भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था
◆ प्रस्तुत खण्ड में भारत की अर्थव्यवस्था को पाँच भागों में संक्षिप्त एवं सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है तथा प्रत्येक भाग के पश्चात् महत्त्वपूर्ण परीक्षोपयोगी तथ्य भी दिए गए हैं प्रस्तुत भागों के शीर्षक निम्न प्रकार हैं।
1. भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ 2. राष्ट्रीय आय 3. भारत में नियोजन 4. भारत की नई आर्थिक नीति 5. भारत की वित्त व्यवस्था 6. भारत में कृषि, उद्योग तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ
भारतीय अर्थव्यवस्था प्राथमिक विकासशील अर्थव्यवस्था है । यद्यपि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी है, लेकिन अब यह गरीबी के दुश्चक्र से बाहर है । यहाँ की कुछ कार्यशील जनसंख्या का लगभग 52% भाग आज भी कृषि में लगा हुआ है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि-क्षेत्र का योगदान 17.8% है। कृषि क्षेत्र की उपरोक्त स्थिति यद्यपि अब भी संतोषजनक नहीं है, फिर भी आजादी के बाद इसमें पर्याप्त सुधार हुआ है । स्वतंत्रता – पश्चात् देश की आर्थिक आधारभूत संरचना भी अधिक सशक्त तथा मजबूत हुई है । मात्रात्मक दृष्टि से भी देश की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। भारत की अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं में अलग-अलग प्रस्तुत किया जा रहा है ।
(i) भारतीय अर्थव्यवस्था ग्रामीण तथा कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था है- स्वतंत्रता के 60 वर्ष बाद भी भारत की 52% श्रमशक्ति कृषि क्षेत्र में लगी हुई है तथा राष्ट्रीय आय में इनका योगदान लगभग 17.8% है। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी कृषि प्रधान ही है ।
(ii) भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है- मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र का सहअस्तित्व है। भारत ने अपने स्वतंत्र्योत्तर विकास काल में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया है ताकि इसका समाजवादी लक्ष्य पूरा हो सके । अपने सम्पूर्ण योजनाकाल में सरकार ने लगभग 45% पूँजी सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश किया है तथा आर्थिक नियोजन के माध्यम से इसे गति दी जाती रही है। परन्तु उत्पादन के स्रोत्रों और साधनों पर आज भी निजी क्षेत्र का ही वर्चस्व ( लगभग 80% ) बना हुआ है । उदारीकरण के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है ।
(iii) भारतीय अर्थव्यवस्था अल्पविकसित अर्थव्यवस्था है। भारतीय अर्थव्यवस्था के अल्पविकसित होने की पुष्टि निम्न तथ्यों से की जा सकती है—
(a) भारत की राष्ट्रीय आय काफी कम है तथा प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत नीचा है । विश्व विकास रिपोर्ट 2012 के अनुसार वर्ष 2011 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 1410 डॉलर थी । सम्प्रति भारत की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका के प्रति व्यक्ति आय का लगभग 1/71 है।
(b) आजादी के छह दशक बाद भी देश में निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या 26.93 करोड़ (2011-12) है। यह देश की कुल आबादी का लगभग 21.9% है । विश्व बैंक की ‘विश्व विकास सूचक’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार विश्व में निर्धन लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में है। विश्व की 1.3 अरब निर्धन जनसंख्या का सर्वाधिक 36% भाग भारत में है । इन निर्धनों की आय 1 डॉलर प्रतिदिन से भी कम है। |
(c) बेरोजगारी का स्तर काफी ऊँचा है । सन् 2009-10 में बेरोजगारों की संख्या 284 मिलियन है ।
(d) पूँजी व संसाधनों की न्यूनता है तथा सकल घरेलू बचत की दर काफी नीची है। वर्ष 2011-12 में घरेलू बचत की दर 30.8% के आस-पास रही है।
(e) जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि विश्व हुई है।
निष्कर्ष : कहा जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्ता अभी भी अल्पविकसित है तथा यह विकासमान है I
राष्ट्रीय आय
भारत की राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय की गणना का प्रथम प्रयास दादा भाई नौरोजी ने वर्ष 1867-68 में किया था । नौरोजी के आकलन के अनुसार वर्ष 1868 में प्रति व्यक्ति आय 20 रुपए थी । एफ सिर्रास ने वर्ष 1911 में प्रति व्यक्ति आय 49 रुपए बताया । स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व इस दिशा में प्रथम आधिकारिक वाणिज्य मंत्रालय (आर्थिक सलाहकार कार्यालय) द्वारा किया गया । राष्ट्रीय आय की गणना के लिए उत्पाद पद्धति और आय पद्धति दोनों का सहारा लिया जाता ।
◆ उत्पाद पद्धति–इसके तहत माल और सेवाओं के शुद्ध मूल्य वृद्धि का आकलन किया जाता है । इसका प्रयोग कृषि, वानिकी, पशुपालन, खनन और उद्योग क्षेत्र में किया जाता है इसको मूल्य वर्धित पद्धति के नाम से भी जाना जाता है ।
◆ आय पद्धति- इसके अंतर्गत उत्पादन के घटकों के लिए किए गए भुगतानों का योग किया जाता है और इसका प्रयोग परिवहन, प्रशासन और व्यापार जैसे सेवा प्रदाता की जीडीपी को आकलन करने के लिए करते हैं ।
नोट: भारत में सांख्यिकी विभाग के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन आय के आंकलन के लिए उत्तरदायी है । इस कार्य में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की सहायता करता है ।
◆ राष्ट्रीय आय-राष्ट्रीय आय से तात्पर्य अर्थव्यवस्था द्वारा पूरे वर्ष के दौरान उत्पादित अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं के शुद्ध मूल्य के योग से होता है इसमें विदेशों से अर्जित शुद्ध आय भी शामिल होती है । राष्ट्रीय आय एक दिए हुए समय में किसी अर्थव्यवस्था की उत्पादन शक्ति को मापती है। भारत में राष्ट्रीय आय के आँकड़े वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक) पर आधारित हैं ।
राष्ट्रीय आय की अवधारणाएँ
◆ सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) – किसी देश के नागरिकों द्वारा किसी दी हुई समयावधि में सामान्यतया एक वित्तीय वर्ष में उत्पादित कुल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मौद्रिक मूल्य सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाती है। इसमें देशवासियों द्वारा देश के बाहर उत्पादित वस्तुओं को भी सम्मलित किया जाता है IGNP को ज्ञात करने के लिए देश के नागरिकों को विदेशों से प्राप्त हुई आय को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में जोड़ देना चाहिए । इसी प्रकार देश के अन्दर विदेशियों द्वारा उत्पादित आय को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में से घटा दिया जाना चाहिए । इसे निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है ।
GNP = GDP + X – M
यहाँ X = देशवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय
M = विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय ।
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि यदि X = M है तो GNP = GDP होगा । इसी प्रकार बन्द अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत X – M= O है तो वहाँ भीGNP = GDP होगा ।
◆ सकल घरेलू उत्पाद अथवाGDP देश की सीमा के अन्दर किसी दी हुई समयावधि – (सामान्यतया एक वर्ष) में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य होती है। GNP में GDP का केवल वही भाग सम्मलित किया जाता है, जो देश के नागरिकों की उत्पादक सेवाओं का परिणाम है ।
◆ शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) — शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात करने के लिएGNP में से पूँजी स्टॉक की खपत (मूल्य हास) को घटना होता है । NNP = GNP– मूल्य हास (Depreciation)
◆ NNP की गणना दो प्रकार से की जा सकती है। प्रथम वस्तुओं तथा सेवाओं की बाजार कीमतों पर तथा द्वितीय, कुल उत्पादन की उत्पादन साधन लागत के रूप में ।
◆ जब NNP मूल्यांकन अथवा माप साधन लगत पर किया जाता है, तो उसे ही राष्ट्रीय आय के नाम से जाना जाता है । इसे ज्ञात करने के लिए बाजार मूल्य पर आकलित शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) में से शुद्ध अप्रत्यक्ष करों (कुल अप्रत्यक्ष कर-सब्सिडी) को घटाना होता है। इस प्रकार से ज्ञात मूल्य ही राष्ट्रीय आय कहलाता है ।
राष्ट्रीय आय बाजार कीमत पर NNP – अप्रत्यक्ष कर + सब्सिडी
◆ वैयक्तिक आय (Personal Income) – यह देशवासियों को वास्तव में प्राप्त होने वाली आय है । जिसे निम्न सूत्र से ज्ञात करते हैं ।
वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – निगमों का अवितरित लाभांश – निगम कर- सामाजिक सुरक्षा योजना के लिए किए गए भुगतान + सरकारी हस्तान्तरण भुगतान + व्यापारिक हस्तान्तरण भुगतान
नोट: किसी भी देश की आर्थिक विकास दर का सर्वश्रेष्ठ सूचक प्रति व्यक्ति आय होती है ।
भारत की राष्ट्रीय आय से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
◆ भारत में राष्ट्रीय आय के अनुमान के आँकड़े केन्द्रीय सांख्यिकी (CSO) जारी करता है । वर्ष 2006-07 में राष्ट्रीय आय (चालू मूल्य स्तर पर ) में 15.9% वृद्धि हुई है।
◆ CSOने संशोधित आकलन में प्रति व्यक्ति आय 2007-08 में 24295 रुपए (19992000 की कीमतों पर ) अनुमानित की गई है। जबकि चालू मूल्यों पर 33283 रुपए आकलित की गई है ।
◆ वर्ष 2006–07 के स्थिति के अनुसार सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय (82903 रुपए) वाला राज्य गोवा है ।
◆ उत्पादन लागत एवं स्थिर कीमतों पर 2007-08 के दौरानGDPमें प्रथामिक क्षेत्र (कृषि तथा उसकी सहायक क्रियाओं का) द्वितीयक क्षेत्र ( उद्योग, निर्माण कार्य, बिजली) तथा * तृतीयक क्षेत्र ( व्यापार, परिवहन, संचार तथा सेवा) क्षेत्र का योगदान क्रमशः 17.8%26.5% तथा 55.7% आकलित किया गया है ।
◆ देश में GDP सम्बन्धी त्रैमासिक आँकड़े 1996-97 से CSO द्वारा जारी किए जा रहे हैं ।
◆ CSO ने राष्ट्रीय आय सम्बन्धी अपने आकलन पहली बार 1956 में 1948-49 आधार वर्ष के साथ जारी किए थे । तदुपरांत समय-समय पर आधार वर्ष में परिवर्तन किया जाता रहा है । यह आधार वर्ष क्रमशः 1960, 1970, 1980–81, 1993–94 व 1999–2000 रहे हैं ।
◆ भारत में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सर्वाधिक योगदान महाराष्ट्र (13.29%) का है ।
◆ 2004-05 की स्थिर कीमतों पर वर्ष 2011-12 में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आप ₹ 1.12,372 गोवा राज्य में तथा सबसे कम ₹15,268 बिहार राज्य में थी। केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली प्रति व्यक्तिभाव ₹1,19, 032 थी, जो सर्वाधिक थी
आर्थिक आयोजन
आर्थिक आयोजन वह प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सीमित प्राकृतिक संसाधनों का कुशलतम उपयोग किया जाता है ।
भारत में आर्थिक आयोजन के निर्धारित उद्देश्य हैं –
आर्थिक संवृद्धि आर्थिक व सामाजिक असमानता को दूर करना, गरीबी का निवारण तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि ।
भारत में आर्थिक आयोजन सम्बन्धी प्रस्ताव सर्वप्रथम सन् 1934 ई० में ‘विश्वेश्वरैया’ की पुस्तक ‘प्लांड इकोनोमी फॉर इंडिया’ में आई थी । तत्पश्चात् सन् 1938 ई० में अखिल भारतीय काँग्रेस ने ऐसी ही माँग की थी । सन् 1944 ई० में कुछ उद्योगपतियों द्वारा ‘बम्बई योजना’ के तहत ऐसे प्रयास किए गए ।
स्वतंत्रता पश्चात् सन् 1947 ई० में पंडित नेहरू की अध्यक्षता में आर्थिक नियोजन समिति गठित हुई । बाद में इसी समिति की सिफारिश पर 15 मार्च, 1950 ई० में योजना आयोग का गठन एक गैर सांविधिक तथा परामर्शदात्री निकाय के रूप में किया गया । भारत के प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं। भारत की पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 से प्रारंभ हुई।
भारत में अब तक दस पंचवर्षीय योजनाएँ लागू की जा चुकी हैं और 1 अप्रैल, 2007 से 11 वीं पंचवर्षीय योजना प्रारंभ की गई है। इन पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्यों तथा उपलब्धियों को सारणी रूप में निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा रहा है ।
पंचवर्षीय योजना | अवधि | GDP की वार्षिक वृद्धि – दर लक्ष्य ( % में ) | उपलब्धि ( % में ) |
पहली | 1951-56 ई० | 2.1 3.6 | |
दूसरी | 1956-61 ई० | 2.5 4.2 | |
तीसरी | 1961-66 ई० | 5.6 2.7 | |
चौथी | 1969-74 ई० 5.3 | 2.0 | |
पाँचवी | 1974-78 ई० 4.4 | 4.8 | |
छठी | 1980-85 ई० 5.2 | 5.4 | |
सातवीं | 1985-90 ई० 5.0 | 6.0 | |
आठवीं | 1992-97 ई० 5.6 | 6.6 | |
नौवीं | 1997-02 ई० 6.5 | 5.3 | |
दसवीं | 2002-07 ई० 8.0 ( बाद में 7% ) |
7.8
7.9 |
|
ग्यारहवीं | 2007-12 ई० 9.0 | ||
बारहवीं | 2012-17 ई० 9.0
(संशोधित 8%) |
◆ इसके अतिरिक्त छह वार्षिक योजनाएं भी बनी । ये वार्षिक योजनाएं 1966–67 ई० से 1968-69 ई० के बीच, 1979-80 ई० तथा 1990-91 ई० से 1991-92 ई० के लिए बनी थीं । 1978-83 ई० को अनवरत योजना के रूप में क्रियान्वित किया गया था ।
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56 ई०)
◆ इस योजना का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास की प्रक्रिया आरंभ करना था ।
◆ इस योजना में कृषि को उच्च प्राथमिकता दी गई । –
◆ यह सफल योजना रही तथा इसने लक्ष्य से आगे 3.6% विकास दर को हासिल किया
◆ इस योजना के दौरान राष्ट्रीय आय में 18% तथा प्रति व्यक्ति आय में 11% की कुल वृद्धि हुई ।
◆ इस योजना काल में सार्वजनिक उद्योग के विकास की उपेक्षा की गई तथा इस मद में मात्र 6% राशि खर्च की गई ।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (19565-61 ई०)
◆ यह योजना पी० सी० महालनबिस मॉडल पर आधारित थी ।
◆ इसका मुख्य उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना था ।
