विनिर्माण उद्योग Manufacturing Industry

विनिर्माण उद्योग   Manufacturing Industry

 

कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहा जाता है।
विनिर्माण का महत्त्व
♦ विनिर्माण उद्योग सामान्यतः विकास की तथा विशेषतः आर्थिक विकास की रीढ़ समझे जाते हैं, क्योंकि
♦ विनिर्माण उद्योग न केवल कृषि के आधुनिकीकरण में सहायक हैं, वरन् द्वितीयक व तृतीयक सेवाओं में रोजगार उपलब्ध कराकर कृषि पर हमारी निर्भरता को कम करते हैं।
♦ देश में औद्योगिक विकास बेरोजगारी तथा गरीबी उन्मूलन की एक आवश्यक शर्त है। भारत में सार्वजनिक तथा संयुक्त क्षेत्र में लगे उद्योग, इसी विचार पर आधारित थे। जनजातीय तथा पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना का उद्देश्य भी क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना था।
♦ निर्मित वस्तुओं का निर्यात वाणिज्य व्यापार को बढ़ाता है। जिससे अपेक्षित विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
♦ वे देश ही विकसित हैं जो कच्चे माल को विभिन्न तथा अधिक मूल्यवान तैयार माल में विनिर्मित करते हैं। भार विविध व शीघ्र औद्योगिक विकास में निहित हैं। का विकास
♦ कृषि तथा उद्योग एक-दूसरे से पृथक नहीं है ये एक-दूसरे के पूरक हैं। उदाहरणार्थ, भारत में कृषि पर आधारित उद्योगों ने कृषि पैदावार बढोत्तरी को प्रोत्साहित किया है। ये उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर हैं तथा इनके द्वारा निर्मित उत्पाद—जैसे सिंचाई के लिए पम्प, उर्वरक, कीटनाशक दवाएँ, प्लास्टिक पाइप, मशीनें व कृषि औजार आदि पर किसान निर्भर हैं। इसलिए विनिर्माण उद्योग के विकास तथा स्पर्द्धा से न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिला है, अपितु उत्पादन प्रक्रिया भी सक्षम हुई है।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान
♦ पिछले दो दशकों से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योग का योगदान 27% में से 17% ही है क्योंकि 10% भाग खनिज खनन, गैस तथा विद्युत ऊर्जा का योगदान है।
♦ भारत की अपेक्षा अन्य पूर्वी एशियाई देशों में विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35% हैं।
♦ पिछले एक दशक से भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7% प्रति वर्ष की दर से बढ़ोत्तरी हुई है। बढ़ोत्तरी की यह दर अगले दशक में 12% अपेक्षित हैं।
♦ वर्ष 2003 से विनिर्माण क्षेत्र का विकास 9 से 10% प्रति वर्ष की दर से हुआ है।
♦ उपयुक्त सरकारी नीतियों तथा औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोत्तरी के नये प्रयासों से अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि विनिर्माण उद्योग अगले एक दशक में अपना लक्ष्य पूरा कर सकता है। इस उद्देश्य से राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा परिषद् (National Manufacturing Competitiveness Council) की स्थापना की गई है।
औद्योगिक अवस्थिति
♦ उद्योगों की स्थापना स्वभावतः जटिल है। इनकी स्थापना कच्चे माल की उपलब्धता, श्रमिक, पूँजी, शक्ति के साधन तथा बाजार आदि की उपलब्धता से प्रभावित होती है। इन सभी कारकों का एक स्थान पर पाया जाना लगभग असम्भव है। फलस्वरूप विनिर्माण उद्योग की स्थापना के लिए वही स्थान उपयुक्त है जहाँ ये कारक उपलब्ध हों अथवा जहाँ इन्हें कम कीमत पर उपलब्ध कराया जा सकता है।
♦ औद्योगीकरण तथा नगरीकरण साथ-साथ चलते हैं। नगर उद्योगों को बाजार तथा सेवाएँ जैसे—बैंकिंग, बीमा, परिवहन, श्रमिक तथा वित्तीय सलाह आदि उपलब्ध कराते हैं। नगर केन्द्रों द्वारा दी गई सुविधाओं से लाभान्वित, कई बार बहुत से उद्योग नगरों के आस-पास ही केन्द्रित हो जाते हैं जिसे ‘समूहन बचत’ (Agglomeration economies) कहा जाता है। ऐसे स्थानों पर धीरे-धीरे बड़ा औद्योगिक समूहन स्थापित हो जाता है।
♦ किसी उद्योग की अवस्थिति का निर्धारण उसकी न्यूनतम उत्पादन लागत से निर्धारित होता है। सरकारी नीतियों तथा निपुण श्रमिकों की उपलब्धता भी उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करती है।
