स्मृति शेष: इस देश को दर्जनों वाल्मीक थापर चाहिए

बाघ मित्र वाल्मीक थापर के निधन से भारत और दुनिया ने बाघों का एक सच्चा मित्र खो दिया है. अगर भारत में प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना सफल हो पायी, तो इसका श्रेय निश्चित रूप से वाल्मीक थापर को भी देना होगा. उन्हें 2005 में टाइगर टास्क फोर्स में नियुक्त किया गया था, जहां उन्होंने बाघ संरक्षण की रणनीतियों को मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया. यह उन्हीं के प्रयासों और योगदान का फल था कि देश में 2018 से 2022 के दौरान बाघों की आबादी में 200 की बढ़ोत्तरी हुई. सच कहा जाए, तो बाघ संरक्षण की वाल्मीक थापर की मुहिम ने देश में एक आंदोलन का रूप में लिया था.

वाल्मीक थापर जाने-माने परिवार से थे. वह चोटी के चिंतक और ‘सेमिनार’ पत्रिका के संपादक स्वर्गीय रोमेश थापर और राज थापर के पुत्र थे. उनकी शादी शशि कपूर की पुत्री संजना कपूर से हुई थी. इन दोनों का एक बेटा है हमीर. वाल्मीक थापर और संजना कपूर को नजदीक से जानने वाले जानते हैं कि इन दोनों को करीब लाने में जंगल और जंगली जानवर प्रेम की बड़ी भूमिका रही थी. चर्चित इतिहासकार डॉ रोमिला थापर वाल्मीक थापर की बुआ हैं.

वाल्मीक थापर की गिनती दुनिया के सबसे सम्मानित वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के रूप में होती थी. उन्होंने जिस तरह की लड़ाई लड़ी, उसके बिना बाघ को बचाना कठिन था. उन्होंने खासकर राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क में बाघों के संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास को बचाने के लिए ठोस कार्य किया. उनके कामों में लेखन, वन्यजीव फिल्म निर्माण और नीति निर्माण शामिल था. वाल्मीक थापर ने अपना पूरा जीवन बाघों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने रणथंभौर नेशनल पार्क को बाघ संरक्षण का एक प्रमुख केंद्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. बाघों का अवैध शिकार रोकने के लिए उन्होंने सख्त कानूनों और नीतियों की वकालत की और बाघों के प्राकृतिक आवास को मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त रखने पर जोर दिया, ताकि उनकी आबादी को संरक्षित किया जा सके. उनके प्रयासों से यह पार्क भारत में बाघ संरक्षण का एक मॉडल बन गया. वाल्मीक थापर 150 से अधिक सरकारी समितियों और टास्क फोर्स का हिस्सा रहे, जिनमें नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ भी शामिल था. इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं.

वाल्मीक थापर ने भारत में अफ्रीकी चीतों को लाने वाले प्रोजेक्ट चीता की आलोचना की थी. उनका मानना था कि भारत में चीतों के लिए उपयुक्त आवास, शिकार या विशेषज्ञता की कमी है, जिस कारण यह परियोजना दीर्घकालिक रूप से सफल नहीं हो सकती. उन्होंने बाघों और भारतीय वन्यजीवों पर 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं और संपादित कीं, जो उनके अनुभवों और शोध का निचोड़ हैं. वाल्मीक थापर की ‘द लास्ट टाइगर’ किताब को भारत में बाघों के विलुप्त होने के कारणों पर लिखी सबसे बेहतर पुस्तक माना जाता है. अपनी पुस्तक, ‘लैंड ऑफ द टाइगर : ए नेचुरल हिस्ट्री ऑफ द इंडियन सबकांटिनेंट’ में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की जैव-विविधता को बहुत विस्तार से पेश किया है. प्रकृति प्रेमियों और संरक्षणवादियों के बीच यह पुस्तक काफी लोकप्रिय रही.

उनकी अन्य किताबों में बाघों के व्यवहार, उनके आवास और संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर गहन विश्लेषण शामिल हैं. उनकी लेखन शैली वैज्ञानिक दृष्टिकोण और कथात्मक शैली का मिश्रण है, जो सामान्य पाठकों और विशेषज्ञों, दोनों को आकर्षित करती है. वन्यजीवों पर उन्होंने कई प्रभावशाली फिल्में और डॉक्यूमेंटरीज बनायीं, जो भारतीय वन्यजीवों की सुंदरता और उनके सामने मौजूद खतरों को उजागर करती हैं. बीबीसी के लिए बनायी गयी उनकी ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ डॉक्यूमेंटरी सीरीज में भारतीय उपमहाद्वीप की जैव-विविधता को दिखाया गया है. इस सीरीज ने विश्व स्तर पर भारतीय वन्यजीवों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. वन्यजीवों पर केंद्रित कई अन्य फिल्मों में भी उन्होंने योगदान दिया, जो न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक मंच पर वन्यजीव संरक्षण के मुद्दों को उठाने में सहायक रहीं.

वाल्मीक थापर ने अपनी पुस्तकों, फिल्मों और सार्वजनिक व्याख्यानों के माध्यम से वन्यजीव संरक्षण के प्रति व्यापक जागरूकता फैलायी. उनकी रचनाओं ने न केवल भारत में, बल्कि विश्व भर में लोगों को प्रेरित किया. वाल्मीक थापर अपना काम सुर्खियों से दूर रहकर करना पसंद करते थे. उनसे बात करके लगता था कि वह अपने मिशन को लेकर कितने गंभीर थे. उनके निधन से बाघों को बचाने की मुहिम को धक्का लगा है. भारत को दर्जनों वाल्मीक थापर चाहिए. तभी हमारे यहां जंगल और जंगली जानवर बच पायेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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