भारतीय संविधान -1

भारतीय संविधान -1

22. राज्य की कार्यपालिका राज्यपाल
◆ संविधान के भाग-6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान किया गया है और यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों के लिए लागू होता है ।
◆ राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल होता है, वह प्रत्यक्ष रूप से अथवा अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से इसका उपयोग करता है ।
◆ प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है लेकिन एक ही राज्यपाल को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है ।
◆  राज्यपाल की योग्यता- राज्यपाल पद पर नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति में निम्न योग्यताएँ होना अनिवार्य है – (i) वह भारत का नागरिक हो । (ii) वह 35 वर्ष की उम्र पूरा कर चुका हो । (iii) किसी प्रकार के लाभ के पद पर नहीं हो 1 (iv) वह राज्य विधान सभा का सदस्य चुने जाने योग्य हो ।
◆ राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्षों की अवधि के लिए की जाती है; परन्तु यह राष्ट्रपति के प्रसाद – पर्यन्त पर धारण करता है ।
◆ राज्यपाल का वेतन एक लाख दस हजार रुपए मासिक है। यदि दो या दो से अधिक राज्यों का एक ही राज्यपाल हो, तब उसे दोनों राज्यपालों का वेतन उस अनुपात में दिया जाएगा. जैसाकि राष्ट्रपति निर्धारित करे ।
◆ राज्यपाल पद ग्रहण करने से पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख अपने पद की शपथ लेता है ।
◆ राज्यपाल की उन्मुक्तियाँ तथा विशेषाधिकार
(i) वह अपने पद की शक्तियों के प्रयोग तथा कर्त्तव्यों के पालन के लिए किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है ।
(ii) राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में किसी प्रकार की आपराधिक कार्रवाई नहीं प्रारंभ की जा सकती है ।
(iii) जब वह पद पर हो तब उसकी गिरफ्तारी का आदेश किसी न्यायालय द्वारा जारी नहीं किया जा सकता ।
(iv) राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात् उसके द्वारा किए गए कार्य के संबंध में कोई सिविल कार्रवाई करने से पहले उसे दो मास पूर्व सूचना देनी पड़ती है ।
राज्यपाल की शक्तियाँ तथा कार्य 
1. कार्यपालिका संबंधी कार्य –
(a)  राज्य के समस्त कार्यपालिका कार्य राज्यपाल के नाम से किए जाते हैं ।
(b) राज्यपाल मुख्यमंत्री को तथा मुख्यमंत्री की सलाह से उसकी मंत्रिपरिषद् के सदस्यों को नियुक्त करता है तथा उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है ।
(c) राज्यपाल राज्य के उच्च अधिकारियों, जैसे महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है तथा राज्य के उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्त के संबंध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है ।
(d) राज्यपाल का अधिकार है कि वह राज्य के प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करे ।
(e) जब राज्य का प्रशासन संवैधानिक तंत्र के अनुसार न चलाया जा रहा हो तो राज्यपाल राष्ट्रपति से राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करता है ।
(f) राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल केन्द्र सरकार के अभिकर्ता के रूप में राज्य का प्रशासन चलाता है ।
(g) राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति है तथा उपकुलपतियों को भी नियुक्त करता है ।
2. विधायी अधिकार –
(a) राज्यपाल विधान मंडल का अभिन्न अंग है ।
(b)  उसका सत्रावसान करता है, तथा उसका विघटन करता है, राज्यपाल विधान सभा के अधिवेशन अथवा दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करता है ।राज्यपाल विधान मंडल का सत्राह्वान करता है
(c) वह राज्य विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या का 1/6 भाग सदस्यों को नियुक्त करता है, जिनका संबंध विज्ञान, साहित्य, कला, समाज-सेवा सहकारी आन्दोलन आदि से रहता है ।
(d) राज्य विधान सभा के किसी सदस्य पर अयोग्यता का प्रश्न उत्पन्न होता है, तो अयोग्यता संबंधी विवाद का निर्धारण राज्यपाल चुनाव आयोग से परामर्श करके करता है ।
(e) राज्य विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद ही अधिनियम बन पाता है।
(f)  यदि विधान सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं प्राप्त है, तो राज्यपाल उस समुदाय के एक व्यक्ति को विधान सभा का सदस्य मनोनीत कर सकता है ।
नोट: जम्मू कश्मीर राज्य विधान सभा में दो महिलाओं को प्रदेश का राज्यपाल नामजद करता है।
(g)  जब विधान मंडल का सत्र नहीं चल रहा हो और राज्यपाल को ऐसा लगे कि तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है, तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसे वही स्थान प्राप्त है, जो विधान मंडल द्वारा पारित किसी अधिनियम है। ऐसे अध्यादेश को 6 सप्ताह के भीतर विधान मंडल द्वारा स्वीकृति होना आवश्यक है । यदि विधान मंडल 6 सप्ताह के भीतर उसे अपनी स्वीकृति नहीं देता है, तो उसे अध्यादेश की वैधता समाप्त हो जाती है ।
(h) कुछ विशिष्ट प्रकार के विधेयकों को राज्यपाल राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजता है ।
3. वित्तीय अधिकार –
(a) राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष में वित्तमंत्री को विधान मंडल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहता है ।
(b) विधान सभा में धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही पेश किया जाता
(c) ऐसा कोई विधेयक जो राज्य की संचित निधि से खर्च निकालने की व्यवस्था करता हो, उस समय तक विधान मंडल द्वारा पारित नहीं किया जा सकता जब तक  राज्यपाल इसकी संस्तुति न कर दे ।
(d) राज्यपाल की संस्तुति के बिना अनुदान की किसी माँग को विधान मंडल के सम्मुख नहीं रखा जा सकता ।
(e) राज्यपाल धन विधेयक के अतिरिक्त किसी विधेयक को पुनः विचार के लिए राज्य विधान मंडल के पास भेज सकता है, परन्तु राज्य विधान मंडल द्वारा इसे दुबारा पारित किए जाने पर वह उसपर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य होता है !
4. न्यायिक अधिकार-
राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सिद्ध दोष ठहराये गए किसी व्यक्ति के दंड को, क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है ।
राज्यपाल की स्थिति
यदि हम राज्यपाल के उपर्युक्त अधिकारों पर दृष्टिपात करें तो ऐसा लगता है कि राज्यपाल एक बहुत शक्तिशाली अधिकारी है । किन्तु वास्तविकता इससे सर्वथा भिन्न है । हमने संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है, जिसमें मंत्रिपरिषद् विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी होती है, अत: वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिपरिषद् को प्राप्त होती है, न कि राज्यपाल को । के रूप में कार्य करता है किन्तु असाधारण स्थितियों में राज्यपाल एक संवैधानिक प्रमुख उसे इच्छानुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं ।
उपराज्यपाल –दिल्ली पुदुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह |
प्रशासक – दादर एवं नागर हवेली, लक्षद्वीप, दमन एवं दीव ।
विधान परिषद्
◆ विधान परिषद् राज्य विधान मंडल का उच्च सदन होता है ।
◆ यदि किसी राज्य की विधान सभा अपने कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करे तो संसद उस राज्य में विधान परिषद् स्थापित कर सकती है अथवा उसका लोप कर सकती है ।
◆ वर्तमान में केवल छः राज्यों (उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू एवं कश्मीर, महाराष्ट्र, बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश) में विधान परिषदें विद्यमान हैं ।
नोट: पहले केवल पाँच राज्यों में विधान परिषदें थी लेकिन 2 अप्रैल, 2007 के आन्ध्र प्रदेश में भी विधान परिषद् अस्तित्व में आ गई है । ज्ञातव्य है कि आन्ध्र प्रदेश में विधान परिषद् का सृजन 1957 में किया गया था किन्तु 1985 में इसे वहाँ समाप्त कर दिया गया था ।
◆ विधान परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या, उस राज्य की विधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या की एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, किन्तु किसी भी अवस्था में विधान परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या 40 से कम नहीं हो सकती है। अपवादजम्मू-कश्मीर (36)
◆ विधान परिषद् का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 30 वर्ष है ।
◆ विधान परिषद् के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है, किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं तथा उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हैं ।
◆ विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है ।
◆ विधान परिषद् के कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्य, राज्य की स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के एक निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं, एक तिहाई सदस्य राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं ।
1/12 सदस्य उन स्नातकों द्वारा निर्वाचित होते हैं, जिन्होंने कम-से-कम 3 वर्ष पूर्व स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली हो; 1/12 सदस्य उन अध्यापकों के द्वारा निर्वाचित होते हैं, जी कम से कम 3 वर्षों से माध्यमिक पाठशालाओं अथवा उनसे ऊँची कक्षाओं में शिक्षण कार्य कर रहे हो; तथा 1/6 सदस्यों का राज्यपाल उन व्यक्तियों में से मनोनीत करता है, जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता आन्दोलन या सामाजिक सेवा के संबंध में विषय ज्ञान हो ।
◆ विधान परिषद् की किसी भी बैठक के लिए कम से कम 10 या विधान परिषद् के कुल सदस्यों का दसमांश, (1/10) इनमें से जो भी अधिक हो, गणपूर्ति होगा ।
◆ विधान परिषद् अपने सदस्यों में से दो क्रमशः सभापति एवं उपसभापति चुनती है ।
◆  सभापति एवं उपसभापति को विधान मंडल द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ते प्राप्त होते हैं
◆ सभापति उपसभापति को संबोधित कर एवं उपसभापति सभापति को संबोधित कर त्यागपत्र दे सकता है, अथवा परिषद् के सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा उसे अपदस्थ भी किया जा सकता है। किन्तु ऐसे किसी प्रस्ताव को लाने के लिए 14 दिनों की पूर्व सूचना आवश्यक है
 विधान सभा
◆ विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, किन्तु विशेष परिस्थिति में राज्यपाल को यह अधिकार है, कि वह इससे पूर्व भी उसको विघटित कर सकता है ।
◆  विधान सभा के सत्रावसान (prorogation) के आदेश राज्यपाल के द्वारा दिए जाते हैं।
◆ विधान सभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष है।
◆  प्रत्येक राज्य की विधान सभा में कम-से-कम 60 और अधिक से अधिक 500 सदस्य होते हैं । अपवाद-गोवा (40), मिजोरम (40), सिक्किम (32)
◆  विधान सभा की अध्यक्षता करने के लिए एक अध्यक्ष का चुनाव करने का अधिकार सदन को प्राप्त है, जो इसकी बैठकों का संचालन करता है ।
