विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव Magnetic Effects of Electric Current
विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव Magnetic Effects of Electric Current
विद्युत चुम्बकत्व
• विद्युत और चुम्बकत्व एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।
• विद्युत धारावाही तार चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है।
• 19वीं शताब्दी के अग्रणी वैज्ञानिकों में से एक, हैन्स क्रिश्चियन ऑस्टेंड ने विद्युत चुम्बकत्व को समझने में एक निर्णायक भूमिका निभाई। सन् 1820 में उन्होंने अकस्मात यह खोजा कि किसी धातु के तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर पास में रखी दिक्सूची में विक्षेप उपन्न हुआ। अपने प्रेक्षणों के आधार पर ऑस्टेंड ने यह प्रमाणित किया कि विद्युत तथा चुम्बकत्व परस्पर सम्बन्धित परिघटनाएँ हैं। उनके अनुसन्धान ने आगे जाकर नई-नई प्रौद्योगिकियों जैसे— रेडियो, टेलीविजन, तन्तु प्रकाशिकी आदि का सृजन किया। उन्हीं के सम्मान में चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक ऑस्टेंड रखा गया है।
चुम्बकीय क्षेत्र और क्षेत्र रेखाएँ
• किसी छड़ चुम्बक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है। वास्तव में दिक्सूचक की सूई एक छोटा छड़ चुम्बक ही होती है।
• किसी दिक्सूचक की सुई के दोनों सिरे लगभग उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं। दूसरा सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणामुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं।
• चुम्बकों के सजातीय ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण तथा विजातीय ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है।
• जब किसी छड़ चुम्बक के निकट लौह-चूर्ण रखते हैं तो चुम्बक अपने चारों ओर के क्षेत्र में अपना प्रभाव आरोपित करता है। अतः लौह-चूर्ण एक बल का अनुभव करता है। इसी बल के कारण लौह-चूर्ण एक विशेष प्रकार के पैटर्न में व्यवस्थित हो जाता है। किसी चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके बल का विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का संसूचन किया जा सकता है, उस चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। वह रेखाएँ जिनके अनुदिश लौह-चूर्ण स्वयं संरेखित होता है, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण करती हैं।
• चुम्बकीय क्षेत्र एक ऐसी राशि है जिसमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं। किसी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा वह मानी जाती है जिसके अनुदिश दिक्सूची का उत्तर ध्रुव उस क्षेत्र के भीतर गमन करता है। इसीलिए परिपाटी के अनुसर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ चुम्बक के उत्तर ध्रुव से प्रकट होती हैं तथा दक्षिण ध्रुव पर विलीन हो जाती हैं। चुम्बक के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है। अतः चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बन्द वक्र होती हैं।
• चुम्बकीय क्षेत्र की आपेक्षिक प्रबलता को क्षेत्र रेखाओं की निकटता की कोटि द्वारा दर्शाया जाता है। जहाँ पर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ अपेक्षाकृत अधिक निकट होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है, अर्थात् वहाँ पर विद्यमान किसी अन्य चुम्बक के ध्रुव पर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण अधिक बल कार्य करेगा।
• दो क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं। यदि वे ऐसा करें तो इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिच्छेद बिन्दु पर दिक्सूची को रखने पर उसकी सुई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी जो सम्भव नहीं हो सकता।
किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
• किसी विद्युत धारावाही धातु के तार से एक चुम्बकीय क्षेत्र सम्बद्ध होता है। तार के चारों ओर क्षेत्र रेखाएँ अनेक संकेन्द्री वृतों के रूप में होती हैं जिनकी दिशा दक्षिण-हस्त अगुंष्ठ नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
• दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम यदि हम अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़ें कि हमारा अँगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करे, तो हमारी अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी। इसे दक्षिण-हस्त (दाया हाथ) अगुष्ठ नियम कहते हैं। इस नियम का प्रतिपादन मैक्सवेल ने किया था। इसे मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम भी कहते हैं।
• विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र उससे दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है। इसी प्रकार विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिन्दु पर उसके चारों ओर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेन्द्री वृत्तों का साइज तार से दूर जाने पर निरन्तर बड़ा होता है। जैसे ही हम वृत्ताकार पाश के केन्द्र पर पहुँचते हैं, इन वृहत् वृत्तों के चाप सरल रेखाओं जैसे प्रतीत होने लगते हैं। विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिन्दु से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केन्द्र पर सरल रेखाओं जैसी प्रतीत होने लगती हैं। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके इस बात की आसानी से जाँच की जा सकती है कि तार का प्रत्येक भाग चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं में योगदान देता है तथा पाश के भीतर सभी चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती हैं।
• परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुण्डली को परिनालिका कहते हैं। परिनालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समान्तर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात् परिनालिका के भीतर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र होता है। परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुम्बकीय पदार्थ, जैसे नर्म लोहे, को परिनालिका के भीतर रखकर चुम्बक बनाने में किया जा सकता है। इस प्रकार बने चुम्बक को विद्युत चुम्बक कहते हैं।
• चुम्बकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर बल फ्रांसीसी वैज्ञानिक आन्द्रे मैरी एम्पियर (1775-1836) ने यह विचार प्रस्तुत किया कि चुम्बक को भी विद्युत धारावाही चालक पर परिमाण में समान परन्तु दिशा में विपरीत बल आरोपित करना चाहिए।
• चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित करने पर बल की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है।
• चालक पर आरोपित बल की दिशा धारा की दिशा और चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दोनों पर निर्भर करती है।
• प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है कि छड़ में विस्थापन उस समय अधिकतम (अथवा छड़ पर आरोपित बल का परिणाम उच्चतम) होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत होती है।
• फ्लेमिंग का वामहस्त (बायाँ हाथ) नियम अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लम्बवत हों। यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।
• विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, ध्वनि विस्तारक यन्त्र, माइक्रोफोन तथा विद्युत मापक यन्त्र कुछ ऐसी युक्तियाँ हैं जिनमें विद्युत धारावाही चालक तथा चुम्बकीय क्षेत्रों का उपयोग होता है।
चिकित्सा विज्ञान में चुम्बकत्व
• विद्युत धारा सदैव चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यहाँ तक कि हमारे शरीर की तन्त्रिका कोशिकाओं के अनुदिश गमन करने | वाली दुर्बल आयन धाराएँ भी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं। । जब हम किसी वस्तु को स्पर्श करते हैं तो हमारी तन्त्रिकाएँ एक विद्युत आवेग का उस पेशी तक वहन करती हैं जिसका हमें उपयोग करना है। यह आवेग एक अस्थायी चुम्बकीय क्षेत्र | उत्पन्न करता है। ये क्षेत्र अति दुर्बल होते हैं और पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में उसके एक अरबवें भाग के बराबर होते हैं।
• मानव शरीर के दो मुख्य भाग जिनमें क्षेत्र का उत्पन्न होना महत्त्वपूर्ण है, वे हृदय तथा मस्तिष्क हैं। शरीर के भीतर | चुम्बकीय क्षेत्र शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिम्ब प्राप्त करने का आधार बनता है। ऐसा एक विशेष तकनीक जिसे चुम्बकीय | अनुवाद प्रतिबिम्बन (Magnetic Resonance Imaging (MRI), कहते हैं के उपयोग द्वारा किया जाता है। चिकित्सा निदान में इन प्रतिबिम्बों का विश्लेषण सहायक होता है। इस प्रकार चिकित्सा ! विज्ञान में चुम्बकत्व के महत्त्वपूर्ण उपयोग हैं। ।
