यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
अध्याय का सार
1. फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार
राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के साथ हुई। जैसा कि आपको याद होगा. 1789 में फ़्रांस एक ऐसा राज्य था जिसके संपूर्ण भू-भाग पर एक निरंकुश राजा का आधिपत्य था। फ्रांसीसी क्रांति सेजो राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव हुए उनसे प्रभुसत्ता राजतंत्र से निकल कर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हस्तांतरित हो गई। क्रांति ने घोषणा की कि अब लोगों द्वारा राष्ट्र का गठन होगा और वे ही उसकी नियति तय करेंगे।
प्रारंभ से ही फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने ऐसे अनेक कदम उठाए जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना पैदा हो सकती थी। पितृभूमि (la patrie) और नागरिक (le citoyen) जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे। अतः एक नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा (the tricolour) चुना गया जिसने पहले के राजध्वज की जगह ले ली। इस्टेट जेनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया जाने लगा और उसका नाम बदल कर नेशनल एसेंबली कर दिया गया। नयी स्तुतियाँ रची गईं, शपथें ली गई, शहीदों का गुणगान हुआ – और यह सब राष्ट्र के नाम पर हुआ। एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसने अपने भू-भाग में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए। आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एकसमान व्यवस्था लागू की गई। क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में फ्रेंच जैसी बोली और लिखी जाती थी, वही राष्ट्र की साझा भाषा बन गई।
क्रांतिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ़्रांसीसी राष्ट्र का यह भाग्य और लक्ष्य था कि वह यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराए। दूसरे शब्दों में, फ़्रांस यूरोप के अन्य लोगों को राष्ट्रों में गठित होने में मदद देगा। जब फ्रांस की घटनाओं की ख़बर यूरोप के विभिन्न शहरों में पहुँची तो छात्र तथा शिक्षित मध्य-वर्गों के अन्य सदस्य जैकोबिन क्लबों की स्थापना करने लगे। उनकी गतिविधियों और अभियानों ने उन फ्रेंच सेनाओं के लिए रास्ता तैयार किया जो 1790 के दशक में हॉलैंड, बेल्जियम, स्विट्ज़रलैंड और इटली के बड़े इलाके में घुसी। क्रांति कारी युद्धों के शुरू होने के साथ ही फ़्रांसीसी सेनाएँ राष्ट्रवाद के विचार को विदेशों में ले जाने लगीं। नेपोलियन के नियंत्रण में जो विशाल क्षेत्र आया वहाँ उसने ऐसे अनेक सुधारों की शुरुआत की जिन्हें फ्रांस में पहले ही आरंभ किया जा चुका था। फ्रांस में राजतंत्र वापस लाकर नेपोलियन ने नि:संदेह वहाँ प्रजातंत्र को नष्ट किया था। मगर प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और कुशल बन सके। 1804 की नागरिक संहिता जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे। उसने कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया। इस संहिता को फ्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया गया। डच गणतंत्र, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई। शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया। यातायात और संचार-व्यवस्थाओं को सुधारा गया। किसानों, कारीगरों, मज़दूरों और नए उद्योगपतियों ने नयी-नयी मिली आज़ादी चखी। उद्योगपतियों और खासतौर पर समान बनाने वाले लघु उत्पादक यह समझने लगे कि एकसमान क़ानून, मानक भार तथा नाप और एक राष्ट्रीय मुद्रा से एक इलाके से दूसरे इलाके में वस्तुओं और पूँजी के आवागमन में सहूलियत होगी।
लेकिन जीते हुए इलाकों में स्थानीय लोगों की फ्रांसीसी शासन के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं। शुरुआत में अनेक स्थानों जैसे हॉलैंड और स्विट्ज़रलैंड और साथ ही कई शहरों जैसे-ब्रसेल्स, मेंज, मिलान और वॉरसा में फ्रांसीसी सेनाओं का स्वतंत्रता का तोहफा देने वालों की तरह स्वागत किया गया। मगर यह शुरुआती उत्साह शीघ्र ही दुश्मनी में बदल गया जब यह साफ़ होने लगा कि नयी प्रशासनिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं थीं। बढ़े हुए कर, सेंसरशिप और बाक़ी यूरोप को जीतने के लिए फ्रेंच सेना में जबरन भर्ती से हो रहे नुकसान प्रशासनिक परिवर्तनों से मिले फ़ायदों से कहीं ज्यादा नज़र आने लगे।
2. यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
अगर आप मध्य अठारहवीं सदी के यूरोप के नक्शे को देखें तो उसमें वैसे ‘राष्ट्र-राज्य’ नहीं मिलेंगे जैसे कि आज हैं। जिन्हें आज हम जर्मनी, इटली और स्विट्ज़रलैंड के रूप में जानते हैं वे तब राजशाहियों, डचियों (duchies) और कैंटनों (cantons) में बँटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायत्त क्षेत्र थे। पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतंत्रों के अधीन थे और इन इलाकों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एकसामूहिक पहचान या किसी समान संस्कृति का भागीदार नहीं मानते थे। अकसर वे अलग-अलग भाषाएँ बोलते थे और विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे।
उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रिया-हंगरी पर शासन करने वाला हैब्सबर्ग साम्राज्य कई अलग-अलग क्षेत्रों और जनसमूहों को जोड़ कर बना था। इसमें ऐल्प्स के टिरॉल, ऑस्ट्रिया और सुडेटेनलैंड जैसे इलाकों के साथ-साथ बोहेमिया भी शामिल था जहाँ के कुलीन वर्ग में जर्मन भाषा बोलने वाले ज़्यादा थे। हैब्सबर्ग साम्राज्य में लॉम्बार्डी और वेनेशिया जैसे इतालवी-भाषी – प्रांत भी शामिल थे।
सामाजिक और राजनीतिक रूप से ज़मीन का मालिक कुलीन वर्ग यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग था।
इस वर्ग के सदस्य एक साझा जीवन शैली से बँधे हुए थे जो क्षेत्रीय विभाजनों के आर-पार व्याप्त थी। वे ग्रामीण इलाकों में जायदाद और शहरी-हवेलियों के मालिक थे।
राजनीतिक कार्यों के लिए तथा उच्च वर्गों के बीच वे फ्रेंच भाषा का प्रयोग करते थे। उनके परिवार अकसर वैवाहिक बंधनों से आपस में जुड़े होते थे। मगर यह शक्तिशाली कुलीन वर्ग संख्या के लिहाज़ से एक छोटा समूहथा। जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे। पश्चिम में ज्यादातर ज़मीन पर किराएदार और छोटे काश्तकार खेती करते थे जबकि पूर्वी और मध्य यूरोप में भूमि विशाल जागीरों में बँटी थी जिस पर भूदास खेती करते थे।
पश्चिमी और मध्य यूरोप के हिस्सों में औद्योगिक उत्पादन और व्यापार में वृद्धि से शहरों का विकास और वाणिज्यिक वर्गों का उदय हुआ जिनका अस्तित्व बाज़ार के लिए उत्पादन पर टिका था। इंग्लैंड में औद्योगीकरण अठारहवीं सदी के दूसरे भाग में आरंभ हुआ लेकिन फ़्रांस और जर्मनी के राज्यों के कुछ हिस्सों में यह उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान ही हुआ।
यूरोप में उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में राष्ट्रीय एकता से संबंधित विचार उदारवाद से करीब से जुड़े थे। उदारवाद यानी liberalism शब्द लातिन भाषा के मूल liber पर आधारित है जिसका अर्थ है ‘आज़ाद’। नए मध्य वर्गों के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी। राजनीतिक रूप से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर जोर देता था जो सहमति से बनी हो। फ्रांसीसी क्रांति के बाद से उदारवाद निरंकुश शासक और पादरीवर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था। उन्नीसवीं सदी केउदारवादी निजी संपत्ति के स्वामित्व की अनिवार्यता पर भी बल देते थे।
3. क्रांतियों का युग : 1830-1848
जैसे-जैसे रूढ़िवादी व्यवस्थाओं ने अपनी ताकत को और मज़बूत बनाने की कोशिश की, यूरोप के अनेक क्षेत्रों में उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रांति से जोड़ कर देखा जाने लगा। इटली और जर्मनी के राज्य, ऑटोमन साम्राज्य के सूबे, आयरलैंड और पोलैंड ऐसे ही कुछ क्षेत्र थे। इन क्रांतियों का नेतृत्व उदारवादी-राष्ट्रवादियों ने किया जो शिक्षित मध्यवर्गीय विशिष्ट लोग थे। इनमें प्रोफेसर, स्कूली-अध्यापक, क्लर्क और वाणिज्य व्यापार में लगे मध्यवर्गों के लोग शामिल थे।
प्रथम विद्रोह फ़्रांस में जुलाई 1830 में हुआ। बूबों राजा, जिन्हें 1815 के बाद हुई रूढ़िवादी प्रतिक्रिया के दौरान सत्ता में बहाल किया गया था, उन्हें अब उदारवादी क्रांतिकारियों ने उखाड़ फेंका। उनकी जगह एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित किया गया जिसका अध्यक्ष लुई फिलिप था। मैटरनिख ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि ‘जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप की सर्दी-जुकाम हो जाता है।’ जुलाई क्रांति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया जिसके फलस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ द नीदरलैंड्स से अलग हो गया।
एक घटना जिसने पूरे यूरोप के शिक्षित अभिजात वर्ग में राष्ट्रीय भावनाओं का संचार किया, वह थी, यूनान का स्वंतत्रता संग्राम। पंद्रहवीं सदी से यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 में आरंभ हो गया।
यूनान में राष्ट्रवादियों को निर्वासन में रह रहे यूनानियों के साथं पश्चिमी यूरोप के अनेक लोगों का भी समर्थन मिला जो प्राचीन यूनानी संस्कृति (Hellenism) के प्रति सहानुभूति रखते थे। कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बता कर प्रशंसा की और एक मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध यूनान के संघर्ष के लिए जनमत जुटाया। अंग्रेज़ कवि लॉर्ड बायरन ने धन इकट्ठा किया और बाद में युद्ध में लड़ने भी गए जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। अंततः 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।
4. जर्मनी और इटली का निर्माण
4.1 जर्मनी-क्या सेना राष्टं की निर्माता हो सकती है?
