विद्युत Electricity
विद्युत Electricity
विद्युत धारा और परिपथ
• किसी विद्युत धारा के सतत् तथा बन्द पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं। अब, यदि परिपथ कहीं से टूट जाए (अथवा टॉर्च के स्विच को ‘ऑफ’ कर दें) तो विद्युत धारा का प्रवाह समाप्त हो जाता है तथा बल्ब दीप्ति नहीं करता।
• विद्युत धारा को एकांक समय में किसी विशेष क्षेत्र से प्रवाहित आवेश के परिमाण द्वारा व्यक्त किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं।
• उन परिपथों में जिनमें धातु के तार उपयोग होते हैं, आवेशों के प्रवाह की रचना इलेक्ट्रॉन करते हैं। तथापि, जिस समय विद्युत की परिघटना का सर्वप्रथम प्रेक्षण किया गया था, इलेक्ट्रॉनों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अतः विद्युत धारा को धनावेशों का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा को ही विद्युत धारा की दिशा माना गया। परिपाटी के अनुसार किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉन जो ऋणावेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।
• यदि किसी चालक की किसी भी अनुप्रस्थ काट से समय t में नेट आवेश Q प्रवाहित होता है तब उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित विद्युत धारा I को इस प्रकार व्यक्त करते हैं I I=Q/t
• विद्युत आवेश का SI मात्रक कूलॉम (C) है, जो लगभग 6 × 10‾18इलेक्ट्रॉनो में उपस्थित कुल आवेश के तुल्य होता है।
• एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6 x 10‾19 कूलॉम का आवेश होता है। विद्युत धारा को एक मात्रक जिसे एम्पियर (A) कहते हैं, में व्यक्त किया जाता है, इस मात्रक का नाम आन्द्रे-मेरी एम्पियर नाम के फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है।
• एक एम्पियर विद्युत धारा की रचना प्रति सेकण्ड एक कूलॉम आवेश के प्रवाह से होती है, अर्थात् 1 एम्पियर = 1 कूलॉम / 1 सेकण्ड अल्प परिमाण की विद्युत धारा को मिली एम्पियर (1 mA= 10‾³ A) अथवा माइक्रोएम्पियर (1μA = 10‾6 A) में व्यक्त करते हैं।
• परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग करते हैं उसे अमीटर कहते हैं। इसे सदेव जिस परिपथ में विद्युत धारा मापनी होती है, उसके श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं।
विद्युत विभव और विभवान्तर
• किसी चालक तार में आवेशों के प्रवाह के लिए, वास्तव में, गुरुत्व बल की कोई भूमिका नहीं होती; इलेक्ट्रॉन केवल तभी गति करते हैं जब चालक के अनुदिश विद्युत दाब में कोई अन्तर होता है. जिसे विभवान्तर कहते हैं। विभव में यह अन्तर एक या अधिक विद्युत सेलों से बनी बैटरी द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है।
• किसी सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल के टर्मिनलों के बीच विभवान्तर उत्पन्न कर देती है, ऐसा उस समय भी होता है जब सेल से कोई विद्युत धारा नहीं ली जाती। जब सेल को किसी चालक परिपथ अवयव से संयोजित करते हैं तो विभवान्तर उस चालक के आवेशों में गति ला देता है और विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है। किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बनाए रखने के लिए सेल अपनी संचित रासायानेक ऊर्जा खर्च करता है।
• किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विद्युत विभवान्तर को हम उस कार्य द्वारा परिभाषित करते हैं तो एकांक आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक लाने में किया जाता है।
• दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर
• विद्युत विभवान्तर का SI मात्रक वोल्ट (V) है जिसे इटली के भौतिक विज्ञानी अलेसान्द्रो वोल्ट के नाम पर रखा गया है।
• यदि किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिन्दुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को एक बिन्दु से दूसरे विन्दु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता है तो उन दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर । वोल्ट होता है। अतः
• विभवान्तर की माप एक यन्त्र द्वारा की जाती है जिसे वोल्टमीटर कहते हैं। वोल्टमीटर को सदैव उन बिन्दुओं से पार्श्वक्रम में संयोजित करते हैं जिनके बीच विभवान्तर मापना होता है।
विद्युत परिपथ आरेख
• कोई विद्युत परिपथ एक सेल (अथवा एक बैटरी), एक प्लग कुँजी, विद्युत अवयव (अथवा अवयवों) तथा संयोजी तारों से मिलकर बनता है। है। विद्युत परिपथों का प्रायः ऐसा व्यवस्था आरेख खींचना सुविधाजनक होता है जिसमें परिपथ के विभिन्न अवयवों को सुविधाजनक प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है।
