भारतीय संविधान

भारतीय संविधान

1. भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास
         1757 ई० की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई० के बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शासन का शिकंजा कसा। इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय
पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियाँ बनीं। वे निम्न हैं –
◆ 1773 ई० का रेग्यूलेटिंग एक्ट–इस एक्ट के अन्तर्गत कलकत्ता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् के चार सदस्य थे, अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे। इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं (i) कम्पनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया । (ii) बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेन्सियों का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया । (iii) कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी ।
◆  1784 ई० का पिट्स इंडिया एक्ट इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ (i) कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स व्यापारिक मामलों के लिए, (ii) बोर्ड ऑफ कंट्रोलर राजनीतिक मामलों के लिए ।
◆  1793 ई० का चार्टर अधिनियम इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गयी ।
◆ 1813 ई० का चार्टर अधिनियम- इसके द्वारा (i) कम्पनी के अधिकार – सत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया । (ii) कम्पनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन लिया गया । किन्तु उसे चीन के साथ व्यापार एवं पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वर्षों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा । (iii) कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया ।
◆ 1833 ई० का चार्टर अधिनियम (i) इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णत: समाप्त कर दिए गए । (ii) अब कम्पनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया । (iii) बंगाल के गवर्नर जेनरल को भारत का गवर्नर जेनरल कहा जाने लगा । (iv) भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिये विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी ।
◆ 1853 ई० का चार्टर अधिनियम- इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कम्पनी के महत्त्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गयी ।
◆  1858 ई० का चार्टर अधिनियम-(i) भारत का शासन कम्पनी से लेकर ब्रिटिश क्राऊन के हाथों में सौंपा गया । (ii) भारत में मंत्री पद की व्यवस्था की गयी । (iii) पन्द्रह सदस्यों की भारत-परिषद् का सृजन हुआ । (iv) भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा ;. नियंत्रण स्थापित किया गया ।
◆ 1861 ई० का भारत शासन अधिनियम-(i) गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार किया गया, (ii) विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ, (iii) गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी। (iv) गवर्नर जेनरल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गयी ।
◆ 1892 ई० का भारत शासन अधिनियम-(i) अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत हुई, (ii) इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई ।
◆  1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [मार्ले-मिन्टो सुधार) – (i) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक् प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया गया । (ii) भारतीयों की भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई । (iii) केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला । (iv) – प्रान्तीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गयी ।
◆ 1919 ई० का भारत शासन अधिनियम ( माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) – (i) केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी – प्रथम राज्य परिषद् तथा दूसरी केन्द्रीय विधान सभा । राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था । केन्द्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत होते थे । इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था। दोनों सदनों के अधिकार समान थे। इनमें सिर्फ एक अन्तर था कि पर स्वी प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था । (ii) प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्त्तन किया गया । इस योजना के अनुसार प्रान्तीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया— आरक्षित तथा हस्तान्तरित । आरक्षित विषय थे – वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियाँ (criminal tribes), छापाखाना, समाचारपत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, ब्यॉलर, श्रमिक कल्याण, औद्योगिक विवाद, मोटरगाड़ियाँ, छोटे बन्दरगाह और सार्वजनिक सेवाएँ आदि ।
        हस्तान्तरित विषय–(i) शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता, (ii) सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उद्योग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि । (iii) आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद् के माध्यम से करता था; जबकि हस्तान्तरित विषय का प्रशासन प्रान्तीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था । (iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एकट के द्वारा समाप्त कर दिया गया । (v) भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है । (vi) इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया ।
◆ 1935 ई० का भारत शासन अधिनियम-1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएँ और 15 परिशिष्ट थे । इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) अखिल भारतीय संघ–यह संघ 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 चीफ कमीश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनता था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हों । प्रान्तों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किन्तु देशी रियासतों के लिए यह ऐच्छिक था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना -संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया ।
(ii) प्रान्तीय स्वायत्तता—इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।
(iii) केन्द्र में द्वैध शासन की स्थापना- कुछ संघीय विषयों (सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलो) को गवर्नर-जेनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया। अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गयी, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था ।
(iv) संघीय न्यायालय की व्यवस्था – इसका अधिकार क्षेत्र प्रान्तों तथा रियासतों तक विस्तृत था । इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गयी । न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौंसिल (लंदन) को प्राप्त थीं ।
(v) ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता – इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था। प्रान्तीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिकाइसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे ।
(vi) भारत परिषद् का अन्त – इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् का अन्त कर दिया गया ।
(vii) साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार – संघीय तथा प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों— भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया ।
(viii) इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था ।
(ix) इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया । अदन को इंगलैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया ।
◆ 1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम–ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया । इस अधिनियम में 20 धाराएँ थीं। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं –
(i) दो अधिराज्यों की स्थापना 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएँगे, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपी जाएगी । (ii) भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी । (iii) संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना – जब तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेतीं, तब तक वे विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगी । (iv) भारत – मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएँगे । (v) 1935 ई. के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जबतक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तबतक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा । (vi) देशी सर्वोपरिता का अन्त कर दिया गया। उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने और अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गयी ।
2. भारतीय संविधान सभा
◆  कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान की निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 ई० में किया गया ।
◆ संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गयी थी, जिसमें 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमीश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे ।
◆  मिशन योजना के अनुसार जुलाई, 1946 ई. में संविधान सभा का चुनाव हुआ । कुल 389 सदस्यों में से प्रान्तों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए। इसमें काँग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 स्थान एवं 15 अन्य दलों के तथा स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए ।
◆  9 दिसम्बर, 1946 ई० को संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित कौंसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन में हुई। सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया । मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया और पाकिस्तान के लिए बिल्कुल अलग संविधान सभा की माँग प्रारंभ कर दी ।
◆ हैदराबाद एक ऐसी देशी रियासत थी, जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए थे ।
◆  प्रांतों या देशी रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में प्रतिनिधित्व दिया गया था । साधारणतः 10 लाख की आबादी पर एक स्थान का आबंटन किया गया था ।
◆  प्रांतों का प्रतिनिधित्व मुख्यतः तीन प्रमुख समुदायों की जनसंख्या के आधार पर विभाजित किया गया था, ये समुदाय थे—मुस्लिम, सिक्ख एवं साधारण ।
◆ संविधान सभा में ब्रिटिश प्रान्तों के 296 प्रतिनिधियों का विभाजन साम्प्रदायिक आधार पर किया गया – 213 सामान्य, 79 मुसलमान तथा 4 सिक्ख ।
