व्यायामः सर्वदा पथ्यः
व्यायामः सर्वदा पथ्यः
व्यायामः सर्वदा पथ्यः पाठ-परिचय
(व्यायाम सदा हितकारी होता है)
‘सुश्रुत संहिता’ आयुर्वेद का अत्यन्त प्राचीन चिकित्सा शास्त्र है। इसकी रचना ईसा पर्व तीसरी शताब्दी में मानी जाती है। सुश्रुत संहिता में मुख्य रूप से शल्य चिकित्सा, विष, चिकित्सा तथा स्वास्थ्य के नियमों का निरुपण किया गया है। सुश्रुत संहिता छः खण्डों में विभाजित है.
(1) सूत्र स्थान (46 अध्याय, (2) निदान स्थान (16 अध्याय), (3) शारीर स्थान (10 अध्याय), (4) चिकित्सा स्थान (40 अध्याय), (5) कल्प स्थान (8 अध्याय), उत्तर तन्त्र (66 अध्याय)। सुश्रुत संहिता के लेखक आचार्य सुश्रुत हैं, जिनकी ख्याति चरक संहिता के रचयिता आचार्य चरक के तुल्य ही है।
प्रस्तुत पाठ ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24 वें अध्याय से संकलित है। इसमें आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बताते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में सुगठन, कान्ति, स्फूर्ति, सहिष्णुता, नीरोगता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ हैं। इनकी प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर के अनुकूल व्यायाम अवश्य करना चाहिए।
व्यायामः सर्वदा पथ्यः पाठस्य सारांश:
‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ यह पाठ चरक मुनि द्वारा रचित चरक संहिता से लिया गया है। इस पाठ में व्यायाम से होने वाले लाभ व्यायाम की मात्रा आदि के बारे में बताया गया है। पाठ का सारांश इस प्रकार है
जिससे शरीर में थकावट पैदा हो उस कर्म को व्यायाम कहते हैं। ऐसा परिश्रम वाला कार्य करके पूरे शरीर का भलीभाँति मर्दन करना चाहिए। व्यायाम से शरीर की वृद्धि, सुडौलता, जठराग्नि का प्रदीप्त होना, आलस्यहीनता, स्फूर्ति तथा मोटापे को दूर करने आदि अनेक लाभ होते हैं। जो व्यक्ति नियमपूर्वक व्यायाम करता है ; उसका शरीर बलिष्ठ होता है और उसे बुढ़ापा भी देर से आता है। उसकी पाचक अग्नि इतनी तेज़ हो जाती है कि उसे पका, अधपका यहाँ तक कि कच्चा भोजन भी बिना किसी दोष के पच जाता है। व्यायाम करने से शरीर से पसीना निकलता है और पसीने के साथ कुछ खनिज भी बाहर निकल जाते हैं। अत: व्यायाम करने वाले व्यक्ति को दूध घी आदि चिकनाईयुक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए । व्यायाम यद्यपि सभी ऋतुओं में लाभकारी होता है परन्तु शीत और वसन्त ऋतु में व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम होता है। व्यायाम की मात्रा अपने बल के आधे से अधिक नहीं होनी चाहिए। जब व्यायाम करते हुए फेफड़ों में स्थित वायु बलपूर्वक मुँह के रास्ते बाहर आने लगती है तब समझना चाहिए कि आधा बल हो चुका है। व्यायाम करते समय स्थानीय वातावरण, शरीर के बल, आयु तथा उपलब्ध भोजन का भी ध्यान रखना चाहिए ; अन्यथा व्यायाम स्वास्थ्य देने के स्थान पर शरीर को रोगों का घर बना देता है।
Sanskrit व्यायामः सर्वदा पथ्यः Important Questions and Answers
व्यायामः सर्वदा पथ्यः पठित-अवबोधनम्
1. निर्देशः- अधोलिखितं पद्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम्।
तत्कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः ॥1॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कीदृशं कर्म व्यायामसंज्ञितम् ?
(ii) देहं समन्ततः किं कुर्यात् ?
(iii) देहं कथं विमदनीयात् ?
(iv) केन आयासजननं कर्म ‘व्यायामः’ इति कथितम् ?
