बिहार का भूगोल

बिहार का भूगोल

बिहार की भौगोलिक स्थिति
>भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित बिहार का, क्षेत्रफल की दृष्टि से, देश में बारहवाँ स्थान है।
>जनसंख्या की दृष्टि से अन्य राज्यों की तुलना में इसका स्थान देश में तीसरा है।
> बिहार का भौगोलिक विस्तार 24°2010″ उत्तरी अक्षांश से 27°31’15” उत्तरी अक्षांश और 83°19’50” पूर्वी देशांतर से 88°17’40” पूर्वी देशांतर तक है।
>इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किमी है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रफल 92,358.40 वर्ग किमी तथा नगरीय क्षेत्रफल 1,804.60 वर्ग किमी है।
>पूरब से पश्चिम तक बिहार की चौड़ाई 483 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक लंबाई 345
किमी है
>वर्तमान बिहार के उत्तर में नेपाल से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है और दक्षिण में झारखंड राज्य
है, जबकि पूरब में पश्चिम बंगाल और पश्चिम में उत्तर प्रदेश है।
> इसका स्वरूप लगभग आयताकार है।
> बिहार का क्षेत्रफल अविभाजित बिहार का 54 प्रतिशत और कुल भारत का 2.86 प्रतिशत है। बिहार राज्य मुख्यतः मध्य गंगा के मैदानी क्षेत्र में है।
> समुद्र तट से बिहार की दूरी लगभग 200 किमी है और यह गंगा-हुगली नदी मार्ग द्वारा
समुद्र से जुड़ा हुआ है। समुद्र तल से बिहार की औसत ऊंचाई 53 मीटर है।
> कृषि के क्षेत्र में बिहार भारत के अन्य राज्यों में अग्रणी है। देश के कुल चावल का लगभग 15 प्रतिशत उत्पादन करने वाला यह राज्य चावल उत्पादन की दृष्टि से देश में पश्चिम बंगाल के बाद दूसरा स्थान रखता है।
>गेहूँ, मक्का, तिलहन, दलहन, तंबाकू, जूट, मिर्च इत्यादि के उत्पादन में भी बिहार का देश
में महत्वपूर्ण स्थान है। यह देश के कुल खाद्यान्न का 8 से 10 प्रतिशत तक उत्पादित करता है।
भूगर्भिक संरचना
> बिहार राज्य के भू-वैज्ञानिक संगठन में चतुर्थ कल्प से लेकर कैम्ब्रियन पूर्व कल्प के शैल
समूहों का योगदान है।
> बिहार का जलोढ़ मैदान संरचनात्मक दृष्टि से नवीनतम संरचना है जबकि दक्षिणी बिहार
के सीमांत पठारी प्रदेश में आर्कियन युगीन चट्टानें मिलती हैं।
> भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से बिहार में चार स्पष्ट धरातल देखे जाते हैं : 1. उत्तर में
शिवालिक की टर्सियरी चट्टानें; 2. गंगा के मैदान में प्लीस्टोसीन काल का जलोढ़ निक्षेप;
3. कैमूर के पठार पर विंध्य कल्प का चूना पत्थर और बलुआ पत्थर से बना निक्षेप तथा
4. दक्षिण के सीमांत पठारी प्रदेश की आर्कियन युगीन चट्टानें ।
> बिहार का मैदानी भाग जो बिहार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 95 प्रतिशत है, प्राचीन
टेथिस सागर के ऊपर विकसित हुआ बताया जाता है। भू-सन्नति सिद्धांत के अनुसार
हिमालय पर्वत का निर्माण टेथिस सागर के मलवे के संपीडन द्वारा हुआ है।
> हिमालय के बनते समय हिमालय के दक्षिण में एक विशाल अग्रगर्त बन गया था। इस विशाल अग्रगर्त में गोंडवानालैंड के पठारी भाग से निकलने वाली नदियों ने अपने द्वारा लाए गये अवसादों का निक्षेप करना शुरू किया। इससे प्लीस्टोसीन काल में गंगा के मैदान निर्माण हुआ।
> बिहार का मैदानी भाग असंगठित महीन मृतिका,गाद एवं विभिन्न कोटि के  बालूकणो