◆  संविधान सभा के सदस्यों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी ।
◆  संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 12 थी ।
◆  11 दिसम्बर, 1946 ई० को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुए ।
◆  संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसम्बर, 1946 ई० को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारंभ हुई ।
◆  22 जनवरी, 1947 ई० को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियाँ नियुक्त कीं। इनमें प्रमुख थीं— वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति ।
◆  बी० एन० राव द्वारा तैयार किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 ई० को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ० भीमराव अम्बेदकर को चुना गया । प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या सात थी, जो इस प्रकार हैं- 1. डॉ० भीमराव अम्बेदकर (अध्यक्ष) 2. एन० गोपाल स्वामी आयंगर 3. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर 4. कन्हैयालाल मणिकलाल मुन्शी 5. सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला 6. एन० माधव राव (बी० एल० मित्र के स्थान पर) 7. डी० पी० खेतान (1948 ई. में इनकी मृत्यु के बाद टी. टी. कृष्णमाचारी को सदस्य बनाया गया ) । संविधान सभा में अम्बेदकर का निर्वाचन प० बंगाल से हुआ था ।
◆ 3 जून, 1947 ई० की योजना के अनुसार देश का बटवारा हो जाने पर भारतीय  संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 324 नियत की गया, जिसमे 235 स्थान प्रांतों के लिए और 89 स्थान देसाई राज्यों के लिए थे ।
◆  देश-विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 1947 ई. को किया गया और 31 दिसम्बर 1947 ई. को संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 299 थी, जिसमें प्रांतीय सदस्यों की संख्या 229 एवं देशी रियासतों के सदस्यों की संख्या 70 थी ।
◆  प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 ई० को संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट पेश की ।
◆  संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवम्बर से 9नवम्बर, 1948 ई० तक चला । संविधान पर दूसरा वाचन 15 नवम्बर 1948 ई० को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 ई. तक चला । संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवम्बर, 1949 ई० को प्रारंभ हुआ जो 26 नवम्बर, 1949 ई० तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया । इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे ।
◆  संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे । इस कार्य पर लगभग 6.4 करोड़ रुपए खर्च हुए ।
◆  संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस हुई।
◆ संविधान को जब 26 नवम्बर, 194 1949 ई० को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया, तब इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान समय में संविधान में 25 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं।
◆  संविधान के कुल अनुच्छेदों में से 15 अर्थात् 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372,
380, 388, 391, 392 तथा 393 अनुच्छेदों को 26 नवम्बर, 1949 ई० को ही प्रवर्तित कर दिया गया; जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी, 1950 ई० को लागू किया गया ।
◆  संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 ई. को हुई और उसी दिन संविधान सभा के द्वारा डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया ।
◆  कैबिनेट मिशन के सदस्य सर स्टेफोर्ड क्रिप्स, लॉर्ड पेंथिक लारेंस तथा ए० बी० एलेक्जेण्डर थे। नोट: 26 जुलाई, 1947 को गवर्नर जनरल ने पाकिस्तान के लिए पृथक् संविधान सभा की स्थापना की घोषणा की ।
3. भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना
        नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया । संविधान के 42वें संशोधन (1976) द्वारा यथा संशोधित यह उद्देशिका निम्न प्रकार है –
      “हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागरिकों को :
 सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
 विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
 प्रतिष्ठा और अवसर की समता
 प्राप्त करने के लिये तथा उन सब में
 व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
 एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता
 बढ़ाने के लिए
         दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० “मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं । “
प्रस्तावना की मुख्य बातें :
◆ संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी’ कहा जाता है प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केन्द्रबिन्दु अथवा स्रोत ‘भारत के लोग’ ही हैं ।
◆ प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा——“हम भारत के लोग ………… इस संविधान को ” अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं । ” भारतीय लोगों की सर्वोच्च सम्प्रभुता का उद्घोष करते हैं ।
◆  ‘प्रस्तावना’ को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल, 1957 के निर्णय में घोषित किया गया ।
◆ बेरूबाड़ी यूनियन वाद (सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना विधिक निर्वाचन में सहायता करती है ।
◆ बेरूबड़ी बाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं माना । इसलिए विधायिका प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के केशवानन्द भारत बनाम केरल राज्यवाद, 1973 में कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग
है । इसलिए विधायिका (संसद) उसमें संशोधन कर सकती है ।
◆  केशवानन्द भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय में मूल ढांचा का सिद्धान्त (Theory of Basic Structure) दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढांचा माना ।
◆ संसद संविधान की मूल ढांचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है, स्पष्टतः संसद वैसा संशोधन कर सकती है, जिससे मूल ढांचा का विस्तार एवं मजबूतीकरण होता है ।
◆  42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा इसमें ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘राष्ट्र की अखण्डता’ शब्द जोड़े गए ।
4. भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत
◆ भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गयी है—
1. संयुक्त राज्य अमेरिका — मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात ।
2 .  ब्रिटेन–संसदात्मक शासन प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि-निर्माण प्रक्रिया ।
3. आयरलैंड-नीति निर्देशक सिद्धान्त, राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन, आपातकालीन उपबन्ध ।
4. आस्ट्रेलिया – प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान केन्द्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन ।
5. जर्मनी— आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियाँ ।
6. कनाडा–संघात्मक विशेषताएँ अवशिष्ट शक्तियाँ केन्द्र के पास ।
7. दक्षिण अफ्रिका–संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान ।
8. रूस– मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान ।
9. जापान-विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया ।
नोट : भरतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव ‘भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है ।’ भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 के अधिनियम से या तो शब्दश: ले लिए गए हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन किया गया है ।
5. भारतीय संविधान की अनुसूची
◆ प्रथम अनुसूची- इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों ( 28 राज्य) एवं संघ शासित (सात) क्षेत्रों का उल्लेख है ।
नोट : संविधान के 69वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है ।
◆ द्वितीय अनुसूची-इसमें भारतीय राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य सभा के सभापति एवं उपसभापति, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद् के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन आदि का उल्लेख किया गया है
◆ तृतीय अनुसूची– इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ) द्वारा पद ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है ।
◆ चौथी अनुसूची–इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है ।
◆  पाँचवीं अनुसूची–इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है ।
◆ छठी अनुसूची– इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है। ।
◆  सातवीं अनुसूची– इसमें केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बँटवारे के बारे में दिया गया है । इसके अन्तर्गत तीन सूचियाँ हैं— संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची ।
(i) संघ सूची– इस सूची में दिए गए विषय पर केन्द्र सरकार कानून बनाती है । संविधान के लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे; वर्तमान समय में इसमें 98 विषय हैं ।
 (ii)  राज्य सूची– इस सूची में दिए गए विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है । राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केन्द्र सरकार भी कानून बना सकती है संविधान के लागू होने के समय इसके अन्तर्गत 66 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 62 विषय है।
(iii) समवर्ती सूची – इसके अन्तर्गत दिए गए विषय पर केन्द्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं । परन्तु कानून के विषय समान होने पर केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केन्द्र सरकार के कानून बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है । संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में 47 विषय थे – वर्तमान समय में इसमें 52 विषय हैं ।
नोट : समवर्ती सूची का प्रावधान जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में नहीं है ।
◆ आठवीं अनुसूची– इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है । मूल रूप से आठवीं अनुसूची में 14 भाषाएँ थीं, 1967 ई० में सिंधी को और 1992 ई० में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया । 92 वें संशोधन (2003) ई० में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया ।
◆ नौवीं अनुसूची– संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई। इसके अनतर्गत राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है। इस अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है । वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं ।
नोट: अब तक यह मान्यता था कि संविधान की नौंवी अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा  यह स्थापित किया गया है कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है ।
