वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Globalisation and Indian Economy
वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Globalisation and Indian Economy
♦ आज के विश्व में, उपभोक्ता के रूप में हममें से कुछ के सामने वस्तुओं और सेवाओं के विस्तृत विकल्प हैं। विश्व के शीर्षस्थ विनिर्माताओं द्वारा निर्मित डिजिटल कैमरे, मोबाइल फोन, कार, लैपटॉप, टेलीविजन, इत्यादि अनेक वस्तुओं के नवीनतम मॉडल हमारे लिए सुलभ हैं। पहले ऐसा नहीं था, अब ऐसा वैश्वीकरण के कारण सम्भव हुआ है।
अन्तरदेशीय उत्पादन
♦ बीसवीं शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की सीमाओं के अन्दर ही सीमित था। इन देशों की सीमाओं को लाँघने वाली वस्तुओं में केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ और तैयार उत्पाद ही थे। भारत जैसे उपनिवेशों से कच्चा माल एवं खाद्य पदार्थ निर्यात होते थे और तैयार वस्तुओं का आयात होता था। व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम था। यह बड़ी कम्पनियों, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कहते हैं, के परिदृश्य पर उभरने से पहले का युग था।
♦ एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियन्त्रण अथवा स्वामित्व रखती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उन प्रदेशों में कार्यालय तथा उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवं अन्य संसाधन मिल सकते हैं। उत्पादन लागत में कमी करने तथा अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ऐसा करती हैं।
♦ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ केवल वैश्विक स्तर पर ही अपना तैयार उत्पाद नहीं बेच रही हैं बल्कि अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन विश्व स्तर पर कर रही हैं। परिणामत: उत्पादन प्रक्रिया क्रमश: जटिल ढंग से संगठित हुई है।
♦ उत्पादन प्रक्रिया छोटे भागों में विभाजित है और विश्व भर में, फैली हुई है। उदाहरण स्वरूप भारत में अत्यन्त कुशल इन्जीनियरस उपलब्ध हैं, जो उत्पादन के तकनीकी पक्षों को समझ सकते हैं। यहाँ अंग्रेजी बोलने वाले शिक्षित युवक भी हैं, जो ग्राहक देखभाल सेवाएँ उपलब्ध करा सकते हैं। ये सभी चीजें बहुराष्ट्रीय कम्पनी की लागत का लगभग 50-60% बचत कर सकती हैं। अतः वास्तव में, सीमाओं के पार बहुराष्ट्रीय उत्पादन प्रक्रिया के प्रसार से असीमित लाभ हो सकता है।
विश्व-भर के उत्पादन को एक-दूसरे से जोड़ना
♦ सामान्यत: बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जो बाजार के नजदीक हो, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हो और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो। साथ ही, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सरकारी नीतियों पर भी नजर रखती हैं, जो उनके हितों की देखभाल करती हैं। इन परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के बाद ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्पादन के लिए कार्यालयों और कारखानों की स्थापना करती हैं।
♦ परिसम्पत्तियों जैसे— भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं।
♦ कोई भी निवेश इस आशा से किया जाता है कि ये परिसम्पत्तियाँ लाभ अर्जित करेंगी। लेकिन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के निवेश का सबसे आम रास्ता स्थानीय कम्पनियों को खरीदना और उसके बाद उत्पादन का प्रसार करना है। अपार सम्पदा वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ यह आसानी से कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, एक बहुत बड़ी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी कारगिल फूड्स ने परख फूड्स जैसी छोटी भारतीय कम्पनियों को खरीद लिया है। परख फूड्स ने भारत के विभिन्न भागों में एक बड़ा विपणन तन्त्र तैयार किया था, जहाँ उसके ब्राण्ड काफी प्रसिद्ध थे। परख फूड्स के चार तेल शोधक केन्द्र भी थे, जिस पर अब कारगिल का नियन्त्रण हो गया है। अब कारगिल 50 लाख पैकेट प्रतिदिन निर्माण क्षमता के साथ भारत में खाद्य तेलों की सबसे बड़ी उत्पादक कम्पनी है।
♦ कई शीर्षस्थ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सम्पत्ति विकासशील देशों की सरकारों के सम्पूर्ण बजट से भी अधिक है।
♦ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ एक अन्य तरीके से उत्पादन नियन्त्रित करती हैं। विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का ऑर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल के सामान ऐसे उद्योग हैं, जहाँ विश्व भर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कम्पनियों को इन उत्पादों की आपूर्ति करती हैं।
♦ फिर इन्हें अपने ब्राण्ड नाम से ग्राहकों को बेचती हैं। इन बड़ी कम्पनियों में दूरस्थ उत्पादकों के मूल्य, गुणवत्ता, आपूर्ति और श्रम – शर्तों का निर्धारण करने की प्रचण्ड क्षमता होती है।
♦ कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विभिन्न देशों की स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनी को दोहरा लाभ होता है। पहला बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अतिरिक्त निवेश के लिए धन प्रदान कर सकती हैं, जैसे कि तीव्र उत्पादन के लिए मशीनें खरीदने के लिए। दूसरा, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपने साथ ला सकती हैं।
विदेशी व्यापार और बाजारों का एकीकरण
♦ विदेश व्यापार, घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है। उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं, बल्कि विश्व के अन्य देशों के बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे देशों में उत्पादित वस्तुओं के आयात से खरीदारों के समक्ष उन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन के अन्य विकल्पों का विस्तार होता है।
♦ सामान्यत: व्यापार के खुलने में वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है। बाजार में वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एक समान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक एक-दूसरे से हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं। इस प्रकार, विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक होता है।
वैश्वीकरण क्या है?