◆  साधारणतया विधान सभा अध्यक्ष सदन में मतदान नहीं करता किन्तु यदि सदन में मत बराबरी में बँट जाएँ तो वह निर्णायक मत देता है ।
◆  जब कभी अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो, उस समय वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता नहीं करता है ।
◆ किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाए अथवा नहीं, इसका निर्णय विधान सभा अध्यक्ष ही करता है ।
◆  सदन के बैठकों के लिए सदन के कुल सदस्यों के दसमांश 1/10 सदस्यों की उपस्थितियाँ गणपूर्ति हेतु आवश्यक है ।
विधान सभा के अधिकार और कार्य
1. विधि निर्माण-
(i) इसे राज्य सूची से संबंधित विषयों पर विधि निर्माण का अनन्य अधिकार प्राप्त है । (ii) समवर्ती सूची से संबद्ध विषयों पर संसद की तरह राज्य विधान मंडल भी विधि निर्माण कर सकता है, किन्तु यदि दोनों द्वारा निर्मित विधियों में परस्पर विरोध की सीमा तक संसदीय विधि वरणीय है।
2. वित्तीय विषयों से संबंधित प्रक्रिया
(i) राज्य विधान मंडल राज्य सरकार की वित्तीय अवस्था को पूर्णतया नियंत्रित करता है । प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में विधान मंडल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण अथवा बजट प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें शासन की आय और व्यय का विवरण रहता है । बजट वित्त मंत्री द्वारा रखा जाता है
(ii) कोई धन विधेयक प्रारंभ में विधान परिषद् में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता । जब विधान सभा किसी धन विधेयक को पारित कर देती है, तब वह विधान सभा परिषद् के पास भेज दिया जाता है । विधान परिषद् को 14 दिनों के भीतर विधान सभा को लौटाना पड़ता है। विधान परिषद् उस विधेयक के संबंध में संस्तुतियाँ तो दे सकती हैं, किन्तु वह न तो उसे अस्वीकार कर सकती और न उसमें संशोधन ही कर सकती है ।
(iii) विधान सभा द्वारा पारित किए जाने के 14 दिनों के बाद विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित समझ लिया जाता है तथा राज्यपाल को उस पर अपनी सहमति देनी पड़ती है ।
3. कार्यपालिका पर नियंत्रण —
मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है । जब कभी मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो समूची मंत्रिपरिषद् को त्यागपत्र देना पड़ता है
 4. संवैधानिक संशोधन–
संघीय स्वरूप को प्रभावित करने वाला कोई संविधान संशोधन विधेयक यदि संसद के दोनों सदनों के द्वारा पारित हो जाता है, तो आधे से अधिक राज्यों के विधान मंडलों द्वारा उसकी पुष्टि आवश्यक है
5. निर्वाचन संबंधी अधिकार –
राष्ट्रपति के निर्वाचन में जितना मताधिकार संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को प्राप्त है, उतना ही राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों को प्राप्त है ।
मुख्यमंत्री
◆ मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। साधारणतः वैसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है तो विधान सभा में बहुमत दल का नेता होता है
नोट – राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की चुनाव पश्चात् मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है और मुख्यमंत्री राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होता है
◆ मुख्यमंत्री ही शासन का प्रमुख प्रवक्ता है और मंत्रिपरिषदों की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
◆  मंत्रिपरिषद् के निर्णयों को मुख्यमंत्री ही राज्यपाल तक पहुँचाता है ।
◆ जब कभी राज्यपाल कोई बात मंत्रिपरिषद् तक पहुँचाना चाहता है, तो वह मुख्यमंत्री के द्वारा ही यह कार्य करता है ।
◆ राज्यपाल के सारे अधिकारों का प्रयोग मुख्यमंत्री ही करता है ।
23. भारतीय राजव्यवस्था में वरीयता अनुक्रम
◆ भारतीय राजव्यवस्था में विभिन्न पदाधिकारियों का वरीयता अनुक्रम (Warrent of Precedence) इस प्रकार है-(1) राष्ट्रपति, (2) उपराष्ट्रपति, (3) प्रधानमंत्री, (4) राज्यों के राज्यपाल, अपने राज्यों में, (5) भूतपूर्व राष्ट्रपति, (5-क) उप प्रधानमंत्री, (6) भारत का मुख्य न्यायाधीश तथा लोक सभाध्यक्ष, (7) केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री राज्य के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में, योजना आयोग का उपाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री तथा संसद के विपक्ष का नेता, (7 – क) भारत रत्न सम्मान के धारक, (8) राजदूत, (9) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (9) क- मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक, (10) राज्य सभा का उपसभापति, लोक सभा का उपाध्यक्ष, योजना आयोग के सदस्य तथा केन्द्र में राज्यमंत्री ।
◆ भारत रत्न एकमात्र ऐसा पुरस्कार है जिसे वरीयता के अनुक्रम में स्थान दिया गया ।
नोट: मुख्य चुनाव आयुक्त श्री शेषन के आग्रह पर सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त को (9)  – क) की स्थिति प्रदान की है, यानी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष दर्जा ( यह संशोधन अगस्त 93 में किया गया ।)
24. केन्द्र राज्य संबंध
◆ भारत में केन्द्र राज्य संबंध संघवाद की ओर उन्मुख है और संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा के संविधान से लिया गया है।
◆  भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्य के मध्य विधायी, प्रशासनिक तथा वित्तीय शक्तियों का विभाजन किया गया है, लेकिन न्यायपालिका को विभाजन की परिधि से बाहर रखा गया है ।
◆  भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में केन्द्र एवं राज्य की शक्तियों के बँटवारे से संबंधित तीन सूची दी गई हैं- (i) संघ सूची, (ii) राज्य सूची और (iii) समवर्ती सूची ।
◆ संघ सूची-संघ सूची में उन विषयों को शामिल किया गया है, जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिन पर कानून बनाने का एकमात्र अधिकार केन्द्रीय विधायिका अर्थात् संसद को है । इस सूची में वर्तमान में कुल 100 (मूलत : 97) विषयों को शामिल किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं— रक्षा, विदेशी मामले, युद्ध, अन्तर्राष्ट्रीय संधि, अणु शक्ति, सीमा शुल्क, जनगणना, विदेशी ऋण, डाक एवं तार, प्रसारण, टेलीफोन, विदेशी व्यापार, रेल तथा वायु एवं जल परिवहन आदि ।
◆ राज्य सूची– इसमें उन विषयों को शामिल किया गया है, जो स्थानीय महत्त्व के हैं तथा जिन पर कानून बनाने का एकमात्र अधिकार राज्य विधान मंडल को है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में संसद भी कानून बना सकती है । इस सूची में शामिल विषयों की संख्या 61 है, (मूलत: 66 विषय) जिनमें प्रमुख हैं लोक सेवा, कृषि, वन, कारागार, भू-राजस्व, लोक व्यवस्था, पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्थानीय शासन, क्रय, विक्रय एवं सिंचाई आदि ।
◆ समवर्ती सूची– इसमें शामिल विषयों पर संसद तथा राज्य विधान मंडल दोनों द्वारा कानून बनाया जाता है और यदि दोनों कानूनों में विरोध है, तो संसद द्वारा निर्मित कानून लागू होगा। इसमें 52 विषयों (मूलत : 47 विषय) को शामिल किया गया है । उनमें प्रमुख हैं राष्ट्रीय जलमार्ग, परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, समाचार पत्र, कारखाना, शिक्षा, आर्थिक तथा सामाजिक योजना ।
◆ अवशिष्ट विधायी शक्ति जिन विषयों को संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में नहीं शामिल किया गया है, उन पर कानून बनाने का अधिकार संसद को प्रदान किया  गया है।
◆ राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की ससंद की शक्ति संविधान के अनुच्छे 249 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि राज्य सभा अपने उपस्थित तथा मतदान कर वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से यह पारित कर दे कि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखत संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाए, तो संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है । संसद द्वारा इस प्रकार बनाया गया कानून एक वर्ष के लिए प्रवर्त्तनीय होता है, लेकिन राज्य सभा द्वारा पारित कर इसे बार-बार कई वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है ।
◆ राज्यों की सहमति से भी संसद राज्य सूची पर कानून बना सकती है ।
◆ राष्ट्रीय आपात एवं राष्ट्रपति शासन के समय भी संसद को राज्य सूची कानून बनाने का अधिकार होता है ।
◆ संघ के प्रमुख राजस्व स्रोत हैं—निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, विदेशी ऋण, रेल, रिज़र्व बैंक तथा शेयर बाजार |
◆ राज्य के प्रमुख राजस्व स्रोत हैं— व्यक्ति कर, कृषि, भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, भूमि एवं भवनों पर कर, पशुओं तथा नौकायन पर कर, विक्रय कर, वाहनों पर चुंगी ।
◆  केन्द्र एवं राज्यों के मध्य विवाद को सुलझाने के लिए मुख्यतः चार आयोग गठित किये गए, जो इस प्रकार हैं— प्रशासनिक सुधार आयोग, राजमन्नार आयोग, भगवान सहाय समिति एवं सरकारिया आयोग ।
◆  सरकारिया आयोग का गठन 1983 में किया गया था, जिसने अपनी 1600 पृष्ठ वाली रिपोर्ट 1987 ई० में केन्द्र सरकार को सौंप दी ।
25. अन्तर्राज्य परिषद्
◆  संविधान के अनुच्छेद 263 के अन्तर्गत केन्द्र एवं राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति एक अन्तर्राज्य परिषद् की स्थापना कर सकता है ।
◆  पहली बार जून, 1990 ई० में अन्तर्राज्य परिषद् की स्थापना की गई, जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर, 1990 ई० को हुई थी ।
◆  इसमें निम्न सदस्य होते हैं –
प्रधानमंत्री तथा उनके द्वारा मनोनीत छह कैबिनेट स्तर के मंत्री, सभी राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्यमंत्री एवं संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासक ।
◆ अन्तर्राज्य परिषद् की बैठक वर्ष में तीन बार की जाएगी जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री या उनकी अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त कैबिनेट स्तर का मंत्री करता है । परिषद् की बैठक के लिए आवश्यक है कि कम-से-कम दस सदस्य अवश्य उपस्थित हों।
26. योजना आयोग
◆  भारत में योजना आयोग के संबंध में कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है ।
◆ 15 मार्च, 1950 ई० को केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव के द्वारा योजना आयोग की स्थापना की गयी थी । योजना अयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है ।
27. राष्ट्रीय विकास परिषद्
◆ योजना के निर्माण में राज्यों की भागीदारी होनी चाहिए, इस विचार को स्वीकार करते हुए सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा 6 अगस्त, 1952 ई० को राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन हुआ ।
◆ प्रधानमंत्री, परिषद् का अध्यक्ष होता है। योजना अयोग का सचिव ही इसका सचिव होता है ।
◆ भारतीय संघ के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं योजना आयोग के सभी सदस्य इसके पदेन सदस्य होते हैं ।
28. वित्त आयोग
◆ संविधान के अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग का प्रावधान किया गया है !
