भारतीय संविधान

भारतीय संविधान

          पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस से पूर्व साम्राज्यवाद की जटिल शृंखलाओं से भारतवर्ष आबद्ध था। अंग्रेजों की शोषण नीति एक शताब्दी तक भारत पर अपना अधिकार जमाए रही। जनता आरम्भ से ही क्षुब्ध थी। भारत की तपोभूमि पर जब से विदेशियों ने पदार्पण किया तभी से विद्रोह प्रारम्भ हो गए थे। उनका स्वरूप उत्तरोत्तर उग्र होता गया। भारतीयों ने अपना तन-मन-धन सब कुछ अमूल्य स्वतन्त्रता के यज्ञ में सहर्ष समर्पित कर दिया, उन्होंने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्ति की प्रतिज्ञा ली। अब तक भारतीयों का जीवन ब्रिटिश पार्लियामेंट के द्वारा विर्निमित संविधान के संकेतों पर चल रहा था, परन्तु उनके हृदय में अपना देश, अपना राज्य, अपनी सुख-सुविधा के लिये अपनी संविधान की अदम्य उत्कण्ठा प्रबल रूप से जागृत थी। भारतीय वीरों के त्याग और बलिदान सफल हुए। १५ अगस्त, सन् १९४७ को भारतीय भाग्याकाश स्वतन्त्रता के सूर्य से देदीप्यमान हो उठा । भारतीय स्वतन्त्रता के उन्मुक्त वातावरण में उनका हृदय पारावार आनन्द की उत्ताल तरंगों से आन्दोलित हो उठा । स्वतन्त्र भारत का अपना संविधान बनना प्रारम्भ हो गया । जनता के प्रतिनिधियों की विधान परिषद ने जनता को नये अधिकार और नये कर्त्तव्य प्रदान किए, जनता में अपार प्रसन्नता छा गई । समस्त देश में बड़ी धूमधाम से गणतन्त्र दिवस समारोह मनाया गया क्योंकि आज उसे अपना संविधान मिला था ।
          विधान परिषद की प्रथम बैठक १५ फरवरी, सन् १९४९ में हुई। इस सभा में जनप्रतिनिधियों के समक्ष विधान की रूप-रेखा प्रस्तुत की गई, उस पर गम्भीरता से विचार हुआ। भारतीय मनीषियों के एक वर्ष के अथक् एवं अनवरत परिश्रम ने संविधान को साकार रूप दे दिया । २६ जनवरी, १९५० से यह सर्वप्रिय संविधान भारत में लागू किया गया, इसे अन्तिम रूप देने में तीन वर्ष का समय लगा। भारतीय संविधान विश्व के संविधानों में अपना एक विशेष महत्त्व रखता है, उसकी समानता संसार के किसी भी संविधान से नहीं की जा सकती। कुछ विषयों में वह इंगलैंड के संविधान की समानता करता है और कुछ विषयों में अमेरिका और स्विट्जरलैंड की । इसमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, आदि सभी भारतीय परम्पराओं की रक्षा की गई है। विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के हितों को ध्यान में रक्खा गया है ।
          भारतीय संविधान २२ भागों में विभक्त है। इसमें ३९५ धाराएँ हैं और ९ परिशिष्ट हैं यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। संविधान की विशालता और विस्तार का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि अपने कार्यकाल में विधान परिषद को लगभग ढाई हजार संशोधनों पर विचार करना पड़ा। भारतीय संविधान की आधारशिला में उदारता, समानता और भ्रातृत्व जैसे आदर्श एवं अनुपम गुण हैं। यह संविधान जाति तथा धर्म, आदि के भेद-भाव को दृष्टि में न रखकर · समस्त भारतीय नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। संविधान की दृष्टि में न कोई बड़ा है और न कोई छोटा, न कोई धनवान है और न कोई धनहीन, न कोई उच्च कुल का है और न कोई निम्न कुल का। धार्मिक दृष्टि से संविधान अपने समस्त नागरिकों को पूर्ण स्वतन्त्रता देता है, प्रत्येक नागरिक अपनी इच्छानुसार धर्म स्वीकार कर सकता है और पूर्ण स्वच्छन्दता से धर्मानुकूल आचरण कर सकता है। भारतीय संविधान धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है। शिक्षा ग्रहण करने के सम्बन्ध में किसी के ऊपर कोई दबाव नहीं, मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार भाषाओं का अध्ययन करके ज्ञानवर्द्धन कर सकता है। अपनी अभिरुचि के अनुसार व्यवसाय चुन सकता है। अपनी सम्पत्ति के चाहे वह चल हो या अचल सभी समान रूप में अधिकारी हैं। देश का सम्पूर्ण प्रभुत्व देशवासियों के हाथों में सुरक्षित है, वे अपने भाग्य का स्वयं निर्णय करते हैं, संविधान २१ वर्ष की आयु वाले सभी स्त्री-पुरुषों को मतदान का अधिकार देता है, इस प्रकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देश का शासन सूत्र जनता के हाथों में ही है। नई केन्द्रीय सरकार ने संविधान में संशोधन करके मतदान की आयु २१ वर्ष से घटाकर १८ वर्ष कर दी है। सविधान की दृष्टि में न कोई छूत है और न कोई अछूत। किसी भी व्यक्ति को अछूत नाम से पुकारने वाला व्यक्ति वैधानिक रूप से दण्ड का भागी होता है। इसी प्रकार साम्प्रदायिकता को भी संविधान अवैध घोषित करता है 1 सभी नागरिकों को अपने जीवन की सुरक्षा और