महावीर जयंती आज, जानें कब है सतुआन, बैसाखी, बिहू और अक्षय तृतीया

Festivals in Patna: धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती बहुत ही विशेष दिन है. इस दिन भगवान महावीर के उपदेशों को स्मरण कर उनके बताये गये सिद्धांतों पर चलने का संकल्प लिया जाता है. दरअसल, जैन समाज के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था. ऐसे में यह तिथि इस बार 10 अप्रैल को है. इसे लेकर राजधानी में उल्लास का माहौल है. लगभग 30 वर्ष की आयु में, महावीर स्वामी ने सभी सांसारिक संपत्तियों को त्याग दिया और आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े थे. महावीर ने 12 साल की कठोर तपस्या के बाद अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की थी. तप के बाद उन्होंने दिगंबर स्वरूप को स्वीकार किया. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया. जैन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों की क्या मान्यताएं हैं और शहर में आज कौन-कौन से कार्यक्रम होंगे, आइए जानते हैं.

भगवान महावीर के मूल सिद्धांत आज भी प्रासंगिक

जैन संघ, पटना के अध्यक्ष प्रदीप जैन कहते हैं, भगवान महावीर ने मानव जीवन के लिए ऐसे मौलिक सिद्धांत दिए जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. उनका मानना था कि आत्मा ही कर्म की कर्ता और भोक्ता है, अतः प्रत्येक कर्म का फल भोगना ही पड़ता है. उन्होंने अपराधी को भी प्रायश्चित और क्षमा के माध्यम से सुधारने का मार्ग दिखाया.

  1. अहिंसा परमो धर्म: महावीर ने अहिंसा को केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि दूसरों को पीड़ा देना, अधिकार छीनना भी हिंसा माना. उन्होंने सिखाया कि जैसा व्यवहार हम अपने लिए नहीं चाहते, वैसा दूसरों के साथ भी न करें.
  2. जीयो और जीने दो: सभी जीव चेतन हैं. उनके प्रति आत्मवत व्यवहार और पर्यावरण की रक्षा करना इस सिद्धांत का मूल है.
  3. सह-अस्तित्व: हर प्राणी के अस्तित्व को स्वीकार कर, उसकी सुविधा और सम्मान को प्राथमिकता देना ही अहिंसा है.
  4. अपरिग्रह: स्वैच्छिक संयम और संग्रह की मर्यादा से न केवल संतोष बढ़ता है, बल्कि सामाजिक समरसता भी बनी रहती है.
  5. मर्यादा और संयम : संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और मन-इन्द्रियों का संयम उपभोक्तावाद से बचने का मार्ग है.

बिहार की धरती पर हुआ महावीर का जन्म

  1. बिहार स्टेट दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के मानद सचिव पराग जैन कहते हैं कि भगवान महावीर के उपदेशों का सार दो महान सिद्धांतों में निहित है- ‘अहिंसा परमो धर्मः’ और ‘जियो और जीने दो’. वे समझाते हैं कि जो व्यवहार हम अपने लिए नहीं चाहते, वही दूसरों के प्रति भी नहीं करना चाहिए. आज का युग भ्रष्टाचार, जातिवाद, छल-कपट जैसे अवगुणों के दलदल में फंसा हुआ है. ऐसे अंधकारमय समय में भगवान महावीर के प्रकाशमय सिद्धांत पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गये हैं. दरअसल, जैन धर्म में अहिंसा केवल वैयक्तिक मोक्ष का मार्ग नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण का एक सशक्त माध्यम है.
  2. जैन संघ, पटना के अध्यक्ष प्रदीप जैन का मानना है कि जैन अहिंसा का जो संवाद हमें अपनी आसक्तियों से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है, वह समकालीन समाज की अत्यधिक संग्रह प्रवृत्तियों से मुक्ति दिला सकता है. भगवान महावीर के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे सदियों पहले थे. जैन दर्शन की अहिंसा केवल विचार और आचार की शुद्धता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक, सामाजिक और सामूहिक जीवन में भी समान रूप से लागू होती है. यदि पूरे विश्व में स्थायी शांति की स्थापना संभव है, तो वह केवल अहिंसा के मार्ग से ही संभव है.
  3. मीठापुर की प्रिया कोठारी कहती हैं, जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन काफी अहम होता है, इस कारण वह महावीर जयंती को पर्व की तरह मनाते हैं. लगभग 30 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी ने सभी सांसारिक संपत्तियों को त्याग दिया और आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े. महावीर स्वामी ने 12 साल की कठोर तपस्या के बाद अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की थी. तप के बाद उन्होंने दिगंबर स्वरूप को स्वीकार किया. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया. बाकरगंज स्थित जैन मंदिर में दर्शन पूजन के लिए पहुंच जायेंगे, उसके बाद शोभायात्रा में शामिल होंगे.