विद्युत मोटर
• विद्युत मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति है जिसमें विद्युत ऊर्जा का यान्त्रिक ऊर्जा में रूपान्तरण होता है। एक महत्त्वपूर्ण अवयव के रूप में विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रीजरेटरों, विद्युत मिश्रकों, वॉशिंग मशीनों, कम्प्यूटरों, MP 3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।
• वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्वमित कर देती है, उसे दिक्परिवर्तक कहते हैं। विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्परिवर्तक का कार्य करता है।
• व्यावसायिक मोटरों में
1. स्थायी चुम्बकों के स्थान पर विद्युत चुम्बक प्रयोग किए जाते हैं,
2. विद्युत धारावाही कुण्डली में फेरों की संख्या अत्यधिक होती है तथा
3. कुण्डली नर्म लौहे- वेड पर लपेटी जाती है। वह नर्म लौह-वेड जिस पर कुण्डली को लपेटा जाता है तथा कुण्डली दोनों मिलकर आर्मेचर कहलाते हैं। इससे मोटर की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण
• माइकेल फैराडे ने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की खोज की उन्होंने बताया कि किसी गतिशील चुम्बक का उपयोग किस प्रकार विद्युत धारा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।
• वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र के कारण अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहलाता है।
• व्यवहार में हम किसी कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा को या तो उसे किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति कराकर अथवा उसके चारों ओर के चुम्बकीय क्षेत्र को, परिवर्तित करके, उत्पन्न कर सकते हैं। अधिकांश परिस्थितियों में चुम्बकीय क्षेत्र में कुण्डली को गति कराकर प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना अधिक सुविधाजनक होता है।
• जब कुण्डली की गति की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत होती है जब कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा अधिकतम होती है। इस स्थिति में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए हम एक सरल नियम का उपयोग कर सकते हैं। इस नियम के अनुसार, “अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के लम्बवत् हों। यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा की ओर संकेत करती है तथा अँगूठा चालक की गति की दिशा की ओर संकेत करता है तो मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा दर्शाती है।” इस सरल नियम को फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम कहते हैं।
गैल्वनोमीटर
• गैल्वनोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति संसूचित करता है। यदि इससे प्रवाहित विद्युत धारा शून्य है तो इसका संकेतक शून्य (पैमाने के मध्य में ) पर रहता है। यह अपने शून्य चिह्न के या तो बाईं ओर अथवा दाईं ओर विक्षेपित हो सकता है, यह विक्षेप विद्युत धारा की दिशा पर निर्भर करता है।
विद्युत जनित्र
• विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की परिघटना पर आधारित प्रयोगों में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा का परिमाण प्राय: बहुत कम होता है इस सिद्धान्त का उपयोग घरों तथा उद्योगों के लिए अत्यधिक परिमाण की विद्युत धारा उत्पन्न करने में भी किया जाता है। विद्युत जनित्र में यान्त्रिक ऊर्जा का उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
• ऐसी विद्युत धारा जो समान काल-अ तरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है, उसे प्रत्यावर्ती धाग (संक्षेप में A(C) कहते हैं। विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र (AC अनित्र) कहते हैं।
