राज्य एवं राष्ट्र की आय
राज्य एवं राष्ट्र की आय
Economics लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आय का गरीबी के साथ संबंध स्थापित करें।
उत्तर ⇒ आय का गरीबी के साथ सीधा सम्बन्ध है। यदि आय कम होगी तब गरीबी उतनी ही अधिक होगी। जीवन स्तर निम्न होगा और पूँजी का निर्माण भी नहीं हो पाएगा। इसके साथ ही गरीबी-ही-गरीबी को जन्म देगी। बिहार राज्य इसका उदाहरण है जिसमें प्रति व्यक्ति आय कम होने से गरीबी सर्वाधिक है।
प्रश्न 2. प्रति-व्यक्ति आय क्या है ?
उत्तर ⇒ राष्ट्रीय आय में देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रति-व्यक्ति आय कहते हैं।
इसका आकलन निम्न प्रकार से की जाती है –
प्रति-व्यक्ति आय = राष्ट्रीय आय / देश की कुल जनसंख्या
प्रश्न 3. राष्ट्रीय आय की गणना में होनेवाली कठिनाईयों का वर्णन करें।
उत्तर ⇒ राष्ट्रीय आय के आधार पर ही विश्व के विभिन्न देशों को हम विकसित, विकासशील और अर्धविकसित राष्ट्रों की श्रेणी में मूल्यांकन करते हैं। यद्यपि राष्ट्रीय आय राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को मापने का सर्वमान्य माप है। फिर भी हमें व्यवहारिक रूप में राष्ट्रीय आय की गणना करने में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है जिसे हम निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं-
(i) आंकड़ों को एकत्र करने में कठिनाई
(ii) दोहरी गणना की संभावना
(iii) मूल्य के मापने में कठिनाई
प्रश्न 4. सकल घरेलू उत्पाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒ एक देश की सीमा के अन्दर किसी भी दी गई समयावधि प्रायः एक वर्ष में उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल बाजार या मौद्रिक मूल्य को उस देश का सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
प्रश्न 5. G.D.P. के विस्तारित रूप लिखें।
उत्तर ⇒ Gross Domestic Product.
प्रश्न 6. N.S.S.O. के विस्तारित रूप लिखें।
उत्तर ⇒ National Sample Survey Organisation (राष्ट्रीय सेंपल सर्व संगठन)
प्रश्न 7.आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒ शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करने के फलस्वरूप किसी व्यक्ति को जो पारिश्रमिक मिलता है, वह पारिश्रमिक उस व्यक्ति का आय कहलाता है। व्यक्ति को प्राप्त होने वाला मौद्रिक रूप अथवा वस्तुओं के रूप में भी हो सकता है।
प्रश्न 8. G.N.P. के विस्तारित रूप लिखें।
उत्तर ⇒ Gross National Product.
प्रश्न 9. भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किस संस्था द्वारा होती है ?
उत्तर ⇒ देश के आय के मानक को निर्धारित करने वाली संस्था जिसे डायरेक्टोरेट ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड स्टेटिस्टिक्स (Directorate of Economics and Statistic) कहते हैं।
प्रश्न 10. भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की गणना कब और किनके द्वारा की गई थी ?
उत्तर ⇒ भारत में राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किए गये थे। भारत में सबसे पहले सन् 1868 में दादा भाई नौरोजी ने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया था। उन्होंने अपनी पुस्तक Poverty and Un-British Rule in India में प्रति-व्यक्ति वार्षिक आय 20 रुपये बताया था।
प्रश्न 11. भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की गणना कब और किसके द्वारा की गई थी? योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में वृद्धि का अनुमान बताएँ।
उत्तर ⇒ स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भारत में राष्ट्रीय आय की गणना करने का कोई सर्वमान्य तरीका नहीं था। संभवतः, सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में अपनी पुस्तक में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत 1951-52 से भारत में नियमित रूप से राष्ट्रीय आय और इससे संबंधित तथ्यों का अनुमान लगाया जाता है। योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में सामान्यतया वृद्धि हुई है। 1950-51 से 2002-03 के बीच राष्ट्रीय आय एवं कुल राष्ट्रीय उत्पादन 8 गुना से भी अधिक बढ़ गया है। इस अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास दर औसतन 4.2% रही है। वर्तमान मूल्यों पर 2006-07 में भारत की कुल आय 33,25,817 करोड़ रुपये होने का अनुमान था।
प्रश्न 12.शद्ध उत्पत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर ⇒ राष्ट्रीय आय वास्तव में देश के अंदर पूरे वर्ष भर में उत्पादित शुद्ध उत्पत्ति को कहा जाता है।
प्रश्न 13. राष्ट्रीय आर्थिक विकास कब होता है ?
