लोकतंत्र के परिणाम

लोकतंत्र के परिणाम

अध्याय का सार

इनमें कोई संदेह नहीं कि लोकतांत्रिक शासन शेष अन्य सभी प्रकार के शासकों से बेहतर होता है नागरिकों की समानता में, व्यक्तित्व की गरिमा का अहसास, तनावों में सामंजस्य, त्रुटियों में सुधार करने की गुंजाइश आदि की आशाएँ तानाशाही, कुलीनतंत्र; राजतंत्र में नहीं की जा सकती। लोकतंत्र लोगों का लोगों द्वारा तथा लोगों के हित का शासन होता है। ऐसे शासन को भले ही अच्छा शासन नहीं कहा जाता, परन्तु स्व-शासन तो किसी भी अच्छे शासन से बेहतर शासन होता है।

क्योंकि लोकतंत्रीय शासन मात्र शासन का एक स्वरूप है। इसमें अनेकों त्रुटियाँ होती हैं परन्तु कुल मिला कर शासन का यह रूप शासन के सभी अन्य रूपों से बेहतर है। उत्तरदायी सरकार लोकतंत्रीय सरकार ही हो सकती है। ऐसी सरकार के प्रतिनिधि अपने कार्यों का दायित्व उठाते हैं। ऐसी सरकार में फैसले लेने में देरी हो सकती है परन्तु फैसलों में देरी बेकार नहीं होती, क्योंकि लोकतंत्र में हुए फैसलों में सबकी सहमति व उनके विचार दृष्टिकोण शामिल होते हैं। फिर लोकतंत्र में हुए फैसले किसी कायदे कानून के अनुसार होते हैं। यह फैसले थोपे नहीं जाते। क्या हम किसी अन्य शासन-प्रणाली में नियमित व निष्पक्ष चुनाव देखते हैं? नीतियों कानूनों पर खुली चर्चा देखते हैं? सरकार के कार्यों में जानकारी पाने की मिलने वाली सूचनाओं को खुलेआम देखते हैं? क्या लोकतांत्रिक संस्थाओं व व्यवस्थाओं की सफलता देखतें हैं? वास्तव में, लोकतंत्र ही शासन की ऐसी पृष्ठभूमि तैयार करता है जो किसी भी प्रकार की व्यवस्था से बेहतर होती है। अन्य शासनों के मुकाबले में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक उत्तरदायी, अधिक जिम्मेवार तथा अधिक वैधपूर्ण व्यवस्था है।

इसमें सन्देह नहीं है कि आर्थिक संवृद्धि व आर्थिक विकास जितना तानाशाहियों में होता है, उतना लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में नहीं होता। परन्तु तानाशाही में हुए काम के पीछे जोर जबरदस्ती होती है व उत्पीड़न होता है। ऐसी व्यवस्थाओं में अंततः आर्थिक विषमतओं में वृद्धि होती है; आम व्यक्ति की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में सुधार होता है। लोकतंत्रीय व्यवस्था ही आर्थिक समानताओं में कमी लाने में सफल होती है, यह सरकार ही सामाजिक विविधताओं में सामंजस्य पैदा कर सकती है। व्यक्ति की गरिमा के वृद्धि लोकतंत्रीय व्यवस्था में होती है।