उद्योगों का वर्गीकरण
♦ विशेष मापदण्डों के आधार पर विभिन्न उद्योगों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है
प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर
कृषि आधारित सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशमवस्त्र, रबर, चीनी, चाय, कॉफी तथा वनस्पति तेल उद्योग।
खनिज आधारित लोहा तथा इस्पात, सीमेन्ट एल्युमीनियम, मशीन, औजार तथा पेट्रोरसायन उद्योग ।
प्रमुख भूमिका के आधार पर
आधारभूत उद्योग जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर हैं जैसे- लोहा इस्पात, ताँबा, प्रगलन व एल्युमीनियम प्रगलन उद्योग ।
उपभोक्ता उद्योग जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं जैसे—चीनी, दन्त मंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।
पूँजी निवेश के आधार पर
लघु उद्योग एक लघु उद्योग को परिसम्पत्ति की एक इकाई पर अधिकतम निवेश मूल्य के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया जाता है। यह निवेश सीमा, समय के साथ परिवर्तित होती रहती है।
वृहत् उद्योग अगर किसी उद्योग में निवेश एक करोड़ रुपये से अधिक है तो उसे वृहत् उद्योग कहा जाएगा।
स्वामित्व के आधार पर
सार्वजनिक क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र में लगे, सरकारी एजेन्सियों द्वारा प्रतिबन्धित तथा सरकार द्वारा संचालित उद्योग जैसे- भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड आदि।
निजी क्षेत्र निजी क्षेत्र के उद्योग जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है। टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि।
संयुक्त उद्योग वैसे उद्योग जो राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं। जैसे— ऑयल इण्डिया लिमिटेड।
सहकारी उद्योग जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने 8 वाले उत्पादकों, श्रमिकों या दोनों के हाथों में होता है। संसाधनों का कोष संयुक्त होता है तथा लाभ-हानि का विभाजन भी अनुपातिक होता है जैसे- महाराष्ट्र के चीनी उद्योग, केरल के नारियल पर आधारित उद्योग।
कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर
♦ भारी उद्योग जैसे लोहा तथा इस्पात आदि।
♦ हल्के उद्योग जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं जैसे- विद्युतीकरण उद्योग।
कृषि आधारित उद्योग वस्त्र उद्योग
♦ भारतीय अर्थव्यवस्था में वस्त्र उद्योग का अपना अलग महत्त्व है क्योंकि इसका औद्योगिक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण (14%) योगदान है। यह लगभग 350 लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाकर कृषि के पश्चात् दूसरा बड़ा उद्योग है तथा लगभग 24.6% विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।
♦ सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भागीदारी लगभग 4% है।
♦ देश का यह अकेला उद्योग है जो कच्चे माल में उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण तथा आत्मनिर्भर है।
सूती वस्त्र उद्योग
♦ आज देश में लगभग 1600 सूती तथा कृत्रिम रेशे की कपड़ा मिलें हैं। इनमें से 80% निजी क्षेत्र में तथा शेष सार्वजनिक व सहकारी क्षेत्र में हैं। इनके अन्तर्गत कई हजार छोटी इकाइयाँ हैं जिनमें 4 से 10 हथकरघे हैं।
♦ इस उद्योग का कृषि से निकट का सम्बन्ध है और कृषकों, कपास चुनने वालों, गाँठ बनाने वालों, कताई करने वालों, रंगाई करने वालों, डिजाइन बनाने वालों, पैकेट बनाने वालों और सिलाई करने वालों को यह जीविका प्रदान करता है।
♦ भारत जापान को सूत का निर्यात करता है। भारत में बने सूती वस्त्र के अन्य आयातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, फ्रांस, पूर्वी यूरोपीय देश, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका तथा अफ्रीका के देश हैं।
♦ सूती रेशे के विश्व व्यापार में हमारे देश की भागीदारी काफी महत्त्वपूर्ण है। यह कुल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग है। लेकिन तैयार वस्त्र के कुल व्यापार में यह हिस्सा केवल 4% ही है।