◆ इस योजना में देश के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए 5 वर्षों में राष्ट्रीय आय में 25% की वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था । इसमें भारी उद्योगों व खनिजों को उच्च प्राथमिकता दी गई तथा इस मद में सार्वजनिक क्षेत्र के व्यय की 24% राशि व्यय की गई ।
◆ द्वितीय प्राथमिकता यातायात व संचार को दी गई जिसपर 28% राशि व्यय किया गया ।
◆ अनेक महत्त्वपूर्ण बृहत् उद्योग, जैसे- दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला के इस्पात कारखाने इसी योजना के दौरान स्थापित किए गए ।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66 ई०)
◆ इस योजना का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना तथा स्वतः स्फूर्त अवस्था में पहुँचाना था
◆ यह योजना अपने लक्ष्य 5.6% की वृद्धि दर को प्राप्त करने में असफल रही तथा 2.5% प्रतिवर्ष की वृद्धि दर ही प्राप्त कर सकी ।
◆ इस योजना में कृषि तथा उद्योग दोनों को प्राथमिकता दी गई । इस योजनाकी असफलता का मुख्य कारण भारत चीन युद्ध, भारत पाक युद्ध तथा अभूतपूर्व सूखा था ।
योजना अवकाश (1966-67 1968-69 ई०)
◆ इस अवधि में तीन वार्षिक योजनाएँ तैयार की गई ।
◆ इस अवकाश – अवधि में कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र और उद्योग क्षेत्रों को समान प्राथमिकता दी गयी ।
◆ योजना अवकाश का प्रमुख कारण भारत-पाक संघर्ष तथा सूखा के कारण संसाधनों की कमी, मूल्य-स्तर में वृद्धि रही ।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74 ई०)
◆ इस योजना के मुख्य उद्देश्य थे स्थायित्व के साथ विकास तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति ।
◆ इस योजना में ‘समाजवादी समाज की स्थापना’ को भी विशेष रूप से लक्षित किया गया ।
◆ यह योजना अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रही तथा 5.7% की वृद्धि दर लक्ष्य योजना की विफलता का करण मौसम की प्रतिकूलता तथा बंग्लादेशी शरणार्थियों का आगमन था ।के विरुद्ध मात्र 2.05% वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की जा सकी
◆ योजना की विफलता का कारण मौसम की प्रतिकूलता तथा बांग्लादेशी सारनाथियो का आगमन था।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78 ई०)
◆ इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी उन्मूलन तथा आत्मनिर्भरता की प्राप्ति थी ।
◆ योजना में आर्थिक स्थायित्व लाने को उच्च प्राथमिकता दी गई ।
◆ योजना के दौरान विकास लक्ष्य प्रारंभ में 5.5% वार्षिक वृद्धि रखी गई, परन्तु बाद में इसे संशोधित कर 4.4% वार्षिक कर दी गई ।
◆ इस योजना में पहली बार गरीबी तथा बेरोजगारी पर ध्यान दिया गया ।
◆ योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि को दी गई । तत्पश्चात् उद्योग व खनिज क्षेत्र को ।
◆ यह योजना सामान्यतः सफल रही परन्तु गरीबी तथा बेरोजगारी में विशेष कमी नहीं हो सकी।
◆ जनता पार्टी शासन द्वारा आरम्भ इस योजना को सन् 1978 ई० में ही समाप्त करने का निर्णय लिया गया ।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85 ई०)
◆ इस योजना का प्रारंभ रोलिंग प्लान (1978-83), जो जनता पार्टी सरकार द्वारा बनाई गई थी, को समाप्त करके की गई ।
◆ इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी उन्मूलन और रोजगार में वृद्धि था । पहली बार गरीबी उन्मूलन पर विशेष जोर दिया गया ।
◆ योजना में विकास का लक्ष्य 5.2% वार्षिक वृद्धि दर रखा गया तथा सफलतापूर्वक5.4% की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की गई ।
◆ इस योजना के दौरान समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किए गए ।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90 ई०)
◆ प्रमुख उद्देश्य – (i) समग्र रूप से उत्पादकता को बढ़ाना तथा रोजगार के अधिक अवसर जुटाना (ii) साम्य एवं न्याय पर आधारित सामाजिक प्रणाली की स्थापना (iii) सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को प्रभावी रूप से कम करना तथा (iv) देशी तकनीकी विकास के लिए सुदृढ़ आधार तैयार करना था ।
◆ योजना में सकल घरेलू उत्पाद में 5% वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया था जबकि वास्तविक वृद्धि दर 6.02% वार्षिक रही है। अतः यह सफल योजना थी ।
◆ योजना में प्रति व्यक्ति आय में 3.6% प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई ।
◆ इस योजना में योजना परिव्यय की दृष्टि से पहली बार निजी क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में वरीयता दी गई ।
◆ इसी योजना में जवाहर रोजगार योजना जैसी महत्त्वपूर्ण रोजगारपरक कार्यक्रम प्रारंभ किया गया ।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97 ई०)
◆ इस योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता ‘ मानव संसाधन का विकास’ अर्थात् रोजगार, शिक्षा व जनस्वास्थ्य को दिया गया ।
◆ इसके अतिरिक्त आधारभूत ढाँचे का सशक्तीकरण तथा शताब्दी के अंत तक लगभग पूर्ण रोजगार की प्राप्ति को प्रमुख लक्ष्य बनाया गया ।
◆ यह योजना सफल योजना रही तथा 5.6% वार्षिक वृद्धि दर से लक्ष्य से ज्यादा 6.7% वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त की गई । –
◆ इसी काल में प्रधानमंत्री रोजगार योजना (1993 ई०) की शुरुआत हुई।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002 ई०)
◆ नौवीं पंचवर्षीय योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता ‘न्यायपूर्ण वितरण एवं समानता के साथ विकास’ को दिया गया ।
◆ इस योजना की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य 6.5% रखा गया जबकि उपलब्धि मात्र 5.5% वार्षिक वृद्धि की रहीं । इस प्रकार यह योजना असफल रही ।
◆ नौवीं योजना की असफलता के पीछे अन्तर्राष्ट्रीय मंदी जैसे कारक को जिम्मेदार माना गया ।
◆ क्षेत्रीय सन्तुलन जैसे मुद्दे को भी इस योजना में विशेष स्थान दिया गया ।
◆ नौवीं योजना में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्राथमिकता क्रम में निम्नलिखित क्षेत्रों को चुना गया—
◆ भुगतान संतुलन सुनिश्चित करना
◆ विदेशी ऋणभार को न केवल बढ़ने से रोकना वरन् उसमें कमी भी लाना; ‘
◆ खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना ।
◆ प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता प्राप्त करन ।
◆ जड़ी बूटियों और औषधीय मूल के पेड़-पौधों सहित प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग तथा संरक्षण |
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07 ई०)
◆ दसवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य ‘देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना’ तथा ‘अगले 10 वर्षो में प्रति व्यक्ति आय दुगुनी करना’ प्रस्तावित किया गया है ।
◆ योजना अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में वार्षिक 8% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया जबकि उपस्थित 7.8% रही।
◆ योजना के दौरान प्रतिवर्ष 7.5 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लक्ष्य रखा गया है ।
◆ योजना अवधि में 5 करोड़ रोजगार के अवसरों का सृजन करना लक्षित है ।
◆ इसके अतिरिक्त सन् 2007 ई० तक अर्थात् योजना के अन्त तक साक्षरता 75% शिशु मृत्यु दर 45 प्रति हजार या इससे कम तथा वनाच्छादन 25% करने का लक्ष्य रखा गया है।
दसवीं योजना का मूल्यांकन
◆ भारत की दसवीं पंचवर्षीय योजना 31 मार्च, 2007 को समाप्त हो गयी । दसवीं पंचवर्षीय योजना के उपलब्ध अनंतिम आँकड़ों (फाइनल आँकड़ों नहीं) के अनुसार यह योजना अब तक की सफलतम योजना रही हैं । इस योजना में 7.7 प्रतिशत की औसत सलाना वृद्धि दर प्राप्त की गई, जो अब तक किसी योजना में प्राप्त की गई सर्वोच्च वृद्धि दर है ।
अर्थव्यवस्था के तीनों प्रमुख क्षेत्रों – कृषि, उद्योग व सेवा, में दसवीं योजना के दौरान प्राप्त की गई वृद्धि दरें इनके लिए निर्धारित किए गए लक्ष्यों के काफ़ी निकट रही हैं ।
◆ कृषि में 4% सालाना वृद्धि का लक्ष्य था और अंतिम आँकड़ों के अनुसार प्राप्ति 3.42% की रही । इसी प्रकार उद्योगों व सेवाओं के क्षेत्रों में क्रमश: 8.90% व 9.40% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य था और अनंतिम आँकड़ों के अनुसार प्राप्ति क्रमश: 8.74% व9.30% की रही ।
◆ अनंतिम आँकड़ों के अनुसार इस योजना में निवेश की दर सकल घरेलू उत्पाद का 28.10% रही है, जबकि लक्ष्य 28.41% का था
◆ सकल घरेलू बचतें जीडीपी के 23.31% रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तविक उपलब्धि लक्ष्य से कहीं अधिक जीडीपी का 26.62% रही है ।
◆ योजना काल में मुद्रा स्फीति की दर औसतन 5% रखने का लक्ष्य था, जबकि वास्तव में यह 5.02% रही है ।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012 ई०)
◆ ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 2007 से प्रारंभ हो गयी है। इस पंचवर्षीय योजना के प्रारूप पत्र में निहित प्रमुख बिन्दु निम्नवत् है
1. इस योजना में9% की औसत वार्षिक वृद्धि दर के साथ अन्तिम वर्ष 2011-12 में 10% वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया है ।
2. 9% वार्षिक विकास के लिए 2007-12 के दौरान कृषि में 4% तथा उद्योगों व सेवाओं में 9 से 11 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि का लक्ष्य इस योजना में हैं ।
3. देश के सभी ग्रामों में विद्युतीकरण का लक्ष्य ।
4. रोजगार के 70 मिलियन नए अवसर सृतजत करना ।
5. शैक्षिक बेरोजगारी को 5% से नीचे लाना ।
6. अकुशल श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी दर से 20% तक की वृद्धि करना ।
7. वर्ष 2016-17 तक प्रति व्यक्ति आय को दोगुना तक लाने के घरेलू उत्पाद की वार्षिक संवृद्धि दर को 8% से बढ़कर 10% तक करना तथा इसे 10% से 12% के बीच बनाए रखना ।
8. 7 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में साक्षरता दर को बढ़ाकर 85% करना।
9. प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर विद्यालय छोड़कर घर बैठ जानेवाले बालकों की दर को वर्ष 2003-04 में. 52.2% से घटाकर वर्ष 2011-12 तक20% स्तर पर लाना।
10. साक्षरता के लिंग अन्तराल को 10 प्रतिशांक तक नीचे लाना ।
11. साक्षरता दर को कम से कम 75% के स्तर तक लाना लाना ।
12.कुल प्रजननता दर को 2.1 तक नीचे लाना ।
13. शिशु मृत्यु दर को घटाकर 28 तथा मातृत्व मृत्यु दर को घटाकर प्रति एक हजार जीवित जन्म के स्तर पर लाना ।
14. महिलाओं एवं लड़कियों में रक्ताल्पता को 11 वीं योजना के के अन्त तक 50% तक घटना ।
15. 06 आयु वर्ग में लिंगानुपात को वर्ष 2011-12 तक बढ़ाकर 935 तथा 2016-17 तक 950 करना।
16. सभी सरकारी योजनाओं के कुल प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभार्थियों में महिलाओं एवं बालिकाओं का हिस्सा कम-से-कम 33 प्रतिशत हो ।
17. नवम्बर 2007 तक देश के सभी गाँवों तक टेलीफोन पहुँचाना तथा 2012 तक सभी गाँव में ब्रॉडबैण्ड सुविधा मुहैया करना ।
18. सभी गाँवों तथा निर्धनता रेखा से नीचे के सभी परिवारों में सन् 2009 तक विद्युत् संयोजन सुनिश्चित करना तथा 11 वीं योजना के अन्त में इनमें 24 घंटें विद्युत् आपूर्ति प्रवाहित करना ।
19. सन् 2009 तक 1000 जनसंख्या वाले सभी गाँवों (पर्वतीय एवं जनजातीय क्षेत्रों में 500 जनसंख्या) तक सभी मौसमों के लिए उपयुक्त पक्की सड़कें सुनिश्चित करना ।
20. 2012 तक सभी को घर बनाने के लिए भूमि उपलब्ध कराना ।
21.वन एवं पेड़ों के अन्तर्गत क्षेत्रफल में 5 प्रतिशतांक की वृद्धि करना ।
22. 2011-12 तक देश के सभी बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता के विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक प्राप्त करना ।
23. नदियों के जल को स्वच्छ बनाने के लिए समस्त शहरी तरल कचरें को उपचारित करना ।
24. वर्ष 2016-17 तक ऊर्जा क्षमता को 20 प्रतिशतांक बढ़ाना ।
भारतीय आयोजन से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
◆ भारत में योजना निर्माण हेतु केन्द्रीय निकांय है- योजना आयोग
◆ राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन 6 अगस्त, 1952 ई० को हुआ, प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष तथा योजना आयोग का सचिव इसका सचिव होता है।
◆ सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य राष्ट्रीय विकास परिषद् के सदस्य होते हैं ।
◆ दीर्घकालिक योजना वह योजनाह होती है, जो योजना आयोग द्वारा सामाजिक एवं राजनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर 15 से 20 वर्षों के लिए बनाई जाती है ।
◆ योजना का अंतिक अनुमेदन ‘राष्ट्रीय विकास परिषद्’ द्वारा होता है ।
◆ देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना ‘ हैरॉड- डोमर मॉडल’ पर आधारित थी ।
◆ भारत में गरीबी का आकलन पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपभोग न कर पाने की क्षमता के आधार
पर किया जाता है । उस व्यक्ति को निर्धनता की रेखा से नीचे माना जाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 2,400 कैलोरी व शहरी क्षेत्रों में 2,100 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ हैं ।
◆ (40) निर्धनों की निरपेक्ष संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान जहाँ सबसे ऊपर है, वही निर्धनता अनुपात के मामले में (कुल जनसंख्या में निर्धन जनसंख्या का प्रतिशत) उड़ीसा (46.4%) का स्थान सर्वोच्च है ।
12वीं पंचवर्षीय योजना ( 2012 – 17 )
1 अप्रैल 2012 से शुरु 12वीं योजना के प्रमुख लक्ष्य :
1. वार्षिक विकास दर 8% रखना।
2.कृषि क्षेत्र में 4% जबकि विनिर्माण क्षेत्र में 10% औसत वार्षिक वृद्धि। 3
3. गैर कृषि क्षेत्र में 5 करोड़ नये रोजगार के सृजना
4. निर्धनता अनुपात में 10% कमी लाना।
5. शिशु मृत्यु दर को 25 तथा मातृत्व मृत्यु दर की 1 प्रति हजार जीवित जन्म तक लाने तथा 0-6 वर्ष के आयु वर्ष में बाल लिंगानुपात को 950 करने का लक्ष्य रखा गया है। % तक लाना।
6. कुल प्रजनन दर को घटाकर 2.1 तक लाना।
7. सभी गाँवों को बारमासी सड़कों से जोड़ना ।
8. सभी गाँवों में विद्युतीकरण करना। .
