हमारे आस-पास के पदार्थ Matter in Our Surroundings

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पदार्थ
♦ इस विश्व की कोई भी वस्तु, जो स्थान घेरे और जिसमें द्रव्यमान हो, उसे ‘पदार्थ’ कहते हैं। पदार्थों के आकार, आकृति और बनावट में अन्तर होता है। जिस हवा में हम श्वास लेते हैं, जो भोजन हम खाते हैं, पत्थर, बादल, तारें, पौधे एवं पशु, यहाँ तक कि पानी की एक बूँद या रेत का एक कण, ये सभी पदार्थ हैं।
♦ भारत के प्राचीन दार्शनिकों ने पदार्थ को पाँच मूल तत्त्वों में वर्गीकृत किया, जिसे ‘पंचतत्त्व’ कहा गया । ये पंचतत्त्व हैं: वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश । उनके अनुसार, इन्हीं पंचतत्त्वों से सभी वस्तुएँ बनी हैं, चाहे वो सजीव हों, या निर्जीव | उस समय के यूनानी दार्शनिकों ने भी पदार्थ को इसी प्रकार वर्गीकृत किया था ।
♦ आधुनिक वैज्ञानिकों ने पदार्थ को भौतिक गुणधर्म एवं रासायनिक प्रकृति के आधार पर दो प्रकार से वर्गीकृत किया है ।
पदार्थ का भौतिक स्वरूप एवं अभिलाक्षिक गुण
पदार्थ कणों से मिलकर बना होता है पदार्थ के कण अत्यन्त छोटे होते हैं और एक स्थिति में ये कण और छोटे भागों में विभाजित नहीं किए जा सकते हैं।
पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है उदाहरणस्वरूप—जब हम चाय, कॉफी या नींबू-पानी बनाते हैं, तो एक पदार्थ के कण दूसरे पदार्थ के कणों के रिक्त स्थानों में समावेशित हो जाते हैं। यह दर्शाता है, कि पदार्थ के कणों के बीच पर्याप्त रिक्त स्थान होता है। पदार्थ के कण अपने आप ही एक-दूसरे के साथ अन्तः मिश्रित हो जाते हैं। ऐसा कणों के रिक्त स्थानों में समावेश के कारण होता है। दो विभिन्न पदार्थों के कणों का स्वतः मिलना ही विसरण कहलाता है। पदार्थों को गर्म करने पर विसरण तेज हो जाता है।
पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते हैं अर्थात्, पदार्थ के कणों में गतिज ऊर्जा होती है। तापमान बढ़ने से कणों की गति तेज हो जाती है अर्थात् तापमान बढ़ने से कणों की गतिज ऊर्जा भी बढ़ जाती है।
पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं पदार्थ के कणों के बीच एक बल कार्य करता है। यह बल कणों को एक साथ रखता है। इस आकर्षण बल का सामर्थ्य प्रत्येक पदार्थ में अलग-अलग होता है।
पदार्थ की अवस्थाएँ
♦ पदार्थ अपने तीन रूप में होते हैं—ठोस, द्रव और गैस पदार्थ की ये अवस्थाएँ उसके कणों की विभिन्न विशेषताओं के कारण होती है।
ठोस अवस्था पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है। इस अवस्था में बाह्य बल लगाने पर भी ठोस अपने आकार को बनाए रखते हैं। बल लगाने पर ठोस टूट सकते हैं लेकिन इनका आकार नहीं बदलता। इसलिए ये दृढ़ होते हैं। उदाहरण – ईंट, पत्थर, लकड़ी, बर्फ आदि। –
द्रव अवस्था द्रव का आकार नहीं लेकिन आयतन निश्चित होता है। जिस बर्तन में इन्हें रखा जाए तो ये उसी का आकार ले लेते हैं। द्रवों में बहाव होता है और इनका आकार बदलता है, इसीलिए ये दृढ़ नहीं लेकिन तरल होते हैं। उदाहरण – जल, दूध, तेल, आदि।
गैसीय अवस्था इस अवस्था में पदार्थों का आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित होता है। उदाहरण – हवा, हाइड्रोजन आदि।
♦ जल पदार्थ की तीनों अवस्थाओं में रह सकता है
ठोस जैसे बर्फ
द्रव जैसे जल, एवं
गैस जैसे जलवाष्प ।
♦ हमारे घरों में खाना बनाने में उपयोग की जाने वाली द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) या अस्पतालों में दिए जाने वाले ऑक्सीजन सिलिण्डर में सम्पीडित गैस होती है। आजकल वाहनों में ईंधन के रूप में सम्पीडित प्राकृतिक गैस (CNG) का उपयोग होता है। सम्पीड्यता काफी अधिक होने के कारण गैस के अत्यधिक आयतन को एक कम आयतन वाले सिलिण्डर में सम्पीडित किया जा सकता है एवं आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है। गैसीय अवस्था में कणों की गति अनियमित और अत्यधिक तीव्र होती है। इस अनियमित गति के कारण ये कण आपस में एवं बर्तन की दीवारों से टकराते हैं। बर्तन की दीवार पर गैस कणों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र पर लगे बल के कारण गैस का दबाव बनता है।
