विश्व का सबसे बड़ा चौथा विश्व महिला सम्मेलन सितम्बर ९५
विश्व का सबसे बड़ा चौथा विश्व महिला सम्मेलन सितम्बर ९५
सदियों तक नारी को चेतनायुक्त मिटटी का बर्तन समझा गया, जिस पर किसी न किसी पुरूष का अधिकार होना ही चाहिए । इसीलिए इसका विवाह जल्दी से जल्दी करके छुट्टी पाई जाती रही है । एक बार सम्पत्ति बन जाने पर वह जीवन भर के लिए पुरुष की सम्पत्ति हो गई । कभी भी साथी की तरह उसे नहीं समझा गया, बल्कि सदा एक मिल्कियत की तरह ही उसे रक्खा गया ।
पिछले पचास वर्षों से स्त्रियों के उत्थान और पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करने के लिये विश्व ने कई करवटें बदलीं। अलग-अलग देशों की सरकारों ने अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार नियम बनाये उन्हें वैधानिकता दी गई। नौकरियाँ भी दी गई और फिर भी आज ढाक के तीन पात ही रहे। रूस के अनुभव के आधार पर व्यावहारिक रूप से ऐसा कोई काम नहीं, जिसमें स्त्रियों ने पुरुषों की बराबरी न की हो। रूसी स्त्रियों ने कृषि टैक्ट्रर ड्राइवरी, टैंक तथा मशीनगन चालकों, वायुयान चालकों, हवाई इन्जीनियरिंग, पैदल और घुड़सवारी सिपाहीगीरी और गुरिल्ला लड़ाई के कामों में वीरता, योग्यता, धैर्य के विचार से अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किये हैं ।
१९७५ में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष का भारत में उद्घाटन करते हुए तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने १६ फरवरी, ७५ को नई दिल्ली में ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर कहा था— “ऐसा कोई काम नहीं है जिसे महिलायें पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर नहीं कर सकतीं। विश्व की समस्याओं का समाधान करने के लिए आपसी सद्भाव बहुत जरूरी है।” १२ मार्च,७५ को उन्होंने कहा था – “कि पहिले महिलायें युद्धपोत पर नहीं जा सकती थीं लेकिन इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया है ।” १९७५ में मैक्सिको में पहला, १९८० में कोपेन हेंगन में दूसरा, १९८५ में नौरोबी में सम्पन्न तीसरे विश्व महिला सम्मेलनों के बाद चौथा विश्व महिला सम्मेलन बीजिंग में शुरू हुआ।
बीजिंग सम्मेलन की अध्यक्ष तथा तंजानिया की भूतपूर्व राजनयिक गेटयर्ट मंगेला ने कहा है— “महिलायें यहाँ पिकनिक मनाने नहीं आ रहीं बल्कि यहाँ वे अपने भविष्य की भाग्य रेखा की इबारत लिखेंगी” भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व मानव संसाधन विकास मन्त्री श्री माधवराव सिंधिया ने किया था। बीजिंग जाने से पूर्व उन्होंने ३० अगस्त, ९५ को कहा था- देश के कई भागों में नवजात बच्चियों की हत्या करने की प्रवृत्ति का अभी भी बने रहना चिन्ता की बात है। इसको समाप्त करने के उपायों पर सरकार गम्भीरता से विचार कर रही है। इसके लिए शीघ्र ही एक कार्य योजना को अन्तिम रूप दिया जायेगा ।
४ सितम्बर, ९५ को चौथा विश्व महिला सम्मेलन बिजिंग में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम-धाम के साथ प्रारम्भ हुआ । चौथे विश्व सम्मेलन के पहिले ही दिन पाकिस्तान की प्रधानमन्त्री श्रीमती बेनजीर भुट्टो ने जम्मू-कश्मीर में तथाकथित बलात्कार का मामला उठाकर सम्मेलन को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जबकि सम्मेलन के लिये आज यहाँ आयोजित भव्य स्वागत समारोह स्थल के बाहर दक्षिण अफ्रीका के प्रतिनिधि विनी मंडेला और पुलिस कर्मियों के बीच झड़पें हुई और वे अन्दर नहीं जा सकीं ।
