रसायन विज्ञान
रसायन विज्ञान
◆ रसायन विज्ञान (Chemistry ) विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत पदार्थों के गुण, संघटन, संरचना तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है ।
◆ Chemistry अर्थात् रसायन विज्ञान शब्द की उत्पत्ति मिस्र के प्राचीन शब्द ‘कीमिया’ ( Chemea) से हुई है, जिसका अर्थ है काला रंग। मिस्र के लोग काली मिट्टी को ‘केमि’ (Chemi) कहते थे और प्रारंभ में रसायन विज्ञान के अध्ययन को केमिटेकिंग (Chemete ching) कहा जाता था
◆ लेवायसिये (Lavoisier) को रसायन विज्ञान का जनक कहा जाता है ।
1. पदार्थ एवं उसकी प्रकृति
◆ पदार्थ (Matter) – दुनिया की कोई भी वस्तु जो स्थान घेरती हो, जिसका द्रव्यमान होता हो और जो अपनी संरचना में परिवर्त्तन का विरोध करती हो, पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरणजल, हवा, बालू आदि ।
◆ प्रारंभ में भारतीयों और यूनानियों का अनुमान था कि प्रकृति की सारी वस्तुएँ पाँच तत्त्वों के संयोग से बनी हैं, ये पाँच तत्त्व हैं- क्षितिज, जल, पावक, गगन एवं समीर ।
◆ भारत के महान ऋषि कणाद के अनुसार सभी पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्मकणों से बने हैं, जिसे ‘परमाणु’ कहा गया है।
पदार्थों का वर्गीकरण
◆ ठोंस (Solid) – पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित हो, ठोस कहलाता है। जैसे लोहे की छड़, लकड़ी की कुर्सी, बर्फ का टुकड़ा आदि ।
◆ द्रव (Liquid) – पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार अनिश्चित एवं आयतन निश्चित हो ‘द्रव’ कहलाता है। जैसे- अल्कोहल, पानी, तारपीन का तेल, मिट्टी तेल आदि ।
◆ गैस (Gas) – पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित हो ‘गैस’ कहलाता है। जैसे- हवा, ऑक्सीजन आदि ।
नोट : गैसों का कोई पृष्ठ नहीं होता है, इसका विसरण बहुत अधिक होता है तथा इससे आसानी से संपीड़ित (Compress ) किया जा सकता है।
◆ ताप एवं दाब में परिवर्तन करके किसी भी पदार्थ की अवस्था को बदला जा सकता है। परंतु इसके अपवाद भी हैं, जैसे- लकड़ी, पत्थर; ये केवल ठोस अवस्था में ही रहते हैं
◆ जल तीनों भौतिक अवस्था में रह सकता है ।
◆ पदार्थ की तीनों भौतिक अवस्थाओं में निम्न रूप से साम्य होता है – ठोस → द्रव → गैस । उदाहरण- जल
◆ कुछ पदार्थ गर्म करने पर सीधे ठोस रूप से गैस बन जाते हैं, इसे ऊर्ध्वपातन (Sublimation) कहते हैं। जैसे- आयोडीन, कपूर आदि ।
◆ पदार्थ की चौथी अवस्था प्लाज्मा एवं पाँचवीं अवस्था बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट है।
◆ तत्त्व (Element) – तत्त्व वह शुद्ध पदार्थ है, जिसे किसी भी ज्ञात भौतिक एवं रासायनिक विधियों से न तो दो या दो से अधिक पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है, और न ही अन्य सरल पदार्थों के योग से बनाया जा सकता है। जैसे-सोना, चाँदी, ऑक्सीजन आदि ।
◆ यौगिक (Compound) – वह शुद्ध पदार्थ जो रासायनिक रूप से दो या दो से अधिक तत्त्वों के एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग से बने हैं, यौगिक कहलाते हैं । यौगिक के गुण उनके अवयवी तत्त्वों के गुणों से भिन्न होता है, जैसे-जल । जल ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन से मिलकर बनता है, इसमें ऑक्सीजन जलने में सहायक होता है और हाइड्रोजन खुद जलता है लेकिन इन दोनों का यौगिक जल आग को बुझा देता है ।
◆ मिश्रण ( Mixture ) – वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्त्वों या यौगिकों के किसी भी अनुपात में मिलाने से प्राप्त होता है, मिश्रण कहलाता है। इसे सरल यांत्रिक विधि द्वारा पुनः प्रारंभिक अवयवों में प्राप्त किया जा सकता है। जैसे-हवा ।
◆ समांग मिश्रण (Homogeneous Mixture)- निश्चित अनुपात में अवयवों को मिलाने से समांग मिश्रण का निर्माण होता है। इसके प्रत्येक भाग के गुण-धर्म एक समान होते हैं। जैसे- चीनी या नमक का जलीय विलयन, हवा आदि ।
◆ विषमांग मिश्रण (Hetrogeneous Mixture) – अनिश्चित अनुपात में अवयवों को मिलाने से विषमांग मिश्रण का निर्माण होता है। इसके प्रत्येक भाग के गुण एवं उनके संघटक भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे-बारूद, कुहासा आदि ।
मिश्रण को अलग करने की कुछ प्रमुख विधियाँ
◆ रवाकरण (Crystallisation)-इस विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोस मिश्रण को अलग किया जाता है | इस विधि में अशुद्ध ठोस मिश्रण को उचित विलायक (solvent) के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही कीप द्वारा छान लिया जाता है । छानने के बाद विलयन को कम ताप पर धीरे-धीरे ठण्डा किया जाता है। ठण्डा होने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में विलियन से पृथक् हो जाता है। जैसे-शर्करा और नमक के मिश्रण को इथाइल अल्कोहल में 348K ताप पर गर्म कर इसे विधि द्वारा अलग किया जाता है।
◆ आसवन विधि (Distillation) – जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अंतर अधिक होता है, तो उसके मिश्रण को आसवन विधि से पृथक् करते हैं। अर्थात् यह द्रवों के मिश्रण को अलग करने की विधि है। इसका प्रथम भाग वाष्पीकरण (vaporisation) एवं दूसरा भाग संघनन (condensation) कहलाता है ।
◆ ऊर्ध्वपातन (Sublimation) – इस विधि द्वारा दो ऐसे ठोसों के मिश्रण को अलग करते हैं, जिसमें एक ठोस ऊर्ध्वपातित (sublimate) हो, दूसरा नहीं। इस विधि से कर्पूर, नेफ्थलीन, अमोनियम क्लोराइड, ऐंथ्रासीन आदि को अलग करते हैं ।
◆ आशिक आसवन (Fractional distillation) – इस विधि से वैसे मिश्रित द्रवों को अलग करते हैं, जिनके क्वथनांकों में अंतर बहुत कम होता है। खनिज तेल या कच्चे तेल में से शुद्ध डीजल, पेट्रोल, मिट्टी तेल, कोलतार आदि इसी विधि द्वारा अलग किया जाता है ।
◆ वर्णलेखन (Chromatography) – यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अवशोषण (absorption) क्षमता भिन्न-भिन्न होती है तथा वे किसी अधिशोषक पदार्थ में विभिन्न दूरियों पर अवशोषित होते हैं, इस प्रकार वे पृथक् कर लिए जाते हैं ।
◆ भाप आसवन (Steam distillation) – इस विधि से कार्बनिक मिश्रण को शुद्ध किया जाता है, जो जल में अघुलनशील होता है, परंतु भाप के साथ वाष्पशील होता है । इस विधि द्वारा विशेष रूप से उन पदार्थों का शुद्धिकरण किया जाता है, जो अपने क्वथनांक पर अपघटित हो जाते हैं। जैसे- एसीटोन, मेथिल अल्कोहल आदि । पदार्थ की अवस्था परिवर्त्तन (Change in state)
◆ द्रवणांक (Melting Point) – गर्म करने पर जब ठोस पदार्थ द्रव अवस्था में परिवर्तित होते हैं, तो उनमें से अधिकांश में यह परिवर्त्तन एक विशेष दाब पर तथा एक नियत ताप पर होता है; यह नियत ताप वस्तु का द्रवणांक (melting point) कहलाता है । जब तक पदार्थ गलता (ठोस के आखिरी कण तक) रहता है, तब तक ताप स्थिर रहता है। यदि विशेष दाब नियत रहे ।
◆ हिमांक (Freezing point)- किसी विशेष दाब पर वह नियत ताप जिस पर कोई द्रव जमता है, हिमांक कहलाता है ।
◆ सामान्यतः पदार्थ का द्रवणांक एवं हिमांक का मान बराबर होता है । जैसे- बर्फ का द्रवणांक एवं हिमांक 0°C है ।
◆ अशुद्धियों की उपस्थिति में पदार्थ का हिमांक और द्रवणांक दोनों कम हो जाता है ।
◆ द्रवणांक पर दाब का प्रभाव –
(i) उन पदार्थों के द्रवणांक दाब बढ़ाने से बढ़ जाते हैं, जिनका आयतन गलने पर. बढ़ जाता है। जैसे- मोम, ताँबा आदि ।
(ii) उन पदार्थों के द्रवणांक दाब बढ़ाने से घट जाता है, जिनका आयतन गलने पर घट जाता है; जैसे- बर्फ, ढलवाँ लोहा आदि ।
◆ गलने तथा जमने पर आयतन में परिवर्तन (Change of volume in fusion and solidification)-क्रिस्टलीय पदार्थों में से अधिकांश पदार्थ गलने पर आयतन में बढ़ जाते हैं, ऐसी दशा में ठोस अपने ही गले हुए द्रव में डूब जाता है।
◆ ढला हुआ लोहा, बर्फ, एण्टीमनी, बिस्मथ, पीतल आदि गलने पर आयतन में सिकुड़ते हैं; अतः इस प्रकार के ठोस अपने ही गले द्रव में प्लवन करते रहते हैं। इसी विशेष गुण के कारण बर्फ का टुकड़ा गले हुए पानी में प्लवन करता है।
◆ साँचे में केवल वे पदार्थ ढाले जा सकते हैं, जो ठोस बनने पर आयतन में बढ़ते हैं, क्योंकि । तभी वे साँचे के आकार को पूर्णतया प्राप्त कर सकते हैं ।
◆ मुद्रण धातु ऐसे पदार्थ के बने होते हैं, जो जमने पर आयतन में बढ़ते हैं।
◆ चाँदी या सोने की मुद्राएँ ढाली नहीं जातीं, केवल मुहर (stamp) लगाकर बनायी जाती हैं।
◆ मिश्र धातुओं का द्रवणांक (M.P.) उन्हें बनाने वाले पदार्थों के गलनांक से कम होता है क्योंकि अशुद्धियाँ डाल देने पर पदार्थ का गलनांक घट जाता है ।
◆ हिमकारी मिश्रण (Freezing mixture)- किसी ठोस को उसके द्रवणांक पर गलने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होगी जो उसकी गुप्त ऊष्मा होगी। यह ऊष्मा साधारणत: वाहर से मिलती है, जैसे-जल में बर्फ का टुकड़ा मिलाने पर बर्फ गलेगी, परंतु गलने के लिए द्रवणांक पर वह जल से ऊष्मा लेगी जिससे जल का तापमान घटने लगेगा और मिश्रण का ताप घट जाएगा । हिमकारी मिश्रण का बनना इसी सिद्धांत पर आधारित है। उदाहरण-घर पर आईसक्रीम जमाने के लिए नमक का एक भाग एवं बर्फ का तीन भाग मिलाया जाता है, इससे मिश्रण का ताप – 22°C प्राप्त होता है ।
◆ वाष्पीकरण (Vaporization) – द्रव से वाष्प में परिणत होने की क्रिया ‘वाष्पीकरण’ कहलाती है | यह दो प्रकार से होती है – (i) वाष्पन (Evaporation) (ii) क्वथन (Boiling)
◆ क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं ।
◆ वाष्पन की क्रिया निम्न बातों पर निर्भर करती है।
(i) क्वथनांक का कम होना- क्वथनांक जितना कम होगा, वाष्पन की क्रिया उतनी ही अधिक तेजी से होगी । —
(ii) द्रव का ताप- द्रव का ताप अधिक होने से वाष्पन अधिक होगा
(iii) द्रव के खुले पृष्ठ का क्षेत्रफल – क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पन तेजी से होगा ।
(iv) द्रव के पृष्ठ पर – (a) द्रव के पृष्ठ पर वायु बदलने पर वाष्पन तेज होगा ।
(b) द्रव के पृष्ठ पर वायु का दाब जितना ही कम होगा वाष्पन उतनी ही तेजी से होगा ।
(c) द्रव के पृष्ठ पर वाष्प दाब जितना बढ़ता जाएगा वाष्पन की दर उतनी ही घटती जाएगी ।
◆ क्वथनांक (Boiling point) – दाब के किसी दिए हुए नियत मान के लिए वह नियत ताप जिस पर कोई द्रव उबलकर द्रव अवस्था से वाष्प की अवस्था में परिणत हो जाय तो वह नियत ताप द्रव का क्वथनांक कहलाता है ।
◆ दाब बढ़ाने से द्रव का क्वथनांक बढ़ जाता है और दाब घटने से द्रव का क्वथनांक घट है ।
2. परमाणु संरघना (Atomic Structure)
◆ परमाणु (Atom) – परमाणु, तत्त्व का वह छोटा-से छोटा कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है परंतु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है।
◆ अणु (Molecule) – तत्त्व तथा यौगिक का वह छोटा-से- छोटा कण है, जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है ।
◆ परमाणु-भार (Atomic weight) – किसी तत्त्व का परमाणु – भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करता है कि तत्त्व का एक परमाणु, कार्बन – 12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोजन के 1.008 भाग द्रव्यमान से कितना गुणा भारी है।
◆ अणु – भार (Molecular weight) – किसी पदार्थ का अणुभार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करती है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन- 12 के एक परमाणु के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है ।
◆ मोल धारणा (Mole concept) – एक मोल किसी भी निश्चित सूत्र वाले पदार्थ की वह राशि है, जिसमें इस पदार्थ के इकाई-सूत्र की संख्या उतनी ही है, जिनकी कार्बन – 12 आइसोटोप के ठीक 12 ग्राम में परमाणुओं की संख्या है। ।
◆ मोल इकाई का मान-मोल का मान 6.022 x 1023 है । कार्बन के 12 ग्राम या एक मोल में 6-022 x 1023 परमाणु हैं। 6.022 x 1023 को आवोगाद्रो संख्या कहते हैं ।
◆ मोल संख्या एवं द्रव्यमान दोनों का प्रतीक है। सन् 1967 में मोल को इकाई के रूप में स्वीकार किया गया ।
◆ 20वीं शताब्दी में आधुनिक खोजों के परिणामस्वरूप जे० जे० थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा मुख्यतः तीन मूल कणों से मिलकर बना है, जिन्हें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहते हैं ।
प्रमुख मूल कणों के अभिलक्षण
◆ परमाणु क्रमांक (Atomic number) – किसी तत्त्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को परमाणु क्रमांक कहते हैं ।
◆ द्रव्यमान संख्या (Mass number) – किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की संख्याओं का योग उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहलाती है । अर्थात्
द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या
◆ क्वाण्टम संख्या (Quantum Number)- स्पेक्ट्रम रेखाओं की सूक्ष्म प्रकृति समझाने तथा इलेक्ट्रॉन की ठीक-ठीक स्थिति का वर्णन करने हेतु चार क्वाण्टम संख्याओं का प्रयोग किया जाता हैं, ये हैं –
(i) मुख्य क्वाण्टम संख्या (Principal Quantum number), ‘n’-यह इलेक्ट्रॉन के मुख्य ऊर्जा स्तर को प्रदर्शित करती है ।
