संसाधन के रूप में लोग Peoples as Resource
संसाधन के रूप में लोग Peoples as Resource
♦ जब शिक्षा प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूँजी में बदल जाती है। वास्तव में, मानव पूँजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है।
♦ जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं, जो भौतिक पूँजी निर्माण की ही भाँति देश की उत्पादक शक्ति में वृद्धि करता है।
♦ अनेक दशकों से भारत में विशाल जनसंख्या को एक परिसम्पत्ति की अपेक्षा एक दायित्व माना जाता रहा है। लेकिन, यह आवश्यक नहीं कि एक विशाल जनसंख्या देश के लिए दायित्व ही हो। मानव पूँजी में निवेश द्वारा इसे एक उत्पादक परिसम्पत्ति में बदला जा सकता है (उदाहरण के लिए, सबके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य, आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग में औद्योगिक और कृषि श्रमिकों के प्रशिक्षण, उपयोगी वैज्ञानिक अनुसन्धान आदि पर संसाधनों के व्यय द्वारा) ।
♦ मानव संसाधन में (शिक्षा और चिकित्सा सेवा के द्वारा) निवेश से भविष्य में उच्च प्रतिफल प्राप्त हो सकते हैं। लोगों में यह निवेश भूमि और पूँजी में निवेश की ही तरह है। व्यक्ति शेयरों तथा बाण्डों में भविष्य में उच्च प्रतिफल की आशा से निवेश करता है। एक बच्चा भी, जिसकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश किया गया है, भविष्य में उच्च आय और समाज को वृहद योगदान के रूप में अधिक प्रतिफल दे सकता है।
♦ जापान जैसे देशों ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। ये विकसित देश हैं। ये अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात करते हैं। उन्होंने लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया। उन लोगों ने भूमि और पूँजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है। इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की उसी से ये देश धनी / विकसित बने।
पुरुषों और महिलाओं के आर्थिक क्रिया-कलाप
♦ विभिन्न क्रिया-कलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रको प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक में वर्गीकृत किया गया है। प्राथमिक क्षेत्रक के अन्तर्गत कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन और खनन शामिल हैं।
♦ द्वितीयक क्षेत्रक में उत्खनन और विनिर्माण शामिल हैं।
♦ तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, संवार बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन सेवाएँ इत्यादि शामिल किए जाते हैं। इस क्षेत्र में क्रिया-कलाप के फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रिया-कलाप राष्ट्रीय आय में मूल्य-वर्धन करते हैं। ये क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।
♦ आर्थिक क्रियाओं के दो भाग होते हैं। बाजार क्रियाएँ और गैर-बाजार क्रियाएँ । बाजार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु या सेवाओं का उत्पादन शामिल है।
♦ गैर-बाजार क्रियाओं से अभिप्राय स्व-उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल सम्पत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।
जनसंख्या की गुणवत्ता
♦ जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर, ओवन – प्रत्याशा के निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है।
♦ जनसंख्या की गुणवत्ता अन्ततः देश की संवृद्धि दर निर्धारित करती है।
शिक्षा
♦ शिक्षा व्यक्ति के उपलब्ध आर्थिक अवसरों के बेहतर उपयोग में सहायता करती है।
♦ शिक्षा और कौशल बाजार में किसी व्यक्ति की आय के प्रमुख निर्धारक हैं।
♦ अधिकांश महिलाओं के पास बहुत कम शिक्षा और निम्न कौशल स्तर हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम पारिश्रमिक दिया जाता है। अधिकतर महिलाएँ वहाँ काम करती हैं, जहाँ नौकरी को सुरक्षा नहीं होती तथा कानूनी सुरक्षा का अभाव है। अनियमित रोजगार और निम्न आय इस क्षेत्र की विशेषताएँ हैं। इस क्षेत्रक में प्रसूति अवकाश, शिशु देखभाल और अन्य सामाजिक सुरक्षा तन्त्र जैसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं।
♦ उच्च शिक्षा और उच्च कौशल वाली महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन मिलता है।
♦ संगठित क्षेत्रक में शिक्षण और चिकित्सा उन्हें सबसे अधिक आकर्षित करती हैं।
♦ कुछ महिलाओं ने प्रशासनिक और अन्य सेवाओं में प्रवेश किया है, जिनमें वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय सेवा के उच्च स्तर की आवश्यकता पड़ती है।
♦ निरक्षर और अस्वस्थ जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है।
♦ साक्षर और स्वस्थ जनसंख्या परिसम्पत्तियाँ होती हैं।
♦ शिक्षा में सार्वजनिक पहुँच, धारण और गुणवत्ता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है और इस मामले में लड़कियों पर विशेष जोर दिया गया है।