9.ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीडेंसिटी को बढ़ाकर 70% करना ।
10. इस योजना के दौरान 2004-05 के मूल्यों पर सकल घरेलू बचत दर 33.6% तथा निवेश दर 38.8% का लक्ष्य रखा गया है।
नई आर्थिक नीति
◆ नई आर्थिक नीति आर्थिक सुधार से सम्बन्धित है, जिसका उद्देश्य उत्पादिता में सुधार, नई तकनीक को आत्मसात करना तथा समग्र रूप से क्षमता के पूर्णतः प्रयोग को एक राष्ट्रीय अभियान का रूप देना है।
◆ नई आर्थिक सुधार की दूसरी लहर पी० वी० नरसिंह राव की सरकार के काल में सन् 1991 ई० में आयी ।
नई आर्थिक सुधार की रूपरेखा सर्वप्रथम राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री काल में सन् 1985 ई० में बनाई एवं शुरू की गई ।
◆ नई आर्थिक सुधार नीति (सन् 1991 ई०) को शुरू करने का प्रमुख कारण खाड़ी युद्ध तथा भारत के भुगतान संतुलन की समस्या थी ।
◆ नई आर्थिक नीति के तीन प्रमुख आयाम थे- निजीकरण, उदारीकरण तथा विश्वव्यापीकरण ।
◆ नई आर्थिक सुधार नीति (सन् 1991 ई०) के मुख्य क्षेत्र थे- राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति, मूल्य निर्धारण नीति, विदेश नीति, औद्योगिक नीति, विदेशी विनियोग नीति, व्यापार नीति और सार्वजनिक क्षेत्र नीति ।
◆ राजकोषीय नीति 1991 के तहत मुख्यतः चार कदम उठाए गए
(1) सार्वजनिक व्यय को सख्ती से नियंत्रित करना,
(iii) कर एवं कर भिन्न राजस्व को बढ़ाना,
(iii) केन्द्र तथा राज्य सरकारों पर राजकोषीय अनुशासन लागू करना,
(iv) अनुदान राशि (सब्सिडी) में कटौती करना ।
◆ मौद्रिक नीति 1991 के तहत स्फीतिकारी दबावों के लिए प्रतिबंधात्मक उपाय किए गए ।
◆ औद्यौगिक सुधार नीति 1991 के अधीन जिन उपायों को लागू किया गया वे हैं
1. 18 अद्योगों की सूची को छोड़ अन्य सभी उद्योगों लिए लाइसेंस हटा दिये गए ।
2. एम० आर० टी० पी० कम्पनियों को विनियोग हेतु एम० आर० टी० पी० आयोग से मुक्त कर दिया गया ।
3. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरिक्षत क्रियाओं का दायरा सीमित कर दिया गया तथा उक्त क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अनुमति दी गई ।
◆ विदेशी विनियोग नीति 1991 के तहत जिन सुधारों को लक्ष्यबद्ध किया गया, वे हैं
(i) बहुत से उद्योगों में 51% विदेशी हिस्सा पूँजी के स्वामित्व की सीमा तक प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग की स्वतः स्वीकृति दी गई ।
(ii) निर्यात क्रियाओं में लगी विदेशी व्यापार कम्पनी को 51% तक हिस्सा पूँजी लगाने की अनुमति होगी ।
(iii) सरकार उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में तकनीकी (Technology) संधियों के लिए स्वतः स्वीकृति प्रदान करेगी ।
◆ व्यापार नीति 1991 के तहत, अर्थव्यवस्था के अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण को प्रोन्नत करने हेतु उद्योग को प्राप्त अत्यधिक व अविवेकपूर्ण संरक्षण धीरे-धीरे समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए गए ।
◆ सार्वजनिक क्षेत्र संबंधी नीति 1991 के तहत, उद्यमों में कार्यकुशलता तथा बाजार अनुशासन लाने के लिए जिन उपायों को लागू किया, वे हैं
(i) आरक्षित उद्योगों की संख्या घटाकर 8 कर दी गई थीं । ( वर्त्तमान के केवल तीन उद्योग)
(ii) जीर्ण उद्योगों के पुनरुत्थान का कार्य औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड को सौंप दिया गया ।
(iii) सार्वजनिक उद्यमों के निष्पादन में उन्नति के लिए उद्यमों को बोधज्ञापन (MOU) के माध्यम से मजबूत किया गया ।
(iv) श्रमिकों की संख्या कम करने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाएँ आरंभ की गईं ।
◆ नई आर्थिक सुधार नीति सन् 1991 ई० से आगे बढ़ते हुए अब तक काफी खुली, उदार तथा वैश्वीकृत हो चुकी है ।
◆ इस समय नई औद्योगिक नीति के तहत आरक्षित उद्योगों की संख्या 3 है – (i) परमाणु ऊर्जा (ii) रेल परिवहन एवं (iii) परमाणु ऊर्जा की अनुसूची में निर्दिष्ट खनिज । 9 मई 2001 के मंत्रिमण्डलीय निर्णय के अनुसार सरकार ने सुरक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी है, जिसके लिए कम्पनी को रक्षा मंत्रालय से लाइसेंस लेना पड़ता है।
◆ संसाधन जुटाने तथा कार्यकुशलता लाने की दृष्टि से, सार्वजनिक उद्यमों के संबंध में विनिवेश की नई नीति वर्ष 1991–92 से अपनाई गई है
◆ 100 प्रतिशत निर्यात मूलक इकाइयों में 100% विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति दी गई है ।
◆ विनिवेश या अपनिवेश (disinvestment) का अर्थ उद्यमों में सरकारी भागीदारी घटना है।
◆ सन् 1996 ई० में विनिवेश मुद्दे पर समीक्षा, सुझाव तथा विनियमन के लिए विनिवेश कमीशन का गठन किया गया था ।
◆ विनिवेश कमीशन के पहले अध्यक्ष जी० वी० रामकृष्ण थे ।
◆ औद्योगिक आधुनिकीरण, तकनीकी विकास के परिणामस्वरूप प्रभावित होनेवाली तथा बन्द की जाने वाली रूग्ण औद्योगिक इकाइयों के विस्थापित श्रमिकों की सहायता तथा पुनर्स्थापना के लिए सन् 1992 ई० में राष्ट्रीय नवीकरण निधि की स्थापना की गई ।
◆ ‘नवरत्न’ वैसी कम्पनियाँ हैं, जो विश्वस्तरीय कम्पनियों के रूप में उभर रही हैं तथा जिसे सरकार ने प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की है । ऐसे कुल 18 कम्पनियों की पहचान की गई है ।
◆ दूसरे चरण के आर्थिक सुधार कार्यक्रम के प्रमुख लक्ष्य 7 से 8 प्रतिशत वृद्धि दर से निरन्तर समान एवं रोजगार सृजनकारी दिशा में विकास तथा देश से गरीबी का उन्मूलन करना है ।
भारतीय वित्त व्यवस्था
◆ भारतीय वित्त व्यवस्था से तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है, जिसमें व्यक्तियों, वित्तीय संस्थाओं, बैंकों, औद्योगिक कम्पनियों तथा सरकार द्वारा वित्त की माँग होती है तथा इसकी पूर्ति की जाती है ।
◆ भारतीय वित्त व्यवस्था के दो पक्ष हैं, पहला माँग-पक्ष तथा दूसरा पूर्ति-पक्ष । माँग पक्ष का प्रतिनिधित्व व्यक्तिगत निवेशक, औद्योगिक तथा व्यापारिक कम्पनियाँ, सरकार आदि करते हैं, जबकि पूर्ति-पक्ष का प्रतिनिधित्व बैंक, बीमा कम्पनियाँ, म्यूचुअल फण्ड तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ करती हैं ।
◆ भारतीय वित्त व्यवस्था को दो भागों में बाँटा गया है – (i) भारतीय मुद्रा बाजार तथा (ii) भारतीय पूँजी बाजार ।
◆ भारतीय मुद्रा बाजार को तीन भागों में बाँटा गया है- असंगठित क्षेत्र, संगठित क्षेत्र में बैंकिंग क्षेत्र तथा मुद्रा बाजार का उप बाजार ।
◆ असंगठित क्षेत्र के अन्तर्गत देशी बैंकर, साहूकार और महाजन आदि परम्परागत स्रोत आते हैं। ग्रामीण तथा कृषि साख में अब भी इसकी महती भूमिका होती है
◆ संगठित क्षेत्र में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) शीर्ष संस्था है तथा इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, विदेशी बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ आती हैं।
◆ भारतीय रिजर्व बैंक देश में मौद्रिक गतिविधियों के नियमन का नियंत्रण करता है ।
◆ भारतीय रिजर्व बैंक के दो प्रकार के कार्य हैं- पहला, सामान्य केन्द्रीय बैंकिंग कार्य तथा दूसरा, विकास सम्बन्धी और प्रवर्तन कार्य ।
◆ सामान्य केन्द्रीय बैंकिंग कार्य के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं – –
1. करेंसी नोटों का निर्गमन,
2. सरकारी बैंकर का काम,
3. बैंकों के बैंक का काम,
4. साख नियंत्रण एवं विकास सम्बन्धी एवं प्रवर्तन कार्य के
5. विदेशी विनिमय को नियंत्रित करना,
6. आँकड़ों का संग्रहण और प्रकाशन |
◆ विकाश संबंधी एवं प्रवर्तन कार्य के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक का कार्य निम्न प्रकार है-
(i) मुद्रा बाजार पर प्रतिबन्धात्मक नियंत्रण, (i) बचतों (Savings) को बैकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से उत्पादन के लिए उपलब्ध कराना, (iii) लोगों में बैकिंग की आदत बढ़ाने के लिए प्रयास करना आदि ।
◆ बैंकिंग की आदत बढ़ाने के उद्देश्य से ही सन् 1964 ई० में भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI) की स्थापना की गई ।
◆ संस्थागत कृषि साख की सुविधाओं की व्यवस्था और विस्तार रिजर्व बैंक की एक अन्य महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है तथा इसी उद्देश्य के तहत सन् 1963 ई० में कृषि पुनर्वित्त एवं विकास निगम की स्थापना की गई ।
◆ भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा साख पर नियंत्रण निम्न तरीकों से किया जाता है —
(i) बैंक दर नीति द्वारा, :
(ii) खुले बाजार की क्रियाओं द्वारा
बैंकों की नकद कोष सम्बन्धी आवश्यकताओं में परिवर्तन करके,
(iv) तरलता सम्बन्धी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करके,
(v) विभेदक ब्याज दरों की प्रणाली अपनाकर,
(vi) चयनात्मक साख नियंत्रण नीति से तथा,
(v) नैतिक प्रभाव की नीति द्वारा ।
◆ मुद्रा बाजार का उपबाजार एक विशेष प्रकार का प्रतिभूति बाजार है। ये प्रतिभूतियाँ हैं- कॉल मुद्रा, अल्पावधि के बिल, 182 दिन के ट्रेजरी बिल, जमा प्रमाण पत्र और व्यापारिक पत्र आदि ।
◆ DFHI अर्थात् डिस्काउन्ट एंड फाइनेन्स हाउस ऑफ इंडिया लिमिटेड, मुद्रा बाजार की एक विशिष्ट संस्था है जिसकी स्थापना सन् 1988 ई० में की गई तथा इसका कार्य बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं की कटौती और फिर कटौती की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
◆ MMMFs अर्थात् मनी मार्केट म्यूचुअल फण्ड्स एक अन्य विशिष्ट संस्था है, जिसकी स्थापना का उद्देश्य व्यक्तियों को मुद्रा बाजार के उपकरण उपलब्ध कराना था। इसकी स्थापना सन् 1992ई० में की गई ।
◆ पूँजी बाजार, मुद्रा बाजार से इस बात से भिन्न है कि मुद्रा बाजार अल्पावधि को वितीय व्यवस्था का बाजार है, जबकि पूँजी बाजार में मध्यम तथा दीर्घकाल के कोषों का आदान-प्रदान किया जाता है।
◆ भारतीय पूँजी बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है— गिल्ट एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार ।
◆ गिल्ट एज्ड बाजार में रिजर्व बैंक के माध्यम से सरकारी और अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है ।
◆ गिल्ट एज्ड बाजार में सरकारी और अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य स्थिर रहता है और इस क्षेत्र की अन्य प्रतिभूतियों के समान इनमें अस्थिरता नहीं होती है।
◆ औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में नये स्थापित होने वाले या पहले से स्थापित औद्योगिक उपक्रमों के शेयरां और डिबेन्चरों का क्रय-विक्रय किया जाता है।
◆ यदि पूँजी बाजार में निजी निगम क्षेत्र के नये अंशों और डिवेन्चरों, सरकारी कम्पनियों की बाजार में होने वाले क्रय-विक्रय आते हैं । प्राथमिक प्रतिभूतियों या नयी प्रतिभूतियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के वाण्डों के निगमों का क्रय-विक्रय किया जाता है, तो ऐसे बाजार प्राथमिक पूँजी बाजार कहे जाते हैं ।
◆ द्वितीयक पूँजी बाजार के अन्तर्गत स्टॉक एक्सचेंज में होनेवाले क्रय-विक्रय तथा गिल्ट एज्ड बाजार में होने वाली क्रय – विक्रय आते है।
◆ भारतीय पूँजी बाजार में पूँजी के स्रोत हैं- अंश- पूँजी, ग्रहण-पत्र । इसके अतिरिक्त स्रोत के रूप में वे संस्थाएँ भी हैं जो वित्तीय मध्यस्थ की भूमिका निभाती हैं । ऐसी संस्थाएँ हैं मर्चेन्ट बैंक, म्यूचुअल फण्ड, लीजिंग कम्पनियाँ, जोखिम पूँजी कम्पनियाँ आदि ।