जानने योग्य शब्द तथा तथ्य एवं उनके भाव

लोकतंत्र : ऐसी शासकीय व्यवस्था जो समानता, स्वतंत्रता व कल्याणकारिता पर अधारित हो।
तानाशाही: व्यक्ति विशेष, दल-विशेष अथवा किसी सैनिक अधिकारी का शासन
वैधता : कानून अनुसार शासन किया जानाः प्रायः लोकतंत्रीय व्यवस्था वैध शासन की प्रतीक होती है।
स्व-शासन : लोगों का स्वयं का शासन, स्वयं अथवा लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का शासन
आर्थिक असमानता : लोगों के बीच आर्थिक आय का भेद। अनुभव बताता है कि तानाशाहियों के मुकाबले में लोकतांत्रिक देशों में आर्थिक असमानता कम होती है।
सामाजिक विविधताएँ: सामाजिक विविधताएँ लोगों व वर्गों में भाषायी, धार्मिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विषमताओं को कहते हैं। अनुभव बताता है कि लोकतंत्रीय व्यवस्थाओं में सामाजिक विविधताओं में सामंजस्य पाया जाता है।
व्यक्तित्व की गरिमा : लोगों के व्यक्तित्व में तथा उनकी प्रतिष्ठा में विश्वास। अनुभव बताता है कि
लोकतंत्र में लोगों की गरिमा, कायम रहती है।
अल्पसंख्यक/बहुसंख्यक: कम संख्या वाले समूह को अल्पसंख्यक एवं अधिक संख्या वाले समूह को बहुसंख्यक कहा जाता है।

लोकतंत्र के परिणाम Important Questions and Answers

प्रश्न-1.
बताइए कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या होती है?
उत्तर-
लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे बड़ी उपलब्धि स्वयं लोकतांत्रिक व्यवस्था होती है। लोग अपनी शासकीय व्यवस्था स्वयं बनाते हैं तथा स्वयं शासन करते हैं।

प्रश्न-2.
क्या लोकतंत्र का शासन बहुमत का शासन होता है? यदि हाँ, तो लोकतंत्र गरीबों का शासन होना चाहिए। वह बहुमत में होते हैं। (इन्टैक्टस प्रश्न : पृष्ठ : 95)
उत्तर-
नि:संकोच लोकतंत्र बहुत का शासन होता है। परन्तु गरीब बहुमत में होते अवश्य हैं, शासन उनका नहीं होता। गरीबों के वोट खरीद लिये जाते हैं। अपनी आर्थिक गरीबी के कारण वह अपने राजनीतिक अधिकारों का सही प्रयोग नहीं कर पाते।

प्रश्न-3.
क्या आप सोचते हैं कि लोकतंत्र को अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है? स्पष्ट करें। (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 98)
उत्तर-
लोकतंत्र सदैव चुनौतियों से भरी व्यवस्था होती है: प्रतिदिन नयी चुनौतियाँ एवं नए लोकतंत्र जितनी परीक्षाओं से गुजरता है, यह उतना ही मजबूत होता है।

प्रश्न-4.
क्या लोकतंत्र में निर्णय लेने में देरी से ऐसी सरकार कम प्रभाव हो जाती है? तर्क दीजिए।
उत्तर-
लोकतंत्र में निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनेकों विचारों व लोगों की बातें सुननी पड़ती हैं। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कम प्रभावी नहीं होते, अपितु किए गए फैसलों को अधिक मान्यतः मिलती है।

प्रश्न-5.
बांग्लादेश में कितने लोग लोकतंत्र को बेहतर समझते हैं तथा कितने तानाशाही को?
उत्तर-
लोकतंत्र को बेहतर व्यवस्था समझने वाले लगभग 69% हैं। जहाँ तानाशाही को बेहतर समझने वालों का प्रतिशत 6 है।

प्रश्न-6.
पाकिस्तान में लोकतंत्र के प्रति लोगों के विचारों का मूल्यांकन करें।
उत्तर-
पाकिस्तान में लोगों के मन लोकतंत्र से सम्बन्धित विचार कुछ अधिक अच्छे नहीं हैं। 37% लोग इसे बेहतर मानते हैं। 49% लोगों के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था हो अथवा न हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।

प्रश्न-7.
श्रीलंका में कितने प्रतिशत लोग लोकतंत्र को बेहतर तथा कितने प्रतिशत लोग तानाशाही को बेहतर समझते हैं?
उत्तर-
श्रीलंका में 71% लोग लोकतंत्र को तथा 11 प्रतिशत लोग तानाशाही को बेहतर समझते हैं।