(ii) दिगंशी क्वाण्टम संख्या (Azimuthal Quantum number), ‘l’ -यह इलेक्ट्रॉन कक्षक (orbital) की आकृति को प्रकट करती है । / का न्यूनतम मान शून्य तथा अधिकतम मान (n – 1 ) होता है ।
(iii) चुम्बकीय क्वाण्टम संख्या (Magnetic Quantum number), ‘m’ – यह उप ऊर्जा स्तरों के कक्षकों (orbitals) को प्रदर्शित करती है । m का मान l के मान पर निर्भर करता है। किसी l के लिए m का मान + l से लेकर – l तक होते हैं (शून्य सहित) |
(iv) चक्रण क्वाण्टम संख्या (Spin quantum number), ‘s’- यह इलेक्ट्रॉन के चक्रण की दिशा को प्रदर्शित करती है। किसी चुम्बकीय क्वाण्टम संख्या (m) के लिए चक्रण क्वाण्टम संख्या (s) का मान + 1/2 और 1/2 होता है ।
◆ पाऊली का अपवर्जन नियम (Pauli’s exclusion principle, 1925)- इसके अनुसार एक दिए गए परमाणु में किन्हीं दो इलेक्ट्रॉनों के लिए चारों क्वाण्टम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता। अतः यदि दो इलेक्ट्रॉनों के n, l और m के मान एक ही हो, तो उनका चक्रण विपरीत होगा ।
◆ हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम (Hund’s rule of maximum multiplicity)-इसके अनुसार इलेक्ट्रॉन तब तक युग्मित नहीं होते जब तक कि रिक्त कक्षक प्राप्य (available) हैं अर्थात् जब तक संभव है, इलेक्ट्रॉन अयुग्मित रहते हैं।
◆ हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता सिद्धांत (Heisenberg’s uncertainty principle)-इसके अनुसार किसी कण की स्थिति (position) और वेग (velocity) का एक साथ यथार्थ (exact) निर्धारण असंभव है ।
◆ ऑफबाऊ नियम (Aufbau principle) – इस नियम द्वारा तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के लिए विभिन्न परमाणु कक्षकों की ऊर्जा बढ़ने का क्रम इस प्रकार है –
1s <2s <2p<3s<3p <3p < 4s< 3d<4p< 5s < 4d < 5p < 6s < 4f < 5d < 6p < 7s
◆ समस्थानिक (Isotopes) – समान परमाणु क्रमांक परंतु भिन्न परमाणु द्रव्यमानों के परमाणुओं को समस्थानिक (Isotopes) कहते हैं। समस्थानिकों में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किन्तु न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है। जैसे – 1H1, 1H2 तथा 1H3 समस्थानिक हैं।
◆ सबसे अधिक समस्थानिकों वाला तत्त्व पोलोनियम है।
◆ समभारिक (Isobars) – समान परमाणु द्रव्यमान परंतु भिन्न परमाणु क्रमांक के परमाणुओं को समभारिक (Isobars) कहते हैं । जैसे – 18Ar40, 19K40 20Ca40 समभारिक हैं।
◆ समन्यूट्रॉनिक (Isotone) – जिन परमाणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, उन्हें समन्यूट्रॉनिक (Isotone) कहते हैं। जैसे – 1H3, 2He4 इन दोनों परमाणुओं के नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या दो-दो है l
◆ समइलेक्ट्रॉनिक (Isoelectronic) – जिन आयनों और परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं, उन्हें समइलेक्ट्रॉनिक (Isoelectronic) कहते हैं । समइलेक्ट्रॉनिक परमाणुओं और आयनों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है। जैसे – Ne, Na+, Mg++ और Al+++ समइलेक्ट्रॉनिक हैं ।
3. गैसों का आचरण (Behaviour of Gases)
◆ बॉयल का नियम – स्थिर ताप पर गैस की नियंत मात्रा का आयतन उसके दाब का व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
◆ चार्ल्स का नियम – स्थिर दाब पर किसी गैस की नियत मात्रा का आयतन उसके परम ताप का सीधा अनुपाती होता है। (परमताप T = 273° + t°C)
◆ आवोगाड्रो का नियम – समान ताप एवं दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है ।
◆ सामान्य ताप एवं दाब पर विभिन्न गैसों के एक ग्राम अणु का आयतन 22.4 लीटर होता है तथा इस 22.4 लीटर में 6. 022 x 1023 अणु होते हैं ।
◆ अवस्था समीकरण –
PV = nRT जहाँ R एक मोलर गैस स्थिरांक है ।
PV = RT (n=1 मोल, गैस के लिए )
◆ गैसों का विसरण-घनत्व में अंतर रहते हुए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध गैसों के आपस में मिलने-जुलने की स्वाभाविक प्रक्रिया विसरण (diffusion) कहलाती है।
◆ ग्राहम का गैसीय विसरण नियम-नियत ताप एवं दाब पर गैसों की विसरण की आपेक्षिक गतियाँ उसके घनत्वों अथवा अणुभार के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है ।
अतः, हाइड्रोजन गैस की विसरण की गति ऑक्सीजन गैस के विसरण की गति से चार गुनी अधिक है।
4. तत्त्वों क आवर्ती वर्गीकरण (Periodic Classification of elements) मेंडलीय का आवर्त नियम (Mendeleev’s periodic law)
◆ उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में रशियन वैज्ञानिक डी० आई० मेंडलीव (D. I. Mendeleev, 1869) ने तत्त्वों तथा उनके यौगिकों के तुलनात्मक अध्ययन से एक नियम प्रस्तुत किया जिसे मेंडलीव का आवर्त नियम कहते हैं ।
◆ मेंडलीव के आवर्त नियम के अनुसार ‘तत्त्वों का भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्त फलन होते हैं ।
◆ मेंडलीव द्वारा बनाए गई आवर्त सारणी में नौ वर्ग और सात आवर्त थे ।
◆ मंडलीव ने उस समय तक ज्ञात सभी तत्त्वों के शामिल करने के अतिरिक्त बहुत से अज्ञात तत्त्वों के लिए स्थान रिक्त रखे थे ।
मेंडलीव की आवर्त सारणी के दोष
(i) हाइड्रोजन को क्षार धातु एवं हैलोजन जैसे दोहरे व्यवहार के कारण दोनों वर्गों में रखा गया ।
(ii) समान गुण वाले तत्त्वों को अलग-अलग रखा गया; जैसे- Cu और Hg, Ag और Ti, Au और Pt तथा Ba और Pb |
(iii) उच्च परमाणु भार वाले तत्त्वों को कम परमाणु भार वाले तत्त्वों के पहले रखा गया हैं, जैसे – आयोडीन (126.92) को टेल्यूरियम (127.61) के बाद रखा गया है।
(iv) समस्थानिकों के लिए स्थान नहीं ।
(v) 8वें वर्ग में तीन तत्त्वों को एक साथ समूहित करना ।
आधुनिक आवर्त सारणी (Modern Periodic Table)
◆ आधुनिक आवर्त सारणी मोसले (Moseley-1913 ई०) के नियम पर आधारित है । इसके अनुसार तत्त्वों के गुण उनके परमाणु संख्या (atomic number ) के आवर्त फलन होते हैं
◆ आधुनिक आवर्त सारणी में आवर्त की संख्या 7 होती है एवं वर्ग की संख्या 9 होती है ।
◆ वर्ग I से लेकर VII तक दो उपवर्गों A एवं B में बँटे हैं, इस प्रकार उपवर्गों सहित कुछ वर्गों की संख्या 16 है ।
◆ प्रत्येक आवर्त का प्रथम सदस्य क्षार धातु है, और अंतिम सदस्य कोई अक्रिय गैस (Inert gas) । सिर्फ पहले आवर्त का पहला सदस्य हाइड्रोजन है, जो अपवाद है।
◆ आधुनिक आवर्त सारणी में परमाणु संख्या 57 से लेकर 71 तक को लेन्थेनाइड श्रेणी एवं परमाणु संख्या 89 से लेकर 103 तक को ऐक्टिनाइड श्रेणी कहा जाता है।
◆ आयनन विभव (Ionisational potential) – ऊर्जा की वह न्यूनतम मात्रा है, जो तत्त्व की एक गैसीय परमाणु की बाह्यतम कक्षा (outer shell) से एक इलेक्ट्रॉन को निकाल बाहर करने के लिए आवश्यक है ।
◆ इलेक्ट्रॉन बन्धुता (Electron affinity) – जब उदासीन परमाणु एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है, तो उसके फलस्वरूप उत्पन्न ऊर्जा को इलेक्ट्रॉन बन्धुता कहते हैं।
◆ वर्ग VIIA के तत्त्वों की इलेक्ट्रॉन बन्धुता उच्च होती है
◆ सबसे अधिक इलेक्ट्रॉन बन्धुता क्लोरीन की होती है।
◆ विद्युत् ऋणात्मकता ( Electronegativity) – किसी तत्त्व की परमाणु की वह क्षमता, जिससे वह साझेदारी की इलेक्ट्रॉन जोड़ी को अपनी ओर खींचती है, उसे उस तत्त्व की विद्युत् ऋणात्मकता कहते हैं ।
◆ फ्लोरीन की विद्युत् ऋणात्मकता सबसे अधिक होती है
नोट : निष्क्रिय गैसों का गलनांक निम्न होता है, वही वर्ग IVA के तत्त्वों का गलनांक उच्चतम होता है ।
5. रासायनिक बंधन (Chemical bonding)
◆ इलेक्ट्रॉनों के पुनर्वितरण के फलस्वरूप बने बंधन को परमाणु-बंधन (Atomic bond) कहते हैं। परमाणु-बंधन तीन प्रकार के होते हैं- 1. वैद्युत् संयोजी बंधन (Electrovalent bond ) 2. सहसंयोजी बंधन (Covalent bond) 3. उपसहसंयोजी बंधन (Coordinate bond)
1. वैद्युत् संयोजी बंधन (Electrovalent bond ) – जब बंध का निर्माण इलेक्ट्रॉन के स्थानान्तरण के द्वारा होता है, तो उसे वैद्युत् संयोजी बंध कहते हैं। जैसे –
◆ आयनिक यौगिक के गुण –
(i) आयनिक यौगिक ध्रुवीय घोल में प्रायः घुलनशील होती है। (वह घोलक जिनका परावैद्युत् स्थिरांक उच्च होता है ध्रुवीय घोलक कहलाता है, जैसे-जल) (ii) द्रवणांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं । (iii) जलीय घोल विद्युत् का सुचालक होता है। (iv) आयनन की मात्रा प्राय: उच्च होती है ।
नोट: जालक ऊर्जा- किसी रवा (crystal) के आयनों को एक-दूसरे से अनन्त दूरी तक अलग करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को जालक ऊर्जा कहते हैं ।
2. सहसंयोजी बंधन (Covalent bond) – जब दो सदृश या असदृश परमाणु अपनी बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉनों का आपस में साझा करके संयोग करते हैं, तब उनके बीच स्थित बध को सहसंयोजन बंधन कहते हैं। जैसे –
◆ सहसंयोजी यौगिक के गुण –
(i) सहसंयोजी बंधन दृढ़ (rigid) और दिशात्मक (Directional) होता है। अतः वे विभिन्न स्थानिक अवस्था (spatial arrangement) में रहते हैं तथा त्रिविम समावयता ( stereo Isomerism) प्रदर्शित करते हैं ।
(ii) सहसंयोजी यौगिक आण्विक रूप में रहते हैं, न कि आयनिक रूप में । इस कारण ये घोल की अवस्था में विद्युत् के कुचालक होते हैं ।
(iii) ताप, दाज की सामान्य अवस्था में ये प्राय: गैस, वाष्पशील द्रव एवं मुलायम ठोस पदार्थ होते हैं ।
(iv) इनका द्रवणांक एवं क्वथनांक निम्न होता है ।
(v) ध्रुवीय घोलकों में प्रायः अघुलनशील, किन्तु अध्रुवीय घोलकों में प्राय: घुलनशील होता है ।
◆ विद्युत् ऋणात्मकता एवं बंध की प्रकृति – (i) जब दो परमाणुओं की विद्युत् ऋणात्मकता के बीच काफी अंतर हो तब उनके बीच बंधन आयनिक होगा । (ii) जब दो परमाणुओं की विद्युत् ऋणात्मकता के बीच अंतर हो, तब बंधन ध्रुवीय सहसंयोजक होगा । (iii) जब दो परमाणुओं की विद्युत् ऋणात्मकता के बीच अन्तर शून्य के बराबर होगा, तब सहसंयोजी बंधन बनेगा ।
3. उपसहसंयोजी बंधन (Coordinate bond ) – ऐसा बंध जो दो परमाणुओं के बीच एक इलेक्ट्रॉन जोड़ी की साझेदारी से बनता है, किन्तु साझेदारी का इलेक्ट्रॉन जोड़ी सिर्फ एक ही परमाणु द्वारा प्रदत्त होती है । उपसहसंयोजी बंधन में जो परमाणु इलेक्ट्रॉन जोड़ी प्रदान करता है, उसे प्रदाता (donor) कहते हैं और जो परमाणु इलेक्ट्रॉन जोड़ी को स्वीकार करता है उसे स्वीकारक (acceptor) कहते हैं। जैसे- H2SO4 के निर्माण में
◆ हाइड्रोजन बंध – H, F, O या N के संयोग से बने यौगिक के अणु ध्रुवीय होते हैं। जैसे-HF, H2O, NH3 आदि । HF अणु में H विद्युत् धनात्मक एवं F विद्युत् ऋणात्मक तत्त्व है, अतः H और F के बीच सहसंयोजक बंधन में संलग्न इलेक्ट्रॉन युग्म थोड़ा F की ओर खींच जाता है । फलत: F परमाणु पर थोड़ा ऋण आवेश (δ–) एवं H परमाणु पर थोड़ा धन आवेश (δ+) आवेश आ जाता है । अतः एक HF अणु का विद्युत् धनात्मक सिरा दूसरे HF अणु के विद्युत् ऋणात्मक सिरे को अपनी ओर खींच लेता है –
….H— F… H—F… यह आकर्षण दो HF अणुओं के बीच एक नए प्रकार के बंधन का सृजन करता है, जिसे हाइड्रोजन बंधन कहते हैं। हाइड्रोजन बंधन जल एवं HCN ( हाइड्रोजन सायनाइड) में है ।
◆ H2S में हाइड्रोजन बंधन नहीं है।
◆ हाइड्रोजन बंधन एक कमजोर स्थिर वैद्युत् आकर्षण बल है; जो सहसंयोजक बंधन से कमजोर होता है ।
बंधन ऊर्जा का क्रम – एकल बंध < द्विबंध < त्रिबंध
बंध दूरी का क्रम – एकल बंध > द्विबंध > त्रिबंध बंधों
की क्रियाशीलता – एकल बंध < द्विबंध < त्रिबंध
◆ हाइड्रोजन बंधन सिर्फ फ्लोरीन, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन के यौगिकों में ही पाया जाता है ।
◆ सिग्मा बंघ (σ-bond) जब दो परमाणुओं के ऑर्बिटल एक दूसरे से एक रैखिक अक्ष पर अति व्यापन करते हैं तब दोनों परमाणुओं के बीच बने बंधन को सिग्मा (σ) बंधन कहते हैं
◆ पाईबंध (π-bond) – जब दो परमाणिक ऑर्बिटलों के पार्श्व अतिव्यापन होता है, तो इससे निर्मित बंधन को पाई बंधन (π-bond) कहते हैं ।
6. ऑक्सीकरण एवं अवकरण (Oxidation and Reduction)
◆ ऑक्सीकरण (Oxidation) – विद्युत् ऋणात्मक परमाणु या मूलक का अनुपात बढ़ना या धन आवेश का बढ़ना या इलेक्ट्रॉन का त्याग ऑक्सीकरण कहलाता है। जैसे –
Na → Na+ +e (ऑक्सीकरण)
Fe++ → Fe+++ + e (ऑक्सीकरण)
◆ अवकरण (Reductior) – विद्युत् धनात्मक परमाणु या मूलकों के अनुपात का बढ़ जाना या धन आवेश का घट जाना या इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करना अवकरण कहलाता है। जैसे –
Cu++ +2e → Cu (अवकरण)
Cl +2e ↓ Cl– (अवकरण)
◆ रेडॉक्स अभिक्रिया (Redox reaction)-ऑक्सीकरण अवकरण की क्रियाएँ साथ-साथ होती है, अर्थात् जब एक पदार्थ इलेक्ट्रॉन त्याग करता है, तो दूसरा उसे ग्रहण करता है, इसे ही रेडॉक्स अभिक्रिया (Redox reaction) कहते हैं ।
◆ अवकारक (Reducing agent or reductant)- जिस पदार्थ का ऑक्सीकरण होता है, अर्थात् जो पदार्थ इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है, उसे अवकारक कहते हैं। कुछ प्रमुख अवकारक हैं- H2, CO, H2S, SO2, C, SnCl2 आदि ।
◆ ऑक्सीकारक (Oxidising agent or oxidant)- जिस पदार्थ का अवकरण होता है, अर्थात् जो पदार्थ इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है, ऑक्सीकारक कहलाता है। कुछ प्रमुख ऑक्सीकरक हैं – O2, O3, H2O2, HNO3, KMnO4, K2Cr2O7 आदि ।