◆  दसवीं अनुसूची—यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है। इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है ।
◆  ग्यारहवीं अनुसूची—यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गयी है। इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं
◆  बारहवीं अनुसूची– यह अनुसूची संविधान में 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गयी है। इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिये 18 विषय प्रदान किए गए हैं ।
6. देशी रियासतों का भारत में विलय
◆  रियासतों को भारत में सम्मिलित करने के लिये सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में रियासती मंत्रालय बनाया गया ।
◆  जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर, हैदराबाद की रियासत को पुलिस कार्रवाई के माध्यम से और जम्मू-कश्मीर रियासत को विलय – पत्र पर हस्ताक्षर के द्वारा भारत में मिलाया गया ।
7. संघ और उसका राज्य क्षेत्र
◆ भारत राज्यों का संघ है, जिसमें सम्प्रति 29 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं ।
◆  अनुच्छेद 1 – (i) भारत अर्थात् इंडिया राज्यों का संघ होगा । (ii) राज्य और उनके राज्य-क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट है । (iii) भारत के राज्यक्षेत्र में अर्जित किए गए अन्य राज्य क्षेत्र समाविष्ट होंगे ।
◆  अनुच्छेद 2 -भारत की संसद को विधि द्वारा ऐसे निर्बन्धों और शर्तों पर जो वह ठीक समझे संघ में नए राज्य का प्रवेश या उनकी स्थापना की शक्ति प्रदान की गयी ।
◆ अनुच्छेद 3-नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन संसद विधि द्वारा कर सकती है ।
8. राज्यों का पुनर्गठन
◆ भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं, इसकी जाँच के लिए संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश एस. के. धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की । इस आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन का विरोध किया और प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया ।
◆  धर आयोग के निर्णयों की परीक्षा करने के लिए काँग्रेस कार्य समिति ने अपने जयपुर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैय्या की एक समिति का गठन किया । इस समिति ने भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग को खारिज कर दिया ।
◆ नेहरू, पटेल एवं सीतारमैय्या (जे. बी. पी. समिति) समिति की रिपोर्ट के बाद मद्रास राज्य के तेलगू भाषियों ने पोटी श्री रामुल्लू के नेतृत्व में आन्दोलन प्रारंभ हुआ ।
◆ 58 दिन के आमरण अनशन के बाद 15 दिसम्बर, 1952 ई० को रामुल्लू की मृत्यु हो गयी ।
◆  रामुल्लू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने तेलगू भाषियों के लिए पृथक् आन्ध्र प्रदेश के गठन की घोषणा कर दी ।
◆  1 अक्टूबर, 1953 ई. को आन्ध्र प्रदेश राज्य का गठन हो गया। यह राज्य स्वतंत्र भारत में भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था ।
◆  राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष फजल अली थे; इसके अन्य सदस्य पं० हृदयनाथ कुंजरू और सरदार के० एम० पणिक्कर थे ।
◆  राज्य पुनर्गठन अधिनियम जुलाई, 1956 ई० में पास किया गया। इसके अनुसार भारत में 14 राज्य एवं 6 केन्द्र शासित प्रदेश स्थापित किए गए ।
◆  नवम्बर, 1954 ई० को फ्रांस की सरकार ने अपनी सभी बस्तियाँ पांडिचेरी, यनाम्, चन्द्रनगर और केरीकल को भारत को सौंप दिया; 28 मई, 1956 ई० को इस संबंध में संधि पर हस्ताक्षर हो गए। इसके बाद इन सभी को मिलाकर ‘पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र’ का गठन किया गया ।
◆  भारत सरकार ने 18 दिसम्बर, 1961 ई० को गोवा, दमण एवं द्वीव की मुक्ति के लिए पुर्तगालियों के विरुद्ध कार्रवाई की और उन पर पूर्ण अधिकार कर लिया। बारहवें संविधान संशोधन द्वारा गोवा, दमण एवं दीव को प्रथम परिशिष्ट में शामिल करके भारत का अभिन्न अंग बना दिया गया ।
◆  1 मई, 1960 ई० को मराठी एवं गुजराती भाषियों के बीच संघर्ष के कारण बम्बई राज्य का बँटवारा करके महाराष्ट्र एवं गुजरात नामक दो राज्यों की स्थापना की गयी ।
◆  नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके 1 दिसम्बर 1963 ई० में नगालैंड ” को अलग राज्य बनाया गया ।
◆  1 नवम्बर, 1966 ई० में पंजाब को विभाजित करके पंजाब (पंजाबी भाषी) एवं हरियाणा (हिन्दी भाषी) दो राज्य बना दिए गए ।
◆  25 जनवरी, 1971 ई० को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया ।
◆  21 जनवरी, 1972 ई० को मणिपुर, त्रिपुरा एवं मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया ।
◆  26 अप्रैल, 1975 ई० को सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना ।
◆  20 फरवरी, 1987 ई० में मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया ।
◆  30 मई, 1987 ई० में गोवा को 25वाँ राज्य का दर्जा दिया गया ।
◆  1 नवम्बर, 2000 ई० को छत्तीसगढ़, 26वां राज्य, 9 नवम्बर, 2000 ई० उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) 27वां राज्य एवं 15 नवम्बर, 2000 को झारखंड 28वां राज्य बनाया गया।
◆ वर्तमान समय में भारत में 28 राज्य एवं 7 संघ राज्य क्षेत्र हैं। इन्हें ही संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया है ।
◆  क्षेत्रीय परिषद्-भारत में पाँच क्षेत्रीय परिषद् हैं। इनका गठन राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है और केन्द्रीय गृहमंत्री या राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत केन्द्रीय मंत्री क्षेत्रीय परिषद् का अध्यक्ष होता है। संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री उपाध्यक्ष होते हैं, जो प्रतिवर्ष बदलते रहते हैं.
◆  भारत में गठित कुल 5 क्षेत्रीय परिषदों पर सम्मिलित राज्यों के नाम इस प्रकार है
1. उत्तरी क्षेत्रीय परिषद्-पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश राज्य तथा चण्डीगढ़ एवं दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र ।
2. मध्य क्षेत्रीय परिषद् – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड एवं छत्तीसगढ़ ।
3. पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् – बिहार, प० बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, असम, सिक्किम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय नगालैंड, • अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम ।
4. पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद्-गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा राज्य, दमण-दीव एवं दादर तथा नागर हवेली संघ राज्य क्षेत्र ।
5. दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद्-आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्य एवं पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्र |
10. भारतीय नागरिकता (भाग – 2, अनुच्छेद 5 से 11)
◆ भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान  है ।
◆  भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 ई० के अनुसार निम्न में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है–
1. जन्म से प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म संविधान लागू होने अर्थात् 26 जनवरी, 1950 ई० को या उसके पश्चात् भारत में हुआ हो, वह जन्म से भारत का नागरिक होगा। अपवादराजनयिकों के बच्चे, विदेशियों के बच्चे ।
2. वंश – परम्परा द्वारा नागरिकता – भारत के बाहर अन्य देश में 26 जनवरी, 1950 ई० के पश्चात् जन्म लेनेवाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जायेगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक हो ।
नोट : माता की नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम 1992 ई० द्वारा किया गया है ।
3. देशीयकरण द्वारा नागरिकता – भारत सरकार से देयकरण का प्रमाण पत्र प्राप्त कर भारत की नागरिकता प्राप्त की जा सकती है ।
4. पंजीकरण द्वारा नागरिकता – निम्नलिखित वर्गों में आने वाले लोग पंजीकरण के द्वारा. भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं
(i) वे व्यक्ति, जो पंजीकरण प्रार्थना पत्र देने की तिथि से छह माह पूर्व से भारत में रह रहे हों ।
(ii) वे भारतीय, जो अविभाज्य भारत से बाहर किसी देश में निवास कर रहे हों ।
(iii) वे स्त्रियाँ, जो भारतीयों से विवाह कर चुकी हैं या भविष्य में विवाह करेंगी ।
(iv) भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे
(v) राष्ट्रमंडलीय देशों के नागरिक, जो भारत में रहते हों या भारत सरकार की नौकरी कर रहे हों । आवेदन पत्र देकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं ।
5. भूमि – विस्तार द्वारा — यदि किसी नए भू-भाग को भारत में शामिल किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को स्वतः भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
◆  भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986-इस अधिनियम के आधार पर भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1955 में निम्न संशोधन किए गए हैं –
(i) अब भारत में जन्में केवल उस व्यक्ति को ही नागरिकता प्रदान की जाएगी, जिसके माता-पिता में से एक भारत का नागरिक हो ।
(ii) जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अब भारत में कम से कम पाँच वर्षों तक निवास करना होगा। पहले यह अवधि छह माह थी ।
(iii) देशीयकरण द्वारा नागरिकता तभी प्रदान की जाएगी, जबकि संबंधित व्यक्ति कम से कम 10 वर्षों तक भारत में रह चुका हो । पहले यह अवधि 5 वर्ष थी । नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 जम्मू-कश्मीर एवं असम सहित भारत के सभी राज्यों पर लागू होगा।
◆ भारतीय नागरिकता का अन्त भारतीय नागरिकता का अन्त निम्न प्रकार से हो सकता है —
(i) नागरिकता का परित्याग करने से ।
(ii) किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार कर लेने पर ।
(iii) सरकार द्वारा नागरिकता छीनने पर ।
नोट: जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल को निम्न विषयों के संबंध में राज्य में स्थायी रूप से निवास करने वाले व्यक्तियों को अधिकार तथा विशेषाधिकार प्रदान करने की शक्ति प्रदान की गयी हैं –
(i) राज्य के अधीन नियोजन के संबंध में ।
 (ii) राज्य में अचल सम्पत्ति के अर्जन के संबंध में ।
 (iii) राज्य में स्थायी रूप से बस जाने के संबंध में ।
 (iv) छात्रवृत्तियाँ अथवा इसी प्रकार की सहायता, जो राज्य सरकार प्रदान करे ।
11. मौलिक अधिकार
◆  इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है ।
◆  इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 ) है ।
◆  इसमें संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352) जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है ।
◆  मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) के द्वारा सम्पत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31 एवं 19क) को गौलिक अधिकार की सुगी से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अन्तर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है ।
◆  अब भारतीय नागरिकों को निम्नः 6 मूल अधिकार प्राप्त हैं.
