वैज्ञानिक चमत्कार

वैज्ञानिक चमत्कार

          एक युग था जब मानव, प्रकृति से भयभीत होकर उसकी अर्चना करता था। आज का युग है कि प्रकृति मानव की क्रीत दासी बनी हुई है। यह सब विज्ञान की आशातीत सफलता और उसके आश्चर्यजनक चमत्कारों का ही परिणाम है। आज किसी राष्ट्र का पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न होना जनसंख्या पर आधारित नहीं है, अपितु उस राष्ट्र में हुये वैज्ञानिक आविष्कारों और वहाँ हुई वैज्ञानिक प्रगति पर निर्भर है। आज छोटे से छोटा राष्ट्र भी विज्ञान की विनाशकारिणी शक्तियों का आविष्कार करके संसार के अस्तित्व को समाप्त करने की धमकी दे देता है । विज्ञान के अद्भुत चमत्कारों ने विश्व में क्रांति-सी उत्पन्न कर दी है। एक ओर विज्ञान की चरमोन्नति से विश्व समाप्त हो रहा है और दूसरी ओर, उसकी वरदायिनी शक्ति संसार के निवासियों को सुखी बनाती जा रही है। विज्ञान के चमत्कारों का ही प्रभाव है कि आज वह विश्व के प्रत्येक घर में किसी न किसी रूप में प्रवेश पा चुका है। न
          आज विज्ञान का युग है। मानव समस्त भौतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके आज खिलखिलाकर हँस रहा है। इन भौतिक शक्तियों में से मानव ने वाष्प, विद्युत, गैस, ईथर और एटम जैसी शक्तियों पर विजय प्राप्त करके रेल, तार, मोटर, हवाई जहाज, रेडियो, टेलीविजन, पारदर्शक यन्त्र, एटम बम और हाइड्रोजन बम बना डाले हैं, और एक बार नहीं अनेक बार चन्द्रमा पर जाकर उसने घण्टों सैर की है, भ्रमण किया है उसको उलट-पुलट कर देखा है कि यह है क्या?
          प्राचीन काल का मानव एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में बड़ी कठिनाई का अनुभव करता था। उसे अपनी यात्रा पूरी करने में महीनों लग जाते थे। वह या तो पैदल जाता था या बैलगाड़ी, ऊँट-गाड़ी और घोड़ा – गाड़ियों अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँच पाता था। परन्तु अब वह मोटर, साइकिल और हवाई जहाज द्वारा वर्षों की यात्रा एक दिन में तय कर लेता है। समुद्र के व्यवधान के कारण एक-दूसरे देश के निकट नहीं आ पाता था, परन्तु इस युग के वैज्ञानिक समुद्र के वक्षस्थल पर भी विजय प्राप्त की और समुद्री जहाज का निर्माण किया। इस प्रकार देशों में पारस्परिक मैत्री और सद्भावना स्थापित करने में विज्ञान ने बहुत बड़ा योगदान दिया है। इन द्रुतगामी यानों से मनुष्य के अमूल्य समय की ही बचत नहीं होती अपितु अकाल, बाढ़, युद्ध आदि दैवी आपत्तियों एवं व्यापार और व्यवसाय में भी ये साधन बड़े सहायक सिद्ध होते हैं ।
          जो समाचार पुरातन काल में सन्देश वाहकों द्वारा भेजे जाते थे और जिनके उत्तर के लिये महीनों प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, लेकिन आज के युग में आप घर बैठे ही तार द्वारा समाचार भेज सकते हैं, कुछ घण्टों में ही उसका जवाब भी ले सकते हैं। इसी प्रकार टेलीफोन द्वारा भी आप पलंग पर लेटे-लेटे ही -विनिमय कर सकते हैं। टेलीविजन द्वारा तो आविष्कारों ने समय पर भी विजय प्राप्त कर ली है ।
          मनोविनोद के साधनों को भी विज्ञान ने अत्यधिक समुन्नत कर दिया है । चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन, वीडियो, ग्रामोफोन आदि यन्त्र इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने प्रशंसनीय कार्य किया है। अमेरिका में तो टेलीविजन द्वारा शिक्षा भी दी जाने लगी है। शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर प्रणाली का प्रयोग भी दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। भारतवर्ष में भी रेडियो स्टेशनों द्वारा शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं । भिन्न-भिन्न भाषाओं की शिक्षा रेडियो से दी जाने लगी है, जैसे तमिल, बंगला, संस्कृत सभी तरह के ज्ञान और विषय आज विज्ञान की सहायता से पढ़ाये जाने लगे हैं। सर्वसाधारण के लिये अमूल्य ज्ञान की पुस्तकें छाप-छाप कर सुलभ की जा सकती हैं। आज शिक्षा का कोई अंग ऐसा नहीं, जिसका वैज्ञानिक रीति से अध्ययन न हो सकता है ।