◆ ऑक्सीकारक एवं अवकारक दोनों जैसा आचरण करने वाले पदार्थ हैं- हाइड्रोजन सल्फाइड (H2 S), हाइड्रोजन पेरोक्साइड (H2 O2), सल्फर डाइआक्साइड (SO2), नाइट्स अम्ल (HNO2) आदि ।
◆ ऑक्सीकरण संख्या (Oxidation number) – किसी तत्त्व की ऑक्सीकरण संख्या वह संख्या है, जो किसी अणु या आयन में उस परमाणु पर आवेशों की संख्या को बताती है, यदि उस अणु या आयन से शेष सभी परमाणुओं को संभावित आयनों के रूप में अलग कर दिया जाय । जैसे—Mn की ऑक्सीकरण संख्या KMnO4 में –
KMnO4 → + 1 + × + (–8) =0
× – 7 = 0, ×=7
अतः KMnO4 में Mn की ऑक्सीकरण संख्या 7 है।
◆ ऑक्सीकारक – वह पदार्थ जो किसी दूसरे पदार्थ की ऑक्सीकरण संख्या बढ़ा देता है।
◆ अवकारक – वह पदार्थ जो किसी दूसरे पदार्थ की ऑक्सीकरण संख्या को घटा देता है।
◆ ऑक्सीकरण- वह अभिक्रिया जिसमें किसी परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या का मान बढ़ जाता है, ऑक्सीकरण कहते हैं ।
◆ अवकरण- वह अभिक्रिया जिसमें किसी परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या घट जाती है, उसे अवकरण कहते हैं ।
7. अम्ल, भस्म एवं लवण (Acid, Base and Salt)
◆ अम्ल (Acid) – अम्ल वे यौगिक पदार्थ हैं, जिनमें हाइड्रोजन प्रतिस्थाप्य के रूप में रहता है।
◆ आरहेनियस के अनुसार-अम्ल एक ऐसा यौगिक है, जो जल में घुलकर H+ आयन देता है।
◆ बॉरॉन्सटेड एवं लॉरी सिद्धान्त के अनुसार (According to Bronsted and Lowry theory)—अम्ल वह पदार्थ है, जो किसी दूसरे पदार्थ को प्रोटॉन प्रदान करने की क्षमता रखता है
◆ लुईस इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत के अनुसार ( According to Lewis’s electronic theory) – अम्ल वह यौगिक है, जिसमें इलेक्ट्रॉन की एक निर्जन जोड़ी (Lone pair of electron) स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।
◆ अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं ।
◆ अम्ल का जलीय विलयन नीले लिटमस को लाल कर देता है ।
◆ अम्लों के उपयोग –
(i) खाने के काम में जैसे- खट्टे दूध (लैक्टिक अम्ल), सिरका एवं अचार (एसीटिक अम्ल), सोडावाटर एवं अन्य पेय (कार्बोनिक अम्ल), अंगूर (टार्टरिक अम्ल), सेव (मैलिक अम्ल), नींबू एवं नारंगी (साइट्रिक अम्ल) ।
(ii) खाना पचाने में HCI अम्ल का उपयोग होता है।
(iii) नाइट्रिक अम्ल का प्रयोग सोना एवं चाँदी के शुद्धीकरण में किया जाता है।
(iv) लोहा पर जस्ते की परत चढ़ाने के पहले लोहा को साफ करने में H2SO4 एवं HNO3 का प्रयोग किया जाता है।
नोट : कपड़े से जंग के धब्बे हटाने के लिए ऑक्जैलिक अम्ल प्रयुक्त किया जाता है। कुछ अम्लों की प्रबलता घटते क्रम में
HCI > HNO3 > H2SO4> CH3COOH
◆ अम्लराज (Aqua regia) – यह 3 : 1 के अनुपात में सान्द्र हाइडोक्लोरिक अम्ल एवं सान्द्र नाइट्रिक अम्ल का ताजा मिश्रण होता है। यह सोना एवं प्लैटिनम को गलाने में समर्थ होता है ।
◆ भस्म (Base) – ऐसा यौगिक जो अम्ल से प्रतिक्रिया कर लवण एवं जल देता है, कहलाता है। ब्रॉन्सटेड लॉरी के सिद्धान्त के अनुसार वह यौगिक जिसमें प्रोटॉन ग्रहण करने की क्षमता हो ‘भस्म’ कहलाता है । लुईस इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त के अनुसार (According to Lewis’s electronic theory ) – वह यौगिक जिसमें इलेक्ट्रॉन की एक निर्जन जोड़ी प्रदान करने की क्षमता होती है, भस्म कहलाता है।
◆ भस्म दो प्रकार के होते हैं
(i) जल में विलेय भस्म – वैसा भस्म जो जल में विलेय हो क्षार कहलाता है । यह लाल लिटमस पत्र को नीला कर देता है तथा स्वाद में कड़वा होता है। जैसे पोटैशियम हाइड्रोक्साइड (KOH), सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) आदि ।
(ii) जल में अविलेय भस्म – ये अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर लवण एवं जल बनाते हैं, लेकिन क्षार के अन्य गुण प्रदर्शित नहीं करते हैं। जैसे- ZnO, Cu (OH)2, FeO, Fe2O3 आदि ।
कुछ प्रमुख भस्मों के उपयोग –
1. कैल्शियम हाइड्रोक्साइड [ Ca (OH)2] —
(i) घरों में चूना पोतने में
(ii) गारा एवं प्लास्टर बनाने में
(iii) ब्लीचिंग पाउडर बनाने में
(iv) चमड़ा के ऊपर का बाल साफ करने में
(v) जल को मृदु बनाने में
(vi) अम्ल के जलन पर मरहम पट्टी करने में
2. कास्टिक सोडा या सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH ) —
(i) साबुन बनाने में
(ii) पेट्रोलियम साफ करने में
(iii) दवा बनाने में
(iv) कपड़ा एवं कागज बनाने में
(v) कारखानों को साफ करने में
3. मिल्क ऑफ मैगनेशिया या मैगनेशियम हाइडॉक्साइड [ Mg (OH)2] — पेट की अम्लीयता को दूर करने में ।
◆ लवण (Salt) – अम्ल एवं भस्म की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप लवण एवं जल का निर्माण होता है ।
NaOH + HCl → NaCl+H2O
◆ कुछ प्रमुख लवणों के उपयोग
(i) साधारण नमक या सोडियम क्लोराइड (NaCI) – खाने के रूप में एवं अचार के परिरक्षण में इसका उपयोग होता है ।
(ii) खाने का सोडा या सोडियम बाईकार्बोनेट पदार्थ (NaHCO3) – पेट की अम्लीयता को दूर करने एवं अग्निशामक यंत्रों में इसका उपयोग किया जाता है। समुद्री जल रक्त लार
(iii) धोबन सोडा या सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3 10H2 O) – कपड़ा धोने में इसका उपयोग होता है ।
(iv) कास्टिक सोडा या सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) – इसका उपयोग अपमार्जक का चूर्ण बनाने में किया जाता है।
(v) पोटैशियम नाइट्रेट (KNO3)- बारूद बनाने में इसका उपयोग होता है।
◆ pH स्केल- किसी विलयन की अम्लीयता या क्षारीयता को व्यक्त करने के लिए pH मापदंड का प्रयोग किया जाता है । pH = –log [H+]
अर्थात् किसी विलयन में हाइड्रोजन आयनों के सान्द्रण के व्युत्क्रम के लघुगणक को विलयन का pH कहते हैं। किसी विलयन का pH मान 7 से कम होने पर वह विलयन अम्लीय होता है और pH मान 7 से अधिक होने पर वह विलयन क्षारीय होता है ।
◆ हमारा शरीर 7.0 से 7.8 pH परास के बीच कार्य करता है । जीवित प्राणी केवल संकीर्ण pH परास में ही जीवित रह सकते हैं । ।
◆ वर्षा के जल को pH मान जब 5.6 से कम हो जाती है तो वह अम्लीय वर्षा कहलाती है।
8. विलयन (Solution )
◆ विलयन दो या दो से अधिक पदार्थों का समांग मिश्रण है जिसमें किसी निश्चित ताप पर विलेय और विलायक की आपेक्षिक मात्राएँ एक निश्चित सीमा तक निरंतर परिवर्तित हो सकती हैं ।
◆ किसी विलयन में विलेय के कणों की त्रिज्या 10-7 सेमी से कम होती है । अतः इन कणों को सूक्ष्मदर्शी द्वारा भी नहीं देखा जा सकता है ।
◆ विलयन स्थायी एवं पारदर्शक होता है ।
◆ विलेय और विलायक (Solute and solvent) – विलयन में जो पदार्थ अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होता है, उसे विलायक कहते हैं, तथा जो पदार्थ कम मात्रा में उपस्थित रहने हैं, उसे विलेय कहते हैं ।
◆ जिस विलायक का डाइइलेक्ट्रिक नियतांक जितना अधिक होता हैं, वह उतना ही अच्छा विलायक माना जाता है । जल का डाइलेक्ट्रिक नियतांक का मान अधिक होने के कारण इसे सार्वत्रिक विलायक कहा जाता है ।
◆ विलायक का उपयोग (1) औषधि के निर्माण में (ii) निर्जल धुलाई में (पेट्रोलियम, बेंजीन, ईथर जैसे विलायकों का) (iii) इत्र निर्माण में (iv) अनेक प्रकार के पेय व खाद्य पदार्थों के निर्माण में ।
◆ संतृप्त विलयन (Saturated Solution) -किसी निश्चित ताप पर बना ऐसा विलयन जिसमें विलेय पदार्थ की अधिकतम मात्रा घुली हुई हो संतृप्त विलयन कहलाता है ।
◆ असंतृप्त विलयन (Unsaturated Solution) – किसी निश्चित ताप पर बना ऐसा विलयन जिसमें विलेय पदार्थ की और अधिक मात्रा उस ताप पर घुलाई जा सकती हैं, ‘ असंतृप्त विलयन कहलाता है ।
◆ अतिसंतृप्त विलयन (Super Saturated Solution ) – ऐसा संतृप्त विलयन जिसमें विलेय की मात्रा उस विलयन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक विलेय की मात्रा से अधिक घुली हुई हो, अतिसंतृप्त विलयन कहलाता है।
◆ विलेयता (Solubility) – किसी निश्चित ताप और दाब पर 100 ग्राम विलायक में घुलने वाली विलेय की अधिकतम मात्रा को उस विलेय पदार्थ की उस विलायक में विलेयता कहते हैं ।
विलेयता = विलेय की मात्रा / विलायक की मात्रा x 100
◆ किसी पदार्थ की विलायक में विलेयता, विलायक तथा विलेय की प्रकृति पर, ताप एवं दाब पर निर्भर करती है ।
विलेयता पर ताप का प्रभाव
◆ सामान्यतः ठोस पदार्थों की विलेयता ताप बढ़ाने से बढ़ती है ।
◆ कुछ ठोस पदार्थों की विलेयता ताप बढ़ाने से घटती है। जैसे सोडियम सल्फेट, कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड, कैल्शियम साइट्रेट आदि ।
◆ किसी द्रव में गैस की विलेयता ताप बढ़ने से घटती है ।
विलेयता पर दाब का प्रभाव
◆ दाब बढ़ाने पर द्रव में गैस की विलेयता बढ़ती है।
◆ विलयन का सांद्रण (Concentration of Solution)- किसी विलायक (या विलयन) की इकाई मात्रा में उपस्थित विलेय की मात्रा को विलयन का सान्द्रण कहते हैं। जिस विलयन में विलेय की पर्याप्त मात्रा घुली रहती है उसे सान्द्र विलयन कहा जाता है और जिसमें विलेय की कम मात्रा घुली रहती है उसे तनु विलयन कहा जाता है। सभी तनु विलयन असंतृप्त विलयन होते हैं। जो विलयन जितना ही अधिक तनु होता है वह उतना ही अधिक असंतृप्त होता है ।
◆ परिक्षेपण (Dispersion) – जब किसी पदार्थ के कण (परमाणु, अणु या आयन) दूसरे पदार्थ के कणों के इर्द-गिर्द छितरा दिए जाते हैं तो यह क्रिया परिक्षेपण (Dispersion) कहलाती है। पहले पदार्थ को परिक्षेपित पदार्थ और दूसरे को परिक्षेपण माध्यम कहा जाता है । परिक्षेपण के फलस्वरूप दो प्रकार के पदार्थ बनते हैं- (i) विषमांग पदार्थ (निलंबन एवं कोलॉइड) (ii) समांग पदार्थ – (वास्तविक विलयन) ।
◆ निलंबन (Suspension)- इसमें परिक्षेपित कणों का आकार 10-3 सेमी से 10-4 सेमी या इससे अधिक होता है। इन्हें आँखों से देखा जा सकता है। इसके कण छन्ना पत्र के आर-पार नहीं आ जा सकते। ये अस्थायी होते हैं तथा इनके कणों में परिक्षेपण माध्यम से अलग हो जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। उदाहरण नदी का गंदा पानी, वायु में धुआँ आदि।
◆ कोलॉइड (Colloid)- इसमें परिक्षेपित कणों का आकार 10-5 सेमी और 10-7 सेमी के बीच होता है । इसके कणों को नग्न आँखों की सहायता से नहीं देखा जा सकता बल्कि सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। इसके कण छन्ना-पत्र के आर-पार आ-जा सकते हैं। लेकिन चर्म पत्र से नहीं निकल सकते हैं। इसके कणों में परिक्षेपण माध्यम से अलग हो जाने की बहुत कम प्रवृत्ति पाई जाती है। उदाहरण दूध, गोंद, रक्त, स्याही आदि ।
कोलॉइड के विभिन्न प्रकार
◆ सोल-वैसा कोलॉइड, जिसमें ठोस कण द्रव में परिक्षेपित होते हैं, उसे सोल कहा जाता है । रबर के दस्तानों का निर्माण विद्युत् लेपन द्वारा रबर सोल से किया जाता है ।
◆ जेल-वैसा कोलॉइड जिसमें ठोस कण द्रव में समान रूप से परिक्षेपित तो होते हैं, पर उनमें प्रवहता (Flow) नहीं होती है, जेल कहलाती है। जैसे-जेली, और जिलेटिन ।
◆ एरोसोल–किसी गैस में द्रव या ठोस कणों का परिक्षेपण एरोसोल कहलाता है । जब परिक्षेपित कण ठोस होता है तो ऐसे ऐरोसोल को धुआँ (Smoke) कहा जाता है और जब परिक्षेपित पदार्थ द्रव होता है तो ऐसे एरोसोल को कोहरा कहा जाता है ।
नोट : जब परिक्षेपण का माध्यम जल, अल्कोहल एवं बेंजीन हो तो कोलॉइडों को क्रमशः हाइड्रोसोल अल्कोहल्स एवं बेंजोसोल कहते हैं ।
◆ पायस (Emulsion) – जब किसी कोलॉइड में एक द्रव के सारे कण दूसरे द्रव के सारे कणों में परिक्षेपित तो हो जाते हैं, लेकिन घुलते नहीं हैं, तो इस कोलॉइड को पायस कहते हैं । पायस बनाने की प्रक्रिया को पायसीकरण कहते हैं। दूध एक प्राकृतिक पायस है, जबकि पेंट एक कृत्रिम पायस कॉडलिवर तेल जिसमें जल के कण तेल में परिक्षेपित होते हैं, भी पायस का उदाहरण है। सबसे बड़े पैमाने पर पायसीकरण के रूप में साबुनों और डिटर्जेंट का प्रयोग किया जाता है। इनकी पायसीकरण की प्रकृति कपड़ों को धोने में सहायता करती है । पायसी कारकों का प्रयोग अयस्कों के सान्द्रण में भी किया जाता है ।
◆ झाग (Foams) – द्रव में गैस का परिक्षेपण झाग कहलाता है। ये साबुन से उत्पन्न होते हैं ।
◆ वास्तविक विलयन (True Solution) – इनके कण आण्विक आकार वाले होते हैं अर्थात् इनके कणों का आकार 10-7 से 10-8 सेमी होता है । इसके कण छन्ना – पत्र के आर-पार आसानी से आ-जा सकते हैं। यह सबसे स्थायी एवं पारदर्शक होता है। ये आँख तथा सूक्ष्मदर्शी से दिखाई नहीं देते हैं ।
◆ अपोहन (Dialysis)-कोलॉइडी विलयन को वास्तविक विलयन से पृथक् करने की प्रक्रिया अपोहन कहलाती है । अर्थात् इस विधि द्वारा कोलॉइडी विलयन को शुद्ध किया जाता है। ।
◆ ब्राउनी गति (Brownian movement) – कोलॉइडी विलयन के कण लगातार इधर-उधर भागते रहते हैं, इसे ब्राउनी गति कहते हैं । यह गति कोलॉइड कणों की प्रकृति पर निर्भर नहीं करती है। कण जितने ही सूक्ष्म होते हैं तथा माध्यम की श्यानता जितनी ही कम होती है एवं ताप जितना ही अधिक होता है यह गति उतनी ही तेज होती है।
◆ स्कन्दन (Coagulation) – जब कोलॉइडी विलयन में कोई विद्युत् अपघट्य मिलाते हैं तो कोलॉइडी कणों का आवेश उदासीन हो जाता है और उसका अवक्षेपण हो जाता है, इसे स्कन्दन कहते हैं ।