1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 )
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 )
3.  शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनु० 23 से 24 )
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
5.  संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
6.  संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32 )
1. समता या समानता का अधिकार-
◆  अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समता इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एकसमान कानून बनाएगा तथा उन पर एकसमान लागू करेगा ।
◆  अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध– राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा ।
◆ अनुच्छेद 16–लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता-राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी । अपवाद- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग ।
◆ अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का अन्त – अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है ।
◆ अनुच्छेद 18–उपाधियों का अन्त–सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है ।
2. स्वतंत्रता का अधिकार-
◆ अनुच्छेद 19–मूल संविधान में सात तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था, अब सिर्फ छः हैं
19 (a ) – बोलने की स्वतंत्रता ।
19 (b) – शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता ।
19 (c) – संघ बनाने की स्वतंत्रता ।
 19 (d) – देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता ।
19 (e) – देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता ।
19 (f ) – सम्पत्ति का अधिकार (44वां संविधान संशोधन 1978 के द्वारा हटा दिया गया)
19 (g) – कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता ।
नोट : प्रेस की स्वतंत्रता का वर्णन अनुच्छेद-19 (a) में ही है ।
◆ अनुच्छेद 20-अपराधों के लिए दोष-सिद्धि के संबंध में संरक्षण- इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है— (i) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी । (ii) अपराध करने के समय जो कानून हैं उसी के तहत सजा मिलेगी न कि पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत । (iii) किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
◆  अनुच्छेद 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण – किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है ।
◆  अनुच्छेद 21 (क)– राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य, विधि द्वारा अवधारित करें, निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करेगा । ( 86 वां संशोधन 2002 के द्वारा ) ।
◆  अनुच्छेद 22– कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण- अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है – (i) हिरासत में लेने के कारण बताना होगा, (ii) 24 घंटे के अन्दर ( आने-जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा, (iii) उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा । –
◆  निवारक निरोध –भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 3, 4, 5 तथा 6 में तत्संबंधी प्रावधानों का उल्लेख है। निवारक निरोध कानून के अन्तर्गत किसी व्यक्ति को अपराध करने के पूर्व ही गिरफ्तार किया जाता है। निवारक निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दण्ड देना नहीं, वरन उसे अपराध करने से रोकना है। वस्तुतः यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था बनाए रखने या भारत की सुरक्षा संबंधी कारणों से हो सकता है। जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध की किसी विधि के अधीन गिरफ्तार किया जाता है,
 (i) 1 सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकती है यदि गिरफ्तार व्यक्ति को तीन माह से अधिक समय के लिए निरुद्ध करना होता है, तो इसके लिए सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है ।
(ii) इस प्रकार निरुद्ध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किए जाएँगे, किन्तु जिन तथ्यों को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नहीं है ।
(iii) निरुद्ध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरूद्ध अभ्यावेदन करने के लिए शीघ्रातिशीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए ।
 निवारक निरोध से संबंधित अब तक बनायी गयी विधियाँ
1. निवारक निरोध अधिनियम, 1950–भारत की संसद ने 26 फरवरी, 1950 को पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था। इसका उद्देश्य राष्ट्र विरोधी तत्त्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य से रोकना था । इसे 1 अप्रैल, 1951 को समाप्त हो जाना था, किन्तु समय-समय पर इसका जीवनकाल बढ़ाया जाता रहा । अंततः यह 31 दिसम्बर, 1971 को समाप्त हुआ ।
2. आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम, 1971- (MISA) –44वें संवैधानिक संशोधन (1979) इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल, 1979 ई० में यह समाप्त हो गया ।
3.  विदेशी मुद्रा संरक्षण व तस्करी निरोध अधिनियम, 1974- पहले इसमें तस्करों के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी, जिसे 13 जुलाई, 1984 ई. को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष कर दिया गया है ।
4. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, 1980 – जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों में लागू किया गया ।
5. आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियाँ निरोधक कानून (टाडा) –निवारक निरोध व्यवस्था के अन्तर्गत अबतक जो कानून बने उनमें यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था । 23 मई, 1995 ई. को इसे समाप्त कर दिया गया ।
6.  पोटा (Prevention of Terrorism Ordinance, 2001) इसे 25 अक्टूबर, 2001 ई० को लागू किया गया । ‘पोटा’ टाडा का ही एक रूप है । इसके अन्तर्गत कुल 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबन्धित किया गया है । आतंकवादी और आतंकवादियों से संबंधित ना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया है। पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, किन्तु बिना आरोप-पत्र के तीन गाळ से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती। पोटा के अन्तर्गत गिरफ्तार व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट में अपील कर सकता है, लेकिन यह अपील भी गिरफ्तारी के तीन माह बाद ही ‘. हो सकती है । 21 सितम्बर, 2004 को इसको अध्यादेश के द्वारा समाप्त कर दिया गया ।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार-
◆ अनुच्छेद 23- मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध–इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषिद्ध ठहराया गया है, जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है
नोट : जरूरत पड़ने पर राष्ट्री सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
◆ अनुच्छेद 24– बालकों के नियोजन का प्रतिषेध–14 वर्ष से कम आयु वाले किसी है 1 बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकत
 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार-
◆ अनुच्छेद 25 अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता- कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है ।
◆ अनुच्छेद 26–धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता — व्यक्ति को अपने धर्म के लिए. संस्थाओं की स्थापना एवं पोषण करने, विधि-सम्मत सम्पत्ति के अर्जन, स्वामित्व एवं प्रशासन का अधिकार है ।
◆ अनुच्छेद 27 – राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक सम्प्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है ।
◆ अनुच्छेद 28- राज्य विधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी । ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात् सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते ।
5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार-
◆ अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण – कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा ।
◆ अनुच्छेद 30- शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार – कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी ।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार –
◆ ‘संवैधानिक उपचारों के अधिकार’ को डॉ० भीमराव अम्बेदकर ने संविधान की आत्मा कहा है ।
◆ अनुच्छेद 32 – इसके अन्तर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्रवाइयों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है । इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पाँच तरह के रिट (writ) निकालने की शक्ति प्रदान की गयी है, जो निम्न हैं – (i) बन्दी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus), (ii) परमादेश (mandamus), (iii) प्रतिषेध-लेख (prohibition), (iv) उत्प्रेषण (certiorari), (v) अधिकार पृच्छा-लेख (warranto)
(i) बन्दी प्रत्यक्षीकरण—यह उस व्यक्ति की है, जो गह -समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करनेवाले अधिकारी को आदेश देता है, कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अन्दर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके ।
(ii) परमादेश — परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। इस प्रकार के आज्ञापत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्त्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है। ।
 (iii)  प्रतिषेध-लेख – यह आज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों तथा अर्द्ध न्यायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामलें में अपने यहाँ कार्रवाही न करें, क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है ।
(iv) उत्प्रेषण – इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लम्बित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजे ।
 (v) अधिकार पृच्छा – लेख – जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है, जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं हैं, तो न्यायालय अधिकार पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस है अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता है ।
मौलिक अधिकार में संशोधन
1. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967 ई०) के निर्णय से पूर्व दिए गए निर्णयों में यह निर्धारित किया गया था कि संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है, जिसमें अनुच्छेद 368 एवं मूल अधिकार को शामिल किया गया था ।
2. सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्यवाद (1967 ई०) के निर्णय में अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी । अर्थात् संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है ।