जैसे अवसादों से निर्मित है, जहाँ बजरी और गोलाश्म के साथ अवसादों के सीमेंटीकरण
के कारण मिट्टी के अधोस्तरीय संस्तरों में प्लेट जैसी संरचनायें विकसित हो गयी हैं। इन पटलों की उपस्थिति ने मैदान के भूमिगत जलप्रवाह को एक विशेष चरित्र प्रदान किया है।
> संपूर्ण बिहार के मैदानी भाग में जलोढ़ की गहराई एक समान नहीं है। गंगा के दक्षिण
स्थित मैदान में जलोढ़ की गहराई पहाड़ियों के निकट अपेक्षाकृत कम है। इसके पश्चिम की
ओर बढ़ने पर जलोढ़ की गहराई बढ़ती जाती है। इस दक्षिणी मैदान में सबसे गहरे जलोढ
बेसिन की स्थिति बक्सर तथा मोकामा के मध्य उपलब्ध है।
>25° उत्तरी अक्षांश से उत्तर की तरफ जलोढ़ की उच्चतम गहराई देखी जाती है। इन क्षेत्रों
में आधार शैल के ऊपर जलोढ़ 100 मीटर से लेकर 700 मीटर तक गहरे हैं।
> डुमरांव, आरा, बिहटा और पुनपुन को अगर एक काल्पनिक रेखा से मिलाया जाये तो
इसके समानांतर स्थित ‘हिंज रेखा’ के समीप जलोढ़ की गहराई अचानक 300-350 मीटर
से बढ़कर 700 मीटर हो जाती है। यह इस प्रदेश की सामान्य संरचनात्मक विशेषता संबंधित है।
>मुजफ्फरपुर तथा सारण के मध्य जलोढ़ बेसिन की अधिकतम गहराई 1000 से लेकर 2500
मीटर तक मापी गयी है।
> 25° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण तथा 86° देशांतर के पश्चिम में स्थित गंगा के मैदान में जन
की गहराई अपेक्षाकृत कम है।
> हरिहरगंज, औरंगाबाद तथा नवादा के सीमांती क्षेत्रों में जलोढ़ स्थलाकृति पर्याप्त स्थानिक अंतर को अभिव्यक्त करती है। इन क्षेत्रों में स्थित आर्कियन नवांतशायी तथा विध्यन
भू-दृश्यों का कोई व्यापक प्रभाव जलोढ़ की गहराई पर नहीं पड़ा है।
> बिहार के पश्चिमी चंपारण और पूर्णिया जिले में शिवालिक का हिस्सा दिखायी देता है।
जिसकी चट्टानें टर्सियरी काल के अंतिम चरण में निर्मित हुई हैं। यह मुख्यतः अवसादी चट्टानें हैं।
> बिहार में अवस्थित सीमांत पठारी प्रदेश छोटानागपुर का हिस्सा है। यह पठार पूर्व कैश्रित
काल में निर्मित है।
> मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में विंध्य काल के जो शैल समूह मिलते हैं उन्हीं का पूर्वी विस्तार बिहार के पश्चिम क्षेत्रों में उपलब्ध है। इन्हें ‘कैमूर का पठार’ कहा जाता है यह प्राचीन अवसादी ग्रिटी से लेकर सूक्ष्मकणीय बालुकाश्म शैल, फ्लैगस्टोन, बलुआही गाद  शैल ,चूना-पत्थर शैलों से तथा क्वार्टजाइट ब्रेसिया, परसेलेनाइटस शैलों से निर्मित है।
> रासायनिक पविर्तन के अंतर्गत चूना पत्थर के शैल रवेदार डोलोमाइट में परिणत होते हैं
इन शैल समूहों के शैल बहुधा पाइराइटीफेरस विशेषताओं को भी प्रकट करते हैं।
>गया, नवादा, मुंगेर, वांका जिलों में ग्रेनाइट, निस, शिष्ट, क्वार्टजाइट से बने आर्कियन  चट्टान दिखायी देते हैं। कई जिलों में क्वार्टजाइट के अलावा स्लेट और फिलायट भी मिलता है।
>बिहार का मैदानी भाग हिमालय के प्रवर्तन से प्रभावित रहा है।
>तृतीय कल्प के भूसंचलनों के प्रभाव से गंगा का असंवलित वेसिन और भी गहरा होता चला
गया तथा इस असंवलित बेसिन में प्रवाहित होने वाली नदियों द्वारा अवसादों के निक्षेप होते
रहने से वर्तमान जलोढ़ मैदान की उत्पत्ति हुई है।
>वर्तमान जलोद के नीचे छिपे भ्रंश भी विवर्तनिक घटनाओं के प्रमाण हैं, जिनसे यह क्षेत्र प्रभावित होता रहा है। संरचनात्मक