श्रीमती भुट्टो ने क्षेत्रीय तनाव एवं संघर्षों के बढ़ने पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि इसकी सर्वाधिक शिकार महिलायें होती हैं क्योंकि वे लाचार तथा प्रताड़ित हैं।
भारत की प्रतिनिधि एवं राज्यसभा की उपसभापति श्रीमती नज़मा हेपतुल्ला ने श्रीमती भुट्टो के इस वक्तव्य की निन्दा करते हुए कहा कि पाकिस्तान हर मंच का राजनीतिक इस्तेमाल करने की कोशिश करता है ।
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि पाकिस्तान को खुद अपने से यह सवाल करना चाहिए कि आतंकवाद और महिलाओं की स्थिति के मामले में उसका क्या इतिहास रहा है ।
५ सितम्बर, ९५ को भारत ने विश्व महिला सम्मेलन को राजनीति का अखाड़ा बनाने की पाकिस्तान की कोशिशों की फिर कड़ी आलोचना करते हुए दुनिया से आतंकवाद को खत्म करने का आह्वान किया क्योंकि आतंकवाद का सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ता है। सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मानव संसाधन विकास मन्त्री श्री माधवराव सिंधिया ने इसी सम्मेलन में जम्मू-कश्मीर के बारे में पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री श्रीमती बेनजीर भुट्टो के आरोपों पर कड़ा ऐतराज करते हुए इन आरोपों को निराधार बताया।
श्री सिन्धिया ने पूर्ण अधिवेशन में अपने भाषण में यह भी कहा कि पाकिस्तान की शह पर काम कर रहे आतंकवादी बेगुनाह नागरिकों को आतंकित करने के लिए बलात्कार, बन्धक बनाने और हत्या जैसे जघन्य अपराध कर रहे हैं I
पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री श्रीमती भुट्टो ने अपने शुरुआती भाषण में कहा था कि बलात्कार को युद्ध का हथियार बना दिया गया है और जम्मू-कश्मीर तथा बोस्निया हर्जेगोविना में इस कहानी शुरूआत से समूचा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय दहल गया है ।
इसी अवसर पर श्री सिंधिया ने एक महत्वपूर्ण नीतिगत घोषणा करते हुए महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये एक आयुक्त पद गठित करने की घोषणा की ।
उन्होंने हर्ष ध्वनि के बीच घोषणा की कि भारत महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार के लिए तब तक प्रयास करता रहेगा जब तक कि यह अन्तिम लक्ष्य प्राप्त न हो जाये ।
६ सितम्बर, ९५ को अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नि हिलेरी क्लिटन ने यहाँ महिलाओं के अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी सम्मेलन में कल अपने भाषण में भारतीय महिलाओं से हुई अपनी मुलाकात का जिक्र किया और अपने भाषण की समाप्ति एक भारतीय छात्रा की कविता के साथ की ।
उधर महिला प्रतिनिधियों ने अपनी माँगों के समर्थन में जबरदस्त बारिश और कड़ी सुरक्षा के बावजूद प्रदर्शन जारी रखे ।
ऐसा लगता है कि श्रीमती क्लिटन की हाल की दक्षिण एशिया यात्रा ने उनको काफी प्रभावित किया है। मुख्य सम्मेलन में अपने भाषण में श्रीमती क्लिटन ने इस क्षेत्र की महिलाओं द्वारा खुद को आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर बनाने के लिये किए गये कार्यों की प्रशंसा की ।
जर्मनी और अमेरिकी महिलाओं के एक समूह ने परमाणु हथियारों में खिलाफ जमकर नारे बाजी की। उनके बैनरों पर तमाम परमाणु परीक्षण बन्द करो जैसे नारे लिखे थे ।