उत्तराणि:
(i) शरीरायासजननम्।
(ii) विमृदुनीयात् ।
(iii) सुखम्।
(iv) शरीरेण।
(ख) पूर्णवाक्येन:
(i) व्यायामसंज्ञितं कर्म किम् अस्ति ?
(ii) व्यायामं कृत्वा किं कुर्यात् ? उत्तराणि
उत्तरत:
(i) व्यायामसंज्ञितं कर्म शरीरायासजननम् अस्ति।
(ii) व्यायामं कृत्वा समन्ततः देहं विमृद्नीयात् ।
(ग) निर्देशानुसारम्:
(i) ‘शरीरम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं पर्यायपदं किम् ?
(ii) ‘कृत्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘दुःखम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किमस्ति ?
(iv) ‘शरीरायासजननम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि:
(i) देहम्।
(ii) क्त्वा।
(iii) सुखम्।
(iv) शरीर + आयासजननम्।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् (भवति) तत् कृत्वा तु देहं समन्ततः सुख विमृनीयात् ।
शब्दार्थाः- शरीर-आयास-जननम् = शरीर में थकावट पैदा करने वाला। आयासः = (परिश्रमः, प्रयत्नः, प्रयासः, श्रमः) परिश्रम, मेहनत। देहम् = (शरीरम्) शरीर। विमृद्नीयात् = (मर्दयेत्) मालिश करनी चाहिए। समन्ततः = (सर्वतः) सब ओर से।
संदर्भ:- प्रस्तुत पद्यांश आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुत संहिता’ के 24 वें अध्याय से हमारी पाठ्य- पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ में संकलित ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।
प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश में व्यायाम की परिभाषा बताई गई है। –
सरलार्थः- शरीर में थकावट करने वाला अर्थात् परिश्रम वाला कार्य व्यायाम कहलाता है। उस व्यायाम को करके शरीर की सभी ओर से सुखपूर्वक मालिश करनी चाहिए।
2. भावार्थ:- परिश्रम वाले कार्य को व्यायाम कहते हैं। इसके पश्चात् पूरे शरीर की भली-भाँति मालिश करनी चाहिए।
शरीरोपचयः कान्तित्राणां सुविभक्तता।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मजा॥2॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायामात् कस्य उपचयः भवति ?
(ii) अत्र केषां सुविभक्तता कथिता ?
(iii) व्यायामात् कीदृशं अग्नित्वं जायते ?
(iv) अनालस्यं कस्मात् जायते ?
उत्तराणि-:
(i) शरीरस्य।
(ii) गात्राणाम्।
(iii) दीप्तम्।
(iv) व्यायामात्।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत:
(i) व्यायामात् किम् उपजायते ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामात् शरीरोपचयः, कान्तिः, गात्राणां सुविभक्तता, दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यम्, स्थिरत्वम्, लाघवं मजा च उपजायते।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत:
(i) ‘शरीरोपचयः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘सुविभक्तता’-अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(iii) ‘आलस्यम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘स्थायित्वम्’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) शरीर + उपचयः ।
(ii) सु + वि + √भज् + क्त + तल्।
(iii) अनालस्यम्।
(iv) स्थिरत्वम्।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- (व्यायामात्) शरीरोपचयः, कान्तिः, गात्राणां सुविभक्तता, दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यं, स्थिरत्वं, लाघवं, मजा (उपजायते)।
शब्दार्थाः- उपचयः = (अभिवृद्धिः) वृद्धि। कान्तिः = (आभा) चमक। गात्रम् = (शरीरम्) शरीर । सुविभक्तता = (शारीरिकं सौष्ठवम्) शारीरिक सौन्दर्य । दीप्ताग्नित्वम् = (जठराग्नेः प्रवर्धनम्) जठराग्नि का प्रदीप्त होना अर्थात् भूख लगना। मृजा = (स्वच्छीकरणम्) स्वच्छ करना।
संदर्भ:-पूर्ववत्।
प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में व्यायाम के लाभ वर्णित किए गए हैं।
सरलार्थ:- व्यायाम से शरीर की वृद्धि, चमक, शारीरिक सौन्दर्य, जठराग्नि की वृद्धि, आलस्यहीनता, स्थिरता, फुर्ती और स्वच्छता (उत्पन्न होती है।)
भावार्थ:- व्यायाम करने से शरीर का समुचित विकास होता है, चेहरे पर स्वाभाविक चमक आ जाती है, शरीर सडौल बनता है, पेट में भोजन को पचाने वाली अग्नि प्रदीप्त होने से अच्छी भूख लगती है, आलस्य दूर होता है; शरीर में स्थायित्व, स्फूर्ति तथा स्वच्छता आती है।
3. श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते ॥3॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) आरोग्यं कस्मात् उपजायते ?