घटनाओं में अंतिम उल्लेखनीय घटना प्लीस्टोसीन काल से संबंधित हैं, जब राजमहल तथा शिलांग पठार का मध्यवर्ती भाग धंस जाने पर गंगा नदी बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होने लगी।
प्राकृतिक विभाजन / दशा
> उच्चावच की दृष्टि से बिहार को 3 भागों में बांटा जा सकता है :
1. हिमालय का पर्वतपदीय क्षेत्र(क्षेत्रफल–586 वर्ग किमी)–0.06%
2. गंगा का मैदानी भाग (क्षेत्रफल-90,650 वर्ग किमी) – 96.26%
3. दक्षिण का पठारी भाग (क्षेत्रफल-2,927 वर्ग किमी) – 3.68%
> भौतिक बनावट और संरचना की दृष्टि से बिहार को तीन भागों में विभाजित किया जा
सकता है:
1. उत्तर का शिवालिक का पर्वतीय भाग एवं तराई क्षेत्र, 2. विहार का विशाल मैदान और
3. दक्षिण का सीमांत पठारी प्रदेश।
उत्तर का शिवालिक पर्वतीय एवं तराई क्षेत्र
> बिहार के उत्तर-पश्चिम में स्थित यह एक छोटा क्षेत्र है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 932
वर्ग किमी है। यह शिवालिक पर्वतीय प्रदेश हिमालय का तृतीय मोड़ माना जाता है। यह
टर्सियरी भू-संचलन के फलस्वरूप बना है।
> इसे तीन उप-विभाजनों में बांटा जा सकता है :
1. रामनगर दून
> यह छोटी-छोटी पहाड़ियों का क्रम है, जो 214 वर्ग किमी क्षेत्र पर फैला है।
> इसकी अधिकतम ऊँचाई 240 मीटर है। यह हरहा नदी घाटी के दक्षिण में अवस्थित है।
2. सोमेश्वर श्रेणी
> सोमेश्वर श्रेणी का विस्तार पश्चिम में त्रिवेणी नहर के शीर्ष भाग से भिखनाठोरी तक लगभग 75 वर्ग किमी में है। इसका शीर्ष भाग बिहार और नेपाल के बीच सीमा के रूप में है।
इसकी सर्वोच्च चोटी 874 मीटर ऊँची है।
> इस क्षेत्र में कई दरें हैं, जो नदियों के बहाव के कारण बने हैं। इनमें सुमेश्वर, भिखनाठोरी
और मवात प्रमुख हैं। इन्हीं दरों से बिहार और नेपाल के बीच संपर्क मार्ग बनता है।
> शिवालिक वलित पर्वत के इन श्रेणियों में नदी द्वारा अपरदन के कारण काफी उबड़-खाबड़
क्षेत्र का विकास हुआ है। इन नयी परतदार चट्टानों में मुलायम बलुआ पत्थर मिलता है।
3. दून घाटी
दून घाटी उपर्युक्त दोनों उप-विभाजनों के बीच स्थित है तथा इस घाटी को हरहा नदी की घाटी भी कहते हैं। यह लगभग 24 किमी लंबी है एवं गंगा के जलोढ़ मैदान से कुछ ऊँची है।
बिहार का विशाल मैदान
> यह 90,650 वर्ग किमी में विस्तृत है, जो बिहार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 96 प्रतिशत
है। उत्तरी पर्वतीय प्रदेश और दक्षिणी पठारी प्रदेश के बीच फैला बिहार का विशाल मैदान
नदियों द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिट्टी से बना है, जिसका पश्चिमी सीमावर्ती भाग में कहीं चूने के कंकड़ का ऊपरी सतह के निकट जमाव पाया जाता है।
>गंगा नदी के दक्षिणी भाग में सपाट मैदान है और इस मैदान में चौर के तरह की निचली
भूमि पायी जाती है, जिसे टाल या ताल कहते हैं। वर्षा ऋतु में यह टाल क्षेत्र जलमग्न रहता।
>गंगा के मैदानी क्षेत्र का ढाल सर्वत्र एक समान एवं धीमा है, जो 6 सेमी प्रति किमी है।
>समुद्रतल से इसकी औसत ऊँचाई 60 मीटर से 120 मीटर के मध्य है।
> हालांकि इसकी औसत गहराई 1000 मीटर से 1500 मीटर के मध्य है, परन्तु कही कही
इससे अधिक भी गहराई पायी जाती है।