ओम का नियम
• सन् 1827 में जर्मन भौतिकविज्ञानी जॉर्ज साईमन ओम ने, किसी धातु के तार में प्रवाहित विद्युत धारा (1) तथा उसके सिरों के बीच विभवान्तर (V) में परस्पर सम्बन्ध का पता लगाया। उन्होंने यह कहा, “किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस तार के सिरों के बीच विभवान्तर के अनुक्रमानुपाती होती है, परन्तु तार का ताप समान रहना चाहिए।” इसे ओम का नियम कहते हैं। दूसरे शब्दों में V x ∝ I
अथवा V / I = नियतांक = R अथवा V = IR
• उपरोक्त समीकरण में किसी दिए गए धातु के लिए, दिए गए ताप पर, R एक नियतांक है जिसे तार का प्रतिरोध कहते हैं। किसी चालक का यह गुण है कि वह अपने में प्रवाहित होने वाले आवेश के प्रवाह का विरोध करता हैं। प्रतिरोध का SI मात्रक ओम है, इसे ग्रीक भाषा के शब्द से निरूपित करते हैं। ओम के नियम के अनुसार R= V / I अथवा, I = V/R
• यदि किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट है तथा इसे 1 एम्पियर विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब उस चालक का प्रतिरोध R, 1 ओम होता है।
1 ओम =1 वोल्ट / 1 ऐम्पियर
•I = V/R के आधार पर कहा जा सकता है कि किसी प्रतिरोधक से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उसके प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
• यदि प्रतिरोध दोगुना हो जाए तो विद्युत धारा आधी रह जाती है। व्यवहार में कई बार विद्युत परिपथ में विद्युत धारा को घटाना अथवा बढ़ाना आवश्यक हो जाता है। स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियन्त्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं। किसी विद्युत परिपथ में परिपथ के प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए प्रायः एक युक्ति का उपयोग करते हैं जिसे धारा नियन्त्रक कहते हैं।
• किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई पर सीधे तथा उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर प्रतिलोमतः निर्भर करता है और उस पदार्थ की प्रकृति पर भी निर्भर करता है जिससे वह बना है।
प्रतिरोधकों के निकाय का प्रतिरोध
• प्रतिरोधकों को परस्पर संयोजित करने की दो विधियाँ हैं— श्रेणिक्रम संयोजन एवं पार्श्वक्रम (या समान्तर) संयोजन। ऐसा विद्युत परिपथ जिसमें प्रतिरोधों के प्रतिरोधकों को एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा जाता है, उस संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहा जाता है।
• प्रतिरोधकों का ऐसा संयोजन जिसमें प्रतिरोधक समान्तर रूप से संयोजित होते हैं, उसे पार्श्वक्रम संयोजन कहा जाता है।
• श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधक जब कई प्रतिरोधकों को श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं तो परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा का तुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। यदि श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोध क्रमश: R, R, R3 इत्यादि हो तथा इसके समतुल्य प्रतिरोध R हो, तो
R=R1+R2+R3+……..
• पाश्र्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक जब कई प्रतिरोधक समान्तर से संयोजित हों तो उनके समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम सभी प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है। अर्थात्
विद्युत धारा का तापीय प्रभाव
• बैटरी अथवा सेल विद्युत ऊर्जा के स्रोत हैं। सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल के दो टर्मिनलों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करती है, जो बैटरी से संयोजित किसी प्रतिरोधक अथवा प्रतिरोधकों के किसी निकाय में विद्युत धारा प्रवाहित करने के लिए इलेक्ट्रॉनों में गति स्थापित करता है।
• विद्युत धारा बनाए रखने में खर्च हुई स्रोत की ऊर्जा का कुछ भाग उपयोगी कार्य करने (जैसे पंखे की पँखुड़ियों को घुमाया) में उपयोग हो जाता है। स्रोत की ऊर्जा का शेष भाग उसे ऊष्मा को उत्पन्न करने में खर्च होता है। जो साधित्रों के ताप में वृद्धि करती है। इसका प्रेक्षण प्राय: हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं। उदाहरण के लिए, हम किसी विद्युत पंखे को निरन्तर काफी समय तक चलाते हैं तो वह गर्म हो जाता है। इसके विपरीत यदि विद्युत परिपथ विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है, अर्थात् बैटरी से केवल प्रतिरोधकों को एक समूह ही संयोजित है तो स्रोत की ऊर्जा निरन्तर पूर्ण रूप से ऊष्मा के रूप में क्षयित होती रहती है। इसे विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं।
