका राष्ट्रपति के पद के जातिवाद की पहले जैसी गिरफ्त में है और न ही उस सड़ी-गली जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था के चुंगल में जिसने देश को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई। यह कोई छिपी बात नहीं कि देश में अकारण का जातीय उन्माद भड़काकर भारतीय संस्कृति और समाज को न केवल लांछित करने की चेष्टा की जाती रही, बल्कि उसे विभाजित भी किया जाता रहा है। आज भी तात्कालिक राजनीतिक लाभ उठाने की दृष्टि से राजनीतिज्ञों का एक वर्ग खुलेआम जातीय उन्माद के सहारे अपनी राजनीति चलाना चाहता है। इसी तरह कुछ लोग अभी भी भारतीय मानसिकता पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह दलित उत्पीड़न की समर्थक है । सच तो यह है कि स्वाधीनता के उपरान्त भारत की मानसिकता बदली है। आज का भारत न तो जातिवाद का समर्थक है और न दलित उत्पीड़न का, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव और समर्थक है।
‘ही चाहिए’ इस सिद्धांत कि के० आर० अवसर पर श्री नारायणन सरीखे प्रतिभाशाली व्यक्ति को जैसा समर्थन दिया गया और उनके प्रति सारे देश ने आधुनिक भारत में जातिवाद के लिए कोई स्थान नहीं भी मूल्य पर समर्थन दिया जाना चाहिए। अच्छा यह होगा कि नए राष्ट्रपति के रूप में नारायणन की ओर से यह संदेश सारे देश को दिया
‘हर व्यक्ति को उसकी योग्यता और प्रतिभा के आधार पर आगे बढ़ने का मौका मिलना पर भारत पिछले ५० वर्षों में जो प्रगति की उसका ही यह परिणाम है नारायणन को राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया । स्वाधीनता की स्वर्ण जयंती के राष्ट्रपति के पद पर आसीन करने के लिए जो विश्वास व्यक्त किया वह स्तुत्य होना चाहिए और न ही जातिवाद को किसी जाए ।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति कोरिल रमन नारायणन अपनी प्रखर प्रतिभा और संघर्ष शक्ति के निर्धन दलित परिवार से उठकर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं।
श्री नारायणन के राष्ट्रपति चुने जाने के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में राष्ट्रपिता की स्वतंत्रता महात्मा गाँधी का दुलित को राष्ट्रपति बनाए ।
छात्रवृत्ति और ट्यूशन के जरिए पूरी करने वाले श्री नारायणन् ने एक मामूली शिक्षक के रूप में अपना जीवन शुरू किया था । २७ अक्टूबर १९२० को केरल के कोटोट्यम जिले के उझावूर गाँव में जन्मे श्री नारायणन को कुशल राजनयिक और मंत्री के रूप में सभी जानते रहे हैं पर कम लोग जानते हैं कि वे कभी पत्रकार भी रह चुके हैं। जाने का सपना पूरा हुआ अपनी शिक्षा-दीक्षा
निर्धन परिवार से होने के कारण उन्हें कई बार घर में पर्याप्त भोजन की नहीं उपलब्ध होता था लेकिन तमाम दिक्कतों से जूझते हुए उन्होंने वर्ष १९४३ में ट्रावनकोर विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
रिकार्ड अंक लेकर स्नातक बने श्री नारायणन के जीवन के प्रारम्भिक वर्ष कष्टों से भरे थे। उन्हें बचपन में स्कूल पहुंचने के लिए कई किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता था। कई स्कूल की फीस देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं होते थे ।
स्नातक बनने के बाद उन्होंने अपना व्यवसायिक जीवन लेक्चरार के रूप में शुरू किया। वर्ष १९४४-४५ में उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया में प्रवेश किया और अंग्रेजी दैनिक ‘द हिन्दू’ के उपसंपादक के रूप में काम किया। वह मुम्बई के ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में संवाददाता भी रहे।
श्री नारायणन टाटा की छात्रवृत्ति पर शिक्षा के लिए ब्रिटेन गये और लंदन स्कूल ऑफ इकनामिक्स’ में विश्वविख्यात् विद्वान एवं विचारक प्रोफेसर हैरोल्ड लास्की से शिक्षा प्राप्त की। तीन वर्ष की अपनी अर्थशास्त्र की डिग्री की पढ़ाई उन्होंने वर्ष १९४८ में दो वर्ष में प्रथम श्रेणी आनर्स में पूरी कर ली। इस दौरान वह मुम्बई के साप्ताहिक ‘सोशल वेल्फेयर’ के लंदन संवाददाता भी रहे ।
प्रोफेसर लास्की भी नारायणन से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने श्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर उनकी प्रशंसा की। इसके बाद १९४९ में श्री नारायणन भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो गये ।
श्री नारायणन थाईलैंड और तुर्की में भारत के राजदूत रहे । इससे पहले वह रंगून, टोक्यो, लंदा, आस्ट्रेलिया और हनोई में भारतीय उच्चायोगों में कार्यरत रहे । राजदूत के रूप में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती चीन में आई। उन्हें जुलाई १९७० में चीन भेजा गया। उस समय १५ वर्ष के अंतराल के बाद दोनों देशों के राजनयिक संबंध फिर कायम हुए थे ।