> सम्पूर्ण राज्य को मुख्यतः दो भू आकृतिक प्रदेशों में बांटा जा सकता है या फिर यह भी
कह सकते हैं कि गंगा नदी इस मैदान को दो भागों में बांटती है-
1. गंगा का उत्तरी मैदान और II. गंगा का दक्षिणी मैदान।
I.गंगा का उत्तरी मैदान
> गंगा के उत्तर में स्थित उत्तरी बिहार का मैदान घाघरा, गण्डक, बूढी गण्डक, बागमती एवं
कोसी नदियों के बहने का क्षेत्र है।
> इन नदियों ने इस प्रदेश को अनेक दोआबों में वर्गीकृत कर दिया है; जैसे-
(i) घाघरा-गंडक दोआव, (ii) गंडक-कोसी दोआव, (iii) कोसी-महानंदा दोआब।
>उत्तर बिहार का यह मैदान समतल एवं मूलतः एकरूपी होने के बावजूद यहाँ की प्रवाह
प्रणाली के कारण स्थानीय भिन्नता रखता है।
>उत्तरी गंगा मैदान में गंगा नदी पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।
>बिहार की राजधानी पटना के उत्तर में गंगा नदी से गण्डक नदी मिलती है।
>उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर गंगा से घाघरा नदी मिलती है।
>गंगा नदी से बूढ़ी गण्डक, वागमती और कोसी नदियाँ मिलती हैं।
> यह भू भाग गंगा के उत्तरी तराई के 56,980 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जो राज्य के
32.77% क्षेत्र पर विस्तृत है यह एक समतल मैदान है और जलोढ़ मिट्टी से बना है।
>इस भू भाग का ढाल उत्तर से दक्षिण को मंद तथा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पश्चिम को अत्यंत मंद होता चला गया है। इसकी औसत ऊँचाई समुद्रतल से 66 मीटर है।
>मैदान के उत्तर-पश्चिमी भाग में शिवालिक पर्वत श्रेणी के अवशेष रूप में कुछ पहाड़ियां
स्थित हैं। राज्य की उत्तरी सीमा के साथ-साथ लगभग 60 किमी तक सोमेश्वर पर्वत श्रेणि
फैली हुई हैं।
> शिवालिक पर्वत श्रेणियों में रामनगर दून की पहाड़ियाँ विस्तृत हैं। रामनगर दून की पहाड़ियां
32 किलोमीटर लम्बी और 6 से 8 किमी चौड़ाई में विस्तृत है तथा यहीं हरहा की घाटी है जो 22 किमी लम्बी है।
>इसी घाटी के उत्तर में सोमेश्वर की 800-2800 फीट ऊँचाई वाली पहाड़ियाँ स्थित है।
>गंगा नदी के प्रवाह क्षेत्र में बाढ़ क्षेत्र की विशेष आकृति के रूप में राज्य में स्थान स्थान पर ‘दियारा-भूमि’ दिखाई पड़ती है। नदी धाराओं के कारण बने दियारा, चौर व छाइन विशिष्ट भू-आकृतियाँ भोजपुर, बक्सर, सारण, चंपारण, मुजफ्फरपुर, भागलपुर,मुंगेर दरभंगा, पूर्णिया व सहरसा में प्रायः मिलते हैं।
> इस मैदान की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(a) यह जलोढ़ पंखी क्षेत्र है, जहाँ से नदियाँ मुड़कर अपना प्रवाह पथ बदलती रही है
(b) गंगा के उत्तरी मैदान व दक्षिणी मैदान का सीमावर्ती भाग अपेक्षाकृत ऊँचा है। इन उच्च भूमियों की संख्या पश्चिम में अधिक है।
(c) इस मैदान के पश्चिमी चम्पारण जिले में पहाड़ियों के समीपवर्ती भाग में नम तराई क्षेत्र है।
>इस मैदान के उत्तर में दलदल भूमि की लम्बी पेटी है जिसके मध्य नदी घाटियाँ तथा कुछ
भूमियाँ विद्यमान हैं।
>दलदल युक्त उत्तरी विस्तृत पेटी के नीचे विस्तृत निम्न भूमि का क्षेत्र है जहाँ दलदली झीलों का बाहुल्य है।
>उपर्युक्त आधारों पर गंगा के उत्तरी मैदान को चार भागों में बाँटा जा सकता है-
1 भावर, तराई एवं उपतराई क्षेत्र 2. भागर या बांगर भूमि तथा 3. खादर भूमि 4 चौर एवं मन
भावर, तराई एवं उपतराई क्षेत्र।