1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और वंति से – अलगाव होने लगा। राज्य की सना को बढ़ाने और पूरे यूरोप पर राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए रूढ़िवादियों ने अकसर राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया।
इसे उस प्रक्रिया में देखा जा सकता है जिससे जर्मनी और इटली एकीछत होकर राष्ट्र-राज्य बने। जैसा आपने देखा है, राष्ट्रवादी भावनाए!
मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थीं और उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़ कर एक निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था। मगर राष्ट्र निर्माण की यह उदारवादी पहल राजशाही और फ़ौज की ताक़त ने मिलकर दबा दी। उसके पश्चात प्रशासन ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व सँभाल लिया। उसका प्रमुख मंत्री, ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशासन की सेना और नौकरशाही की मदद ली। सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क और फ़्रांस से तीन युणे में प्रशासन को जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई। जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशासन के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
18 जनवरी 1871 की सुबह बेहद ठंडी थी। जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिमिायों और प्रमुखमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क समेत प्रशा के महन्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक वर्साय के महल के बेहद ठंडे शीशमहल (हॉल ऑफ़ मिरर्स) में हुई। सभा ने प्रशा के काइज़र विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की।
जर्मनी में राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया ने प्रशा राज्य की शक्ति के प्रभुत्व को दर्शाता था।
4.2 इटली
जर्मनी की तरह इटली में भी राजनीतिक विखंडन का एक
लंबा इतिहास था। इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहु-राष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था। उन्नीसवीं सदी के समय में इटली सात राज्यों में बँटा हुआ था जिनमें से केवल एक-सार्डिनिया पीडमॉण्ट में एक इतालवी राजघराने का शासन था। उनरी भाग ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्गो के अमीन था, इस समय इलाकों पर पोप का शासन था और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बूढे राजाओं के अमीन थे। इतालवी भाषा ने भी साझा रूप हासिल नहीं किया था और अभी तक उसके विविमा क्षेत्रीय और स्थानीय रूप मौजूद थे।
1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था। 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोहों की असफलता से युद्ध के ज़रिये इतालवी राज्यों को जोड़ने की ज़िम्मेदारी सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनुएल द्वितीय पर आ गई। इस क्षेत्र के शासक अभिजातवर्ग की नज़रों में एकीकृत इटली उनके लिए आर्थिक विकास और राजनीतिक प्रभुत्व की संभावनाएँ उत्पन्न करता था। मंत्री प्रमुख कावूर, जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया, न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला।
इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था। 5. राष्ट्र की दृश्य-कल्पना किसी शासक को एक चित्र या मूर्ति के रूप में अभिव्यक्त करना आसान है किंतु एक राष्ट्र को चेहरा कैसे दिया जा सकता है? अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके इस प्रश्न को हल किया। दूसरे शब्दों में, उन्होंने एक देश को कुछ यूँ चित्रित किया जैसे वह कोई व्यक्ति हो। उस समय राष्ट्रों को नारी भेष में प्रस्तुत किया जाता था। राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया वह असल जीवन में कोई खास महिला नहीं थी। यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। यानी नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई। आपको याद होगा कि फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग किया। इन आदर्शों को विशेष वस्तुओं या प्रतीकों से व्यक्त किया गया था।
6. राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
उन्नीसवीं सदी की अंतिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव नहीं रहा जो सदी के प्रथम भाग में था। अब राष्ट्रवाद सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धांत बन गया। इस बीच के दौर में राष्ट्रवादी समूह एक-दूसरे के प्रति अनुदार होते चले गए और लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। साथ ही प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने भी अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।
1871 के बाद यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का स्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी। इसमें आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे। क्षेत्र के निवासियों को आमतौर पर स्लाव पुकारा जाता था। बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफ़ी विस्फोटक हो गई। उन्नीसवीं सदी में
ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के जरिए मज़बूत बनना चाहा था किंतु इसमें इसे बहुत कम सफलता मिली। एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकल कर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगीं। बाल्कन लोगों ने आज़ादी या राजनीतिक अधिकारों के अपने दावों को राष्ट्रीयता का आधार दिया। उन्होंने इतिहास का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया कि वे कभी स्वतंत्र थे किंतु तत्पश्चात विदेशी शक्तियों ने उन्हें अधीन कर लिया। अतः बाल्कन क्षेत्र के विद्रोही राष्ट्रीय समूहों ने अपने संघर्षों को लंबे समय से खोई आजादी को वापस पाने के प्रयासों के रूप में देखा।
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
फ्रांस के किस कलाकार ने चार चित्रों की श्रृंखला बनाई थी?