(ii) कीदृशम् आरोग्यम् उपजायते ?
(iii) व्यायामात् शीतादीनां का उपजायते ?
(iv) श्रमस्य सहिष्णुता कस्मात् उपजायते ?
उत्तराणि-:
(i) व्यायामात्।
(ii) परमम्।
(iii) सहिष्णुता।
(iv) व्यायामात् ।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्यायामात् केषां सहिष्णुता उपजायते ?
(ii) व्यायामात् परमं किम् उपजायते ?
उत्तराणि
(i) व्यायामात् श्रम-क्लम-पिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता उपजायते।
(ii) व्यायामात् परमम् आरोग्यम् उपजायते।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘उष्णम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(ii) ‘सहिष्णुता’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘रोगराहित्यम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘व्यायामात्’ अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
उत्तराणि-:
(i) शीतम्।
(ii) तल्।
(iii) आरोग्यम्।
(iv) पञ्चमी विभक्तिः ।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- व्यायामात् श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता,परमम् आरोग्यं च अपि उपजायते।
शब्दार्था:- क्लमः = (श्रमजनितं शैथिल्यम्) थकान। पिपासा = (पातुम् इच्छा) प्यास। उष्णः = (तापः) गर्मी। सहिष्णुता = (सहत्वं क्षमता) सहन करने की सामर्थ्य।
संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंगः-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के लाभ बताए गए हैं।
सरलार्थ:- व्यायाम करने से परिश्रम से होने वाली थकान, प्यास, गर्मी-सर्दी आदि को सहन करने का सामर्थ्य और अच्छा स्वास्थ्य भी उत्पन्न होता है।
भावार्थ:- व्यायाम करने से गर्मी-सर्दी, श्रम जन्य थकावट, प्यास आदि को सहन करने की क्षमता बढ़ती है और उत्तम आरोग्य प्राप्त होता है।
4. न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम्।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ॥4॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) स्थौल्यापकर्षणं किमस्ति ?
(ii) अरयः कं न अर्दयन्ति ?
(ii) अरयः कीदृशं मर्यं न अर्दयन्ति ?
(iv) अरयः कथं न अर्दयन्ति ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामः ।
(ii) मर्त्यम्।
(iii) व्यायामिनम्।
(iv) बलात्।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) केन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति ?
(ii) व्यायामिनं मर्यं के न अर्दयन्ति ?
उत्तराणि
(i) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(ii) व्यायामिनं मर्त्यम् अरयः न अर्दयन्ति।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘तुल्यम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘तेन’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम् ?
(iii) ‘अमर्त्यम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘शत्रवः’ इत्यस्य कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(v) ‘अर्दयन्त्यरयः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि:
(i) सदृशम्।
(ii) व्यायामाय।
(iii) मर्त्यम्।
(iv) अरयः ।
(v) अर्दयन्ति + अरयः ।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- तेन सदृशं स्थौल्यापकर्षणं च किञ्चित् न अस्ति। अरयः च व्यायामिनं मर्यं बलात् न अर्दयन्ति।
शब्दार्थाः- स्थौल्यम् = (अतिमांसलत्वं, पीनता) मोटापा। अपकर्षणम् = (दूरीकरणम्) दूर करना, कम करना। अर्दयन्ति = (अर्दनं कुर्वन्ति) कुचल डालते हैं। अरयः = (शत्रवः) शत्रुगण। मय॑म् = (मनुष्यम्) व्यक्ति को।
संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के लाभ वर्णित किए गए हैं।
सरलार्थः- उस व्यायाम के समान मोटापे को कम करने वाला और कोई साधन नहीं है। शत्रु भी व्यायाम करने वाले व्यक्ति को बलपूर्वक पीड़ित नहीं करते हैं।
भावार्थः- व्यायाम से शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है, शरीर का थुलथुलापन दूर हो जाता है। व्यायाम करने वाले मनुष्य के हृष्ट-पुष्ट बलि शरीर को देखकर शत्रु भी दुम दबा कर भाग जाते हैं।
5. न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायामिनं का न समधिरोहति ?