>तराई क्षेत्र शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नीचे पश्चिम से पूर्व की ओर एक संकीर्ण पट्टी के
रूप में विस्तृत है। यह एक सपाट आर्द्र क्षेत्र है।
>तराई क्षेत्र से ठीक सटे दक्षिण उप तराई प्रदेश पाया जाता है। उप तराई प्रदेश की ऊँचाई।
तराई क्षेत्र से कम है। यह एक दलदली क्षेत्र है।
>तराई क्षेत्र को भावर क्षेत्र भी कहते हैं। यह सोमेश्वर पहाड़ी के तराई में 10-12 किमी चौड़ा
ककड़ बालू का निक्षेप है।
2. भांगर (बांगर) भूमि
> भांगर भूमि के अंतर्गत प्राकृतिक बांध तथा दोआब मैदान के क्षेत्र आते हैं। ये आस पास
के क्षेत्र से 7.8 मीटर ऊँचे दिखते हैं। भागर पुराने जलोढ़ होते हैं।
> पुराने जलोढ़ (भांगर) एवं नये जलोढ़ों (खादर) के बीच में एक मध्यवर्ती ढाल मिलता है, जो बहुत स्पष्ट दिखायी देता है।
3. खादर भूमि
> खादर भूमि नवीन जलोढ़ का विस्तृत क्षेत्र है। इसका विस्तार गंडक नदी और कोसी नदी
के बीच है। यह क्षेत्र लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ से प्रभावित होता है।
> यह भूमि काफी ऊपजाऊ होती है। जिन नदियों में बाढ़ प्रत्येक वर्ष आती है उन नदियों
के किनारों पर खादर भूमि का मैदान विकसित होता है।
4.चौर एवं मन
> उत्तरी गंगा मैदान की निम्न भूमि जो वर्षा के समय में पानी से भरा रहता है, चौर’ कहलाती है।
>नदियाँ से बने गोखुर झीलों के रूप में पायी जाने वाली आकृति ‘मन’ कहलाती है।
दियारा भूमि
>गंगा के प्रवाह क्षेत्र में स्थान स्थान पर दियारा भूमि दृष्टिगोचर होती है। यह बाढ़ क्षेत्र की
एक विशेष आकृति है।
> सारण, चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, पूर्णिया और सहरसा में नदी धाराओं के कारण बने दियारा, चौर और छाइन नामक विशिष्ट भू आकृतियाँ विद्यमान हैं।
II. गंगा का दक्षिणी मदान
> गंगा नदी के दक्षिणी तट से झारखंड के छोटानागपुर पठार तक फैला बिहार का भाग भी
समतल है। 1 परन्तु कहीं कहीं बाह्य स्थित पहाड़ियाँ इसकी एकरूपता को भंग करती हैं।
>इनमे गया (266 मी०) राजगीर (466 मी०), खड़गपुर (510 मी०), गिरियक और बराबर की पहाड़ियाँ मुख्य हैं।
>यह भू भाग दक्षिणी बिहार के लगभग
33,670 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यह पि
और मध्य में अधिक चौड़ा तथा पूर्व मे(राजमहल की पहाड़ियों के निकट) संकीर्ण हो गया ।
इस भू भाग में अनेक छोटी छोटी पहाड़ियाँ हैं, जो मैदानी भाग के कृषि क्षेत्र में बीच बीच में स्थित है। यह मैदान राज्य के 19.36% क्षेत्र पर विस्तृत है।
> इस मैदान की प्रमुख नदियाँ सोन, कर्मनाशा, पुनपुन और फल्गू व उनकी सहायक नदियाँ है
>मैदानी भाग में स्थान स्थान पर पहाड़ियाँ और टेकरियाँ फैली हैं, जिनमें गया जिले की
बराबर, रामशिला, प्रेतशिला व जेठनियन पहाड़ियाँ, राजगीर और गिरियक की पहात्ति
बिहारशरीफ की बड़ी पहाड़ी (पीर पहाड़ी) तथा शेखपुरा और पार्वती की टेकरियाँ महत्वपूर्ण है
> इस क्षेत्र की कई नदियाँ गंगा में नहीं मिलकर नदी के समानान्तर दक्षिण से उत्तर की ओर
बहती हैं, जिनका राज्य की सिचाई में महत्वपूर्ण योगदान है।
>दक्षिण गंगा का मैदान मुख्यत छोटानागपुर के पठार (झारखण्ड) से गंगा में प्रवाहित होनेवा
नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है।
