मेरे बिना तुम प्रभु
मेरे बिना तुम प्रभु
Hindi ( हिंदी )
लघु उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ?
उत्तर ⇒ ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का केन्द्रीय भाव है कि जीव और ईश्वर का संबंध अन्योन्य है। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं रह सकता। जीव में ईश्वर का वास है। भक्त के बिना भगवान का भी अस्तित्व नहीं है।
प्रश्न 2. कवि रेनर मारिया रिल्के ने अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहा है ?
उत्तर ⇒ कवि अपने को भगवान का भक्त मानता है । भक्त की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कवि ने भक्त को जलपात्र और मदिरा कहा है क्योंकि जलपात्र में संग्रहित होकर भगवान अपनी अस्मिता प्राप्त करता है । इसी तरह भक्ति-रस के निकट आकर भगवान इससे आह्लादित हो जाते हैं।
प्रश्न 3. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ⇒ कवि को आशंका है कि जब ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति करानेवाला प्रतीक आधार या भक्त नहीं होगा तब ईश्वर की पहचान किस रूप में
होगी ? प्राकृतिक छवि, मानव की हृदय का प्रेम, दया, भगवद्स्वरूप हैं। ये सब नहीं होंगे, तब उस परमात्मा का आश्रय क्या होगा, मानव किस रूप में ईश्वर को जान सकेगा इस प्रश्न को लेकर कवि आशंकित है।
प्रश्न 4. शानदार लबादा किसका गिर जाएगा, और क्यों ?
उत्तर ⇒ कवि के अनुसार भगवत्-महिमा भक्त की आस्था में निहित होता है। भक्त भगवान का दृढाधार होता है लेकिन जब भक्तरूपी. आधार नहीं होगा तो स्वाभाविक है कि भगवान की पहचान भी मिट जाएगी। भगवान का लबादा अथवा चोगा गिर जाएगा।
प्रश्न 5. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता में कहा गया है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय हैं। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
प्रश्न 6. कवि किसको कैसा सुख देता था ?
उत्तर ⇒ कवि भगवान की कृपादृष्टि की शय्या है। कवि के नरम कपोलों पर जब भगवान की कृपादृष्टि विश्राम लेती है, तब भगवान को सुख मिलता है, आनंद मिलता है । अर्थात् भक्त भगवान का कृपापात्र होता है और भक्तरूपी पात्र से भगवान भी सुखी होते हैं।
प्रश्न 7. मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ⇒ इस कविता में कहा गया है कि मानव के अस्तित्व में ही ईश्वर का अस्तित्व है। मानवीय जीवन में ईश्वरीय अंश होता है। परमात्मा की अदृश्यता को जीवात्मा दृश्य करता है। ईश्वर की झलक जीव के माध्यम से देखी जाती है।
प्रश्न 8. कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है ? आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर ⇒ कविता में कवि भक्त के रूप में भगवान को सम्बोधित करता है । इसमें भक्त अपने को भगवान का आश्रयगह स्वीकारता है। अपने में भगवान की छवि को देखता है और कहता है कि हे भगवान ! मैं भी तुम्हारे लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण हूँ जितना तुम मेरे लिए। कवि के इस विचार की हम पुष्टि करते हैं।.
प्रश्न 9. “देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में” पंक्ति के माध्यम से कवि किस देवता की बात करते हैं और क्यों ?
उत्तर :-प्रश्नोक्त पंक्ति के माध्यम से कवि जनतारूपी देवता की बात करते हैं, क्योंकि कवि की दृष्टि में कर्म करता हुआ परिश्रमी व्यक्ति ही देवतास्वरूप है।
मंदिरों-मठों में तो केवल मूर्तियाँ रहती हैं वास्तविक देवता वे हैं जो अपने कई परिश्रम से समाज को सुख-समृद्धि उपलब्ध कराते हैं।
दीर्घ उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता में कहा गया है कि बिना भक्त के भगवान भी एकाकी और निरुपाय हैं। उनकी भगवत्ता भी भक्त की सत्ता पर ही निर्भर करती है। व्यक्ति और विराट सत्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं। भगवान जल हैं तो भक्त जलपात्र है। भगवान के लिए भक्त मदिरा है। बिना भक्त के भगवान रह ही नहीं सकते । भक्त ही भगवान का सबकुछ हैं और भक्त के लिए भगवान सबकुछ हैं । ब्रह्म को साकार करनेवाला जीव होता है और जीव जब ब्रह्ममय हो जाता है तब वह परमानंद में डूब जाता है। भक्त की भक्ति को पाकर परमात्मा आनंदित होता है और परमात्मा को प्राप्त करके भक्त परमानंद को प्राप्त करता है। यही अन्योन्याश्रय संबंध भक्त और भगवान में है।
प्रश्न 2. कवि रेनर मारिया रिल्के रचित कविता “मेरे बिना तुम प्रभु’ का सारांश अपने शब्दों में प्रस्तुत करें।
उत्तर ⇒ भक्त कवि रिल्के अपने प्रभु से प्रश्न करता है-प्रभु, जब मेरा अस्तित्व ही नहीं रहेगा, तब तुम क्या करोगे ? मैं ही तुम्हारा जलपात्र हूँ, मैं ही तुम्हारी मदिरा हूँ। जब जलपात्र टूटकर बिखर जाएगा और मदिरा सूख जाएगी या स्वादहीन हो जाएगी तब प्रभु तुम क्या करोगे ?
कवि अपने प्रभु से कहता है कि मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ। मैं ही तुम्हारे होने का कारण हूँ। तुम मुझे खोकर अपना अर्थ खो बैठोगे। मेरे अभाव में तुम गृहविहीन हो जाओगे। तब तुम निर्वासित-सा अपना जीवन बिताओगे। तब तुम्हारा स्वागत कौन करेगा? प्रभु मैं तुम्हारे चरणों की पादुका हूँ। मेरे बिना तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाएँगे; तुम्हारे पैर लहूलुहान हो जाएँगे; तुम्हारे पैर मेरे बिना कहीं भ्रांत दिशा में भटक जाएँगे।
कवि अपने आराध्य से कहता कि जब मेरा अस्तित्व ही नहीं रहेगा, तब तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा। तुम्हारी सारी शान मेरे होने पर ही निर्भर है। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी कृपादृष्टि को सुख कहाँ से नसीब होगा? दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख तुम्हें मेरे नहीं रहने पर कैसे प्राप्त होगा? कवि अपनी आशंका व्यक्त करता हुआ कहता है कि मेरे बिना प्रभु शायद ही कुछ रह सकें।
प्रश्न 3. आशय स्पष्ट कीजिए :
“मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ।
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे ?”
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भक्त को भगवान की अस्मिता माना है। भगवान का वास्तविक स्वरूप भक्त में है। भक्त भगवान का सबकुछ है। भगवान का रूप, वेश, रंग, कार्य सब भक्त में निहित है। भक्त के माध्यम से ही भगवान को जाना जा सकता है, उनके अस्तित्व की अनुभूति की जा सकती है। कवि कहता है कि हे भगवन, मेरा अस्तित्व ही तुम्हारी पहचान है । मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारी पहचान भी नहीं होगी, अर्थात् भक्त से अलग रहकर, भक्त को खोकर भगवान भी अपना अर्थ, अपना मतलब, अपनी पहचान खो देंगे । भक्त के बिना भगवान की कल्पना नहीं ही की जा सकती।