(ii) व्यायामिनं जरा कथं न आक्रमते ?
(iii) किं स्थिरीभवति ?
(iv) कस्य मांसं स्थिरीभवति ?
उत्तराणि:
(i) जरा।
(ii) सहसा।
(iii) मांसम्।
(iv) व्यायामाभिरतस्य।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्यायामाभिरतस्य मांसं कीदृशं भवति ?
उत्तराणि
(i) व्यायामाभिरतस्य मांसं स्थिरी भवति।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘चैनम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘आक्रम्य’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(iii) “एनम्’ इति सर्वनामपदस्य स्थाने संज्ञापदं लिखत।
(iv) ‘अकस्मात्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किमस्ति ?
उत्तराणि:
(i) च + एनम्।
(ii) आ + क्रम् + ल्यप्।
(iii) व्यायामिनम्।
(iv) सहसा।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- जरा च सहसा आक्रम्य एनं न समधिरोहति। व्यायामाभिरतस्य हि मांसं च स्थिरीभवति।
शब्दार्थाः- आक्रम्य = (आक्रमणं कृत्वा) हमला करके। जरा = (वार्धक्यम्) बुढ़ापा। समधिरोहति = (आरूढं भवति) सवार होता है। अभिरतस्य = (संलग्नस्य) तल्लीन होने वाले का।
संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के लाभ बताए गए हैं।
सरलार्थः- व्यायाम करने वाले व्यक्ति पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण कर सवार नहीं होता है। व्यायाम में लगे रहने वाले व्यक्ति का मांस भी पुष्ट हो जाता है।
भावार्थ:- व्यायाम करने से शरीर की मांस, मज्जा आदि सभी धातुएँ परिपुष्ट होने के कारण बुढ़ापा देर से आता है।
6. व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः वयोरूपगुणैीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) व्यायमस्विन्नगात्रस्य के न उपसर्पन्ति ?
(ii) काभ्यां उद्वर्तितस्य व्याधयः नोपसर्पन्ति ?
(iii) व्याधयः के इव न उपसर्पन्ति ?
(iv) व्यायामः किं करोति ?
उत्तराणि:
(i) व्याधयः ।
(ii) पद्भ्याम्।
(iii) उरगाः ।
(iv) सुदर्शनम्।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्याधयः कस्य न उपसर्पन्ति ?
(ii) कैः हीनमपि सुदर्शनं कुर्यात् ?
(iii) व्यायामः अत्र व्याधीनां तुलना कैः सह कृता ?
उत्तराणि:
(i) व्याधयः व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्याम् उद्वर्तितस्य च न उपसर्पन्ति ।
(ii) व्यायामः वयोरूपगुणैः हीनमपि सुदर्शनं कुर्यात् ।
(iii) अत्र व्याधीनां तुलना उरगैः सह कृता।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘नोपसर्पन्ति’ अत्र सन्धिविच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘सर्पाः’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः प्रयुक्तः ?
(iii) ‘वैनतेयमिवोरगाः’-अत्र प्रयुक्तम् अव्ययपदं किम् ?
(iv) ‘सुदर्शनम्’ अत्र कः उपसर्गः प्रयुक्तः ?
