हाई प्रोफाइल केस में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा गूगल? भारत की एक संस्था से चल रहा झगड़ा, ‘दादागिरी’ से जुड़ा है मामला – Google VS CCI: Is google abusing its dominance in android ecosystem, supreme court to hear

हाइलाइट्स

CCI ने गूगल पर 1300 करोड़ से ज्यादा का जुर्माना लगाया है.
NCLAT ने कहा- गूगल दबदबे का गलत इस्तेमाल कर रहा.
गूगल ने NCLAT के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है.

नई दिल्ली. गूगल और कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) के बीच कानूनी रस्साकशी चल रही है. CCI ने अपनी जांच में पाया था कि एंड्रॉयड इकोसिस्टम में गूगल दादागिरी कर रहा है और उसका व्यवहार कॉम्पिटीशन के अनुकूल नहीं है. CCI ने गूगल पर 1338 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. इस जुर्माने पर गूगल ने विरोध जताया तो मामला नेशनल कंपनी लॉ ऐपेलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) पहुंचा, ट्रिब्यूनल ने CCI के फैसले को बरकरार रखा. अब इस फैसले के खिलाफ गूगल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.

गूगल और CCI की लड़ाई दुनिया के सबसे हाई-प्रोफाइल कानूनी लड़ाइयों में शामिल है. इस लीगल बैटल पर कई देशों की सरकारों की नजर बनी हुई है. चलिए जानते हैं कि दोनों के बीच लड़ाई किस बात की है और इसका आम एंड्रॉयड यूजर पर क्या असर पड़ेगा. बता दें कि भारत स्मार्टफोन यूजर्स में 97 प्रतिशत एंड्रॉयड डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं.

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क्या है गूगल बनाम CCI का मामला?
अक्टूबर, 2022 में CCI ने दो अलग-अलग मामलों में गूगल पर 1337 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. CCI ने गूगल पर मार्केट में अपने दबदबे का फायदा उठाने का आरोप लगाया था. दोनों मामले ऐंटी-कॉम्पिटीशन प्रैक्टिस से जुड़े हुए थे. ऐंटी-कॉम्पिटीशन प्रैक्टिस यानी इस तरीके से काम करना कि कॉम्पिटीटर्स को पनपने का मौका ही न मिले.

इस फाइन के साथ-साथ CCI ने गूगल पर कई कंडीशंस लगाई थीं, जिनकी वजह से गूगल ज्यादा चिढ़ा. आपने नोटिस किया होगा कि जब आप एंड्रॉयड फोन या कोई डिवाइस लेते हैं तो उसमें गूगल के ज्यादातर ऐप्स पहले से इंस्टॉल्ड होते हैं. CCI ने गूगल की इस प्रैक्टिस को गलत बताया और कहा कि वो गूगल प्ले का लाइसेंस देने के बदले फोन मैनुफैक्चरर्स पर अपने ऐप्स प्री-इंस्टॉल करने का दबाव नहीं बना सकता है. CCI ने ये भी कहा कि गूगल ऐप डेवलपर्स को अपने ऐप्स को साइड लोडिंग यानी गूगल प्ले स्टोर के बाहर से डिस्ट्रिब्यूट करने से नहीं रोकेगा.

Google vs CCI 1

एंड्रॉइड फोन में कई गूगल ऐप्स पहले से इंस्टॉल होकर आते हैं. इसे CCI ने गलत बताया है.

CCI ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि गूगल ने स्मार्टफोन्स के लिए अपने ऑपरेटिंग सिस्टम यानी एंड्रॉयड का लाइसेंस देने, ऐप स्टोर मार्केट, वेब सर्च सर्विसेस और यहां तक कि वीडियो होस्टिंग प्लैटफॉर्म्स को लेकर अपने दबदबे का गलत इस्तेमाल किया है. CCI ने कहा था, “इन सर्विसेस के कॉम्पिटीटर्स को कभी भी उस स्तर का मार्केट एक्सेस नहीं मिलेगा जो गूगल ने अपने लिए हासिल कर लिया है. मोबाइल एप्लिकेशन डिस्ट्रिब्यूशन अग्रीमेंट (MADA) और यथास्थिति से जुड़े बायस के चलते कॉम्पिटीटर्स के लिए एंट्री बैरियर तैयार कर दिया गया है.”