◆ UTI अर्थात् भारतीय युनिट ट्रस्ट भारत की सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड संस्था है। स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसी व्यवस्था का बाजार है, जिसमें छोटे निवेशक निवेश कर सकते है तथा मौजूद प्रतिभूतियों का आसानी से क्रय-विक्रय कर सकते हैं ।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBi)
◆ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना 12 अप्रैल, 1988 ई० को आर्थिक उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत पूँजी बाज़ार में निवेशकों की रुचि बढ़ाने तथा उसके हितों की रक्षा के उद्देश्य से की गई थी। 30 जनवरी, 1992 को एक अध्यादेश के द्वारा इसे वैधानिक दर्जा भी प्रदान कर दिया गया है। सेबी अधिनियम को संशोधित कर 30 जनवरी, 1992 को सेबी को म्यूचुअल फंडों एवं स्टॉक मार्केट के नियंत्रण के अधिकार दिए गए। सेबी के अध्यक्ष पद पर सामान्यतः कार्यकाल तीन वर्ष का होता है, किन्तु अधिकतम 65 वर्ष की आयु तक ही कोई व्यक्ति इस पद पर रह सकता है । SEBI का प्रबन्ध 6 सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिनमें एक चैयरमैन होता है जो केन्द्र सरकार द्वारा नामित होता है
◆ 1988 में सेबी की प्रारम्भिक पूँजी 7.5 करोड़ रुपए थी जो कि प्रवर्तक कम्पनियों (IDBI, ICICI तथा IFCI) द्वारा दी गई थी । इसी राशि के ब्याज की आय से सेबी के दिन-प्रतिदिन के कार्य सम्पन्न होते हैं ।
◆ भारतीय पूँजी बाजार को विनियमित करने की वैधानिक शक्तियाँ अब सेबी को ही प्राप्त है।
◆ नए प्रावधानों के अनुसार अब किसी भी शेयर बाजार (Stock Exchange) को मान्यता प्रदान करने का अधिकार सेबी को है। शेयर बाजार के किसी सदस्य के किसी बैठक में मताधिकार के संबंध में नियम बनाने तथा उसे संशोधित करने का भी अधिकार सेबी को ही है ।
◆ सेबी (संशोधन) विधेयक 2002 के तहत ‘इनसाइडर ट्रेडिंग’ के लिए 25 करोड़ रुपए तक जुर्माना सेबी द्वारा किया जा सकता है । इसी विधेयक में लघु निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के मामलों में एक लाख रुपए प्रतिदिन की दर से एक करोड़ रुपए जुर्माना आरोपित करने का प्रावधान किया गया है ।
भारत के प्रमुख शेयर मूल्य सूचकांक
1. BSE SENSEX— यह मुम्बई स्टॉक एक्सजेच ( The Stock Exchange Mumbai) का संवेदी शेयर सूचकांक । यह 30 प्रमुख शेयरों का प्रतिनिधित्व करता है । इसका आधार वर्ष 1978-79 ई० है । है ।
2. BSE 200— यह मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज का 200 शेयरों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका आधार वर्ष 1989-90 ई० है ।
3. DOLLEX—BSE 200 सूचकांक का ही डॉलर मूल्य सूचकांक डॉलेक्स कहलाता है । इसका आधार वर्ष 1989-90 ई० है ।
4. NSE 50- राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज (NSE) दिल्ली से संबंधित इस सूचकांक का नाम बदलकर S & PCNX Nifty रखा गया है ।
भारतीय वित्त व्यवस्था से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
◆ रिजर्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल, 1935 ई० को 5 करोड़ की अधिकृत पूँजी से हुई तथा 1 जनवरी, 1949 ई० को इसका राष्ट्रीयकरण किया गया ।
◆ रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है, इसका मुख्यालय मुम्बई में है ।
◆ एक रुपये के नोट तथा सिक्के का निर्गमन वित्त मंत्रालय (भारत सरकार) करता है तथा इसके अतिरिक्त समस्त करेंसी नोटों का निर्गमन रिर्जव बैंक करता है ।
◆ मुद्रा की दशमलव प्रणाली के साथ प्रचलित नया पैसा 1 अप्रैल, 1957 से पैसा हो गया ।
◆ पूर्ण रूप से पहला भारतीय बैंक पंजाब नेशनल बैंक था इसकी स्थापना 1894 में की गई थी ।
◆ 1921 ई० में तीन प्रमुख प्रेसीडेन्सी बैंकों को मिलाकर भारतीय इम्पीरिलय बैंक की स्थापना की गई ।
◆ 1959 ई० में 8 क्षेत्रीय बैंकों को राष्ट्रीयकृत कर स्टेट बैंक के सहायक का दर्जा दिया गया ।
◆ 17 जुलाई, 1969 ई० को 14 बड़े व्यावसायिक बैंकों तथा 15 अप्रैल, 1980 ई० को छह अन्य अनुसूचित बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया ।
नोट: 4 सितम्बर, 1993 को सरकार ने न्यू बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया । अतः अब केवल 19 राष्ट्रीयकृत बैंक रह गए हैं ।
◆ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा कुछ बैंक जमा का लगभग91% का नियंत्रण किया जाता है।
◆ सार्वजनिक बैंकों में भारतीय स्टेट बैंक समूह सबसे बड़ा है, जो कुल बैंक जमा का लगभग 29% का नियंत्रण करता है ।
◆ वाणिज्यिक बैंकों द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना को लागू करने वाला सार्वजनिक क्षेत्र का पहला बैंक पंजाब नेशनल बैंक था, इसने यह योजना 1 नवम्बर, 2000 को लागू की थी ।
◆ देश में पहला मोबाइल बैंक मध्य प्रदेश में खरगोन जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है। लक्ष्मी वाहिनी बैंक नाम के इस चलते फिरते बैंक की स्थापना एक करोड़ रुपए की लागत . से एक मोबाइल वैन में की गयी है ।
◆ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा देश का पहला तैरता एटीएम कोच्चि में 9 फरवरी, 2004 6. को लांच किया गया था। यह एटीएम केरला 7. शिपिंग एंड इनलैंड नेविगेशन कॉपोरेशन के झंकार नाम की स्टीमर में लगाया गया है । यह स्टीमर एर्नाकुलम और व्यपीन के बीच चलती है। 8. 9. > 1. 2. 3. 10. 11.
◆ गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी से बैंकिंग बैंक के रूप में रूपान्तरित होने वाला पहला बैंक कोटक महिन्द्रा बैंक लि० है। पूर्व में यह कोटक महिन्द्रा फाइनेंस कम्पनी के रूप में कार्यरत था ।
◆ निजी क्षेत्र के नए बैंकों में सर्वप्रथम यू० टी० आई० बैंक ने 2 अप्रैल, 1994 से कार्य करना प्रारम्भ किया था । इस बैंक का मुख्यालय अहमदाबाद है।
◆ भारत में सहकारी बैंकों का गठन तीन स्तरों वाला है। राज्य सहकारी बैंक सम्बन्धित में शीर्षस्थ संस्था होती है । इसके बाद केन्द्रीय या जिला सहकारी बैंक जिला स्तर पर कार्य करते हैं । तृतीय स्तर पर प्राथमिक ऋण समितियाँ होती है, जो कि ग्राम स्तर पर कार्य करती है ।
◆ प्रथम ग्रामीण बैंक की स्थापना 2 अक्टूबर, 1975 ई० को हुई । सिक्किम और गोवा को छोड़कर देश के सभी राज्यों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कार्यरत है ।
◆ बैंकिंग प्रणाली की पुनर्संरचना के सम्बन्ध में सुझाव देने हेतु 1991 ई० में नरसिम्हन समिति का गठन किया गया ।
◆ परिवारों, निजी व्यापार फर्मों एवं सरकार द्वारा नई उत्पादन परिसम्पत्तियों या निवेश सूचियों के सृजन पर किया गया खर्च निवेश कहलाता है।
◆ राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेन्ज की स्थापना की संस्तुति 1991 में ‘फेरवानी समिति’ ने की थी ।
◆ 1992 में सरकार ने भारतीय योधोगिक विकाश बैंक ( IDBI) को राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंट ( NSE ) की स्थापना का कार्य सौंपा। IDBI ही राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज का प्रमुख प्रवर्तक ( Promoter ) है ।
◆ NSE की प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 25 करोड़ रुपए है।
◆ स्टॉक एक्सचेंजों में 49% तक विदेशी निवेश की अनुमति है ।
◆ एशिया का सबसे पुराना ‘बम्बई स्टॉक एक्सचेंज’ (BSE) 19 अगस्त, 2005 से एक पब्लिक लिमिटेड कम्पनी में रूपान्तरित हो गया है। 1875 ई० में स्थापित इस स्टॉक एक्सचेंज ने अपनी स्थापना के 130 वें वर्ष में यह दर्जा प्राप्त किया है।
◆ न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेन्ज में सूचीबद्ध भारत की आठ कम्पनियाँ हैं- (i) डॉ रेड्डी लेबोरेटरीज (ii) HDFC (iii) ICICI Bank (iv) MTNL (v) सत्यम कम्प्यूटर्स (vi) विदेश संचार निगम लिमिटेड (VSNL) (vii) विप्रो (WIPRO) (viii) टाटा मोटर्स ।
◆ भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्येक कम्पनी के पूँजी के लिए अंशों के निर्गमन का अधिकार होता है। इस प्रकार एकत्रित की गई पूँजी अंश पूँजी या शेयर कहलाती है।
◆ शेयर होल्डरों के स्टॉक पर हुई कमाई को लाभांश कहते हैं ।% तक विदेशी निवेश की अनुमति है ।
◆ केन्द्र को सर्वाधिक निक्ल (Net) राजस्व की प्राप्ति सीमा शुल्कों से होती है । सीमा शुल्क से प्राप्त राजस्व का बँटवारा राज्यों को नहीं करना होता है ।
◆ कर ढाँचे में सुधार के लिए सुझाव देने हेतु ‘चेलैया समिति’ का गठन अगस्त, 1991 में किया गया था ।
◆ छोटे व्यापारियों के लिए एकमुश्त आयकर योजना की सिफारिश चेलैया समिति ने की थी ।
◆ चेलैया समिति ने गैर कृषकों की 25 हजार रुपये से अधिक की वार्षिक कृषि आय पर आयकर लगाने की संस्तुति की थी ।
भारत में प्रति–भूति वं सिक्कों का उत्पादन
1. इण्डिया सिक्योरिटी प्रेस, नासिक (महाराष्ट्र) – नासिक रोड स्थित भारत प्रतिभूति मुद्रणालय में डाक सम्बन्धी लेखन सामग्री, डाक एवं डाक भिन्न टिकटों, अदालती एवं गैर-अदालती के चेकों, बॉण्डों, राष्ट्रीय बचत पत्रों, पोस्टल ऑर्डर, पासपोर्ट, इन्दिरा विकास पत्रों, किसान विकास पत्रों आदि के अलावा राज्य सरकारों, सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों, वित्तीय निगमों आदि के प्रतिभूति पत्रों की छपाई की जाती है।
2. सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस हैदराबाद – सिक्योरिटी प्रिन्टिंग प्रेस, हैदराबाद की स्थापना दक्षिण राज्यों की डाक लेखन सामग्री की माँग को पूरा करने व पूरे देश की केन्द्रीय उत्पाद शुल्क स्टाम्प की माँग को पूरा करने के लिए 1982 में की गई थी, ताकि भारत प्रतिभूति मुद्रणालय, नासिक रोड के उत्पादन की अनुपूर्ति की जा सके ।
3. करेन्सी नोट प्रेस, नासिक (महाराष्ट्र) नासिक रोड स्थित करेन्सी नोट प्रेस 10, 50, 100, 500, 1000 रुपए के बैंक नोट छापती है और उनकी पूर्ति करती है ।
4. बैंक नोट प्रेस, देवास (मध्य प्रदेश) देवास स्थित बैंक नोट प्रेस 20 रुपए, 50 रुपए, 100 रुपए के और उच्च मूल्य वर्ग के नोट छापती है। बैंक नोट प्रेस का स्याही का कारखाना प्रतिभूति पत्रों की स्याही का निर्माण भी करता है ।
5. शाहबनी (प० बंगाल) तथा मैसूर (कर्नाटक) के भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण लिमिटेड – दो नए एवं अत्याधुनिक करेन्सी नोट प्रेस मैसूर (कर्नाटक) तथा साल्वोनी ( To बंगाल) में स्थापित किए गए हैं, यहाँ RBI के नियंत्रण में करेन्सी नोट छापे जाते हैं ।
6. सिक्यूरिटी पेपर मिल, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) बैंक और करेन्सी नोट कागज तथा नॉन-ज्यूडिशियल स्टाम्प पेपर की छपाई में प्रयोग होने वाल कागज का उत्पादन करने के लिए सिक्यूरिटी पेपर मिल, होशंगाबाद में 1967-68 में चालू की गई थी ।
टकसाल (Mints)
◆ सिक्कों का उत्पादन करने तथा सोने और चाँदी की परख करने एवं तमगों का उत्पादन करने के लिए भारत सरकार की चार टकसालें मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद तथा नोएडा में स्थित हैं। मुम्बई, हैदराबाद और कोलकाता की टकसालें काफी समय पहले क्रमशः 1830, 1903 और 1950 में स्थापित की गई थीं, जबकि नोएडा की टकसाल 1989 • में स्थापित की गई थीं। मुम्बई तथा कोलकाता की टकसालों में सिक्कों के अलावा विभिन्न प्रकार के पदकों (मेडल) का भी उत्पादन किया जाता है । .