उत्तर-
फ्रेड्रिक सॉरयू ने सन् 1848 में चार चित्रों की श्रृंखला बनाई थी।
प्रश्न 2.
निरंकुशवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
निरंकुशवाद का अर्थ ऐसी सरकार अथवा शासन व्यवस्था से है जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार की भी कोई रोक नहीं होती। इतिहास में इस प्रकार की राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार का नाम दिया जाता है। ये अत्यंत केंद्रीकृत, सैन्य बल पर आधारित व दमनकारी सरकारें होती थीं।
प्रश्न 3.
कल्पनादर्श क्या है?
उत्तर-
कल्पनादर्श एक इस प्रकार के समाज की परिकल्पना __ है जो इतना अधिक आदर्श है कि उसका सच होना लगभग
नामुमकिन है।
प्रश्न 4.
जनमत-संग्रह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
जनमत-संग्रह एक ऐसा प्रत्यक्ष मतदान है जिसके द्वारा एक क्षेत्र के सारे लोगों से एक प्रस्ताव को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिए पूछा जाता है।
प्रश्न 5.
फ्रांस में राजतंत्र का अंत कब हुआ?
उत्तर-
1789 की क्रांति के पश्चात् फ्रांस में राजतंत्र खत्म हुआ।
प्रश्न 6.
बास्तील क्या था?
उत्तर-
बास्तील एक किले की भाँति था जो लुई सोलहवें से सम्बन्धित था। इसके पतन के साथ फ्रांसीसी क्रांति जुड़ी हुई मानी जाती है।
प्रश्न 7.
इस्टेट जनरल का चुनाव किस प्रकार होने लगा?
उत्तर-
इस्टेट जनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के द्वारा होने लगा। बाद में इसका नाम बदल कर नेशनल एसेंबली कर दिया गया था।
प्रश्न 8.
नेपोलियन के उदय को कैसे समझ सकते हैं?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात् लगभग अगले दो वर्षों की परिस्थिति फ्रांस से राजनीतिक अस्थिरता व तोड़-फोड़ एवं संकअ की स्थिति थी। 1971 के संविधान ने चाहे ही फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना की हो, परन्तु राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बना रहा। 1799 में नेपोलियन की विजयों ने फ्रांस की स्थिति सुधारी, परन्तु बाद में वह स्वयं फ्रांस का सम्राट बन गया।
प्रश्न 9.
नेपोलियन बोनापार्ट ने क्या-क्या कानून लागू किये?
उत्तर-
नेपोलियन बोनापार्ट ने अनेक कानून लागू किये जिनमें सम्पत्ति की रक्षा तथा माप-तोल प्रणाली इत्यादि थे।
प्रश्न 10.
नेपोलियन ने कौन-सी व्यवस्था समाप्त __की?
उत्तर-
नेपोलियन ने सामंती व्यवस्था को समाप्त किया था।
प्रश्न 11.
किस वर्ष में इटली का एकीकरण हुआ था?
उत्तर-
1859-1870 में इटली का एकीकरण हुआ था।
प्रश्न 12.
नेपोलियन का पतन किस वर्ष में हुआ था?
उत्तर-
सन् 1815 में नेपोलियन का पतन हुआ था।
प्रश्न 13.
हंगरी में किन-किन भाषाओं में बातचीत होती थी?
उत्तर-
हंगरी में आधे लोग मैग्यार भाषा का प्रयोग करते थे और बाकी के लोग अलग-अलग भाषाओं का प्रयोग करते – थे। जैसे गालीसिया में कुलीन वर्ग पोलिश भाषा का प्रयोग करता था।
प्रश्न 14.
यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग कौन-सा था?
उत्तर-
यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग कुलीन वर्ग था। ये जमीन के मालिक थे।
प्रश्न 15.
इंग्लैंड में औद्योगीकरण कब शुरू हुआ?
उत्तर-
इंग्लैंड में औद्योगीकरण 18वीं सदी के दूसरे भाग में शुरू हुआ था।
प्रश्न 16.
उदारवाद किस शब्द से बना है और इसका क्या अर्थ है?