पटसन उद्योग
♦ भारत पटसन व पटसन निर्मित सामान का सबसे बड़ा उत्पाद है तथा बांग्लादेश के पश्चात् दूसरा बड़ा निर्यातक भी है।
♦ भारत में लगभग 70 पटसन उद्योग हैं। इनमें अधिकांश पश्चिम बंग में हुगली नदी तट पर 98 किमी लम्बी तथा 3 किमी चौड़ी एक संकरी मेखला में स्थित है।
♦ पहला पटसन उद्योग कोलकाता के निकट रिशरा में सन् 1859 में लगाया गया। सन् 1947 में देश के विभाजन के पश्चात् पटसन मिलें तो भारत में रह गई लेकिन तीन-चौथाई जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान अर्थात् बांग्लादेश में चले गए।
♦ पटसन उद्योग प्रत्यक्ष रूप से 2.61 लाख श्रमिकों को और जूट व मेस्टा की खेती करने वाले अन्य 40 लाख छोटे व सीमान्त कृषकों को रोजगार मुहैया कराता है। इस उद्योग से अन्य अनेक लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।
♦ इस उद्योग की चुनौतियों में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कृत्रिम वस्त्रों से और बांग्लादेश, ब्राजील फिलीपीन्स, मिस्र तथा थाइलैण्ड जैसे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा शामिल है।
♦ वर्ष 2005 में राष्ट्रीय पटसन नीति अपनाई गई। जिसका मुख्य उद्देश्य पटसन का उत्पादन बढ़ाना, गुणवत्ता में सुधार, पटसन उत्पादक किसानों को अच्छा मूल्य दिलाना तथा प्रति हैक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाना था।
♦ पटसन के प्रमुख खरीददार अमेरिका, कनाडा, रूस, अरब देश, इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया हैं।
चीनी उद्योग
♦ भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है लेकिन गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है।
♦ इस उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल भारी होता है तथा ढुलाई में इसके सूक्रोस की मात्रा घट जाती है।
♦ देश में 460 से अधिक चीनी मिलें हैं, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश राज्यों में फैली हैं। चीनी मिलों का 60% उत्तर प्रदेश तथा बिहार में है।
♦ पिछले कुछ वर्षों से इन मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर महाराष्ट्र में बढ़ी है।
खनिज आधारित उद्योग
लोहा तथा इस्पात उद्योग
♦ लोहा तथा इस्पात उद्योग एक आधारभूत (Basic) उद्योग हैं क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्यम उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर हैं।
♦ विविध प्रकार के इन्जीनियरिंग सामान, निर्माण सामग्री, रक्षा, चिकित्सा, टेलीफोन वैज्ञानिक उपकरण और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है।
♦ इस्पात के उत्पादन तथा खपत को प्राय: एक देश के विकास का पैमाना माना जाता है।
♦ इस उद्योग के लिए लौह-अयस्क, कोकिंग कोल तथा चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4:2:1 का है। इस्पात को कठोर बनाने के लिए इसमें मैंगनीज की कुछ मात्रा की भी आवश्यकता होती है।
एल्युमीनियम प्रगलन
♦ भारत में एल्युमीनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है।
♦ यह हल्का, जंग अवरोधी, ऊष्मा का सुचालक, लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है।
♦ हवाई जहाज बनाने में, बर्तन तथा तार बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है।
♦ देश में 8 एल्युमीनियम प्रगलन संयन्त्र हैं जो ओडिशा (नालको व बालको), पश्चिम बंग, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।
रसायन उद्योग
♦ भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हो रहा तथा फैल रहा है।
♦ इसकी भागीदारी सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3% है।
♦ यह उद्योग एशिया का तीसरा बड़ा तथा विश्व में आकार की दृष्टि से 12वें स्थान पर हैं। इसमें लघु तथा वृहत् दोनों प्रकार की विनिर्माण इकाइयाँ सम्मिलित हैं।
♦ हाल के वर्षों में अकार्बनिक और कार्बनिक दोनों रसायन क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है।
