यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Dawn of Nationalism in Europe
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Dawn of Nationalism in Europe
फ्रांसीसी क्रान्ति और राष्ट्र का विचार
♦ राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति सन् 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति के साथ हुई। क्रान्ति ने घोषणा की कि अब लोगों द्वारा राष्ट्र का गठन होगा और वे ही उसकी नियति तय करेंगे।
♦ क्रांतिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ्रांसीसी राष्ट्र का यह भाग्य और लक्ष्य था कि यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराए। दूसरे शब्दों में, फ्रांस यूरोप के अन्य लोगों को राष्ट्रों में गठित होने में मदद देगा।
♦ क्रान्तिकारी युद्धों के शुरू होने के साथ ही फ्रांसीसी सेनाएँ राष्ट्रवाद के विचार को विदेशों में ले जाने लगीं।
यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
♦ जिन्हें आज हम जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैण्ड के रूप में जानते हैं वे अठारहवीं सदी के मध्य में राजशाहियों, डचियों (कनबीपमे) और कैन्टनों (बन्दजवदे) में बँटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायत्त क्षेत्र थे। पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन थे और इन इलाकों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी समान संस्कृति का भागीदार नहीं मानते थे।
♦ कुलीन वर्ग और नया मध्य वर्ग सामाजिक और राजनीतिक रूप से जमीन का मालिक कुलीन वर्ग यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग था। कुलीन विशेषाधिकारों की समाप्ति के बाद शिक्षित और उदारवादी मध्य वर्गों के बीच ही राष्ट्रीय एकता के विचार लोकप्रिय हुए।
♦ यूरोप में उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में राष्ट्रीय एकता से सम्बन्धित विचार उदारवाद से करीब से जुड़े थे। नये मध्य वर्गों के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी । राजनीतिक रूप से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर जोर देता था जो सहमति से बनी हो ।
♦ सम्पूर्ण उन्नीसवीं सदी तथा बीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों में महिलाओं और सम्पत्ति विहीन पुरुषों ने समान राजनीतिक अधिकारों की माँग करते हुए विरोध आन्दोलन चलाए ।
♦ सन् 1834 में प्रशा की पहल पर एक शुल्क संघ जॉलवेराइन (Zollverein) स्थापित किया गया जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल हो गए। इस संघ ने शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया और मुद्राओं की संख्या दो कर दी जो उससे पहले तीस से ऊपर थी। इसके अलावा रेलवे के जाल ने गतिशीलता बढ़ाई और आर्थिक हितों को राष्ट्रीय एकीकरण का सहायक बनाया। उस समय पनप रही व्यापक राष्ट्रवादी भावनाओं को आर्थिक राष्ट्रवाद की लहर ने मजबूत बनाया।
सन् 1815 के बाद एक नया रूढ़िवाद
♦ सन् 1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोपीय सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित थीं।
♦ रूढ़िवादी मानते थे कि राज्य और समाज की स्थापित पारम्परिक संस्थाएँ जैसे- राजतन्त्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच, सम्पत्ति और परिवार को बनाए रखना चाहिए।
♦ सन् 1815 में ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों जिन्होंने मिलकर नेपोलियन को हराया था – के प्रतिनिधि यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मिले। इस सम्मेलन (Congress) की मेजबानी ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख ने की। इसमें प्रतिनिधियों ने सन् 1815 की वियना सन्धि (Treaty of Vienna) तैयार की जिसका उद्देश्य उन कई सारे बदलावों को खत्म करना था जो नेपोलियाई युद्धों के दौरान हुए थे। इसका मुख्य उद्देश्य उन राजतन्त्रों की बहाली था जिन्हें नेपोलियन ने बर्खास्त कर दिया था। साथ ही यूरोप में एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था कायम करने का लक्ष्य भी था।
♦ सन् 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएँ निरंकुश थीं। वे आलोचना और असहमति बरदाश्त नहीं करती थीं और उन्होंने उन गतिविधियों को दबाना चाहा जो निरंकुश सरकारों की वैधता पर सवाल उठाती थीं।
♦ सन् 1815 के बाद के वर्षों में दमन के भय ने अनेक उदारवादी – राष्ट्रवादियों को भूमिगत कर दिया। बहुत सारे यूरोपीय राज्यों में क्रान्तिकारियों को प्रशिक्षण देने और विचारों का प्रसार करने के लिए गुप्त संगठन उभर आए।
♦ ऐसा ही एक व्यक्ति था इटली का क्रान्तिकारी ज्युसेपी मेत्सिनी । मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। अतः इटली छोटे राज्यों और प्रदेशों के पैबन्दों की तरह नहीं रह सकता था। उसे जोड़ कर राष्ट्रों के व्यापक गठबन्धन के अन्दर एकीकृत गणतन्त्र बनाना ही था। यह एकीकरण ही इटली की मुक्ति का आधार हो सकता था। उसके इस मॉडल की देखा-देखी जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड और पोलैण्ड में गुप्त संगठन कायम किए गए। मेत्सिनी द्वारा राजतन्त्र का घोर विरोध करके और प्रजातान्त्रिक गणतन्त्रों के अपने स्वप्न से मेत्सिनी ने रूढ़िवादियों को हरा दिया। मैटरनिख ने उसे ‘हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन’ बताया।