उत्तर-
उदारवाद अर्थात् Liberalism शब्द लातिन भाषा के शब्द Liber पर आधारित है। उदारवाद का अर्थ है आजाद।
प्रश्न 17.
शुल्क संघ जॉलवेराइन किस वर्ष में स्थापित किया गया था?
उत्तर-
सन् 1834 में शुल्क संघ जॉलवेराइन की स्थापना हुई थी।
प्रश्न 18.
रुढ़िवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर-
रूढ़िवाद का अर्थ ऐसे राजनीतिक दर्शन से है जो पंरपरा, स्थापित संस्थानों व रिवाजों पर बल देता है तथा तेज बदलावों के अतिरिक्त क्रमिक व धीरे-धीरे विकास को प्रध निता देता है।
प्रश्न 19.
किन शक्तियों ने मिलकर नेपोलियन को हराया था?
उत्तर-
सन् 1815 में प्रशा, रूस, ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों ने मिलकर नेपोलियन को हराया था।
प्रश्न 20.
किस वर्ष में विएना संधि तैयार हुई थी?
उत्तर-
1815 में विएना संधि तैयार हुई थी।
प्रश्न 21.
इटली के प्रसिद्ध क्रांतिकारी का नाम बताएँ?
उत्तर-
इटली के प्रसिद्ध क्रांतिकारी का नाम था-ज्युसेपी मेत्सिनी।
प्रश्न 22.
ज्युसेपी मेसिनी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर-
ज्युसेपी मेत्सिनी का जन्म सन् 1807 में जेनोआ में हुआ था।
प्रश्न 23.
यंग इटली और यंग यूरोप संगठनों की स्थापना किसने की?
उत्तर-
यंग इटली और यंग यूरोप संगठनों की स्थापना ज्युसेपी मेत्सिनी ने की थी।
प्रश्न 24.
यूनानी संघर्ष किस वर्ष में आरंभ हुआ था?
उत्तर-
यूनानी संघर्ष 1821 में आरंभ हुआ था।
प्रश्न 25.
फ्रांस में प्रथम विद्रोह कब हुआ था?
उत्तर-
फ्रांस में प्रथम विद्रोह जुलाई, 1830 में हुआ था।
प्रश्न 26.
लॉर्ड बायरन की मृत्यु कब हुई?
उत्तर-
लॉर्ड बायरन की मृत्यु सन् 1824 में बुखार के कारण से हुई थी।
प्रश्न 27.
पोलिश भाषा की जगह किस भाषा ने ली थी?
उत्तर-
पोलिश भाषा की जगह रूसी भाषा ने ले ली थी।
प्रश्न 28.
कृषक विद्रोह कब हुआ था? उत्तर-1848 में कृषक विद्रोह हुआ था। प्रश्न 29. नारीवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर-
नारीवाद का अर्थ है-स्त्री और पुरुष की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक समानता की सोच/चिन्तन के आधार पर महिलाओं के अधिकारों और हितों का ज्ञान करवाना अथवा जानना।
प्रश्न 30.
नृजातीय का क्या अर्थ है?
उत्तर-
नृजातीय का अर्थ है-एक साझा नस्ली, जनजातीय अथवा सांस्कृतिक उद्गम या पृष्ठभूमि जिसे कोई भी समुदाय अपनी पहचान मानता है।
प्रश्न 31.
मारीआन की प्रतिमाएँ कहाँ स्थापित की गई थीं?
उत्तर-
मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौकों पर स्थापित की गई थीं।
प्रश्न 32.
उदारवादियों की 1848 की वंति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
उत्तर-
1830 की क्रान्ति में समय वर्ग की स्त्रियों एव पुरुषों ने संवैधानिक सुधारों के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता पर जोर दिया। फ्रांस में जब 1848 की क्रान्ति हुई तो वहाँ के शासक लुई फिलिप (Louise Phillippe) उनको अपनी गद्दी छोड़कर भागना पड़ा और वहाँ एक गणतंत्र की स्थापना हुई।
फ्रांस में होने वाली इस सफलता ने यूरोप के अन्य देशो के उदारवादियों को भी निरंकुशवाद और परतन्त्रता के विरुद्ध लोगों को संघर्ष करने के लिए भढ़काया।
फिर क्या था। हर जगह-चाहे वह जर्मनी हो या फिर इटली, पोलैंड और आस्टिंया-हंगरी हो-लोगों ने राष्ट्र-राज्यों की स्थापना, जो प्रजातन्त्र के नियमों पर आधारित हों, संविधान, समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता और संघ बनाने की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना शुरु कर दिया।
परन्तु इन वन्तियों और संघर्ष के बावजूद यह उदारवादियों आन्दोलन महिलाओं को रातनीतिक अधिकार दिये जाने के प्रश्न चुप रहा।
आर्थिक क्षेत्र में भी ममय वर्ग के उदारवादी अभी भी असमंजस में थे कि जनसाधारण को उन जैसे अधिकार दिए जाने चाहिये या नही। फिर भी इस उदारवादी आन्दोलन का यह परिणाम तो निकला कि किसान-दास (Serfdom) और बन्धुआ मजदूरों (Bonded labour)आदि की प्रथाए! अवश्य समाप्त कर दी गई।
प्रश्न 2.