प्रश्न-8.
भारत में लोगों का कितना प्रतिशत लोकतंत्र को तथा कितना प्रतिशत तानाशाही को बेहतर मानते हैं?
उत्तर-
भारत में 70% लोग लोकतंत्र को तथा 9% लोग तानाशाही को बेहतर समझते हैं।

प्रश्न-9.
किन प्रमुख दक्षिणी एशियायी देशों में लोगों का कितना प्रतिशत लोकतंत्र के लिए भरपूर समर्थन देता है? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर-
श्रीलंका में 98%, बांग्लादेश में 96%, भारत में 95%, नेपाल में 94% तथा पाकिस्तान में 81% लोग लोकतंत्र को भरपूर समर्थन देते हैं।

प्रश्न-10.
उदाहरण देकर बताइए कि लोकतांत्रिक व तानाशाही देशों में विकास दर कितनी है?
उत्तर-
1990-2000 के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि लोकतांत्रिक देशों की औसतन विकास दर 3.95% रही है जबकि तानाशाहियों में यह दर 4.42% रही है।

प्रश्न-11.
उदाहरण देकर बताइए कि लोकतंत्रीय व तानाशाही देशों में गरीब देशों में विकास दर कितनी रही
उत्तर-
1990-2000 के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि लोकतांत्रिक व तानाशाही देशों में गरीब देशों की विकास दर में कोई अत्यधिक अंतर नहीं है। पहली श्रेणी का विकास दर 4. 34% तथा दूसरी श्रेणी का विकास दर 4.28 था।

प्रश्न-12.
स्पष्ट कीजिए कि लोकतंत्र सबसे बेहतर प्रणाली क्यों बतायी जाती है?
उत्तर-
लोकतंत्र सबसे बेहतर प्रणाली बतायी जाती है। इस तथ्य की पुष्टि निम्नलिखित से स्पष्ट है:

  • नागरिकों में समानता को बढ़ावा देता है;
  • व्यक्ति की गरिमा को बढ़ाता है;
  • इससे फैसलों में बेहतरी आती है;
  • टकरावों को टालने सँभालने का तरीका देता है और
  • इसमें गलतियों को सुधारने की गुंजाइश होती है।

प्रश्न-13.
आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि सरकार आपके तथा आपके परिवार के बारे में राशन कार्ड, मतदान पहचान-पत्र आदि बहुत जानकारी रखती है। सरकार के बारे में जानकारी के लिए आप कौन-कौन-से स्रोत हैं? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 91)
उत्तर-
हमारे पास सरकार के बारे में जानकारी के लिए अनेकों स्रोत है। समय-समय पर सरकार के अनेकों विभागों की वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित होती रहती है। संसद की कार्यवाही को दूसरे दिन समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलता है। हम समाचार-पत्रों व अनेकों वार्षिक रिपोर्टों में सरकार के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहते हैं।

प्रश्न-14.
क्या आर्थिक संवृद्धि का लाभ सब देशों को बराबर हुआ है? राष्ट्र के धन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए गरीब किस तरह आवाज उठा सकते हैं? संसद में धन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए गरीब देश क्या करें? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठ : 93)
उत्तर-
आर्थिक संवृद्धि का लाभ लोकतांत्रिक देशों की अपेक्षा तानाशाहियों को अधिक होता है। तानाशाही देशों में विकास दर औसत 4.42 है जब कि गरीब देशों में ऐसी दर 3. 95% गरीबों को राष्ट्र के धन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए नयी योजनाओं व रोजगार के अवसरों की वृद्धि के लिए आवाज उठानी चाहिए। संसार में गरीब देश अपने धन की वृद्धि के लिए एक-दूसरे के साथ व्यापार बढ़ाने का प्रयास करें तथा संसार में एक प्रकार की अर्न्तराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की माँग करें।