◆ टिंडल प्रभाव – जब किसी कोलॉइडी विलयन में तीव्र प्रकाश गुजारते हैं और इसके लम्बवत् रखे सूक्ष्मदर्शी से देखते हैं तो कोलॉइड कण काली पृष्ठभूमि में आलपिन की नोक की भाँति चमकने लगते हैं। इसे टिंडल प्रभाव कहते हैं । टिंडल प्रभाव का कारण प्रकाश का प्रकीर्णन है ।
◆ बफर विलयन (Buffer Solution) – वह विलयन जो कि अम्ल या क्षार की साधारण मात्राओं को अपनी प्रभावी अम्लता या क्षारता में पर्याप्त परिवर्तन किए बिना अवशोषित लेता है, इसे बफर विलयन कहते हैं। जैसे-सोडियम ऐसीडेट तथा ऐसीटिक अम्ल मिश्रण एक प्रभावी बफर है, जब उसे पानी में विलीन किया जाता ।
9. कार्बन एवं उसके यौगिक (Carbon and its Compound)
◆ कार्बन एक अधातु है। इसकी परमाणु संख्या 6 है। इसे आधुनिक आवर्त सारणी के वर्ग IV A में रखा गया है ।
◆ अपरूपता (Allotropy) – वैसे पदार्थ जिनके रासायनिक गुण समान एवं भौतिक गुण भिन्न हों ‘अपरूप’ कहलाते हैं, और इस घटना को ‘अपरूपता’ कहते हैं।
◆ कार्बन के दो मुख्य अपरूप हैं- (i) हीरा एवं (ii) ग्रेफाइट
◆ हीरा के प्रमुख गुण –
(i) यह ताप एवं विद्युत् का कुचालक होता है ।
(ii) यह दुनिया का सबसे कठोर पदार्थ है, यह किसी भी द्रव में नहीं घुलता है। इस पर अम्ल, क्षार आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(iii) इसके रवे घनाकार होते हैं।
(iv) इसका अपवर्तनांक 2.417 होता है, अतः पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण यह बहुत चमकता है। इस पर रेडियम से निकलने वाली x-किरणों के पड़ने पर यह हरा रंग प्रदर्शित करता है ।
(v) शुद्ध हीस पारदर्शक एवं रंगहीन होता है।
◆ कुछ हीरे काले होते हैं, जिन्हें बोर्ट (Boart) कहते हैं। इसका उपयोग शीशा काटने में किया जाता है ।
◆ ग्रेफाइट के प्रमुख गुण
(i) यह विद्युत् का सुचालक होता है ।
(ii) इसका आपेक्षिक घनत्व 2.2 होता है ।
(iii) कागज पर रगड़ने से यह उस पर काला निशान बना देता है, इसलिए इसको काला शीशा भी कहते हैं ।
◆ ग्रेफाइट का उपयोग पेंसिल बनाने में, परमाणु भट्ठी में, इलेक्ट्रोड के रूप में एवं कार्बन आर्क बनाने में किया जाता
◆ हीरा में कार्बन sp3 एवं ग्रेफाइट में कार्बन sp2 प्रसंकरित रहता है ।
हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon)
◆ कार्बन एवं हाइड्रोजन के यौगिक को हाइड्रोकार्बन कहते हैं । हाइड्रोकार्बन का एक प्राकृतिक स्रोत पेट्रोलियम (कच्चा तेल) है, जिसे प्रकृति द्वारा पृथ्वी में कुछ विशेष प्रकार के अवसादी चट्टानों (sedimentary rocks) के बीच बचे भंडारों में संरक्षित किया गया है ।
◆ हाइड्रोकार्बन तीन प्रकार के होते हैं –
1. संतृप्त हाइड्रोकार्बन (Saturated hydrocarbon) – जिस हाइड्रोकार्बन में प्रत्येक कार्बन परमाणु की चारों संयोजकताएँ एक सहसंयोजी आबंधों द्वारा संतुष्ट होती है, उसे संतृप्त हाइड्रोकार्बन या एल्केन (Alkane) कहते हैं । एल्केन श्रेणी का सामान्य सूत्र Cn H2n+2 द्वारा दर्शाया जा सकता है, जहाँ n किसी अणु में उपस्थित कार्बन परमाणुओं की संख्या दर्शाता है। मिथेन, इथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन आदि एल्केन के प्रमुख उदाहरण हैं।
2. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन (Unsaturated Hydrocarbon ) – वे हाइड्रोकार्बन जिनमें कम से कम दो निकटस्थ कार्बन परमाणु आपस में द्विबंध अथवा त्रिबंध बनाकर अपनी संयोजकता को संतुष्ट करते हैं असंतृप्त हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। द्विबंध वाला असंतृप्त हाइड्रोकार्बन को एल्कीन (Alkene) कहते हैं। एल्कीन श्रेणी का सामान्य रासायनिक सूत्र Cn H2n होता है। इस श्रेणी का पहला सदस्य एथीन (C2 H4) हैं । त्रिबंध वाला असंतृप्त हाइड्रोकार्बन एल्काइन (Alkyne) कहलाता है। एल्काइन का सामान्य रासायनिक सूत्र Cn H2n-2 होता है। सबसे सरल एल्काइन एथाइन (C2 H2 or H – C ≡ C – H) हैं।
3. ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (Aromatic Hydrocarbon) – बॅजीन (C6 H6) सरलतम ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन है। इसकी संरचना वलय होती है, जो निम्न है –
◆ समावयवता (Isomerism ) – जब दो या दो से अधिक यौगिकों के अणुसूत्र समान होते हैं, परंतु उनके गुणों में अंतर होता है, तब इस विशेष गुण को समावयवता कहते हैं और प्राप्त यौगिक एक-दूसरे के समावयवी कहलाते हैं । इसके दो मुख्य प्रकार हैं
(i) संरचनात्मक – यह परमाणु के भिन्न बंधों के कारण उत्पन्न होती है ।
(ii) त्रिविम समावयवता – यह अन्तरिक्ष में परमाणुओं के भिन्न प्रबंध के कारण उत्पन्न होती है
◆ बहुलकीकरण (Polymerisation) – जब एक ही यौगिक के दो अथवा अधिक अणु आपस में संयोग करके एक बड़ा अणु बनाते हैं, तब इस अभिक्रिया को बहुलकीकरण कहा जाता है । इस अभिक्रिया में भाग लेने वाले अणु को मोनोमर और उत्पाद को पॉलीमर (बहुलक) कहते हैं ।
बहुलकीकरण की विशेषताएँ –
(i) इसमें एक ही यौगिक के अणु परस्पर संयोग करते हैं ।
(ii) किसी भी अणु का निष्कर्षण नहीं होता है ।
(iii) बहुलक का अणुभार मूल यौगिक के अणुभार का गुणक होता है।
◆ प्राकृतिक बहुलक के उदाहरण हैं- स्टार्च एवं सेल्यूलोज ।
◆ प्लास्टिक (Plastics) – प्राकृतिक प्लास्टिक का उदाहरण है-लाह ।
◆ रासायनिक विधि से तैयार प्लास्टिक दो प्रकार के होते हैं
(i) थर्मोप्लास्टिक एवं (ii) थर्मोसेटिंग प्लास्टिक
(i) थर्मोप्लास्टिक ( Thermoplastic)यह गर्म करने पर मुलायम तथा ठण्डा करने पर कठोर हो जाता है । यह गुण इसमें सदैव मौजूद रहता है चाहे इसे कितनी बार ठण्डा व गर्म किया जाय । जिन कार्बनिक यौगिकों के अन्त में एक द्विबंध रहता है, उनके योग बहुलकीकरण से थर्मोप्लास्टिक्स बनते हैं। उदाहरण-पॉलीस्टॉइरीन, पॉलीथीन, नायलॉन तथा पॉलीवाइनिल क्लोराइड, टेफ्लॉन आदि ।
◆ पॉलीथीन, एथिलीन (C2 H4) को उच्च ताप एवं उच्च दाब पर बहुलकीकरण के फलस्वरूप प्राप्त होता है । इसका उपयोग तार के ऊपर का आवरण, पैकिंग थैलियाँ बनाने में होता है ।
◆ पोलीस्टाइरीन, फेनिल एथिलीन के बहुलकीकरण के फलस्वरूप प्राप्त होता है । इसका उपयोग अम्ल रखने की बोतल, सेलों के कवर आदि बनाने में होता है
◆ पॉली विनाइल क्लोराइड, वाइनिल क्लोराइड के बहुलकीकरण से प्राप्त होता है । इसका उपयोग पतली चादरें, फिल्म, बरसाती सीट कवर आदि बनाने में होता है ।
(ii) थर्मोसेटिंग प्लास्टिक (Thermosetting plastics) – यह वह प्लास्टिक है, जो पहली बार गर्म करते समय मुलायम हो जाता है और उसे इच्छित आकार में ढाल लिया जाता है । इसे पुनः गर्म करके मुलायम नहीं बनाया जा सकता है। इस प्रकार के अनुत्क्रमणीय बहुलकों को ताप दृढ़ बहुलक कहते हैं। उदाहरण- बैकेलाइट तथा मेलामाइन
◆ बैकेलाइटयह फिनॉल तथा फार्मल्डिहाइड को सोडियम हाइड्रोक्साइड की उपस्थिति में गरम करके प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन आदि के केस, बाल्टी आदि बनाने में किया जाता है ।
◆ रबड़ (Rubber) – रबड़ दो प्रकार का होता है- (i) प्राकृतिक एवं (ii) संश्लिष्ट
◆ प्राकृतिक रबड़ – यह आइसोप्रीन (Isoprene) का बहुलक होता है, यह थर्मोप्लास्टिक है।
◆ वल्कनीकरण (Vulcanisation)प्राकृतिक रबड़ को सल्फर के साथ मिलाकर गर्म करने की क्रिया वल्कनीकरण कहलाता है । इसके बाद रबड़ एक निश्चित आकार ग्रहण कर लेता है । इस प्रकार के रबड़ का उपयोग दस्ताना (Gloves), रबड़ बैंड (Rubber band) बनाने में किया जाता है ।
◆ रबड आसानी से कार्बन डाईसल्फाइड में घुल जाता
◆ प्राकृतिक रबड़ काफी मुलायम होता है, इसे कठोर बनाने के लिए इसमें कार्बन मिलाया जाता है । तब इसका प्रयोग ट्यूब, टायर आदि बनाने में किया जाता है ।
◆ संश्लिष्ट रबड़ (Synthetic Rubber
(i) नियोप्रीन (Neoprene) – 2 – क्लोरोब्युटाडाइन (2-Chorobutadieoe) के बहुलकीकरण से बनता है । इसका उपयोग विद्युत् – रोधी पदार्थ (Insulating, material) विद्युत् तार (electric cable), कनवेयर बेल्ट (conveyor belt) खनिज तेल ले जाने वाले पाइप बनाने में किया जाता है ।
(ii) थाईकॉल (Thiokol) — यह दूसरा कृत्रिम रबड़ है, जो डाइक्लोरो इथेन (dichloro ethane) को पॉलीसल्फाइड (polysulphide ) की प्रतिक्रिया से बनाया जाता है। इसका उपयोग खनिज तेल ले जाने वाले पाइप बनाने में, विलायक जमा करने वाला टैंक (solvent storage tank) आदि बनाने में किया जाता है।
नोट : थाईकॉल रबड़ को ऑक्सीजन मुक्त करनेवाले रसायनों के साथ मिलाकर रॉकेट इंजनों में ठोस ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
◆ रेशे (Fibres) वे शृंखला युक्त ठोस जिनकी लम्बाई, चौड़ाई की अपेक्षा सैकड़ों या हजारों गुना अधिक हो, रेशे कहलाते हैं । रासायनिक रेशे
◆ नॉयलॉन (Nylon)-नॉयलॉन शब्द न्यूयार्क (Newyork) शहर के ‘NY’ तथा लंदन के ‘LON’ के मिलाकर बनाया गया। नॉयलॉन ऐसे छोटे कार्बनिक अणुओं के बहुलकीकरण प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं है। यह एक पॉली एमाइड रेशे का उदाहरण है, जिसमें एमाइड समूह (> CONH2) प्रत्येक इकाई पर होता है, तथा बार-बार दोहराया जाता है। पॉली एमाइड रेशा बनाने के लिए, दो एमीन (−NH2) समूह युक्त किसी कार्बनिक यौगिक की अभिक्रिया किसी ऐसे कार्बनिक यौगिक के साथ की जाती है, जिसमें कार्बोक्सिलिक अम्ल (–COOH) के दो समूह हों। नॉयलॉन मानव द्वारा संश्लिष्ट किया गया पहला रेशा था, इसका निर्माण सर्वप्रथम सन् 1935 ई० में किया गया था तथा व्यापारिक स्तर पर पहली बार सन् 1939 ई० में महिलाओं के लिए जुराबें इससे बनाई गयीं । नॉयलॉन का उपयोग मछली पकड़ने के जाल में, पैराशूट के कपड़ा में, टायर, दाँत ब्रश, पर्वतारोहण के लिए रस्सी आदि में होता है ।
◆ रेयॉन (Rayon) – सेल्यूलोज से बने कृत्रिम रेशे को रेयॉन कहते हैं। रेयॉन बनाने के लिए सेल्यूलांज कागज की लुगदी या काष्ठ को लिया जाता है। इसे सान्द्र तथा ठण्डे सोडियम हाइड्रोक्साइड तथा कार्बन डाइसल्फाइड से उपचारित करते हैं, उसके बाद इस सेल्यूलोज के विलयन को धातु बेलनों में बने छिद्रों में से होकर वृनु सल्फ्युरिक अम्ल में गिराया जाता है, यहाँ इसके लम्बे-लम्बे तन्तु बन जाते हैं। रेयॉन रासायनिक दृष्टि से सूत के समान है। रेयॉन का उपयोग कपड़ा बनाने में, कालीन बनाने में चिकित्सा क्षेत्र में लिट या जाली बनाने के लिए किया जाता है।
◆ पॉलिएस्टर (Polyster) – इसे इंग्लैंड में विकसित किया गया था। इसे संश्लिष्ट करने के लिए दो हाइड्रोक्सिल (–OH) समूह-युक्त कार्बन यौगिक की अभिक्रिया दो काबॉक्सिलिक ( –COOH) समूह के यौगिक के साथ की जाती है । हाइड्रोक्सिल तथा कार्बोक्सिलिक समूह के मध्य अभिक्रिया के परिणामस्वरूप एस्टर समूह बनता है। चूँकि इस रेशे में अनेक एस्टर समूह होते हैं, इसलिए इसे पॉलिएस्टर कहते हैं। पॉलिएस्टर का उपयोग कपड़े के रूप में, पाल नौकाओं का पाल बनाने में, अग्नि शमन के प्रयुक्त हौज पाइप बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है ।
◆ कार्बन फाइबर (Carbon Fibres) – कार्बन फाइबर कार्बन परमाणुओं की लम्बी श्रृंखला से बने होते हैं । इसका संक्षारण (corrosion) नहीं होता है। इसका निर्माण संश्लिष्ट रेशों को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में गर्म करके किया जाता है, जिससे रेशे अपघटित होकर कार्बन फाइबर उत्पन्न करते हैं। इसका उपयोग अंतरिक्ष यान तथा खेलकूद की सामग्री बनाने में होता है ।
◆ पेट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry ) – पेट्रोलियम प्रायः प्राकृतिक गैस के नीचे पाया जाता है। कच्चे पेट्रोलियम को प्रभाजी आसवन (Destructive Distillation) के द्वारा शुद्ध किया जाता है । इसमें भिन्न-भिन्न क्वथनांक पर संघनित प्रभाज पृथक्-पृथक् इकट्ठे कर लिए जाते हैं, जिसे पेट्रोलियम का उत्पाद कहा जाता है।
10. ईंधन (Fuel)
◆ ईंघन (Fuel) – वह पदार्थ, जो हवा में जलकर बगैर अनावश्यक उत्पाद के ऊष्मा उत्पन्न करता है. ईंघन कहलाता है ।
◆ एक अच्छे ईंघन के निम्नलिखित गुण होने चाहिए – (i) वह सस्ता एवं आसानी से उपलब्ध होना चाहिए । (ii) उसका ऊष्मीय मान (Calorific value) उच्च होना चाहिए । (iii) जलने के बाद उससे अधिक मात्रा में अवशिष्ट पदार्थ नहीं बचना चाहिए। (iv) जलने के दौरान या बाद में कोई हानिकारक पदार्थ नहीं उत्पन्न होना चाहिए । (v) उसका जमाव, परिवहन आसान होना चाहिए। (vi) उसका जलना नियंत्रित होना चाहिए । (vii) उसका प्रज्वलन ताप (Ignition temperature) निम्न होना चाहिए ।
◆ ईंधन का ऊष्मीय मान (Calorific Value of Fuels) – किसी ईंधन का ऊष्मीय मान ऊष्मा की वह मात्रा है, जो उस ईंधन के एक ग्राम को वायु या ऑक्सीजन में पूर्णत: जलाने के पश्चात् प्राप्त होती हैं । किसी भी अच्छे ईंधन का ऊष्मीय मान अधिक होना चाहिए। सभी ईंधनों में हाइड्रोजन का ऊष्मीय मान सबसे अधिक होता है परंतु सुरक्षित भंडारण की सुविधा नहीं होने के कारण उपयोग आमतौर पर नहीं किया जाता है । हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में तथा उच्च ताप उत्पन्न करने वाले ज्वालकों में किया जाता है । हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन भी कहा जाता है।