♦ पदार्थ की अवस्थाएँ, यानी ठोस, द्रव और गैस, दाब और तापमान के द्वारा तय होती हैं।
पदार्थ की अन्य अवस्थाएँ
आधुनिक वैज्ञानिक पदार्थ की पाँच अवस्थाओं की बात करते हैं बोस-आइन्स्टाइन कण्डनसेट, ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा । ठोस, द्रव एवं गैस के बारे में ऊपर बताया जा चुका है। प्लाज्मा एवं बोस-आइन्स्टाइन कण्डनसेट से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ
प्लाज्मा इस अवस्था में कण अत्यधिक ऊर्जा वाले और अधिक उत्तेजित होते हैं। ये कण आयनीकृत गैस के रूप में होते हैं। फलोरसेण्ट ट्यूब और नियॉन बल्ब में प्लाज्मा होता है। नियॉन बल्ब के अन्दर नियॉन गैस और फलोरसेण्ट ट्यूब के अन्दर हीलियम या कोई अन्य गैस होती है। विद्युत ऊर्जा प्रवाहित होने पर यह गैस आयनीकृत यानी आवेशित हो जाती है। आवेशित होने से ट्यूब या बल्ब के अन्दर चमकीला प्लाज्मा तैयार होता है। गैस के स्वभाव के अनुसार इस प्लाज्मा में एक विशेष रंग की चमक होती है। प्लाज्मा के कारण ही सूर्य और तारों में भी चमक होती है। उच्च तापमान के कारण ही तारों में प्लाज्मा बनता है।
बोस – आइन्स्टाइन कण्ड सन् 1920 में भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस ने पदार्थ की पाँचवीं अवस्था के लिए कुछ गणनाएँ की थीं। उन गणनाओं के आधार पर अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने पदार्थ की एक नई अवस्था की भविष्यवाणी की, जिसे बोस-आइन्स्टाइन कण्डनसेट (BEC) कहा गया। सन् 2001 में अमेरिका के एरिक ए कॉर्नेल, उल्फगैंग केटरले और कार्ल ई वेमैन को “बोस-आइन्स्टाइन कण्डनसेशन” की अवस्था प्राप्त करने के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सामान्य वायु के घनत्व के एक लाखवें भाग जितने कम घनत्व वाली गैस को बहुत ही कम तापमान पर ठण्डा करने से बोस आइन्सटाइन कण्डनसेट तैयार होता है ।
पदार्थ पर तापमान परिवर्तन का प्रभाव
♦ ठोस के तापमान को बढ़ाने पर उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। गतिज ऊर्जा में वृद्धि होने के कारण कण अधिक तेजी से कम्पन करने लगते हैं।
♦ ऊष्मा के द्वारा प्रदत्त की गई ऊर्जा कणों के बीच के आकर्षण बल को पार कर लेती है। इस कारण कण अपने नियत स्थान को छोड़कर अधिक स्वतन्त्र होकर गति करने लगते हैं। एक अवस्था ऐसी आती है, जब ठोस पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो जाता है। जिस तापमान पर ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, वह इसका गलनांक कहलाता है।
♦ गलने की प्रक्रिया यानी ठोस से द्रव अवस्था में परिवर्तन को संगलन भी कहते हैं।
♦ किसी ठोस का गलनांक उसके कणों के बीच के आकर्षण बल के सामर्थ्य को दर्शाता है। बर्फ का गलनांक 273.16 K है।
♦ एक निश्चित तापमान पर पहुँचकर पदार्थों के कणों में इतनी ऊर्जा आ जाती है कि वे परस्पर आकर्षण बल को तोड़कर स्वतन्त्र हो जाते हैं। इस तापमान पर द्रव गैस में बदलना शुरू हो जाता है।
♦ वायुमण्डलीय दाब पर वह तापमान जिस पर द्रव उबलने लगता है, उसे इसका क्वथनांक कहते हैं।
♦ क्वथनांक समष्टि गुण है। द्रव के सभी कणों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है कि वे वाष्प में बदल जाते हैं। जल के लिए यह तापमान 373K (100°C = 273 + 100 373K)
♦ तापमान बदलकर पदार्थ को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदला जा सकता है।
♦ गर्म करने पर पदार्थ की अवस्था बदल जाती है। गर्म होने पर ये ठोस से द्रव और द्रव से गैस बन जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे पदार्थ हैं, जो द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना, ठोस अवस्था से सीधे गैस में और वापस ठोस में बदल जाते हैं।
♦ द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस और वापस ठोस में बदलने की प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं। उदाहरणस्वरूप—कपूर सामान्य वायुमण्डलीय तापमान पर ठोस से सीधे गैस में परिवर्तित हो जाता है।
दाब–परिवर्तन का प्रभाव
♦ जब वायुमण्डलीय दाब का माप 1 वायुमण्डल (atm) हो, तो ठोस CO2 द्रव अवस्था में आए बिना सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है। यही कारण है कि ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ (dry ice) हैं।