प्रश्न-15.
क्या आप समझते हैं कि लोकतांत्रिक शासन के अंदर भी भारी आर्थिक असमानता हो सकती है? (इन्टैक्सट प्रश्नः पृष्ठ : 94)
उत्तर-
गरीब देशों के अन्दर भी आपसी भारी आर्थिक असमानता हो सकती है। दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों में ऊपरी 20 फीसदी लोगों का ही कुल राष्ट्रीय आय के 60 फीसदी हिस्से पर कब्जा है जबकि सबसे नीचे के 20 फीसदी लोग राष्ट्रीय आय के मात्र 3 फीसदी हिस्से पर जीवन बसर करते हैं। डेनमार्क और हंगरी जैसे मुल्क इस मामले में कहीं ज्यादा बेहतर कहें जाएँगे।

प्रश्न-16.
क्या आप सोचते हैं कि गरीब वर्ग के आगे सदा अवसरों की असमानता बरकरार रहेगी? (इन्टैक्सट प्रश्न : पृष्ठः 94)
उत्तर-
यह एक अजीब तर्क है कि जो आज गरीब वर्ग है वह सदा ही गरीब वर्ग रहेगा। इतिहास उदाहरण है कि गरीब अमीर बनते रहे हैं तथा गरीब देश अमीर बनते रहे हैं। भारत में
गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आयी है। भारत की आर्थिक स्थिति 1991 के बाद निरन्तर बेहतर हुई

प्रश्न-17.
लोकतंत्र में एक जाँच-परख समाप्त होती है तो दूसरी जाँच-परख आरम्भ हो जाती है, ऐसा क्यों?
उत्तर-
लोकतंत्र सदैव रहने वाले एक परीक्षा का उदाहरण है। एक जाँच-परख की समाहित के साथ दूसरी जाँच-परख का उभरना स्वाभाविक होता है। लोगों की एक माँग पूरी होती है तो दूसरी माँग तुरन्त खड़ी हो जाती है। एक शिकयत समाप्त होती है ता दूसरी शिकायत उभर आती है। शिकायतों का बना रहना लोकतंत्र की सफलता की गवाही है। इससे संकेत होता है कि लोग सत्ता के प्रयोग करने वाले लोगों के कामकाज का मूल्यांकन करते रहते हैं।

प्रश्न-18.
‘गरिमा व आजादी की चाह ही लोकतंत्र का आधार है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गरिमा और आजादी की चाह ही लोकतंत्र का आध र है। दुनिया भर की लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ इस चीज को __ मानती हैं-कम-से-कम सिद्धांत के तौर पर तो जरूर।
अलग-अलग लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इन बातों पर अलग-अलग स्तर का आचरण होता है। लोकतांत्रिक सरकारें सदा नागरिकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करतीं। फिर जो समाज लंबे समय तक गुलामी में रहे हैं उनके लिए यह एहसास करना आसान नहीं है कि सभी व्यक्ति बराबर हैं। यहाँ स्त्रियों की गरिमा का ही उदाहरण लें। दुनिया के अधिकांश समाज पुरुष-प्रधान समाज रहे हैं। महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद अब जाकर यह माना जाने लगा है कि महिलाओं के साथ गरिमा और समानता का व्यवहार लोकतंत्र की जरूरी शर्त है।

प्रश्न-19.
क्या आप मानते हैं कि लोग अपने अधिकारों के प्रति अपेक्षाकृत अधिक चौकस हुए हैं?
‘उत्तर-
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने कमजोर और भेदभाव का शिकार हुई जातियों के लोगों के समान दर्जे और समान अवसर के दावे को बल दिया है। आज भी जातिगत भेदभाव और दमन के उदाहरण देखने को मिलते हैं पर इनके पक्ष में कानूनी या नैतिक बल नहीं होता। संभवतः इसी अहसास के चलते आम लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति ज्यादा चौकस हुए हैं।