◆ अपस्फोटन (Knocking) व आक्टेन संख्या (Octane number) – कुछ ईंधन ऐसे होते हैं जिनका वायु मिश्रण का इंजनों के सिलेण्डर में ज्वलन समय के पहले हो जाता है, जिससे ऊष्मा पूर्णतया कार्य में परिवर्तित न होकर धात्विक ध्वनि उत्पन्न करने में नष्ट हो जाती है । यही धात्विक ध्वनि अपस्फोटन कहलाती है। ऐसे ईंधन जिनका अपस्फोटन अधिक होता है उपयोग के लिए उचित नहीं माने जाते हैं। अपस्फोटन कम करने के लिए ऐसे ईंधनों में अपस्फोटरोघी यौगिक मिला दिए जाते हैं जिससे इनका अपस्फोटन कम हो जाता है। सबसे अच्छा अपस्फोटरोधी यौगिक टेटा एथिल लेड (TFI ) है । अपस्फोटन को आक्टेन संख्या के द्वारा व्यक्त किया जाता है। किसी ईंधन, जिसका आक्टेन संख्या जितनी अधिक होती है, का अपस्फोटन उतना ही कम होता है तथा वह उतना ही उत्तम ईंधन माना जाता है।
◆ ईंधन का वर्गीकरण – भौतिक अवस्था के आधार पर ईंधन को निम्न प्रकार बाँटा गया है –
◆ कोयला (Coal) – कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार के होते हैं –
(i) पीट कोयला – इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 60% तक होती है । इसे जलाने पर अधिक राख एवं धुआँ निकलता है। यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है ।
(ii) लिग्नाइट कोयला – कोयला इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है । इसका रंग भूरा (Brown) होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती हैं।
(iii) बिटुमिनस कोयला-इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है। इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है।
(iv) एन्थ्रासाइट कोयला- यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है। इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है ।
◆ द्रव ईंधन (Liquid fuel) – पेट्रोल, डीजल, किरासन तेल, अल्कोहल, स्पिरिट सभी द्रव ईंधन के उदाहरण हैं।
गैसीय ईंधन (Gaseous fuel)
◆ प्राकृतिक गैस – यह पेट्रोलियम कुआँ से निकलती है। इसमें 95% हाइड्रोकार्बन होता है, जिसमें 80% मिथेन रहता है। घरों में प्रयुक्त होने वाली द्रवित प्राकृतिक गैस को एल० पी० जी० कहते हैं । यह ब्यूटेन एवं प्रोपेन का मिश्रण होता है, जिसे उच्च दाब पर द्रवित कर सिलेण्डरों में भर लिया जाता है ।
◆ एल० पी० जी० अत्यधिक ज्वलनशील होती है, अतः इससे होने वाली दुर्घटना से बचने के लिए इसमें सल्फर के यौगिक (मिथाइल मरकॉप्टेन) को मिला देते हैं, ताकि इसके रिसाव को इसकी गंध से पहचान लिया जाय ।
◆ गोबर गैस (Bio-gas) – गीले गोबर (पशुओं के मल) के सड़ने पर ज्वलनशील मिथेन-गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयंत्र में शेष रहे पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है ।
◆ प्रोड्यूसर गैस (Producer gas) – यह गैस लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके बनायी जाती है, इसमें मुख्यत: कार्बन मोनोक्साइड ईंधन का काम करता है । इसमें 70% नाइट्रोजन, 25% कार्बन मोनोक्साइड एवं 4% कार्बन डाई ऑक्साइड रहता है । इसका ऊष्मीय मान (calorific value) 1100-1750 kcal/kg होता है। काँच एवं इस्पात उद्योग में इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है । – –
◆ जल गैस (Water gas) – इसमें हाइड्रोजन 49%, कार्बन मोनोक्साइड 45% तथा कार्बन-डाईऑक्साइड 4.5% होता है । इसका ऊष्मीय मान 2500 से 2800 kca/kg होता है। इसका उपयोग हाइड्रोजन एवं अल्कोहल के निर्माण में अपचायक के रूप में होता है।
◆ कोल गैस (Coal gas) – यह कोयले के भंजक आसवन (Destructive distillation) से बनाया जाता है । यह रंगहीन तीक्ष्ण गंध वाली गैस है, यह वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है। इसमें 54% हाइड्रोजन, 35% मिथेन, 11% कार्बन मोनोक्साइड, 5% हाइड्रोकार्बन, 3% कार्बन डाइआक्साइड होता है ।
◆ ईंधन का ऊष्मीय मान उसकी उसकी कोटि का निर्धारण करता है l
◆ अल्कोहल को जब पेट्रोल में मिला दिया जाता है, तो उसे पावर अल्कोहल (Power alcohol) कहते हैं, जो ऊर्जा का एक वैकल्पिक स्रोत है ।
11. धातुएँ (Metals)
◆ ऐसे तत्त्व ( हाइड्रोजन के अतिरिक्त) जो इलेक्ट्रॉन को त्याग कर धनायन प्रदान करते हैं, धातु’ कहलाते हैं। धातुएँ सामान्यत: चमकदार, अघातवर्ध्य तथा तन्य होती है ।
◆ धातुएँ ऊष्मा एवं विद्युत् की सुचालक (good conductors) होती है। वाँदी विद्युत् का सर्वश्रेष्ठ सुचालक है । धातुओं में विद्युत चालकता घटते क्रम में होती है –
चाँदी > ताँबा > ऐलुमिनियम > टंगस्टन
◆ सीसा की उष्मीय एवं विद्युत् चालकता सबसे कम होती है।
◆ धातुओं के ऑक्साइड की प्रकृति क्षारकीय होती है।
अपवाद : क्रोमियम ऑक्साइड (Cr2 O3) की प्रकृति अम्लीय होती है।
◆ Al, Zn, एवं Pb के ऑक्साइड उभयधर्मी (amphoteric) होते हैं ।
◆ धातुएँ प्रायः तनु अम्लों से हाइड्रोजन विस्थापित करती है। ताँबा तनु हाइडोक्लोरिक अम्ल के साथ अभिक्रिया नहीं करती है ।
धातुओं की प्राप्ति
◆ पृथ्वी को भू-पर्पटी धातुओं का मुख्य स्रोत हैं। भू-पर्पटी में मिलने वाले धातुओं में ऐलुमिनियम (7%), लोहा (4%) एवं कैल्शियम (3%) का क्रमश: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान है।
◆ खनिज (Minerals) – भू-पर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्त्वों या यौगिक को खनिज कहते हैं ।
◆ अयस्क (Ores) वे खनिज जिनसे धातुओं को सुगमतापूर्वक तथा लाभकारी रूप में निष्कर्षित किया जा सकता है, अयस्क कहलाते हैं ।
◆ धातुकर्म (Metallurgy)-अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण तथा परिष्करण में सम्मिलित विभिन्न प्रक्रमों को धातुकर्म कहते हैं।
◆ गैंग (Gangue)–अयस्क में मिले अशुद्ध पदार्थ को गैंग कहते हैं।
◆ फ्लक्स (Flux) – अयस्क में मिले गैंग (अशुद्ध पदार्थ) को हटाने के लिए बाहर से मिलाए गए पदार्थ को फ्लक्स कहते हैं ।
◆ धातुमल (Slag)-गैंग एवं फ्लक्स के मिलने से बने पदार्थ थातुमल कहलाता है।
◆ निस्तापन (Calcination) – इस प्रक्रिया में धातु के अयस्क को उसके द्रवणांक (M.P.) से नीचे के ताप पर गर्म करते हैं, ताकि अयस्क में मिले वान्यशील अशुद्धियाँ दूर हो जाएँ।
◆ भर्जन (Roasting) – इस प्रक्रिया में धातु के अयस्क को गर्म हवा की उपस्थिति में उसके द्रवणांक से नीचे के ताप पर गर्म करते हैं ताकि इसमें मिले अशुद्धि ऑक्सीकृत (oxidise) हो जाए । *
◆ एसमेल्टिंग (Smelting) – इस प्रक्रिया में धातु कोक एवं फ्लक्स को उपस्थिति में उसके द्रवणांक के ऊपर के ताप पर गर्म करते हैं, जिससे शुद्ध धातु प्राप्त होती है ।
◆ सक्रियता श्रेणी – सक्रियता श्रेणी वह सूची है जिसमें धातुओं को क्रियाशीलता को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है ।
◆ कार्बोनेट अयस्क को निस्तापन (calcination) द्वारा धातु ऑक्साइड में परिवर्तित किया जाता है, और सल्फाइड अयस्क को भर्जन (Roasting) द्वारा धातु ऑक्साइड में परिवर्तित किया जाता है ।
◆ धातु ऑक्साइडों की कार्बन, एलुमिनियम अथवा विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा धातु में उपचयित किया जाता ।
◆ सोडियम, पोटेशियम तथा कैल्शियम धातुओ को उसके गलित लोड क्लोराइ क्लोराइड के विधुत अघटन द्वारा निष्कासित किया जाता है जबकि अलमोनियम धातु को उसके गलित ऑक्साइड के विद्युत अपघटन द्वारा निष्कासित क्या जाता है
◆ गलित लवणों के विद्युत् अपघटन के दौरान शुद्ध धातु कैथोड पर निक्षेपित होती है ।
संझारण
◆ धातुओं का उनकी सतह पर वायु एवं आर्द्रता के प्रभाव द्वारा नष्ट होना संक्षारण (corrosion) कहलाता है। लोहे में जंग लगना, ताँबा की सतह पर हरे रंग की परत चढ़ना एवं चाँदी की वस्तुएँ को काली हो जाना संक्षारण के उदाहरण है।
◆ लोहे में जंग लगना रासायनिक परिवर्तन का उदाहरण है। जंग लगने से लोहे का भार बढ़ जाता है। लोहे में जंग लगने में बना पदार्थ फेरिसोफेरिक ऑक्साइड (Fe2 O3 xH2O) होती है। (जल के अणुओं की संख्या x बदलती रहती है।)
◆ पेंट करके, तेल लगाकर, ग्रीज लगाकर, यशदलेपन, क्रोमियम लेपन, ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर लोहे को जंग लगने से बचाया जा सकता है ।
नोट: यशदलेपन – लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उन पर जस्ते की पतली परत चढ़ाने की विधि को यशदलेपन कहते हैं।
◆ ताँबा वायु में उपस्थित आर्द्र कार्बन डाई ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करता है जिससे इसकी सतह से भूरे रंग की चमक धीरे-धीरे खत्म हो जाती है तथा इस पर हरे रंग की परत चढ़ जाती है । यह हरा पदार्थ कॉपर कार्बोनेट होता है । –
◆ खुली वायु में कुछ दिन छोड़ देने पर सिल्दर की वस्तुएँ काली हो जाती है । सिल्वर का वायु में उपस्थित सल्फर के साथ अभिक्रिया कर सिल्वर सल्फाइड की परत बनाने के कारण ऐसा होता है ।
धातुओं से संबंधित विविध तथ्य
◆ टंगस्टन का संकेत W होता है । इसका गलनांक लगभग 3500°C होता है ।
◆ भारत में टंगस्टन का उत्पादन राजस्थान स्थित देगाना (Degana) खान से होता है।
◆ टंगस्टन तंतु के उपचयन को रोकने के लिए बिजली के बल्ब से हवा निकाल दी जाती है।
◆ जिरकोनियम धातु ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन दोनों में जलते हैं ।
◆ न्यूट्रॉनों को अवशोषित करने के गुणों के कारण जिरकोनियम कैडमियम एवं बोरॉन का उपयोग नाभिकीय रिएक्टर में किया जाता है ।
◆ बेराइल (Baryl) बेरीलियम धातु का मुख्य अयस्क है।
◆ फ्रांसियम एक रेडियोसक्रिय द्रव धातु है ।
◆ स्टेनस सल्फाइड (SnS,) को मोसाइक गोल्ड (Mosaic gold) कहते हैं, इसका प्रयोग पेंट के रूप में किया जाता है ।
◆ टिन अपरूपता प्रदर्शित करता है ।
◆ सबसे भारी धातु ओसमियम (Os) है, और प्लेटिनम सबसे कठोर धातु है ।
◆ बेरियम हाइड्रॉक्साइड को बैराइटा वाटर कहते हैं ।
◆ बेरियम सल्फेट (Barium sulphate) का उपयोग बेरियम मील के रूप में उंदर के x-ray में होता है ।
◆ आतिशबाजी के दौरान हरा रंग बेरियम की उपस्थिति के कारण होता है ।
◆ आतिशबाजी के दौरान लाल चटक रंग (crimson red colour) स्ट्रॉन्शियम (Sr) की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होता है ।
◆ लिथियम सबसे हल्का धात्विक तत्व है । यह सबसे प्रबल अपचायक होता है ।
◆ चाँदी (Ag), सोना (Au), ताँबा (Cu), प्लेटिनम (Pt) तथा बिस्मथ (Bi) अपने कम अभिक्रियाशीलता के कारण स्वतंत्र अवस्था में पाये जाते हैं।
◆ गोल्ड, प्लेटिनम, सिल्वर तथा मरकरी उत्कृष्ट धातुएँ हैं।
◆ धातुओं में सबसे अधिक आघातवर्ध्य सांना (Au) व चाँदी (Ag) होते हैं
◆ पारा व लोहा विद्युत् धारा के प्रवाह में अपेक्षाकृत अधिक प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं।
◆ चाँदी एवं ताँबा विद्युत् धारा का सर्वोत्तम चालक है ।
◆ एलुमिनियम का सर्वप्रथम पृथक्करण 1827 ई० में हुआ था।
◆ प्याज व लहसुन में गंध का कारण पोटॅशियम की उपस्थिति है।
◆ कार्नोटाइट का रासायनिक नाम पोटैशियम यूरेनिल वेन्डेट होता है ।
◆ कैंसर रोग के इलाज में कोबाल्ट के समस्थानिक का उपयोग होता है।
◆ स्मेल्टाइट (Smeltite) निकेल धातु का अयस्क है ।
◆ सोडियम पर ऑक्साइड का उपयोग पनडुब्बी जहाजों तथा अस्पताल आदि की बंद हवा को शुद्ध करने में होता है ।
◆ ग्रीनोकाइट कैडमियम का अयस्क है ।
◆ कैडमियम का प्रयोग नाभिकीय रिएक्टरों में न्यूट्रॉन मंदक के रूप में संग्राहक बैटरियों में तथा निम्न गलनांक की मिश्रधातु बनाने में होता है।
◆ एक्टिनाइड (Actinides) रेडियोसक्रिय तत्त्वों का समूह होता है।
◆ विश्व प्रसिद्ध एफिल टावर का आधार स्टील व सीमेंट का बना है।
◆ थुलियम का संकेत Tm होता है ।
◆ रेडियम का निष्कर्षण पिचब्लैंड से किया जाता है। मैडम क्यूरी ने पिचब्लैंड से ही रेडियम का निष्कर्षण किया था ।
◆ वायुयान के निर्माण में पेलेडियम धातु प्रयुक्त होती है।
◆ गैलियम धातु कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पाया जाता है।
◆ सेलीनियम धातु का उपयोग फोटो इलेक्ट्रिक सेल में होता है।
◆ साइट्रोक्रोम (Cytochrome) में लोहा उपस्थित होता है ।
◆ जिओलाइट (Zeolite) का प्रयोग जल को मृदु बनाने में किया जाता है।
◆ टिन अपरूपता प्रदर्शित करता है ।
◆ अधिकांश संक्रमण धातु (Transition elements) और उनके यौगिक रंगीन होते हैं ।
◆ पोटैशियम कार्बोनेट (K2 CO3) को पर्ल एश (Pearl Ash) कहते हैं ।
◆ नाइक्रोम (Nichrome) निकिल, क्रोमियम और आयरन का मिश्रधातु है। विद्युत् हीटर की · कुंडली नाइक्रोम की ही बनी होती है ।
◆ क्रोमिक अम्ल का रासायनिक नाम क्रोमियम ट्राइऑक्साइड है ।
◆ ब्रिटेनिया धातु (Britannia metal) एण्टिमनी (Sb), ताँबा व टिन (Sn) की मिश्रधातु हैं।
◆ बारूद 75% पोटैशियम नाइट्रेट, 10% गंधक व 15% चारकोल एवं अन्य पदार्थों का मिश्रण होता है ।
◆ बैबिट धातु ( Babbitt metal) में 89% टिन, 9% एण्टिमनी, व 2% ताँबा होता है।
◆ समूह – I के तत्त्व क्षार धातुएँ (Alkali metals) कहलाते हैं एवं इसके हाइड्रॉक्साइड क्षारीय होते हैं। जबकि समूह II के तत्त्व क्षारीय मृदा धातुएँ (Alkaline earth metals) कहलाते हैं ।
◆ टाइटेनियम को रणनीतिक धातु (Strategic metal) कहते हैं, क्योंकि इसका उपयोग रक्षा उत्पादन में होता है । यह इस्पात के बराबर मजबूत लेकिन भार में उसका आधा गुण वाला धातु है । वायुयान का फ्रेम तथा इंजन बनाने में, नाभिकीय रिऐक्टरों में इसका उपयोग होता है !