उत्तर ⇒ राष्ट्रीय आय के सूचकांक में वृद्धि होती है तो इससे लोगों के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
प्रश्न 14. व्यवसायिक गणना विधि क्या है ?
उत्तर ⇒ जब व्यवसायिक संरचना के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है, उसे व्यवसायिक गणना विधि कहते हैं।
प्रश्न 15. भारत में आय के आधार पर कौन-कौन से राज्य उच्च एवं निम्न श्रेणी पर रखे गये हैं ?
उत्तर ⇒ भारत के राज्यों में गोवा,दिल्ली तथा हरियाणा आय के आधार पर समृद्ध माना गया है तथा बिहार, उड़ीसा और मध्यप्रदेश विकास की निचली श्रेणी में है।
प्रश्न 16. वस्तु के मूल्य में विभिन्नता क्यों होती है ?
उत्तर ⇒ प्रायः एक ही वस्तु को कई व्यापारिक स्थितियों से गुजरने के कारण उस वस्तु के मूल्य में विभिन्नता आती है क्योंकि खर्च और विक्रेताओं की मुनाफे की राशि जुट जाती है।
प्रश्न 17. कुल राष्ट्रीय उत्पादन का पता कैसे लगाया जाता है ?
उत्तर ⇒ सकल घरेलू उत्पादन में देशवासियों द्वारा विदेशों में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को जोड़ दिया जाता है तथा विदेशियों द्वारा देश में उत्पादित वस्तुओं के मूल्य को घटा दिया जाता है।
प्रश्न 18. राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन क्यों जरूरी है ?
उत्तर ⇒ राष्ट्रीय आय के आंकड़ों के संग्रहण के क्रम में यह आवश्यक होता है कि पूरे राष्ट्र के लिए एक ही मापदंड अपनाया जाए जिससे राष्ट्र की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन किया जा सके।
प्रश्न 19. केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन के क्या कार्य हैं ?
उत्तर ⇒ भारत में सांख्यिकी विभाग के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन राष्ट्रीय आय के आकलन के लिए उत्तरदायी है। इस कार्य में राष्ट्रीय प्रतिवर्ष सर्वेक्षण संगठन, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन का सहायता करता है।
प्रश्न 20. अर्थशास्त्र में वितरण की धारणा से क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒ अर्थशास्त्र में वितरण की धारणा राष्ट्रीय आय का आकलन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है जिसे हम उत्पादन के विभिन्न साधनों की भागीदारी में हिस्सा लेने को कहते हैं। वास्तव में विभिन्न साधनों के सहयोग से राष्ट्रीय आय की प्राप्ति होती है और राष्ट्रीय आय को पुनः उन साधनों के बीच वितरित कर दिया जाता है।
प्रश्न 21. समाज का आर्थिक विकास कब संभव नहीं हो पाता ?
उत्तर ⇒ जिस अनुपात में राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो रही हो, उसी अनुपात या उससे अधिक अनुपात में अगर जनसंख्या में वृद्धि हो रही हो तो समाज का आर्थिक विकास नहीं बढ़ सकता। फिर भी इन परिस्थितियों के बावजूद यदि राष्ट्रीय आय में वद्धि होती है, तो लोगों के आर्थिक विकास में वृद्धि साधारण तौर पर देखी जा सकती है।
प्रश्न 22. प्रतिव्यक्ति आय क्या है? प्रतिव्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में क्या संबंध है ?
