विनाशकारी भूकम्प – १९९९

विनाशकारी भूकम्प – १९९९

          प्रकृति, मानव-संसार को जहाँ बहुत कुछ देती है वहाँ कभी-कभी बहुत कुछ ले भी लेती है। जहाँ वह जीवन देती है वहाँ मृत्यु भी देती है। मनुष्य के लिये जहाँ वह साधन और सुविधायें प्रदान करती हैं वहाँ वह कष्ट और कठोरता भी प्रदर्शित करती है। जहाँ वह विकास में अपना पूर्ण सहयोग देती है वहाँ कभी-कभी विनाश में भी कोई कमी नहीं उठाए रखती । उत्थान और पतन उत्कर्ष और अपकर्ष, विकास और विनाश ये ही सृष्टि के शाश्वत नियम हैं। कभी अतिवृष्टि होना और कभी अनावृष्टि होना, कभी भूकम्प आना और कभी महामारी फैलना, कभी-कभी टिड्डियों का दल पूरे खेतों को साफ कर जाता है और देश दुर्भिक्ष-पीड़ित हो जाता है, ये सब दैवी आपदायें कहलाती हैं। विद्वानों ने संस्कृत ग्रन्थों में इनको ‘ईति’ कहा है ये अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि भेदों से छ: प्रकार की होती हैं। तात्पर्य यह है कि जिसे देने का अधिकार है उसे लेने का भी अधिकार है अन्तर इतना ही है कि लेते समय हमें हर्ष का अनुभव होता है और देते समय विषाद की गहन अनुभूति होती है।
          २० अक्टूबर, १९९१ की उस काल रात्रि का वह अन्तिम प्रहार, जबकि उत्तर भारत का जन-मानस प्रगाढ़ निद्रा में डूबा हुआ था, इतिहास के पृष्ठों में कभी नहीं भुलाया जा सकता । जो सो रहे उनको सोते-सोते ही मृत्यु ने अपनी शरण में ले लिया । भवनों, प्रासादों और छोटे-छोटे घरों और दीवालों ने उन पर गिर कर अन्तिम वस्त्र का कार्य किया। प्रतीत होता था कि इनकी मृत्यु पर कोई रोने वाला न होने के कारण घरों की दीवालें और छतें शवों  की छाती पर अपना मस्तक रखकर अनन्त विलाप में विलीन हो रही हों । गढ़वाल मण्डल के उत्तरकाशी और चमोली जिलों में असीमित विनाश था, हजारों घर ऐसे थे जिनमें कोई बचा ही नहीं । जो थोड़े बहुत बचे भी थे वे भयानक चीत्कार कर रहे थे ।
          विनाशकारी भूकम्प से पहाड़ गिरने लगे, सैंकड़ों स्थानों पर भूस्खलन हुआ। उत्तरकाशी और भटवाड़ी के बीच भागीरथी नदी पर बने पुल ढह गये । भारी भूस्खलन से भागीरथी का बहाव रुक गया, उत्तरकाशी में बाढ़ की गम्भीर समस्या पैदा हो गई। गंगोत्री और केदारनाथ का मार्ग अवरुद्ध हो गया। रुद्रप्रयाग में यात्रियों के आवास धराशायी हो गये, कितने यात्री मृत्यु के मुख में चले गये कुछ का पता नहीं । मनेरी भाला विद्युत गृह को अपूरणीय क्षति पहुँची। रिक्टर पैमाने पर ६.१ माप की तीव्रता वाले इस भीषण भूकम्प में हजारों मकान, सड़कें, पुल व संचार व्यवस्था ध्वस्त हो गई। इस पर्वतीय क्षेत्र का सम्पर्क सूत्र भी टूट गया । चमोली जिले में पहाड़ गिरने और भूस्खलन से केदारनाथ और बद्रीनाथ क्षेत्रों में भारी तबाही मच गई। भूकम्प के तेज झटके पूरे गढ़वाल और कुमायूँ मण्डल में महसूस किये गये । देहरादून, मसूरी, ऋषीकेश, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल, टिहरी, श्रीनगर आदि सभी पर्वतीय क्षेत्रों में भूकम्प के तेज झटकों ने पलंग, खिड़कियाँ, आलमारियाँ और घर में रक्खे अन्य सामान पृथ्वी पर लुढ़का दिये । बर्तन आपस में बज उठे गृहस्वामी और महिलायें, और बाल वृद्ध घर छोड़-छोड़कर मैदानों में भाग उठे । संसार में अपने प्राणों से प्यारी कोई दूसरी वस्तु नहीं होती —
“प्राणेभ्योऽप्यधिकं समस्त जगतां नास्त्येव किंचित् प्रियं”
