संस्थाओं का कामकाज Working of Institutions

संस्थाओं का कामकाज    Working of Institutions

 

राजनीतिक संस्थाओं की आवश्यकता
♦ किसी भी देश को चलाने में कई तरह की गतिविधियाँ शामिल होती हैं। जैसे— नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, सबको शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करवाना, इत्यादि। इन्हीं कार्यों को देखने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएँ की गई हैं, जिन्हें राजनीतिक संस्था कहा जाता है।

♦ भारतीय लोकतन्त्र में तीन प्रकार की राजनीतिक संस्था – विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की व्यवस्था है। ये तीनों भारतीय लोकतन्त्र के आधार स्तम्भ हैं।

विधायिका
♦ हर लोकतन्त्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की सभा, जनता की ओर से सर्वोच्च राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करती है।
♦ भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा को संसद कहा जाता है। राज्य स्तर पर इसे विधानसभा कहते हैं।
♦ किसी भी देश में कानून बनाने का सबसे बड़ा अधिकार संसद को होता है। इसलिए प्रतिनिधियों की इन सभाओं को विधायिका कहा जाता है।
♦ हमारे देश में संसद के दो सदन हैं राज्यसभा और लोकसभा ।
♦ भारत का राष्ट्रपति संसद का हिस्सा होता है हालाँकि वह दोनों में से किसी सदन का सदस्य नहीं होता। इसलिए संसद के फैसले राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही लागू होते हैं।
♦ लोकसभा को निम्न सदन और राज्यसभा को उच्च सदन कहा जाता है।
♦ अधिकतर मसलों पर सर्वोच्च अधिकार लोकसभा के पास ही हैं।
♦ किसी भी सामान्य कानून को पारित करने के लिए दोनों सदनों की जरूरत होती है। लेकिन यदि दोनों सदनों के बीच कोई मतभेद हो तो अन्तिम फैसला दोनों के संयुक्त अधिवेशन में किया जाता है।
♦ लोकसभा में सरकार के बजट से सम्बन्धित कोई कानून पारित हो जाए तो राज्यसभा उसे खारिज नहीं कर सकती। राज्यसभा उसे पारित करने में केवल 14 दिनों की देरी कर सकती है या उसमें संशोधन के सुझाव दे सकती है। यह लोकसभा का अधिकार है वह उन सुझावों को माने या न माने ।
♦ लोकसभा मन्त्रिपरिषद् को नियन्त्रित करती है।
कार्यपालिका
♦ सरकार के फैसले लेने वाले अधिकारियों को सामूहिक रूप से कार्यपालिका कहा जाता है। सरकार की नीतियों को ये ‘कार्यरूप’ देते हैं, इसलिए इन्हें कार्यपालिका कहा जाता है।
♦ किसी लोकतान्त्रिक देश में कार्यपालिका के दो हिस्से होते हैं। जनता द्वारा खास अवधि तक के लिए निर्वाचित लोगों को राजनीतिक कार्यपालिका कहते हैं। ये राजनीतिक व्यक्ति होते हैं जो बड़े फैसले करते हैं ।
♦ जिन्हें लम्बे समय के लिए नियुक्त किया जाता है, उन्हें स्थायी कार्यपालिका या प्रशासनिक सेवक कहते हैं। लोक सेवाओं में काम करने वाले लोगों को सिविल सर्वेण्ट या नौकरशाह कहते हैं। ये अधिकारी राजनीतिक कार्यपालिका के तहत काम करते हैं और रोजमर्रा के प्रशासन में उनकी सहायता करते हैं।
प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद्
♦ राष्ट्रपति, लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या पार्टियों के गठबन्धन के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।
♦ प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने के बाद राष्ट्रपति उसकी सलाह पर दूसरे मन्त्रियों को नियुक्त करता है ।
♦ मन्त्रिपरिषद् में प्राय: तीन प्रकार के मन्त्री होते हैं कैबिनेट मन्त्री, स्वतन्त्र प्रभार वाले राज्य मन्त्री और राज्य मन्त्री |
♦ कैबिनेट मन्त्री प्राय: सत्ताधारी पार्टी या गठबन्धन की पार्टियों के वरिष्ठ नेता होते हैं। ये प्रमुख मन्त्रालयों के प्रभारी होते हैं।
♦ स्वतन्त्र प्रभार वाले राज्य मन्त्री प्राय: छोटे मन्त्रालयों के प्रभारी होते हैं। ये विशेष रूप से आमन्त्रित किए जाने पर ही कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं।
♦ राज्य मन्त्री अपने विभाग के कैबिनेट मन्त्रियों से जुड़े होते हैं और उनकी सहायता करते हैं।
राष्ट्रपति
♦ भारत का राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है, किन्तु उसे केवल नाम के अधिकारों का प्रयोग करना होता है।
♦ राष्ट्रपति का चयन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाता है। संसद सदस्य और राज्य की विधानसभाओं के सदस्य उसे चुनते हैं।
♦ राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है।
♦ वह भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों और दूसरे देशों में राजदूतों आदि को नियुक्त करता है।
♦ सभी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियाँ और समझौते उसी के नाम से होते हैं।
न्यायपालिका
♦ देश के विभिन्न स्तरों पर मौजूद अदालतों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहा जाता है।
♦ भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश के लिए सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय और स्थानीय स्तर के न्यायालय होते हैं।
♦ भारत में न्यायपालिका एकीकृत है अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय देश में न्यायिक प्रशासन को नियन्त्रित करता है। देश की सभी अदालतों को उसका फैसला मान्य होता है।
♦ सर्वोच्च न्यायालय निम्नलिखित में से किसी भी विवाद की सुनवाई कर सकता है
♦ देश के नागरिकों के बीच;
♦ नागरिकों और सरकार के बीच;
♦ दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच और
♦ केन्द्र और राज्य सरकार के बीच।
♦ भारतीय न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका के नियन्त्रण में नहीं होकर स्वतन्त्र है। अर्थात् न्यायाधीश सरकार के निर्देश या सत्ताधारी पार्टी की मर्जी के मुताबिक काम नहीं करते।
♦ भारत की न्यायपालिका दुनिया की सबसे अधिक प्रभावशाली न्यायपालिकाओं में से एक है।
♦ सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या का अधिकार है। यदि इन्हें लगता है कि विधायिका का कोई कानून या कार्यपालिका की कोई कार्यवाही संविधान के खिलाफ है तो वे केन्द्र और राज्य स्तर पर ऐसे कानून या कार्रवाई को अमान्य घोषित कर सकते हैं।
♦ भारतीय न्यायपालिका के अधिकार और स्वतन्त्रता उसे मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में काम करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
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