3. 24वें संविधान संशोधन (1971 ई०) द्वारा अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन किया गया तथा यह निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद 368 में दी गयी प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है ।
4. केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्यवाद के निर्णय में इस प्रकार के संशोधन को विधि मान्यता प्रदान की गयी अर्थात् गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को निरस्त कर दिया गया ।
5. 42वें संविधान संशोधन (1976 ई०) द्वारा अनुच्छेद 368 में खंड 4 और 5 जोड़े गए तथा यह व्यवस्था की गयी कि इस प्रकार किए गए संशोधन को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है ।
6. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980 ई०) के निर्णय के द्वारा यह निर्धारित किया गया कि संविधान के आधारभूत लक्षणों की रक्षा करने का अधिकार न्यायालय को है और न्यायालय इस आधार पर किसी भी संशोधन का पुनरावलोकन कर सकता है । इसके द्वारा 42वें संविधान संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया ।
12. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
◆  राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत का वर्णन संविधान के भाग-4 में [अनुच्छेद 36 से 51 तक ] किया गया है । इसकी प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से मिली है।
◆ इसे न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता यानी इसे वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं है। राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्त निम्न हैं :
◆  अनुच्छेद 38- राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा, जिससे नागरिक को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा ।
◆  अनुच्छेद 39 (क)–समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था इसी में है ।
◆ अनुच्छेद 39 (ख) – सार्वजनिक धन का स्वामित्व तथा नियंत्रण इस प्रकार करना ताकि सार्वजनिक हित का सर्वोतम साधन हो सके ।
◆  अनुच्छेद 39 (ग)– धन का समान वितरण ।
◆ अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का संगठन ।
◆  अनुच्छेद 41 – कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार ।
◆  अनुच्छेद 42– काम की न्याय – संगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबन्ध। ।
◆  अनुच्छेद 43– कर्मकारों के लिए निर्वाचन मजदूरी एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन :
◆  अनुच्छेद 44– नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता ।
◆  अनुच्छेद 46–अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा अर्थसंबंधी हितों की अभिवृद्धि |
◆  अनुच्छेद 47 – पोषाहार स्तर, जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्त्तव्य ।
◆  अनुच्छेद 48 – कृषि एवं पशुपालन का संगठन |
◆  अनुच्छेद 48 (क) – पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन एवं वन्य जीवों की
◆  अनुच्छेद 49 – राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण |
◆  अनुच्छेद 50 – कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का पृथक्करण ।
◆  अनुच्छेद 51 – अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि । – उपर्युक्त अनुच्छेद के अतिरिक्त कुछ ऐसे अनुच्छेद भी हैं, जो राज्य के लिए निदेशक सिद्धान्त के रूप में कार्य करते हैं; जैसे
◆  अनुच्छेद 350 (क)– प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देना ।
◆  अनुच्छेद 351 – हिन्दी को प्रोत्साहन देना ।
13. मौलिक कर्त्तव्य
◆ सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई०) के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया । इसे रूस के संविधान से लिया गया ।
◆  इसे भाग 4 (क) में अनुच्छेद 51 (क) के तहत रखा गया । मौलिक कर्त्तव्य की संख्या 11 है, जो इस प्रकार हैं-
1.  प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों,
संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे ।
2.  स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे ।
3.भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे ।
4. देश की रक्षा करे ।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें ।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझे और उसका परीक्षण करे ।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे ।
 8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे ।
9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे ।
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करे ।
11. माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना ( 86 वां संशोधन) ।
14. संघीय कार्यपालिका
◆  भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
◆  भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है। अतः राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है । राष्ट्रपति
◆  राष्ट्रपति भारत का संवैधानिक प्रधान होता है ।
◆  भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है । –
◆  राष्ट्रपति पद की योग्यता- संविधान के कोई व्यक्ति राष्ट्रपति होने योग्य तब होगा, जब वह —
(i) भारत का नागरिक हो ।
(ii) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो ।
(iii) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित किए जाने योग्य हो ।
(iv) चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो ।
नोट: यदि व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर हो या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रिपरिषद् का सदस्य हो, तो वह लाभ का पद नहीं माना जाएगा ।
◆  राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल — इसमें राज्य सभा, लोक सभा और राज्यों का विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते हैं। नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पांडिचेरी विधान सभा तथा दिल्ली की विधान सभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है ।
◆  राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए निर्वाचक मंडल के 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होते हैं ।
◆  एक ही व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है ।
◆ राष्ट्रपति का निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है ।
◆  राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है । निर्वाचन अवैध घोषित होने पर उसके द्वारा किए गए कार्य अवैध नहीं होते हैं ।
◆ राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा । अपने पद की समाप्ति के बाद भी वह पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है ।
◆ पद- धारण करने से पूर्व राष्ट्रपति को एक निर्धारित प्रपत्र पर भारत के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख शपथ लेनी पड़ती है ।
◆  राष्ट्रपति निम्न दशाओं में पाँच वर्ष से पहले भी पद त्याग सकता है—
(i) उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा ।
(ii) महाभियोग द्वारा हटाए जाने पर (अनुच्छेद 56 एवं 61 ) । महाभियोग के लिए केवल एक ही आधार है, जो अनुच्छेद 61 (1) में उल्लेखित है, वह है संविधान का अतिक्रमण ।
◆  राष्ट्रपति पर महाभियोग – राष्ट्रपति द्वारा संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन पर संसद के किसी सदन द्वारा उस पर महाभियोग लगाया जा सकता है, परन्तु इसके लिए आवश्यक है, कि राष्ट्रपति को 14 दिन पहले लिखित सूचना दी जाए, जिस पर उस सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हों । संसद के उस सदन, जिसमें महाभियोग का प्रस्ताव पेश है, के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित कर देने पर प्रस्ताव दूसरे सदन में जाएगा, तब टूारा सदन राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोपों की जाँच करेगा या कराएगा और ऐसी जाँच में रष्टपति के ऊपर लगाए गए आरोको द्धि करने वाला प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से है, तब राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया पूरी समझी जाएगी और उसी तिथि से राष्ट्रपति को पदत्याग करना होगा ।
◆  राष्ट्रपति की रिक्ति को छह महीने के अन्दर भरना होता है ।
◆  जब राष्ट्रपति पद की रिक्ति पदावधि ( पाँच वर्ष) की समाप्त से हुई है, तो निर्वाचन पदावधि- की समाप्ति के पहले ही कर लिया जाएगा । [अनुच्छेद 62 (1)] किन्तु यदि उसे पूरा करने में कोई विलंब हो जाता है, तो “राज अंतराल ” न होने पाए इसीलिए यह उपबंध है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद धारण नहीं कर लेता है | अनुच्छेद 56 ( 1 ) ग] ( ऐसी दशा में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा ।
◆  राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्ते – राष्ट्रपति का मासिक वेतन डेढ़ लाख रुपया है ।
◆  राष्ट्रपति का वेतन आयकर से मुक्त होता है ।
◆  राष्ट्रपति को निःशुल्क निवासस्थान एवं संसद द्वारा स्वीकृत अन्य भत्ते प्राप्त होते हैं ।
◆  राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उनके वेतन तथा भत्ते में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है ।
◆  राष्ट्रपति के लिए 9 लाख रुपये वार्षिक पेंशन निर्धारित किया गया है ।
◆ राष्ट्रपति के अधिकार एवं कर्त्तव्य
1. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार- राष्ट्रपति निम्न की नियुक्ति करता है –
(1) भारत का प्रधानमंत्री, (2) प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों, (3) सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों, (4) भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, (5) राज्यों के राज्यपाल, (6) मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त, (7) भारत के महान्यायवादी, (8) राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद् के सदस्य, (9) संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों, (10) संघीय क्षेत्रों के मुख्य आयुक्तों, (11) वित्त आयोग के सदस्यों, ( 12 ) भाषा आयोग के सदस्यों, (13) पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों, (14) अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों, (15) भारत के राजदूतों तथा अन्य राजनयिकों, (16) अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में रिपोर्ट देने वाले आर्याग के सदस्यों आदि ।
2. विधायी शक्तियाँ राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है । इसे निम्न विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं-
(i) संसद के सत्र को आहूत करने, सत्रावसान करने तथा लोक सभा भंग करने संबंधी अधिकार ।
(ii) संसद के एक सदन में या एक साथ सम्मिलित रूप से दोनों सदनों में अभिभाषण करने की शक्ति ।
(iii) लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में सम्मिलित रूप से संसद में अभिभाषण करने की शक्ति ।
