लखनवी अंदाज़
लखनवी अंदाज़
लखनवी अंदाज़ लेखक-परिचय
प्रश्न-
यशपाल का जीवन परिचय एवं उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय-यशपाल हिंदी के प्रमुख कहानीकारों में से एक हैं। इनका जन्म 3 दिसंबर, सन् 1903 को पंजाब के फीरोज़पुर छावनी में हुआ था। सन् 1921 में फीरोज़पुर जिले से मैट्रिक परीक्षा में प्रथम आकर उन्होंने अपनी कुशाग्र प्रतिभा का परिचय दिया। सन् 1921 में ही इन्होंने स्वदेशी आंदोलन में सहपाठी लाजपतराय के साथ जमकर भाग लिया। इन्हें सरकार की ओर से प्रथम आने पर छात्रवृत्ति भी मिली। परंतु न केवल इन्होंने उस छात्रवृत्ति को ठुकरा दिया, बल्कि सरकारी कॉलेज में नाम लिखवाना भी मंजूर नहीं किया। शीघ्र ही यशपाल काँग्रेस से उदासीन हो गए। इन्होंने पंजाब के राष्ट्रीय नेता लाला लाजपतराय द्वारा स्थापित लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला ले लिया। यहाँ से प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु के संपर्क में आए।
कॉलेज के विद्यार्थी जीवन में ही ये क्रांतिकारी बन गए। भगतसिंह द्वारा सार्जेंट सांडर्स को गोली मारना, दिल्ली असेम्बली पर बम फेंकना तथा लाहौर में बम फैक्टरी पकड़े जाना आदि इन सभी षड्यंत्रों में उनका भी हाथ था। बाद में समाजवादी प्रजातंत्र सेना के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद के इलाहाबाद में, अंग्रेजों की गोली का शिकार हो जाने पर ये इस सेना के कमांडर नियुक्त हुए। 23 फरवरी, 1932 को अंग्रेजों से लड़ते हुए ये गिरफ्तार हो गए। इन्हें चौदह वर्ष की सज़ा हो गई। जेल में ही इन्होंने विश्व की अनेक भाषाओं; जैसे फ्रेंच, इटालियन, बांग्ला आदि का अध्ययन किया। जेल में ही इन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियाँ लिखीं। सन 1936 में जेल में ही इनका विवाह प्रकाशवती कपूर से हुआ। इनकी तरह वे भी क्रांतिकारी दल की सदस्या थीं। उनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की ओर अधिक हुआ। उनकी कहानी ‘मक्रील’ के द्वारा उन्हें बहुत यश मिला। उनकी यह कहानी ‘भ्रमर’ नामक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी। उन्होंने हिंदी साहित्य की सेवा साहित्यकार और प्रकाशक दोनों रूपों में की। 26 दिसंबर, 1976 को उनकी मृत्यु हो गई।
2. प्रमुख रचनाएँ-यशपाल ने अनेक रचनाओं का निर्माण किया, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं- ..
- कहानी संग्रह-‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुनिया’, ‘तर्क का तूफान’, ‘ज्ञानदान’, ‘अभिशप्त’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘धर्म-युद्ध’, ‘उत्तराधिकारी’, ‘चित्र का शीर्षक’, ‘तुमने क्यों कहा था कि मैं सुंदर हूँ’, ‘उत्तमी की माँ’, ‘ओ भैरवी’, ‘सच बोलने की भूल’, ‘खच्चर और आदमी’, ‘भूख के तीन दिन’, ‘लैंप शेड’ ।
- उपन्यास ‘दादा कॉमरेड’, ‘देशद्रोही’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कॉमरेड’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘अमिता’, ‘झूठा सच’, ‘बारह घंटे’, ‘अप्सरा का श्राप’, ‘क्यों फँसे’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’।
- व्यंग्य लेख-चक्कर क्लब’ ।
- संस्मरण-‘सिंहावलोकन’।
- विचारात्मक निबंध ‘मार्क्सवाद’, ‘न्याय का संघर्ष’, ‘गाँधीवाद की शव परीक्षा’, ‘बात-बात में बात’, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी’, ‘रामराज्य की कथा’, ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’।
