भारतमाता
भारतमाता
Hindi ( हिंदी )
लघु उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है ?
उत्तर ⇒ भारत को अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीर में जकड़ रखा था। परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ी, काल के कुचक्र में फँसी विवश, भारतमाता चुपचाप अपने पुत्रों पर किये गये अत्याचार को देख रही थी। इसलिए कवि ने परतंत्रता को दर्शाते हुए मुखरित किया है कि भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी है।
प्रश्न 2. भारतमाता का हास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर ⇒ भारतमाता के स्वरूप में ग्राम्य शोभा की झलक है। मुखमंडल पर चंद्रमा के समान दिव्य प्रकाशस्वरूप हँसी है, मुस्कुराहट है। लेकिन, परतंत्र होने के कारण वह हँसी फीकी पड़ गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रमा को राहु ने ग्रस लिया है।
प्रश्न 3. ‘भारतमाता’ शीर्षक कविता में पंत जी ने भारतीयों का कैसा चित्र खींचा है ?
अथवा, ‘भारतमाता’ कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ?
अथवा, कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ?
उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता में कवि ने दर्शाया है कि परतंत्र भारत की स्थिति दयनीय हो गई थी। परतंत्र भारतवासियों को नंगे वदन, भखे रहना पड़ता था। यहाँ की तीस करोड़ जनता शोषित-पीड़ित, मूढ, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन एवं वृक्षों के नीचे निवास करने वाली थी।
प्रश्न 4. सुमित्रानन्दन पंत का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर ⇒ सुमिनानंदन पंत का जन्म 1900 ई. में कौसानी (अल्मोड़ा) उत्तरांचल में हुआ था।
प्रश्न 5. कवि भारतमाता को गीता-प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है ?
उत्तर ⇒ परतंत्र भारत की ऐसी दुर्दशा हुई कि यहाँ के लोग खुद दिशाविहीन हो गये, दासता में बँधकर अपने अस्मिता को खो दिये । आत्म-निर्भरता समाप्त हो गई। इसलिए कवि कहता है कि भारतमाता गीता-प्रकाशिनी है, फिर भी आज ज्ञानमूढ़ बनी हुई है।
प्रश्न 6. भारतमाता कहाँ निवास करती है ?
अथवा, कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है ?
उत्तर ⇒ कविता के प्रथम अनुच्छेद में भारतमाता को ग्रामवासिनी मानते हुए तत्कालीन भारत का यथार्थ चित्रण किया गया है कि भारतमाता का फसलरूपी श्यामल शरीर है, धूल-धूसरित मैला-सा आँचल है। गंगा-यमुना के जल अश्रुस्वरूप हैं। ग्राम्य छवि को दर्शाती हुई भारत माँ की प्रतिमा उदासीन है।
प्रश्न 7. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर ⇒ किन्तु भारतमाता ने गाँधी जैसे पूत को जन्त दिया और अहिंसा का स्तन्यपान अपने पुत्रों को कराई है । अतः विश्व को अंधकारमुक्त करनेवाली, संपूर्ण संसार को अभय का वरदान देनेवाली भारत माता का तप-संयम आज सफल है।
दीर्घ उतरिये प्रश्न |
प्रश्न 1. भावार्थ लिखें :
भारतमाता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला-सा आँचल
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि सुमित्रानंदन पंत रचित कविता ‘भारतमाता’ से उद्धृत हैं। ये कविता की शुरुआती पंक्तियाँ हैं। इनके माध्यम से कवि कहता है कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। गाँवों में बसनेवाली भारतमाता आज धूल-धूसरित, उसका आँचल मैला हो गया है। वह अपनी दीन-दशा पर उदास है, मलिन है।
प्रश्न 2. पंत रचित ‘भारतमाता’ कविता का सारांश लिखें।
उत्तर ⇒ ‘भारतमाता’ शीर्षक कविता पंत का श्रेष्ठ प्रगीत है। इसमें उन्होंने तत्कालीन भारत (परतंत्र भारत) का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। यह प्रगीत भावात्मक कम विचारात्मक ज्यादा है।