♦ प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे प्रगति निर्धारक विद्यालयों की स्थापना की गई है। बड़ी संख्या में हाईस्कूल के विद्यार्थियों को ज्ञान और कौशल से सम्बन्धित व्यवसाय उपलब्ध कराने के लिए व्यावसायिक शाखाएँ विकसित की गई हैं।
♦ शिक्षा पर योजना परिव्यय पहली पंचवर्षीय योजना के ₹151 करोड़ से बढ़ कर बारहवीं पंचवर्षीय योजना में ₹2 लाख करोड़ हो गया है। सकल घरेलू उत्पाद के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के विकास में भी शिक्षा का योगदान है। यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन कार्य क्षमता बढ़ाती है।
♦ साक्षरता प्रत्येक नागरिक का न केवल अधिकार है बल्कि यह नागरिकों द्वारा अपने कर्त्तव्यों का ठीक प्रकार से पालन करने तथा अपने अधिकारों का ठीक प्रकार से लाभ उठाने के लिए अनिवार्य भी है, तथापि जनसंख्या के विभिन्न भागों के बीच व्यापक अन्तर पाया जाता है।
♦ 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को सन् 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
♦ राज्यों, स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केन्द्रीय सरकार की यह एक समयबद्ध पहल है। इसके साथ ही, प्राथमिक शिक्षा में नामांकन बढ़ाने के लिए ‘सेतु – पाठ्यक्रम’ और ‘स्कूल लौटो शिविर’ प्रारम्भ किए गए हैं।
♦ कक्षा में बच्चों की उपस्थति को बढ़ावा देने, बच्चों के धारण और उनकी पोषण स्थिति में सुधार के लिए दोपहर के भोजन की योजना कार्यान्वित की जा रही है। इन नीतियों से भारत में शिक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
स्वास्थ्य
♦ स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है। हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पौष्टिक सेवा तक इनकी पहुँच को बेहतर बनाना है।
♦ पिछले पाँच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रकों में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए अपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारिक संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।
♦ इन उपायों को अपनाने से जीवन प्रत्याशा बढ़ कर सन् 2015 में 66.2 वर्ष अधिक हो गई है।
♦ ‘शिशु मृत्यु दर’ सन् 1961 के 147 से घटकर सन् 2015 में 44 पर आ गई है। इसी अवधि में अशोधित ‘जन्म दर’ गिर कर 21.8 और ‘मृत्यु दर’ 7.1 पर आ गई है।
♦ जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और शिशु देखभाल में सुधार देश के आत्मविश्वास को, भावी प्रगति के साथ, आँकने के लिए उपयोगी है। आयु में वृद्धि आत्मविश्वास के साथ जीवन की उत्तम गुणवत्ता का सूचक है।
♦ शिशुओं की संक्रमण से रक्षा तथा माताओं के साथ बच्चों की देखभाल और पोषण सुनिश्चित करने से शिशु मृत्यु दर घटती है।
बेरोजगारी
♦ बेरोजगारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोजगार नहीं पा सकें।
♦ भारत के सन्दर्भ में ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी है। तथापि, ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी की प्रकृति में अन्तर है। ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी और प्रच्छन्न बेरोजगारी है। नगरीय क्षेत्रों में अधिकांशत: शिक्षित बेरोजगारी है।
♦ मौसमी बेरोजगारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई, कटाई, निराई और गड़ाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता है।
♦ प्रच्छन्न बेरोजगारी के अन्तर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूखण्ड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्राय: कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है।
♦ शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोजगारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक, स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी अनेक युवक रोजगार पाने में असमर्थ हैं।
♦ एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों के बीच बेरोजगारी है, तो दूसरी ओर संवृद्धि के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल की कमी भी है।
♦ बेरोजगारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसम्पत्ति होते हैं, बेरोजगारी के कारण दायित्वों में बदल जाते हैं। युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती।
♦ बेरोजगारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोजगारों की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जब किसी परिवार को मात्र जीवन निर्वाह स्तर पर रहना पड़ता है, तो उसके स्वास्थ्य स्तर में एक आम गिरावट आती है और स्कूल प्रणाली से अलगाव में वृद्धि होती है।
♦ किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोजगारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है।
♦ बेरोजगारी में वृद्धि मन्दी ग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है। यह संसाधनों की बर्बादी भी करता है, जिन्हें उपयोगी ढंग से नियोजित किया जा सकता था।
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