◆ वित्त आयोग के गठन का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है ।
◆ वित्त आयोग में राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्य नियुक्त किए जाते हैं
◆  राज्य वित्त आयोग का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (1) की द्वारा किया जाता है ।
29. लोक सेवा आयोग
◆  भारत में सन् 1919 ई० के भारत सरकार अधिनियम के अधीग सर्वप्रथम 1926 में लोक सेवा आयोग की स्थापना की गयी थी। लोक सेवा आयोग की स्थापना के ।1924 ई० में विधि आयोग ने सिफारिश की थी ।
◆ संघ लोग सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।
◆  संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या निर्धारित करने की शक्ति राष्ट्रपति ।। वर्तमान में इसकी संख्या 10 है । ।
◆  संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति (6 वर्षों के लिए की जा है । यदि वह 6 वर्षों के अन्दर 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तो वह पद से गाल हो जाता है ।
◆  राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है, परन्तु इन्हें हटाने का अधिकार राज्यपाल को नहीं है ।
◆ राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की उम्र तक होता है । इन दोनों में जो पहले पूरा होता है उसी के तहत वे अवकाश ग्रहण करते हैं, परन्तु उन्हें कार्यकाल के बीच उच्चतम न्यायालय के प्रतिवेदन पर तथा कुछ निर्हताओं होने पर संविधान के अनुच्छेद 317 के अन्तर्गत राष्ट्रपति हटा सकते हैं ।
30. निर्वाचन आयोग
◆ संविधान के भाग – 15 के गया है ।अनुच्छेद 324 से 329 में निर्वाचन से संबंधित उपबन्ध दिया
◆ निर्वाचन आयोग का गठन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों से किया जाता है, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है ।
◆ मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो तब तक होगा । अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु जो पहले हो तब तक रहता है ।
◆  मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन ( 9 ) हजार रुपये मासिक) एवं भत्ते प्राप्त होंगे ।
◆ पहले चुनाव आयोग एक सदस्यीय आयोग था, परन्तु अक्टूबर, 1993 ई. में तीन सदस्यीय आयोग बना दिया गया ।
निर्वाचन आयोग के मुख्य कार्य
(i) चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन, (ii) मतदाता सूचियों को तैयार करवाना, (iii) विभिन्न राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना, (iv) राजनीतिक दलों को आरक्षित चुनाव चिह्न प्रदान करना, (v) चुनाव करवाना, (vi) राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता तैयार करवाना |
निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक प्रावधान
( i ) निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है अर्थात् इसका निर्माण संविधान ने किया है ।
( ii )  मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
 (iii) मुख्य चुनाव आयुक्त महाभियोग जैसी प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है ।
(iv) मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान ही है।
(v) नियुक्ति के पश्चात् मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता
(vi) मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों का वेतन भारत की संचित निधि में से दिया जाता है ।
31. राजभाषा
◆ संविधान के भाग – 17 के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी हैं ।
◆ भारतीय संविधान के अनुच्छेद-344 में राष्ट्रपति को राजभाषा से संबंधित कुछ विषयों में सलाह देने के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है। राष्ट्रपति ने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए 1955 ई० में श्री बी० जी० खरे की अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया । इस आयोग ने 1956 ई० में अपना प्रतिवेदन दिया ।
◆ संविधान की आठवीं अनुसूची के अनुसार निम्नलिखित भाषाओं मान्यता प्राप्त है, जो इस प्रकार हैं- 1. असमिया 2. बंगला 3. गुजराती 4. हिन्दी 5. कन्नड़ 6. कश्मीरी 7. मलयालम 8. मराठी 9. उड़िया 10. पंजाबी 11. संस्कृत 12. सिन्धी 13. तमिल 14. तेलुगू 15. उर्दू 16. कोंकणी 17. मणिपुरी 18. नेपाली 19 मैथिली 20. संथाली 21. डोगरी 22. बोडो
नोट : (i) 1967 ई० में संविधान के 21वें संशोधन के द्वारा सिन्धी को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया ।
(ii) 1992 ई. में संविधान के 71वें संशोधन के द्वारा मणिपुरी, कोंकणी एवं नेपाली को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया ।
(iii) 92वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो भाषाओं को जोड़ा गया है ।
◆ राज्य की भाषा–संविधान के अनुच्छेद 345 के अधीन प्रत्येक राज्य के विधान मंडल को यह अधिकार दिया गया है कि वह आठवीं अनुसूची में अन्तर्विष्ट भाषाओं में से किसी एक या अधिक को सरकारी कार्यों के लिए राज्य की सरकारी भाषा के रूप में अंगीकार .. कर सकता है। किन्तु राज्यों के परस्पर संबंधों में तथा संघ तथा राज्यों के परस्पर संबंधों में संघ की राजभाषा को ही प्राधिकृत भाषा माना जाएगा ।
◆ उच्चतम और उच्च न्यायालयों तथा विधान मंडलों की भाषा–संविधान में प्रावधान किया गया है कि जब तक संसद द्वारा कानून बनाकर अन्यथा प्रावधान न किया जाय, तब तम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी होगी और संसद तथा राज्य विधान मंडलों द्वारा पारित कानून अंग्रेजी में होंगे ।
32. आपात उपबन्ध
◆  भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल की व्यवस्था की गयी है (i) राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 352), (ii) राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) एवं (iii) वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360 )
◆  राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 352)– इसकी घोषणा निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती हैं—(1) युद्ध (ii) बाह्य आक्रमण और (iii) सशस्त्र विद्रोह ।
◆ राष्ट्रीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर करता है।
◆ राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा को न्यायालय में प्रश्नगत किया जा सकता है ।
◆ 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 352 के अधीन उद्घोषणा सम्पूर्ण भारत में या उसके किसी भाग में की जा सकती है ।
◆ राष्ट्रीय आपात के समय राज्य सरकार निलंबित नहीं की जाती है; अपितु वह संघ की कार्यपालिका के पूर्ण नियंत्रण में आ जाती है ।
◆ राष्ट्रपति द्वारा की गई आपात की घोषणा एक माह तक प्रवर्त्तन में रहती है और यदि इस दौरान इसे संसद के दो तिहाई बहुमत से अनुमोदित करवा लिया जाता है, तो वह छह माह तक प्रवर्तन में रहती है। संसद इसे पुनः एक बार में छह महीने तक बढ़ा सकती है ।
◆  यदि आपात की उद्घोषणा तब की जाती है, जब लोक सभा का विघटन हो गया हो या लोक सभा का विघटन एक मास के अन्तर्गत आपात उद्घोषणा का अनुमोदन किए बिना हो जाता है, तो आपात उद्घोषणा लोक सभा की प्रथम बैठक की तारीख से 30 दिन के अन्दर अनुमोदित होनी चाहिए, अन्यथा 30 दिन के बाद यह प्रवर्त्तन में नहीं रहेगी ।
◆  यदि लोक सभा साधारण बहुमत से आपात उद्घोषणा को वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा वापस लेनी पड़ती है ।
◆ आपात उद्घोषणा पर विचार करने के लिए लोक सभा का विशेष अधिवेशन तब आहूत किया जा सकता है, जब लोक सभा की कुल सदस्य संख्या के 1/10 सदस्यों द्वारा लिखित सूचना लोक सभा अध्यक्ष को, जब सत्र चल रहा हो या राष्ट्रपति को, जब सत्र नहीं चल रहा हो, दी जाती है ।
◆  लोक सभा -प्राप्ति के 14 दिनों के अन्दर लोग सभा का विशेष अधिवेशन आहूत करते हैं ।
 आपातकाल की उद्घोषणा के प्रभाव
जब कभी संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की उद्घोषणा होती है, तो इसके ये प्रभाव होते हैं –
1. राज्य की कार्यपालिका शक्ति संघीय कार्यपालिका के अधीन हो जाती है ।
2. संसद की विधायी शक्ति राज्य सूची से संबद्ध विषयों तक विस्तृत हो जाती है ।
3. संविधान के अनुच्छेद 19 में दी गई स्वतंत्रताएँ स्थगित हो जाती हैं ।
4.  राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है, कि संविधान के अनुच्छेद 20-21 में उल्लिखित अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए न्यायपालिका की शरण लेने के अधिकार को स्थगित कर दें
◆  अनुच्छेद 352 के अधीन बाह्य आक्रमण के आधार पर आपात की प्रथम घोषणा चीनी आक्रमण के समय 26 अक्टूबर, 1962 ई० को गयी थी । यह उद्घोषणा 10 जनवरी, 1968 ई० को वापस ले ली गई ।
◆  दूसरी बार आपात की उद्घोषणा 3 दिसम्बर, 1971 ई० को पाकिस्तान से युद्ध की गई (बाह्य आक्रमण के आधार पर)।
◆  तीसरी बार राष्ट्रीय आपात की घोषणा 26 जून, 1975 ई० को आन्तरिक आशंका के आधार पर जारी की गयी थी ।
◆  दूसरी तथा तीसरी उद्घोषणा को मार्च, 1977 ई० में वापस ली गई ।
 राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356)
◆ अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति किसी राज्य में यह समाधान हो जाने पर कि राज्य में सांविधानिक तंत्र विफल हो गया है अथवा राज्य संघ की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ रहता है, तो आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है ।
◆  राज्य में आपात की घोषणा के बाद संघ न्यायिक कार्य छोड़कर राज्य प्रशासन के कार्य अपने हाथ में ले लेता है।
◆  राज्य में आपात उद्घोषणा के अवधि दो मास होती राष्ट्र है। इससे अधिक के लिए उपरा संसद से अनुमति लेनी होती राज्य है तब यह छह मास की होती है। अधिकतम तीन मुख्य वर्ष तक यह एक राज्य के प्रधान लोक प्रवर्तन में रह सकती है । इससे अधिक के लिए सविधान में संशोधन करना परता है।
◆  सर्वप्रथम पंजाव राज्य में अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया गया । (1951 ई० में भार्गव मंत्रिमंडल के पतन का कारण)
◆  सर्वाधिक समय तक अनुच्छेद 356 का प्रयोग जम्मू-कश्मीर राज्य में ही रहा (13.07. 1990 ई० से 09.10.1996 ई० तक) ।
वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360)
◆ अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब उसे विश्वास हो जाय कि ऐसी स्थिति विद्यमान है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा हैं ।
◆  वित्तीय आपात की घोषणा को दो महीनों के भीतर संसद के दोनों सदनों के सम्मुख रखना तथा उनकी स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है ।
◆  वित्तीय आपात की घोषणा उस समय की जाती हैं, जब लोक सभा विघटित हो, तो दो महीने के भीतर राज्य सभा की स्वीकृति मिलने के उपरांत वह आगे भी लागू रहेगी। किन्तु नवनिर्वाचित लोक सभा द्वारा उसकी प्रथम बैठक के आरंभ से 30 दिन के भीतर ऐसी घोषणा की स्वीकृति आवश्यक है ।