          बी० बी० सी० लन्दन ने विश्व में तुरन्त सूचना प्रसारित कर दी कि “भूकम्प में मरने वालों की संख्या तीन हजार से ऊपर पहुँच चुकी है एवं लगभग दस हजार लोग घायल हुए हैं ।” भूकम्प से प्रभावित पाँच सौ गाँवों में साढ़े सात हजार मकान धराशायी हो गये । हजारों लोग जो बच गये थे बेघर हो गये, जो महिलायें बच गईं थीं, अनाथ हो गईं जो पुरुष बच गये थे वे भी अनाथ हो गये और जहाँ केवल बच्चे ही बचे थे भ्रातृ-विहीन, पितृ-विहीन और मातृ-विहीन हो गये थे। चीत्कार और विलाप का दृश्य देखे नहीं बनता था । बचे-खुचे लोगों ने अपने-अपने बिस्तर सड़कों पर लगा लिये थे ।
          २० अक्टूबर, १९९९ की रात के अन्तिम प्रहर में आये भूकम्प के विषय में वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में जो भूकम्प आया उससे निकली ऊर्जा जापान के हिरोशिमा पर गिराये गये तीस अणु बमों से निकलने वाली ऊर्जा के समान थी | ४५ सैकिण्ड तक आये इस भूकम्प की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर ६.१ थी जो कि ३३० किलो टन पर परमाणु विस्फोट के बराबर थी। विशेषज्ञों के अनुसार भूकम्प का मुख्य बिन्दु अल्मोड़ा से कोई बीस किलोमीटर नीचे पृथ्वी की गहराई में था । यह स्थान भारतीय प्लेट और तिब्बत प्लेट से लगाने वाले मुख्य सीमा फाल्ट पर है। मुख्य भूकम्प विशेषज्ञ डा० एस० एस० चटर्जी ने बताया कि बीस किलोमोटर गहराई वाले बिन्दु से उसे सतही भूकम्प माना जा सकता है। ऐसे भूकम्प से व्यापक नुकसान होता. है जबकि कम गहराई वाले बिन्दु से अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है।
          विनाशलीला की भयानकता के देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने युद्ध स्तर पर बचाव एवं राहत कार्य प्रारम्भ किया था । फँसे हुए लोगों का पता लगाने व राहत दलों को मौके पर पहुँचने के लिये निरन्तर उड़ान भर रहे वायु सेना तथा प्रदेश सरकार के हैलीकोप्टरों के चालकों ने भारत-तिब्बत सीमा के निकट दूरदराज के इलाकों में विदेशी पर्यटकों समेत सैंकड़ों लोगों को वहाँ फँसे हुए देखा । विमान चालकों के अनुसार बद्रीनाथ, केदारनाथ व चमोली के ऊपरी इलाकों में कई हजार लोग फँसे हुए हैं। भूकम्प से भूस्खलन के कारण भागीरथी के रुके हुए प्रवाह को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने विस्फोट करके उसे पुनः खोल दिया।
          भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों के मौके पर अध्ययन के लिए २१ अक्टूबर को पहुँचकर प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री कल्याणसिंह ने अधिकारियों को युद्धस्तर पर राहत कार्य शुरू करने के आदेश दिये। मुख्यमन्त्री कल्याणसिंह ने प्राकृतिक आपत्तियों पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि ‘भूकम्प पीड़ितों के लिए चिकित्सा एवं पुनर्वास के कार्य में धन की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा । भूकम्प विनाश की घड़ी में हमारा सबसे पहिले कार्य पीड़ितों को रोटी, चिकित्सा व कपड़ा आदि आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराना है, उन्होंने कहा किसी को भी दवा व भोजन के अभाव में मरने नहीं दिया जायेगा।”
          सरकारी सूत्रों ने विनाशकारी भूकम्प से १७५ करोड़ रुपये की क्षति का अनुमान लगाया था।
“जाको राखे साइयाँ, मार सके ना कोय “
          यह कहावत उस समय चरितार्थ हुई जब भारतीय स्टेट बैंक उत्तरकाशी का दुमंजिला भवन पूरी तरह, गिर गया और उसकी दूसरी मंजिल पर सो रहे शाखा प्रबन्धक बी० नटराजन की पत्नी और पुत्री भी इसमें दब गये । छः घण्टों के बाद उन्हें मलवे से जिन्दा निकाल लिया गया था। माँ को मामूली ही चोटें आई थीं। इसको ईश्वरीय चमत्कार ही कहा जा सकता है।