कवि कहता है कि भारतमाता गाँवों में निवास करती है। ग्रामवासिनी भारतमाता का धूल से भरा हुआ, मैला-सा श्यामल आँचल खेतों में फैला हुआ है। गंगा-यमुना मानो ग्रामवासिनी भारतामाता की दो आँखें हैं जिनमें उसकी परतंत्रता जनित वेदना से निस्सृत (निकला हुआ) आँसू का जल भरा हुआ है। वह मिट्टी की प्रतिमा-सी उदास दिखाई पड़ती है। गरीबी ने उसे चेतनाहीन बना दिया है। वह झुकी हुई चितवन से न जाने किसे एकटक निहार रही है। उसके आधारों पर चिरकाल से नि:शब्द रोदन का दाग है। युग-युग के अंधकार से उसका मन विषादग्रस्त है। वह अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है।
पंत ने प्रस्तुत प्रगीत में भारतवासियों का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। भारतवासियों के तन पर पर्याप्त वस्त्र नहीं है। वे अधनंगे हैं। उन्हें कभी भरपेट भोजन नहीं मिलता। वे शोषित और निहत्थे हैं। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन हैं। वे विवश और असहाय हैं। ग्लानि और क्षोभ से उनके मस्तक झुके हुए हैं। रोना उनकी नियति बन चुका है। उनमें अपूर्व सहनशीलता है। भारत की सारी समृद्धि विदेशियों के पैरों पर पड़ी हुई है। भारतमाता धरती-सी सहिष्णु है। उसका मन कुंठित है। उसके अधर क्रंदन-कंपित हैं। शरदेंदुहासिनी भारतमाता का हास राहुग्रसित है। अर्थात, अब उसके जीवन में हास के लिए कोई स्थान नहीं है। उसकी भृकुटि पर चिंता की रेखाएँ साफ देखी जा सकती हैं। वाष्पाच्छादित आकाश की तरह उसकी आँखें झुकी हुई हैं। उसका आनन कलंक से पूर्ण चंद्रमा से उपमित किया जा सकता है। गीता प्रकाशिनी भारतमाता ज्ञानमूढ़ है। आज उसका तप और संयम सफल हो गया है। उसने अहिंसा रूपी अमृत के समान अपना दूध पिलाकर भारत के लोगों के मन के भीतर के अंधकार और भय को दूर कर दिया है। भारतमाता जगज्जननी और जीतन को नई दिशा देनेवाली है।
प्रश्न 3. ‘स्वदेशी’ कविता का मूल भाव क्या है? सारांश में लिखिए।
उत्तर :- स्वदेशी कविता का मूल भाव है कि भारत के लोगों से स्वदेशी भावना लुप्त हो गई है। विदेशी भाषा, रीति-रिवाज से इतना स्नेह हो गया है कि भारतीय लोगों का रुझान स्वदेशी के प्रति बिल्कुल नहीं है। सभी ओर मात्र अंग्रेजी का बोलबाला है।
सप्रसंग व्याख्या |
प्रश्न 1. स्वर्ण शस्य परं-पद-तल लुंठित
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी !
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पद्यांश गोधूलि पाठ्य पुस्तक के ‘भारतमाता’ पाठ से उद्धृत है। न पंक्तियों के माध्यम से कवि सुमित्रानंदन पंत ने पराधीन भारत का यथार्थ चित्रण किया है। उन्होंने चित्रित किया है कि खेतों में चमकीले सोने के समान लहलहाती हई फसल किसी दूसरे के पैरों के नीचे रौंदी जा रही है और हमारी भारत माता धरती के समान सहनशील होकर हृदय में घुटन और कुंठन का वातावरण लेकर जीवन जी रही है। मन ही मन रोने के कारण भारत माता के अधर काँप रहे हैं। उसकी मौन मुस्कान भी समाप्त हो गयी है। साथ ही शरद ऋतु में चाँदनी के समान मुस्कुराती हई भारतमाता अचानक राहु के द्वारा ग्रसित हो गई है। इस प्रकार परतंत्र भारत का मानवीकरण करते हुए कवि ने चित्रण किया है।
प्रश्न 2. ‘चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित’ की व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के ‘भारतमाता’ पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हए पराधीनता से प्रभावित भारतमाता के उदासीन, दुःखी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ने चित्रित किया है कि गुलामी में जकडी भारतमाता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है, क्षितिज पर गुलामीरूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर रहे हैं। इसके माध्यम से परतंत्रता की दु:खद स्थिति का दर्शन कराया गया है।