प्रश्न-20.
संसार में अपनायी जाने वाली लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के प्रभाव को संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
आज दुनिया के सौ देश किसी-न-किसी तरह मकी लोकतांत्रिक व्यवस्था चलाने का दावा करते हैं। इनका औपचारिक संविधान है, इनके यहाँ चुनाव होते हैं और राजनीतिक दल भी हैं। साथ ही, वे अपने नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकारों की गारंटी देते हैं। लोकतंत्र के ये तत्व तो अधिकांश देशों में समान हैं पर सामाजिक स्थिति, अपनी आर्थिक उपलब्धि और अपनी संस्कृतियों के मामले में ये देश एक-दूसरे से काफी अलग-अलग हैं। स्पष्ट है कि इन सबका लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के नतीजों पर भी असर पड़ता है और एक जगह जो उपलब्धि हो वह दूसरी जगह भी उसी तरह दिखे यह जरूरी नहीं है। इन लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुभव अलग-अलग हैं। इनकी शासन प्रणालियों के प्रभाव भी अलग-अलग हैं। परन्तु इन सबके बावजूद लोगों की लोकतंत्र में आस्था है।

प्रश्न-21.
क्या आप समझते हैं कि लोकतंत्र में फैसले लेने में जो देरी होती है, वह बेकार में जाती है?
उत्तर-
एक गैर-लोकतांत्रिक देश में फैसले जल्दी लेता है। परन्तु वह ऐसे फैसले लेता है। लेकिन यह सरकार ऐसे फैसले भी ले सकती है जिस लोग स्वीकार न करें और तब ऐसे फैसलों _से परेशानी हो सकती है। इसकी तुलना में लोकतांत्रिक सरकार सारी प्रक्रिया को पूरा करने में ज्यादा समय ले सकती है। लेकिन इसने पूरी प्रक्रिया को माना है इसलिए इस बात की ज्यादा संभावना है कि लोग उसके फैसलों को मानेगे और वे ज्यादा प्रभावी होंगे। इस प्रकार लोकतंत्र में फैसला लेने में जापे वक्त लगता है वह बेकार नहीं जाता। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र में फैसले किन्हीं कायदा-कानूनों से लिये जाते हैं। ऐसी व्यवस्था में शासन-कार्यों में देरी जरूर लगती है। परन्तु किन्हीं कार्यों के लिए कायदा-कानून के कारण देरी लगती है तो ऐसी देरी बेकार नहीं होती।

प्रश्न-22.
लोकतंत्रीय व्यवस्था के परीक्षण हेतु उसकी संस्थाओं व व्यवहारों पर चर्चा करें।
उत्तर-
लोकतांत्रिक व्यवस्था को उसके नतीजों के आधार पर तौलें तो हमें उसकी संस्थाओं व व्यवहारों पर नजर डालनी पड़ेगी: नियमित तथा निष्पक्ष चुनाव, प्रमुख नीतियों और नए कानूनों पर खुली सार्वजनिक पड़ेगी: नियमित तथा निष्पक्ष चुनाव, प्रमुख नीतियों और नए कानूनों पर खुली सार्वजनिक चर्चा और सरकार तथा इसके कामकाज के बारे में जानकारी पाने का नागरिकों का सूचना का अधिकार। इन पैमानों पर लोकतांत्रिक शासकों का रिकॉर्ड मिला जुला रहा है। नियमित और निष्पक्ष चुनाव कराने और खुली सार्वजनिक चर्चा के लिए उपयुक्त स्थितियाँ बनाने के मामले में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ ज्यादा सफल हुई हैं। लोकतांत्रिक सरकारें लोगों की जरूरतों और माँगों का ध्यान रखने वाली हों और कुल मिलाकर भ्रष्टाचार से मुक्त शासन दें। इन दो मामलों में भी लोकतांत्रिक सरकारों का रिकॉर्ड प्रभावशाली नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अक्सर लोगों को उनकी जरूरतों के लिए तरसाती हैं और पर ऐसे चुनाव कराने में जिसमें सबको अवसर मिले अथवा हर फैसले पर सार्वजनिक बहस कराने के मामले में उनका रिकॉर्ड ज्यादा अच्छा नहीं रहा है। नागरिकों के साथ सूचनाओं का साझा करने के मामले में भी उनका रिकॉर्ड खराब रहा है। पर इनकी तुलना जब हम गैर लोकतांत्रिक शासनों से करते हैं तो इन क्षेत्रों का भी उनका प्रदर्शन बेहतर ही ठहरता है। आबादी के एक बड़े हिस्से की माँगों की उपेक्षा करती हैं। भ्रष्टाचार के आम किस्से इस बात की गवाही देते हैं कि लोकतांत्रिक सरकारें कम भ्रष्ट हैं या लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील हैं-यह कहने का कोई आधार नहीं है।