          विनाशकारी भूकम्प से टिहरी बाँध की बुनियाद भी धंस गई और पहाड़ियों में दरारें पड़ गईं। बाँध का मलवा रुक-रुक कर गिरता रहा । सेना और अर्द्धसैनिक बलों द्वारा युद्ध स्तर पर सहायता कार्य में बहुत कुछ सम्भाला गया । सेना के हवाई जहाजों तथा हेलीकोप्टरों के अतिरिक्त खच्चरों से चिकित्सा एवं खाद्य सामग्री पहुँचाई गई । डाक्टरों के पचासों दल प्रदेश सरकार ने पीड़ितों के उपचार के लिए भेजे । उत्तरकाशी के हरि गाँव में केवल ५ लोग ही जीवित बचे थे जबकि उस गाँव की जनसंख्या २५० थी ।
          २३ अक्टूबर को प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव उत्तर काशी पहुँचे। उन्होंने भूकम्प से प्रभावित कुछ हिस्सों का दौरा किया तथा अस्पतालों में घायलों से भेंट कर उनके दुःख-दर्द दूर करने का आश्वासन दिया। उन्होंने इस क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण भी किया। प्रलयकारी भूकम्प की विभीषिका से प्रभावित लोगों को तत्काल सहायता देने के लिये प्रधानमन्त्री श्री राव ने प्रधानमन्त्री राहत कोष से मुख्यमन्त्री श्री कल्याणसिंह को ८० लाख रुपये दिये । प्रधानमन्त्री ने कहा कि केन्द्र सरकार राहत कार्यों में राज्य सरकार को भरपूर सहायता देगी।
          प्रधानमन्त्री ने केन्द्र सरकार द्वारा उ० प्र० को ७० करोड़ रुपये की तात्कालिक मदद की घोषणा की। उधर थल सेना की एक फील्ड रेजीमेंट भूकम्प पीड़ित क्षेत्रों में २०० वाहनों में दवा, में टेंट और राहत सामग्रियाँ लेकर भेज दी गईं । मलवे में दबे शव निरन्तर मिलते रहे और सैनिक उन्हें निकाल-निकाल कर गंगोत्री में बहाते रहे । उत्तर काशी से १२ किलोमीटर दूर मानपुर- जिन्दा और किशनपुर गाँवों में इस भूकम्प ने जो तबाही मचाई वह रोंगटे खड़े करने वाली थी। पूरे उत्तर काशी में लाशों के सड़ने से वातावरण दूषित हो उठा था ।
          अच्छे और बुरे समय हर देश, हर समाज, और हर व्यक्ति पर आते हैं और चले जाते हैं सुखद या दु:खद स्मृतियाँ ही मानव हृदय में या इतिहास के पृष्ठों पर शेष रह जाती हैं। गढ़वाल प्रखण्ड में और विशेष रूप से उत्तरकाशी और चमोली जिलों में भूकम्प के कारण सैकड़ों व्यक्तियों की जो मौतें और धन-जन की जो भारी हानि हुई वह राष्ट्रीय शोक का विषय होने के साथ-साथ चिन्ता का विषय भी है। भारत में विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा, भूकम्प कम आते हैं अतः यहाँ के निवासियों की मानसिकता भूकम्प के सन्दर्भ में बहुत ही अविकसित है। देश के नागरिकों को भूकम्पों के मामले में सावधानी बरतने की मानसिकता आदि विकसित होती तो कम से कम निर्माण के समय इस बात पर अवश्य ध्यान दिया जाता कि वे भूकम्प के झटके सह सकें । विश्व के जो भी देश भूकम्प से प्रभावित होते हैं वहाँ भवन निर्माण की प्राविधिकी भारतीय निर्माण की प्राविधिकी बहुत भिन्न है। गढ़वाल क्षेत्र में भूकम्प से जो भारी क्षति हुई उसका कारण यही है कि ये मकान भूकम्प के झटकों को सहने की दृष्टि से बनाये ही नहीं गये । चिन्ता की बात है कि भारत का दो-तिहाई भाग विश्व की उस पट्टी में आता है जिसे भूकम्प प्रभावित माना जाता है फिर भी देश की जनता को भूकम्पों के सन्दर्भ में कोई जानकारी नहीं दी जाती । दिल्ली की बहुमंजली इमारतों की, यदि कभी भूकम्प आया तो क्या दशा होगी ? सरकार को सोचना चाहिये ।
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