◆  राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा को किसी समय वापस ले सकता है ।
 वित्तीय आपात का प्रभाव
(i)  उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और संघ तथा राज्य सरकारों के अधिकारियों के वेतन में कमी की जा सकती है ।
(ii) राष्ट्रपति आर्थिक दृष्टि से किसी भी राज्य सरकार को निर्देश दे सकता ।
(iii) राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह राज्य सरकारों को यह निर्देश दें कि राज्य के समस्त वित्त विधेयक उसकी स्वीकृति से विधान सभा में प्रस्तुत किए जाए।
(iv) राष्ट्रपति केन्द्र तथा राज्यों में धन संबंधी विभाजन के प्रावधानों में आवश्यक संशोधन कर सकते हैं ।
33. भारत के राष्ट्रीय चिह्न
◆  राष्ट्रीय प्रतीक (National Symbol)-भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तम्भ के शीर्ष भाग की अनुकृति है। भारत सरकार ने इसे 26 जनवरी, 1950 ई० को अपनाया । प्रतीक के नीचे मुंडकोपनिषद् में लिखा सूत्र ‘सत्यमेव जयते’ देवनागरी लिपि में अंकित है ।
◆ राष्ट्रीय ध्वज (National Flag)—तीन पट्टियाँ वाला तिरंगा, गहरा केसरिया (ऊपर), सफेद (बीच) और गहरा हरा रंग (सबसे नीचे) है । सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है जिसमें 24 तीलियाँ हैं तथा इसे सारनाथ में अशोक के सिंह स्तम्भ पर बने चक्र से लिया गया है । ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 3 : 2 है। भारत के संविधान सभा ने राष्ट्र ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई, 1947 ई० को अपनाया । राष्ट्रीय ध्वज का केसरिया रंग जागृति, शौर्ष तथा त्याग का, सफेद रंग सत्य एवं पवित्रता का, एवं हरा रंग जीवन समृद्धि का प्रतीक है। सर्वप्रथम 27 दिसम्बर, 1911 को काँग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में लगाया गया था ।
◆  भारतीय ध्वज संहिता 2002 के अनुसार सभी भारतीय नागरिकों एवं निजी संस्थाओं आदि को भी राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शन का अधिकार है ।
◆  23 जनवरी, 2004 को एक महत्त्वपूर्ण विनिर्णय में उच्चतम न्यायालय ने यह घोषणा की कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अ) के अधीन राष्ट्रीय ध्वज फहराना नागरिकों का मूल अधिकार है ।
नोट: भारत के राष्ट्रीय ध्वज का पहली बार प्रदर्शन 14 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि में हुआ ।
◆  राष्ट्र गान (National Anthem) – रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित ‘जन-गण-मण’ को संविधान सभा ने 24 जनवरी, 1950 ई० को भारत का ‘राष्ट्र गान’ स्वीकार किया । इसके गायन का समय 52 सेकेण्ड है । इसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 1912 ई० में ‘तत्व बोधिनी’ में ‘भारत भाग विधाता’ शीर्षक से प्रकाशित किया था ।
◆  राष्ट्र गीत (National Song)– बकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में उन्हीं के द्वारा रचित ‘वन्दे मातरम्’ को राष्ट्र गीत के रूप में 26 जनवरी, 1950 ई० को स्वीकार किया गया । इसे सर्वप्रथम 1896 ई० में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था । इस गीत को गाने का समय 1 मिनट और पाँच सेकेण्ड है । है
◆ राष्ट्रीय कैलेन्डर– ग्रिगेरियन कैलेन्डर के साथ देश भर के लिए शक संवत् पर आधारित राष्ट्रीय पंचांग को सरकारी प्रयोग के लिए 22 मार्च, 1957 ई० को अपनाया गया । इसका पहला महीना चैत्र है । यह सामान्यतः सामान्य वर्ष में 21 मार्च को एवं लीप वर्ष में 22 मार्च को प्रारंभ होता है ।
◆  राष्ट्रीय पुष्प- भारत का राष्ट्रीय पुष्प कमल (नेलम्बों न्यूसिफेरा गार्टन) हैं।
◆  राष्ट्रीय पक्षी– भारत का राष्ट्रीय पक्षी मयूर (पावो क्रिस्टेटस) है ।
◆  राष्ट्रीय पशु- भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ (पैंथरा टाइग्रिस लिन्नायस) है ।
34. संसद की वित्तीय समितियाँ
1. प्राक्कलन समिति
◆  इस समिति में लोक सभा के 30 सदस्य होते हैं। इसमें राज्य सभा के सदस्यों को शामिल नहीं किया जाता है ।
◆ समिति के सदस्यों का चुनाव प्रत्येक वर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से किया जाता है ।
◆  इसके सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है ।
◆  यह समिति सरकारी खर्च में कैसे कमी लाई जाय, संगठन में कैसे कुशलता लाई जाय, तथा प्रशासन में कैसे सुधार किए जाय आदि विषयों पर रिपोर्ट देती है ।
◆  प्राक्कलन समिति के प्रतिवेदन पर सदन में बहस नहीं होती है, परन्तु यह समिति अपना कार्य वर्ष भी करती है और अपना दृष्टिकोण सदन के समक्ष रखती है ।
2. लोक लेखा समिति
◆  प्राक्कलन समिति को जुड़वा बहन’ के रूप में ज्ञात इस समिति में 22 सदस्य होते हैं जिसमें 15 सदस्य लोक सभा द्वारा तथा 7 सदस्य राज्य सभा द्वारा एक वर्ष के लिए निर्वाचित किए जाते हैं ।
◆  1967 ई० से स्थापित प्रथा के अनुसार इस समिति के अध्यक्ष के रूप में विपक्ष के किसी सदस्य को नियुक्त किया जाता है ।
◆  लोक लेखा समिति में राज्य सभा के सदस्यों को यह सदस्य माना जाता है तथा उन्हें मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं है ।
लोक लेखा समिति का मुख्य कार्य
(1) यह समिति भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा दिया गया लेखा-परीक्षण सम्बन्धी प्रतिवेदनों की जाँच करती है ।
(ii) भारत सरकार के व्यय के लिए सदन द्वारा प्रदान की गयी राशियों का विनियोग दर्शाने वाली लंखाओं की जाँच करना !
(iii) संसद द्वारा प्रदान की गई धनराशि के अतिरिक्त को व्यय किया गया हो, तो समिति उन परिस्थितियों की जाँच करती है, जिसके कारण अतिरिक्त व्यय करना पड़ा ।
( iv ) समिति राष्ट्रपति के विनीय मामलों के संचालन में अप-व्यय, भ्रष्टाचार, अकुशलता में कमी के किसी प्रमाण को खोज सकती है ।
3. सरकारी उपक्रमों की समिति
◆  इस समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिनमें से 15 लोक सभा तथा 7 राज्य सभा द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं ।
◆  समिति का अध्यक्ष लोक सभा अध्यक्ष द्वारा नामजद किया जाता है ।
◆  इस समिति के निम्न कार्य हैं
1. सरकारी उपक्रमों के प्रतिवेदनों और लेखाओं की और उन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों की जाँच करना ।
2. ऐसे विषयों की जाँच करना, जो सदन या अध्यक्ष द्वारा निर्दिष्ट किए जाएँ ।
4.  कुछ अन्य मुख्य समितियाँ
◆  कार्य-मंत्रणा समिति — लोक सभा की कार्य मंत्रणा समिति में अध्यक्ष सहित 15 सदस्य होते हैं । लोक सभा का अध्यक्ष इसका पदेन अध्यक्ष होता है। राज्य सभा की कार्यमंत्रणा समिति में इसकी सभा का सभापति इसका पदेन सभापति होता है ।
◆ गैरसरकारी सदस्यों के विधेयकों तथा संकल्पों संबंधी समिति—इसका गठन लोक सभा में किया जाता है । इस समिति में 15 सदस्य होते हैं। लोक सभा का उपाध्यक्ष इस समिति का अध्यक्ष होता है ।
◆ नियम समिति- लोक सभा की नियम समिति में लोक सभा अध्यक्ष सहित 15 सदस्य होते हैं, जबकि राज्य सभा की नियम समिति में सभापति एवं उपसभापति सहित 16 सदस्य होते हैं । लोक सभा अध्यक्ष एवं राज्य सभा के सभापति अपने-अपने संदन की समितियों के पदेन अध्यक्ष होते हैं ।
5. अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों की कल्याण संबंधी समिति—
इसमें 30 सदस्य शामिल किए जाते हैं। इसमें 20 लोक सभा तथा 10 राज्य सभा के सदस्य होते हैं ।
6. ग्रंथालय समिति—
इसमें 9 सदस्य होते हैं, लोक सभा अध्यक्ष द्वारा मनोनीत 6 लोक सभा सदस्य तथा राज्य सभा के सभापति द्वारा मनोनीत 3 सदस्य शामिल किए जाते हैं। इस समिति का गठन प्रत्येक वर्ष किया जाता है ।
35. पंचायती राज
◆ पंचायती राज का शुभारम्भ स्वतंत्र भारत में 2 अक्टूबर, 1959 ई० को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के द्वारा राजस्थान राज्य के नागौर जिला में हुआ ।
◆ 11 अक्टूबर, 1959 ई० को पं० नेहरू ने आन्ध्र प्रदेश राज्य में पंचायती राज का प्रारंभ किया ।
 73वां संविधान संशोधन
◆ 73वाँ संविधान संशोधन पंचायती राज से संबंधित है । इसके द्वारा संविधान के भाग-9 अनुच्छेद 243 (क से ण तक) तथा अनुसूची-11 का प्रावधान किया गया है ।
73वां संविधान संशोधन की मुख्य  बातें
(i) इसके द्वारा पंचायती राज के त्रिस्तरीय ढाँचे का प्रावधान किया गया है । ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखण्ड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् के गठन की व्यवस्था की गयी है ।
(ii) पंचायती राज संस्था के प्रत्येक स्तर में एक तिहाई स्थानों पर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी है ।
(iii) इसका कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित किया गया है ।
(iv) राज्य की संचित निधि से इन संस्थाओं को अनुदान देने की व्यवस्था की गयी है ।
नोट: 73वें संविधान संशोधन के बाद पंचायती राज अधिनियम का निर्माण करने वाले प्रथम राज्य कर्नाटक है ।
74वां संविधान संशोधन 
◆  74वां संविधान संशोधन नगर पालिकाओं से संबंधित है । इसके द्वारा संविधान के भाग-9 क, अनुच्छेद 243  (त सेय, छ तक) एवं 12वीं अनुसूची का प्रावधान किया गया है।
74 वां संविधान संशोधन की मुख्य बातें
(a) नगरपालिकाएँ तीन प्रकार की होंगी –
(i) नगर पंचायत —ऐसा ग्रामीण क्षेत्र जो नगर क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा हो ।
(ii) नगर परिषद्-छोटे नगर क्षेत्र के लिए |
(iii) नगर निगम – बड़े नगर क्षेत्र के लिए ।
(b) इन संस्थानों में महिलाओं के लिए 1/3 भाग स्थान आरक्षित हैं।
(c) अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
(d) नगरीय संस्थाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा । विघटन की स्थिति में छह माह के अन्दर चुनाव कराना है ।
◆ 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 25.4.1993 ई० से और 74वां संविधान संशोधन 1.6.1993 ई० से प्रवृत्त हुआ है ।
नोट: नगर-निगम की स्थापना सर्वप्रथम मद्रास में 1687 ई० में की गयी थी ।
राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करने के लिए आवश्यक शर्तें
(a) लोक सभा आम चुनाव अथवा राज्य विधान सभा चुनाव में किन्हीं चार अथवा अधिक राज्यों में कुल डाले गए वैध मतों का छह प्रतिशत प्राप्त करना जरूरी होगा।
(b) इसके अलावे इसे किसी एक राज्य अथवा राज्यों से विधान सभा की कम से कम चार सीटें जीतनी होंगी ।
(c) लोक सभा में दो प्रतिशत सीटें हों और ये कम-से-कम तीन विभिन्न राज्यों में हासिल की गयी हों ।
◆  24 मार्च, 1999 ई० की जारी अधिसूचना के अनुसार क्षेत्रीय दलों की संख्या 36 है।
36. महत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ 