(v) ‘गरुडम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) न + उपसर्पन्ति ।
(ii) उरगाः ।
(iii) इव।
(iv) सु।
(v) वैनतेयम्।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्याम् उद्वर्तितस्य च व्याधयः वैनतेयम् उरगाः इव न उपसर्पन्ति। वयोरूपगुणैः हीनम् अपि सुदर्शनं कुर्यात्।
शब्दार्थाः- स्विन्नगात्रस्य = (स्वेदेन सिक्तस्य शरीरस्य) पसीने से लथपथ शरीर का। पद्भ्याम् उद्वर्तितस्य = (पद्भ्याम् उन्नमितस्य) दोनों पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम। व्याधयः = (रोगा:) बीमारियाँ। वैनतेयः = (गरुड:) गरुड़। उरगः = (सर्प) साँप।
संदर्भ:- पूवर्वत् प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में व्यायाम के लाभ बताए गए हैं।
सरलार्थः- शरीर को पसीने से लथपथ कर देने वाले तथा पैरों को ऊपर उठाने वाले व्यायाम करने वाले व्यक्ति के समीप रोग उसी प्रकार नहीं आते जैसे गरुड़ के समीप साँप नहीं आते हैं। व्यायाम आयु, रूप और अन्य गुणों से हीन व्यक्ति को भी सुन्दर बना देता है।
भावार्थ:- व्यायाम करने से शरीर से पसीना निकलता है। जिससे शरीर के रोमछिद्र पूरी तरह खुल जाते हैं, शरीर पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है। जो मनुष्य व्यायाम द्वारा शरीर से पसीना निकालता है और ‘पादोत्तान’ आदि आसन करके अपने रक्तचाप को नियन्त्रित रखता है ; रोग उसके पास नहीं फटकते और शरीर में सौन्दर्य की अभिवृद्धि भी होती है।
7. व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥7॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) किं कुर्वत: भोजनं परिपच्यते ?
(ii) भोजनं कथं परिपच्यते ?
(iii) कदा व्यायामं कुर्वत: भोजनं परिपच्यते ?
(iv) व्यायामेन विरुद्धमपि किं परिपच्यते ?
उत्तराणि-:
(i) व्यायामम् ।
(ii) निर्दोषम् ।
(iii) नित्यम् ।
(iv) भोजनम्।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) व्यायामं कुर्वतः कीदृशं भोजनं निर्दोषं परिपच्यते ?
उत्तराणि
(i) व्यायामं कुर्वतः विरुद्धम्, विदग्धम् अविदग्धं वा अपि भोजनं निर्दोषं परिपच्यते।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘कुर्वतः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘प्रतिदिनम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iii) ‘विदग्धम्’ इति पदस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘विरुद्धम्’ इति विशेषणस्य अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(v) ‘निर्दोषम्’ इति क्रियाविशेषणस्य क्रियापदं किमत्र प्रयुक्तम् ?
उत्तराणि:
(i) शतृ। कृ + शतृ = कुर्वत् + षष्ठी विभक्तिः एकवचनम्।
(ii) नित्यम्।
(iii) अविदग्धम्।
(iv) भोजनम्।
(v) परिपच्यते।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः- नित्यं व्यायामं कुर्वतः विदग्धम् अविदग्धम् वा विरुद्धम् अपि भोजनं निर्दोषं परिपच्यते।
शब्दार्थाः- विरुद्धम् = (प्रतिकूलम्) विपरीत। विदग्धम् = (सुपक्वम्) भली प्रकार पका हुआ। अविदग्धम् = (अपक्वम्, अर्धपक्वम्) आधा पका हुआ, न पका हुआ। निर्दोषम् = दोषरहित। परिपच्यते = (जीर्यते) पच जाता है।
संदर्भ:- पूर्ववत् प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में बताया गया है कि व्यायाम से शरीर की पाचनक्षमता बढ़ जाती है।
सरलार्थ:- नित्य-प्रति व्यायाम करने वाले व्यक्ति को शरीर की प्रकृति के विपरीत,भली-भाँति पका हुआ अथवा न पका हुआ भोजन भी बिना किसी दोष के पच जाता है।
भावार्थ:- व्यायाम से मनुष्य की पाचक अग्नि इतनी तीव्र हो जाती है कि उसे हर प्रकार का भोजन बिना कोई रोग उत्पन्न किए पच जाता है।
8. व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम् ।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः ॥8॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) सदा कः पथ्यः ?
(ii) व्यायामः केषां पथ्यः ?
(iii) शीते व्यायामः कीदृशः स्मृतः ?
(iv) वसन्ते व्यायामः कीदृशः कथितः ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामः ।
(ii) बलिनाम्।
(iii) पथ्यतमः।
(iv) पथ्यतमः ।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कीदृशानां बलिनां व्यायामः सदा पथ्यः ?
(ii) व्यायामः कदा पथ्यतमः स्मृतः ?