उत्तर ⇒ प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के नागरिकों की औसत आय है। कल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है, उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं। इस प्रकार, प्रतिव्यक्ति आय की धारणा राष्ट्रीय आय से जडी हई हैं।राष्टीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है। लेकिन, केवल राष्टीय आय में वृद्धि होने से ही प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि नहीं होगी। यदि आय में होनेवाली वद्धि के साथ ही किसी देश की जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है तो प्रतिव्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी और लोगों के जीवन-स्तर में कोई सधार नहीं होगा। इसी प्रकार, यदि राष्ट्रीय आय की तुलना में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है तो प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी।
Economics ( अर्थशास्त्र ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. राष्ट्रीय आय की परिभाषा दें। उसकी गणना की प्रमुख विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-किसी देश की पूँजी एवं श्रम का उसके प्राकृतिक साधना करने से प्रतिवर्ष वस्तओं का एक शद्ध समह उत्पन्न होता है जिसम अभौतिक पदार्थ एवं सभी प्रकार की सेवाएँ सम्मिलित रहती है। इस स जाति को देश की वास्तविक वार्षिक आय या वार्षिक राजस्व अथवा राष्ट्रीय आय कहते हैं।
राष्ट्रीय आय की माप के निम्न तरीके हैं-
(i) उत्पत्ति गणना पद्धति- इस पद्धति के अनुसार किसी वर्ष में कृषि, उद्योग तथा उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में जो उत्पादन होता है उसकी गणना की जाती है। इस कल उत्पत्ति में से अचल पँजी का ह्रास तथा चल पूजा पातस्थापन को आय तथा कर एवं बीमा आदि का व्यय निकालकर जा शप है उसे शद्ध उत्पत्ति कहते हैं। यह शद्ध उत्पत्ति राष्ट्रीय आय होती है। इस पर के विभिन्न साधनों के बीच वितरित किया जाता है।
(ii) आय गणना पद्धति- राष्टीय आय को मापने की आय गणना पद्धात वह विधि है जो एक लेखा वर्ष में उत्पादन के प्राथमिक साधनों को उनका उत्पादक सेवाओं के बदले किए गए भगतानों की दष्टि से राष्ट्रीय आय की माप करता है।
(iii) व्यय विधि- व्यय विधि वह विधि है जिसके द्वारा एक लेखा वर्ष में बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद पर किए गए अंतिम व्यय को मापा जाता है। यह अंतिम व्यय बाजार कीमत पर सकल घरेल उत्पाद के बराबर लेता है।
(iv) व्यावसायिक गणना पद्धति- इस प्रणाली में लोगों की आय की गणना इनके पेशें के अनुसार की जाती है। जहाँ आय के पर्याप्त आँकड़े नहीं प्राप्त होते वहाँ इसी पद्धति को काम में लाया जाता है। पहले विभिन्न प्रकार के व्यवसाय से लोगों को प्राप्त आय की गणना की जाती है और तब इनका कुल योग राष्ट्रीय आय को सूचित करता है। जैसे—कृषि, उद्योग, यातायात तथा अन्य व्यवसाय।
(v) सामाजिक लेखांकन पद्धति- प्रो० रिचर्ड ने राष्ट्रीय आय की माप करने के लिए इस पद्धति का प्रयोग किया था। सामाजिक लेखांकन आर्थिक नीति का एक नियोजक यंत्र है। यह राष्ट्र की गतिविधियों पर विशेष ध्यान रखता है तथा देश की आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायता करता है।
2. किसी अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय का विकास में योगदान की चर्चा करें।
उत्तर-किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये दोनों ही हमारे आर्थिक जीवन, रहन-सहन के स्तर तथा विकास को प्रभावित करते हैं।