प्रश्न-23.
यह जानते हुए भी तानाशाही में आर्थिक विकास दर अधिक अच्छी है, फिर भी तानाशाही की अपेक्षा हम लोकतंत्रीय व्यवस्था को क्यों बेहतर समझते हैं?
उत्तर-
तानाशाही और लोकतांत्रिक शासन वाले देशों के आर्थिक विकास दर में अंतर भले ज्यादा हो लेकिन इसके बावजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था का चुनाव ही बेहतर है क्योंकि इसके अन्य अनेक सकारात्मक फायदे हैं। लोकतंत्रीय व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानता कम करती है। यह व्यवस्थाएँ राजनीतिक समानता पर आधारित होती हैं। कहीं-न-कहीं ऐसी व्यवस्थाएँ आर्थिक समानता को दूर करने का प्रयास भी करती हैं। यह सद्भावनापूर्ण सामाजिक जीवन भी उपलब्ध कराती है लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आमतौर पर अपने अंदर की प्रतिद्वंद्विताओं को सँभालने की प्रक्रिया विकसित कर लेती हैं। इससे इन टकरावों के विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ बहुमत का शासन अवश्य होता है। परन्तु इसमें अल्पमत के हितों का भी ध्यान रखा जाता है। बहुमत के

लोकतंत्र के परिणाम Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर-
लोकतंत्र सरकार का उत्तरदायी, जिम्मेवार तथा वैध सरकार का गठन करता है। ऐसी व्यवस्था में शासन शासित लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा बनायी जाती है। यह निर्वाचित प्रतिनिधि अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार लोकतंत्र में उत्तरदायी सरकार का गठन होता है। लोकतंत्र में शासन करने वाले शासन कार्यों को करते हुए अपनी जिम्मेवारी को समझते हैं। शासन करने वाले अन्य विचार रखने वाले लोगों के दृष्टिकोण को भी वजन देते हैं; अल्पसंख्यकों के हितों की अनदेखी नहीं करते; किए गए निर्णयों में सम्मति बाने का प्रयास करते हैं। लोकतंत्र में बनी सरकार इस दृष्टि से वैध होती है क्योंकि इसका गठन लोगों की सहमति पर होता है तथा लोगों के कल्याण में शासन चलाया जाता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र किन परिस्थितियों में सामाजिक विविधता को सफलता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है?
उत्तर-
लोकतंत्र केवल बहुमत का शासन मात्र नहीं होता।
प्रत्येक प्रकार के लोकतंत्र में बहुसंख्यक के साथ-साथ अल्पसंख्यक भी होते हैं। लोकतंत्र में अल्पसंख्यक की अनदेखी नहीं की जाती। साथ ही लोकतंत्र में अनेक प्रकार की अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक, नस्लीय धार्मिक, भाषायी प्रकार की विविधताएँ भी होती हैं। लोकतांत्रिक सरकार इनमें विविधताओं में सामंजस्य बैठाने का प्रयास करता है तथा लिए जाने वाले निर्णयों में उनके हितों की अनदेखी नहीं करता।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों के पक्ष या विपक्ष में तर्क दें:
(क) औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार उठा सकते हैं पर गरीब देशों को आर्थिक विकास करने के लिए तानाशाही चाहिए।
(ख) लोकतंत्र अपने नागरिकों के बीच की असमानता को कम नहीं कर सकता।