कृषि
◆ कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड है तथा जनसंख्या का 52% भाग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। निजी क्षेत्र का यह सबसे बड़ा व्यवसाय है ।
◆ वर्ष 2011-12 में कृषि का राष्ट्रीय आय में हिस्सा 14.1% है जबकि 1950-51 में यह 55.4% था. । .
◆ वर्ष 2012-13 में देश के निर्यात में कृषि वस्तुओं का अनुपात 14.% था और कृषि से बनी हुई वस्तुओं (यथा – निर्मित पटसन तथा कपड़ा) का अनुपात भी लगभग 14% है। 2011-12 में दर 12.4% था।
◆ औद्योगिक क्षेत्र के लिए कृषि का महत्त्व न सिर्फ कच्चे माल की आपूर्ति तक सीमित है, बल्कि यह औद्योगिक क्षेत्र में लगे लोगों के लिए खाद्यान्न तथा औद्योगिक उत्पाद हेतु बाजार भी प्रस्तुत करता है ।
◆ जनवरी 2004 में राष्ट्रीय किसान आग का गठन हुआ, जिसके प्रथम अध्यक्ष सोमपाल थे । कृषि आदान व उत्पादन –
◆ भारतीय कृषि अब भी मानसून पर ही निर्भर करती है । 1990-91 ई० में फसलों के अधीन कुल क्षेत्रफल के 33.3% क्षेत्रफल पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध थी ।
◆ भारत में कृषि उत्पादन को दो भागों में बाँटा जा सकता है – खाद्यान्न और अखाद्यान्न । इसमें खाद्यान्नों का हिस्सा लगभग दो तिहाई और अखाद्यान्नों का हिस्सा लगभग एक तिहाई है ।
◆ भारत की मुख्य खाद्य फसल चावल है ।
◆ चावल का उत्पादन 2006-07 के दौरान 933 लाख टन हुआ। 2007-08 में इसके 940.8 लाख टन होने का अग्रिम अनुमान है 1
◆ गन्ने तथा चीनी के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है ।
◆ चाय के उत्पादन एवं उपभोग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है । ( विश्व उत्पादन का 27%)
◆ विश्व के कुल कॉफी उत्पादन के 4% भाग का उत्पादन भारत में होता है । (विश्व में छठा स्थान) भारत में कॉफी के कुछ उत्पादन का 56.5% केवल कर्नाटक राज्य में होता है ।
◆ भारत में गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। दूसरे तथा तीसरे स्थान पर क्रमश: पंजाब व हरियाणा है ।
◆ चावल का सर्वाधिक उत्पादन करने वाला राज्य प० बंगाल है । दूसरे तथा तीसरे स्थान पर क्रमश: उत्तर प्रदेश तथा पंजाब है ।
◆ राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना अक्टूबर, 1999 ई० से लागू किया गया है
◆ भूमि सुधार के अन्तर्गत मुख्यतः तीन प्रकार के कदम उठाए गए हैं(i) मध्यस्थों का उन्मूलन, (ii) काश्तकारी सुधार और (iii) कृषि का पुनर्गठन
◆ पहली पंचवर्षीय योजना की समाप्ति तक देश में मध्यस्थों का उन्मूलन (छोटे-छोटे क्षेत्रों को छोड़कर) किया जा चुका था ।
◆ काश्तकारी सुधार के अन्तर्गत मुख्यतः तीन प्रकार के उपाय किए गए –
(i) लगान का नियमन (ii) काश्त अधिकार की सुरक्षा तथा (iii) काश्तकारों को भूमि का मालिकाना अधिकार ।
◆ कृषि के पुनर्गठन के अन्तर्गत मुख्यतः दो प्रकार के उपाय- (i) जोतों की सीमा बन्दी तथा (ii) जोतों की चकबन्दी किए गए हैं।
◆ जोतों की सीमाबन्दी जोत का वह महत्तम क्षेत्रफल है, जो राज्यों के कानून द्वारा निर्धारित किया जाता है तथा जिससे अधिक जोत का होना अवैध माना जाता है ।
◆ जोतों की चकबन्दी विभाजित तथा खण्डित जोतों का इकट्ठा करना है ।
◆ भारत में सर्वाधिक जोतों की संख्या सीमान्त प्रकार का है ।
◆ 1 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाली जोत सीमान्त जोत, 1 से 4 हेक्टेयर वाली जोत लघु जोत तथा 4 हेक्टेयर से बड़ी क्षेत्रफल वाली जोत बृहत् जोत कही जाती है ।
◆ भारत में सबसे पहले 1920 ई० में बड़ौदा में चकबन्दी लागू की गई ।
◆ हरित क्रान्ति का प्रारंभ तीसरी पंचवर्षीय योजना से माना जाता है ।
नोट: रबी उपजों के मामले में न्यूनतम समर्थन मूल्य विपणन वर्ष के लिए होता है, जबकि खरीफ फसलों के मामले में फसल व विपणन वर्ष समान होता है ।
◆ हरित क्रान्ति का सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव गेहूँ पर पड़ा है, जिसकी पैदावार में 500% की वृद्धि हुई ।
◆ कृषि वित्त के गैर संस्थागत स्रोतों में महाजन तथा साहूकार, संबंधी या रिश्तेदार, व्यापारी, जमींदार और आढ़तिए प्रमुख हैं।
◆ कृषि वित्त के संस्थागत स्रोतों में सहकारी समितियाँ और सहकारी बैंक, व्यापारिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सरकार आदि प्रमुख हैं ।
◆ सहकारी साख संगठन का प्रारंभ सर्वप्रथम 1904 ई० में हुआ था ।
◆ प्राथमिक सहकारी समिति अल्प कालीन ऋण उपलब्ध कराती है ।
◆ राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराती है ।
◆ भूमि विकास बैंक दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराती है ।
◆ भूमि मूलत: भूमि विकास बैंक का आरंभ भूमि बंधक बैंक के रूप में 1919 ई० में हुआ था ।
◆ NABARD अर्थात् कृषि और ग्रामीण विकास का राष्ट्रीय बैंक ग्रामीण साख की शीर्ष संस्था है, जिसकी स्थापना 12 जुलाई 1982 ई० को भारतीय रिजर्व बैंक के कृषि साख विभाग और कृषि के पुनर्वित्त और विकास निगम के विलय द्वारा की गई ।
◆ नाबार्ड की अधिकृत अंश- पूँजी 500 करोड़ रुपए थी । परन्तु 1 फरवरी, 2001 ई० से एक संशोधन के पश्चात्, इसकी अधिकृत पूँजी बढ़ाकर 5000 करोड़ रुपए कर दी गई है।
उद्योग
◆ आजादी के बाद भारत में औद्योगिक नीति सम्बन्धी प्रस्ताव 1948 ई० में पारित किया गया ।
◆ सन् 1948 ई० की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र दोनों के ही महत्त्व को स्वीकार किया गया । परन्तु मूल उद्योगों के विकास का दायित्व सार्वजनिक क्षेत्र को सौंपा गया ।
◆ भारत में औद्योगिक नीति पुनः सन् 1956 ई० में लाई गई, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार, सहकारी क्षेत्र का विकास तथा निजी एकाधिकारों पर नियंत्रण जैसे उद्देश्य शामिल किए गए ।
◆ सन् 1948ई० की औद्योगिक नीति में उद्योग की चार श्रेणियाँ बनाई गई जबकि सन् 1956 ई० की नीति में इसे घटाकरतीन कर दिया गया ।
◆ सन् 1973ई० में दत समिति की सिफारिशों के आधार पर संयुक्त क्षेत्र का गठन किया गया ।
◆ सन् 1980 ई० की औद्योगिक नीति आर्थिक संघवाद की धारणा से प्रेरित थी तथा इसमें कृषि पर आधरित उघोगों को रियायतें देने की नीति अपनाई गई।
◆ नई नीति की घोषणा 24 जुलाई, 1991 ई० को की गई जिसमें व्यापक स्तर पर उदारवादी कदमों की घोषणा की गई। इस नई औद्योगिक नीति में 18 प्रमुख उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसेंस से मुक्त कर दिया गया। बाद में 13 और उद्योगों को लाइसेंस की आवश्यकता से मुक्त कर दिया गया जिससे लाइसेंसिंग की आवश्यकता से युक्त उद्योगों की संख्या वर्तमान में घटकर पाँच रह गयी है। ये पाँच उद्योग निम्न है –
1.अल्कोहल युक्त पेयों का आसवन एवं इनसे शराब बनाना ।
2. तम्बाकू के सिगार एवं सिगरेटें तथा विनिर्मित तम्बाकू के अन्य विकल्प ।
3. इलेक्ट्रॉनिक, एयरोस्पेस तथा रक्षा उपकरण, सभी प्रकार के ।
4.डिटोनेटिंग फ्यूज, सेफ्टी फ्यूज, गन पाउडर, नाइट्रोसेल्यूलोज तथा माचिस सहित औद्योगिक विस्फोटक सामग्री ।
5.खतरनाक रसायन ।
◆ नई औद्योगिक नीति में निजीकरण एवं उदारीकरण प्रमुख है।
◆ सार्वजनिक उद्यम वैसे उद्यम हैं जिनका संचालन एवं नियंत्रण सरकार द्वारा होता है ।
◆ अक्टूबर, 2008 में नवरत्न का दर्जा प्राप्त कम्पनियों की कुल संख्या 18 है । 1997 में यह दर्जा मूलत: नौ कम्पनियों के लिए ही सृजित किया गया था । वर्त्तमान में नवरत्न का दर्जा प्राप्त 18 कम्पनियाँ निम्न है –
1. भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL)
2. भारत पेट्रोलियम कॉपोरेशन लिमिटेड (BPCL)
3. हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉपोरेशन लिमिटेड (HPCL)
4. भारतीय तेल निगम (IOC)
5. महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL)
6. तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC)
7. राष्ट्रीय ताप विद्युत् निगम (NTPC)
8. भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (SAIL)
9. भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (GAIL)
10. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL)
11. हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)
12. पॉवर फाइनेंस कॉपरेशन (PFC)
13. राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC)
14. पॉवर ग्रिड कॉपोरेशन ऑफ इंडिया लि० (PPGCIL)
15. ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिं० ( REC)
16. नेशनल एल्यूमिनियम कम्पनी (NALCO)
17. भारतीय नौवहन निगम (SCI)
18. कोल इंडिया लि० (CIL)
◆ नवरत्न का दर्जा प्राप्त हो जाने से कम्पनियों को ज्यादा प्रशासनिक और वित्तीय सहायता मिलती है । ये कम्पनियाँ सरकार के अनुमति के बगैर देश में या विदेश में संयुक्त उद्यम लगा सकती हैं और उनमें अपनी नेटवर्थ के 15% तक निवेश कर सकती है ।
◆ आर्थिक गणना 2005 के अनुसार देश के कुल 4.212 करोड़ उद्यमों में 50% से अधिक उद्यम पाँच राज्यों तमिलनाडु, महाराष्ट्र, प० बंगाल, आन्ध्र प्रदेश व उत्तर प्रदेश में स्थापित है।
◆ औद्योगिक क्षेत्र (द्वितीयक क्षेत्र) का GDP में हिस्सा जो 1950-51 में 1993-94 की कीमतों पर 13.3 प्रतिशत था, जो 2006-07 में बढ़कर 26.4 प्रतिशत हो गया है ।
◆ 11 वीं योजना के दौरान औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर का औसत लक्ष्य 10.5% रखा गया है ।
◆ वर्त्तमान समय में गुजरात में 112 सूती वस्त्र मिलें हैं, जिनमें से अकेले अहमदाबाद में 66 मिलें हैं इसे पूर्व का वोस्टन कहा जाता है। महाराष्ट्र राज्य में 104 मिलें हैं, जिनमें से 54 मिलें अकेले मुम्बई में हैं। मुम्बई को सूती वस्त्रों की राजधानी कहा जाता है। कानपुर शहर में सूती वस्त्र की 10 मिलें हैं, जिसे उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहां जाता है ।
◆ भारत में लघु व कुटीर उद्योग का कुल औद्योगिक निर्यात में भागीदारी 33% (2006–07) है ।
◆ भारत में 2006-07 ई० में लघु व कुटीर उद्योग द्वारा लगभग 3.12 करोड़ लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए ।
◆ लघु व कुटीर उद्योग पर विशेष ध्यान सन् 1977 ई० की औद्योगिक नीति में दिया गया ।
◆ जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना सन् 1977 ई० में की गई थी। इस समय देश में 422 जिला उद्योग केन्द्र हैं।
◆ लघु उद्योग को वित्त प्रदान करने के उद्देश्य से सन् 1990 ई० में SIDBI अर्थात् भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना की गई ।
◆ आबिद हुसैन समिति लघु उद्योगों में सुधार से संबद्ध है ।
◆ लघु उद्योग वैसे उद्योग हैं, जिसमें अधिक से अधिक 1 करोड़ रुपए का निवेश हुआ हो।
◆ कुटीर उद्योग की अधिकतम निवेश सीमा 25 लाख रुपए है ।
◆ भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFGI) की स्थापना संविधान के विशेष अधिनियम द्वारा 1 1 जुलाई, 1948 ई० को की गई ।