3. भाषा-शैली-भाषा के बारे में यशपाल जी का बड़ा ही उदार दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने उर्दू, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों से कभी परहेज़ नहीं किया। ‘लखनवी अंदाज’ कहानी में जहाँ एक ओर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, वहाँ दूसरी ओर उर्दू एवं सामान्य बोलचाल के शब्दों का भी प्रयोग है। इस कहानी की भाषा स्थान, काल तथा चरित्र की प्रकृति के अनुसार गठित हुई है। इसका कारण यह है कि उन्हें न तो संस्कृत के शब्दों से अधिक प्रेम था और न ही अंग्रेज़ी, उर्दू शब्दों से परहेज़। वे भाषा को अभिव्यक्ति का साधन मानते थे। अतः उन्होंने इस कहानी में भाषा का सरल, सहज एवं स्वाभाविक रूप में प्रयोग किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी सफल प्रयोग किया है।
कुल मिलाकर लेखक ने सीधी-सादी और सामान्य हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी में उर्दू मिश्रित हिंदी का प्रयोग किया गया है।
लखनवी अंदाज़ कहानी का सार
प्रश्न-
लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक कहानी एक व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक ने पतनशील सामंती वर्ग पर व्यंग्य किया है। जो. वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन-शैली का आदी है। आज के युग में भी समाज पर पलने वाली संस्कृति के लोगों को देखा जा सकता है। कहानी का सार इस प्रकार है-
लेखक को पास के स्टेशन तक ही यात्रा करनी थी। यद्यपि सेकंड क्लास में पैसे अधिक लगते थे। फिर भी सोचा कि नई कहानी के बारे में सोचने का और खिड़की से बाहर दृश्य देखने का अवसर भी मिल जाएगा। लेखक यही सोचकर सेकंड क्लास का टिकट लेकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। वहाँ पहले से ही एक सज्जन बैठे थे। उनका पहनावा लखनवी नवाबों जैसा था। वे सीट पर पालथी मारकर बैठे हुए थे। उनके सामने तौलिए पर दो ताज़ा-चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक के आने से उन्हें कुछ विघ्न अनुभव हुआ, किंतु लेखक ने इसकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया।
लेखक नवाब के विषय में अनुमान लगाने लगा कि उसे लेखक का आना अच्छा क्यों नहीं लगा होगा। अचानक नवाब ने लेखक से खीरे खाने के लिए पूछा। किंतु लेखक ने इंकार कर दिया। नवाब ने दो खीरों को धोया, तौलिए से साफ किया। खीरों को चाकू से सिरों से काटकर उनके झाग निकाले और बहुत सलीके के साथ छीलकर काटा और उन पर नमक-मिर्च छिड़का। नवाब साहब का मुख देखकर ऐसा लगता था कि खीरे की फाँकें देखकर उनके मुँह में पानी आ रहा है। खीरे की सजावट को देखकर लेखक की खीरे खाने की इच्छा हो रही थी, किंतु लेखक एक बार इंकार कर चुका था, इसलिए अब नवाब द्वारा पुनः पूछे जाने पर आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु इंकार करना पड़ा।
नवाब साहब भी खीरे की फाँकों को बड़े ध्यान से देख रहे थे। उन्होंने खीरे की एक-एक फाँक उठाई, उन्हें सूंघा और खिड़की के बाहर फेंक दिया। बाद में नवाब ने लेखक की ओर देखा ऐसा लग रहा था जैसे कह रहे हों कि खानदानी रईसों का यह भी खाने का एक अनोखा ढंग है।
लेखक मन-ही-मन सोच रहा था कि खाने के इस ढंग ने क्या पेट की भूख को शांत किया होगा? इतने में नवाब साहब जोर से डकार लेते हैं। अंत में नवाब साहब बोले कि खीरा खाने में बहुत अच्छा लगता है, किंतु अपच होने के कारण मेदे पर भारी पड़ता है। लेखक ने सोचा कि यदि नवाब बिना खीरा खाए डकार ले सकता है तो बिना घटना, पात्र और विचार के नई कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती।
Hindi लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers
विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
नवाब साहब ने लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर कोई उत्साह क्यों नहीं दिखाया?
उत्तर-
नवाब साहब पर अभी तक सामंती प्रभाव था। वे अपने आपको विशिष्ट व्यक्ति समझते थे। यदि वे लेखक के गाड़ी में चढ़ने पर उत्साह दिखाते तो उनका सम्मान कम हो जाता, उनकी शान-ए-शौकत में बट्टा लग सकता था। उनको यह सहन नहीं था कि शहर का कोई सफेदपोश उनको मँझले दर्जे में सफर करते देखे।
प्रश्न 2.