1. शून्य काल संसद के दोनों सदनों में प्रश्न काल के ठीक बाद के समय को शून्य काल कहा जाता है । यह 12 बजे प्रारम्भ होता है और एक बजे दिन तक चलता है । शून्य काल का लोक सभा या राज्य सभा की प्रक्रिया तथा संचालन नियम में कोई उल्लेख नहीं है। इस काल अर्थात् 12 बजे से 1 बजे तक के समय को शून्यकाल का नाम समाचारपत्रों द्वारा दिया गया । इस काल के दौरान सदस्य अविलम्बनीय महत्त्व के मामलों को उठाते हैं तथा उस पर तुरंत कार्यवाही चाहते हैं ।
2. सदन का स्थगन – सदन के स्थगन द्वारा सदन में काम-काज को विनिर्दिष्ट समय के लिए स्थगित कर दिया जाता है । यह कुछ घंटे, दिन या सप्ताह का भी हो सकता है, जबकि सत्रावसान द्वारा सत्र की समाप्ति होती है ।
3. विघटन–विघटन केवल लोक सभा का ही हो सकता है। इससे लोक सभा का अन्त हो जाता है ।
4. अनुपूरक प्रश्न – सदन में किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष की अनुमति से किसी विषय, जिसके सम्बन्ध में उत्तर दिया जा चुका है, के स्पष्टीकरण हेतु अनुपूरक प्रश्न पूछने की अनुमति प्रदान की जाती है ।
5. तारांकित प्रश्न – जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरन्त सदन में चाहता है उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है । तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा तारांकित प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं । इस प्रश्न का तारा लगाकर अन्य प्रश्नों से इसका भेद किया जाता है ।
6. अतारांकित प्रश्न – जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य लिखित चाहता है, उन्हें अतारांकित प्रश्न कहा जाता है । अतारांकित प्रश्न का उत्तर सदन में नहीं दिया जाता और इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते ।
7. अल्प सूचना प्रश्न – जो प्रश्न अविलम्बनीय लोक महत्त्व का हो तथा जिन्हें साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि से कम सूचना देकर पूछा जा सकता है, उन्हें अल्प-सूचना प्रश्न कहा जाता है ।
8. स्थगन प्रस्ताव–स्थगन प्रस्ताव पेश करने का मुख्य उद्देश्य किसी अविलम्बनीय लोक महत्त्व के मामले की ओर सदन का ध्यान आकर्षिक करना है । जब इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है, जब सदन अविलम्बनीय लोक महत्त्व के निश्चित मामले पर चर्चा करने के लिए सदन का नियमित कार्य रोक देता है। इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए न्यूनतम 50 सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है ।
9. संचित निधि (Consolidated Fund) संविधान के अनुच्छेद 266 में संचित निधि का प्रावधान है। संचित निधि से धन संसद में प्रस्तुत अनुदान माँगों के द्वारा ही व्यय किया जाता है । राज्यों को करों एवं शुल्कों में से उनका अंश देने के बाद जो धन बचता है, निधि में डाल दिया जाता है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक आदि के वेतन तथा भो इसी निधि पर भारित होते हैं ।
10. आकस्मिक निधि (Contingency Fund)— संविधान के अनुच्छेद 267 के अनुसार भारत सरकार एक आकस्मिक निधि की स्थापना करेगी। इसमें जमा धनराशि का व्यय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किया जाता है । संसद की स्वीकृति के बिना इस मद से धन नहीं निकाला जा सकता है। विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति अग्रिम रूप से इस निधि से धन निकाल सकते हैं ।
11. आधे घंटे की चर्चा – जिन प्रश्नों का उत्तर सदन में दे दिया गया हो, उन प्रश्नों से उत्पन्न होने वाले मामलों पर चर्चा लोक सभा में सप्ताह में तीन दिन, यथा— सोमवार, बुधवार तथा शुक्रवार को बैठक के अंतिम आधे घंटे में की जा सकती है । राज्य सभा में ऐसी चर्चा किसी दिन, जिसे सभापति नियत करे, सामान्यत: 5 बजे से 5.30 बजे के बीच की जा सकती है । ऐसी चर्चा का विषय पर्याप्त लोक महत्त्व का होना वाहिए तथा विषय हाल के किसी तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना का प्रश्न रहा हो और जिसके उत्तर के किसी तथ्यात्मक मामले का स्पष्टीकरण आवश्यक हो । ऐसी चर्चा को उठाने की सूचना कम से कम दिन पूर्व दी जानी चाहिए ।
-12. अल्पकालीन चर्चाएँ— भारत में इस प्रथा की शुरुआत 1953 ई० के बाद हुई । इसमें लोक महत्त्व के प्रश्न पर सदन का ध्यान आकर्षित किया जाता है। ऐसी चर्चा के लिए स्पष्ट कारणों सहित सदन के महासचिव को सूचना देना आवश्यक होता है । इस सूचना पर कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर होना भी आवश्यक है ।
13. विनियोग विधेयक–विनियोग विधेयक में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित धन तथा सरकार के खर्च हेतु अनुदान की माँग शामिल होती है। भारत की संचित निधि में से कोई धन विनियोग विधेयक के अधीन ही निकाला जा सकता है !
14. लेखानुदान — जैसा कि विदित हैं, विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद ही भारत की संचित निधि से कोई रकम निकाली जा सकती है; किन्तु सरकार को इस विधेयक के पारित होने के पहले भी रुपयों की आवश्यकता हो सकती है । अनुच्छेद-116 (क) के अन्तर्गत लोक सभा लेखा-अनुदान (Vote on Account) पारित कर सरकार के लिए एक अग्रिम राशि मंजूर कर सकती है, जिसके बारे में बजट-विवरण देना सरकार के लिए संभव नहीं है ।
15. वित्त विधेयक (Finance Bill) –संविधान का अनुच्छेद-112 वित्त विधेयक को परिभाषित करता है । जिन वित्तीय प्रस्तावों को सरकार आगामी वर्ष के लिए सदन में प्रस्तुत करती है, उन वित्तीय प्रस्तावों को मिलाकर वित्त विधेयक की रचना होती है। सामान्यत: वित्त विधेयक उस विधेयक को कहते हैं, जो राजस्व या व्यय से संबंधित होता है । संसद में प्रस्तुत सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं हो सकते । वित्त विधेयक, धन विधेयक है या नहीं, इसे प्रमाणित करने का अधिकार केवल लोक सभा अध्यक्ष को है।
16. धन विधेयक संसद में राजस्व एकत्र करने अथवा अन्य प्रकार से धन से संबद्ध विधेयक को धन विधेयक कहते हैं । संविधान के अनुच्छेद-110 (1) के उपखण्ड (क) से (छ) तक में उल्लिखित विषयों से संबंधित विधेयकों को धन विधेयक कहा जाता है। धन विधेयक केवल लोक सभा में ही पेश किया जाता है अन्धन विधेयक को राष्ट्रपति पुनः विचार के लिए लौटा नहीं सकता है ।
17. अनुपूरक अनुदान– यदि विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई राशि अपर्याप्त पायी जाती है या वर्ष के बजट में उल्लिखित न की गई और किसी नयी सेवा पर खर्च की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है, तो राष्ट्रपति एक अनुपूरक अनुदान संसद के समक्ष पेश करवाएगा । अनुपूरक अनुदान और विनियोग विधेयक दोनों के लिए एक ही प्रक्रिया विहित की गई है ।
18. बजट सत्र—यह सत्र फरवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह के सोमवार को आरंभ होता है । इसे बजट सत्र इसलिए कहते हैं कि इस सत्र में आगामी वित्तीय वर्ष का अनुमानित बजट प्रस्तुत, विचारित और पारित किया जाता है ।
19. सामूहिक उत्तरदायित्व अनुच्छेद-75 (3) के अनुसार मंत्रिपरिषद् लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। इसका अभिप्राय यह है कि वह अपने पद पर तब तक बनी  रह उसे निम्न सदन अर्थात् लोक सभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त है । लोक सभा का विश्वास खोते ही मंत्रिपरिषद् को तुरंत पद- त्याग करना होगा |
20. कटौती प्रस्ताव – सत्तापक्ष द्वारा सदन की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत अनुदान की माँगों में से किसी भी प्रकार की कटौती के लिए विपक्ष द्वारा रखे गये प्रस्ताव को ‘कटौती प्रस्ताव’ कहा . जाता है। सरकार की नीतियों की अस्वीकृति को दर्शाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायः एक रुपया की कटौती का प्रस्ताव किया जाता है जिसका अर्थ यह भी होता है कि प्रस्ताव माँग के मुद्दों का है स्पष्ट उल्लेख किया जाए ।
21. अविश्वास प्रस्ताव – अविश्वास प्रस्ताव सदन में विपक्षी दल के किसी सदस्य द्वारा रखा जाता है । प्रस्ताव के पक्ष में कम-से-कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक है तथा प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के 10 दिन के अन्दर इस पर चर्चा होना भी आवश्यक है । चर्चा के बाद अध्यक्ष मतदान द्वारा निर्णय की घोषणा करता है ।
22. मूल प्रस्ताव – मूल प्रस्ताव अपने आप में सम्पूर्ण प्रस्ताव होता है, जो सदन के अनुमोदन के लिए पेश किया जाता है । मूल प्रस्ताव को इस तरह से बनाया जाता है कि उससे सदन के फैसले की अभिव्यक्ति हो सके । निम्नलिखित प्रस्ताव मूल प्रस्ताव होते हैं
(i) राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव ।
(ii) अविश्वास प्रस्ताव – इस प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य मंत्रिपरिषद् में अपना अविश्वास व्यक्त करता है और यदि यह प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है ।
(iii) लोक सभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या राज्य सभा के उपसभापति के निर्वाचन के लिए या हटाने के लिए प्रस्ताव ।
(iv) विशेषाधिकार प्रस्ताव – यह प्रस्ताव संसद के किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब उसे यह प्रतीत होता है कि मंत्रिपरिषद् के किसी सदस्य ने संसद में झूठा तथ्य प्रस्तुत करके सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है ।
23. स्थानापन्न प्रस्ताव —जो प्रस्ताव मूल प्रस्ताव के स्थान पर और उसके विकल्प के रूप में पेश किये जाते हैं, उन्हें स्थानापन्न प्रस्ताव कहा जाता है ।
24. अनुषंगी प्रस्ताव – इस प्रस्ताव को विभिन्न प्रकार के कार्यों की अगली कार्यवाही के लिए नियमित उपाय के रूप में पेश किया जाता है ।
25. प्रतिस्थापन प्रस्ताव- यह किसी अन्य प्रश्न पर विचार-विमर्श के दौरान पेश किया जाता है। कोई सदस्य किसी विधेयक पर विचार करने के प्रस्ताव के सम्बन्ध में प्रतिस्थापन प्रस्ताव पेश करता है ।
26. संशोधन प्रस्ताव – यह प्रस्ताव मूल प्रस्ताव में संशोधन करने के लिए पेश किया जाता है ।
27. अनियमित दिन वाले प्रस्ताव-जिस प्रस्ताव को अध्यक्ष द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है, लेकिन उस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के लिए कोई समय नियत नहीं किया है 1 जाता, उसे अनियमित दिन वाला प्रस्ताव कहा जाता
28. अध्योदश- राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल संसद अथवा विधान मंडल के सत्रावसान की स्थिति में आवश्यक विषयों से संबंधित अध्यादेश का प्रख्यापन करते हैं। अध्यादेश में निहित विधि संसद अथवा विधान मंडल के अगले सत्र की शुरुआत के छह सप्ताह के बाद प्रवर्तन योग्य नहीं रह जाती यदि संसद अथवा विधान मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है ।
29. निन्दा प्रस्ताव – निन्दा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद् अथवा किसी एक मंत्री के विरुद्ध उसकी विफलता पर खेद अथवा रोष व्यक्त करने के लिए किया जाता है । निन्दा प्रस्ताव में निन्दा के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक होता है । निन्दा प्रस्ताव नियमानुसार है या नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष करता है ।