श्रीमती क्लिंटन ने अपने भाषण में इस बात का समर्थन किया कि बच्चों को जन्म देने के लिए उनकी संख्या और समय के निर्णय के अधिकार महिलाओं को मिलें । उन्होंने मानव अधिकारों के हनन का विरोध किया ।
हालांकि उन्होंने नाम नहीं लिया लेकिन उनका लक्ष्य स्पष्ट रूप से चीन ही था। उन्होंने नवजात शिशुओं की हत्या और ज़बरदस्ती बन्ध्याकरण और गर्भपात कराने की निन्दा की। चीन के एक बच्चा प्रति दम्पत्ति नीति के कारण ही ये सब बातें होती हैं। उन्होंने कुछ महिलाओं को सम्मेलन में हिस्सा लेने से रोकने या पूरी तरह हिस्सा नहीं लेने देने की भी आलोचना की।
८ सितम्बर को महिलाओं का गैर-सरकारी सम्मेलन अपने सारे हक पाने के संकल्प के साथ समाप्त हो गया। यहाँ बताया गया कि विश्व की पचपन करोड़ महिलायें गरीबी की रेखा से नीचे बसर कर रही हैं। यह विश्व की ग्रामीण जनसंख्या का ६० फीसदी है इससे पता चलता है कि १९७० के दशक के बाद से इसमें पचास प्रतिशत वृद्धि हुई है जो पुरुषों के रिकार्ड से तीस प्रतिशत ज्यादा है। गैर-सरकारी संगठनों की महिलाओं के सम्मेलन में भाग लेकर स्वदेश लौटते देश की प्रथम महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी ने सम्मेलन के पूर्णाधिवेशन में प्रस्तुत अपनी ‘वृहत छत’ अवधारणा के बारे में बताते हुए कहा कि महिलाओं को दर-दर की ठोकरें खाने से बचाने के लिये हमें उनको ऐसा स्थान उपलब्ध कराना होगा जहाँ कानूनी सहायता, स्वास्थ्य सेवा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और पुलिस संरक्षण सब एक साथ मिल सके ।
ग्रामीण महिलाओं पर दिन भर चले विचार-विमर्श में कहा गया कि कई देशों में खेती की जिम्मेदारी भी महिलाओं के कन्धों पर आ पड़ी है। इससे उनमें निर्धनता बढ़ी है जिसके परिणामस्वरूप उनके लिये समस्याओं का अम्बार लग गया है। अन्तर्राष्ट्रीय वनस्पति आनुवंशिकी अनुसन्धान संस्थान के पाढलों इजागुइरे ने बताया कि कृषि महिलाओं के परिश्रम पर आधारित हो गयी है।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक जैक्यूस ड्योफ ने बुधवार पूर्ण सम्मेलन में कहा कि अरबों लोगों का भरण-पोषण सुनिश्चित करने के लिये ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में सुधार करना बहुत जरूरी है। पुरुष बड़ी संख्या में गाँवों से पलायन कर रहे हैं जिससे महिलाओं की भूमिका और महत्वपूर्ण होती जा रही है।
खाद्य एवं कृषि संगठन के विकास में महिला और पुरुष की साझेदारी शाखा की निदेशक लीना कीरजावेइनेन ने कहा कि हजारों की तादाद में लोग रोजाना विश्व के शहरों में पहुँच रहे हैं लेकिन वास्तव में कितने लोग सोचते हैं कि उनका भरण-पोषण कौन करेगा।
अपने सारे हक पाने के संकल्प के साथ चौथे बीजिंग में आयोजित गैर-सरकारी संगठनों के सम्मेलन का समापन हो गया ।
इस मौके पर हजारों महिलायें कुम्बा स्टेज क्षेत्र में भारी वर्षा के बावजूद खड़ी थीं । फोरम की कार्यकारी निदेशक इरने सैटियागो ने महिला प्रतिनिधियों की प्रतिबद्धता और अपराजेय शक्ति का जिक्र करते हुए कहा कि वर्षा, आँधी और तूफान भी हमें रोक नहीं सकते। उन्होंने आशा व्यक्त की कि महिलाओं ने यहाँ जो ऊर्जा हासिल की है उसकी मदद से वे अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए महिलाओं के जीवन में बदलाव लायेंगी । इस फोरम में भारत की ओर से विशाल प्रतिनिधि मण्डल ने भाग लिया।