(iv) संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही कानून बनता है ।
(v) संसद में निम्न विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति आवश्यक है
(a) नये राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन संबंधी विधेयक
(b) धन विधेयक [अनुच्छेद 117 (1)]
(c) संचित निधि में व्यय करने वाले विधेयक [अनुच्छेद 117 (3) ]
(d) ऐसे कराधान पर, जिसमें राज्य हित जुड़े हैं, प्रभाव डालने वाले विधेयक
(e) राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बन्धन लगाने वाले विधेयक ।
3. संसद सदस्यों के मनोनयन का अधिकार– जब राष्ट्रपति को यह लगे कि लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है, तब वह उस समुदाय के दो व्यक्तियों को लोक सभा के सदस्य के रूप में नामांकित कर सकता है । इसी प्रकार वह कला, साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान तथा सामाजिक कार्यों में पर्याप्त अनुभव एवं दक्षता रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा में नामजद कर सकता है ।
4. अध्यादेश जारी करने की शक्ति – संसद के स्थगन के समय अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव संसद के अधिनियम के समान होता है । इसका प्रभाव संसद सत्र के शुरू होने के छह सप्ताह तक रहता है। परन्तु, राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश नहीं जारी कर सकता, जब दोनों सदन सत्र में होते हैं, तब राष्ट्रपति को यह शक्ति नहीं होती है ।
5. सैनिक शक्ति- सैन्य बलों की सर्वोच्च शक्ति विधि द्वारा नियमित होता है । राष्ट्रपति में सन्निहित है, किन्तु इसका प्रयोग
6. राजनैतिक शक्ति – दूसरे देशों के साथ कोई भी समझौता या संधि राष्ट्रपति के नाम से की जाती है। राष्ट्रपति विदेशों के लिए भारतीय राजदूतों की नियुक्ति करता है एवं भारत में विदेशों के राजदूतों की नियुक्ति का अनुमोदन करता है ।
7. क्षमादान की शक्ति — संविधान के अनुच्छेद 72 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा करने, उसका प्रविलम्बन, परिहार और लघुकरण की शक्ति प्राप्त है ।
8. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ- आपातकाल से संबंधित उपबन्ध भारतीय संविधान के भाग-18 के अनुच्छेद 352 से 360 के अन्तर्गत मिलता है। मंत्रिपरिषद् के परामर्श से राष्ट्रपति तीन प्रकार के आपात लागू कर सकता है—(a) युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण लगाया गया आपात (अनुच्छेद 352), (b) राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात (अनुच्छेद 356) (अर्थात् राष्ट्रपति शासन), (c) वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360) (न्यूनतम अवधि – दो माह ) ।
9. राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है, लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है ।
10. राष्ट्रपति की किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है, क्योंकि अनुच्छेद 111 केवल यह कहता है कि यदि राष्ट्रपति विधेयक लौटाना चाहता है, तो विधेयक को उसे प्रस्तुत किए जाने के बाद यथाशीघ्र लौटा देगा। जेबी वीटो शक्ति का प्रयोग का उदाहरण है, 1986 ई० में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक, जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कोई निर्णय नहीं लिया ।
◆  डा० राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे । वे लगातार दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
◆  डॉ० एस० राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति रहे ।
◆  केवल वी० वी० गिरि के निर्वाचन के समय दूसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी ।
◆  केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव में हार गए, फिर बाद में निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए ।
◆  भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल हैं ।
उपराष्ट्रपति
◆ संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा । (कार्यकाल 5 वर्ष )
◆  संविधान ने उपराष्ट्रपति से संबंधित प्रावधान अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया ।
◆  भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है ।
◆  उपराष्ट्रपति राज्य सभा का सदस्य नहीं होता है, अतः इसे मतदान का अधिकार नहीं है. किन्तु सभापति के रूप में निर्णायक मत देने का अधिकार उसे प्राप्त है ।
◆ योग्यता – कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के योग्य तभी होगा, जब वह –
(i) भारत का नागरिक हो ।
(ii) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो ।
(iii) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो
(iv) निर्वाचन के समय किसी प्रकार के लाभ के पद पर नहीं हो ।
(v) वह संसद के किसी सदन या राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं हो सकता है और यदि ऐसा व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन का अपना स्थान अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है ।
◆  उपराष्ट्रपति को अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी पड़ती है ।
◆  राष्ट्रपति के पद खाली रहने पर उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की हैसियत से कार्य करता है । उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने की अधिकतम अवधि छह महीने होती है । इस दौरान राष्ट्रपति का चुनाव करा लेना अनिवार्य होता है। राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते समय उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को मिलने वाली वेतन तथा सभी सुविधाओं का उपभोग करता है।
प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद्
◆ संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन एवं सलाह देने हेतु एक मंत्रिपरिषद् होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है ।
◆  संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा ।
◆  मंत्रिपरिषद् का सदस्य बनने के लिए वैधानिक दृष्टि से यह आवश्यक है कि व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य हो, यदि व्यक्ति मंत्री बनते समय संसद सदस्य नहीं हो, तो उसे छह महीने के अन्दर संसद-सदस्य बनना अनिवार्य है, नहीं तो उसे अपना पद छोड़ना होगा।
◆  पद ग्रहण से पूर्व प्रधानमंत्री सहित प्रत्येक मंत्री को राष्ट्रपति के सामने पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है ।
◆  सभी मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को निःशुल्क निवास स्थान तथा अन्य सुविधाएँ प्राप्त होती हैं ।
◆  मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है ।
◆  यदि लोक सभा किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करे अथवा उस विभाग से संबंधित विधेयक को रद्द कर दे, तो समस्त मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना होता है
◆  मंत्री तीन प्रकार के होते हैं—कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री एवं उपमंत्री । कैबिनेट मंत्री विभाग के अध्यक्ष होते हैं । प्रधानमंत्री एवं कैबिनेट मंत्री को मिलाकर मंत्रिमंडल का निर्माण होता है।
◆  प्रधानमंत्री की सलाह पर ही राष्ट्रपति लोक सभा भंग करता है ।
◆ प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है ।
◆  प्रधानमंत्रियों में सबसे बड़ा कार्यकाल प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का रहा। वे कुल 16 साल 9 महीने और 13 दिन तक अपने पद पर रहे ।
◆  देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी बनीं । वे ऐसी पहली व्यक्ति रहीं जो दो अलग-अलग अवधियों में प्रधानमंत्री रहीं ।
◆  पहली बार जब इन्दिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनीं तो वह राज्य सभा की सदस्य थीं ।
◆  चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो कभी लोक सभा में उपस्थित नहीं हुए ।
◆  विश्वास मत प्राप्त करने में असफल होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह हुए ।
◆  सबसे कम समय तक एक कार्यकाल में प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हुए (मात्र 13 दिन) ।
◆  कैबिनेट मंत्रियों में सबसे बड़ा कार्यकाल जगजीवन राम का रहा, जो लगभग 32 वर्ष केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहे ।
15. संघीय संसद 
◆  भारत की संसद राष्ट्रपति, राज्य सभा तथा लोक सभा से मिलकर बनती है ।
◆  संसद के निम्न सदन को लोक सभा एवं उच्च सदन को राज्य सभा कहते हैं ।
◆  राज्य सभा के सदस्यों की अधिक से अधिक संख्या 250 हो सकती है ।
◆  वर्तमान समय में यह संख्या 245 है । इनमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं । ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान, समाजसेवी या सहकारिता के क्षेत्र में विशेष ज्ञानी या अनुभवी है । शेष 233 सदस्य संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
◆  राज्य सभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 30 वर्ष है ।
◆  राज्य सभा के सदस्य के लिए जरूरी है कि उसका नाम उस राज्य के किसी निर्वाचन क्षेत्र की सूची में हो, जिस राज्य से वह राज्य सभा का चुनाव लड़ना चाहता है ।
◆  राज्य सभा एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होती । इसके सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष का होता है । इसके एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवा निवृत्त हो जाते हैं।
◆  भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है । ।
◆  राज्य सभा अपने सदस्यों में से किसी एक को 6 वर्ष के लिए उपसभापति निर्वाचित करती है ।
◆ मंत्रिपरिषद् राज्य सभा के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है ।
◆  केवल राज्य सभा को राज्य-सूची के किसी विषय को राज्य सभा में उपस्थित तथा मतदान देनेवाले सदस्यों के कम-से-कम दो तिहाई सदस्यों द्वारा समर्पित संकल्प द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करने का अधिकार है । (अनुच्छेद 249)
◆ केवल राज्य सभा को राज्य में उपस्थित तथा मतदान देने वाले सदस्यों के .तो तिहाई सदस्यों के बहुमत से अखिल भारतीय सेवाओं का सृजन का (अनुच्छेद 312) कम से कम अधिकार है
◆ धन विधेयक के संबंध में राज्य सभा को केवल सिफारिशें करने का अधिकार है, जिसे मानने के लिए लोक सभा बाध्य नहीं है। इसके लिए राज्य सभा को 14 दिन तक समय मिलता है। यदि इस समय में विधेयक वापस नहीं होता तो पारित समझा जाता सभा धन विधेयक को न अस्वीकार कर सकती है और न ही उसमें कोई संशोधन कर सकती है ।
◆  राष्ट्रपति वर्ष में कम-से-कम दो बार राज्य सभा का अधिवेशन आहूत करता है। राज्य सभा के एक सत्र की अन्तिम बैठक तथा अगले सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तिथि के बीच 6 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए ।
◆  राज्य सभा का पहली बार गठन 3 अगस्त, 1952 ई० को किया गया था । राज्य सभा में प्रतिनिधित्व नहीं है— अंडमान-निकोबार, चण्डीगढ़, दादर एवं नागर हवेली, दमन व दीव और लक्षद्वीप का ।
लोक सभा