उत्तराणि
(i) स्निग्धभोजिनां बलिनां व्यायामः सदा पथ्यः।
(ii) व्यायामः शीते वसन्ते च पथ्यतमः स्मृतः।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘पथ्यतमः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘स च शीते’ अत्र ‘सः’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(iii) ‘हितकारी’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iv) ‘स्मृतः’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययौ विभजत।
(v) ‘बलिनां स्निग्धभोजिनाम्’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) तमप् ।
(ii) व्यायामः ।
(iii) पथ्यः ।
(iv) √स्म + क्त।
(v) बलिनाम्।
हिन्दीभाषया पाठबोध:
अन्वयः- हि व्यायामः स्निग्धभोजिनां बलिनां सदा पथ्यः (भवति) सः शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः।
शब्दार्था:- स्निग्धभोजिनाम् = चिकनाई से युक्त भोजन करने वाले। पथ्यः = (अनूकूलः) उचित, स्वास्थ्यकारी। पथ्यतमः = (अनुकूलतमः) सर्वाधिक हितकारी। स्मृतः = (कथितः) कहा गया है।
संदर्भ:-पूर्ववत्
प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में वर्णित किया गया है कि व्यायाम शीत ऋतु तथा वसन्त ऋतु में सर्वाधिक स्वास्थ्य प्रदान करने वाला होता है।
सरलार्थ:-निश्चय ही यह व्यायाम चिकनाईयुक्त भोजन खानेवाले बलवान् व्यक्तियों के लिए सदैव हितकर होता है। परन्तु वही व्यायाम शीत और वसन्त ऋतुओं में सबसे अधिक हितकारी कहा गया है।
भावार्थ:-व्यायाम करने वाले मनुष्य को चिकनाईयुक्त भोजन दूध आदि अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि व्यायाम करने से पसीना अधिक आता है, वसा जल जाती है। इसका संतुलन चिकनाईयुक्त भोजन से ही हो पाता है। यद्यपि व्यायाम सभी ऋतुओं में हितकारी होता है, परन्तु शीत और वसन्त ऋतुओं में व्यायाम का लाभ सर्वाधिक होता है।
9. सर्वेष्वतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः।
बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा ॥१॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कीदृशैः पुम्भिः व्यायामः कर्तव्यः ?
(ii) केषु ऋतुषु व्यायामः कर्तव्यः ?
(iii) कस्य अर्धेन व्यायामः कर्तव्यः ?
(iv) अहरहः कः कर्तव्यः ?
उत्तराणि:
(i) आत्महितैषिभिः ।
(ii) सर्वेषु ।
(iii) बलस्य।
(iv) व्यायामः ।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) अहरहः कैः व्यायामः कर्तव्यः ?
(ii) व्यायामः कदा हन्ति ?
(iii) व्यायामः कदा कर्तव्यः ?
उत्तराणि
(i) अहरहः आत्महितैषिभिः पम्भिः व्यायामः कर्तव्यः।
(ii) बलस्यार्धेन व्यायामः कर्तव्यः अतोऽन्यथा व्यायामः हन्ति।
(iii) व्यायामः सर्वेषु ऋतुषु अहरहः कर्तव्यः।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘प्रतिदिनम्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘कर्तव्यः’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(iii) ‘कर्तव्यः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iv) ‘हन्त्यतोऽन्यथा’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत ?