यूरोप में राष्टंवाद के विकास में संस्कृति के योगदान को दर्शाने के लिए तीन उदाहरण दें।
उत्तर-
राष्ट्रवाद के विकास में जितना योगदान युणे और क्षेत्रीय विकास का रहा उससे भी अधिक महन्वपूर्ण भूमिका संस्कृति (Culture) की भी रही। रुमानीवाद (Romanticism) एक महन्चपूर्ण सांस्कृतिक आन्दोलन था। जिसने एक विशेष प्रकार से राष्ट्रीय भावना का विकास करने में महन्वपूर्ण भूमिका निभाई। रुमानी कवियों और कलाकारों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान के महिमागान की आलोचना की और उसके सथान अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर जोर दिया। उनका प्रयास था कि एक सांझी सांस्कृतिक विरासत और एक सांझे सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का आधार बनाया जाए। एक सांझी सांस्कृतिक विरासत में कला, काव्य किस्से-कहानियों और संगीत एवं लोककथाओं, लोकगीतों और चित्रों आदि ने भी राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रोत्साहित करने में अपना बड़ा सहयोग दिया।
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
(क) ज्युसेपे मेसिनी
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युग ।
(घ) फ्रेंकफर्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका
उनर-
(क) मेजिनी का योगदान-गिसीपी मेजिनी ने इटली का एकीकारण करने में बहुत अधिक प्रयत्न किये। उसे इटली के एकीकरण का आत्मबल कहा जाता है। उसने गैरीबाल्डी की सहायता से इटली में क्रांतिकारी कार्य करने के लिए ‘यंग इटली’ आन्दोलन आरम्भ किया। उसने इटली के ही नहीं वरन् समस्त यूरोप के नवयुवकों में स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना जागृत की। उसने 1848 ईन में रोम पहुँचकर पोप से उसके पैपल राज्य के नवयुवकों में स्वतन्त्रता प्राप्ति की भावना जागृत की। उसने 1848 ईन में रोम पहुँचकर पोप से उसके पैपल राज्य को स्वतन्त्र होने के लिये प्रोत्साहित किया। परन्तु फ्रांस के सम्राट नैपालियन तृतीय ने उसके साथियों को हराकर रोम तथा इटली पर पोप का पुनः अधिकार करवा दिया। चाहे अपने उपेश्य में उसे पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई परन्तु उसके प्रचार के फलस्वरूप बाद में कैवूर को जनता का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ। अपने प्रयत्नों से उसने यूरोप के लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे अपने देशों की स्वतन्त्रता के लिये सब कुछ न्योछावर कर दें।
उत्तर-
(ख) कावूर का योगदान-इटली के एकीकरण का वास्तविक श्रेय कावूर को ही जाता हैं 1852 ईन में वह सार्डनिया का प्रधानमंत्री बना तथा इटली के एकीकरण के कार्य में जुट गया। उसने अपनी कूटनीतिक चालों द्वारा इस कार्य को पूर्ण किया। उसने कई युद्धों में भाग लेकर इटली के राज्यों को सार्डनिया के साथ मिलने को अवसर प्रदान किया। लोम्बार्डी, माडेना, पार्मा, टस्कनी आदि राज्य धीरे-धीरे विदेशी सना से छुटकारा प्राप्त कर सार्डनिया में आ मिले। उसकी मृत्यु के समय रोम तथा वेनेशिया के राज्यों को छोड़कर इटली के एकीकरण का काम पूर्ण हो चुका था। इतिहासकार से इटली का बिस्मार्क’ कहते हैं।
उत्तर-
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध-15वीं शताब्दी से ही यूनान आटोमन साम्राज्य का एक भाग था। परन्तु 19वीं शताब्दी में यूरोप में उठने वाले वन्तिकारी राष्टंवाद ने यूनानियों को टर्की से आजाद होने के लिए उकसाया। इस कार्य में यूरोप के ईसाई जगत के अनेक लोगों ने भी यूनानियों का साथ दिया।
यूनानियों द्वारा स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष 1821 ईन में शुरू किया गया। कई स्थानों पर ईसाई लोगों का एक बड़ी मात्रा में वध कर दिया गया जिससे सारा यूरोप काँप उठा। फिर क्या था इंगलैंड, फ्राँस और रूस ने आगे बढ़कर यूनान का साथ दिया। संघर्ष चलता रहा और अन्त में 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि के अनुसार टर्की को यूनान को स्वतन्त्र करना पड़ा। इस प्रकार यूनान को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