◆  लोकसभा संसद का प्रथम या निम्न सदन है, जिसका सभापतित्व करने के लिए एक अध्यक्ष होता है। लोक सभा अपनी पहली बैठक के पश्चात् यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनती है । (अनुच्छेद 93)
◆  मूल संविधान में लोक सभा की सदस्य संख्या 500 निश्चित की गयी है । अभी इसके सदस्यों की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है । इनमें से अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से व अधिकतम 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किए जा सकते हैं एवं राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय वर्ग के अधिकतम दो सदस्यों का मनोनयन कर सकते हैं । वर्तमान में लोक सभा की सदस्य संख्या 545 है । इन सदस्यों में 530 सदस्य 28 राज्यों से 13 सदस्य 7 केन्द्र शासित प्रदेशों से निर्वाचित होते हैं तथा दो सदस्य आंग्ल भारतीय वर्ग के प्रतिनिधित्व के रूप में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
◆  अगस्त 2001 ई० में संसद द्वारा पारित 91वें संविधान संशोधन विधेयक के सभा एवं विधान सभाओं की सीटों की संख्या 2026 ई० तक यथावत रखने का प्रावधान किया गया है ।
◆  लोक सभा के सदस्यों का चुनाव गुप्त मतदान के द्वारा वयस्क मताधिकार (18 वर्ष) के आधार पर होता है ।
◆  61वें संवैधानिक संशोधन (1989 ई०) के अनुसार भारत में अब 18 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति को वयस्क माना गया है ।
◆ अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों हेतु लोक सभा में 2010 ई० तक स्थानों को सुरक्षित कर दिया गया है । [79वें संवैधानिक संशोधन (1999 ई०) के द्वारा ] जिसे अब 2020 ई० तक बढ़ा दिया गया है।
लोक सभा की सदस्यता के लिए अनिवार्य योग्यताएँ निम्न हैं
(i) वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो ।
(ii) उसकी आयु 25 वर्ष या इससे अधिक हो ।
(iii) भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अन्तर्गत वह कोई लाभ के पद पर नहीं हो ।
(iv) वह पागल तथा दिवालिया न हो ।
◆  लोक सभा का अधिकतम कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्ष का होता है । मंत्रिपरिषद् लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है । [अनुच्छेद 75 (3)]
◆  प्रधानमंत्री  के परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा लोक सभा को समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है, ऐसा अब तक 8 बार (1970 ई०, 1977 ई०, 1979 ई०, 1984 ई०, नवo 1989 ई०, मार्च 1991 ई०, दिस० 1997 ई० तथा अप्रैल 1999 ई०) किया गया है ।
◆  आपातकाल की घोषणा लागू होने पर विधि द्वारा संसद लोक सभा के कार्यकाल में वृद्धि कर सकती है, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी । 1976 ई० में लोक सभा का कार्यकाल दो बार एक- एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया था ।
◆  लोक सभा एवं राज्य सभा के अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा ही बुलाए और स्थगित किए जाते हैं । लोक सभा की दो बैठकों में 6 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए ।
◆  लोक सभा की गणपूर्ति या कोरम कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग (55 सदस्य) होता है ।
◆  संविधान के अनुच्छेद 108 में संसद के संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था है । संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा निम्न तीन स्थितियों में बुलाया जा सकता है । विधेयक एक सदन से पारित होने के बाद जब दूसरे सदन में जाए; तब यदि (i) दूसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया गया हो, (ii) विधेयक पर किए जानेवाले संशोधनों के बारे में दोनों अधिवेशन की व्यवस्था नहीं है ।सदन अन्तिम रूप से असहमत हो गए हैं, (iii) दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख़ से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना 6 मास से अधिक बीत गए हों ।
◆  संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोक सभा के अध्यक्ष के द्वारा की जाती है। संयुक्त बैठ से अध्यक्ष की अनुपस्थिति के दौरान सदन का उपाध्यक्ष या यदि वह भी अनुपस्थित है, तो राज्य सभा का उपसभापति या यदि, वह भी अनुपस्थित है, तो ऐसा अन्य व्यक्ति पीठासीन होगा, जो उस बैठक में उपस्थित सदस्यों द्वारा अवधारित किया जाए ।
◆  धन विधेयक के संबंध में लोक सभा का निर्णय अन्तिम होता है। इस संबंध में संयुक्त
◆  संविधान संशोधन विधेयक पर भी संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था नहीं है; संविधान संशोधन विधेयक दोनों सदनों में अलग-अलग पारित होना चाहिए ।
लोक सभा के पदाधिकारी : अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष
◆  संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोक सभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करेगी ।
◆  अध्यक्ष उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अध्यक्ष को त्याग-पत्र देता है ।
◆  लोक सभा के अध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेता, बल्कि सामान्य सदस्य के रूप में शपथ लेता है ।
◆  चौदह दिन के पूर्व सूचना देकर लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को पद से हटाया जा सकता है ।
◆  लोक सभा के भंग होने की स्थिति में अध्यक्ष अपना पद अगली लोक सभा की पहली बैठक होने पर रिक्त नहीं करता है ।
◆  लोक सभा में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए वरिष्ठ सदस्यों के पैनल में से कोई व्यक्ति, पीठासीन होता है । इस पैनल में आमतौर पर 6 सदस्य होते हैं ।
लोक सभा अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार 
(i) सदन के सदस्यों के प्रश्नों को स्वीकार करना, उन्हें नियमित करना एवं नियम के विरुद्ध घोषित करना ।
(ii) किसी विषय को लेकर प्रस्तुत किया जाने वाला ‘कार्य स्थगन प्रस्तावं’ अध्यक्ष की अनुमति से पेश किया जा सकता है ।
(iii) वह विचाराधीन विधेयक पर बहस रुकवा सकता है ।
(iv)  संसद सदस्यों को भाषण देने की अनुमति देना और भाषणों का क्रम एवं समय निर्धारित करना ।
 (v) विभिन्न विधेयक एवं प्रस्तावों पर मतदान करवाना एवं परिणाम घोषित करना तथा मतों की समानता की स्थिति में निर्णायक मत देने का अधिकार है ।
(vi) संसद एवं राष्ट्रपति के मध्य होने वाला पत्र-व्यवहार करना तथा कोई विधेयक, धन विधेयक हैं या नहीं: इसका निर्णय करना।
(vii)  अध्यक्ष द्वारा धन विधेयक के रूप में प्रमाणित विधेयक की प्रकृति के प्रश्न पर न्यायालय में या किसी सदन में या राष्ट्रपति द्वारा विचार नहीं किया जायेगा
◆ लोक सभा में विपक्ष के नेता को राजकोष से वेतन प्राप्त होता है तथा उसे कैबिनेट स्तर के मंत्री के समान समस्त सुविधाएँ प्राप्त होती हैं ।
◆  प्रथम लोक सभा का गठन 6मई, 1952 ई० को हुआ ।
◆  प्रथम लोक सभा अध्यक्ष श्री जी० वी० मावलंकर एवं उपाध्यक्ष श्री अनंतशयनम थे । संसद- सदस्यों से संबंधित कुछ विशेष बातें
◆  किसी संसद- सदस्य की योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित प्रश्न का अन्तिम विनिश्चय चुनाव आयोग की सलाह से राष्ट्रपति करता है । ▸
◆  एक समय एक व्यक्ति केवल एक ही सदन का सदस्य रह सकता है ।
◆  यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि से अधिक समय के लिए सदन के सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है ।
◆  संसद- सदस्यों को संसद की बैठक के पूर्व या बाद 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से मुक्ति प्रदान की गई है। गिरफ्तारी से यह मुक्ति केवल सिविल मामलों में है । आपराधिक मामले अर्थात् निवारक निरोध की विधि के अधीन गिरफ्तारी से छूट नहीं है ।
16. भारत निधि [अनुच्छेद 266 (1)|
◆ भारत की संचित निधि पर भारित व्यय निम्न हैं
(i) राष्ट्रपति का वेतन एवं भत्ता और अन्य व्यय के सभापति,
(ii) राज्य सभा सभापति और उपसभापति तथा लोक सभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते,
( iii) सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन, भत्ता तथा पेंशन,
(iv) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का वेतन, भत्ता तथा पेंशन,
( v) ऐसा ऋण – भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है,
(vi) भारत सरकार पर किसी न्यायालय द्वारा दी गयी डिक्री या पंचाट,
 (vii) कोई अन्य व्यय जो संविधान द्वारा या संसद विधि द्वारा इस प्रकार भारित घोषित करें ।
17. भारत की आकस्मिकता निधि (अनुच्छेद 267)
◆  संविधान का (अनुच्छेद 267) संसद और राज्य विधान मंडल को, यथास्थिति, भारत या राज्य की आकस्मिकता निधि सर्जित करने की शक्ति देता है ।
◆  यह निधि, 1950 द्वारा गठित की गई है । यह निधि कार्यपालिका के व्यवनाधीन है ।
◆  जब तक विधान मंडल अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान द्वारा ऐसे व्यय को प्राधिकृत नहीं करता है, तब तक समय-समय पर अनवेक्षित व्यय करने के प्रयोजन के लिए कार्यपालिका इस निधियों से अग्रिम धन दे सकती है ।
◆  इस निधि में कितनी रकम को यह समुचित विधान मंडल विनियमित करेगा ।
18. भारत का महान्यायवादी (अनु० 76)
◆  महान्यायवादी सर्वप्रथम भारत सरकार का विधि अधिकारी होता है ।
◆  भारत का महान्यायवादी न तो संसद का सदस्य होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है। लेकिन वह किसी भी सदन में अथवा उनकी समितियों में बोल सकता है, किन्तु उसे मत देने का अधिकार नहीं है। (अनुच्छेद 88)
◆  महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा वह उसके प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है।
◆ महान्यायवादी बनने के लिए वही अर्हताएँ होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए होती हैं ।
◆  महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार ।
19. भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (अनु० 148 से 151 ) 
◆  नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। किन्तु उसे पद से संसद के दोनों सदनों के समावेदन पर ही हटाया जा सकेगा और उसके आधार (i) साबित कदाचार या, (ii) असमर्थता हो सकेंगे ।
◆  इसकी पदावधि पद ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष तक होगी, लेकिन यदि इससे पूर्व 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है तो वह अवकाश ग्रहण कर लेता है ।
◆  यह सेवा– निर्वृति के पश्चात् भारत सरकार के अधीन कोई पद धारण नहीं कर सकता।
◆  नियंत्रक महालेखा परीक्षक सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है ।
◆  भारत तथा प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि से किए गए सभी व्यय विधि के अधीन ही हुए हैं यह इस बात की संपरीक्षा करता है।
20. संविधान में संशोधन
◆  संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। इसमें संशोधन की तीन विधियों को अपनाया गया है –
(i) साधारण विधि द्वारा संशोधन, (ii) संसद के विशेष बहुमत द्वारा, (iii) संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन ।
1. साधारण विधि द्वारा संसद के साधारण बहुमत द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर कानून बन जाता है। इसके अन्तर्गत राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति मिलने पर निम्न संशोधन किए जा सकते हैं
