भारत-रूस के आगे चीन-पाकिस्तान फेल, 10 महीने की हाई पर क्रूड ऑयल का आयात

Crude Oil: भारत और रूस के बीच कारोबारी दोस्ती के आगे चीन और पाकिस्तान की कुटिल चाल फेल हो गई. भारत ने मई 2025 में रूस से 19.6 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल आयात किया, जो पिछले 10 महीनों में सबसे ऊंचा स्तर है. केप्लर की पोत परिवहन गतिविधियों से मिले आंकड़ों के अनुसार, यह वृद्धि वैश्विक बेंचमार्क की तुलना में रूसी तेल पर मिल रही भारी छूट के चलते हुई है. यह दर्शाता है कि भारत की रणनीतिक तेल नीति मूल्य संवेदनशीलता और विविध आपूर्ति स्रोतों पर केंद्रित है.

रूस बना भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है, जो रोजाना करीब 51 लाख बैरल तेल विदेशों से मंगाता है. रूस अब भारत के कुल तेल आयात में 38% से अधिक की हिस्सेदारी के साथ टॉप सप्लायर बन गया है. इराक (12 लाख बैरल प्रतिदिन) दूसरा, सऊदी अरब (6.15 लाख बैरल), यूएई (4.9 लाख बैरल) और अमेरिका (2.8 लाख बैरल) दूसरे प्रमुख सप्लायर हैं.

यूक्रेन युद्ध के बाद बदला समीकरण

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने पश्चिम एशिया पर निर्भरता कम करते हुए रूसी तेल की ओर रुख किया. पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय देशों की खरीद में कमी के कारण रूस ने अपने क्रूड को भारी छूट पर बेचना शुरू किया, जिससे भारत को सस्ते दर पर ऊर्जा आपूर्ति का लाभ मिला. कुछ ही महीनों में रूस की हिस्सेदारी भारत के कुल तेल आयात में 1% से बढ़कर 40–44% तक पहुंच गई.

रूसी क्रूड की प्रतिस्पर्धी कीमत बनी प्रमुख कारण

रूस से मिलने वाला यूराल ग्रेड क्रूड ब्रेंट और दुबई बेंचमार्क की तुलना में सस्ता रहता है. केप्लर के शोध प्रमुख सुमित रितोलिया के अनुसार, “भारत में रूसी बैरल का निरंतर प्रवाह आर्थिक, परिचालन और भू-राजनीतिक कारणों का परिणाम है.” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आर्थिक व्यवहार्यता के लिहाज से भारत की ऊर्जा रणनीति में रूस एक प्रमुख स्तंभ बना हुआ है और यह पश्चिमी दबावों के बावजूद भी जारी रहेगा.

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भारत की ऊर्जा नीति में रूस की केंद्रीय भूमिका

भारत-रूस की ऊर्जा साझेदारी को चीनी या पाकिस्तानी कूटनीतिक दबाव नहीं तोड़ पाए हैं. रूस से सस्ते और स्थिर कच्चे तेल की आपूर्ति ने भारत को न केवल आर्थिक लाभ दिया है, बल्कि उसकी ऊर्जा सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया है. यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अपनी ऊर्जा रणनीति को वैश्विक राजनीति के बजाय आर्थिक व्यावहारिकता के आधार पर तय करता है.

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