श्रीमती बेदी ने चीन से लौटने के बाद कहा कि उन्होंने महिला कैदियों के साथ अपने अनुभव के आधार पर वृहत छत की अवधारणा विकसित की। श्रीमती बेदी की दिल्ली की तिहाड़जेल में किये गये क्रान्तिकारी सुधारों के लिये पिछले वर्ष ‘मैगसोसे’ पुरस्कार मिला था ।
गैर-सरकारी संगठन ‘नवज्योति’ के संस्थापक महासचिव के रूप में अपने दस वर्ष के अनुभव से श्रीमती बेदी को लगने लगा है कि महिलाओं की परेशानियाँ छोटे-मोटे उपायों से से दूर नहीं होंगी बल्कि सम्यक् रवैये से ही स्थिति में सुधार किया जा सकता है। आज के हालात में यदि किसी महिला को उसके पति या सास-ससुर परेशान करते हैं तो उसे समझ में नहीं आता कि वह कहाँ जाये। यदि वह किसी एक संस्था के पास मदद के लिये जाती है तो वह उसे किसी दूसरी संस्था और उसके बाद तीसरी संस्था के पास भेज देते हैं। अधिकतर मामलों में विभिन्न कार्यालयों में कई चक्कर काटने के बाद उस महिला की संघर्ष करने की इच्छा शक्ति समाप्त हो जाती है और वह लड़ाई बीच में छोड़ देती है। इन उत्पीड़ित महिलाओं को ‘नवजीवन’ देने के लिये सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को एक साथ मिलकर सलाह व मार्गदर्शन देने की व्यवस्था बनानी चाहिए ।
१५ सितम्बर को महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाने के लिये काम करने के संकल्प के साथ महिलाओं का सबसे बड़ा चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन समाप्त हो गया। जद्दोजहद के बाद पेइचिंग घोषणा-पत्र आम राय से पारित हो गया । घोषणा-पत्र की मुख्य बातें इस प्रकार थीं—
सम्मेलन की महासचित गरतूद मोंगेला ने समापन से पहले प्रतिनिधियों से कहा कि असली काम तो अब शुरू हो रहा है । हम यह सुनिश्चित करें कि इस मशाल को मिल-जुलकर आगे बढ़ाते रहेंगे। लाल फूलों से सजे मंच पर सम्मेलन की अधिकारियों ने गले लगाकर एक-दूसरे के विदाई आँसू पोंछे।
सम्मेलन के समापन से पहले १८९ देशों की ५००० प्रतिनिधियों ने उस घोषणा पत्र को आम सहमति से पारित कर दिया जिसे लेकर गर्मागर्म बहस हो रही थी। कुछ देशों ने घोषणा-पत्र के विभिन्न हिस्सों पर औपचारिक आपत्तियाँ दर्ज कीं। घोषणा-पत्र में अमल बाध्यकारी नहीं है मगर यह सरकारों के लिये दिशा-निर्देश का काम करेगा।
सम्मेलन की मुख्य समिति और महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग की अध्यक्ष फिलीपींस की पैर्टिसिया लिक्यानन ने कहा कि प्रजनन, स्वास्थ्य और यौन सम्बन्धों जैसे मुद्दे खूब विवादग्रस्त रहे और इन पर जमकर बहस हुई। महिलाओं को ज्यादा आमदनी दिए जाने को लेकर कट्टरपंथियों के चिन्तित होने के संकेत हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग बहुत तेजी से और काफी बदलाव आने को लेकर चिन्तित हैं ।
विश्व महिला सम्मेलन में परिवार को समाज की आधारभूत इकाई मानते हुए अनुरोध किया गया कि इसे मजबूत बनाया जाना चाहिए। लेकिन कट्टरपन्थियों ने दस्तावेज की उस उपधारा की आलोचना की कि विवाह संस्था के बगैर भी परिवार के विभिन्न रूप सम्भव हैं।
विश्व महिला सम्मेलन समिति की महासचिव मोंगेला ने मतभेदों के बावजूद सम्मेलन की इस बात के लिये सराहना की कि उसने विश्व भर में महिलाओं के जीवन को सुधारने के लिये कठिन लक्ष्य के प्रति दृढ़संकल्प और एकजुटता दिखायी ।
उन्होंने इस सिलसिले में चीन की एक पुरानी कहावत का उल्लेख किया – पेइचिंग हमारी लम्बी यात्रा का पहला पड़ाव है ।
