राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
महात्मा गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, अशोक, नानक, नामदेव, कबीर, शंकराचार्य आदि महान् त्यागशील और आध्यात्मिक महापुरुषों से भारतभूमि सहित सारा संसार लाभान्वित होता रहा है। इन सन्तों-महापुरुषों के जन्मस्थली भारतभूमि पर आधुनिक युग की मानवता की पीड़ा भरी आँसुओं को पोंछने और मधुर संदेश दृष्टि प्रदान करने वाले महात्मा गाँधीजी का नाम सर्वथा सम्माननीय और प्रतिष्ठित है। आपने हिंसा और पशुबल को परास्त करने के लिए जो अहिंसात्मक शस्त्र प्रदान किया, वह सचमुच में आज ही क्या युग-युग तक अक्षुण्ण और अमिट रहेगा। आश्चर्य है कि इसी शस्त्र से कभी भी सूरज न डूबने वाला साम्राज्य भी नत-मस्तक हो 20 गया।
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 ई. को गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिलान्तर्गत पोरबन्दर में हुआ था । आपकी माताश्री पुतलीबाई और पिताश्री कर्मचन्द्र गाँधी जी थे । आपके बचपन का नाम मोहनदास था। आपके पिताश्री राजकोट रियासत के दीवान थे। राजकोट में ही रहकर गाँधीजी ने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपके बालक मन पर माता के हिन्दू-आदर्श की छाप और पिताश्री के सिद्धांतवादी विचारों की गम्भीर छाप पड़ चुकी थी। इसीलिए उच्च शिक्षा को प्राप्त करने के लिए जब आप इंग्लैण्ड जाने लगे, तब माताश्री को यह विश्वास दिलाया था कि वे मांस- शराब को नहीं स्पर्श करेंगे और यही हुआ भी। आपने इंग्लैण्ड में लगभग तीन वर्षों में वकालत की शिक्षा पूरी कर ली। वैरिस्ट्री की शिक्षा प्राप्त करके श्री गाँधी पुनः स्वदेश लौट आए।
स्वदेश आकर गाँधी जी ने बम्बई में वकालत शुरू कर दी। एक मुकदमे की पैरवी करने के लिए आपको दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। मार्ग में गाँधी जी के साथ अंग्रेजों ने दुर्व्यवहार किया। दक्षिणी अफ्रीका में इन्होंने भारतीयों के प्रति गोरे शासकों की अमानवता और हृदयहीनता देखी । इनका मन क्षुब्ध हो उठा। ये अंग्रेजों के इस अनुचित और हृदय पर चोट पहुँचाने वाले व्यवहार से क्रोधित हो उठे । सन् 1906 ई. में जब ट्रांसवाल काला कानून पारित हुआ। तब गाँधी जी ने इसका विरोध किया। इसके लिए गाँधी जी ने सत्याग्रह आन्दोलन को जारी किया और अनेक पीड़ित तथा शोषित भारतीयों को इससे प्रभावित करते हुए उनकी स्वतंत्रता की चेतना को जगाया। इसी सिलसिले में गाँधी जी ने कांग्रेस की संस्थापना भी की । लगातार दो वर्षों की सफलता के बाद गाँधी जी भारत लौट आए।
सन् 1915 ई. में जब श्री गाँधी दक्षिणी अफ्रीका से स्वदेश लौट आए, तो यहाँ भी इन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों और कठोरता का गहरा अध्ययन करके भारतीयों की स्वतंत्रता के प्रसास आरम्भ कर दिए। गाँधी जी ने भारत की समस्त जनता को स्वतंत्रता के लिए आह्वान किया। अब वे अंग्रेज सरकार से टक्कर लेने को पूर्ण रूप से तैयार हो गए। गाँधी ने सन् 1919 में असहयोग आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए देशव्यापी स्तर पर स्वतंत्रता प्राप्ति का बिगुल बजा दिया। सन् 1918 ई. में अंग्रेज सरकार को अपनी नीतियों में सुधार करना पड़ा, लेकिन श्री गाँधी इससे संतुष्ट नहीं हुए। फलतः श्री गाँधी जी ने पूर्ण स्वतंत्रता के प्रयास में जी-जान के साथ भाग-दौड़ शुरू कर दी। इस समय देश के हरेक कोने से एक-से-एक बढ़कर देशभक्तों ने जन्मभूमि भारत की गुलामी की बेड़ी को तोड़ने को कमर कसकर महात्मा गाँधी का साथ देना शुरू कर दिया था। इनमें बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, सुभाषचन्द्र बोस आदि मुख्य रूप से थे । इसी समय सन् 1929 ई. में अंग्रेजों से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की गई। कोई प्रभाव न पड़ने के कारण महान् नेताओं सहित महात्मा गाँधी ने नमक कानून तोड़ डाला। महात्मा गाँधी सहित अनेक व्यक्तियों को जेल जाना पड़ा। इससे कुछ सहमी अंग्रेज सत्ता को समझौता करना पड़ा था। सन् 1931 ई. में वायसराय ने लंदन में गोलमेज में काँग्रेस से बातचीत की, लेकिन कोई अपेक्षित परिणाम न निकला ।
सन् 1934 ई. में अंग्रेजों ने अपनी मूल नीतियों में कुछ सुधार किया और इसकी घोषणा भी की। फिर भी अंग्रेजों का जुल्म भारतीयों पर वैसे ही चलता रहा । इससे क्षुब्ध होकर महात्मा गाँधी ने सन् 1942 ई. में ‘भारत छोड़ो’ का अभूतपूर्व नारा लगाया। चारों ओर से आजादी का स्वर फूट पड़ा। समस्त वातावरण केवल आजादी की ध्वनि करता था। अंग्रेज सरकार के पाँव उखड़ने लगे। अनेक महान् नेताओं सहित सभी कर्मठ और देश की आन पर मिटने वाले राष्ट्र-भक्तों से जेल भर गए । इतनी भारी संख्या में कभी कोई आन्दोलन नहीं हुआ था । अंग्रेज सरकार ने जब अपने शासन के दिन को लदते हुए देखा, तो अंततः 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत को पूर्ण स्वतंत्रता सौंप दी ।
स्वतंत्रता के बाद भारत चंद समय तक स्वस्थ रहा । फिर समय के कुछ देर बाद इसमें साम्प्रदायिकता का ऐसा रोग लग गया कि इसकी शल्य चिकित्सा करने पर भारत और पाकिस्तान दो विभिन्न अंग सामने आ गए। महात्मा गाँधी का अन्तःकरण रो उठा । वह अब यथाशीघ्र मृत्यु की गोद में जाना चाहते थे। महात्मा जी की इस छटपटाहट को समय ने स्वीकार कर लिया। वे 30 जनवरी सन् 1948 ई. को एक अविवेकी भारतीय नाथूराम गोडसे की गोलियों के शिकार बनकर चिरनिद्रा की गोद में चले गए।
महात्मा गाँधी, नश्वर शरीर से नहीं, अपितु यशस्वी शरीर से अपने अहिंसावादी सिद्धातों, मानवतावादी दृष्टिकोणों और समतावादी विचारों से आज भी हमें गुमराह जीवन जीने से बचाकर परोपकार के पथ पर चलने की प्रेरणा दे रहे हैं। आवश्यकता है कि हम उनकी उपलब्धियों को ठीक प्रकार से समझते हुए उनकी उपयोगिता से जीवन को सार्थक बनाएं ।
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