♦ विगत दो तीन दशकों से अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ विश्व में उन स्थानों की तलाश कर रही हैं, जो उनके उत्पादन के लिए सस्ते हों। इन देशों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के निवेश में वृद्धि हो रही है, साथ ही विभिन्न देशों के बीच विदेश व्यापार में भी तीव्र वृद्धि हो रही है।
♦ विदेश व्यापार का एक बड़ा भाग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा नियन्त्रित है। जैसे, भारत में फोर्ड मोटर्स का कार संयन्त्र, केवल भारत के लिए ही कारों का निर्माण नहीं करता, बल्कि वह अन्य विकासशील देशों को कारें और विश्व भर में अपने कारखानों के लिए कार – पुर्जों का भी निर्यात करता है। इसी प्रकार, अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के क्रिया-कलाप में वस्तुओं और सेवाओ का बड़े पैमाने पर व्यापार शामिल होता है।
♦ अधिक विदेश व्यापार और अधिक विदेशी निवेश के परिणामस्वरूप विभिन्न देशों के बाजारों एवं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है।
♦ विभिन्न देशों के बीच परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है।
♦ बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। विभिन्न देशों के बीच अधिक से अधिक वस्तुओं और सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है।
♦ विगत कुछ दशकों की तुलना में विश्व के अधिकांश भाग एक-दूसरे के अपेक्षाकृत अधिक सम्पर्क में आए हैं। वस्तुओं, सेवाओं, निवेशों और प्रौद्योगिकी के अतिरिक्त विभिन्न देशों को आपस में जोड़ने का एक और माध्यम हो सकता है। यह माध्यम है विभिन्न देशों के बीच लोगों का आवागमन । प्रायः लोग बेहतर आय, बेहतर रोजगार एवं शिक्षा की तलाश में एक देश से दूसरे देश में आवागमन करते हैं किन्तु, विगत कुछ दशकों में अनेक प्रतिबन्धों के कारण विभिन्न देशों के बीच लोगों के आवागमन में अधिक वृद्धि नहीं हुई है।
वैश्वीकरण के कारक
♦ प्रौद्योगिकी में तीव्र उन्नति वह मुख्य कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया। जैसे— विगत पचास वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में बहुत उन्नति हुई है। इसने लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्रतर आपूर्ति को कम लागत पर सम्भव किया है।
♦ इससे भी अधिक उल्लेखनीय है सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विकास। वर्तमान समय में दूरसंचार, कम्प्यूटर और इन्टरनेट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी द्रुत गति से परिवर्तित हो रही है। दूरसंचार सुविधाओं (टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल फोन एवं फैक्स) का विश्व भर में एक-दूसरे से सम्पर्क करने, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में प्रयोग किया जाता है। ये सुविधाएँ संचार उपग्रहों द्वारा सुगम हुई हैं।
♦ जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटरों का प्रवेश हो गया है। इन्टरनेट के चमत्कारिक संसार में आप जो कुछ भी जानना चाहते हैं, लगभग उसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और सूचनाओं को आपस में बाँट सकते हैं।
♦ इन्टरनेट से हम तत्काल इलेक्ट्रॉनिक डाक (ई-मेल) भेज सकते हैं और अत्यन्त कम मूल्य पर विश्व – भर में बात (वॉयस मेल) कर सकते हैं।
विदेश व्यापार तथा विदेशी निवेश का उदारीकरण
♦ आयात पर कर को व्यापार अवरोधक इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह कुछ प्रतिबन्ध लगाता है। सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती (नियमिति करने) करने और देश में किस प्रकार की वस्तुएँ कितनी मात्रा में आयातित होनी चाहिए, यह निर्णय करने के लिए कर सकती हैं।
♦ स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। देश के उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से संरक्षण प्रदान करने के लिए यह अनिवार्य माना गया। सन् 1950 और सन् 1960 के दशकों में उद्योगों का उदय हो रहा था और इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्द्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती। इसीलिए, भारत ने केवल अनिवार्य चीजों जैसे, मशीनरी, उर्वरक और पेट्रोलियम के आयात की ही अनुमति दी।