♦ वायुमण्डल (atm) गैसीय दाब के मापन का मात्रक है। दाब का SI मात्रक पास्कल (Pa) है। 1 वायुमण्डल = 1.01 × 105  पास्कल। वायुमण्डल में वायु का दाब वायुमण्डलीय दाब कहलाता है। समुद्र की सतह पर वायुमण्डलीय दाब एक वायुमण्डल होता है और इसे सामान्य दाब कहा जाता है।
वाष्पीकरण
एक निश्चित तापमान पर गैस, द्रव या ठोस के कणों में विभिन्न मात्रा में गतिज ऊर्जा होती है। द्रवों में सतह पर स्थित कणों के कुछ अंशों में इतनी गतिज ऊर्जा होती है कि वे दूसरे कणों के आकर्षण बल से मुक्त हो जाते हैं। क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक वाष्पीकरण की अग्रलिखित के साथ बढ़ती है
सतह क्षेत्र बढ़ने पर वाष्पीकरण एक सतही प्रक्रिया है। सतही क्षेत्र बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर भी बढ़ जाती है। जैसे—कपड़े सुखाने के लिए उन्हें फैला दिया जाता है।
तापमान में वृद्धि— तापमान बढ़ने पर अधिक कणों को पर्याप्त गतिज ऊर्जा मिलती है, जिससे वे वाष्पीकृत हो जाते हैं।
आर्द्रता में कमी— वायु में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। किसी निश्चित तापमान पर हमारे आस-पास की वायु में एक निश्चित मात्रा में ही जल वाष्प होता है। जब वायु में जल कणों की मात्रा पहले से ही अधिक होगी, तो वाष्पीकरण की दर घट जाएगी।
वायु की गति में वृद्धि— तेज वायु में कपड़े जल्दी सूख जाते हैं। वायु के तेज होने से जलवाष्प के कण वायु के साथ उड़ जाते हैं जिससे आस-पास के जल वाष्प की मात्रा घट जाती है।
वाष्पीकरण के कारण शीतलता
♦ खुले हुए बर्तन में रखे द्रव में निरन्तर वाष्पीकरण होता रहता है। वाष्पीकरण के दौरान कम हुई ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने के लिए द्रव के कण अपने आस-पास से ऊर्जा अवशोषित कर लेते हैं। इस तरह आस-पास से ऊर्जा के अवशोषित होने के कारण शीतलता हो जाती है।
♦ जब नाखूनों की पॉलिश हटाने वाले द्रव को अपनी हथेली पर गिराते हैं तो इसके कण हथेली या उसके आस-पास से ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं और वाष्पीकृत हो जाते हैं जिससे हथेली पर शीतलता महसूस होती है।
♦ तेज धूप वाले गर्म दिन के बाद लोग अपनी छत या खुले स्थान पर जल छिड़कते हैं। क्योंकि जल के वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा गर्म सतह को शीतल बनाती है।
♦ शारीरिक प्रक्रिया के कारण गर्मियों में हमें ज्यादा पसीना आता है, जिससे हमें शीतलता मिलती है। वाष्पीकरण के दौरान द्रव की सतह के कण हमारे शरीर या आसपास से ऊर्जा प्राप्त करके वाष्प में बदल जाते हैं। वाष्पीकरण की प्रसुप्त ऊष्मा के बराबर ऊष्मीय ऊर्जा हमारे शरीर से अवशोषित हो जाती है, जिससे शरीर शीतल हो जाता है। चूँकि सूती कपड़ों में जल का अवशोषण अधिक होता है, इसलिए हमारा पसीना इसमें अवशोषित होकर वायुमण्डल में आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है।
♦ किसी बर्तन में जब हम बर्फीला जल रखते हैं तो जल्दी ही बर्तन की बाहरी सतह पर हमें जल की बूँदे नजर आने लगती हैं। वायु में उपस्थित जलवाष्प की ऊर्जा ठण्डे पानी के सम्पर्क में आकर कम हो जाती है और यह द्रव अवस्था में बदल जाता है, जो हमें जल की बूँदों के रूप में नजर आता है।
गुप्त ऊष्मा
♦ वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा ताप की तह मात्रा है जो 1 किग्रा द्रव को वायुमण्डलीय दाब और द्रव के क्वथनांक पर गैसीय अवस्था में परिवर्तन करने हेतु प्रयोग होती है।
♦ संगलन की गुप्त ऊष्मा ऊर्जा की वह मात्रा है जो 1 किग्रा ठोस को वायुमण्डलीय दाब पर ठोस को उसके संगलन बिन्दु पर लाने के लिए प्रयोग होती है।
 महत्त्वपूर्ण भौतिक राशियाँ, उनके मात्रक एवं प्रतीक
नोट तापमान की अन्तर्राष्ट्रीय (SI) भद्धति में मात्रक केल्विन (K) है,0°C = 273.16K होत है। सुविधा के लिए हम दशमलव का पूर्णांक बनाकर 0°C = 273K ही मानते हैं। तापमान की माप केल्विन से सेल्सियस में बदलने के लिए दिए हुए तापमान से 273 घटाना चाहिए और सेल्सियस से केल्विन में बदलने के लिए दिए हुए तापमान में 273 जोड़ देना चाहिए।
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