(ग) गरीब देशों की सरकार को अपने ज्यादा संसाधन गरीबी को कम करने और आहार, कपड़ा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर लगाने की जगह उद्योगों और बुनियादी आर्थिक ढाँचे पर खर्च करने चाहिए।
(घ) नागरिकों के बीच आर्थिक समानता अमीर और गरीब, दोनों तरह के लोकतांत्रिक देशों में है।
(ङ) लोकतंत्र में सभी को एक वोट का अधिकार है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र में किसी का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता।
उत्तर-
(क) लोकतांत्रिक सरकार खर्चीली सरकार आवश्यक होती है। परन्तु आवश्यक नहीं कि औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक बन सकता है। गरीब देश भी लोकतंत्र को अपनाकर विकास कर सकता है।
(ख) लोकतंत्र ही अपने नागरिकों के बीच अपमानता को कम कर सकता है। समानता लोकतंत्र की नींव होती है। _ (ग) गरीब देशों को सन्तुलित विकास करने के लिए उद्योगों व सामाजिक सेवाओं दोनों पर खर्च करने की आवश्यकता है। यह और बात है कि कुछेक मद्दों पर पहले चार्च किया जाता है तथा कुछेक पर बाद में।
(घ) आर्थिक समानता तो हर प्रकार के लोकतांत्रिक देश में होती है।
(ङ) ‘एक व्यक्ति, एक मत’ व्यवस्था में सामाजिक, आर्थिक व अन्य टकराव हो सकते हैं।

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए ब्यौरों में लोकतंत्र की चुनौतियों की पहचान करें। ये स्थितियाँ किस तरह नागरिकों के गरिमापूर्ण, सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन के लिए चुनौती पेश करती हैं। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत-संस्थागत उपाय भी सुझाएँ
(i) उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद ओड़िसा में दलितों और गैर-दलितों के प्रवेश के लिए अलग-अलग दरवाजा रखने वाले एक मंदिर को एक ही दरवाजे से सबको प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी।
(ii) भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
(iii) जम्मू-कश्मीर के गंडवारा में मुठभेड़ बताकर जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा तीन नागरिकों की हत्या करने के आरोप को देखते हुए इस घटना के जाँच के आदेश दिए गए।
उत्तर-
(i) उच्च न्यायालय का निर्देश लोकतांत्रिक भी है तथा संवैधानिक भी। भारत का संविधान छुआछूत को असंवैध निक व गैर-कानूनी कहता है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए समानता को लागू किया जाना तथा भेदभाव का भेदभाव का उन्मूलन आवश्यक है।
(i) लोकतंत्र लोक-कल्याण पर जोर देता है। यदि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जैसे कि भारत में ऐसी व्यवस्था विद्यमान है किसान बड़ी संख्या में आत्म-हत्या कर रहे हैं तो यह देश व सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। सरकार को ऐसी स्थिति से उबारने के लिए गम्भीर कदम उठाने चाहिए।
(iii) लोकतंत्र में शान्ति-व्यवस्था कायम करना पुलिस का कार्य है। परन्तु इस प्रक्रिया में यदि पुलिस कोई गैर-कानूनी (भले उसका नजर में ऐसी प्रक्रिया कानूनी क्यों न हो) उठाती है तो लोगों की माँग पर जाँच-पड़ताल कराए जाने के आदेश दिए जाने चाहिए।

