विद्यालय का वार्षिकोत्सव
विद्यालय का वार्षिकोत्सव
विद्यालय का वार्षिकोत्सव का अर्थ है- एक साल के अंत में होने वाला उत्सव । प्रत्येक विद्यालय का वार्षिक उत्सव होता है । इस अवसर पर विशेष समारोह किए जाते हैं और इस समारोह में विद्यालय के सभी सदस्य सामान्य या प्रमुख रूप से भाग लिया करते हैं । इसलिए इस उत्सव का विशेष महत्त्व होता है ।
प्रत्येक विद्यालय की तरह हमारे विद्यालय का भी वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष वसंत-पंचमी के शुभावसर पर सम्पन्न किया जाता है । इस उत्सव के लिए विशेष प्रबन्ध और आयोजन किए जाते हैं। इसकी तैयारियाँ महीनों पूर्व ही होने लगती हैं। इसमें सभी अध्यापक, छात्र, कर्मचारी सक्रिय रूप से भाग लिया करते हैं । प्रधानाचार्य की भूमिका बहुत बड़ी होती है। वे इस कार्य को सम्पन्न कराने के लिए पुरजोर प्रयास किया करते हैं। न केवल विद्यालय की ही तैयारी करवाने में वे लगे रहते हैं, अपितु इससे सम्बन्धित बाहर की भी तैयारियों में विशेष रुचि और भाव प्रकट करते हैं। इसलिए हमारे विद्यालय का यह वार्षिकोत्सव एक विशेष आयोजन और समारोह के साथ प्रतिवर्ष सम्पन्न हुआ करता है ।
प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी वसंत पंचमी के शुभदिन हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव सम्पन्न करने के लिए बड़ी धूमधाम और जोर-शोर के साथ तैयारियाँ होने लगीं। हमारे प्रधानाचार्य जी ने अपनी रुचि और क्षमता का परिचय आरम्भ से ही देना शुरू कर दिया था। इस समारोह में आयोजित कार्यक्रमो की सूची एक माह पूर्व ही संचालक महोदय ने जारी कर दी थी जिसके परिणामस्वरूप इसमें भाग लेने के इच्छुक पात्रों ने अपनी अलग-अलग तैयारियाँ भी आरम्भ कर दी थीं। इस कार्यक्रम के मुख्य आकर्षक थे-नाटक, कविता, वाद-विवाद और खेल-कूद सभी इच्छुक पात्रों ने इसमें भाग लेना आरम्भ कर दिया था। संचालक महोदय ने सबकी योग्यता की पहचान करके सबको अलग-अलग विषय दे दिया था। दूसरी ओर इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए दूर-दूर से महान् पुरुषों, जिनमें कुछ तो उच्च पदाधिकारी थे और कुछ बहुत बड़े सामाजिक व्यक्ति और सभ्रांत पुरुष भी थे, आमन्त्रित किये गये। विद्यार्थियों के परिवार के प्रमुख सदस्यों को भी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। इससे विद्यालय के विद्यार्थियों में एक बड़ी खुशी की लहर उट रही थी और उनके साथियों को इससे कहीं और ही अधिक प्रसन्नता थी ।
बड़ी प्रतीक्षा के बाद विद्यालय के वार्षिकोत्सव का वह शुभदिन वसंत पंचमी आ गयी । इस दिन सभी आमंत्रित और सम्बन्धित व्यक्ति एक-एक करके विद्यालय के प्रमुख द्वार से अन्दर प्रवेश कर रहे थे । विद्यालय के इस प्रमुख द्वार के दोनों ही ओर दो वरिष्ठ अध्यापक अतिथियों के सम्मानपूर्वक स्वागत कार्य में लगे थे । विद्यालय के विशाल प्रांगण में एक बड़ा मंच बना हुआ था। आस-पास कई कुर्सियाँ थीं, जो अभी तक रिक्त थीं । धीरे-धीरे विद्यालय के सदस्य इस मंच के चौड़ी और पंक्तिबद्ध कुर्सियों पर आसन ग्रहण करते गए। विद्यालय के सभी विद्यार्थी और अन्य कर्मचारी गण भी यथा स्थान बैठ गए थे । जब प्रधानाचार्य ने अपने लाउड हेलर से सबको यथा स्थान बैठ जाने पर निर्देश दिया तब जो अभी तक खड़े-खड़े इस भव्य-दृश्य का दर्शन कर रहे थे, वे भी यथास्थान बैठ गए ।
वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम दिन के 10 बजे के समय से संचालक महोदय के सूचनाबद्ध सम्भाषण से आरम्भ हुआ। इसके बाद विद्यालय के वरिष्ठ अध्यापक के संक्षिप्त सूचनाबद्ध और कार्यक्रम के महत्त्व तथा विद्यालय के विशेष महत्त्व को रेखांकित करने के सम्भाषण से कुछ देर तक कार्यक्रम चला। इसके बाद विद्यालय के प्रधानाचार्य ने अतिथियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए उनके आगमन के प्रति अपनी खुशी भी प्रकट की। इसके बाद प्रधानाचार्य ने मुख्य अतिथि प्रदेश के शिक्षामंत्री के प्रति अपना हार्दिक आभार प्रकट करते हुए उन्हें अपने सम्भाषण से । सबको कुछ ज्ञान लाभ प्रदान करने का आग्रह किया
प्रधानाचार्य के कथनानुसार शिक्षामंत्री ने ‘शिक्षा के महत्व’ पर एक लम्बा व्याख्यान देते हुए विद्यालय की प्रगति के लिए एक विशेष अनुदान देने की घोषणा भी कर दी । इसे सुनकर कई बार तालियों की गड़गड़ाहट होने से पूरा मंच गूँज उठा था। बाद में प्रधानाचार्य ने विद्यालय की प्रगति की रूप-रेखा प्रस्तुत की। अंत में शिक्षामंत्री के कर कमलों द्वारा कार्यक्रमों में भाग लेने वाले उत्तीर्ण और योग्य पात्रों को पुरस्कार भी प्रदान किया गया। अन्त में संचालक महोदय ने धन्यवाद प्रकाशन करते हुए इस समारोह की समाप्ति की घोषणा कर दी थी। सबसे अंत में मिष्ठान्न वितरण हुआ।
घर लौटते हुए सबके मुंह से विद्यालय की प्रगति की महत्त्व की बातें बार-बार निकल रही थीं। सभी विद्यालय के इस वार्षिक समारोह से संतुष्ट और प्रसन्न थे। दूसरे दिन समाचार पत्रों ने भी इस समारोह के आयोजन और कार्यक्रमों की सम्पन्नता को विस्तारपूर्वक प्रकाशित किया। इसे पढ़-पढ़कर सभी हमारे विद्यालय के महत्त्व को बार-बार कह सुन रहे थे ।
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