उपसंहार – आज भी विश्व में जितना अधिक शोषण महिलाओं का हो रहा है उतना किसी अन्य का नहीं होता। वैसे तो यह शोषण सामाजिक स्तर पर भी है और सांस्कृतिक स्तर पर भी, लेकिन सर्वाधिक शोषण सामाजिक स्तर पर है। दुर्भाग्य की बात यह है कि महिला ही महिला की सबसे बड़ी शत्रु बनती जा रही है और कम से कम उन देशों में जो विकसित और विकासशील हैं। परम्पराओं के साथ महिला को जितना अधिक जोड़ दिया गया है या महिला उनसे जितनी अधिक जुडी हुई हैं, उसके कारण न केवल उनके अधिकारों का हनन होता है बल्कि यह शोषण का एक जरिया भी बन जाती है। यदि इस समस्या का समाधान खोजना है, तो विश्व को इस बात पर विचार करना ही होगा कि महिलाओं को आर्थिक स्तर पर स्वतन्त्रता कैसे प्राप्त हो । आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना महिलाओं की हैसियत दासियों की सी बनी रहेगी और पुरुष वर्ग उनका शोषण ही करता रहेगा ।
महिलाओं की समस्याओं के लिये एक और वर्ग विशेष रूप से उत्तरदायी है और वह है समाज का रूढ़िवादी नेतृत्व, जो मजहब के नाम पर परम्पराओं की आड़ में महिलाओं को वे तमाम अधिकार प्रदान नहीं करता जो महिलाओं को निश्चित रूप से मिलने ही चाहिए । इस समस्या का उपचार तभी सम्भव होगा जब महिलाएँ अधिक से अधिक शिक्षित हों । भारत जैसे देश में यह सबसे बड़ी समस्या है और यही समस्या इस्लामी देशों में भी देखने को मिलती है। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को जितना महत्व मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पाता है और इसका पूरा लाभ वह वर्ग उठा रहा है, जिसका मूल उद्देश्य महिलाओं को एक ऐसी स्थिति में समेट देना है जिससे कि वह पुरुषों पर आश्रित बनी रहें और तो और अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में भी महिलाओं के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा, दुराचार, शोषण और राजनीतिक असमानता की शिकायतें सुनने को मिलती हैं। जहाँ तक परम्पराओं की बात है, परम्पराओं के स्तर पर स्थिति और भी अधिक गई-गुजरी है। ये परम्पराएँ विश्व के किसी भी देश में महिलाओं की स्थिति को सुधरने ही नहीं देतीं । ये परम्पराएँ कैसे बदलें ? कैसे महिलाओं को एक स्वाभाविक सम्मान प्राप्त हो ? इस पर अब केवल विचार करने से ही काम नहीं चलेगा, बल्कि इस पर निर्णायक रूप से कुछ करना होगा । पर यह तभी सम्भव होगा जब राजनीति में महिलाओं का वर्चस्व हो । जब तक राजनीति में महिलाएँ आगे नहीं आतीं उनका भाग्य पुरुषों के हाथ में रहेगा राजनीति में महिलायें वास्तव में अग्रणी बनेंगी और पुरुषों की बराबरी पर आ जाएँगी यह स्थिति कम से कम दो पीढ़ियों तक तो दिखाई नहीं देती है। इस स्थिति में सुधार तभी सम्भव हो सकेगा जब महिलायें स्वयं इसके लिये कटिबद्ध हो जायेंगी । महिलाओं को ही अपनी स्थिति सुधारने के लिये बहुत कुछ करना होगा। इस सन्दर्भ में पुरुष कोई वास्तविक पहल करेगा इसकी सम्भावना बहुत कम है।
सौभाग्य की बात है कि भारत के पूर्व प्रधान मन्त्री श्री राजीव गाँधी जी ने स्थानीय निकायों के में महिलाओं के लिये भागीदारी सुनिश्चित कर एक ठोस और रच एक कदम उठाया था जिसके अन्तर्गत सारे देश में इस वर्ष स्थानीय निकायों के चुनावों में महिलाओं ने भाग लिया और स्थान ग्रहण कर सक्रिय हो गई हैं। अब महिलायें घर की चार दीवारी से बाहर निकलकर राजनीतिक, सामाजिक तथा स्थानीय समस्याओं के समाधान में अपना योगदान देंगी ।
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