प्रश्न 5.
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में इनमें से कौन-सा विचार सही है-लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने सफलतापूर्वकः
(क) लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है। .
(ख) लोगों के बीच की आर्थिक असमानताएँ समाप्त कर दी हैं।
(ग) हाशिए के समूहों से कैसा व्यवहार हो, इस बारे में सारे मतभेद मिटा दिए हैं।
(घ) राजनीतिक गैर बराबरी के विचार को समाप्त कर दिया है।
उत्तर-
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ लोगों में टकराव समाप्त करके सामाजिक सद्भावना का वातावरण बनाती है। आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन की सम्भावना लोकतंत्रीय व्यवस्था में अधिक होती है। समस्त समूहों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए। लोकतंत्र विचारों को समाप्त नहीं करता, मतभेदों में मेल-मिलाप बैठाता है। (क), (ख), अपेक्षाकृत अधिक सही है।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिहाज से इनमें कोई एक चीज लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है। उसे चुनें:
(क) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (ख) व्यक्ति की गरिमा (ग) बहुसंख्यकों का शासन (घ) कानून से समक्ष समानता
उत्तर-
(ग) बहुसंख्यकों का शासन।

प्रश्न 7.
लोकतांत्रिक व्यवस्था के राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के बारे में किए गए अध्ययन बताते हैं कि
(क) लोकतंत्र और विकास साथ ही चलते हैं।
(ख) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
(ग) तानाशाही में असमानताएँ नहीं होती।
उत्तर-
(क) लोकतंत्र और विकास साथ ही चलते हैं।

प्रश्न 8.
नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़ें:
नन्नू एक दिहाड़ी मजदूर है। वह पूर्वी दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती वेलकम मजदूर कॉलोनी में रहता है। उसका राशन कार्ड गुम हो गया और जनवरी 2006 में उसने डुप्लीकेट राशन कार्ड बनाने के लिए अर्जी दी। अगले तीन महीनों तक उसने राशन विभाग के दफ्तर कई चक्कर लगाए लेकिन वहाँ तैनात किरानी और अधिकारी उसका काम करने या उसके अर्जी की स्थिति बताने की कौन कहे उसको देखने तक के लिए तैयार न थे। आखिरकार उसने सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए अपनी अर्जी की दैनिक प्रगति का ब्यौरा देने का आवेदन किया। इसके साथ ही उसने इस अर्जी पर काम करने वाले अधिकारियों के नाम और काम न करने की सूरत में उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई का ब्यौरा भी माँगा। सूचना के अधिकार वाला आवेदन देने के हफ्ते भर के अंदर खाद्य विभाग का इस इंस्पेक्टर उसके घर आया और उसने नन्नू को बताया कि तुम्हारा राशन कार्ड तैयार है और तुम दफ्तर आकर उसे ले जा सकते हो। अगले दिन जब नन्नू राशन कार्ड लेने गया तो उस इलाके के खाद्य और आपूर्ति विभाग के सबसे बड़े अधिकारी ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। इस अधिकारी ने उसे चाय की पेशकश की और कहा कि अब आपका काम हो गया है इसलिए सूचना के अधिकार वाला अपना आवेदन आप वापस ले लें।

नन्नू का उदाहरण क्या बताता है? नन्नू के इस आवेदन का अधिकारियों पर क्या असर हुआ? अपने माता-पिता से पूछिए कि अपनी समस्याओं के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास जाने का उनका अनुभव कैसा रहा है।
उत्तर-
नन्नू के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि यदि लोग अपने अधिकारों का प्रयोग करें तो वह सरकार व कर्मचारियों से अपनी समस्याओं का समाधान करा सकते हैं। सूचना के अधिकार के प्रयोग से लोग अपनी शिकायतों का निवारण कर सकते हैं। नन्नू के आवेदन पर अधिकारियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप वह सभी अपने-अपने कार्यों को करने में व्यस्त हो गए। ऐसी अनेक समस्याएँ लोगों को झेलनी पड़ती है। यदि लोग सचेत हों तो वह सरकार से अपनी समस्याओं को हल कर सकते हैं।

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