30. धन्यवाद प्रस्ताव – राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद की कार्यमंत्रणा समिति की सिफारिश पर तीन-चार दिनों तक धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है। चर्चा प्रस्तावक द्वारा आरम्भ होती है तथा उसके बाद प्रस्तावक का समर्थक बोलता है । इस चर्चा में राष्ट्रपति के नाम का . उल्लेख नहीं किया जाता है, क्योकि अभिभाषण की विषय-वस्तु के लिए सरकार उत्तरदायी होती । अन्त में धन्यवाद प्रस्ताव मतदान के लिए रखा जाता है तथा उसे स्वीकृत किया जाता है ।
31. विश्वास प्रस्ताव – बहुमत का समर्थन प्राप्त होने में सन्देह होने की स्थिति में सरकार द्वारा लोक सभा में विश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह सिद्ध करना होता है कि सदन का बहुमत उसके साथ है। विश्वास प्रस्ताव के पारित न होने की दशा में सरकार को त्यागपत्र देना आवश्यक हो जाता है ।
 32. बैंक बेंचर (Back Bencher) सदन में आगे के सचिवों तथा विरोधी दल के नेताओं के लिए आरक्षित रहते हैं । पीछे का स्थान नियंत रहता है । पीछे बैठने वाले सदस्यों को ही बैक बेंचर कहा जाता है
33. गुलेटिन-गुलेटिन वह संसदीय प्रक्रिया है जिसमें सभी माँगों को जो नियत तिथि तक न निपटायी गई हो बिना चर्चा के ही मतदान के लिए रखा जाता है ।
34. काकस (Caucus)– किसी राजनीतिक दल अथवा गुट के प्रमुख सदस्यों की बैठक को ‘काकस’ कहते हैं । इन प्रमुख सदस्यों द्वारा तय की गई नीतियों से ही पूरा दल संचालित होता है।
35. त्रिशंकु संसद-आम चुनाव में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में त्रिशंकु संसद की रचना होती हैं । त्रिशंकु संसद की स्थिति में दल-बदल जैसे कुप्रवृतियों को प्रोत्साहन मिलता है। देश में नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं एवं बारहवीं लोक सभा की यही स्थिति रही।
36. नियम-193–इस नियम के अंतर्गत सदस्य अत्यावश्यक एवं अविलम्बनीय विषय पर तुरंत अल्पकालिक चर्चा की माँग कर सकते हैं। यह नियम 1953 ई० में बनाया गया था। इससे सदन की नियमावली में अविलम्ब चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव के अतिरिक्त अन्य कोई साधन सदस्यों के पास न था, इसीलिए यह नियम बनाया गया । इसके अंतर्गत सदस्य किसी भी सार्वजनिक महत्त्व के अविलंबनीय विषय पर अल्पकालिक चर्चा के लिए नोटिस दे सकते हैं । यह चर्चा किसी प्रस्ताव के माध्यम से नहीं होती। इस कारण चर्चा के अंत में सदन में मत-विभाजन नहीं होता। केवल सभी पक्ष के सदस्यों को सम्बद्ध विषय पर अपने विचार प्रकट करने का अवसर मिलता है ।
37. न्यायिक पुनर्विलोकन – भारत में न्यायपालिका को न्यायिक पुनर्विलोकन को शक्ति प्राप्त है । न्यायिक पुनर्विलोकन के अनुसार न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि विधान मंडल द्वारा पारित की गयी विधियाँ अथवा कार्यपालिका द्वारा दिए गए आदेश संविधान के प्रतिकूल हैं, तो वह उन्हें निरस्त घोषित कर सकते हैं ।
38. गणपूर्त्ति (Quorum)– सदन में किसी बैठक के लिए गणपूर्ति अध्यक्ष सहित कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग होती है। बैठक शुरू होने के पूर्व यदि गणपूर्ति नहीं है तो गणपूर्ति घंटी बजाई जाती है । अध्यक्ष तभी पीठासीन होता है, जब गणपूर्ति हो जाती है।
 39. प्रश्न – काल— दोनों सदनों में प्रत्येक बैठक के प्रारम्भ के एक घंटे तक प्रश्न किये जाते हैं और उनके उत्तर दिये जाते हैं । इसे प्रश्न काल कहा जाता है। प्रश्न काल के दौरान सदस्यों को सरकार के कार्यों पर आलोचन-प्रत्यालोचन का समय मिलता है । इसके दो लाभ हैं- एक तो सरकार जनता की कठिनाइयों एवं अपेक्षाओं के प्रति सजग रहती है। दूसरे, इस दौरान सरकार अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी सदन को देती है ।
40. दबाव समूह ( Pressure Group) व्यक्तियों के ऐसे समूह जिनके हित समान होते हैं, ‘दबाव समूह’ कहे जाते हैं । ये ग्रुप अपने हित के लिए शासन – तंत्र पर विभिन्न प्रकार के दबाव बनाते हैं ।
41. पंगु सत्र (Lameduck Session)–एक विधान मंडल के कार्यकाल की समाप्ति तथा दूसरे विधान मंडल के कार्यकाल की शुरुआत के बीच के काल में सम्पन्न होने वाले सत्र को ‘पंगु – सत्र’ कहा जाता है । यह व्यवस्था केवल अमेरिका में है
42. सचेतक (Whip)— राजनीतिक दल में अनुशासन बनाए रखने के लिए सचेतक की नियुक्ति प्रत्येक संसदीय दल द्वारा की जाती है। किसी विषय विशेष पर मतदान होने की स्थिति में सचेतक अपने दल के सदस्यों को मतदान विषयक निर्देश देता है। सचेतक के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करने वाले सदस्य के विरुद्ध दल-बदल निरोध कानून के अन्तर्गत कार्यवाही की जाती है ।
37. संविधान में किए गए प्रमुख संशोधन
◆ पहला संशोधन (1951 ई०) इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया । भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई । साथ ही, इस संशोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया, जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परीक्षा नहीं की जा सकती है ।
◆  दूसरा संशोधन (1952 ई०) — इसके अंतर्गत 1951 ई० की जनगणना के आधार पर लोक सभा में प्रतिनिधित्व को पुनर्व्यवस्थित किया गया ।
◆ तीसरा संशोधन (1954 ई०)- इसके अंतर्गत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची की तैंतीसवीं प्रविष्टि के स्थान पर खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा, कच्चा कपास, जूट आदि को रखा गया, जिसके उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर सरकार उस पर नियंत्रण लगा सकती है ।
◆ चौथा संशोधन (1955 ई०) — इसके अंतर्गत व्यक्तिगत संपत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती ।
◆  छठा संशोधन (1956 ई०) – इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची के संघ सूची में परिवर्तन कर अंतरराज्यीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केन्द्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया ।
◆ सातवां संशोधन (1956 ई०)- इस संशोधन द्वारा पुनर्गठन किया गया, जिसमें पहले के तीन श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए, राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया। साथ ही, इनके अनुरूप केन्द्र एवं राज्य की विधान पालिकाओं में सीटों को पुनव्यवस्थित किया गया ।
◆ आठवां संशोधन (1959 ई०)-इसके अंतर्गत केन्द्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति एवं आंग्ल- भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्षों के लिए अर्थात् 1970 ई० तक बढ़ा दिया गया ।
◆  नौवां संशोधन (1960 ई०)- इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्तों के अनुसार बेरुबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिए गए ।
◆  दसवां संशोधन (1961 ई०)– इसके अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षेत्रों – दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया ।
◆  ग्यारहवां संशोधन (1961 ई०)– इसके अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के प्रावधानों में परिवर्तन कर, इस संदर्भ में दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को बुलाया गया । साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि निर्वाचक मंडल में पद की रिक्तता के आधार पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती नहीं दी जा सकती ।
◆  बारहवां संशोधन (1962 ई०) इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमण एवं दीव को भारत में केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया ।
◆ तेरहवां संशोधन (1962 ई०) -इसके अंतर्गत नगालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपनाकर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया ।
◆ चौदहवां संशोधन (1963 ई०) इसके द्वारा केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया। साथ ही, इसके द्वारा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमण और दीव तथा पुदुचेरी केन्द्र शासित प्रदेशों में विधान पालिका एवं मंत्रिपरिषद् की स्थापना की गई ।
◆  पंद्रहवां संशोधन (1963 ई०)– इसके अन्तर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की उच्च न्यायालय में नियुक्ति से संबंधित प्रावधान बनाए गए ।
◆  सोलहवां संशोधन (1963 ई०) –इसके द्वारा देश की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के प्रावधान रखे गए। साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत ‘मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखण्डता को बनाए रखूँगा’ जोड़ा गया ।
◆ सत्रहवां संशोधन (1964 ई०) – इसमें सम्पत्ति के अधिकारों में और भी संशोधन करते हुए कुछ अन्य भूमि सुधार प्रावधानों को नौवीं अनुसूची में रखा गया, जिनकी वैधता की परीक्षा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नहीं की जा सकती थी ।
◆ अठारहवां संशोधन (1966 ई०)– इसके अंतर्गत पंजाब का भाषायी आधार पर पुनर्गठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र के पंजाब एवं हिन्दी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया । पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए तथा चंडीगढ़ को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया ।
◆  उन्नीसवां संशोधन (1966 ई०)– इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया एवं उच्च न्यायालय को चुनाव याचिकाएँ सुनने का अधिकार दिया गया ।
◆  बीसवां संशोधन (1966 ई०) – इसके अंतर्गत अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गई ।
◆  इक्कीसवां संशोधन (1967 ई०)– इसके द्वारा सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत पंद्रहवीं भाषा के रूप में शामिल किया गया ।
◆  बाईसवां संशोधन (1969 ई०)– इसके द्वारा असम से अलग करके एक नया राज्य मेघालय बनाया गया ।
◆  तेईशवा संशोधन (1969 ई०)- इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया ।
◆  चौबीसवां संशोधन (1971 ई०) – इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया कि वह संविधान के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं, संशोधित कर सकती है। साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया कि संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा तो इस पर राष्ट्रपति द्वारा सम्मति दिया जाना बाध्यकारी होगा ।
◆  छब्बीसवां संशोधन (1971 ई०)– इसके अन्तर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की विशेष उपाधियों एवं उनके प्रिवी-पर्स को समाप्त कर दिया गया ।