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CCI के फैसले को गूगल ने चैलेंज किया
गूगल ने कहा कि प्ले स्टोर की पूरी जवाबदेही गूगल लेता है. वो ऐप्स को मैलवेयर के लिए स्कैनपा करता है, इसके साथ ही वो स्थानीय कानून के हिसाब से ऐप्स को प्ले स्टोर में जगह देता है. अगर ऐप साइडलोड होने लगेंगे तो गूगल उन्हें चेक नहीं कर पाएगा. इसके साथ ही गूगल ने कहा कि बिना चेक हुए ऐप अगर डिवाइसेस में डाउनलोड किए जाएंगे तो भारतीय यूजर्स का एक बड़ा वर्ग हैकिंग और धोखाधड़ी का शिकार हो सकता है. ये व्यक्तिगत के साथ-साथ नेशनल सिक्योरिटी के लिए भी खतरनाक हो सकता है.

इसके साथ ही गूगल ने कहा था कि अगर OEMs को बिना गूगल प्ले के यूजर्स को ऐप उपलब्ध कराएंगे तो वो फोर्क एंड्रॉयड पर काम करेंगे, माने एंड्रॉइड के अपने हिसाब से मोडिफाई किए गये वर्जन पर काम करेंगे. ये वर्जन ऑफिशियल एंड्रॉयड से अलग होगा और इसमें वो सेफ्टी फीचर्स नहीं दिए जा सकेंगे जो एंड्रॉइड अपने यूजर्स को देता आया है. OEMs को एडिशनल सेफ्टी फीचर्स डालने होंगे, जिसके चलते उन पर फाइनेंशियल दबाव बढ़ेगा और नतीजा डिवाइसेस की कीमतों पर नजर आएगा.

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गूगल पर आरोप है कि वो एंड्रॉइड इकोसिस्टम में अपने दबदबे का गलत इस्तेमाल करता है.

गूगल ने दावा किया कि अगर CCI के आदेश को मान लिया गया तो ऐप डेवलपर्स को ज्यादा खर्च करना पड़ेगा, क्योंकि अभी वो एंड्रॉयड के एक वर्जन के लिए ऐप डेवलप करते हैं. फोर्क्ड सिस्टम में उन्हें ये भी देखना होगा कि उनका ऐप सारे वर्जन्स के साथ कम्पैटिबल है या नहीं, अगर नहीं होगा तो उन्हें उस वर्जन के हिसाब से ऐप डेवलप करना होगा. गूगल ने कहा कि अगर CCI के आदेश का पालन हुआ तो छोटे ऐप डेवलपर्स को इवन प्लेयिंग फील्ड नहीं मिलेगा. बड़े डेवलपर्स तो एक ऐप के कई वर्जन बना लेंगे, पर छोटे डेवलपर्स ऐसा नहीं कर पाएंगे.जबकि एंड्रॉइड में दोनों के लिए बराबर शर्तें होती हैं.

NCLAT का फैसला और सुप्रीम कोर्ट
CCI के फैसले के खिलाफ गूगल सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने मामला NCLAT को ट्रांसफर किया. NCLAT ने इस साल मार्च में गूगल पर लगे जुर्माने को बरकरार रखा. ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि गूगल ने मार्केट में अपने दबदबे का गलत इस्तेमाल करके कॉम्पिटीशन को खत्म करने की कोशिश की. NCLAT ने अपने आदेश में कहा का गूगल मोबाइल सूट के प्री-इंस्टॉलेशन को अनिवार्य करना मैनुफैक्चर्स पर अनुचित दबाव डालना है, जो कि अपने प्रभाव के दुरुपयोग के दायरे में आता है.

हालांकि, NCLAT ने CCI की शर्तों से गूगल को थोड़ी राहत दी. साइड लोडिंग को रोकने को लेकर NCLAT ने गूगल के पक्ष को सही माना. इसके साथ ही CCI ने गूगल को आदेश दिया था कि वो डिवाइस मैनुफैक्चरर्स के साथ गूगल प्ले स्टोर कोड शेयर करे, इससे भी ट्रिब्यूनल से गूगल को राहत दे दी. ट्रिब्यूनल ने गूगल को नियमों को लागू करने और फाइन चुकाने के लिए 30 दिन का समय दिया था.

गूगल ने अब NCLAT के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. गूगल का कहना है कि वो अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखना चाहते हैं कि कैसे एंड्रॉयड ने भारतीय यूजर्स, डेवलपर्स और मैनुफैक्चरर्स को फायदा पहुंचाया है और भारत के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को ताकत दी है.

Tags: Google, Supreme Court, Tech News in hindi

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