♦ अकार्बनिक रसायनों में सेल्यूरिक अम्ल (उर्वरक, कृत्रिम वस्त्र, प्लास्टिक, गोंद, रंग-रोगन, डाई आदि के निर्माण में प्रयुक्त), नाइट्रिक अम्ल, क्षार, सोड़ा ऐश, काँच, साबुन, शोधक या अपमार्जक, कागज, में प्रयुक्त होने वाले रसायन तथा कॉस्टिक सोडा आदि शामिल हैं।
♦ कार्बनिक रसायनों में पेट्रोरसायन शामिल हैं जो कृत्रिम वस्त्र, कृत्रिम रबर, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाइयाँ औषध रसायनों के बनाने में प्रयोग किए जाते हैं। ये उद्योग तेल शोधन शालाओं या पेट्रोरसायन संयन्त्रों के समीप स्थापित हैं।
उर्वरक उद्योग
♦ उर्वकर उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक (मुख्यत: यूरिया), फॉस्फेटिक उर्वरक (DAP) तथा अमोनियम फॉस्फेट और मिश्रित उर्वरक जिसमें तीन मुख्य पोषक उर्वरक – नाइट्रोजन, फॉस्फेट व पोटाश शामिल हैं, के उत्पादन क्षेत्रों के इर्द-गिर्द केन्द्रित हैं। तीसरा अर्थात् पोटाश पूर्णत: आयात किया जाता है क्योंकि हमारे देश में वाणिज्यिक रूप से या किसी रूप में प्रयुक्त होने वाला पोटाश या पोटैशियम यौगिकों के भण्डार नहीं हैं।
♦ भारत नाइट्रोजनी उर्वरकों का तीसरा बड़ा उत्पादक है। यहाँ 57 उर्वरक इकाइयाँ हैं जो नाइट्रोजन तथा मिश्रित नाइट्रोजनी उर्वरक निर्मित करती हैं। 29 इकाइयाँ यूरिया उत्पादन तथा 9 इकाइयाँ उप-उत्पाद (By product) के रूप में अमोनियम सल्फेट का उत्पादन करती हैं तथा 68 अन्य लघु इकाइयाँ मात्र सुपरफॉस्फेट का उत्पादन करती हैं।
सीमेन्ट उद्योग
♦ निर्माण कार्यों जैसे – घर, कारखाने, पुल, सड़कें, हवाई पट्टी, बाँध तथा अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण में सीमेन्ट आवश्यक है।
♦ इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चेमाल जैसे— चूना पत्थर, सिलिका, ऐलुमिना, और जिप्सम की आवश्यकता होती है। रेल परिवहन के अतिरिक्त इसमें कोयला तथा विद्युत ऊर्जा भी आवश्यक है।
♦ यह उद्योग उत्पादन तथा निर्यात दोनों ही रूपों में प्रगति पर है ।
♦ राजस्थान में सीमेन्ट उद्योग अत्यधिक प्रगति पर है।
♦ पहला सीमेन्ट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में लगाया गया था। स्वतन्त्रता के पश्चात् इस उद्योग का प्रसार हुआ। सन् 1989 से मूल्य व वितरण में नियन्त्रण समाप्ति तथा अन्य नीतिगत सुधारों से सीमेन्ट उद्योग ने क्षमता, प्रक्रिया व प्रौद्योगिकी व उत्पादन में अत्यधिक तरक्की की है। अब देश में 128 बड़े संयन्त्र तथा 332 छोटे सीमेन्ट संयन्त्र हैं। भारत में विविध प्रकार के सीमेन्टों का उत्पादन किया जाता है।
मोटर गाड़ी उद्योग
♦ भारत में पिछले 15 से भी कम वर्षों में इस उद्योग ने अभूतपूर्व उन्नति की है।
♦ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ नई प्रौद्योगिकी के उपयोग से यह उद्योग विश्वस्तरीय विकास के स्तर पर आ गया है।
♦ यह उद्योग दिल्ली, गुड़गाँव, मुम्बई, पुणे, चेन्नई कोलकाता, लखनऊ, इन्दौर, हैदराबाद, जमशेदपुर तथा बंगलुरु के आस-पास स्थित हैं।
सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
♦ बंगलुरु भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरा है। इसके अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक केन्द्र मुम्बई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता तथा लखनऊ हैं। इसके अतिरिक्त 18 सॉफ्टेयर प्रौद्योगिकी पार्क (Software technology parks), जो सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विण्डो सेवा तथा उच्च आँकडें संचार (High data communication) सुविधा प्रदान करते हैं।
♦ इस समय, सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग मे लगे व्यक्तियों की संख्या 80 लाख से अधिक है।
♦ भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने का कारण हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर का निरन्तर विकास है।
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