राष्ट्रीय आय– आर्थिक विकास का राष्ट्रीय आय से घनिष्ठ संबंध है। किसी देश के आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय आय की वृद्धि आवश्यक शर्त है। उपभोग की वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ने से लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि उपभोग तथा विनियोग की वस्तुओं में होने वाली वृद्धि का परिचायक है। इससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया तीव्र होती है। विकास का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वद्धि द्वारा नागरिकों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना। सामान्यतः राष्ट्रीय आय में वद्धि होने पर देशवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ती है। भारत में प्रतिव्यक्ति आय का वितरण बहुत ही विषम है एवं इसका एक बड़ा हिस्सा थोडे से औद्योगिक घराने के हाथों में केंद्रित है। अतः देश के सामान्य नागरिकों की औसत आय में वृद्धि एवं जीवन स्तर में सुधार हेतु राष्ट्रीय आय का समुचित वितरण आवश्यक है।
3. राष्ट्रीय आय में वृद्धि भारतीय विकास के लिए किस तरह से लाभप्रद है ? वर्णन करें।
उत्तर-राष्ट्रीय आय का अर्थ किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य से लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में, वर्ष भर में किसी देश में अर्जित आय की कुल मात्रा को राष्ट्रीय आय कहते हैं।
राष्टीय आय में वृद्धि भारतीय विकास के लिए निम्न प्रकार से लाभप्रद होता है –
(i) इससे राष्ट्र की आर्थिक प्रगति होगी।
(ii) अधिक मात्रा में पूँजी का सृजन होगा।
(iii) प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होगी।
(iv) लोगों की क्रय-क्षमता का विकास होगा।
(v) राष्ट्र की गणना विकसित देशों की श्रेणी में होने लगेगा।
(vi) विदेशी व्यापार में वृद्धि होगी। ‘इस प्रकार यह अनेक प्रकार से सहायक सिद्ध होगा।
4. राष्ट्रीय आय के संबंध में मार्शल, पीगू तथा फिशर की परिभाषाओं में किस प्रकार विचारों की विभिन्नता है ? समझायें।
उत्तर-राष्टीय आय के विषय में विभिन्न अर्थशास्त्र के विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रकट किए हैं इनमें मार्शल, पिगु तथा फिशर का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है, परन्तु इनके विचारों में निम्नलिखित विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।-पिगु के अनुशार राष्टीय लाभांश किसी समाज की वास्तविक आय का वह भाग है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय को भा शा को भी शामिल किया जाता है, और इसे मुद्रा में मापा जा सकता है।
मार्शल ने भी पीग के विचारों से सहमति जताई है और उत्पादित संपत्ति को ही राष्ट्रीय आय का आधार माना है, परन्तु इन्होंने केवल उन्हीं वस्तुओं एवं सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया है जिनका विनिमय होता है अर्थात् जिनका मापन मुद्रा में संभव है।
मार्शल तथा पीगू के ठीक विपरीत फिशर ने, उत्पादन की अपेक्षा उपभोग को राष्ट्रीय आय का आधार माना है। फिशर के अनुसार “वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है।
5. आय के चक्रीय प्रवाह से आप क्या समझते हैं ? विस्तारपूर्वक समझावें।
उत्तर-आय का वह प्रवाह जिसका सृजन उत्पादक क्रियाओं द्वारा होता है। यद्यपि सभी प्रकार के आर्थिक क्रियाओं का अंतिम उद्देश्य उपभोग द्वारा मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि है, लेकिन उत्पादन के बिना उपभोग संभव नहीं है। वस्तओं एवं सेवाओं का उत्पादन चार साधनों क्रमशः श्रम, पूँजी, भूमि तथा उद्यम के सहयोग से प्राप्त होता है। यदि हम किसी देश की अर्थव्यवस्था को उत्पादक उद्योगों एवं उपभोक्ता परिवारों को दो क्षेत्रों में विभक्त कर दें तो हम देखते हैं कि इनके मध्य उत्पादन, आय एवं व्यय का निरंतर प्रवाह चल रहा है। उत्पादक उद्योगों से आय का प्रवाह साधनों के भुगतान के रूप में परिवार के पास जाता है और फिर यह परिवार से उत्पादक उद्योगों में चला आता है। आय का यह प्रवाह जो निरंतर जारी रहता है उसे आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं।
6. प्रतिव्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वया अंतर है ?
