हमारी भारतीय संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति

          हम यह भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की संस्कृति और सभ्यता विभिन्न प्रकार के समय-समय पर पल्लवित पुष्पित एवं फलित भी हुई है। समय के कठिन और अमिट प्रभाव के कारण धूल-धूसरित हुई भी है । प्रमाणिक रूप से हमने विश्व के इतिहास में यह देखा है कि यूनान, मिश्र व रोम की सभ्यता और संस्कृति सबसे अधिक पुरानी और प्रभावशाली थी, लेकिन काल के दुश्चक्र के स्वरूप ये संस्कृतियाँ ऐसी नेस्तनाबूद हो गयीं कि इनका आज कोई नामोनिशान नहीं है । ऐसा होते हुए भी हमारी भारतीय संस्कृति आज भी ज्यों की त्यों ही है। इस विषय में किसी शायर का यह कहना अत्यन्त रोचक और मनोहारी कथन मालूम पड़ता है कि सभी संस्कृतियों में श्रेष्ठ महान् संस्कृति और सभ्यता के सर्वोपरि और सर्वोच्च यूनान, मिश्र रोम की सभ्यता और संस्कृति तो आज मिट चुकी है, उनके नामों और निशान तक आज नहीं दिखाई देते हैं लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति तो आज भी वैसी ही हरी-भरी है –
यूनान, मिश्र, रोमा, सब मिट गए जहाँ से,
लेकिन अभी है बाकी, नामों निशां हमारा । 
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, 
गोकि रहा है, दुश्मन, दौरे जमां हमारा ।।
          स्पष्ट है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति को मिटाने के लिए बार-बार विदेशी आक्रमण होते रहे हैं, लेकिन यह नहीं मिट पाई हैं, जबकि विश्व की महान् सभ्यता और संस्कृति मिट चुकी है ।
          भारतीय संस्कृति की विशेषता पर जब हम विचार करते हैं तो यह देखते हैं कि इसकी एक रूपता नहीं है, अपितु इसकी विविधता है। इस विविधता में भी निरालापन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
          1. आस्तिक भावना, 2. समन्वयवादी दृष्टिकोण, 3. विभिन्नता में एकता, 4. प्राचीनता, और 5 उदारता की भावना ।
          हमारी भारतीय संस्कृति में आस्तिकता की भावना प्रबल रूप से है। यहाँ के मनीषियों, मुनियों और महात्माओं ने भूत, वर्तमान और भविष्य को अपनी अपार आस्था और विश्वास के आधार पर हाथ पर रखे हुए आँवले के समान अच्छी तरह से देखा और समझा है। भारतीय मनीषियों और महर्षियों ने अपार ज्ञान और अनुभव तो ईश्वर के प्रति आस्तिक भावना रखने के कारण ही संभव हुआ है। इन त्रिकालदर्शियों ने परब्रह्म परमेश्वर में सत्यम् शिवम् और सुन्दरम् का परम साक्षात्कार किया है। परिणामस्वरूप ये विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित और समादृत हुए हैं।
          समन्वय की भावना हमारी भारतीय संस्कृति की अनुपम विशेषता है। समदर्शी होना भारतीयों को बहुत रोचक लगता है। यही कारण है कि हमारे भारत में विभिन्न धर्म, जाति और दर्शन- विचारधारा का खुला प्रवेश है। धर्म निरपेक्षता हमारे संविधान की प्रमुख- विशेषता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और विचारधाराओं के बावजूद भी भारतीयता का मूल स्वर कभी भी विखंडित नहीं होता है अर्थात् इसमें से दया, उदारता और समरसता का स्रोत कभी नहीं सूखता है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति की विभिन्नता में इसका ही प्रतिपादन करती है ।
          भारतीय संस्कृति जितनी विशाल है, उतनी ही वह प्राचीन और सुदृढ़ भी है । अतएव भारतीय संस्कृति की तुलना में अन्य संस्कृतियाँ पूरी तरह से नहीं आ सकती हैं। यही कारण है कि आज भी भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक होकर ज्यों-की-त्यों है; जबकि और संस्कृतियों बेदम होकर धूल धूसरित हो गई हैं ।
          इस प्रकार हमारी भारतीय संस्कृति अत्यन्त महान् और सुप्रतिष्ठित है। उसकी रक्षा के लिए हमें हमेशा ही तत्पर रहना चाहिए ।
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