आज निकाली जायेगी भव्य शोभा यात्रा

पटना. भगवान महावीर जयंती 10 अप्रैल को मनाया जायेगा. इस मौके पर जैन संघ पटना की ओर से भगवान महावीर की शोभायात्रा 10 अप्रैल सुबह आठ बजे जैन मंदिर मीठापुर से निकली जायेगी. इस बात की जानकारी जैन संघ (पटना) के अध्यक्ष प्रदीप कोठारी ने दी. उन्होंने बताया कि यह शोभा यात्रा भिखारी ठाकुर पुल, शहीद स्मारक, आर. ब्लॉक, वीरचंद पटेल पथ, आयकर गोलंबर, मौर्या लोक (डाक बंगला रोड), एग्जीबिशन रोड, पीरमुहानी एवं कदमकुआं होते हुए दिगंबर जैन मंदिर कांग्रेस मैदान पर संपन्न होगी. वहीं शाम बिहार चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के सभागार में जैन समाज के बच्चों एवं महिला कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जायेगा. यह कार्यक्रम जैन संघ की महिला प्रकोष्ठ की ओर से प्रस्तुत किया जायेगा.

वहीं पटना जैन श्वेताम्बर श्री संघ की ओर से भी भगवान महावीर स्वामी के 2624 वें जन्म कल्याणक के मौके पर शोभा-यात्रा का आयोजन किया जा रहा है. इस बात की जानकारी शोभा यात्रा के संयोजक रंजन कुमार जैन (बैद) ने दी. भगवान महावीर की सवारी श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर (नागेश्वर कॉलोनी) बाकरगंज से प्रातः आठ बजे से प्रारंभ होकर ठाकुरबाड़ी रोड, नाला रोड, कांग्रेस मैदान (दिगंबर जैन मंदिर), राजेन्द्र पथ, कदमकुआं, भट्टाचार्या रोड, होते हुए ओसवाल भवन (चौथा तल्ला, नारायण प्लाजा) पहुंचेगी. इसके बाद भगवान की पंचकल्याणक पूजा, आरती एवं साधर्मी वात्सल्य का कार्यक्रम नारायण प्लाजा में विधिवत सम्पन्न होगा.

13 को मनाया जायेगा बैसाखी पर्व

पटना में 13 अप्रैल को बैसाखी पर्व धूमधाम से मनाया जायेगा. इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. पटना साहिब गुरुद्वारा को रोशनी और सजावट से सुसज्जित किया जा रहा है. यहां सुबह विशेष कीर्तन, आरती और अरदास होगी. भव्य नगर कीर्तन में पंज प्यारे, झांकियां और निशान साहिब के साथ सिख श्रद्धालु शामिल होंगे. बैसाखी पर खालसा पंथ की स्थापना की स्मृति में श्रद्धा और उत्साह का माहौल रहता है. यह पर्व सिख समुदाय के साथ अन्य धर्मों के लोगों को भी जोड़ता है, जो इसे सामाजिक एकता, कृषि परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बनाता है. चितकोहरा की गुरु प्रीत कौर कहती हैं, बैसाखी का सिख धर्म में एक विशेष स्थान है. इसी दिन, 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने आनंदपुर साहिब में एक सभा आयोजित की और सिखों को एक नयी पहचान दी. इस दिन सिख गुरुद्वारों को सजाया जाता है, विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं और नगर कीर्तन निकाले जाते हैं.

मैथिल नववर्ष के रूप मनाया जाता है जुड़ शीतल

14 अप्रैल को जुड़ शीतल पर्व मनाया जायेगा, जिसे मैथिल नववर्ष के रूप मनाया जाता है. मिथिला में इस पर्व का काफी महत्व है. संत माइकल स्कूल की संस्कृत शिक्षिका विनीता चौधरी कहती हैं, जुड़शीतल पर घर के बुजुर्गों से प्राप्त आशीर्वाद को मिथिला की संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. चैत्र संक्रांति के अहले सुबह घर के बुजुर्ग अपनों से छोटे को रात का बासी पवित्र जल डालकर ‘जुड़ायल रहू’ (अर्थात; खुश रहो) का आशीष देते हैं. सिर पर उस पवित्र जल को डालने का तात्पर्य उन्हें मानसिक शांति प्रदान करना है, जबकि जुड़ायल रहू का तात्पर्य उन्हें परिपूर्ण रहने का आशीर्वाद है. इस दिन बासी भोजन, यथा बासी भात और बासी कढ़ी-बड़ी खाने का भी विधान है. इस दिन ठंडा खाना खाने का मतलब भी सालों भर गुस्सा त्याग कर मानसिक शांति बनाए रखना है.

मेष संक्रांति के दिन ही मनाया जाता है सतुआन

सतुआन पर्व बैसाख माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा को पूरा कर लेते हैं. हर साल यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाता है. सतुआन उत्तरी भारत के कई सारे राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है. यह पर्व गर्मी के आगमन का संकेत देता है. मेष संक्रांति के दिन ही सतुआन का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है. इस दिन भगवान को भोग के रूप में सत्तू अर्पित किया जाता है और सत्तू का प्रसाद खाया जाता है. यह खास त्यौहार बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल हिस्से में मनाया जाता है.बिहार में मिथिलांचल में इसे जुड़ शीतल नाम से जाना जाता है.

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