क्रान्तियों का युग (सन् 1830-1848 )
♦ जैसे-जैसे रूढ़िवादी व्यवस्थाओं ने अपनी ताकत को और मजबूत बनाने की कोशिश की, यूरोप के अनेक क्षेत्रों में उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रान्ति से जोड़ कर देखा जाने लगा।
♦ प्रथम विद्रोह फ्रांस में जुलाई, 1830 में हुआ। बूब राजा, जिन्हें सन् 1815 के बाद हुई रूढ़िवादी प्रतिक्रिया के दौरान सत्ता में बहाल किया गया था, उन्हें अब उदारवादी क्रान्तिकारियों ने उखाड़ फेंका। उनकी जगह एक संवैधानिक राजतन्त्र स्थापित किया गया जिसका अमयक्ष लुई फिलिप था। मैटरनिख ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि ‘जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है।’
♦ जुलाई क्रान्ति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया जिसके फलस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ द नीदरलैण्डस से अलग हो गया।
♦ एक घटना जिसने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया, वह थी, यूनान का स्वतन्त्रता संग्राम।
♦ सन् 1832 की कुस्तुनतुनिया की सन्धि ने यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र की मान्यता दी ।
♦ राष्ट्रवाद का विकास केवल युद्धों और क्षेत्रीय विस्तार से नहीं हुआ। राष्ट्र के विचार के निर्माण में संस्कृति ने एक अहम भूमिका निभाई। कला, काव्य, कहानियों – किस्सों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने और व्यक्त करने में सहयोग दिया।
सन् 1848 उदारवादियों की क्रान्ति
♦ सन् 1848 में जब अनेक यूरोपीय देशों में गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी में ग्रस्त किसान-मजदूर विद्रोह कर रहे थे तब उसके समानान्तर पढ़े-लिखे मध्यवर्गों की एक क्रांन्ति भी हो रही थी। फरवरी, 1848 की घटनाओं से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक गणतन्त्र की घोषणा की गई जो सभी पुरुषों के सामूहिक मताधिकार पर आधारित था।
♦ 18 मई, 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जा कर फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेण्ट पॉल चर्च में आयोजित हुई। उन्होंने एक राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप किया। इस राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था।
जर्मनी और इटली का निर्माण
♦ सन् 1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतन्त्र और क्रांन्ति से अलगाव होने लगा।
♦ राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्य वर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थीं और उन्होंने सन् 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़ कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र राज्य बनाने का प्रयास किया था। मगर राष्ट्र निर्माण की यह उदारवादी पहल राजशाही और फौज की ताकत ने मिलकर दबा दी। उसके पश्चातू प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व संभाल लिया। उसका प्रमुख मन्त्री, ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली। सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क और फ्रांस से हुए तीन युद्धों में प्रशा की जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
♦ जनवरी, 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
♦ जर्मनी की तरह इटली में भी राजनीतिक विखण्डन का एक लम्बा इतिहास था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहुराष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था।
♦ सन् 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था।
♦ मन्त्री प्रमुख कावूर ने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया। इसमें गैरीबाल्डी ने भी अहम भूमिका अदा की।
♦ सन् 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
♦ उन्नीसवीं सदी की अन्तिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी, उदारवादी – जनतान्त्रिक स्वभाव नहीं रहा जो सदी के प्रथम भाग में था। अब राष्ट्रवाद सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धान्त बन गया। प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने भी अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।
♦ सन् 1871 के बाद यूरोप में गम्भीर राष्ट्रवादी तनाव का स्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी । बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियन्त्रण में था। बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफी विस्फोटक हो गई।
♦ साम्राज्यवाद से जुड़ कर राष्ट्रवाद सन् 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। लेकिन इस बीच विश्व के अनेक देशों ने जिनका उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने औपनिवेशीकरण किया था, साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध किया।
♦ प्रथम विश्वयुद्ध का कारण भी बहुत हद तक साम्राज्यवाद ही था।
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