• दिष्ट धारा (अर्थात् कब जिसमें समय के साथ दिशा में परिवर्तन नहीं होता) प्राप्त करने के लिए विभक्त वलय प्रकार के दिक्परिवर्तक का उपयोग किया जाता है। इस व्यवस्था के साथ एक ब्रुश सदैव ही उस भुजा के सम्पर्क में रहता है जो चुम्बकीय क्षेत्र में ऊपर की ओर गति करती है जबकि दूसरा ब्रुश सदैव नीचे की ओर गति करने वाली भुजा के सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार, इस व्यवस्था के साथ एक दिशिक विद्युत धारा उत्पन्न होती है। इस प्रकार के जनित्र को दिष्ट धारा (DC) जनित्र कहते हैं।
• दिष्ट धारा तथा प्रत्यावर्ती धारा के बीच यह अन्तर है कि दिष्ट धारा सदैव एक ही दिशा में प्रवाहित होती है, जबकि प्रत्यावर्ती धारा एक निश्चित काल – अन्तराल के पश्चात् अपनी दिशा उत्वमित करती रहती है। आजकल ने विद्युत शक्ति संयन्त्र स्थापित किए जा रहे हैं उनमें से अधिकःश में प्रत्यावर्ती विधुत धारा का उत्पादन होता है।
• भारत में उत्पादित प्रत्यावर्ती विद्युत धारा हर 1/100 सेकण्ड के पश्चात् अपनी दिशा उत्क्रमित करती हैं, अर्थात् इस प्रत्यावर्ती धारा (AC) की आवृत्ति 50 हर्ट्ज है। कब की तुलना में AC का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि विद्युत शक्ति को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।
घरेलू विद्युत परिपथ
• हम अपने घरों में विद्युत शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारो (जिसे मेन्स भी कहते हैं) से प्राप्त करते हैं। ये मुख्य तार या तो धरती पर लगे विद्युत खम्भों के सहारे अथवा भूमिगत केबलों से हमारे घरों तक आते हैं। इस आपूर्ति के तारों में से एक तार को जिस पर प्रायः लाल विद्युतरोधी आवरण होता है, विद्युतभय तार ( अथवा धनात्मक तार) कहते हैं। अन्य तार को जिस पर काला आवरण होता है, उदासीन तार (अथवा ऋणात्मक तार ) कहते हैं। हमारे देश में इन दोनों तारों के बीच 220 वोल्ट का विभवान्तर होता है।
• घर में लगे मीटर बोर्ड में ये तार मुख्य फ्यूज से होते हुए एक विद्युत मीटर में प्रवेश करते हैं। इन्हें मुख्य स्विच से होते हुए घर के लाइन तारों से संयोजित किया जाता है। ये तार घर के पृथक-पृथक् परिपथ में विद्युत आपूर्ति करते हैं। प्राय घरों में दो पृथक् परिपथ होते हैं, एक 15 एम्पियर विद्युत धारा अनुमतांक के लिए जिसका उपयोग उच्च शक्ति वाले विद्युत ससाधित्रों जैसे गीजर, वायु शीतित्र/कूलर (Air cooler) आदि के लिए किया जाता है। दूसरा विद्युत परिपथ 5 एम्पियर विद्युत धारा अनुमतांक के लिए होता है के जिससे बल्ब, पंखे आदि चलाए जाते हैं।
• भूसम्पर्क तार जिस पर प्रायः हरा विद्युतरोधी आवरण होता है, घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री, टोस्टर, मेज का पंखा, रेफ्रिजरेटर, आदि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है।
• धातु के आवरणों से संयोजित भूसम्पर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र के धात्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाएगा। फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।
• सामान्य घरेलू विद्युत परिपथों के प्रत्येक पृथक् विद्युत परिपथ में विद्युतमय तथा उदासीन तारों के बीच विभिन्न विद्युत साधित्रों को संयोजित किया जा सकता है। प्रत्येक साधित्र का अपना पृथक् ‘ऑन/ऑफ’ स्विच होता है, ताकि इच्छानुसार उनमें विद्युत धारा प्रवाहित कराई जा सके। सभी साधित्रों को समान वोल्टता मिल सके, इसके लिए उन्हें परस्पर पावक्रम में संयोजित किया जाता है।
• विद्युत फ्यूज सभी घरेलू परिपथों का एक महत्त्वपूर्ण अवयव होता है। विद्युत परिपथ में लगा फ्यूज परिपथ तथा साधित्र को अतिभारण के कारण होने वाली क्षति से बचाता है। जब विद्युतमय तार तथा उदासीन तार दोनों सम्पर्क में आते हैं तो अतिभारण हो सकता है (यह तब होता है जब तारों का विद्युतरोधन क्षतिग्रस्त हो जाता है अथवा साधित्र में कोई दोष होता है)। ऐसी परिस्थितियों में, किसी परिपथ में विद्युत धारा अकस्मात् बहुत अधिक हो जाती है। इसे लघुपथन कहते हैं।
• विद्युत फ्यूज का उपयोग विद्युत परिपथ तथा विद्युत साधित्र को अवान्छनीय उच्च विद्युत धारा के प्रवाह को समाप्त करके, सम्भावित क्षति से बचाना है। फ्यूजों में होने वाला जूल तापन फ्यूज को पिघला देता है जिससे विद्युत परिपथ टूट जाता है। आपूर्ति वोल्टता में दुर्घटनावश होने वाली वृद्धि से भी कभी-कभी अतिभारण हो सकता है। कभी-कभी एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करने से भी अतिभारण हो जाता है।
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