वर्ष १९७८ में विदेश सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्हें ‘जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय’ का कुलपति नियुक्त किया गया। श्री नारायणन इससे पहले १९५४ से १९५५ तक ‘दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स’ में आर्थिक प्रशासन के प्राध्यापक रहे ।
उपराष्ट्रपति कोचरी रमन नारायणुन को देश का १० वाँ राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित कर दिया गया । उन्होंने अपने एकमात्र प्रतिद्वदी और पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी० एन० शेषन को रिकार्ड मत- अंतर से पराजित किया। श्री शेषन् की जमानत जब्त हो गई ।
श्री नारायणन राष्ट्रपति पद सुशोभित करने वाले प्रथम दलित परिवार से हैं। अध्यापक, पत्रकार, राजन्यक मन्त्री और उप-राष्ट्रपति के रूप में उनका शानदार कार्यकाल रहा है। श्री नारायणन उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने वाले छठे राष्ट्रपति हैं । उनसे पहले डा० एस० राधाकृष्णन, डा० जाकिर हुसैन, श्री वी० वी० गिरि, श्री आर वेंकटरीमन और डा० शंकर दयाल शर्मा को यह गौरव हासिल हो चुका है।
श्री नारायणन को ४६४२ में से ४२३१ संसद सदस्यों और विधायकों के मत मिले । उनको मिले मतों का मूल्य ९५६,२९० रहा जबकि श्री शेषन मात्र २४० सांसदों और विधायकों के वोट ले पाए। उन्हें मिले मतों का मूल्य ५०६३१ (४८ प्रतिशत) है। निरस्त किए गए मतों की संख्या १७१ रही जिनका मूल्य ४४७१ मतों के बराबर था। निर्वाचन मंडल के सदस्यों की संख्या ४८४८ है जिसमें से २०६ सदस्यों ने मतदान नहीं किया।
श्री शेषन को ५०६३१ मत मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। शेषन को जमानत बचाने के लिए ८३,९३१ मतों की जरूरत थी। कुल मतों के हिसाब से श्री नारायणन को ९४९७ प्रतिशत मत मिले । अब तक राष्ट्रपति के चुनाव में इतनी भारी जीत हासिल करने वाले वह पहले व्यक्ति हैं। राष्ट्रपति पद के लिए इससे पहले १९५२, १९५७, १९६२, १९६९, १९७४, १९७७, १९८२, १९८७, तथा १९९२ में चुनाव हुआ ।
कोचेरिल रमन नारायणन नें देश के नए राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल लिया। उन्होंने दसवें राष्ट्रपति पद की शपथ २५ जुलाई १९९७ को ग्रहण की । श्री नारायणन ने हर आँख से आंसू पोंछने की राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की अभिलाषा को दोहराते हुए देशवासियों से अपने समस्त प्रयास जनता में व्याप्त निर्धनता, अज्ञानता और बीमारी को खत्म करने की ओर लगाने की जोरदार अपील की।
संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित एक भव्य तथा रंगारंग समारोह में भारत के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति जगदीश शरण वर्मा ने श्री नारायणन को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलायी। श्री नारायणन ने सुबह दस बजकर १४ मिनट पर हिन्दी में शपथ ली।
राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही श्री नारायणून के सम्मान में २१ तोपों की सलामी दी गई। इसके साथ ही परम्परा के अनुसार नए राष्ट्रपति और निवर्तमान राष्ट्रपति ने अपना आसन बदला।
शपथ ग्रहण समारोह शुरू होने से पूर्व राष्ट्रपति और तत्कालीन राष्ट्रपति की राजकीय सवारी राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के काफिले के बीच संसद भवन के परिसर में पहुंची। जहां उनका लोकसभाध्यक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश और राज्य सभा की उपसभापति ने स्वागत किया। बाद में संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में पहुंचने पर उनका उपस्थित मंत्रियों और सांसदों ने हार्दिक स्वागत किया।
शपथ ग्रहण समारोह पौन घंटे चला। श्री नारायणन व डा० शर्मा को न्यायमूर्ति श्री जे० एस० वर्मा, लोकसभा अध्यक्ष श्री संगमा और राज्य सभा की उपसभापति डा० हेपतुल्ला मंच पर ले गये । गृह सचिव के पदमनाभैया ने श्री नारायणन को राष्ट्रपति निर्वाचित किये जाने की अधिसूचना मुख्य न्यायाधीश ने श्री नारायणन को शपथ दिलायी। बाद में श्री नारायणेन ने ‘शपथ-रजिस्टर’ पर हस्ताक्षर किये। समारोह के समापन पर ‘सारे जहाँ से अच्छा’ की धुन बजाई गई ।