          हमारे नित्य प्रति के कार्यों में भी विज्ञान हमारी सहायता करता है। समय की गति नाप के लिये उसने हमें दो घड़ियाँ दी हैं अन्यथा सूरज और चन्द्र की आकाश में स्थिति से ही समय का अनुमान करना पड़ता, जैसे कि हमारे पूर्वज करते थे । सरकण्डे की कलम बनाते-बनाते चाकू से हथेलियाँ और उंगलियाँ कटतीं और कलम भी लिखते लिखते कई बार टूटती, मानव की इस असुविधा को उसने पेन का आविष्कार करके सरल बना दिया। आँखों के चश्में कितने लाभकारी हैं, इसका अनुभव तो आप उनसे पूछिए जिनकी नेत्र ज्योति क्षीण हो चुकी है और जिनके जीवन का आधार चश्मा ही है। यह भी तो मानव को विज्ञान की ही एक अनुपम देन है। इसी तरह, स्त्री और पुरुषों की सौन्दर्य-प्रसाधन की अनेक वस्तुयें, बनावट और सजावट के बहुतेरे उपकरण बिजली का प्रकाश, गर्मियों में पसीने को एकदम सुखा देने वाले बिजली के पंखे और शीतकाल में बर्फ से ठण्डे कमरे को गर्म करने वाले हीटर, धुएँ और धौंकनी के बिना भोजन बना देने वाले गैस के चूल्हे और पाँच मिनट में दाल-भात बनाकर तैयार कर देने वाले प्रेशर कुकर । ये सब मानव को विज्ञान की ही अमूल्य भेंट हैं, जिन्हें पाकर मानव आज फूला नहीं समाता और अपने को उन्नति की चरम सीमा पर समझता है।
          रोग निवारण के रूप में विज्ञान ने मानव की बहुत सेवा की है, यद्यपि वह अभी मृत्यु पर विजय प्राप्त नहीं कर पाया, इसके लिये भी वैज्ञानिक अनवरत प्रयत्न कर रहे हैं, चाहे वे मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकें या न कर सकें ।
          परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि देश में पहले जितनी मृत्यु होती थीं वे अब कम हो गई हैं। विज्ञान ने ऐसे-ऐसे नवीन यन्त्रों का आविष्कार किया है कि मानव की बुद्धि उन्हें देखकर चमत्कृत हो उठती है, जैसे एक्स-रे, जिससे आपके शरीर के भीतर का चित्र आसानी से खींचा जा सकता है। आज प्रातः से संध्या तक वैद्य लोग हाथ पर हाथ रखकर क्यों बैठे रहते हैं, इसका कारण विज्ञान की सार्वभौम उन्नति ही है । डाक्टरों के पास ऐसे इन्जेक्शन हैं, जिनके द्वारा रोगी जाते समय हँसने लगता है विद्युत तरंगों से मनुष्यों के नाना प्रकार के रोगों का निवारण किया जा सकता है, यहाँ तक कि वैक्यूम ट्यूब द्वारा विद्युत तरंग मानव के शरीर में भी प्रवेश कराई जा सकती हैं, रोगी के शरीर पर विद्युत का चुम्बकीय असर हो सकता है। तीव्रतम विद्युत तरंगें कीटाणु सम्बन्धी रोगों की चिकित्सा में भी विशेष उपयोगी सिद्ध हुई हैं। राज्यक्षमा, दमा, चर्म रोग, अस्थि-रोग , और हृदय रोग भी इस वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति द्वारा दूर किये जा चुके हैं। प्लेग, चेचक, हैजा जैसे रोगों के इन्जेक्शन लगाकर करोड़ों व्यक्तियों के जीवन की रक्षा करके उन्हें अकाल मृत्यु से बचाया जा चुका है। यह विज्ञान का ही चमत्कार है कि आज के युग में जिनके दाँत उखड़ चुके हैं, वे भी चना चबा लेते हैं और जिनकी टांगें नहीं हैं वे भी पार्क में घूमकर सैर का आनन्द ले लेते है।