◆ IFCI का उद्देश्य निजी तथा सहकारी क्षेत्र के उद्यमों को दीर्घकालीन व मध्यकालीन साख उपलब्ध कराना है ।
◆ ICICI अर्थात् भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम लिमिटेड की स्थापना सन् 1955 ई० में भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत की गई ।
◆ ICICI का कार्य निजी क्षेत्र में स्थापित होने वाले उद्यमों की स्थापना, विकास तथा आधुनिकीकरण में सहायता करना है ।
◆ औद्योगिक वित्त के क्षेत्र में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक का स्थान सबसे ऊँचा है।
◆ भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना, 1 फरवरी, 1964 ई० को गई । इसने अपना कार्य 1 जुलाई, 1966 से शुरू किया ।
◆ IRBI अर्थात् भारतीय औद्योगिक पुनर्मिर्माण बैंक की स्थापना, अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों के पुनर्निर्माण के उद्देश्य से 20 मार्च 1985 ई० में की गई ।
◆ भारतीय यूनिट ट्रस्ट 1 फरवरी, 1964 ई० को संसदीय अधिनियम से स्थापित किया गया ।
◆ भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI) लोगों की छोटी-छोटी बचतों को युनिटों की बिक्री के माध्यम से एकत्रित करता है तथा उनका प्रतिभूतियों में निवेश करता है ।
◆ भारतीय जीवन बीमा निगम का मुख्यालय मुंबई में है। इस समय इसके 7 जोनल कार्यालय तथा 100 क्षेत्रीय कार्यालय है । इसकी स्थापना सन् 1956 ई० में की गई थी । भारतीय साधारण बीमा निगम (GIC) की स्थापना सन् 1972 ई० में की गई ।
◆ 17 मार्च, 1997 ई० को सरकार ने कम्पनी अधिनियम सन् 1956 ई० के अधीन भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक लिमिटेड की स्थापना की। वर्त्तमान में इसकी अधिकृत पूँजी 1000 करोड़ रुपए तथा मुख्यालय कोलकाता में है ।
व्यापार
स्वतंत्रता पूर्व भारत के विदेशी व्यापार उपनिवेशवाद के सिद्धान्तों से संचालित होते थे । परन्तु स्वतंत्रता के बाद इसकी दशा व दिशा में व्यापक परिवर्तन आए । स्वतंत्रता के बाद विदेशी व्यापार की अन्तर्मुखी नीतियों को अपनाया गया और आयात प्रतिस्थापन की नीति इसका आधार बनी । व्यापर उदारीकरण का प्रयास 80 के दशक से आरंभ हुआ तथा 90 के दशक (1991 ई० के बाद) में उदारीकरण व विश्वव्यापीकरण की व्यापक नीति बनी। आरंभिक वर्षों में भारत के निर्यात व्यापार में जूट, चाय, सूती वस्त्र तथा कृषि व उससे सम्बद्ध वस्तुओं की प्रधानता थी तथा आयात में विनिर्मित वस्तुओं का अधिक महत्त्व था। धीरे-धीरे भारत के निर्यात में विनिर्मित वस्तुओं का महत्त्व बढ़ता रहा है । तथा प्राथमिक वस्तुओं का महत्त्व कम होता जा रहा है ।
◆ विश्व के कुछ विदेशी व्यापार में भारत का अंश पिछले वर्षों में लगभग 1% बना रहा था, WTO की विश्व व्यापार रिपोर्ट 2006 के अनुसार सन् 2009 तक विश्व के वस्तुओं एवं सेवाओं के कुछ विदेशी व्यापार में भारत का अंश 2 प्रतिशत हो जाएगा । सन् 2004 में यह 1.1 प्रतिशत व 2006 में 1.5 प्रतिशत था । पुनः 2006 में वैश्विक वस्तुगत व्यापार में भारत का अंश 1.2 प्रतिशत था, जो बढ़कर 2009 तक 1.5 प्रतिशत संभावित है।
◆ पेट्रोलियम उत्पादों व लुब्रिकेंट का आयात व्यय कुल आयात व्यय का 30.8% ( 200607 ई०) है। (प्रथम स्थान)
◆ अभियान्त्रिक माल का निर्यात में भागीदार, (2006-2007 ई०) में, 23.3% रहा ।
व्यापार की दिशा
◆ विदेशी व्यापार की दिशा से आशय निर्यात के गंतव्य स्थल तथा आयात के स्रोत से है 1 भारत की विदेशी व्यापार की दिशा में लगातार परिवर्त्तन परिलक्षित हो रहा है । भरत के विदेशी व्यापार में 2005 के बाद चीन और आसियान के सदस्य देशों की भागीदारी बढ़ी है । यद्यपि आज भी सं० रा० अमेरिका भारत का सबसे बड़ा सकल व्यापार भागीदार है ।
◆ वित्तीय वर्ष में 2006-07 में भारत के समग्र विदेशी व्यापार में सर्वाधिक अंश या भारत के तीन शीर्ष प्रमुख भागीदार देशों का अवरोही क्रम है- सं० रा० अमेरिका (9.7%), चीन (7.7%). तथा संयुक्त अरब अमीरात ( 5.5% )
◆ वर्ष 2006-07 में भारत के समग्र विदेशी व्यापार में 11 प्रमुख देशों का अंश लगभग आधा (47.5%) है ।
◆ अमेरिका की हिस्सेदारी भारत के साथ आयात के संदर्भ में 10.6% तथा निर्यात के संदर्भ में 19.2% (2006–2007 ई०) रहा है ।
◆ वर्ष 2006-07 में भारत के निर्यात के 5 शीर्ष गंतव्य स्थलों का अवरोही क्रम इस प्रकार है – सं० रा० अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, सिंगापुर तथा ब्रिटेन ।
◆ एशिया तथा आसियान के देश प्रमुख रूप से निर्यात स्थानों के रूप में उभरे हैं । वर्ष 2001-02 में एशिया तथा आसियान के देशों को भारत के कुल निर्यात का 40% हुआ था जो 2006-07 में बढ़कर लगभग 50% हो गया ।
◆ WTO के अनुसार भारत 2005 में वस्तुओं का 29 वॉ बड़ा निर्यातक व 17 वां बड़ा आयातक हो गया है, जबकि सेवाओं के मामले में भारत 11 वां बड़ा निर्यातक व 13 वां आयातक हो गया है ।
नोट: WTO के अनुसार वर्ष 2005 में विश्व में वस्तुओं का सबसे बड़ा निर्यातक देश जर्मनी रहा, इस मामले में दूसरे एवं तीसरे स्थान पर क्रमशः सं० रा० अमेरिका एवं चीन है । इसी प्रकार वर्ष 2005 में वस्तुगत आयातों के मामले में विश्व में अग्रणी देश सं० रा० अमेरिका है तथा जर्मनी एवं चीन इस मामले में क्रमश: दूसरे एवं तीसरे स्थान पर है ।
वायापारिक संगठन
◆ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना 27 दिसम्बर, 1945 ई० में ब्रेटनवुड सम्मेलन के निर्णय के आधार पर किया गया तथा इसका कार्य 1 मार्च, 1947 ई० से शुरू हुआ। इसमें सितम्बर, 2006 ई० में कुल 184 राष्ट्र सदस्य थे । जुलाई 2002 में सदस्य बना पूर्वी तिमोर इसका नवीनतम सदस्य हैं ।
◆ IMF का कार्य सदस्य राष्ट्रों के मध्य वित्तीय और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना तथा विश्व व्यापार का संतुलित विस्तार करना है ।
◆ IBRD अर्थात् ‘पुनर्मिर्माण एवं विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक’ की स्थापना सन् 1945 ई० में हुई ।
◆ IBRD को ही अन्य संस्थाओं के साथ मिलाकर विश्व बैंक (World Bank) के नाम से पुकारा जाता है । इन संस्थाओं में अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निमग, अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ तथा बहुपक्षीय विनियोग गारण्टी अभिकरण है ।
◆ इसका उद्देश्य विश्वयुद्ध से जर्जर हुई अर्थव्यवस्था का प्रारंभिक पुनर्निर्माण तथा अल्प विकसित देशों के विकास में योगदान देना है।
◆ इस समय यह सदस्य देशों में पूँजी निवेश में सहायता तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दीर्घकालीन संतुलित विकास को प्रोत्साहित करने में लगा है।
◆ GATT अर्थात् ‘प्रशुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता’ 30 अक्टूबर, 1947 ई० को हुआ तथा 1 जनवरी, 1948 ई० से लागू हुआ ।
◆ GATT के मूल सिद्धान्त थे समान प्रशुल्क की नीति परिमाणात्मक प्रतिबंधों को हटाना तथा व्यापारिक वाद-विवाद का लोकतांत्रिक तरीके से निपटारा करना ।
◆ 12 दिसम्बर, 1955 ई० कोGATT का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया तथा 1 जनवरी 1955 ई० को इसका स्थान WTO अर्थात् विश्व व्यापार संगठन ने ले लिया।
◆ WTO का मुख्यालय जेनेवा में है तथा वर्ष 2008 में इसके सदस्य देशों की संख्या 153 थी । केप वर्डे WTO का 153 वां सदस्य है । भारत भी इसका सदस्य है ।
◆ मंत्री स्तरीय सम्मेलन WTO की सर्वोच्च संस्था है। सभी सदस्य देशों के मंत्री इसके सदस्य हैं । इस संस्था की प्रत्येक दो वर्ष में कम से कम एक बैठक अवश्य होगी।
◆ आयात-निर्यात के लिए वित्त व्यवस्था हेतु भारत में शिखर संस्था निर्यात- आयात बैंक (Exim Bank) है । इसकी स्थापना । जनवरी 1982 को की गई थी। –
महत्त्वपूर्ण आर्थिक शब्दावली
1. सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) —एक देश की सीमा के अंदर किसी भी दी हुई समयावधि, प्रायः एक वर्ष में उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल बाजार या मौद्रिक मूल्य, उस देश का सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
2. सकलराष्ट्रीयउत्पाद (Gross National Product) इसका प्रयोग भी राष्ट्रीय आय लेखांकन में किया जाता है, सकल घरेलू उत्पाद में से यदि वह आय घटा दी जाए, जो सृजित तो देश में ही हुई है, किन्तु विदेशों को प्राप्य है तथा देश को प्राप्त होने वाली, किन्तु विदेशों में अर्जित आय जोड़ दी जाए तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त होता है ।
3. शुद्धराष्ट्रीयउत्पाद (Net National Product) — सकल राष्ट्रीय उत्पाद में से मूल्य हास की राशि घटा देने के उपरान्त शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात किया जाता है ।
4. राष्ट्रीय आय (National Income) – यह किसी अवधि विशेष में देश की सीमा के अन्दर उत्पन्न समस्त वस्तुओं तथा सेवाओं का मौद्रिक मूल्य की वह मात्रा है, जो दो बार गिने बिना मापी जाती है । साधारण कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को राष्ट्रीय आय कहा जाता है । इसे निम्न सूत्र से परिकलित किया जा सकता है । राष्ट्रीय आय = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (साधन लागत पर ) NNP (Factor Cost)
= बाजार मूल्य पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद-अप्रत्यक्ष कर सब्सिडी
= बाजार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद अर्थात् (GDP) + शुद्ध विदेशी आय-मूल्य हास) अप्रत्यक्ष कर + सब्सिडी
5. गरीबी (Proverty) – सामान्यत: न्यूनतम सामाजिक जीवन स्तर से नीचे की दशा हैं । योजना आयोग के द्वारा गठित Task Force on Minimun Needs and Effective Consumption Demand Report के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी का उपयोग प्रति व्यक्ति से कम का उपभोग स्तर की स्थिति गरीबी कही जाएगी ।
6. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)—ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें निजी तथा सरकारी दोनों क्षेत्रों का सह अस्तित्व हो ।
7. बूम (Boom) अर्थव्यवस्था में बूम की स्थिति उस समय कही जाती है, जब आर्थिक क्रियाओं का तेजी से विस्तार होता है । यह मन्दी अथवा रिसेशन की विपरीत 4. स्थिति है, माँग में वृद्धि के 5. परिणामस्वरूप किसी उद्योग विशेष 6 में भी बूम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
8. बजट (Budget)– किसी संस्था या सरकार के एक वर्ष की अनुमानित आय-व्यय का लेखा जोखा बजट कहलाता है। सरकार का बजट अब केवल आय-व्यय का विवरण मात्र ही नहीं होता, अपितु यह सरकार कलापों एवं नीतियों का वितरण समिति भी है। यह आधुनिक काल में सामाजिक – आर्थिक परिवर्तन का साधन भी बन गया है।
9. बफर स्टॉक (Buffer Stock) — आपात स्थिति में किसी वस्तु की कमी को पूरा करने के लिए वस्तु का स्टॉक तैयार करना बफर स्टॉक कहलाता है। 9.