(v) ‘मनुष्यैः’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) अहरहः ।
(ii) ऋतुषु।
(iii) तव्यत्।
(iv) हन्ति + अतः + अन्यथा।
(v) पुम्भिः ।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः-आत्महितैषिभिः पुम्भिः सर्वेषु ऋतुषु अहरह: बलस्य अर्धेन व्यायामः कर्तव्यः अत: अन्यथा हन्ति।
शब्दार्था:- अहरहः = (प्रतिदिनम्) प्रत्येक दिन। पुम्भिः = (पुरुषैः) पुरुषों के द्वारा। आत्महितैषिभिः = (आत्मनः हितेच्छुकैः) अपना हित चाहने वालों द्वारा।
संदर्भ:-पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्यांश में बताया गया है कि मनुष्य को अपने बल का आधा व्यायाम ही करना उचित है।
सरलार्थः-अपना हित चाहनेवाले मनुष्यों को सब ऋतुओं में प्रतिदिन अपने शरीर-बल का आधा व्यायाम करना चाहिए; इससे भिन्न अर्थात् आधे बल से अधिक व्यायाम करने पर यह व्यायाम हानिकारक होता है।
भावार्थ:-व्यायाम कितना करना चाहिए? इसके उत्तर में सुश्रुत ऋषि का मत है कि मनुष्य का जितना बल हो उससे आधा व्यायाम करना ही हितकारी होता है, अन्यथा व्यायाम मनुष्य को स्वस्थ करने के स्थान पर रोगी बना देता है। कहा भी है-‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’-अति किसी भी विषय में नहीं करनी चाहिए।
10. हृदिस्थानास्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।
व्यायाम कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥ 10 ॥ .
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) वायुः कुत्र स्थितः भवति ?
(ii) वायु कं प्रपद्यते ?
(ii) अत्र कस्य लक्षणं कथितम् ?
(iv) अत्र किं कुर्वत: जन्तोः लक्षणं कथितम् ?
उत्तराणि:
(i) हृदि।
(ii) वक्त्रम्।
(iii) बलार्धस्य।
(iv) व्यायामम्।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कीदृशः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते ?
(ii) अत्र बलार्धस्य किं लक्षणं कथितम् ?
उत्तराणि
(i) हृदिस्थानास्थितः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते।
(ii) यदा व्यायाम कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानास्थितः वायुः वक्त्रं प्रपद्यते, तत् बलार्धस्य लक्षणं कथितम्।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘मुखम्’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः ?
(ii) ‘व्यायाम कुर्वतो जन्तोः’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(iii) ‘आस्थितः’ अत्र प्रकृति-प्रत्यय-निर्देशं कुरुत ?
(iv) ‘जन्तोः’ इति पदे का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(v) ‘परिभाषा’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) वक्त्रम्।
(ii) जन्तोः ।
(iii) आ + √स्था + क्त ।
(iv) षष्ठी विभक्तिः ।
(v) लक्षणम्।
हिन्दीभाषया पाठबोधः
अन्वयः-व्यायामं कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानास्थितः वायुः यदा वक्त्रं प्रपद्यते तद् बलार्धस्य लक्षणम्।
शब्दार्थाः- हृदि = (हृदये) हृदय में। आस्थितः = (विद्यमानः) ठहरा हुआ। वक्त्रम् = (मुखम्) मुख को। प्रपद्यते = (प्राप्नोति) प्राप्त करता है। जन्तोः = (प्राणिनः) व्यक्ति का।
संदर्भः-पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य में व्यायाम के प्रसंग में व्यक्ति के अच्छे बल की पहचान बताई गई है।
सरलार्थ:-व्यायाम को करते हुए व्यक्ति के हृदय में उचित स्थान पर स्थित श्वास वायु जब मुख तक पहुँचने लगती है, तब आधे बल का लक्षण होता है।
भावार्थः-व्यायाम करते हुए हृदय में स्थित वायु प्रबलता से मुख में पहुँचने लगती है अर्थात् मनुष्य हाँपने लगता है, इस अवस्था को उस मनुष्य का आधा बल समझना चाहिए।
11. वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च।
समीक्ष्य कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥ 11॥
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) वयोबलशरीराणि समीक्ष्य किं कुर्यात् ?
(ii) देशकालाशनानि किं कृत्वा व्यायाम कुर्यात् ?
(iii) अन्यथा कम् आप्नुयात् ?
(iv) ‘लभेत’ इति स्थाने प्रयुक्तं पदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) व्यायामम्।
(ii) समीक्ष्य।
(iii) रोगम्।
(iv) प्राप्नुयात् ।
(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) किं समीक्ष्य व्यायामं कुर्यात् ?
(ii) रोगं कदा आप्नुयात् ?
उत्तराणि
(i) वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च समीक्ष्य व्यायाम कुर्यात् ।
(ii) यदि वयोबलादीनि न समीक्ष्य व्यायामं कुर्यात् तदा रोगम् आप्नुयात्।
(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘सम्यक् विचार्य इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘भोजनम्’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः ?