◆ फ्लैश बल्बों में नाइट्रोजन गैस के वायुमंडल में मैग्नेशियम का तार रखा रहता है ।
◆ एल्युमीनियम हाइड्रॉक्साइड कपड़ों को अदाय बनाने तथा जलरोधी कपड़े तैयार करने में उपयोग किया जाता है ।
◆ कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड को हाइड्रोलिथ कहते हैं ।
◆ पिटवाँ लोहा (Wrought iron) में कार्बन की मात्रा सबसे कम (0.12-0.25%) रहती है । अतः यह अपेक्षाकृत शुद्ध होता है।
◆ आयरन (III) ऑक्साइड (Fe2 O3) के साथ एलुमिनियम की अभिक्रिया का उपयोग रेल की पटरी एवं मशीनी पुर्जों की दरारों को जोड़ने के लिए किया जाता है। इस अभिक्रिया को थर्मिट अभिक्रिया कहते हैं ।
◆ शरीर में लोहे की कमी से एनीमिया तथा अधिकता से लौहमयता रोग होता है। अफ्रीका के बाँटू आदिवासियों में लौहमयता (Siderosis) रोग पाया जाता है। ऐसा उनमें लोहे का बर्तन में बीयर सेबन के कारण होता है ।
◆ मानव शरीर में ताँबा की मात्रा में वृद्धि होने पर विल्सन रोग हो जाता है।
◆ टिन की अधिक मात्रा युक्त काँसा को श्वेत काँसा कहते हैं ।
◆ जिंक फॉस्फाइड का उपयोग चूहा विष के रूप में होता है
◆ लकड़ी की वस्तुओं की कीड़ों से बचाने के लिए उस पर जिंक क्लोराइड का लेपन किया जाता है !
◆ जिंक ऑक्साइड को जस्ते का फूल कहते हैं । इसका ह्वाइट अथवा चाइनीज ह्वाइट के नाम से सफेद पेन्टों में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग मरहम तथा चेहरे के क्रीम बनाने में किया जाता है ।
◆ सिल्वर क्लोराइड को हॉर्न सिल्वर कहा जाता है। इसका उपयोग फोटोक्रोमेटिक काँच में होता है।
◆ सिल्वर आयोडाइड का उपयोग कृत्रिम वर्षा कराने में होता है ।
◆ सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग निशान लगाने वाली स्याही बनाने में किया जाता है । मतदान के समय मतदाताओं की अगुलियों पर इसी का निशान लगाया जाता है । सूर्य की प्रकाश में अपघटित हो जाने के कारण इसे रंगीन बोतलों में रखा जाता है ।
◆ चाँदी के चम्मच से अंडा खाना वर्जित रहता है, क्योंकि चाँदी अंडे में उपस्थित गंधक से प्रतिक्रिया कर काले रंग का सिल्वर सल्फाइड बनाती है, जिससे चम्मच नष्ट हो जाती है ।
◆ सोना को कठोर बनाने के लिए उसमें ताँबा या चाँदी मिलाया जाता है। शुद्ध सोना 24 कैरेट का होता है। आभूषण बनाने के लिए 22 कैरेट सोने का उपयोग होता है।
◆ आयरन पायराइट्स (FeS2) को झूठा सोना या बेवकूफों का सोना कहते हैं।
◆ स्वर्ण लेपन में पोटेशियम ओरिसायनाइड का प्रयोग विद्युत् अपघट्य के रूप में होता है।
◆ पारा को क्विक सिल्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसका निष्कर्षण मुख्यतः से होता है। सिनेवार
◆ पारा को लौह पात्र में रखा जाता है, क्योंकि यह लोहे के साथ अमलगम नहीं बनाता है।
◆ ट्यूब लाइट में सामान्यतः पारा का वाष्प और आर्गन गैस भरी रहती है।
◆ सीसा सबसे अधिक स्थायी तत्त्व है। इसका उपयोग कागज पर लिखने में होता है ।
◆ लेड आर्सेनिक नामक मिश्रधातु का उपयोग गोली बनाने में होता है। कार्बन सोसा का उपयोग कृत्रिम अंगों के निर्माण में होता है।
◆ लेड ऑक्साइड को लीथार्ज कहा जाता है, जो एक उभवधर्मी ऑक्साइड है। इसका उपयोग रबर उद्योग में, स्टोरेज बैटरी के निर्माण में तथा फ्लिण्ट काँच बनाने में होता है।
◆ बेसिल लेड कार्बोनेट को ह्वाइट लेड कहा जाता है। इसे सफेदा के नाम से भी जाना जाता है ।
◆ लेड टेट्राइथाइल का उपयोग अपस्फोटन रोकने में किया जाता है ।
◆ लेड पाइप पीने के जल को ले जाने के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं, क्योंकि ये वायु मिश्रित जल के साथ घुल कर विषैले लेड हाइड्रॉक्साइड उत्पन्न करते हैं ।
◆ विद्युत् उपकरणों में प्रयुक्त होने वाला फ्यूज तार लेड और टिन होने वाला फ्यूज तार लेड और टिन से बना मिश्रधातु होता है ।
◆ यूरेनियम को आशा धातु कहा जाता है। भारत में यूरेनियम का सर्वाधिक उत्पादन झारखंड में होता है। यूरेनियम का समस्थानिक 92U238 रेडियो सक्रियता प्रदर्शित नहीं करता है ।
◆ यूरेनियम कार्बाइड का उपयोग हैबर विधि में अमोनिया के उत्पादन में उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है ।
◆ यूरेनियम का उपयोग परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में होता है । यूरेनियम के नाइट्रेट एवं एसीटेट का उपयोग फोटोग्राफी में होता है । ।
◆ यूरेनियम धातु का निष्कर्षण मुख्यतः उसके अयस्क पिंचब्लैंड से किया जाता है ।
◆ प्लूटोनियम एक भारी रेडियोसक्रिय धातु है । यह एक्टीनाइड श्रेणी का सदस्य है । इसका उपयोग परमाणु बम बनाने में होता है । हिरोशिमा एवं नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम इसी से बने हुए थे ।
धातुएँ, अधातुएँ तथा उनके यौगिकों का उपयोग
1. फेरस ऑक्साइड – (i) हरा काँच बनाने में, (ii) फेरस लवणों के निर्माण में ।
2. फेरिक यौगिक (Fe3 O4 ) – (i) जेवरात पॉलिश करने में, (ii) फेरिक लवणों के निर्माण में ।
3. फेरिक हाइड्रोक्साइड (Fe (OH)3) (i) प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में, (ii) हवा बनाने में | ..
4. फेरस सल्फेट (FeSO4.7H2O) – (i) रंग उद्योग में, (ii) मोहर लवण बनाने में, (iii) स्याही बनाने में ।
5. आयोडीन – (i) कीटाणुनाशक के रूप में, (ii) औषधियों के उत्पादन में, (iii) टिंचर आयोडीन बनाने में, (iv) रंग उद्योग में ।
6. ब्रोमीन का उपयोग (Br) – (i) रंग उद्योग, (ii) टिंचर गैस बनाने में, (iii) प्रतिकारक के रूप में, (iv) औषधि बनाने में ।
7. हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) (i) क्लोरीन बनाने में, (ii) अम्लराज बनाने में, (iii) रंग बनाने में, (iv) क्लोराइड लवण के निर्माण में ।
8. क्लोरीन (Cl) – (i) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल HCI के निर्माण में, (ii) मस्टर्ड गैस बनाने में, (iii) ब्लीचिंग पाउडर बनाने में, (iv) कपड़ों एवं कागज को विरंजित करने में ।
9. सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4 ) (i) प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में, (रंग-उत्पादन में, (iii) पेट्रोलियम के शुद्धीकरण में, (iv) स्टोरेज बैटरी में ।
10. सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) (i) अवकारक के रूप में, (ii) ऑक्सीकारक के रूप में, (iii) विरंजक के रूप में।
11. हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) (i) सल्फाइड के निर्माण में, (ii) लवणों के भास्मिक मूलकों के गुणात्मक विश्लेषण में ।
12. सल्फर (S) – (i) कीटाणुनाशक के रूप में, (ii) रबर वल्केनाइज करने में, (iii) बारूद बनाने में, (iv) औषधि के रूप में।
13. अमोनिया (NH3) – (i) प्रतिकारक के रूप में, (ii) आइस फैक्ट्री में, (iii) रेयॉन बनाने में ।
14. नाइट्स ऑक्साइड (N2 O) (i) शल्य चिकित्सा में ।
15. फॉस्फोरस (P) (i) लाल फॉस्फोरस, दियासलाई बनाने में, (ii) श्वेत फॉस्फोरस, चूहे मारने फॉस्फोरस, दवा बनाने में, (iv) फॉस्फोरस ब्रांज बनाने में ।
16. प्रोड्यूसर गैस (CO + N2) (i) भट्टी गर्म करने में, (ii) सस्ते ईंधन के रूप में, (iii) धातु – निष्कर्षण में ।
17. वाटर गैस (CO + H2) (i) ईंधन के रूप में, (ii) वेल्डिंग के कार्य में ।
18. कोल गैस – (i) ईंधन के रूप में, (ii) निष्क्रिय वातावरण तैयार करने में ।
19. कार्बन डाई-ऑक्साइड (CO2) (i) सोडा वाटर बनाने में, (ii) आग बुझाने में, (iii) हार्ड स्टील के निर्माण में ।
20. कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO) – (i) COCI, बनाने में।
21. ग्रेफाइट (Graphite) (i) इलेक्ट्रोड बनाने में, (ii) स्टोव की रंगाई में, (iii) लोहे के बने पदार्थ पर पॉलिश करने में ।
22. हीरा (Diamond) (i) आभूषण निर्माण में, (ii) काँच काटने में
23. फिटकरी [K2SO4 AI2 (SO4)3, 24H2O] –(i) जल को शुद्ध करने में, (ii) चमड़े के उद्योग में, (iii) कपड़ों की रंगाई में ।
24. एल्युमिनियम सल्फेट [AI (SO4)3, 18H2O ] –(i) कागज उद्योग में, (ii) कपड़ों की छपाई में, (iii) आग बुझाने में ।
25. अनार्द्र एल्युमिनियम क्लोराइड (AICI3) (i) पेट्रोलियम के भंजन में ।
26. मरक्यूरिक क्लोराइड (HgCI2) (i) कैलोमेल बनाने में, (ii) कीटनाशक के रूप में।
27. मरक्यूरिक ऑक्साइड (HgO) (i) मलहम बनाने में, (ii) जहर के रूप में।
28. मरकरी (Hg) –(i) थर्मामीटर में, (ii) सिन्दूर बनाने में, (iii) अमलगम बनाने में ।
29. जिंक सल्फाइड (ZnS) (i) श्वेत पिगमैट के रूप में ।
30. जिंक सल्फेट या उजला थोथा (ZnSO4. 7H2O)—(i) लिथेपोन के निर्माण (ii) आँखों के लिए लोशन बनाने में, (iii) कैलिको छपाई में, (iv) चर्म उद्योग में ।
31. जिंक क्लोराइड (ZnCI2) (i) टेक्सटाइल उद्योग में, (ii) कार्बनिक संश्लेषण में, (iii) ताम्र, काँच आदि की सतहों को जोड़ने में।
32. जिंक ऑक्साइड (ZnO) (i) मलहम बनाने में, (ii) पोरसेलिन में चमक (Glaze) लाने में।
33. जिंक (Zn) (i) बैटरी बनाने में, (ii) हाइड्रोजन बनाने में ।
34. कैल्शियम कार्बाइड (CaC2) (i) कैल्शियम सायनाइड एवं एसीटीलिन निर्माण में।
35. ब्लीचिंग पाउडर (CaOCl2) (i) कीटाणुनाशक के रूप में, (ii) कागज तथा कपड़ों के विरंजन में, (iii) रासायनिक उद्योगों में उपचायक के रूप में, (iv) क्लोरोफॉर्म के उत्पादन में ।
36. प्लास्टर ऑफ पेरिस (CaSO4)2, H2O या (CaSO4. 1/2H2O) – (i) मूर्ति बनाने में (ii) शल्य चिकित्सा में पट्टी बाँधने में, (iii) छतों एवं दीवारों को चिकना बनाने हेतु ।
37. कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) (i) चूना बनाने में, (ii) टूथपेस्ट बनाने में ।
38. कैल्शियम सल्फेट या जिप्सम (CaSO4.2H2O) (i) स्वाद के रूप में, (ii) प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाने में, (iii) अमोनियम सल्फेट बनाने में, (iv) सीमेंट उद्योग में ।
39. कैल्शियम (Ca) (i) अवकारक के रूप में, (ii) पेट्रोलियम से सल्फर हटाने में ।
40. मैग्नीशियम क्लोराइड (MgCl2.6H2O) – (i) रूई की सजावट में, (ii) सोरेल सीमेंट के रूप में व्यवहृत ।
41. मैग्नीशियम कार्बोनेट (MgCO3) –(i) दन्तमंजन बनाने में, (ii) दवा बनाने में, (iii) जिप्सम लवण बनाने में ।
42. मैग्नीशियम (Mg) (i) धातु – मिश्रण बनाने में, (ii) फ्लैश बल्ब बनाने में, (iii) थर्माइट वेल्डिंग बनाने में |
43. मैग्नीशियम ऑक्साइड (MgO) (1) औषधि-निर्माण में, (ii) रबर पूरक (Rubber Filler) के रूप में, (iii) वॉयलरों के प्रयोग में ।
44. मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड (Mg (OH)2) (i) चीनी उद्योग में मोलासिस से चीनी तैयार कराने में ।
45. कॉपर सल्फेट या नीला थोथा (CuSO4. 5H2O) (i) कीटाणुनाशक के रूप में, (ii) विद्युत् सेलों में, (iii) कॉपर के शुद्धीकरण में, (iv) रंग बनाने में ।
46. क्यूप्रिक क्लोराइड (CuCl2. 2H2O) (i) ऑक्सीकरण के रूप में, (ii) जल-शुद्धिकरण में, (iii) धागों की रंगाई में।
47. क्युप्रिक ऑक्साइड (CuO) (i) ब्लू तथा ग्रीन ग्लास निर्माण में, (ii) पेट्रोलियम के * शुद्धीकरण में ।
48. क्यूप्रस ऑक्साइड (Cu2O) – (i) लाल ग्लास के निर्माण में, (ii) पेस्टिसाइड के रूप में।
49. कॉपर (Cu) (i) बिजली का तार बनाने में, (ii) बर्तन बनाने में, (iii) ब्रास तथा ब्रांज बनाने में ।
50. सोडियम नाइट्राइट (NaNO3) (i) N2 बनाने में, (ii) प्रतिकारक के रूप में ।
51. सोडियम नाइट्रेट (NaNO2) (i) खाद के रूप में, (ii) KNO3, HNO3 के निर्माण में ।