          मृत्यु दर पर ही विज्ञान ने नियन्त्रण स्थापित नहीं किया अपितु “परखनली शिशु” के रूप में जन्म के विषय में भी अद्वितीय सफलता प्राप्त की है। २५ जौलाई, १९७९ को इंगलैंड के वैज्ञानिकों ने जैसे ही यह वैज्ञानिक चमत्कार दिखाया वैसे ही ३ अक्टूबर, १९७९ को भारतीय वैज्ञानिकों ने भी कलकत्ता में ‘परखनली शिशु’ को जन्म प्रदान किया। कलकत्ते के मेडिकल कालेज के डॉ० मुखर्जी, गायनोलोजी के संयुक्त प्रोफेसर डॉ० सरोजकान्ति भट्टाचार्य तथा प्रोफेसर मुखर्जी की देखरेख में यह दुर्गा नाम की लड़की पैदा हुई । यहाँ के एक वैज्ञानिक डॉ० सुभाष मुखर्जी ने इस शिशु को संसार का ऐसा प्रथम शिशु बताया जो ५३ दिन तक ‘डीप फ्रीज’ में संसेचित डिम्ब अवस्था में रहने के बाद जन्मा ।
          युद्ध-क्षेत्र में विज्ञान ने क्या किया, यह बात किसी से छिपी नहीं है। आजकल तो प्रश्न यह होना चाहिये कि विज्ञान ने क्या नहीं किया ? धनुष-बाणों और तलवारों का युग तो कई शताब्दी पूर्व ही समाप्त हो चुका | बन्दूक, मशीनगन, स्टेनगन और टामीगन तथा टैंकों की धड़-धड़ करती हुई भयानक आवाजें मनुष्य के हृदय को हिलाने तथा कुछ ही क्षणों में उसकी जीवन लीला समाप्त करने में पर्याप्त चमत्कार दिखा चुकी है। साधारण बम, एटम बम तथा इसी प्रकार के अन्य विध्वंसकारी बमों का आविष्कार विज्ञान की ही सफल कहानी सुना रहे हैं। राडार तथा अन्य मारक यन्त्रों से ही नहीं, अपितु और कई प्रकार से जैसे- सेनाधिकारियों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने, सैनिक सहायता भेजने, शत्रु- शैन्य निरीक्षण करने आदि कई प्रकार के अन्य कार्यों के रूप में भी विज्ञान ने युद्ध भूमि पर मानव की सेवा की है I
          कृषि-उत्पादन-क्षेत्र में विज्ञान की अमूल्य सेवायें मानव को अनन्त काल तक चिरस्मरणीय रहेंगी । जो किसान धूप-तप में प्रातः से संध्या तक हल हाथ में लिये बैलों को पीटता हुआ थक जाता था और अपने भाग्य की दुर्दशा पर किसी वृक्ष की छाया में बैठकर पश्चाताप करता था, आज वह, टेक्टरों की छाती पर बैठा हंसता दिखाई पड़ रहा है। अन्न के अधिकाधिक उत्पादन में विशेष सहायक खाद की अनेक किस्में आज विज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रही हैं। कृषि सम्बन्धी और भी अनेक प्रकार के नवीन यन्त्र बाजारों से खरीदकर किसान आज सुख और शान्ति का श्वांस ले रहा है। कृषि के उत्पादन में ही नहीं, अपितु अन्य उत्पादनों, जैसे- सागर में से मोती निकालने, पर्वतीय वनों से अनेक प्रकार की लकड़ी लाने, खानों से सोना चाँदी व कोयला आदि निकालने, मिलों में वस्त्रोत्पादन आदि में भी नवीन यन्त्रों के रूप में विज्ञान निरन्तर मानव की सेवा में तल्लीन है I
          १९७९ की परखनली शिशु के रूप में महान् वैज्ञानिक उपलब्धि के पश्चात् भारतीय वैज्ञानिकों ने परखनली पौधे पैदा करने में भी सफलता प्राप्त की। इस नये आविष्कार का सम्पूर्ण श्रेय भारत के प्रसिद्ध भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र को है जिसने आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों की परखनली की सहायता से शानदार फसल प्राप्त करने की खोज में एक और कीर्तिमान स्थापित किया है। इस तकनीक का व्यावहारिक रूप से उपयोग भी प्रारम्भ कर दिया गया है। इसका सर्वप्रथम उपयोग चन्दन के वृक्ष के लिये किया गया था । वास्तव में यह तकनीक ऐसे पौधे के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है जिनका निर्माण वनस्पति ढंग से सम्भव नहीं हो सका है। इस तकनीक द्वारा दस सप्ताह में ही इसी जाति के विकसित तथा सुलभ पर्यावरणधारी अनेक पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं।
          ब्रह्माण्ड व अन्तरिक्ष के क्षेत्र में विज्ञान ने महत्वपूर्ण जानकारियाँ मानव जाति को प्रदान की हैं । विज्ञान के बल पर मनुष्य चन्द्रमा तक पहुँच सका है और मंगल, शनि आदि ग्रहों के विषय में बहुत कुछ जान सका है। इतना ही नहीं विज्ञान ने उपसंचार प्रणाली का प्रचलन कर संसार को आश्चर्यचकित कर दिया है। भारतवर्ष के वैज्ञानिक भी इस दिशा में पीछे नहीं हैं। भारतीय सैनिकों ने आर्यभट्ट, रोहिणी, भास्कर प्रथम व द्वितीय तथा इन्सेंट (ए) आदि उपग्रह छोड़कर देश को वैज्ञानिक प्रगति के शिखर पर पहुँचा दिया है।