उत्तर-राष्ट्रीय आय वास्तव में देश के अंदर पूरे वर्ष में उत्पादित शुद्ध उत्पत्ति को कहते हैं। राष्ट्रीय आय के अंतर्गत केवल उन्हीं सेवाओं को शामिल किया जाता है जिन्हें मुद्रा के रूप में आंका जाता है अथवा जिन्हें मुद्रा के रूप में भुगतान की प्राप्ति होती है। राष्ट्रीय आय की गणना अनेक प्रकार से की जाती है। चूंकि राष्ट्र के व्यक्तियों की आय उत्पादन के माध्यम से अथवा मौद्रिक आय के माध्यम से प्राप्त होता है, इसलिए इसकी गणना जब उत्पादन गणना विधि और व्यक्तियों के आय के आधार पर होती है तब इसे आय गणना विधि कहते हैं।
जब किसी देश के राष्ट्रीय आय को उसके कुल जनसंख्या से विभाजित करते हैं तो प्राप्त राशि प्रतिव्यक्ति आय कहलाती है। वर्तमान समय में भारत की प्रतिव्यक्ति आय 25,494 रुपये हैं; जबकि बिहार राज्य की प्रतिव्यक्ति आय कुल 6,610 रुपये ही हैं जो देश में सबसे कम है।
7. क्या प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है ? वर्णन करें।
उत्तर-प्रतिव्यक्ति आय में वद्धि राष्टीय आय को प्रत्यक्ष एवं पराक्ष दाना रूप से प्रभावित करती है।
राष्ट्रीय आय की वद्धि के लिए वस्तओं की बिक्री एवं विभिन्न सेवाओं से मौद्रिक आय की प्राप्ति होनी चाहिए तथा खच क बार आनी चाहिए क्योंकि शद्ध राष्ट्रीय आय में से कुल खच का राष्ट्राय आय का वद्धि हेत वस्तयों में सेवाओं से मौद्रिक आय क है जो उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता पर निर्भर करता साथ-साथ इन सबों का भी विस्तारहोगा परिणामस्व परोक्ष रूप से भी यह राष्टीय आय को प्रभावित कर की गणना में प्रतिव्यक्ति आय की गणना भा शान
प्राप्त होनी चाहिए तथा खर्च के विभिन्न मदों में कमी आय में से कुल खर्च को घटा देते हैं। क्षमता पर निर्भर करता है। प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि के मा विस्तार होगा परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी। यह राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है क्योंकि राष्ट्रीय आय भी शामिल होती है।आ में तीव्र विकास प्रारंभ हो जाता है। आय जितनी अधिक मापी जाती है वह उतना कल माद्रिक मय
8. विकास में प्रतिव्यक्ति आय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- किसी भी राष्ट की आर्थिक प्रगति मल रूप से प्रतिव्यक्ति आय पर निर्भर करती है। देश की जनसंख्या ही उपभोक्ता के रूप में वस्तुआ एक का उपयोग करती है। प्रतिव्यक्ति आय में वद्धि के साथ ही उसके क्रय विकास हो जाता है। इससे उद्योगों एवं सेवाओं में तीव्र विकास प्रार जिस राज्य एवंदेश की प्रतिव्यक्ति आय जितनी आधक मात्रा ही विकसित माना जाता है।
अतः हम कह सकते हैं कि विकास में पतिव्यक्ति आय की भूमिका सर्वापार है
9. सकल घरेलू उत्पाद क्या है ?