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन कैसा लगा?
उत्तर-
लेखक को नवाब साहब का अचानक भाव परिवर्तन अच्छा नहीं लगा। वह शराफत का भ्रम बनाए रखने के लिए ही लेखक को खीरा खाने के लिए कह रहे थे। उनके इस व्यवहार में दिखावा ही झलक रहा था।
प्रश्न 3.
लेखक और नवाब दोनों ने सेकंड क्लास में यात्रा क्यों की? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
पाठ में इस विषय में स्पष्ट रूप में कुछ नहीं कहा गया कि नवाब ने ऐसा क्यों किया। अनुमान लगाया जा सकता है कि नवाबों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं रह गई थी। अब नवाब कहने मात्र के रह गए थे। इसलिए पैसे बचाने के लिए उसने सेकंड क्लास के डिब्बे में यात्रा की होगी।
लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने नई कहानी के संबंध में कुछ चिंतन-मनन करने या सोचने के लिए तथा खिड़की में से कुछ प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए सेकंड क्लास की यात्रा थी। दोनों का विश्वास था कि डिब्बा खाली होगा।
प्रश्न 4.
नवाब ने अपनी नवाबी का परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर-
नवाब ने खीरों को पहले पानी से धोया फिर उन्हें तौलिए से पोंछा फिर जेब से चाकू निकालकर उनके सिरे काटे और छीलकर उनकी फाँकें काट-काटकर तौलिए पर रखीं और उन पर नमक-मिर्च का मिश्रण छिड़का। फिर लेखक को भी खीरे खाने का निमंत्रण दिया। अन्त में एक-एक फाँक को खाने की अपेक्षा सूंघ-सूंघ कर खिड़की से बाहर फेंकने लगा। उसने ऐसा दिखावा किया कि उसे सुगंध से ही बहुत तृप्ति मिली थी।
प्रश्न 5.
लेखक को नवाब साहब का न बोलना और बोलना दोनों ही बुरे लगे, क्यों?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो नवाब अपनी सीट पर बैठा रहा। उसने लेखक की ओर देखना भी गवारा न किया। लेखक को नवाब साहब की यह अकड़ बुरी लगी। इसी प्रकार नवाब ने जब लेखक को खीरे खाने का निमंत्रण दिया तो लेखक को बुरा लगा क्योंकि उसे ऐसा अनुभव हुआ कि वह ऐसा करके अपना प्रभाव उस पर जमा रहा है। वह नहीं चाहता कि नवाब उस पर अपनी झूठी शान-ए-शौकत का प्रभाव छोड़े। लेखक को ऐसा नवाबों के प्रति अपनी पूर्व-धारणा के कारण भी लगा होगा।
विचार/संदेश संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 6.
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह पाठ एक महत्त्वपूर्ण संदेश की अभिव्यक्ति करता है। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने बताया है कि हर रचना के पीछे कोई-न-कोई विचार या चिंतन अवश्य रहता है। उस विचार या चिंतन को रचना में प्रस्तुत करने के लिए लेखक को एक निश्चित प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ता है। इस रचना का प्रमुख संदेश दिखावा पसंद लोगों की जीवन शैली को दिखाना है। लेखक को रेल के डिब्बे में एक नवाब मिलता है। वह खीरे खाने की तैयारी में था, किंतु डिब्बे में लेखक के आ जाने से लेखक के सामने खीरे खाने में उसे संकोच होता है। इसलिए वह खीरे खाने की तैयारी विशेष ढंग से करता है किंतु उन्हें खाने की अपेक्षा सँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है तथा तृप्ति अनुभव करने का दिखावा करता है। अतः नवाब के इस व्यवहार से पता चलता है कि जो लोग जिस कार्य को एकांत में छुपकर करते हैं, उसे दूसरों के सामने करने में अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। यहाँ उनके चोरी आहार की तुष्टि होती है। इसमें वास्तविकता कुछ भी नहीं है, मात्र दिखावा है।
प्रश्न 7.
लेखक ने नवाब की असुविधा व संकोच को कैसे अनुभव किया?