श्री नारायणन ने संसद के केन्द्रीय कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद्. अपने भाषण में कहा था कि महात्मा गाँधी ने भी अपनी हत्या के कुछ दिन पूर्व प्रार्थना सभा में भ्रष्टाचार के दानव का उल्लेख करते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में उदासीनता बरत्ना अपराध है।
राष्ट्रपति ने कहा कि मूल्यों के ह्रास की मौजूदा स्थिति में वरिष्ठ लोगों और नेताओं की यह
अहम जिम्मेदारी कि वे देश के युवाओं के लिए आदर्श स्थापित करें ताकि उन मूल्यों की रक्षा की जा सके जो हमारे सामाजिक जीवन के आधार रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में सांप्रदायिकता, जातिवाद, हिंसा और भ्रष्टाचार जैसी बुराइयाँ घुसने लगी हैं जिससे सार्वजनिक जीवन में नैतिक तथा आध्यात्मिक सूत्रों के कमजोर होने के लक्षण दिखाई दे रहे हैं ।
श्री नारायणन ने हिंसा और भ्रष्टाचार के बारे में महात्मा गांधी की भविष्य सूचक चेतावनी का उल्लेख करते हुए कहा कि जिन मूल्यों को हमने अपने दिलों में संजोया था उसमें चिंताजनक रूप से ह्रास हो रहा है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य ही हमेशा हमारे सामाजिक जीवन के मूल आधार रहे हैं ।
राष्ट्रपति के कहा कि संविधान के निर्माताओं ने भारत के लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का आश्वासन दिया था । राजनीति मात्र से चिपके रहने के कारण लोगों की स्माजिक, आर्थिक त्था विकास संबंधी आवश्यकताएँ प्रायः उपेक्षित रह गयी हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने मतभेदों को भुलाकर कुछ निश्चित समय विकास और लोगों के कल्याण में लगाना चाहिए । राष्ट्रपति को गज़बूत और एकजुट होने का और मैत्री के लिए अपनी भूमिका शांति और मैत्री के साथ रह के लिए अपना सारा ध्यान अर्थव्यवस्था के श्री नारायण ने अपने भाषण में देशवासियों आह्वान करते हुए कहा कि ऐसा करने से ही हम विश्व शान्ति को सशक्त बना सकते हैं। साथ ही अपने पड़ौसियों के साथ सकते हैं। श्री नारायणन ने यह भी विश्वास दिलाया कि हमारे संविधान में अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के संवर्धन के लिए जो प्रावधान किया गया है, उसके संरक्षण और प्रतिरक्षण का भी उनका प्रयास होगा ।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से देश की सशस्त्र सेनाओं की क्षमता और व्यावसायिक कुशलता को राष्ट्र के गौरव के रूप में प्रतिबिंबित होगी । करना उनके लिए सौभाग्य की बात होगी I
उन्होंने कहा कि हमारी सीमाओं की रक्षा करने वाले लोगों की वजह से ही हमारे देश की प्रगति संभव है। श्री नारायणन ने कहा कि इन सभी प्रयासों के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य और एकमात्र प्रार्थना यही होगी कि विभिन्न धर्मों, भाषाओं और मिश्रित संस्कृति वाला भारत महान और समृद्ध बने और इसकी सभी संतानों को समानता, भाई-चारे तथा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की भावना से इसकी समृद्धि में भागीदारी मिले ।
भारत के राष्ट्रपति
मई, १९५२ – मई, १९५७ डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
मई, १९५७ – मई, १९६२ डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
मई, १९६२ – मई, १९६७ डॉ० एस० राधाकृष्णन
अगस्त, १९६७ – अगस्त, १९६९ डॉ० जाकिर हुसैन
अगस्त, १९६९ – अगस्त, १९७४ श्री वी० वी० गिरी
अगस्त, १९७४ – अगस्त, १९७७ श्री फखरुद्दीन अली अहमद
अगस्त, १९७७ – जुलाई, १९८२ श्री नीलम संजीव रेड्डी
जुलाई, १९८२ – जुलाई, १९८७ ज्ञानी जेल सिंह
जुलाई, १९८७ – जुलाई, १९९२ श्री आर० वेंकटरम
जुलाई, १९९२ – जुलाई, १९९७ डॉ० शंकर दयाल शर्मा
जुलाई, १९९७ – ………………. श्री के० आर० नारायण
उन्होंने कहा कि हमने ये सारी उपलब्धियाँ शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक ढंग से हासिल उपलब्धियों के लिए भारत अपने लोकतंत्र पर गर्व करे सकता है। किन्तु साथ ही के उपेक्षित वर्गों की ओर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता बताते हमें अपने समस्त प्रयास जनता में व्याप्त निर्धनता, अज्ञान और बीमारी को समाप्त करने होंगे।
देश के इस उच्चतम पद पर बैठने के बाद महामहिम श्री के० आर० नारायणन ने इस पद की गरिमा के अनुकूल जो आचरण किया है, जिस निष्पक्षता के साथ निर्णय लिये हैं, उस पर वास्तव में हर भारतीय को गर्व है। प्रत्येक व्यक्ति उनके न्याय, निष्ठा और सच्चाई के पक्षपाती होने पर अपने आपको गौरवान्तित अनुभव कर रहा है। वास्तव में वह अपने कार्यकाल में ऐसी और कीर्तिमान स्थापित कर देंगे जो आने वाली संततियों के लिए मार्गदर्शन किया करेंगी।
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