सुख-सुविधा का पूर्ण अधिकार है। लेख आदि के द्वारा तथा भाषण एवं व्याख्यानों द्वारा अपने मत प्रकाशन का पूर्ण एवं समान अधिकार है। परन्तु सरकारी कर्मचारी को नहीं । सरकार प्रत्येक व्यक्ति को आजीविका के सुलभ साधन प्रस्तुत करेगी तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य की दृष्टि से अल्प- वयस्कों को मिलों में तथा कारखानों में भर्ती नहीं किया जाएगा। “संविधान में भारतीय राज्य व्यवस्था को तीन भागों में विभक्त किया है-न्याय-पालिका, कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका।” सरकार की न्यायपालिका शक्ति सर्वत्र स्वतन्त्र है, उसके ऊपर न कार्यपालिका का अधिकार है और न व्यवस्थापिका का । वह संविधान के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन करती है। संविधान की व्याख्या और उसकी रक्षा का भार न्यायपालिका पर ही हैं। राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं करेगी । राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का पद पंचवर्षीय होगा। ३५ वर्ष से कम आयु वाला राष्ट्रपति नहीं हो सकता। राष्ट्रपति की शासन सुविधा के लिये मन्त्रिमण्डल होगा । प्रधानमन्त्री की नियुक्ति स्वयं राष्ट्रपति करेंगे तथा मन्त्रिमण्डल के अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति ‘प्रधानमन्त्री की इच्छा से ही राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी ।
          संविधान द्वारा भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गई है। अन्य संघात्मक शासन वाले देशों से भारतीय संविधान बिल्कुल भिन्न है। इसका निर्माण स्वतन्त्र राज्यों के बीच किसी समझौते के अनुसार नहीं हुआ, इस संविधान ने भारत की केन्द्रीय सरकार को राज्य की सरकारों की अपेक्षा अधिक शक्ति दे रक्खी है। इस संघ की किसी इकाई को संघ शासन से बाहर निकालने है का अधिकार नहीं है। भारतीय संविधान ने केन्द्र सरकार को ९७ विषय दिये हैं और राज्य की सरकारों को ६६ विषय दिये गये हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी देश में शक्तिशाली केन्द्र की व्यवस्था करता है । इस प्रकार यह संविधान देश की अविच्छिन्न एकता स्थापित करने में पर्याप्त सहायक है। ।
          भारतीय संविधान के अनुसार भारतवर्ष में संसद पद्धति वाली सरकार स्थापित हुई है। भारत का राष्ट्रपति अनन्त शक्ति सम्पन्न राष्ट्रपति होता है पर केवल नाममात्र के लिये । वास्तविक शक्ति मन्त्रिपरिषद् में निहित है । मन्त्री परिषद् जो चाहे वह कर सकती है। ये मन्त्री जनता द्वारा निर्वाचित, संसद के प्रति अपने कार्यों के लिये उत्तरदायी होते हैं। इस दृष्टि से भारतीय संविधान इंगलैंड के संविधान से बहुत कुछ समानता रखता है। मन्त्रियों को संसद का सदस्य होना आवश्यक हैं । वे अपने पद पर तभी तक कार्य कर सकते हैं, जब तक उन्हें संसद का विश्वास प्राप्त होता रहे।
          भारतीय संविधान लिखित है। लिखित संविधान में सामयिक परिवर्तन कठिन हो जाते हैं, परन्तु भारतीय संविधान में संशोधन की विधि सरल रखी गई है। संविधान में संशोधन तभी हो सकता है जब भारतीय संसद तथा आधे से अधिक राज्यों के विधान मण्डलों की स्वीकृति उस पर प्राप्त हो जाये। संशोधन के लिये प्रत्येक सदन की सदस्य संख्या के आधे और उपस्थित सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई मत पक्ष में होने चाहिएँ । इस प्रकार, भारतीय संविधान में संशोधन की न तो कठोरतम विधि अपनाई गई है और न उसे अधिक सरल ही बनाया गया है ।
          संविधान के अनुसार, संघ राज्य की एक परिषद् होगी, जिसमें दो विधायक सभायें होंगी, एक राज्य-परिषद् तथा दूसरी लोकसभा । राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या २५० तथा लोकसभा के सदस्यों की संख्या ५०० से अधिक नहीं होगी। राज्य परिषद् कभी भंग नहीं होगी, परन्तु उसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष के पश्चात् पृथक् कर दिये जायेंगे। उपराष्ट्रपति राज्य परिषद् का अध्यक्ष होगा। समस्त राष्ट्र भिन्न राज्यों में विभक्त होगा। प्रत्येक राज्य के लिये गवर्नर तथा उसकी सहायता के लिये एक मन्त्रिमण्डल होगा। व्यवस्थापिका मण्डल में दो सभायें होंगी, एक विधान परिषद्, दूसरी विधान-सभा | राज्यों के न्याय के लिये उच्च न्यायालय रहेंगे।
          अतः हमारा संविधान व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्रदान करता है और यह एक आ संविधान है, जिसके द्वारा हर नागरिक अपने आपको भारत का नागरिक होने में गौरवान्वित होता है ।
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