उत्तर-
लेखक रेल के जिस डिब्बे में चढ़ा, वहाँ पहले से ही एक सज्जन पालथी मारे बैठा था। उनके डिब्बे में प्रवेश करने पर पहले से ही उपस्थित व्यक्ति ने लेखक को दुआ-सलाम कुछ भी नहीं कहा, अपितु वह उससे नज़रें बचाने का प्रयास करता रहा। लेखक ने उसकी इसी असुविधा और संकोच से अनुमान लगाया कि वह नहीं चाहता था कि कोई उसे वहाँ बैठे हुए देखे कि नवाब होते हुए सेकंड क्लास में यात्रा कर रहा है। उसके सामने रखे हुए खीरों से तो उनका संकोच और भी बढ़ गया था जिसे सही देखा जा सकता था। उन खीरों को लेखक के सामने खाने में भी उसे संकोच हो रहा था। सेकंड क्लास में यात्रा करना और खीरे खाना उसकी असुविधा और संकोच का कारण बन रहे थे जिसे लेखक ने सहज ही अनुभव कर लिया था।
प्रश्न 8.
‘लखनवी अंदाज’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो जीवन की शान-बान का दिखावा करते हैं। वे जीवन की सहजता व स्वाभाविकता को स्वीकार करने से इन्कार करते हैं। लेखक ने दिखाया है कि खीरा एक साधारण वस्तु है तथा आम लोग उसका सेवन करते हैं किन्तु वह लखनवी नवाब उसे खाने में अपनी तौहीन समझता है। उसे सूंघकर चलती गाड़ी से नीचे फैंक देता है। वे इसी में अपनी महानता समझते हैं। ऐसे लोग सेकंड क्लास में यात्रा करना भी अपना बड़प्पन समझते हैं। इस प्रकार लेखक ने तथाकथित नवाबों के दिखावटी जीवन पर करारा व्यंग्य किया है।
Hindi लखनवी अंदाज़ Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर-
लेखक ने जब रेल के डिब्बे में प्रवेश किया तो उन्होंने देखा कि वहाँ पहले से एक सज्जन विराजमान हैं। वे सीट पर पालथी मारे बैठे हुए थे। उनके सामने एक तौलिए पर खीरे रखे हुए थे। उन्होंने लेखक की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। उसको देखते ही उनके चेहरे पर ऐसे भाव व्यक्त हुए कि जैसे लेखक का वहाँ आना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्हें ऐसा लग रहा था कि जैसे लेखक ने वहाँ आकर उनके चिंतन में बाधा डाल दी हो। वे कुछ परेशान-से दिखाई दिए। अपनी इसी दशा में वे कभी खिड़की के बाहर देखते तो कभी सामने रखे खीरों की ओर। उनकी असुविधा और असंतोष वाली स्थिति से ही लेखक ने अनुभव कर लिया था, कि वे उससे बातचीत करने को उत्सुक नहीं थे।
प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, ‘नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर-
नवाबों की दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की प्रवृत्ति होती है। उसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े, वे करते हैं। इसलिए वे सामान्य समाज के तौर-तरीकों को नकारते हैं तथा नए-नए तरीके ढूँढते हैं जिनसे अपनी अमीरी को दर्शाया जा सके। नवाब साहब अकेले में बैठकर खीरे जैसी साधारण वस्तु को खाने की तैयारी में थे। किंतु उसी वक्त लेखक वहाँ आ टपका। उसे देखकर उनके मन में नवाबी स्वभाव उभर आया और उन्हें अपनी नवाबगिरी दिखाने का अवसर मिल गया। उन्होंने दुनिया के तौर-तरीकों से हटकर खीरे काटे, नमक-मिर्च लगाया, उन्हें सूंघा और खिड़की में से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा केवल सामने वाले पर अपने नवाबी स्वभाव का रौब जमाने के लिए किया।
प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
यशपाल का यह विचार अपने-आप में अधूरा-सा प्रतीत होता है। इसलिए हम इससे पूर्णतः सहमत नहीं हैं कि बिना विचारों, घटनाओं या पात्रों के कहानी लिखना संभव है। कहानी में कोई-न-कोई विचार, घटना अथवा पात्र अवश्य ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विद्यमान रहता है। उदाहरणार्थ पठित कहानी ‘लखनवी अंदाज़’ को लिया जा सकता है। इस कहानी के लिखने के पीछे लेखक का प्रमुख उद्देश्य लखनऊ के पतनशील नवाबी वर्ग पर करारा व्यंग्य करना है। इसी विचार पर कहानी का पूरा ताना-बाना बुना गया है। इस कहानी में घटनाओं की अपेक्षा विचारों की प्रधानता है। घटना के रूप में रेलयात्रा, यात्री के रूप लखनवी नवाबों जैसा दिखने वाला सज्जन और उनके पतन को दिखाना है। अतः यह कहना उचित नहीं कि बिना विचार, घटना व पात्रों के कहानी बन सकती है।
