लोकतान्त्रिक अधिकार Democratic Rights
लोकतान्त्रिक अधिकार Democratic Rights
अधिकार क्या है ?
♦ अधिकार लोगों के तार्किक दावे हैं, जिन्हें समाज से स्वीकृति और अदालतों द्वारा मान्यता मिली होती है।
♦ लोकतन्त्र में अधिकारों की खास भूमिका है। ये बहुसंख्यकों के दमन से अल्पसंख्यकों की रक्षा करते हैं।
♦ अधिकार स्थितियों के बिगड़ने पर एक तरह की गारण्टी जैसे हैं।
♦ अधिकांश लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्थाओं में नागरिकों के अधिकार संविधान में लिखित रूप में दर्ज होते हैं।
भारतीय संविधान में अधिकार
♦ भारतीय संविधान द्वारा इस देश के नागरिकों को जो मूलभूत अधिकार दिए गए हैं, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है।
♦ भारतीय संविधान में छः प्रकार के मौलिक अधिकारों का उल्लेख है
समानता का अधिकार
♦ हमारा संविधान यह कहता है कि सरकार भारत में किसी व्यक्ति को कानून के सामने समानता या कानून से संरक्षण के मामले में समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती।
♦ समानता का तात्पर्य है हर किसी से उसकी जरूरत का ख्याल करते हुए समान व्यवहार करना तथा हर आदमी को उसकी क्षमता के अनुसार काम के समान अवसर उपलब्ध करवाना।
♦ कई बार अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए कुछ वंचितों को विशेष अवसर प्रदान किया जाता है, जिसे आरक्षण कहा जाता है। आरक्षण समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है ।
स्वतन्त्रता का अधिकार
स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं
♦ अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
शान्तिपूर्ण ढंग से जमा होने की स्वतन्त्रता
♦ संगठन और संघ बनाने की स्वतन्त्रता
♦ देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता
♦ देश के किसी भी भाग में रहने-बसने की स्वतन्त्रता
♦ कोई भी काम करने, धन्धा चुनने या पेशा करने की स्वतन्त्रता ।
शोषण के विरुद्ध अधिकार
♦ संविधान में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि नागरिकों का कोई शोषण न कर सके।
♦ भारतीय संविधान मानव जाति के अवैध व्यापार का निषेध करता है।
♦ संविधान में बेगार या जबरन काम का भी निषेध किया गया है।
♦ इस अधिकार के अन्तर्गत यह विशेष प्रावधान किया गया है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे से काम नहीं कराया जा सकता। इसी को आधार बनाकर बालश्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाए गए हैं।
धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
♦ हालाँकि स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार की बात भी कही गई है, किन्तु इसको और अधिक स्पष्ट करने के उद्देश्य से इसे स्पष्ट रूप से अलग दर्ज किया गया है।
♦ इस अधिकार के अनुसार हर किसी को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है।
♦ यदि किसी शैक्षिक संस्थान का संचालन कोई निजी संस्था करती है तो वहाँ के किसी भी व्यक्ति को प्रार्थना में हिस्सा लेने या किसी धार्मिक निर्देश का पालन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
♦ नागरिकों में विशिष्ट भाषा या संस्कृति वाले किसी समूह को अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने का अधिकार है।
♦ किसी भी सरकारी या सरकारी अनुदान पाने वाले शैक्षिक संस्थान में किसी नागरिक को धर्म या भाषा के आधार पर दाखिला लेने से नहीं रोका जा सकता।
♦ सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसन्द का शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
♦ संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार महत्त्वपूर्ण
हैं। इसलिए इन्हें लागू किया जा सकता है। नागरिकों को इन अधिकारों को लागू कराने और उन्हें माँगने का अधिकार है, जिसे संवैधानिक उपचार का अधिकार कहा जाता है।
♦ यह अधिकार अन्य अधिकारों को प्रभावी बनाता है।
♦ किसी अधिकार के उल्लंघन की स्थिति में व्यक्ति अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। न्यायालय उसके अधिकार को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करेगा।
♦ डॉ. अम्बेडकर के संवैधानिक उपचार के अधिकार को हमारे संविधान की ‘आत्मा और हृदय’ कहा था।
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्र
♦ इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र में अनेक ऐसे अधिकारों को मान्यता दी गई है, जो भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों से सीधे नहीं जुड़े हैं।
♦ इसने अभी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि का रूप नहीं लिया है, लेकिन दुनियाभर के मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे एक मानक मानवाधिकार के रूप में देखते हैं।
♦ इसमें शामिल हैं
काम करने का अधिकार हर किसी को काम करने, अपनी जीविका का उपार्जन करने का अवसर ।
♦ काम करने के सुरक्षित और स्वास्थ्यप्रद माहौल का अधिकार तथा मजदूरों और उनके परिवारों के लिए सम्मानजनक जीवनस्तर लायक उचित मजदूरी का अधिकार।
♦ समुचित जीवन स्तर जीने के अधिकार में पर्याप्त भोजन, कपड़ा और मकान का अधिकार शामिल है।
♦ सामाजिक सुरक्षा और बीमे का अधिकार ।
स्वास्थ्य का अधिकार बीमारी के समय इलाज, प्रजनन काल में महिलाओं का खास ख्याल और महामारियों से रोकथाम।
शिक्षा का अधिकार निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, उच्चतर शिक्षा तक समान पहुँचा।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
♦ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, 1993 में कानून के द्वारा बनाया गया एक स्वतन्त्र आयोग है। यह न्यायपालिका की तरह सरकार से स्वतन्त्र है।
♦ आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और इसमें आमतौर पर सेवानिवृत्त जज, अधिकारी या प्रमुख नागरिकों को ही नियुक्त किया जाता है।
♦ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के लिए अधिकारों की परिभाषा में संयुक्त राष्ट्र द्वारा कराई गई वे सान्धयाँ और अन्तर्राष्ट्रीय घोषणाएँ भी शामिल हैं जिन पर भारत ने दस्तखत किए हैं।
♦ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग स्वयं किसी को सजा नहीं दे सकता। यह जिम्मेदारी अदालतों की है।
♦ आयोग का काम मानवाधिकार के उल्लंघन के किसी मामले में स्वतन्त्र और विश्वसनीय जाँच करनः है। यह उन मामलों की भी जाँच करता है जहाँ ऐसे उल्लंघन में या इन्हें रोकने में सरकारी अधिकारियों पर उपेक्षा बरतने का आरोप है।
♦ यह देश में मानवाधिकारों को बढ़ाने और उसके प्रति चेतना जगाने का काम भी करता है।
♦ यह आयोग किसी भी अदालत की तरह चश्मदीद गवाहों को सम्मन भेजकर बुला सकता है, किसी सरकारी अधिकारी से पूछताछ कर सकता है, किसी सरकारी दस्तावेज की मांग कर सकता है, किसी जेल में जाकर जाँच कर सकता है या घटनास्थल पर अपनी टीम भेज सकता है।
♦ भारत का कोई भी नागरिक मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में इसके पास इस पते पर शिकायत भेज सकता है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, फरीदकोट हाउस, कोपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली 110001
♦ आयोग के पास अर्जी भेजने की न तो कोई फीस है, फार्म और न ही कोई तय तरीका।
♦ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरह ही 14 राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग हैं।
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