♦ सभी विकसित देशों ने विकास के प्रारम्भिक चरणों में घरेलू उत्पादकों को विभिन्न तरीकों से संरक्षण दिया है।
♦ भारत में करीब सन् 1991 के प्रारम्भ से नीतियों में कुछ दूरगामी परिवर्तन किए गए। सरकार ने यह निश्चय किया कि भारतीय उत्पादकों के लिए विश्व के उत्पादकों से प्रतिस्पर्द्धा करने का समय आ गया है। यह महसूस किया गया कि प्रतिस्पर्द्धा से देश में उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार होगा, क्योंकि उन्हें अपनी गुणवत्ता में सुधार करना होगा। इस निर्णय का प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने समर्थन किया। अतः विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर से अवरोधों को काफी हद तक हटा दिया गया। इसका अर्थ है कि वस्तुओं का आयात-निर्यात सुगमता से किया जा सकता था और विदेशी कम्पनियाँ यहाँ अपने कार्यालय और कारखाने स्थापित कर सकती थीं।
♦ सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जानी जाती है। व्यापार के उदारीकरण से व्यावसायियों को मुक्त रूप से निर्णय लेने की अनुमति मिली है कि वे क्या आयात या निर्यात करना चाहते हैं। सरकार पहले की तुलना में कम नियन्त्रण करती है और इसलिए उसे अधिक उदार कहा जाता है।
विश्व व्यापार संगठन
♦ कुछ बहुत प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत में विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश के उदारीकरण का समर्थन किया। इन संगठनों का मानना है कि विदेश व्यापार और विदेशी निवेश पर सभी अवरोधक हानिकारक हैं। कोई अवरोधक नहीं होना चाहिए। देशों के बीच मुक्त व्यापार होना चाहिए। विश्व के सभी देशों को अपनी नीतियाँ उदार बनानी चाहिए।
♦ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ) एक ऐसा संगठन है, जिसका ध्येय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। विकसित देशों की पहल पर शुरू किया गया विश्व व्यापार संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित नियमों को निर्धारित करता है और यह देखता है कि इन नियमों का पालन हो।
♦ वर्तमान में विश्व के 164 देश विश्व व्यापार संगठन सन् 2016 के सदस्य हैं। यद्यपि विश्व व्यापार संगठन सभी देशों को मुक्त व्यापार की सुविधा देता है, परन्तु व्यवहार में यह देखा गया है कि विकसित देशों ने अनुचित ढ़ग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है। दूसरी ओर, विश्व व्यापार संगठन के नियमों ने विकासशील देशों के व्यापार अवरोधों को हटाने के लिए विवश किया है। इसका एक उदाहरण कृषि उत्पादों के व्यापार पर वर्तमान विवाद है।
व्यापार व्यवहारों पर वाद-विवाद
♦ भारत में अधिकांश रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) का महत्त्वपूर्ण भाग कृषि क्षेत्र प्रदान करता है। इसकी तुलना में विकसित देशों, जैसे अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा मात्र एक प्रतिशत और कुल रोजगार में केवल 0.5% है। फिर भी, अमेरिका के कृषि क्षेत्र में कार्यरत इतने कम प्रतिशत लोग भी अमेरिकी सरकार से उत्पादन और दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए बहुत अधिक धन राशि प्राप्त करते हैं।
♦ भारी धन राशि के कारण अमेरिकी किसान अपने कृषि उत्पादों को असाधारण रूप से कम कीमत पर बेच सकते हैं। अधिक शेष कृषि उत्पादों को दूसरे देशों के बाजारों में कम कीमत पर बेचा जाता है जो इन देशों के कृषकों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
♦ उपरोक्त कारण से ही विकासशील देश, विकसित देशों की सरकारों से सवाल कर रहे हैं कि हमने विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार व्यापार अवरोधकों को कम कर दिया, लेकिन आप लोगों ने विश्व व्यापार संगठन के नियमों को नजर अन्दाज कर दिया और अपने किसानों को भारी धन राशि देना बरकरार रखा है। आप लोगों ने हमारी सरकारों को अपने किसानों की सहायता बन्द करने को कहा, परन्तु आप स्वयं यहीं काम कर रहे हैं।
भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव
♦ विगत पन्द्रह वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण ने एक लम्बी दूरी तय की है।
♦ वैश्वीकरण और उत्पादकों – स्थानीय एवं विदेशी दोनों के बीच ” -वृहतर प्रतिस्पर्द्धा से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभान्वित हो रहे हैं। परिणामत: ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनन्द ले रहे हैं।
♦ उत्पादकों और श्रमिकों पर वैश्वीकरण का एक समान प्रभाव नहीं पड़ा है।
♦ विगत वर्षों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है, जिसका अर्थ है कि भारत में निवेश करना उनके लिए लाभप्रद रहा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने शहरी इलाकों के उद्योगों जैसे सेल फोन, मोटर गाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, ठण्डे पेय पदार्थों और जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसी सेवाओं के निवेश में रुचि दिखाई है। इन उत्पादों के अधिकांश खरीददार सम्पन्न वर्ग के लोग हैं। इन उद्योगों और सेवाओं में नये रोजगार उत्पन्न हुए हैं। साथ ही, इन उद्योगों को कच्चे माल इत्यादि की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कम्पनियाँ समृद्ध हुईं।
♦ अनेक शीर्ष भारतीय कम्पनियाँ बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा से लाभान्वित हुई हैं। इन कम्पनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया और अपने उत्पादन-मानकों को ऊँचा उठाया है। कुछ ने विदेशी कम्पनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग कर लाभ अर्जित किया। इससे भी आगे, वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी भारतीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया है। टाटा मोटर्स (मोटरगाड़ियाँ), इन्फोसिस (आई.टी), रैनबैक्सी (दवाइयाँ), एशियन पेन्ट्स (पेन्ट), सुन्दरम फास्नर्स (नट और बोल्ट) कुछ ऐसी भारतीय कम्पनियाँ हैं, जो विश्व स्तर पर अपने क्रिया-कलापों का प्रसार कर रही हैं।
♦ वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कम्पनियों विशेष कर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सृजन किया है।
♦ भारतीय कम्पनी द्वारा लन्दन स्थित कम्पनी के लिए पत्रिका का प्रकाशन और कॉल सेन्टर इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त आँकड़ा प्रविष्ट (डाटा एण्ट्री), लेखाकरण, प्रशासनिक, कार्य इन्जीनियरिंग जैसी कई सेवाएँ भारत जैसे देशों में अब सस्ते में उपलब्ध हैं और विकसित देशों को निर्यात की जाती हैं।
विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए उठाए गए कदम
♦ हाल के वर्षों में भारत की केन्द्र एवं राज्य सरकारें भारत में निवेश हेतु विदेशी कम्पनियों को आकर्षित करने के लिए विशेष कदम उठा रही हैं। औद्योगिक क्षेत्रों, जिन्हें विशेष आर्थिक क्षेत्र कहा जाता है, की स्थापना की जा रही है।
♦ विशेष आर्थिक क्षेत्रों में विश्व स्तरीय सुविधाएँ – बिजली, पानी, सड़क परिवहन, भण्डारण, मनोरंजन और शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए।
♦ विशेष आर्थिक क्षेत्र में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने वाली कम्पनियों को आरम्भिक पाँच वर्षों तक कोई कर नहीं देना पड़ता है।
♦ विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति दे दी है।
♦ संगठित क्षेत्र की कम्पनियों को कुछ नियमों का अनुपालन करना पड़ता है। जिसका उद्देश्य श्रमिक अधिकारों का संरक्षण करना है। हाल के वर्षों में सरकार ने कम्पनियों को अनेक नियमों से छूट लेने की अनुमति दे दी है। अब नियमित आधार पर श्रमिकों को रोजगार देने के बजाए कम्पनियों में जब काम का अधिक दबाव होता है, तो लोचदार ढंग से छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को कार्य पर रखती हैं। कम्पनी की श्रम लागत में कटौती करने के लिए ऐसा किया जाता है। फिर भी, विदेशी कम्पनियाँ अभी भी सन्तुष्ट नहीं हैं और श्रम कानूनों में और अधिक लचीलेपन की माँग कर रही हैं।
छोटे उत्पादकों की स्थिति कैसी?