          इस प्रकार विज्ञान की वरदायिनी शक्तियाँ अनन्त हैं। अनेक रूप में आज यह जन-कल्याणं का कार्य कर रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में प्राचीन काल की अपेक्षा मानव अपने को अधिक सुखी अनुभव करता है, वह एक नए संसार और नवीन सभ्यता की ओर मुड़ चुका है। परन्तु आज लोगों को यह कहते सुना जाता है कि विज्ञान से लाभ तो जो कुछ हैं वे हैं ही, परन्तु उसमें विश्व का विध्वंस भी अन्तर्निहित है। परन्तु विचारणीय बात यह है कि इसमें विज्ञान का क्या दोष ? आपके हाथ में चाकू है, आप इससे फल काटिए, कागज काटिए, समय पड़ने पर नाखून भी उसी से काट लीजिए पर आपसे यह किसने कहा कि आप अपनी नाक भी उसी से काट लीजिए। बस यही सीधी सी बात विज्ञान के सम्बन्ध में भी लागू होती है। हीटर कमरे को गरम करने के लिये है, न कि आप उस पर अपनी हथेली रख दें। हवाई जहाज से हजारों मील की दूरी घण्टों में पूरी की जाती है और उससे समय की भी बचत होती है, जीवन के अमूल्य क्षणों की बचत के लिये हवाई जहाज बनाये गये थे, परन्तु यदि इन्हीं जहाजों में आदमियों के बैठने की जगह पर आप ब रखकर ले जायें किसी शहर पर उन्हें नीचे ढकेल दें, तो अपने आप ही विनाश हो जायेगा, इसमें विज्ञान का क्या दोष ? संसार के प्रत्येक पदार्थ में गुण भी हैं और अवगुण भी परन्तु यह उपभोक्ता की बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह उसके गुणों का उपयोग करे या अवगुणों का परन्तु –
सावधान, मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार
          विज्ञान मानव कल्याण के लिये और मानव कल्याण की उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाकर नवीन आविष्कार करने के लिये है। दोनों में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध हैं। एक दूसरे के बिना किसी का निर्वाह नहीं हो सकता । लोग कहते हैं कि विज्ञान के नवीन चमत्कारों से विश्व में त्राहि-त्राहि मची हुई है, जन-जीवन विनाश के मुख की ओर अग्रसर हो रहा है, यह उनका भ्रम है। कुछ समय और रुकिये, आप न सही आपके बाल बच्चे तो अवश्य ही चन्द्रलोक को जाया करेंगे और वहाँ के सितारों को छूकर एक नवीन सिहरन का अनुभव करेंगे, जैसे लोग बम्बई जाकर वहाँ के फिल्मी सितारों को देखना चाहते हैं, इसी प्रकार, अन्तिम और अब तक की चन्द्र यात्राओं के १२ परमवीर वैज्ञानिकों के छ: सफल चन्द्र विचरणों ने यह सिद्ध कर दिया है कि चन्द्रलोक भी कुछ दिनों में बम्बई ही बन जायेगा ।
          आज के युग में कलुषित और दूषित विचारधारा के मनुष्य अधिकं संख्या में हैं। उनकी युयुत्सु और स्वार्थी प्रवत्ति उन्हें युद्ध और विद्रोह के लिये विवश करती है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को हड़पना चाहता है और स्वयं पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न बनना चाहता है, यही भावना युद्ध और अशान्ति का आह्वान करती है। अब आप स्वयं निर्णय कीजिये कि इसमें बेचारे विज्ञान का क्या दोष, यह तो हमारी अपरिपक्व बुद्धि का परिणाम है। हमारी स्वार्थपूर्ण प्रवत्तियों की दुर्वासना ही हमें विनाश के गर्त की ओर खींचे लिये जा रही है, इसमें हम दोषी हैं या विज्ञान | उसके अभूतपूर्व चमत्कारों का स्वागत करना चाहिये, जिससे देश उत्तरोत्तर समृद्धिशाली और धन-धान्य से पूर्ण होकर विश्व के अन्य राष्ट्रों के सामने गौरव से अपना मस्तक उन्नत कर सके ।
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