• इस प्रभाव का उपयोग विद्युत हीटर, विद्युत इस्तरी जैसी युक्तियों में किया जाता है।
विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के व्यावहारिक अनुप्रयोग
• किसी चालक में ऊष्मा उपन्न होना विद्युत धारा का अवश्यंभावी परिणाम है। बहुत सी स्थितियों में यह अवांछनीय होता है क्योंकि वह उपयोगी विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा में रूपान्तरित कर देता है। विद्युत परिपथों में अपरिहार्य तापन, परिपथ के अवयवों के ताप में वृद्धि कर सकता है जिससे उनके गुणों में परिवर्तन हो सकता है। विद्युत इस्तरी, विद्युत टोस्टर, विद्युत तन्दूर, विद्युत केतली तथा विद्युत हीटर जूल के तापन पर आधारित कुछ सुपरिचित युक्तियाँ हैं।
• विद्युत तापन का उपयोग प्रकाश उत्पन्न करने में भी होता है जैसा कि हम विद्युत बल्ब में देखते हैं। यहाँ पर बल्ब के तन्तु को उत्पन्न ऊष्मा को जितना सम्भव हो सके रोके रखना चाहिए ताकि वह अत्यन्त तप्त होकर प्रकाश उत्पन्न करे। इसे इतने उच्च ताप पर पिघलना नहीं चाहिए। बल्ब के तन्तुओं को बनाने के लिए टंगस्टन (गलनांक 3380°C) का उपयोग किया जाता है जो उच्च गलनांक की एक प्रबल धातु है। विद्युतरोधी टेक का उपयोग करके तन्तु को यथासम्भव ताप विलगित बनाना चाहिए। प्रायः बल्बों में रासायनिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा ऑर्गन गैस भरी जाती है जिससे उसके तन्तु की आयु में वृद्धि हो जाती है। तन्तु द्वारा उपभुक्त ऊर्जा का अधिकांश भाग ऊष्मा के रूप में प्रकट होता है, परन्तु इसका एक अल्प भाग विकरित प्रकाश के रूप में भी दृष्टिगोचर होता है।
• जूल तापन का एक और सामान्य उपयोग विद्युत परिपथों में उपयोग होने वाला फ्यूज है। यह परिपथों तथा साधित्रों की सुरक्षा, किसी भी अनावश्यक रूप से उच्च विद्युत धारा को उनसे प्रवाहित न होने देकर, करता है। फ्यूज को युक्ति के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं। फ्यूज किसी ऐसी धातु अथवा मिश्रधातु के तार का टुकड़ा होता है जिसका उचित गलनांक हो, उदाहरण के लिए एल्युमीनियम, कॉपर, आयरन, लैड आदि। यदि परिपथ में किसी निर्दिष्ट मान से अधिक मान की विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो फ्यूज तार के ताप में वृद्धि होती है। इससे फ्यूज तार पिघल जाता है और परिपथ टूट जाता है। फ्यूज तार प्रायः धातु के सिरे वाले
पोर्सेलेन अथवा इसी प्रकार के विद्युतरोधी पदार्थ के कार्ट्रिज में रखा जाता है। घरेलू परिपथों में उपयोग होने वाली फ्यूज की अनुमत विद्युत धारा 1A 2A 3A, 5A, 10A आदि होती है। उस विद्युत इस्तरी के परिपथ में जो 1 किलोवाट की विद्युत शक्ति उस समय उपभुक्त करती है, जब उसे 200 वोल्ट पर प्रचालित करते हैं, 1000 वाट / 220 वोल्ट = 454 एम्पियर की विद्युत धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकरण में 5 एम्पियर अनुमतांक का फ्यूज उपयोग किया जाना चाहिए।
विद्युत शक्ति
• कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर को भी शक्ति कहते हैं।
• किसी विद्युत परिपथ में उपभुक्त अथवा क्षयित विद्युत ऊर्जा की जो दर प्राप्त होती है, उसे विद्युत शक्ति कहते हैं।
• शक्ति (P) को इस प्रकार व्यक्त करते हैं P = VI अथवा P = I² R= V² / R
• विद्युत शक्ति का SI मात्रक वाट (W) है। यह उस युक्ति द्वारा उपभुक्त शक्ति है जिससे उस समय 1 एम्पियर विद्युत धारा प्रवाहित होती है जब उसे 1 वोल्ट विभवान्तर पर प्रचालित कराया जाता है।
• इस प्रकार 1 वाट = 1 वोल्ट x 1 ऐम्पियर = 1 वोल्ट एम्पियर
• ‘वाट’ शक्ति का छोटा मात्रक है। अतः वास्तविक व्यवहार में हम इसके काफी बड़े मात्रक (किलोवाट) का उपयोग करते हैं।
• एक किलोवाट, 1000 वाट के बराबर होता है। चूँकि विद्युत ऊर्जा शक्ति तथा समय का गुणनफल होती है इसलिए विद्युत ऊर्जा का मात्रक वाट घण्टा (Wh) है। जब एक वाट शक्ति का उपयोग 1 घण्टे होता है तो उपभुक्त ऊर्जा एक वाट घण्टा होती है। विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक किलोवाट घण्टा (kWh) है जिसे सामान्य बोलचाल में ‘यूनिट’ कहते हैं।
1 किलोवाट = 1000 वाट 3600 सेकण्ड
= 3.6×106 वाट सेकण्ड
= 3.6 x 106 जूल
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