प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर-
प्रस्तुत पाठ में आदि से अंत तक नवाब की अकड़ या नवाब होने के अहंकार का ही उल्लेख किया गया है। वह अपने सामने की सीट पर बैठे हुए सहयात्री से बोलना भी पसंद नहीं करता। उसके सामने खीरा खाना अपनी तौहीन समझता है। वह खीरे खाने की अपेक्षा उन्हें सूंघकर चलती हुई गाड़ी की खिड़की से बाहर फेंक देता है। वह खीरों की सुगंध से ही स्वयं के संतुष्ट होने का नाटक करता है, क्योंकि खाने की वस्तु को खाकर ही संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, सूंघकर नहीं। अतः इस पाठ का शीर्षक ‘नवाबी तहज़ीब’ हो सकता है।
रचना और अभिव्यक्ति-
प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
नवाब साहब ने अचानक घूमकर लेखक को आदाब-अर्ज़ किया। फिर उन्होंने तौलिए पर रखे दो ताज़े खीरे उठाए। उनको धोया, पोंछा। फिर उन्होंने लेखक से कहा, क्या आप खीरा खाना पसंद करेंगे। लेखक के मना करने पर वे खीरे को छीलकर और काटकर तौलिए पर रखने लगे। बड़े इत्मीनान से खीरे को काट चुकने के बाद उन्होंने उन कटे हुए खीरों पर नमक और मिर्च का पाउडर छिड़का। फिर बड़े इत्मीनान से एक-फाँक को उठाकर सूंघा एवं उसके स्वाद के आनंद को अनुभव किया। फिर एक-एक फाँक को वे सूंघते जाते और उसे खिड़की से बाहर फेंकते जाते।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं? उत्तर-यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।
प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
निश्चित रूप से सनक का सकारात्मक रूप हो सकता है। जितने भी बड़े-बड़े कार्य या अनुसंधान हुए हैं, वे सनकी व्यक्तियों द्वारा ही किए गए हैं। हम कुछ वैज्ञानिकों के उदाहरण ले सकते हैं। वे सनक के कारण ही रात-दिन अपने कार्य में इतने डूबे रहते हैं कि उन्हें अपने आस-पास की गतिविधियों का भी बोध नहीं रहता है। ऐसे लोग बड़े-से-बड़े जोखिम को उठाने से भी नहीं डरते। विश्व में जितनी भी बड़ी-बड़ी खोजें हुई हैं, वे सनकी वैज्ञानिकों की देन हैं। अतः स्पष्ट है कि सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।
भाषा-अध्ययन-
प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर-
(क) बैठे थे – अकर्मक।
(ख) दिखाया – सकर्मक।
(ग) बैठे- अकर्मक।
कल्पना करना – अकर्मक।
है – अकर्मक।
(घ) काटना – सकर्मक।
खरीदे होंगे – सकर्मक।
(ङ) काटा – सकर्मक।
गोदकर – सकर्मक।
निकाला – सकर्मक।
(च) देखा – अकर्मक (प्रयोग)।
(छ) लेट गए – अकर्मक।
थककर – अकर्मक।
(ज) निकाला – सकर्मक।
पाठेतर सक्रियता
‘किबला शौक फरमाएँ,’ ‘आदाब-अर्ज…शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।
‘खीरा… मेदे पर बोझ डाल देता है। क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच-अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।
खाद्य पदार्थों के संबंध में बहुत-सी मान्यताएँ हैं जो आपके क्षेत्र में प्रचलित होंगी, उनके बारे में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।
पतनशील सामंती वर्ग का चित्रण प्रेमचंद ने अपनी एक प्रसिद्ध कहानी’ ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में किया था और फिर बाद में सत्यजीत राय ने इस पर इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी। यह कहानी ढूँढकर पढ़िए और संभव हो तो फिल्म भी देखिए।
उत्तर-
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।