उत्तर- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) देश की सीमा के अंदर (देश की भौगोलिक कसा दी हई समयावधि (सामान्यतया एक वर्ष) में उत्पादित अंतिम वस्तुआ तथा सेवाओं का कल नौटिल्य होता है। किन्तु यह सदैव आवश्यक नहा है कि सम्पूर्ण GDP देशवासियों की उत्पादन सेवाओं का ही परिणाम होता है। वास्तव में GDP का कछ भाग विदेशियों की उत्पादक सेवाओं का परिणाम हो सकता है जिन्होंने अपनी पँजी तकनीकी ज्ञान का उपयोग करके देश में कुल उत्पत्ति के कुछ भाग का उत्पादन किया है।
10. विश्व-विकास रिपोर्ट में विश्व के प्रमुख देशों की प्रतिव्यक्ति आय को कैसे परिभाषित किया गया है।
उत्तर- विश्व विकास रिपोर्ट 2007 के अनुसार भारत विकास रिपोर्ट 2007 के अनसार भारत की प्रतिव्यक्ति आय अमेरिकी डॉलर में 950 डॉलर था जो अमेरिका के प्रतिक 7950 डालर था जो अमेरिका के प्रतिव्यक्ति आय का लगभग हैं। विश्व के अन्य प्रमुख देशों में अमेरिका का 46,040 डॉलर प्रतिव्यक्ति आय, इंगलैंड की प्रतिव्यक्ति आय 42.740 डॉलर चीन की 2.360 डॉलर प्रतिव्यक्ति आय तथा बांग्लादेश का मात्र 860 डॉलर प्रतिव्यक्ति बताया गया है।
11: बिहार राज्य गरीबी के कचक्र का शिकार है। कैसे ?
उत्तर- देश में निर्धनता अनपात के ताजा आँकडों के अनसार जो योजना आयोग ने मार्च 2009 में जारी किए हैं। इन आँकडों के अनुसार बिहार पूर शर सर्वाधिक गरीब राज्य है। यहाँ 14.4% आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करती है। बिहार राज्य के प्रति-व्यक्ति आय परे देश भर में न्यूनतम है, जिसक चलत बचत निम्न-स्तर पर है। कम बचत के कारण पूँजी निर्माण दर कम होता है जिसक परिणामस्वरूप बिहार में प्रति व्यक्ति आय पनः निम्न स्तर पर कायम रहती है। ठीक इसके विपरीत भारत के विकसित राज्यों जैसे गोवा, दिल्ली आदि में जहाँ प्रति-व्यक्ति आय ऊँचा है, बचत एवं विनियोग अधिक है तथा पूँजी निर्माण दर ऊँचा है, जिसके परिणामस्वरूप हर प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि हो जाती है। सामान्यतः हम जानते हैं कि गरीबी, गरीबी को जन्म देती है। इसी कथन को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रैगनर नर्क्स (Ragnar Nurkse) ने गरीबी के कुचक्र के रूप में व्यक्त किया है। जिसका सार यह है कि गरीब इसलिए गरीब है कि उनमें गरीबी है। गरीबी के कारण उनकी आय कम होती है, अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण बच्चों की जन्म संख्या अधिक होती है। फलतः उनकी अगली पीढ़ी अधिक गरीब हो जाती है, गरीबी का यह कुचक्र चलता रहता है।
12. बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के क्या कारण हैं ? बिहार के किस जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक और किस जिले की सबसे कम है?
उत्तर- बिहार की गणना देश के सर्वाधिक पिछड़े हुए राज्यों में की जाती है तथा इसकी प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है। इसका प्रधान कारण यहाँ की कृषि की पिछड़ी हुई अवस्था तथा राज्य में उद्योग-धंधों का अभाव है। इसके फलस्वरूप बिहार का राज्य घरेलू उत्पाद बहुत कम है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में जनसंख्या की वृद्धि-दर भी अपेक्षाकृत अधिक है। राज्य की जनसंख्या में 1991 2001 की अवधि में 28.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि संपूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि दर 21.54 प्रतिशत थी।
बिहार सरकार के 2008-2009 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पटना जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक तथा रिवहर जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे कम है।