10. तेजड़िया और मंदड़िया (Bulls and Bears) – यह स्टॉक एक्सचेंज के शब्द हैं, जो व्यक्ति स्टॉक की कीमतें बढ़ाना चाहता है, तेजड़िया कहलाता है, जो व्यक्ति स्टॉक की कीमतें गिरने की आशा करके किसी वस्तु को भविष्य में देने का वायदा करके बेचता है, वह मंदड़िया कहलाता है।
11. क्रेता बाजार (Buyer’s Market)- जब किसी वस्तु की माँग कम तथा पूर्ति अधिक होती है, जो विक्रेता की तुलना में क्रेता बेहतर स्थिति में होता है, ऐसे बाजार को क्रेता बाजार कहते हैं ।
12. ब्रिज लोन (Bridge Loan)– कम्पनियाँ प्रायः अपनी पूँजी का विस्तार करने के लिए नए शेयर तथा डिबेंचर्स जारी करती रहती हैं, कम्पनी को शेयर जारी करके पूँजी जुटाने में तीन माह से भी अधिक समय लगता है। इस समयावधि में अपना काम जारी रखने के लिए कम्पनियाँ बैंकों से अन्तरिम अवधि के लिए ऋण प्राप्त कर लेती है । इस प्रकार के ऋणों को ब्रिज लोन कहते हैं ।
13. फ्लोटिंग ऑफ करेन्सी (Floating of Currency)– किसी मुद्रा की विनिमय दर को स्वतन्त्र छोड़ देना, ताकि माँग और पूर्ति की दशाओं के आधार पर वह अपना नया मूल्य स्वयं तय कर सके ।
14. अवमूल्यन (Devaluation)– यदि किसी मुद्रा का विनियम मूल्य अन्य मुद्राओं की तुलना में जानबूझकर कम कर दिया जाता है, तो इसे उस मुद्रा का अवमूल्यन कहते हैं । यह अवमूल्यन परिस्थितियों के अनुसार सरकार स्वयं करती है ।
15. विमुद्रीकरण (Demonetization)- जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है, तो इसे दूर करने के लिए विमुद्रीकरण की विधि अपनाई जाती है, इसके अन्तर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा चालू कर देती है, जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है ।
16. मुद्रा संकुचन (Deflation)— जब बाजार में मुद्रा की कमी के कारण कीमतें गिर जाती हैं, उत्पादन में व्यापार गिर जाता है और बेरोजगारी बढ़ती है, वह अवस्था मुद्रा संकुचन कहलाती है ।
17. हीनार्थ प्रबन्धन (Deficit Fianancing) – जब सरकार का बजट घाटे का होता है, अर्थात् आय कम होती है और व्यय अधिक होता है और व्यय के इस आधिक्य को केन्द्रीय बैंक से ऋण लेकर अथवा अतिरिक्त पत्र मुद्रा निर्गमित कर पूरा किया जाता है, तो यह व्यवस्था घाटे की वित्त व्यवस्था अथवा हीनार्थ प्रबन्ध कहलाती है। सीमित मात्रा में ही इसे उचित माना जाता है, हीनार्थ प्रबन्धन को स्थायी नीति बना लेने के परिणाम अच्छे नहीं होते ।
18.ऐस्टेट ड्यूटी (Estate Duty) – किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति के हस्तान्तरण के समय जो कर उस सम्पत्ति पर लगाया जाता है, उसे ऐस्टेट ड्यूटी कहते है ।
19. स्वर्ण मान ( Gold Standard)- जब किसी देश की प्रधान मुद्रा स्वर्ण में परिवर्तनशील होती है, अथवा मुद्रा का मूल्य सोने में मापा जाता है, तो इस मौद्रिक व्यवस्था को स्वर्ण मान कहते हैं, अब किसी देश में स्वर्ण मान नहीं है
20. मुद्रा स्फीति (Inflation)- मुद्रा प्रसार या मुद्रा स्फीति वह अवस्था है, जिससे मुद्रा का मूल्य गिर जाता है और कीमतें बढ़ जाती हैं, आर्थिक दृष्टि से सीमित एवं नियंत्रित मुद्रा स्फीति अल्प – विकसित अर्थव्यवस्था हेतु लाभदायक होती है, क्योंकि इससे उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है, किन्तु एक सीमा से अधिक मुद्रा स्फीति हानिकारक है । मुद्रास्फीति को अस्थायी तौर पर नियंत्रित करने के लिए मुद्रा आपूर्ति कमी का प्रयोग किया जा सकता है।
21. रिसेशन (Recession)– रिसेशन से तात्पर्य मन्दी की अवस्था से है, जब वस्तुओं की पूर्ति की तुलना में माँग कम हो तो रिसेशन की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में धनाभाव के कारण लोगों की क्रय शक्ति कम होती है और उत्पादित वस्तुएँ अनबिक्री रह जाती हैं, इससे उद्योग को बंद करने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है, बेरोजगारी बढ़ जाती है । 1930 के दशक में विश्वव्यापी रिसेशन की स्थिति उत्पन्न हुई थी।
22. प्राइमरी गोल्ड ( Primary Gold)– 24 कैरेट के शुद्ध सोने को प्राइमरी गोल्ड कहते हैं
23. स्टेगफलेशन (Stagflation)- यह अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति है, जिसमें मुद्रा स्फीति के साथ-साथ मंदी की स्थिति होती हैं।
24. टैरिफ (Tariff) किसी देश द्वारा आयातों पर लगाए गए कर को ही टैरिफ कहा, जाता है।
25. मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति (Disinflation) मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण लाने हेतु, जो प्रयास किए जाते हैं (जैसे साख नियंत्रण आदि), उनके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति की दर घटने लगती है, कीमतों में गिरावट आती है तथा रोजगार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, यह स्थिति मुद्रा अपस्फीति अथवा विस्फीति की स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में यद्यपि मूल्य-स्तर गिरता है तथापि यह सामान्य मूल्य स्तर से ऊपर ही रहता है।
26. ऐक्टिव शेयर (Active Share)– वैसे शेयर जिनका क्रय-विक्रय नियमित रूप से प्रतिदिन शेयर बाजार में होता है एक्टिव शेयर कहलाते हैं।
27. राइट शेयर (Right Share)– किसी कम्पनी द्वारा जारी नए शेयरों को क्रय करने का पहला अधिकार वर्तमान शेयर होल्डर का होता है। वर्तमान शेयर होल्डर के इस अधिकार को पूर्ण क्रय का अधिकार कहा जाता है तथा इस अधिकार के कारण उनको जो शेयर प्राप्त होता है, उसे राइट शेयर कहा जाता है ।
28. बोनस शेयर (Bonus Share) — जब किसी कम्पनी द्वारा अपने अर्जित लाभों में से रखे. नये रिजर्व को शेयर के रूप में वर्तमान शेयर होल्डरों के मध्य आनुपातिक रूप से बाँट दिया जाता है तो इसे बोनस शेयर कहा जाता है ।
29 पूर्वाधिकार शेयर (Preferencial Share) – वैसे शेयरों को पूर्वाधिकार शेयर कहा जाता है जिनको सामान्यत: दो पूर्वाधिकार प्राप्त होते हैं । कम्पनी द्वारा सर्वप्रथम इनको लाभांश का भुगतान किया जाता है तथा लाभांश की दर निश्चित होती है। यदि भविष्य में कम्पनी का समापन होता है तो लेनदारों का भुगतान करने के बाद कम्पनी की सम्पत्तियों से वसूल की गयी राशि में से इन श्रेणी के शेयर होल्डर को अपनी पूँजी अन्य शेयर होल्डर्स की तुलना में पहले प्राप्त करने का अधिकार होता है ।
30. कंट्रेरियन शेयर (Contraian Share) इस श्रेणी में उन शेयरों को सम्मिलित किया जाता है जो बाजार के रुख से अलग दिशा में चलते हैं अर्थात् बाजार में शेयरों के भाव में वृद्धि हो रही है तो इन शेयरों के भाव कम हो जाते हैं और यदि बाजार का रुख गिरावट का है तो इन शेयरों का मूल्य बढ़ जाता है ।
31.डेफेशिव शेयर (Defensive Share) – जिन शेयरों के मूल्यों में भारी उतार-चढ़ाव नहीं होते हैं उनको डिफेंसिव शेयर कहा जाता है। इन शेयरों पर वर्त्तमान लाभ पूँजीगत लाभ सामान्य दर से बढ़ता है।
32. ए० डी० इंडेक्स (Advance decline index) — इन सूचचांक का प्रयोग शेयर बाजार की तेजी या मंदी के रुख का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसकी गणना के लिए एक दिन में जिन शेयरों के मूल्य बढ़ते हैं, उनकी संख्या में उन शेयरों को भाग दिया जाता है जिनके मूल्य उस दिन गिरे होते हैं। यदि इंडेक्स 1 से अधिक होता है तो बाजार में तेजी का रुख होता है और इंडेक्स 1 से कम होता है तो बाजार में मंदी का रुख होता है ।
33. ब्लो आऊट (Blowout) जब कोई कंपनी अपना नया इश्यू जारी करती है और उसका सब्सक्रिप्शन पहले ही दिन पूरा होकर बंद हो जाता है तो उसे ब्लोआऊट या आऊट ऑफ विंडो कहा जाता है ।
34. इनसाइडर ट्रेडिंग (Insider Trading)—यह एक द्वारा भारी मात्रा में शेयरों का क्रय- -विक्रय करके कम्पनियों की गुप्त सूचनाएँ रहती हैं तो इस प्रकार के शेयरों के क्रय-विक्रय को इनसाइडर टेडिंग कहां जाता है। अवैध कार्य है । जब उन व्यक्तियों लाभ कमाया जाता है, जिनके पास
35. कैश ट्रेडिंग (Cash Trading) –कैश ट्रेडिंग के अन्तर्गत शेयर सर्टिफिकेट तथा नकद धन राशि का लेन-देन अगली समायोजन तिथि से पहले ही हो जाना चाहिए । जब दलालों के सभी कैश ट्रेडिंग के लेन-देनों का समायोजन हो जाता है इसको समायोजन तिथि कहा जाता है । परन्तु यह 14 दिन से अधिक नहीं हो सकती है
36. कर्बट्रेडिंग (Curb Trading) जब शेयर बाजार के निर्धारित ट्रेडिंग समय के बाद अलग से सौदे किये जाते हैं तो इनको कर्ब ट्रेडिंग कहा जाता है। यद्यपि सौदे दलालों के द्वारा किये जाते हैं, परन्तु इनकों वैधानिक नहीं माना जाता है। इस प्रकार किए गए सौदों का विवरण शेयर बाजार में उपलब्ध नहीं रहता है। वर्त्तमान में यह सेबी द्वारा प्रतिबंधित है।
37. स्टैग (Stag)–स्टैग उन व्यक्तियों को कहते हैं जो नई कंपनियों के इश्युओं में भारी मात्रा में शेयरों के आवदेन पत्र प्रेषित करते हैं। इनको यह आशा रहती है कि जब कुछ व्यक्तियों को शेयर नहीं मिलेंगे तो वे इन शेयरों को बढ़े मूल्य पर खरीदने को तैयार हो जाएँगें । यह व्यक्ति केवल आवेदन पत्र की राशि प्रेषित करते हैं तथा शेयर आवंटित होते ही बेच देते हैं ।
38. बदला(Forward Charge)– जब कोई दलाल भविष्य के लिए सौदा करता है, परन्तु भविष्य की तिथि पर सौदा पूरा न करके आगे के लिए खिसकता रहता है तो कार्य के लिए उसे जो चार्ज देने पड़ते हैं, उसे बदला कहा जाता है। यदि यह कार्य तेजड़ियों द्वारा किया जाता है तो इसे सीधा बदला तथा मंदड़ियों द्वारा किया जाता है । तो इसका अंधा बदला कहा जाता है ।
39. वोलेटाइल शेयर (Volatile share)– जिन शेयरों की कीमतों में बहुत अधिक परिवर्तन होते हैं, उन्हें वोलेटाइल शेयर कहा जाता है । इन शेयरों की कीमत में परिवर्त्तन को इस प्रकार नापा जाता है ।
परिवर्तनशीलता = अधिक मूल्य – न्यूनतम मूल्य/न्यूनतम मूल्य
40. फ्लोटिंग स्टॉक (Floating Stock) – किसी कंपनी की चुकता पूँजी का वह भाग फ्लोटिंग स्टॉक कहलाता है जो शेयर बाजार में क्रय-विक्रय के लिए उपलब्ध रहता है।
41. शेयर सर्टिफिकेट (Share Certificate)– यह एक ऐसा प्रमाण प्रत्र है जो कंपनी के मोहर के अधीन शेयर धारक के नाम जारी किया जाता है तथा इसमें उन शेयरों के नम्बर लिए रहते हैं, जिनके लिए यह जारी किया जाता है। उसमें शेयर भुगतान की गयी धनराशि का विवरण होता है ।
42. बियरर डिबेंचर (Bearer Debenture)– ऐसा डिबेंचर जिसका हस्तांतरण केवल सुपुर्दगी के द्वारा हो जाता है, उनको डिबेंचर कहा जाता है। कंपनी के रजिस्टर में इनका कोई लेखा-जोखा नहीं होता है । डिबेंचर के साथ लगे कूपन को प्रस्तुत करने पर ब्याज तथा डिबेंचर को प्रस्तुत करने पर मूलधन का भुगतान प्रस्तुतकर्ता को प्राप्त हो जाता है । खो जाने तथा चोरी हो जाने पर इस प्रकार के डिबेंचर के पूर्ण जोखिम होते हैं ।
43. बंधकडिबेंचर (Secured Debenture ) – इस प्रकार के डिबेंचर कंपनी के सम्पत्ति पर प्रभार रखते हैं । अतः इनका भुगतान सुरक्षित होता है। बंधक दो प्रकार के होते हैं – एक चल प्रभाव तथा दूसरा निश्चित प्रभाव । चल प्रभाव की स्थिति में किसी निश्चित सम्पत्ति पर प्रभाव नहीं होता है । केवल कंपनी के समापन की स्थिति में इन डिबेंचरों को भुगतान में प्राथमिकता मिल जाती है। निश्चित प्रभाव की स्थिति में डिबेंचरों का कंपनी की किसी निश्चित सम्पत्ति में प्रभाव होता है। ऐसी सम्पत्ति को कंपनी न तो बेच सकती है और न ही हस्तांतरित कर सकती है ।
44. परिवर्तनशील डिबेंचर (Convertible Debenture ) – यह वे ऋण पत्र होते हैं जिनके धारकों को कंपनी यह विकल्प देती हैं कि वे किसी निश्चित अवधि के अंदर अपने ऋण पत्र को कंपनी के शेयर में बदलवा सकते हैं। परिवर्तन की शर्तें सामान्यतः निर्गमन के समय ही तय कर दी जाती हैं, परन्तु ये शर्तें कंपनी में अलग-अलग हो सकती है।
45. हंग अप (Hung up ) – जब किसी शेयर का भाव किसी निवेशक द्वारा क्रय किये गये भाव से काफी नीचे चला जाता है तथा ऐसी स्थिति में अधिक घाटा उठाकर शेयर बेचने के बदले वह निवेशक भविष्य में उसके भाव बढ़ने की आशा में अपने शेयरों को रखे रहे तो ऐसी स्थिति को हंग अप कहा जाता है ।
46. स्नोबॉलिग (Sonowballing)– जब किसी शेयर के मूल्य एक निश्चित सीमा में पहुँच जाते हैं, तब क्रय-विक्रय के अनेक स्टॉप आर्डर होने लगते हैं। इन आर्डर के कारण पुनः बाजार में दबाव बनता है तथा पुनः ऑर्डर मिलने लगते हैं तो उस स्थिति को स्नोबालिग कहा जाता है ।
47. । ग्रे मार्केट (Grey market) — यह अनाधिकृत बाजार होता है, जहाँ नयी तथा सभी शेयर बाजार में सूचीबद्ध न हुई प्रतिभूतियों का प्रीमियम पर लेन-देन होता है । ये सौदे भी अनाधिकृत होते हैं । इन सौदों को शेयर बाजार का संरक्षण नहीं होता है ।
48. ट्रेडिंग लॉट (Trading Lot) —–शेयरों की
वह न्यूनतम संख्या या गुणांक को ट्रेडिंग लॉट कहा जाता है, जिसे शेयर बाजार में एक बार में बेचा या क्रय किया जा सकता है । सामान्यतः 10 रुपए मूल्य वाले शेयरों की न्यूनतम संख्या 50 से 100 निर्धारित की जाती है, जबकि 100 रुपए मूल्य वाले शेयरों की संख्या 5 या 10 निर्धारित की जाती है।
49. शॉर्टसेलिंग (Short Selling) — जब किसी दलाल द्वारा इतने शेयरों की बिक्री की जाती है, जितने उसके पास शेयर नहीं होते हैं तो इसे शार्ट संलिंग कहा जाता है। अनुबंध पूरा करने के लिए दलाल द्वारा नीलामी में शेयर क्रय किये जाते हैं ।
50. पी० ई० अनुपात ( P. E. Ratio) किसी कंपनी के किसी विशेष के बाजार भाव में प्रति शेयर आय से भाग देकर पी० ई० अनुपात ज्ञात किया जाता है ।
P. R. R = विशेष की बाजार मूल्य / E.P.S
नई आर्थिक सुधार नीति से सम्बद्ध कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दावली
◆ निजीकरण- सार्वजनिक क्षेत्र में पूँजी या प्रबंधन या दोनों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना अथवा उन्हें निजी क्षेत्र को सौंप देना ही निजीकरण है ।
◆ उदारीकरण- उदारीकरण, सरकारी नियंत्रण को शिथिल या समाप्त करने की क्रियाविधि है । इसके अन्तर्गत निजीकरण भी शामिल होता है ।
◆ विश्वव्यापीकरण – किसी अर्थव्यवस्था को विश्व – अर्थव्यवस्था से जोड़ने की क्रिया ही विश्वव्यापीकरण है। ऐसा करने से उक्त क्षेत्र में निजी कार्यकुशलता तथा बाहरी तकनीकी ज्ञान प्राप्त होते हैं। .