◆ सत्ताईसवां संशोधन (1971 ई०) – इसके अन्तर्गत मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश की केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया ।
◆  उनतीसवां संशोधन (1972 ई०)- इसके अन्तर्गत केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1969_ तथा केरल भू- सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती नं दी जा सके ।
◆  इकतीसवां संशोधन (1973 ई०) इसके द्वारा लोक सभा के सदस्यों की संख्या 525 से 545 कर दी गई तथा केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व 25 से घंटाकर 20 कर दिया गया।
◆  बत्तीसवां संशोधन (1974 ई०)– इसके द्वारा संसव एवं विधान, पालिकाओं के सदस्यों द्वारा क्याव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीम देना अबैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार दिया गया कि वह सिर्फ स्वेच्छा से किए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे ।
◆ चौंतीसवां संशोधन (1974 ई०) इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों द्वारा पारित बीस. भू-सुधार अधिनियमों को नौवीं अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्त किया गया ।
◆  पैंतीसवां संशोधन (1974 ई०) इसके अंतर्गत सिक्किम का संरक्षित राज्यों का दर्जा समाप्त कर उसे सम्बद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया ।
◆ छत्तीसवां संशोधन (1975 ई०)– इसके अंतर्गत सिक्किम को भारत का बाईसवां राज्य बनाया गया ।
◆  सैंतीसवां संशोधन (1975 ई०) – इसके तहत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया ।
◆ उनतालीसवां संशोधन (1975 ई०)– इसके द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोक सभाध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों को न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया ।
◆  इकतालीसवां संशोधन (1976 ई०)– इसके द्वारा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवा मुक्ति की आयु सीमा 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई, पर संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा निवृत्ति की अधिकतम आयु 65 वर्ष रहने दी गई ।
◆  बयालीसवां संशोधन (1976 ई०)– इसके द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन लाए गए, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित थे—(क) संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘ एकता और अखण्डता’ आदि शब्द जोड़े गए ।
(ख) सभी नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिश्चित की गई।
(ग) इसके अंतर्गत संविधान में दस मौलिक कर्त्तव्यों को अनुच्छेद 51 (क), भाग-iv क) के अंतर्गत जोड़ा गया ।
(घ) इसके द्वारा संविधान को न्यायिक परीक्षण से मुक्त किया गया ।
(ङ) सभी विधान सभाओं एवं लोक सभा की सीटों की संख्या को इस शताब्दी के अंत तक के स्थिर कर दिया गया ।
(च) लोक सभा एवं विधान सभाओं की अवधि को पाँच से छह वर्ष कर दिया गया ।
(छ) इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि किसी केन्द्रीय कानून की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के कानून की वैधता का उच्च न्यायालय ही परीक्षण करेगा । साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया कि किसी संवैधानिक वैधता के प्रश्न पर पाँच से अधिक न्यायाधीशों की बेंच द्वारा दो-तिहाई बहुमत से निर्णय दिया जाना चाहिए और यदि न्यायाधीशों की संख्या पाँच तक हो तो निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए ।
(ज) इसके द्वारा वन संपदा, शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण आदि विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची के अंतर्गत कर दिया गया ।
(झ) इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् एवं उसके प्रमुख प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेगा ।
 (ट) इसने संसद को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से निपटाने के लिए कानून बनाने के अधिकार दिए एवं सर्वोच्चता स्थापित की।
◆ चौवालीसवां संशोधन (1978 ई०) इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए ‘आंतरिक अशांति’ के स्थान पर ‘सैन्य विद्रोह’ का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग न हो। इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटा कर विधिक (कानूनी) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया । लोक सभा तथा राज्य विधान सभओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई । उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को करने की अधिकारिता प्रदान की गई ।
◆  पचासवां संशोधन (1984 ई०)– इसके द्वारा अनुच्छेद 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित करने, देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिए गए। साथ ही, इन सेवाओं द्वारा उचित कर्त्तव्यपालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिए गए।
◆  बावनवां संशोधन (1985 ई०)– इस संशोधन के द्वारा राजनीतिक दल-बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया। इसके अंतर्गत संसद या विधान मंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिह्न पर उन्होंने चुनाव लड़ा था, पर यदि किसी दल की संसदीय पार्टी के एक-तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी । दल-बदल विरोधी इन प्रावधानों को संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया ।
◆ तिरपनवां संशोधन (1986 ई०) – इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में खंड ‘जी’ जोड़कर मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया ।
◆  चौवनवां संशोधन (1986 ई०)– इसके द्वारा संविधान की दूसरी अनुसूची के भाग ‘डी’ में संशोधन कर न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि का अधिकार संसद को दिया गया ।
◆  पचपनवां संशोधन (1986 ई०)– इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया ।
◆  छप्पनवां संशोधन (1987 ई०)–इसके अंतर्गत गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया तथा दमन और दीव को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया । .
◆  सत्तावनवां संशोधन (1987 ई०)–इसके अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में मेघालय, मिजोरम, नगालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश की विधान सभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया ।
◆ अट्ठानवां संशोधन (1987 ई०)– इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिन्दी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया ।
◆ साठवां संशोधन (1988 ई०)– इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष कर दी गई ।
◆  इकसठवां संशोधन (1989 ई०) इसके द्वारा मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 लाने का प्रस्ताव था ।
◆  पैंसठवां संशोधन (1990 ई०) – इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है ।
◆  उनहत्तरवां संशोधन (1991 ई०) – दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया तथा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधान सभा और मंत्रिपरिषद् का उपबंध किया गया ।
◆  सत्तरवां संशोधन (1992 ई०) – दिल्ली और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया ।
◆  इकहत्तरवां संशोधन (1992 ई०) आठवीं अनुसूची में कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को सम्मिलित किया गया ।
◆  तिहत्तरवां संशोधन (1992-93ई०)- इसके अंतर्गत संविधान में ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गयी । इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है ।
◆  चौहत्तरवां संशोधन (1993 ई०)– इसके अंतर्गत संविधान में बारहवीं अनुसूची शामिल की गयी, जिसमें नगरपालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किये गये हैं।
◆  छिहत्तरवां संशोधन (1994 ई०)– इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का उपबन्ध करने वाली अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है ।
◆  अठहत्तरवां संशोधन (1995 ई०)– इसके द्वारा नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है। इस प्रकार नवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गयी है ।
◆  उन्नासीवां संशोधन (1999 ई०) अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन-जातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 ई० तक के लिए बढ़ा दी गयी है । इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केन्द्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29% हिस्सा मिलेगा ।
◆  बेरासीवां संशोधन (2000 ई०)-इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांकों में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है ।
◆  तिरासीवां संशोधन (2000 ई०) – इस संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है । अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होने के कारण उसे यह छूट प्रदान की गयी है ।
◆  चौरासीवां संशोधन (2001 ई०) इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोक सभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है ।
◆  पचासीवां संशोधन (2001 ई०)- सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति/जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था ।
◆  छियासीवां संशोधन (2002 ई०) इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अन्तर्गत संविधान में जोड़ा गया है। इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 तथा अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है ।
◆  सत्तासीवां संशोधन (2003 ई०) परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है।
◆  अठासीवां संशोधन (2003 ई०) सेवाओं पर कर का प्रावधान किया गया।
◆ नवासीवां संशोधन (2003 ई०)  अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक् राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था ।
◆  नब्बेवां संशोधन (2003 ई०) असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरकरार रखते हुए बोडोलैंड, टेरीटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा ।
◆  इक्कानवेवाँ संशोधन (2003 ई०)–दल बदल व्यवस्था में संशोधन, केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता, केन्द्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् के सदस्य संख्या क्रमश: लोक सभा तथा विधान सभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत होगा (जहाँ सदन की सदस्य संख्या 40-40 है, वहाँ अधिकतम 12 होगी)
◆  बेरानवेवाँ संशोधन (2003 ई०) संविधान की आठवीं अनुसूची में बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं का समावेश ।