उत्तर-(घ) फ्रैंकफर्ट संसद-1848 ईन में जब यूरोप में एक क्रांति की लहर उठी तो जर्मनी में भी क्रांतिकारियों ने विद्रोह शुरू किये तथा वैधानिक सुधारों की मांग की।
क्रांतिकारी यह अच्छी तरह जानते थे कि ऑस्ट्रिया उनका साथ नहीं दे सकता क्योंकि ऑस्टिंया का शासक तथा उसका मंत्री दोनों ही निरंकुश शासन के पक्षपाती थे। इस कारण वंतिकारियों ने 28 मार्च 1848 को फ्रैंकफोर्ट में एक राष्ट्रीय पार्लियामैंट बुलाई जिसमें प्रशिया के सम्राट फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ (Frederick William IV) को जर्मनी का सम्राट-पद स्वीकार करने को कहा गया। परन्तु सम्राट फ्रडरिक ने ऑस्ट्रिया के डर के कारण यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। इस प्रकार जर्मनी के एकीकरण का यह प्रयास असफल रहा।
उत्तर-(ङ) राष्ट्रवादी संघषों में महिलाओं की भूमिका- यूरोप के लगभग सभी राज्यों-फ्रांस, जर्मनी, इटली, आस्ट्रिया-हंगरी में महिलाओं ने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने देश के एकीकरण, प्रजातन्त्रीय संघर्षों एवं संवैधानिक प्रयत्नों में पूर्ण सहयोग दिया। महिलाओं ने अपने अलग राजनीतिक संगठनों का निर्माण किया और देश में होने वाली राजनीतिक गतिविमिायों और विरोध सभाओं और जलूसों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
फिर भी महिलाओं को वोट के अधिकार से काफी समय तक वंचित रखा गया। वास्तव में महिलाओं को अधिकार दिये जाने के पक्ष में उदारवादी लोग भी नहीं थे।
उदारवादी राजनीतिक कार्ल वेल्कर (Carl Welcker) के शब्द, जो स्वयं फ्रैंकफर्ट संसद के एक निर्वाचित सदस्य थे, पुरुषों और महिलाओं में पायी जाने वाली असमानता की प्रकृति को कैसे स्पष्ट करते हैं: ‘प्रकृति ने पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग कार्य करने के लिए निर्मित किया है-पुरुष जो ज्यादा ताकतवर है, दोनों में से ज्यादा निर्भीक और मुक्त है उसे परिवार का रखवाला और भरण-पोषण करने वाला बनाया गया है और कानून, उत्पादन और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक कार्यो के लिए है। महिला जो कमजोर, निर्भर और दब्बू हैं, उसे पुरुष की सुरक्षा की आवश्यकता है। उसका क्षेत्र घर, बच्चों की देखभाल और परिवार का पालन-पोषण है………।
प्रश्न 2.
फ्रासीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रासीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?
उत्तर-
फ्रांस के क्रांतिकारियों द्वारा लोगों में एकता और संगठन बनाए रखने की दिशा में उठाए गए कदम-फ्रांस की क्रांति 1789 ईन में शुरू हुई। शीघ्र ही लोगों ने राजा और रानी से छुटकारा पाकर सना की सारी बागडोर अपने हाथ में ले ली। फिर उन्होंने लोगों में एकता और संगठन बनाए रखने के लिए अनेक कदम उठाए।
प्रश्न 3.
मैरियान और जर्मेनिया कौन थे? जिस तरह उन्हें चित्रित किया गया उसका क्या महन्व था?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के दिनों में कलाकारों ने नारी-रूपकों का प्रयोग अमूर्त विचारों (स्वतन्त्रता, मुक्ति, ईर्ष्या, लालच आदि) को प्रकट करने के लिये किया। कुंछ कलाकारों ने इन महिला-रूपकों का प्रयोग एकता के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में किया। फ्रांस में राष्ट्र के प्रतीक के रूप में लोकप्रिय ईसाई नाम माराआन दिया गया। उसे लाल टोपी, तिरंगा और कलगी के साथ दिखाया गया और उसकी प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौराहों पर लगाई गई ताकि लोगों को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे।
इसी प्रकार जर्मनी में, जर्मन राष्ट्र के प्रतीक के रूप में जर्मेनिया को रूपक माना गया। उसे बलूत वृक्ष के तनों के मुकट से सजाया गया क्योंकि जर्मनी में बलूत को वीरता का प्रतीक माना जाता है।
प्रश्न 4.