(i) नए राज्यों का निर्माण, (ii) राज्य क्षेत्र, सीमा और नाम में परिवर्तन, (iii) संविधान की नागरिकता संबंधी अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों की प्रशासन संबंधी तथा केन्द्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रों की प्रशासन संबंधी व्यवस्थाएँ ।
2. विशेष बहुमत द्वारा संशोधन- यदि संसद के प्रत्येक सदन द्वारा कुल सदस्यों का बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेनेवाले सदस्यों के 2/3 मतों से विधेयक पारित हो • जाए तो राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही वह संशोधन संविधान का अंग बन जाता है  न्यायपालिका तथा राज्यों के अधिकारों तथा शक्तियों जैसी कुछ विशिष्ट बातों को छोड़कर संविधान की अन्य सभी व्यवस्थाओं में इसी प्रक्रिया के द्वारा संशोधन किया जाता है ।
3. संसद के विशेष बहुमत एवं राज्य विधान मंडलों की स्वीकृति से संशोधन-संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए विधेयक को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत तथा राज्यों के कुल विधान मंडलों में से आधे द्वारा स्वीकृति आवश्यक है । इसके द्वारा किए जाने वाले संशोधन के प्रमुख विषय हैं- (i) राष्ट्रपति का निर्वाचन (अनुच्छेद 54 ), (ii) राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य पद्धति (अनुच्छेद 55), (iii) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, (iv) राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, (v) केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय, (vi) संघीय न्यायपालिका, (vii) राज्यों के उच्च न्यायालय, (viii) संघ एवं राज्यों में विधायी संबंध, (ix) सातवीं अनुसूची का कोई विषय, (x) संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व, (xi) संविधान संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित उपबन्ध ।
21. न्यायपालिका
 सर्वोच्च न्यायालय
◆  भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का उच्चतम न्यायालय है।
◆ उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है । उच्चतम न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है ।
◆ उच्चतम न्यायालय का गठन संबंधी प्रावधान(अनुच्छेद 124) में दिया गया है ।
◆  उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश होते हैं ।
 नोट : उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था संविधान में मूलत: की गई थी। बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए 1956 ई० में उच्चतम न्यायालय अधिनियम में संशोधन कर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई । तदुपरान्त 1960 ई० में यह संख्या पुनः बढ़ाकर 14, 1977 में 18 तथा 1986 में 26 हो गयी । अब केन्द्र सरकार ने 21 फरवरी 2008 को उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया है ।
◆  इन न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है ।
◆  उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। एक बार नियुक्ति होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आशु-सीमा 65 वर्ष है
◆ उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित समावेदन के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा हटाये जा सकते हैं ।
◆  उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक लाख रुपये प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशों को 90 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है ।
उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश के लिए योग्यताएँ
(i) वह भारत का नागरिक हो ।
 (ii) वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो ।
 या, किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो ।
या, राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो ।
◆  उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत में किसी भी हैं ।
न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते  है।
◆ उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है ।
◆  मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर, दिल्ली के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की बैठकें बुला सकता है । अब तक हैदराबाद और श्रीनगर में इस प्रकार की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं ।
उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार
1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार-यह निम्न मामलों में प्राप्त हैं
(i) भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में ।
(ii) भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में ।
(iii) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में, जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है।
◆ प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है ।
2. अपीलीय  देश का सबसे बड़ा अपीलीय उच्चतम न्यायालय है। इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रकरण आते हैं- (i) सांविधानिक, (ii) दीवानी और (iii) फौजदारी ।
3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्त्व के विवादों पर उच्चतम न्यायालय का परामर्श माँग सकता है । (अनुच्छेद 143) । न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है ।
4. पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार — संविधान के अनुच्छेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिए गए आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सके तथा यदि समझें तो उनमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है ।
5. अभिलेख न्यायालय – संविधान का अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय को अभिलेख. न्यायालय का स्थान प्रदान करता है। इसका आशय यह है कि इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्षी के रूप में स्वीकार किए जाएँगे और इसकी प्रामाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं किया जाएगा ।
6. मौलिक अधिकारों का रक्षक भारत का उच्चतम न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है। अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें । न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार, पृच्छा – लेख और उत्प्रेषण के लेख जारी कर सकता है ।
उच्च न्यायालय
◆ संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा (अनुच्छेद 214), लेकिन संसद विधि द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है (अनुच्छेद 231 ) । वर्तमान में पंजाब एवं हरियाणा, असम, नगालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, दादर और नागर हवेली और दमण तथा दीव और प० बंगाल, अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि के लिए एक ही उच्च न्यायालय है ।
◆ वर्तमान में भारत में 24 उच्च न्यायालय हैं ।. केन्द्र शासित प्रदेशों से केवल दिल्ली में उच्च न्यायालय है ।
◆  केंद्र शासित प्रदेशों से केवल दिल्ली में उच्च न्यायालय है ।
◆  प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलाकर किया जाता है । इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है । भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या अलग-अलग होती है ।
◆  गुवाहाटी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे कम (3) एवं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या सबसे अधिक (58) है ।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए योग्ताएँ
1.भारत का नागरिक हो ।
2. कम-से-कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो अथवा, किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो ।
◆  उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को इस राज्य, जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है, को राज्यपाल उसके पद की शपथ दिलाता है ।
◆  उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम उम्र सीमा 62 वर्ष हैं । उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद से, राष्ट्रपति को संबोधित कर, कभी भी त्याग पत्र दे सकता है ।
◆  उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रकार अपदस्थ किया जा सकता है, जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश पद मुक्त किया जाता है ।
◆  जिस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है, वह उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता । किन्तु वह किसी दूसरे उच्च न्यायालय में अथवा उच्चतम न्यायालय में वकालत कर सकता है ।
◆  राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार किसी भी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है अथवा अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है ।
◆  राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है ।
◆  उच्च न्यायालय एक अभिलेखं न्यायालय होता है। उसके निर्णय आधिकारिक माने जाते हैं तथा उनके आधार पर न्यायालय अपना निर्णय देते हैं ।
◆  भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है ।
उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
1. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार – प्रत्येकउच्च न्यायालय को नौकाधिकरण, इच्छा-पत्र, तलाक, विवाह, कम्पनी न्यायालय की अवमानना तथा कुछ राजस्व संबंधी प्रकरणों नागरिकों के मौलिक अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक निर्देश विशेषकर बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा के लेख जारी करने के अधिकार प्राप्त है ।
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार —– (i) फौजदारी मामलों में अगर सत्र न्यायाधीश ने मृत्युदंड दिया हो, तो उच्च न्यायालय में उसके विरुद्ध अपील हो सकती है । (ii) दीवानी मामलों में उच्च न्यायालय में उन सब मामलों की अपील हो सकती है, जो पाँच लाख रुपए या उससे अधिक संपत्ति से संबद्ध हो । (iii) उच्च न्यायालय पेटेंट और डिजाइन, उत्तराधिकार, भूमि-प्राप्ति, दिवालियापन और संरक्षकता आदि मामलों में भी अपील सुनता है ।
3. उच्च न्यायालय में मुकदमों का हस्तांतरण- यदि किसी उच्च न्यायालय को ऐसा लगे कि जो अभियोग अधीनस्थ न्यायालय में विचाराधीन है, वह विधि के किसी सारगर्भित प्रश्न से संबद्ध है तो वह उसे अपने यहाँ हस्तांतरित कर, या तो उसका निपटारा स्वयं कर देता है या विधि से संबद्ध प्रश्न को निपटाकर अधीनस्थ न्यायालय को निर्णय के लिए ‘वापस भेज देता है ।
4.  प्रशासकिय अधिकार – उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्त, पदावनति, पदोन्नति तथा छुट्टियों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार है ।
नोट :  उच्च न्यायालय राज्य में अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं है । राज्य सूची से संबद्ध विषयों में भी उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील हो सकती है ।
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