(iii) ‘अविचार्य’ इत्यस्य प्रयुक्तं विपरीतार्थकपदं किम् ?
(iv) ‘समीक्ष्य’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(v) ‘आयुः’ इत्यस्य कः पर्यायः अत्र प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) समीक्ष्य।
(ii) अशनम्।
(iii) समीक्ष्य।
(iv) ल्यप् ।
(v) वयः।
Sanskrit व्यायामः सर्वदा पथ्यः Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) कीदृशं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते ?
(ख) व्यायामात् किं किमुपजायते ?
(ग) जरा कस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति ?
(घ) कियता बलेन व्यायामः कर्तव्यः ?
(ङ) अर्धबलस्य लक्षणं किम् ?
उत्तराणि
(क) शरीरायाससजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते।
(ख) व्यायामात् शरीरोपचयः कान्तिः गात्राणां सुविभक्तता दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यं, स्थिरत्वं लाघवं, मजा, श्रम-क्लम-पिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता आरोग्यं च उपजायते।
(ग) जरा व्यायामाभिरतस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति।
(घ) अर्धेन बलेन व्यायामः कर्तव्यः।
(ङ) यदा व्यायाम कुर्वतः हृदि स्थानास्थितो वायुः वक्त्रं प्रपद्यते, तद् अर्धबलस्य लक्षणम्।
प्रश्न 2.
उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु तृतीयाविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयतयथा – व्यायामः …….. हीनमपि सुदर्शनं करोति (गुण)
व्यायामः गुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।
(क) ……………… व्यायामः कर्तव्यः। (बलस्यार्ध)
(ख) …………….. सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति। (व्यायाम)
(ग) ……………… विना जीवनं नास्ति। (विद्या)
(घ) सः …………….. खञ्जः अस्ति । (चरण)
(ङ) सूपकारः ……………. भोजनं जिघ्रति। (नासिका)
उत्तराणि
यथा – व्यायामः ……………….. हीनमपि सुदर्शनं करोति (गुण)
व्यायाम: गुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।
(क) बलस्यार्धेन व्यायामः कर्तव्यः । (बलस्यार्ध)
(ख) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति। (व्यायाम)
(ग) विद्यया विना जीवनं नास्ति। (विद्या)
(घ) सः चरणेन खञ्जः अस्ति। (चरण)
(ङ) सूपकारः नासिकया भोजनं जिघ्रति। (नासिका)
प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) शरीरस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते।
(ख) अरयः व्यायामिनं न अर्दयन्ति।
(ग) आत्महितैषिभिः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः ।
(घ) व्यायामं कुर्वतः विरुद्धं भोजनम् अपि परिपच्यते।
(ङ) गात्राणां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) कस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते ?
(ख) के व्यायामिनं न अर्दयन्ति ?
(ग) कैः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः ?
(घ) व्यायाम कुर्वतः कीदृशं भोजनम् अपि परिपच्यते ?
(ङ) केषां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति ?
प्रश्न 4.
निम्नलिखितानाम् अव्ययानाम् रिक्तस्थानेषु प्रयोगं कुरुत
सहसा, अपि, सदृशं, सर्वदा, यदा, सदा, अन्यथा
(क) ……………… व्यायामः कर्तव्यः।
(ख) ………………….. मनुष्यः सम्यक् रूपेण व्यायामं करोति तदा सः …. स्वस्थः तिष्ठति।
(ग) व्यायामेन असुन्दरा: ………………. सुन्दराः भवन्ति।
(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्धक्यं ……………….. नायाति।
(ङ) व्यायामेन ……….. किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(च) व्यायाम समीक्ष्य एव कर्तव्यम् . ….. व्याधयः आयान्ति।
उत्तराणि
(क) सदा व्यायामः कर्तव्यः।
(ख) यदा मनुष्यः सम्यक्पेण व्यायाम करोति तदा सः सर्वदा स्वस्थः तिष्ठति।
(ग) व्यायामेन असुन्दराः अपि सुन्दराः भवन्ति।
(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्धक्यं सहसा नायाति।
(ङ) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(च) व्यायाम समीक्ष्य एव कर्तव्यम् अन्यथा व्याधयः आयान्ति।