♦ वैश्वीकरण ने बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों और श्रमिकों के लिए बड़ी चुनौतियाँ खड़ी की हैं।
♦ बैटरी, संधारित्र, प्लास्टिक, खिलौने, टायरों, डेयरी उत्पादों एवं खाद्य तेल के उद्योग कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ प्रतिस्पर्द्धा के कारण छोटे विनिर्माताओं पर कड़ी मार पड़ी है। कई इकाइयाँ बन्द हो गई, जिसके चलते अनेक श्रमिक बेरोजगार हो गए।
♦ भारत में लघु उद्योगों में कृषि के बाद सबसे अधिक श्रमिक (2 करोड़) नियोजित हैं।
♦ प्रतिस्पर्द्धा और अनिश्चित रोजगार वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्द्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण अधिकांश नियोक्ता इन दिनों श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसन्द करते हैं। इसका अर्थ है कि श्रमिकों का रोजगार अब सुनिश्चित नहीं है।
♦ अमेरिका और यूरोप में वस्त्र उद्योग की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारतीय निर्यातकों को वस्तुओं की आपूर्ति के लिए आर्डर देती हैं। विश्व व्यापी नेटवर्क से युक्त बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लाभ को अधिकतम करने के लिए सबसे सस्ती वस्तुएँ खोजती हैं। इन बड़े ऑर्डरों को प्राप्त करने के लिए भारतीय वस्त्र निर्यातक अपनी लागत कम करने की कड़ी कोशिश करते हैं। चूँकि कच्चे माल पर लागत में कटौती नहीं की जा सकती, इसलिए नियोक्ता श्रम लागत में कटौती करने की कोशिश करते हैं ।
♦ जहाँ पहले कारखाने श्रमिकों को स्थायी आधार पर रोजगार देते थे, वहीं वे अब अस्थायी रोजगार देते हैं, ताकि श्रमिकों को वर्ष भर वेतन नहीं देना पड़े। श्रमिकों को बहुत लम्बे घण्टों-कार्य तक काम करना पड़ता है और अत्यधिक माँग की अवधि में नियमित रूप से रात में भी काम करना पड़ता है। मजदूरी काफी कम होती है और श्रमिक अपनी रोजी-रोटी के लिए अतिरिक्त समय में भी काम करने के लिए विवश हो जाते हैं।
♦ हालाँकि वस्त्र निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अधिक लाभ कमाने में मदद मिली है, परन्तु वैश्वीकरण के कारण मिले लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं दिया गया है।
उपरोक्त कार्य – परिस्थितियाँ और श्रमिकों की कठिनाइयाँ भारत के अनेक औद्योगिक इकाइयों और सेवाओं में सामान्य बात हो गई है। आज अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्र में नियोजित हैं। यही नहीं, संगठित क्षेत्र में क्रमश: कार्य-परिस्थितियाँ असंगठित क्षेत्र के समान होती जा रही हैं।
न्यायसंगत वैश्वीकरण के लिए संघर्ष
♦ उपरोक्त प्रमाण यह संकेत करते हैं कि वैश्वीकरण सभी के लिए लाभप्रद नहीं रहा है।
♦ शिक्षित, कुशल और सम्पन्न लोगों ने वैश्वीकरण से मिले नये अवसरों का सर्वोत्तम उपयोग किया है। दूसरी ओर, अनेक लोगों को लाभ में हिस्सा नहीं मिला है।
♦ वैश्वीकरण तभी न्यायसंगत हो सकता है, जब यह सभी के लिए अवसर प्रदान करे और यह सुनिश्चित भी करे कि वैश्वीकरण के लाभों में सबकी बेहतर हिस्सेदारी हो । सरकार इसे सम्भव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसकी नीतियों को केवल ज्ञानी और प्रभावशाली लोगों को ही नहीं बल्कि देश के सभी लोगों के हितों का सरंक्षण करना चाहिए ।
♦ सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि श्रमिक कानूनों का उचित कार्यान्वयन हो और श्रमिकों को अपने अधिकार मिले। यह छोटे उत्पादकों को कार्य-निष्पादन में सुधार के लिए उस समय तक मदद कर सकती है, जब तक वे प्रतिस्पर्द्धा के लिए सक्षम न हो जाएँ। यदि जरूरी हुआ तो सरकार व्यापार और निवेश अवरोधकों का उपयोग कर सकती है। यह ‘न्यायसंगत नियमों के लिए विश्व व्यापार संगठन से समझौते भी कर सकती है।
♦ विश्व व्यापार संगठन में विकसित देशों के वर्चस्व के विरुद्ध समान हितों वाले विकासशील देशों को मिलकर लड़ना होगा।
♦ विगत कुछ वर्षों में, बड़े अभियानों और जनसंगठनों के प्रतिनिधियों ने विश्व व्यापार संगठन के व्यापर और निवेश से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित किया है। यह प्रदर्शित करता है कि जनता भी न्यायसंगत वैश्वीकरण के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
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