52. सोडियम सल्फेट या ग्लॉबर लवण (Na2SO4 .10H2O) – (i) औषधि बनाने में, (ii) सस्ता काँच बनाने में ।
53. सोडियम बाईकार्बोनेट या खाने का सोडा (NaHCO3) (i) अग्निशामक यंत्र, (ii) बेकरी उद्योग में, (iii) प्रतिकारक के रूप में ।
54. सोडियम कार्बोनेट या धोबन सोडा (Na2 CO3) (i) ग्लास-निर्माण, (ii) कागज उद्योग, (iii) जल की स्थायी कठोरता हटाने में, (i) धुलाई के लिए घरों में धोवन सोडा के रूप में।
55. हाइड्रोजन पेरॉक्साइड (H2O2) (i) ऑक्सीकारक के रूप में, (ii) कीटानुनाशक के रूप में, (iii) रेशम, ऊन, चमड़ा, वगैरह के विरंजन में, (iv) लेड के रंगों में ।
56. भारी जल (D2 O) – (i) न्यूक्लिअर प्रतिक्रियाओं में, (ii) ड्युटरेटेड यौगिक के निर्माण में ।
57. हाइड्रोजन (H2) (i) अमोनिया के उत्पादन में, (ii) कार्बनिक यौगिक के निर्माण में ।
58. द्रव हाइड्रोजन – (i) रॉकेट ईंधन के रूप में ।
59. सोडियम (Na) – (i) सोडियम पेरॉक्साइड बनाने में ।
◆ मिश्रधातु (Alloys) किसी धातु का किसी अन्य धातु या अधातु के साथ मिश्रण, मिश्रधातु कहलाता है। मिश्रधातुओं के गुण उनके घटकों के गुणों से भिन्न होते हैं, जिनसे मिलकर मिश्रधातुएँ बनी है ।
नोट: टांगा (solder) गलनांक; लेड एवं टिन (जिससे यह बना होता है) से कम होता है।
◆ इस्पात – लोहा एवं 0.1 से 1.5% कार्बन की मिश्रधातु इस्पात कहलाती है । इस्पात के अन्य मिश्रघातु निम्न है –
1. स्टेनलेस इस्पात – इसमें 18% तक क्रोमियम और निकेल होते हैं । यह संक्षारण या जंग प्रतिरोधी होता है। इसका उपयोग बर्तन और शल्य उपकरण बनाने में किया जाता है।
2. टंगस्टन इस्पात – 15 से 20 प्रतिशत टंगस्टन, 5% क्रोमियम और कुछ वैंनेडियम युक्त – इस्पात, टंगस्टन इस्पात कहलाता है। इसमें उच्च तापों पर भी कठोरता बनी रहती है । इसका उपयोग वेधन यंत्रों तथा उच्च वेग खराद मशीनों के कर्तन यंत्रों को बनाने के लिए किया जाता है।
3. सिलिकन इस्पात – 35% सिलिकन (परंतु अत्यन्त कम कार्बन) युक्त सिलिकन इस्पात को ट्रान्सफॉर्मर और विद्युत् चुम्बक बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। 15% सिलिकन युक्त सिलिकन इस्पात अत्यधिक कठोर और अम्लरोधी होती है । इसका उपयोग अम्लवाही पाइपों और पम्पों को बनाने के लिए किया जाता है ।
4. कोबाल्ट इस्पात – इस प्रकार के इस्पात में 35% तक कोबाल्ट होता है जिसके कारण इस में विशिष्ट चुम्बकत्व का गुण आ जाता है। इसका उपयोग स्थायी चुम्बक बनाने में किया जाता है J
5. मैंगनीज इस्पात – 7% से 20% मैंगनीज़ युक्त इस्पात अत्यंत कठोर, दृढ़ तथा टूट-फूट रोधी होता है। इसका उपयोग हेलमेट, शैल संदलन यंत्रावली (rock-crushing machinery ) प्रथा चोर अभेध तिजोरी बनाने में किया जाता है।
6. निकल इस्पात – इसमें क्रांमियम या निकेल या दोनों के कुछ प्रतिशत अंश विद्यमान होते हैं यदि निकेल 36% होता है तो उससे वैज्ञानिक उपकरण एवं यंत्र बनाए जाते हैं, तथा अगर इसमें 46% निकल उपस्थित होता है तो इसका उपयोग लैम्प बल्ब तथा रेडियो वाल्वों को बनाने में किया जाता है।
◆ जिरकोनियम धातु का प्रयोग अभेद्य (या गोली सह) मिश्रधातु इस्पात बनाने में किया है । जाता
◆ ऐनीलिंग (Annealing) – इस्पात को उच्च ताप पर गर्म कर धीरे-धीरे ठण्डा करने पर उसकी कठोरता घट जाती है; इस प्रक्रिया को एनीलिंग कहते हैं ।
◆ अमलगम (Amalgum)-पारा के मिश्रधातु अमलगम कहलाते हैं ।
◆ निम्न धातुएँ अमलगम नहीं बनाते हैं – लोहा, प्लैटनिम, कोबाल्ट, निकेल एवं टंगस्टन आदि ।
12. अधातुएँ (Non metals)
◆ आधुनिक आवर्त सारणी के अनुसार 22 अधात्वीय तत्त्व (non-metallic) है, जिनमें 11 गैसें – एक द्रव है तथा शेष 10 ठोस है। (द्रव अवस्था स्थित अधातु- ब्रोमीन)
◆ अधातुएँ सामान्यतः ऊष्मा एवं विद्युत् की कुचालक होती है । अपवाद – ग्रेफाइट ।
हाइड्रोजन (Hydrogen)
◆ हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक ज्ञात हैं- प्रोटियम (1H1 या H), डयूटीरियम ( 1H2 या D) और ट्राइटियम (1H3 या T)
◆ डयूटीरियम के ऑक्साइड (D2O) को भारी जल कहते हैं ।
◆ भारी जल की खोज 1932 ई० में यूरे और वाशबर्न ने की थी ।
◆ साधारण जल के लगभग 6000 भागों में 9 भाग भारी जल का होता है ।
◆ भारी जल 3.8°C पर जमता है ।
◆ भारी जल के उपयोग – (i) न्यूट्रॉन मंदक के रूप में, (ii) ड्यूटीरियम तथा ड्यूटीरियम के यौगिक बनाने में, (iii) ट्रेसर के रूप में, (iv) आयनिक व अन-आयनिक हाइड्रोजन में विभेद करने में ।
◆ मृदु एवं कठोर जल (Soft and Hard water)जो जल साबुन के साथ आसानी से झाग देता है, उसे मृदु जल (soft water) और जो जल साबुन के साथ कठिनाई से झाग देता है, उसे कठोर जल (Hard water) कहते हैं ।
◆ जल की कठोरता दो प्रकार की होती है- (i) अस्थायी कठोरता (Temporary Hardness), (ii) स्थायी कठोरता (Permanent Hardness)।
◆ अस्थायी कठोरता-जल की कठोरता यदि जल को उबालने से दूर हो जाती है, तो इस प्रकार की कठोरता अस्थायी कठोरता कहलाती है। जल की अस्थायी कठोरता उसमें कैल्शियम और मैगनेशियम के बाई कार्बोनेट घुले रहने के कारण होती है । अस्थायी कठोरता जल में बुझा चूना अथवा दूधिया चूना डालने से दूर हो जाती है ।
◆ स्थायी कठोरता-जल की कठोरता यदि जल को उबालने से दूर नहीं होती है, तो इस प्रकार . की कठोरता स्थायी कठोरता कहलाती है। जल की स्थायी कठोरता उसमें कैल्शियम और मैग्नेशियम के सल्फेट, क्लोराइड, नाइट्रेट आदि लवणों के घुले रहने के कारण होती है।
◆ जल में सोडियम कार्बोनेट डालकर उबालने से स्थायी एवं अस्थायी दोनों प्रकार की कठोरता दूर हो जाती है ।
◆ जल की स्थायी कठोरता दूर करने की मुख्य विधि परम्यूटिट विधि है। (परम्यूटिट सोडियम जीओलाईट को कहते हैं । )
◆ ऑक्सीजन के तीन समस्थानिक होते हैं –
8O16 (99.76%), 8O17 (0.037%) तथा 8O18 (0.204%)
◆ ओजोन (O3) – यह ऑक्सीजन का एक अपरूप है। समुद्र तट से 30-32km की ऊँचाई पर इसकी सान्द्रता अधिक होती है। यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultraviole ray) के दुष्प्रभाव से बचाती है ।
सल्फर (Sulphur)
◆ पृथ्वी पटल में सल्फर की प्रतिशतता लगभग 0.05% है ।
◆ सल्फर से प्राप्त अत्यधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक रसायन सल्फ्युरिक अम्ल है।
◆ सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल 98% शुद्ध होता है तथा इसकी नॉर्मलता 18 M होती है ।
◆ सल्फ्यूरिक अम्ल के उपयोग –
(i) सल्फ्यूरिक अम्ल का मुख्य भाग उर्वरकों (जैसे- अमोनियम सल्फेट, सुपर फास्फेट आदि) के संश्लेषण में प्रयुक्त होता है ।
(ii) पेट्रोलियम शोधन में
(iii) संचालक बैटरी में बृहत् स्तर पर
(iv) डिटर्जेन्ट उद्योग में
(v) रंजक द्रव्यों, पेण्ट तथा रंगों के संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाले मध्यवर्त्ती यौगिक बनाने में ।
नाइट्रोजन (Nitrogen)
◆ आयतन की दृष्टि से वायुमंडल का 78% भाग आण्विक नाइट्रोजन है ।
◆ वायुमंडल सहित पृथ्वी पर नाइट्रोजन का बाहुल्य भारानुसार 0.01% है ।
◆ नाइट्रोजन का उपयोग वहाँ भी करते हैं जहाँ किसी निष्क्रिय गैस की आवश्यकता होती है । जैसे- लोहा व इस्पात उद्योग में, तनुकारक के रूप में ।
◆ द्रव नाइट्रेजन का उपयोग जैव पदार्थों के लिए प्रशीतक के रूप में भोज्य पदार्थों को जमाने एवं निम्न ताप पर शल्य चिकित्सा के लिए होता है ।
◆ नाइट्रोजन के यौगिकों में अमोनिया एक प्रमुख यौगिक है। इसका निर्माण हैबर विधि द्वारा किया जाता है ।
◆ अमोनिया के उपयोग –
(i) बर्फ बनाने में, (ii) नाइट्रिक अम्ल के निर्माण में, (iii) यूरिया, अमोनियम सल्फेट आदि उर्वरक बनाने में, (iv) सोडियम कार्बोनेट एवं सोडियम बाइकार्बोनेट के निर्माण करने में, (v) अमोनियम लवण बनाने में, (vi) विस्फोटक बनाने में, (vii) कृत्रिम रेशम बनाने में।
नोट : दलहनी पौधे की जड़ों में राइजोबियम (Rizobium) नामक जीवाणु पाए जाते हैं, जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Fixation of Nitrogen) में भाग लेते हैं
फॉस्फोरस (Phosphorus)
◆ फॉस्फोरस प्राणी तथा वनस्पति पदार्थों का आवश्यक अवयव है । यह हड्डियों तथा जीव कोशिकाओं (डी० एन० ए० में) में उपस्थित रहता है ।
◆ फॉस्फोरस अपरूपता प्रदर्शित करता है। श्वेत फॉस्फोरस, लाल फॉस्फोरस एवं काला फॉस्फोरस इसके अपरूप हैं ।
◆ लाल फॉस्फोरस, श्वेत फास्फोरस की अपेक्षा कम क्रियाशील तथा अम्ल विलेय है ।
हैलोजन (Halogens)
◆ वर्ग VIIA के तत्त्वों को हॅलोजन कहा जाता है।
◆ फ्लोरीन का उपयोग – (i) इसका उपयोग UF6 तथा SF6 बनाने में होता है, जिनको क्रमशः परमाणु ऊर्जा उत्पादन तथा परावैद्युतिकी (Dielectric) में इस्तेमाल किया जाता है।
(ii) HF के उपयोग द्वारा क्लोरोफ्लोरो कार्बन यौगिक तथा पॉलिटेट्राफ्लुओरो एथिलीन (टेफ्लॉन) संश्लेषित किए जाते हैं। क्लोरोफ्लोरोकार्बन यौगिकों को फ्रियान (Freon) कहते हैं; इसका उपयोग प्रशीतक (Refrigerent) के रूप में तथा ऐरोसॉल (Aeroso!! में किया जाता है ।
◆ नन स्टिक (Non-stick) बर्तन का ऊपरी परत टेफ्लॉन का बना होता है।
◆ क्लोरीन का उपयोग अनेक कार्बनिक यौगिकों (जैसे-पॉलिवाइनिल क्लोराइड, क्लोरीनकृत हाइड्रोकार्बन) औषधियाँ, शाकनाशी तथा कीटनाशी के संश्लेषण में किया जाता है ।
◆ ब्रोमीन का उपयोग एथिलीन ब्रोमाइड के संश्लेषण में होता है, जिसको सीसाकृत पेट्रोल (leaded petrol) में मिलाया जाता है। इसके अतिरिक्त सिल्वर ब्रोमाइड (AgBr) बनाने में ब्रोमीन इस्तेमाल करते हैं, जिसकी आवश्यकता फोटोग्राफी में होती है ।
निष्क्रिय गैस (Noble gases)
◆ आवर्त्त सारणी में शून्य वर्ग में 6 तत्त्व है – हीलियम, (He), निऑन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टॉन (Kr), जीनॉन (Xe) और रेडॉन (Rn) ये सभी तत्त्व रासायनिक रूप से निष्क्रिय है। अत: इन तत्त्वों को अक्रिय गैसें (Inert gases) या उत्कृष्ट गैसें (Noble gases) कहते हैं ।
◆ रेडॉन (Rn)-रेडॉन को छोड़कर अन्य सभी अक्रिय गैसें वायुमंडल में पायी जाती है ।
◆ आर्गन (Ar) – आर्गन का उपयोग मुख्यत: उच्चतापीय धातुकर्मिक प्रक्रियाओं धातुओं अथवा मिश्रधातुओं की आर्क- वेल्डिंग में निष्क्रिय वातावरण उत्पन्न करने तथा बिजली के बल्ब भरने में किया जाता है ।
◆ हीलियम (He) – हीलियम हल्की तथा अज्वलनशील गैस है। इसका उपयोग-(i) गुब्बारों को भरने में, (ii) मौसम संबंधी अध्ययनों के लिए (iii) ठण्डी वायु वाली नाभिकीय भट्टी में (iv) द्रव हीलियम का उपयोग निम्न ताप पर प्रयोगों में निम्न तापीय अभिकर्मक के रूप करते हैं । 2
◆ निऑन का उपयोग – निऑन विसर्जन लैम्पों व ट्यूबों (वायुयान) तथा प्रतिदिप्ति बल्बों में भरी जाती है, जिनको विज्ञापन के लिए इस्तेमाल करते हैं। >
13. मानव निर्मित पदार्थ (Man made material)
1. सीमेन्ट (Cement)
◆ चूना पत्थर या खड़िया को मृत्तिका (लाल मिट्टी) या शेल के साथ खूब गर्म करने से प्राप्त होने वाले पदार्थ को सीमेन्ट कहते हैं। इसमें कैल्शियम के एल्यूमिनेटो तथा सिलिकेटो का मिश्रण होता है ।
◆ सीमेन्ट उत्पादन संयंत्रों को चूना पत्थर चिकनी मिट्टी और जिप्सम की आवश्यकता होती है ।
◆ सीमेन्ट प्रमुख रूप से कैल्शियम सिलिकेटों और ऐल्युमिनियम सिलिकेटों का मिश्रण है जिसमें जल के साथ मिश्रित करने पर जमने का गुण होता है । जल के साथ मिश्रित करने सीमेन्ट का जमना, उसमें उपस्थित कैल्शियम सिलिकेटों और ऐल्युमिनिम सिलिकेटों के जलयोजन के कारण होता है