जर्मन एकीकरण की प्रव्यिा का संक्षेप में पता लगाएँ।
उत्तर-
जर्मनी का एकीकरण जिन-जिन सोपानों में हुआ उसका विवरण इस प्रकार है और उन सभी सोपानों में प्रशिया के चान्सलर बिस्मार्क की महत्वपूर्ण भूमिका रही:
(1) पहली अवस्था-18वीं शताब्दी से जर्मनी अनेक राज्यों-प्रशिया, बावेरिया, सैकसनी आदि में बंटा हुआ था। इसलिए इसका आर्थिक विकास बहुत धीमा था। राष्ट्रीय चेतना के जागृत होने पर जर्मनी के विभिन्न राज्यों के लोगों ने एकीकरण की मांग करना आरम्भ कर दी। 1815 ईन में जर्मनी के राज्यों को आस्ट्रिया के साथ मिलाकर एक जर्मन महासंघ की स्थापना की कोशिश की। विवश फ्रेकफर्ट में एक राष्ट्रीय पार्लियामेंट बुलाई गयी जिसे संविधान का कार्य सौंपा गया। परन्तु इस पार्लियामेंट को आस्ट्रिया के विरोध के कारण सफलता नहीं मिली।
(2) दूसरी अवस्था-इस क्रान्ति की असफलता के पश्चात् जर्मनी के एकीकरण का काम लोकतंत्र के रूप में न होकर बिस्मार्क द्वारा सैन्यशक्ति एवं कूटनीति के सहारे होने लगा। बिस्मार्क ने अपनी ‘रक्त और लौह’ की नीति द्वारा इस एकीकरण के काम को पूरा किया। सबसे पहले 1864 ईन में बबबिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशिया और डेनमार्क में एक युद्ध हुआ जिसमें प्रशिया की जीत हुई और उसे शैल्सविग का प्रदेश मिला।
(3) तीसरी अवस्था-1866 ईन में प्रक्रिया (या जर्मनी) का आस्ट्रिया के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजय के पश्चात् प्रक्रिया के साथ अनेक प्रदेश (जैसे हैनोवर, होल्सटीन, लक्समवर्ग, कैसल तथा फ्रेंकफर्ट आदि) आ मिले। जर्मनी से आस्ट्रिया का प्रभाव अब सदा के लिए समाप्त हो गया और इससे जर्मनी के एकीकरण का काम काफी आसान हो गया।
(4) चौथी अवस्था-अन्त में 1870 ईन में फ्रांस के साथ जर्मनी का एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें फ्रांस की करारी हार हुई और उससे आल्सेस और लारेन वे महत्वपूर्ण प्रदेश छीन लिए गए। इन विजयों से प्रभावित होकर बाकी बचे हुए जर्मन प्रदेश भी (जैसे बावेरिया, बर्टमबर्ग, बेडन और दक्षिणी हैस) जर्मन महासंघ में शामिल हो गए और प्रशिया के शासक विलियम प्रथम को 1871 ई. में संयुक्त जर्मनी का सम्राट घोषित कर दिया गया।
इस प्रकार बिस्मार्क के प्रयत्नों से 1871 ईन में जर्मनी के एकीकरण का कार्य पूरा हुआ।
प्रश्न 5.
अपने शासन वाले क्षेत्रों में शासन व्यवस्था को ज्यादा कुशल बनाने के लिए नेपोलियन ने क्या बदलाव किए?
उत्तर-
फ्रांस की क्रांति के समय (1789-1815) जहाँ कहीं भी फ्रांसीसी सेनाएँ गईं उन्होंने राष्ट्रवाद की विचारधारा को अवश्य फैलाया अपने साम्राज्य के इस विस्तृत क्षेत्र-जिसमें हालैंड, बेल्जियम, स्विटजरलैंड, इटली और जर्मनी आदि सम्मिलित थे-नैपालियन ने अनेक प्रशासनिक सुधार किए जो वह पहले अपने देश फ्रांस में कर चुका था। ये सब कुछ उसने प्रशासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने और उसमें कुशलता लाने के लिए किया। उसके यह सुधार 1804 के सिविल कोड के नाम से प्रसिद्ध हैं। कई इतिहासकार इस कानून-संहिता को नैपोलियन कोड (Napolean Code) के नाम से भी पुकारते हैं।
नैपोलियन द्वारा किए गए प्रमुख प्रशासनिक सुधारों में निम्नलिखित विशेषकर उल्लेखनीय है।
(क) जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए और कानून के सामने सबकी बराबरी के नियम को लागू किया गया।
(ख) प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया गया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया गया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई गई।
(ग) यातायात और संचार व्यवस्था में सुधार किया गया।
(घ) किसानों, मजदूरों कारीगरों और नए उद्योगपतियों को अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्रता प्रदान की गई।
(ङ) मानक नापतोल के पैमाने चलाए गए और एक राष्ट्रीय मुद्रा चलाई गई।
(च) एक इलाके से दूसरे इलाके में वस्तुओं और पूंजी के आवागमन में सहूलतें दी गई।