◆  तीरानवेवाँ संशोधन (2006 ई०)–शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई है ।
38. संविधान के कुछ महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद
 अनुच्छेद 1  :  यह घोषणा करता है कि भारत ‘राज्यों का संघ’ है ।
अनुच्छेद 3  :  संसद विधि द्वारा नए राज्य बना सकती है तथा पहले से अवस्थित राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं एवं नामों में परिवर्तन कर सकती है ।
अनुच्छेद 5 : संविधान के प्रारंभ होने के समय भारत में रहने वाले वे सभी व्यक्ति यहाँ के नागरिक होंगे, जिनका जन्म भारत में हुआ हो, जिनके पिता या
 माता भारत के नागरिक हों या संविधान के प्रारंभ के समय से भारत में रह रहे हों ।
अनुच्छेद 53 : संघ की कार्यपालिका संबंधी शक्ति राष्ट्रपति में निहित रहेगी ।
अनुच्छेद64 : उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन अध्यक्ष होगा ।
अनुच्छेद 75: एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसके शीर्ष पर प्रधानमंत्री रहेगा, जिसकी सहायता एवं सुझाव के आधार पर राष्ट्रपति अपने कार्य संपन्न करेगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् के लिए किसी सलाह के पुनर्विचार को आवश्यक समझ सकता है, पर पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार वह कार्य करेगा। इससे संबंधित किसी विवाद की परीक्षा किसी न्यायालय में नहीं की जाएगी ।
अनुच्छेद 76 : राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी की नियुक्ति की जाएगी।
अनुच्छेद 78: प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य होगा कि वह देश के प्रशासनिक एवं विधायी मामलों तथा मंत्रिपरिषद् के निर्णयों के संबंध में राष्ट्रपति को सूचना दे, यदि राष्ट्रपति इस प्रकार की सूचना प्राप्त करना आवश्यक समझे ।
अनुच्छेद 86 : इसके अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा संसद को संबोधित करने तथा संदेश भेजने के अधिकार का उल्लेख है ।
अनुच्छेद 108  : यदि किसी विधेयक के संबंध में दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो गया हो तो संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान है ।
अनुच्छेद 110 धन विधेयक को इसमें पारिभाषित किया गया है ।
अनुच्छेद 111 : संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है । राष्ट्रपति उस विधेयक को सम्मति प्रदान कर सकता है या अस्वीकृत कर सकता है। वह संदेश के साथ या बिना संदेश के संसद को उस पर पुनर्विचार के लिए भेज सकता है, पर यदि दुबारा विधेयक को संसद द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह इसे अस्वीकृत नहीं करेगा।
 अनुच्छेद 112 : प्रत्येक वित्तीय वर्ष हेतु राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष बजट पेश किया जाएगा ।
अनुच्छेद 123 : संसद के अवकाश ( सत्र नहीं चलने की स्थिति) में राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार ।
अनुच्छेद 124 : इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के गठन का वर्णन है ।
 अनुच्छेद 129 : सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है ।
अनुच्छेद 148 : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
अनुच्छेद 163 : राज्यपाल के कार्यों में सहायता एवं सुझाव देने के लिए राज्यों में एक मंत्रिपरिषद् एवं इसके शीर्ष पर मुख्यमंत्री होगा, पर राज्यपाल के स्वविवेक संबंधी कार्यों में वह मंत्रिपरिषद् के सुझाव लेने के लिए बाध्य नहीं होगा ।
अनुच्छेद 169 : राज्यों में विधान परिषदों की रचना या उनकी समाप्ति विधान सभा द्वारा बहुमत से पारित प्रस्ताव तथा संसद द्वारा इसकी स्वीकृति से संभव है।
अनुच्छेद 200: राज्यों की विधायिका द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। वह इस पर अपनी सम्मति दे सकता है या इसे अस्वीकृत कर सकता है । वह इस विधेयक को संदेश के साथ या बिना संदेश के पुनर्विचार हेतु विधायिका को वापस भेज सकता है, पर पुनर्विचार के बाद दुबारा विधेयक आ जाने पर वह इसे अस्वीकृत नहीं कर सकता । इसके अतिरिक्त वह विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भी भेज सकता है ।
अनुच्छेद 213 : राज्य विधायिका के सत्र में नहीं रहने पर राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है ।
अनुच्छेद 214 : सभी राज्यों के लिए उच्च न्यायालय की व्यवस्था होगी ।
अनुच्छेद 226 : मूल अधिकारों के प्रवर्त्तन के लिए उच्च न्यायालय को लेख जारी करने की शक्तियाँ ।
अनुच्छेद 233:जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के  परामर्श से की जाएगी ।
अनुच्छेद 235 : उच्च न्यायालय का नियंत्रण अधीनस्थ न्यायालयों पर रहेगा ।
 अनुच्छेद 239 : केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा होगा । वह यदि उचित समझे तो बगल के किसी राज्य के राज्यपाल को इसके प्रशासन का दायित्व सौंप सकता है या एक प्रशासक की नियुक्ति कर सकता है । संसद सम्पूर्ण देश या इसके किसी हिस्से के लिए तथा राज्य विधानपालिका अपने राज्य या इसके किसी हिस्से के लिए कानून बना सकती है। विधि निर्माण संबंधी अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में निहित हैं।
अनुच्छेद 245 : संसद सम्पूर्ण देश या इसके किसी हिस्से के लिए तथा राज्य विधानपालिका अपने राज्य या इसके किसी हिस्से के लिए कानून बना सकती है।
अनुच्छेद 248 : विधि निर्माण संबंधी अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में निहित हैं।
अनुच्छेद 249 : राज्य सभा विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर लोक सभा को एक वर्ष के लिए कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है, यदि वह इसे राष्ट्रहित में आवश्यक समझे ।
अनुच्छेद 262 : अंतरराज्यीय नदियों या नदी-घाटियों के जल के वितरण एवं नियंत्रण से संबंधित विवादों के लिए संसद विधि द्वारा निर्णय कर सकती है।
 अनुच्छेद 263 : केन्द्र राज्य संबंधों में विवादों का समाधान करने एवं परस्पर सहयोग के क्षेत्रों के विकास के उद्देश्य से राष्ट्रपति एक अंतरराज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकता है ।
अनुच्छेद 266 : भारत की संचित निधि, जिसमें सरकार की सभी मौद्रिक अविष्टियाँ एकत्र रहेंगी, विधि-सम्मत प्रक्रिया के बिना इससे कोई भी राशि नहीं निकाली जा सकती है ।
अनुच्छेद 267 : संसद विधि द्वारा एक आकस्मिक निधि स्थापित कर सकती है, जिसमें अकस्मात उत्पन्न परिस्थितियों के लिए राशि एकत्र की जाएगी ।
 अनुच्छेद 275 : केन्द्र द्वारा राज्यों को सहायक अनुदान दिए जाने का प्रावधान ।
अनुच्छेद 280 : राष्ट्रपति हर पाँचवें वर्ष एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा, जिसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त चार अन्य सदस्य होंगे तथा जो राष्ट्रपति के पास केन्द्र एवं राज्यों के बीच करों के वितरण के संबंध में अनुशंसा करेगा ।
अनुच्छेद 300 क: राज्य किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं करेगा। पहले यह प्रावधान मूल अधिकारों के अंतर्गत था, पर संविधान के 44वें संशोधन, 1978 ई० द्वारा इसे अनुच्छेद 300 (क) में एक सामान्य वैधानिक (कानूनी) अधिकार के रूप में अवस्थित किया गया ।
अनुच्छेद 312 : राज्य सभा विशेष बहुमत द्वारा नई अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना की अनुशंसा कर सकती है ।
अनुच्छेद 315 : संघ एवं राज्यों के लिए एक लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाएगी ।
अनुच्छेद 324 : चुनावों के पर्यवेक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण संबंधी समस्त शक्तियाँ चुनाव आयोग में निहित रहेंगी ।
अनुच्छेद 326 लोक सभा तथा विधान सभाओं में चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा ।
अनुच्छेद 331: आंग्ल- भारतीय समुदाय के लोगों का राष्ट्रपति द्वारा लोक सभा मे मनोनयन संभव है, यदि वह समझे कि उनका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
अनुच्छेद 332 अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का विधानसभाओं में आरक्षण का प्रावधान ।
अनुच्छेद 333 : आंग्ल- समुदाय लोगों का विधान सभाओं में मनोनयन ।
अनुच्छेद 335 अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए विभिन्न सेवाओं में पदों पर आरक्षण का प्रावधान ।
अनुच्छेद 343 : संघ की अधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में लिखी गयी ‘हिन्दी’ होगीं ।
अनुच्छेद 347 : यदि किसी राज्य में पर्याप्त संख्या में लोग किसी भाषा को बोलते हों और उनकी आकांक्षा हो कि उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को मान्यता दी जाए तो इसकी अनुमति राष्ट्रपति दे सकता है ।
अनुच्छेद 351 : यह संघ का कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार एवं उत्थान करे ताकि वह भारत की मिश्रित संस्कृति के सभी अंगों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बने ।
अनुच्छेद 352 : राष्ट्रपति द्वारा आपात स्थिति की घोषणा, यदि वह समझता हो कि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा युद्ध, बाह्य आक्रमण या सैन्य विद्रोह के फलस्वरूप खतरे में हैं ।
अनुच्छेद 356 : यदि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट दी जाए कि उस राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल हो गया है तो वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है ।
अनुच्छेद 360 : यदि राष्ट्रपति यह समझता है कि भारत या इसके किसी भाग की वित्तीय स्थिरता एवं साख खतरे में है तो वह वित्तीय आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है ।
अनुच्छेद 365 : यदि कोई राज्य केन्द्र द्वारा भेजे गए किसी कार्यकारी निर्देश का पालन करने में असफल रहता है तो राष्ट्रपति द्वारा यह समझा जाना विधि-सम्मत होगा कि उस राज्य में संविधान तंत्र के अनुरूप प्रशासन चलने की स्थिति नहीं है और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता
अनुच्छेद 368 : संसद को संविधान के किसी भी भाग का संशोधन करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 370 : इसके अंतर्गत जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति का वर्णन है ।
अनुच्छेद 371 : कुछ राज्यों के विशेष क्षेत्रों के विकास के लिए राष्ट्रपति बोर्ड स्थापित कर सकता है, जैसे—महराष्ट्र, गुजरात, नगालैंड, मणिपुर इत्यादि ।
अनुच्छेद 394 क : राष्ट्रपति अपने अधिकार के अंतर्गत इस संविधान का हिन्दी भाषा में अनुवाद कराएगा ।
अनुच्छेद 395: भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947, भारत सरकार अधिनियम, 1953 तथा इनके अन्य पूरक अधिनियमों की, जिसमें प्रिवी कौंसिल क्षेत्राधिकार अधिनियम शामिल नहीं है, यहाँ रद्द किया जाता है।
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