◆ सीमेन्ट में 2-5% तक जिप्सम (CaSO4.2H2O) मिलाने का उद्देश्य, सीमेन्ट के प्रारंभिक जमाव को धीमा करना है। सीमेन्ट के धीमें जमाव से उसका अत्यधिक दृढ़ीकरण होता है।
नोट : सन् 1824 ई० में एक ब्रिटिश इंजीनियर जांसेफ एस्पडीन ने चूना पत्थर तथा चिकनी मिट्टी से जोड़ने वाला ऐसा नया पदार्थ बनाया जो अधिक शक्तिशाली और जलरोधी था । उसने उस पोर्टलैंड सीमेन्ट कहा, क्योंकि यह रंग में पोर्टलैंड के चूना पत्थर जैसा था ।
2. काँच (Glass)
◆ साधारण काँच, सिलिका (SiO2), सोडियम सिलिकंट (Na2 SiO3) और कैल्शियम सिलिकेट का ठोस विलयन (मिश्रण) होता है ।
◆ काँच अक्रिस्टलीय ठोस के रूप में एक अतिशीतित द्रव है। इसलिए काँच की क्रिस्टलीय संरचना नहीं होती और न ही उसका कोई निश्चित गलनांक होता है ।
◆ काँच का कोई निश्चित रासायनिक सूत्र नहीं होता है, क्योंकि काँच मिश्रण है, यौगिक नहीं । साधारण काँच का औसत संघटन Na2SiO2 CaSiO3, 4SiO2 होता है ।
◆ रेशेदार काँच का प्रयोग बुलेट प्रूफ जैकेट बनाने में किया जाता है ।
◆ काँच का अनीलीकरण – काँच की वस्तुओं को बनाने के बाद विशेष प्रकार की भट्ठियों में धीरे-धीरे ठण्डा करते हैं । इस क्रिया को काँच का अनीलीकरण कहते हैं ।
◆ काँच का रंग-काँच में रंग देने के लिए अल्प मात्रा में धातुओं के यौगिक (रंगीन) मिलाए जाते हैं | धात्विक यौगिक का चुनाव वांछित रंग पर निर्भर करता है ।
नोट: फोटोक्रोमैटिक काँच सिल्वर ब्रोमाइड की उपस्थिति के कारण धूप में स्वतः काला हो जाता है।
3. साबुन (Soap)
◆ सभी साधारण साबुन उच्चवसीय अम्लों जैसे- स्टियरिंक, पालमिटिक अथवा ओलिक अम्ल के सोडियम अथवा पोटैशियम लवणों के मिश्रण होते हैं ।
◆ साबुन बनाने की क्रिया को साबुनीकरण कहते हैं ।
◆ वे साबुन जो उच्च वसीय अम्लों के सोडियम लवण (कास्टिक सोडा) होते हैं, कड़े साबुन कहलाते हैं । इनका उपयोग कपड़ा धोने में किया जाता है ।
◆ वे साबुन जो उच्च वसीय अम्लों के पोटैशियम लवण (कास्टिक पोटाश) होते हैं, वे मुलायम साबुन कहलाते हैं । इनका उपयोग स्नान करने में किया जाता हैं ।
4. डिटरजेन्ट (Detergents)
◆ इसमें लम्बी श्रृंखला का हाइड्रोकार्बन होता है एवं श्रृंखला के अन्त में एक ध्रुवीय समूह; परन्तु ” ये साबुन से इस मामले में उत्तम है कि Ca+2 , Mg+2 तथा Fe+3 आयन के साथ अघुलनशील लवण नहीं प्रदान करता है। इनके उदाहरण है- सोडियम एल्काइल सल्फोनेट, सोडियम एल्काइल बेंजीन सल्फोनेट आदि ।
◆ डिटरजेंट एवं एन्जाइम मिला हुआ पदार्थ बहुत ही साफ धुलाई करता है । इस प्रकार की धुलाई को माइक्रो सिस्टम धुलाई कहते हैं ।
5. प्रमुख विस्फोटक
(i) डायनामाइट ( Dynamite )
◆ इसका आविष्कार सन् 1863 ई० में अल्फ्रेड नोबल ने किया ।
◆ यह नाइट्रोग्लिसरीन को किसी अक्रिय पदार्थ जैसे लकड़ी के बुरादे में अवशोषित करके बनाया जाता है ।
◆ जिलेटिन डायनामाइट में नाइट्रो सेलुलोस की मात्रा उपस्थित रहती है । इसके विस्फोट के समय उत्पन्न गैसों का आयतन बहुत अधिक होता है ।
◆ आधुनिक डायनामाइट में नाइट्रोग्लिसरीन जाता है। की जगह सोडियम नाइट्रेड का प्रयोग किया
(ii) ट्राइ नाइट्रो टाल्वीन (T. N. T.)
◆ यह टाल्वीन (C6H5CH3) के साथ सान्द्र H2SO4 एवं सान्द्र HNO3 की क्रिया से बनाया जाता है। इसकी विस्फोटक बति 6900 मी० प्रति से० है ।
(iii) ट्राई-नाट्रो-फिनॉल (T. N. P.)
◆ इसे पिकरिक अम्ल भी कहते हैं।
◆ यह फिनॉक एवं सान्द्र HNO3 अम्ल की क्रिया से बनाया जाता है ।
(iv) ट्राई-नाइट्रो- ग्लिसरीन (T. N. G.)
◆ यह एक रंगहीन तैलीय द्रव है। इसे नोबल का तेल भी कहा जाता है ।
◆ यह डाइनामाइट बनाने के काम आता है।
◆ यह सान्द्र सल्फ्युरिक अम्ल व सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की ग्लिसरीन के साथ अभिक्रिया करके बनाया जाता है ।
(v) आर. डी. एक्स (R.D.X.)
◆ R.D.X. का पूरा नाम Research and Developed Explosive है ।
◆ इसका रासा निक नाम साइक्लो ट्राईमिथाइलीन-ट्राईनाइट्रोमाइन है।
◆ इसे प्लास्टिक विस्फोटक भी कहा जाता है। इस फिस्फोटक को यू०एस० ए० में साइक्लोनाइट, जर्मनी में हेक्सोजन तथा इटली में टी-4 के नाम से जाना जाता है।
◆ R.D.X. में तापमान एवं आग की गति को बढ़ाने के लिए एल्युमिनियम चूर्ण को मिलाया जाता है ।
◆ R.D.X. की विस्फोटक उष्मा 1510 किलो कैलोरी प्रति किग्रा० होती है ।
◆ इसकी खोज 1899 ई० में जर्मनी के हेंस हेनिंग ने शुद्ध सफेद दानेदार पाउडर के रूप में किया था । इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे स्थिर यौगिक के रूप में परिवर्तित किए जाने के बाद प्रारंभ हुआ।
(vi) गन पाउडर (Gun Powder)
◆ इसकी खोज रोजर बैंकन ने किया था ।
◆ इसका प्रथम अभिलेखित प्रयोग 1346 ई० में अंग्रेजों द्वारा यूनान के युद्ध में किया गया था ।
6. उर्वरक (Fertilizers )
◆ मृदा में बाहर से मिलाए जाने वाले वे रासायनिक पदार्थ जो मृदा को उपजाऊ बनाने में सहायक होते हैं. उर्वरक (Fertilizers) कहलाते हैं । उर्वरक कई प्रकार के होते हैं –
(a) नाइट्रोजन के उर्वरक-इन उर्वरकों में मुख्यत: नाइट्रोजन तत्त्व पाया जाता है। जैसे
(i) यूरिया (H2NCONH2 ) – यूरिया में 46% नाइट्रोजन की मात्रा पायी जाती है ।
(ii) अमोनियम सल्फेट { Ammonium Sulphate (NH4)2 SO4] – इनमें नाइट्रोजन अमोनियम के रूप में उपस्थित रहती हैं । अमोनिया की मात्रा लगभग 25% होती है। यह आलू के लिए अच्छा उर्वरक है ।
नोट : अमोनिया सल्फेट का प्रयोग चूना रहित भूमि में नहीं किया जाता है l
(iii) कैल्शियम नाइट्रेट (Calcium Nitrate) – यह नाइट्रोजन का सबसे अच्छा उर्वरक है। बाजार में नार्वेजिनयन साल्टपीटर के नाम से जाना जाता है ।
(iv) कैल्शियम सायनामाइड (Calcium Cyanamide-CaCN2) – इसका प्रयोग बुआई करने से पहले किया जाता है। कार्बन के साथ इसके मिश्रण को बाजार में नाइट्रोलिम के नाम से बेचा जाता है ।
(b) पोटैशियम के उर्वरक (Potassium Fertilizers) – पोटैशियम क्लोराइड, पोटैशियम नाइट्रेट, पोटैशियम सल्फेट आदि पोटैशियम के कुछ प्रमुख उर्वरक है ।
(c) फास्फोरस के उर्वरक (Phosphorus Fertilizers) – सुपर फॉस्फेट ऑफ लाइम, फास्पेटी धातुमल, फास्फोरस के प्रमुख उर्वरक है। सुपर फास्फेट को हड्डियों को पीसकर बनाया जाता है । इसमें 16–20% P2O5 रहता है।
14. उत्प्रेरण (Catalysis)
◆ उत्प्रेरण (Catalysis) – ऐसे रासायनिक पदार्थ जो अपनी उपस्थिति मात्र से किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित करने की क्षमता रखने हैं तथा स्वयं अभिक्रिया के अंत में रासायनिक रूप से अप्रभावित रहते हैं उत्प्रेरक (Catalyst) कहलाते हैं तथा यह क्रिया उत्प्रेरण कहलाती हैं। उत्प्रेरक की खोज का श्रेय बर्जीलियस को दिया जाता है।
कुछ प्रमुख तथ्य
◆ पुरातत्त्व अवशेषों अथवा फॉसिल्स की आयु निर्धारित करने के लिए रेडियो-सक्रिय कार्वन [C14] का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है।
◆ यदि किसी द्रव में घुलनशील पदार्थ मिलाया जाये, तो द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है।
◆ यदि क्लोरोफॉर्म को सूर्य के प्रकाश में वायुमंडल में खुला छोड़ दिया जाए, तो वह विषैली गैस फॉस्जीन में बदल जाती है।.
◆ वायुमण्डलीय मुक्त नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तन करने की क्रिया ‘नाइट्रोजन स्थिरीकरण’ कहलाती है।
◆ मिट्टी में क्षारकत्व को घटाने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता ।
◆ टेल्कम पाउडर के निर्माण में थियोफेस्टस खनिज का उपयोग किया जाता है।
◆ पानी की स्थाई कठोरता दूर करने के लिए पोटैशियम क्लोराइड सर्वाधिक उपयुक्त है।
◆ बर्फ जमने में जिलेटिन, बर्फ को पिघलने से रोकने के लिए मिलाया जाता है।
◆ शुष्क बर्फ अर्थात् ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को गरम करने पर वह सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है।
◆ पिक्रिक ऐसिड एक कार्बनिक यौगिक है, जिसका उपयोग प्रयोगशालाओं में अभिकर्मक के रूप में किया जाता है ।
◆ सैकरीन के निर्माण टॉलुइन से होता है ।
◆ क्रीम एक प्रकार का दूध होता है, जिसमें वसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा पानी की मात्रा कम हो जाती है ।
◆ एक किलोग्राम शहद से लगभग 3500 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
◆ नाइट्रस ऑक्साइड को हँसाने वाली गैस कहते हैं । [ खोज-प्रीस्टले ]
◆ हड्डियों में 8% फॉस्फोरस होता है।
◆ फॉस्फीन गैस का उपयोग समुद्री यात्रा में होम्स सिग्नल (Holm’s signal) देने में किया जाता है ।
◆ क्लोरीन गैस फूलों का रंग उड़ा देती है।
◆ सुरक्षित दियासलाइयों में लाल फॉस्फोरस प्रयोग किया जाता है ।
◆ यूरिया में 46% नाइंट्रोजन की मात्रा है।
◆ बरतनों में कलई करने में अमोनियम क्लोराइड का प्रयोग किया जाता है।
◆ शुद्ध अल्कोहल में बेंजीन या ईथर मिलाकर पावर अल्कोहल के रूप में हवाई जहाज के ईंधन में प्रयुक्त होता है।
◆ कृत्रिम सुगन्धित पदार्थ बनाने में एथिल एसीटेट का प्रयोग किया जाता है ।
◆ यूरिया पहला कार्बनिक पदार्थ है, जिसे प्रयोगशाला में बनाया गया ।
◆ सिरके में एसीटिक अम्ल (CH3COOH) पाया जाता है ।
◆ ऐसीटिलीन का प्रयोग प्रकाश उत्पन्न करने में किया जाता है।
◆ रक्त के प्रवाह को रोकने के लिए फेरिक क्लोराइड का प्रयोग किया जाता है ।
◆ सौर सेलों में सीजियम प्रयुक्त होता है ।
◆ पीले फॉस्फोरस को जल में रखा जाता है।
◆ समुद्री घास में आयोडीन पाया जाता है ।
◆ खाना बनाते समय सर्वाधिक मात्रा में विटामिन नष्ट होते हैं ।
◆ रजत दर्पण बनाने में ग्लूकोज का प्रयोग किया जाता है ।
◆ दूध पायस कोलॉइडी तंत्र है ।
◆ यदि दूध से क्रीम को अलग कर दिया जाय, तो दूध का घनत्व बढ़ जाता है ।
◆ अस्पतालों में कृत्रिम साँस के लिए प्रयुक्त सिलेण्डरों में ऑक्सीजन एवं हीलियम का मिश्रण होता है ।
◆ ठण्डे देशों में हिमांक कम करने के लिए कारों के रेडियेटरों में एथिलीन ग्लाइकॉल मिलाया जाता है ।
◆ पुराने तैलचित्रों (oil paintings) के रंगों को फिर से उभारने के लिए हाइड्रोजन पेरोक्साइड काम में आता है ।
◆ सोडियम की मिट्टी तेल में रखा जाता है ।
◆ सबसे अधिक घनत्व वाला या सबसे भारी तत्त्व है – ओसमियम (Os)
◆ सबसे कम घनत्त्व, सबसे हल्का एवं सबसे प्रबल अपचायक तत्त्व है- लीथियम (Li)
◆ सबसे प्रबल उपचायक (oxidising) है- फ्लोरीन (F)
◆ सफेद स्वर्ण प्लेटिनम को कहते हैं ।
◆ सर्वाधिक विद्युत् चालकता वाला तत्त्व चाँदी (Ag) है ।
◆ रेडॉन गैसीय तत्त्वों में सबसे भारी है।
◆ पोलोनियम (Po) के सर्वाधिक समस्थानिक होते हैं – 27.
◆ सल्फ्युरिक अम्ल (H2SO4) को oil vitriol भी कहा जाता है ।
◆ नोबेल धातु है – Ag, Au, Pt, Ir, Hg, Pd, Rh, Ru, Os.
◆ मेथैनॉल (CH3OH) को जब बहुत कम मात्रा में भी लिया जाए तो गंभीर विषाक्तन के साथ-साथ यह अंधेपन का कारण बन जाता है।
◆ कॉच हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल (HF) में घुलनशील सिलिकेट बनाता है। इसी कारण HF का भंडारण कॉच के बरतनों में नहीं किया जा सकता ।
◆ सोना का घनत्व पारा के घनत्व से ज्यादा होता है इसीलिए सोना पारा में डूब जाता है।
◆ बिसफेनॉल A (Bisphenol A) खाद्य संवेष्टन सामग्री (Food Packaging Material) के विकास के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला रसायन है ।
◆ जीनॉन (Xenon) को स्टेंजर गैस भी कहते हैं ।
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