◆ विनिवेश – सरकारी क्षेत्र में सरकारी हिस्सेदारी को कम करना ही विनिवेश कहलाती है ।
विविध तथ्य
◆ विश्व बैंक की हाल की रिपोर्ट (2002) के अनुसार क्रय शक्ति के आधार पर भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है ।
◆ चाय के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है ।
◆ भारत में सर्वाधिक दूध उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है ।
◆ भारत तम्बाकू उत्पादन करने वाला विश्व का तीसरा बड़ा राष्ट्र है। सबसे बड़ा उत्पादक व उपभोक्ता (दोनों) चीन है ।
◆ दाल के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है । (राज्यों में प्रथम म० प्रदेश )
◆ अमेरिका के साथ भारत का व्यापार अधिकांशतः भारत के पक्ष में होता है ।
◆ 1944 ई० में, मुम्बई के 8 उद्योगपतियों द्वारा प्रस्तुत योजना, ‘बाम्बे योजना’ कहलाती है ।
◆ 1950 ई० में जय प्रकाश नारायण द्वारा ‘सर्वोदय योजना प्रस्तुत की गई ।
◆ चेलैया समिति कर (Tax) बँटवारे से सम्बंधित है।
◆ केन्द्र को सर्वाधिक निवल राजस्व की प्राप्ति सीमा शुल्कों से होती है ।
◆ भारत में पहला जलविद्युत् शक्ति गृह सन् 1897 ई० में दार्जिलिंग में प्रारंभ हुआ ।
◆ भारत में मनीऑर्डर प्रणाली की शुरुआत सर्वप्रथम सन् 1880 ई० में हुई ।
◆ भारत में पहला डाक टिकट सन् 1852 ई० में प्रारंभ हुआ ।
◆ कृषि को उद्योग का दर्जा देने वाला प्रथम राज्य (1997 ई० में ) महाराष्ट्र है
◆ विश्व बैंक के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सम्पत्ति 25 हजार डॉलर है ।
◆ पटसन का सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत है /
◆ ‘बिग पुश थ्योरी’ आर० रॉडन ने दिया है ।
◆ ‘उपभोक्ता की बचत का सिद्धान्त’ अल्फ्रेड मार्शल ने दिया है ।
◆ केन्द्रीय एगमार्क प्रयोगशाला नागपुर में है ।
◆ देश का प्रथम सूती वस्त्र उद्योग सन् 1818 ई० में कलकत्ता में तथा दूसरा कोवस जी नाना भाई द्वारा सन् 1853 ई० में बम्बई में स्थापित किया गया ।
◆ सिंदरी उर्वरक कारखाना, चित्तरंजन का इंजन बनाने का कारखाना, भारतीय टेलीफोन उद्योग, इण्टीग्रल कोच फैकट्री, पेनिसिलीन फैक्ट्री, भारतीय टेलीफोन उद्योग की स्थापना प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान हुई ।
◆ विश्व में सर्वाधिक सहकारी संस्थाएँ भारत में है ।
◆ भारत में असंगठित क्षेत्र, संगठित क्षेत्र की बजाय, अधिक रोजगार का सृजन कर रहे हैं ।
◆ भारत में कुल तिलहन उत्पादन में मूँगफली का हिस्सा सर्वाधिक है ।
◆ भारत में 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले तीन नगर (मुम्बई, कोलकाता और दिल्ली) है।
◆ भारत में सर्वाधिक नगरीकरण गोआ राज्य में हुआ है।
◆ एशियाई विकास बैंक की स्थापना सन् 1966 ई० में हुई। (मुख्यालय-मनीला)
◆ मसालों के विश्व व्यापार में भारत का हिस्सा 40% है ।
◆ राष्ट्रीय आय की सामाजिक लेखांकन गणना विधि का विकास रिचर्ड स्टोन ने किया था ।
◆ जब किसी वस्तु के वास्तविक मूल्य के बजाय मौद्रिक मूल्य से प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है तब उसे ‘मुद्रा भ्रम’ कहा जाता है ।
◆ केन्द्रीय बैंक द्वारा अन्य व्यावसायिक बैंकों से ली जाने वाली – ब्याज दर को ‘बैंक दर’ कहा जाता है ।
◆ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अनुकूल संतुलन की स्थिति वाली मुद्रा, जिसको प्राप्त करना कठिन होता है, को ‘कठोर मुद्रा’ कहा जाता है ।
◆ साख मुद्रा को ‘एच्छिक मुद्रा’ भी कहा जाता है ।
◆ भारत में पाई जानेवाली बेरोजगारी की प्रमुख प्रकृति संरचनात्मक है ।
◆ अर्थव्यवस्था की कीमतों का औसत स्तर सामान्य कीमत स्तर कहलाता है।
◆ आय में बदलाव के फलस्वरूप उपभोग में बदलाव उपभोग की सीमान्त प्रवृत्ति कहलाता है
◆ विदेशी मुद्रा के अनुसार देशी मुद्रा की कीमत विदेशी विनिमय की दर कहलाती है।
◆ किसी देश का आयात और निर्यात से संबंधित भुगतान शेष, ‘व्यापार शेष’ कहलाता है।
◆ कराधान, जनता से ऋण तथा घाटे की वित्त व्यवस्था, राजकोषीय नीति के तीन प्रमुख साधन हैं ।
◆ प्रगतिशील कर-व्यवस्था में आय बढ़ने के साथ करों की दर में भी वृद्धि होती हैं जबकि प्रतिगामी कर-व्यवस्था में आय बढ़ने के साथ कर की दरों में कमी होती है । रोजगार गारण्टी योजना, जो अब NCMP प्रमुख घटक है, सर्वप्रथम 1972-73 में महाराष्ट्र सरकार ने शुरू किया था। इसमें संविधान में दिए गए काम के अधिकार को स्वीकार किया गया है ।
◆ श्वेत क्रान्ति दुग्ध उत्पादन से तथा पीली क्रान्ति तेल व तिलहन उत्पादन से सम्बद्ध है।
◆ श्वेत क्रान्ति की गति को और तेज करने के लिए ‘ऑपरेशन फ्लड’ आरंभ किया गया।
◆ इसके सूत्रधार डॉ० वर्गीज कुरियन है । यह कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा समन्वित डेयरी विकास कार्यक्रम है, जिसे 1970 में कार्यक्रम विश्व का सबसे बड़ा समन्वित डेयरी विकास कार्यक्रम है, जिसे 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) ने प्रारम्भ किया था । अब तक इसके तीन चरण पूर्ण हो चुके हैं ।
◆ विश्व में दूध उत्पादन में भारत का स्थान पहला एवं सं० रा० अमेरिका का स्थान दूसरा है।
◆ ऑपरेशन फ्लड के परिणामस्वरूप देश में दूध की प्रति व्यक्ति दैनिक खपत 2007-08 के दौरान 246 ग्राम तक रहने का अनुमान है जो 265 ग्राम प्रतिदिन के विश्व औसत की तुलना में कम है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह 900 ग्राम है। राज्यों के अन्तर्गत पंजाब में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 800 ग्राम, हरियाणा में 640 ग्राम है और पूर्वोत्तर राज्यों में मात्र 20 ग्राम है।
◆ नीली क्रान्ति मत्स्य उत्पादन से सम्बद्ध है। भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और अन्तर्देशीय मत्स्य पालन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है ।
◆ ऐसी वित्त व्यवस्था जिसमें सरकारी व्यय आय से अधिक हो तथा शेष घाटे की पूरा के लिए सामन्यतः मुद्रा छापे जाते हों, घाटे की वित्त व्यवस्था कहलाती है
◆ भारतीय में निवेश करने वाले अग्रणी देशों में अमेरिका, मारीशस तथा ब्रिटेन है ।
◆ RBI ने एक हजार रु० का नोट 22 वर्षों के अंतराल के बाद 9 अक्टूबर, 2000 को जारी किया ।
◆ भारत पर्यटन विकास निगम की स्थापना एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में 1 अक्टूबर, 1996 को की गई थी ।
◆ 2005–06 की स्थिति के अनुसार सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य गोवा है ।
◆ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में उपनिवेश का दौर 1991-92 से प्रारम्भ हुआ ।
◆ सार्वजनिक उपक्रमों में अपनिवेश से प्राप्त राजस्व के सुनिश्चित प्रयोग के लिए 1 अप्रैल, 2005 को राष्ट्रीय निवेश निधि की स्थापना की गई थी ।
◆ भारत में डीजल इंजन बनाने का पहला कारखाना 1932 में सतारा (महाराष्ट्र) में खोला गया ।
◆ भारत में मोटर वाहनों का सर्वाधिक निर्यात जवाहरलाल नेहरू बन्दरगाह से किया जाता है !
◆ अमरीकी पत्रिका ‘टाइम’ ने इन्फोसिस टेक्नोलॉजी के नारायण मूर्ति का नाम विश्व के शीर्षस्थ 25 व्यवसायियों में शामिल किया है। वर्ष 1981 में नारायणमूर्त्ति द्वारा इन्फोरिस कम्पनी की स्थापना की गई थी। अमरीकी स्टॉक एक्सचेंज (नासदाक) में सूचीबद्ध होने वाली भारत की यह पहली कम्पनी थी ।
◆ दिसम्बर, 2007 के अन्त में भारत पर बकाया कुल विदेशी ऋण लगभग 190.516 अरब डॉलर था ।
◆ ब्रिटेन का प्राचीनतम निवेश बैंक बैरिंग्स फरवरी, 1995 में घोटाले के कारण दिवालिया – हो गया था ।
◆ वर्तमान में निम्नलिखित 3 उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया है: (i) परमाणु ऊर्जा (ii) रेल परिवहन (iii) परमाणु ऊर्जा की अनुसूची में निर्दिष्ट खनिज, 9 मई, 2001 के मंत्रिमण्डलीय निर्णय के अनुसार सरकार ने सुरक्षा उत्पाद के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी है, जिसके लिए कम्पनी को रक्षा मंत्रालय से लाइसेन्स लेना होता है ।
◆ नेशनल कॉमोडिटी एण्ड डेरेवेटिक्स एक्सचेंज लि० (NCDEX) ने कृषिगत उत्पादों के लिए एक सूचकांक (Index) 3 मई, 2005 से प्रारंभ किया है INCDEXAGRI नाम का यह सूचकांक देश में पहला कॉमोडिटी इंडेक्स है।
◆ भारत में मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज की संख्या 24 है।
◆ भारत में बजट घाटे की पूर्ति के लिए अपनाई जाने वाली तदर्थ ट्रेजरी बिल प्रणाली को 31 मार्च 1997 से समाप्त कर दिया गया ।
◆ ‘पॉलिटिक्स ऑफ चरखा’ नामक पुस्तक के लेखक जे० बी० कृपलानी है ।
◆ भारत में सबसे अधिक शाखाएँ वाला विदेशी बैंक ए० एन० जैड ग्रिन्डलेज बैंक है ।
◆ राज समिति ने कृषि जोतों पर कर लगाने की संस्तुति की थी ।
◆ नाबार्ड की स्थापना छठवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में की गई थी ।
◆ ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में घरेलू बचत की दर सकल घरेलू उत्पाद का 34.8% प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि बारहवीं योजना (2012-17) में सकल 38.8% का लक्ष्य रखा गया है।घरेलू बचत दर 33.6% तथा निवेश दर
◆ भारत में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत दिया गया था ।
◆ खादी एवं ग्रामीण उद्योग आयोग की स्थापना दूसरी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत की गई थी ।
◆ वर्ष 2008-09 के लिए व्यक्तिगत आयकर से प्राप्त आय पर 3% उपकर (Cess) लगाया गया है ।
◆ राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान हैदराबाद में स्थित है ।
◆ पुर्तगाल ने भारत को 280 किग्रा० के ऐसे स्वर्ण आभूषण लौटाए हैं, जिन्हें वह भारत में अपने उपनिवेशक शासन के अन्त में ले गया था ।
◆ ‘सुपर 301’ अमरीकी व्यापार कानून की वह धारा है, जो उन्हें अपने आयात पर उच्च सीमा शुल्क लगाने की शक्ति देता है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here