> दक्षिण मैदान की औसत ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। इस मैदान का निर्माण पर प्रदेश से होकर बहने वाली नदियों के द्वारा लायी गयी बलुई मिट्टी से हुआ है।
> बलुई मिट्टी होने के कारण इसमें पानी अधिक सूखता है। अत सतह पर जल का अभाव होने पर भी भूमिगत जल अधिक मात्रा में मिलता है।
>इस भाग में गंगा प्राकृतिक कागार का निर्माण करती है। ये प्राकृतिक कागार अपने आस
पास की भूमि से ऊँचा रहते हैं, जिसके कारण नदियाँ गंगा के समानांतर ही प्रवाहित होती हैं। इससे पिनेट प्रवाह प्रणाली का निर्माण होता है।
>प्राकृतिक कागार के दक्षिण जल्ला ढाल का निम्न क्षेत्र (टाल) पाया जाता है। इसका विस्तार
पटना से लखीसराय तक है। इसमें बड़हिया, मोकामा, फतुहा, बख्तियारपुर, बाढ़, मेर और
सिंघौल का टाल प्रमुख है। टाल क्षेत्र वर्षा ऋतु में जलमग्न रहता है।
>गंगा के दक्षिणी मैदान की चौड़ाई पश्चिम में अधिक है, किन्तु पूरब में यह धीरे धीरे क
होती जाती है।
>गंगा के दक्षिणी मैदान को मुख्यत तीन भागों में बांटा जा सकता हैं— सोन गंगा दोआ
मगध का मैदान और अंग का मैदान ।
>दक्षिण बिहार की नदियाँ सदावाहिनी (सदानीरा) नहीं हैं। यहाँ ढाल क्षेत्र में खादर के मैदान मिलते हैं।
> गंगा के दक्षिणी मैदान का निर्माण छोटानागपुर के पठार से गंगा नदी की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों के द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिट्टियों से हुआ है।
>इस मैदान की प्रमुख नदियां सोन, पुनपुन, फल्गू, कियूल और मान हैं।
>गंगा नदी के दक्षिणी किनारे के समानांतर फैली ऊँची तटबंध रेखा के कारण पुनपुन, फल्गु आदि नदियाँ सीधे गंगा में नहीं मिल पाती हैं।
दक्षिण का सीमांत पठारी क्षेत्र
> गंगा के मैदान के दक्षिण सीमात में छोटानागपुर पठार की खादर प्राचीन चट्टानों के दृश्यावांश  जिसमें निस, शिष्ट और ग्रेनाइट चट्टानों की बहुलता है, धरातल पर दिखाई देते हैं।
> यह क्षेत्र तीव्रवाही सरिताओं व प्रपाती ढाल से युक्त पहाड़ियो, समतल सक्रिय घाटियो एवं
विषम धरातल से युक्त पठारी प्रदेश है। इसके अंतर्गत गया, मंदार, बराबर और जेठिन की
पहाड़ियों, गेंगेश्वरी, राजगीर और शेखपुरा आदि की सूकर पीठ पहाड़ियों,विहारशरीफ,पाहपुर, मुंगेर की पहाड़ियाँ तथा रोहतास और कैमूर जिले में विस्तृत कैमूर का पठार आता है।
>मैदान के दक्षिणी सीमांत में नवीनगर और मोराटाल सें मुंगेर तक क्वार्टजाईट की चट्टानें
सुकर पीठ के रूप मे  विकसित है । कुल मिलाकर छोटा नागपुर और कैमूर के पठार का यह अपरदित भाग 150 से 300 मीटर तक ऊँचाई वाले धरातल का निर्माण करते हैं।
>सोन नदी कैमूर के पठार को छोटानागपुर के पठार से अलग करती है।
>छोटानागपुर पठार के उत्तरी सीमांत क्षेत्र में आर्कियन, नीस और ग्रेनाइट हैं, जबकि कैमूर
के पठार में बलुआ पत्थर मिलता है।
बिहार की जलवायु
>बिहार में गंगा का उत्तरी मैदानी भाग हिमालय के निकट स्थित है और पूर्व से पश्चिम की ओर खुला है, जिससे होकर मानसून की आर्द्र हवायें पश्चिम की ओर तथा गर्मियों में पश्चिम की ओर से गर्म एवं सर्दियों में ठंडी हवायें बिहार के मैदानी भाग से प्रवाहित होती हैं।
>प० बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के मध्य स्थित बिहार का पूर्वी भाग पश्चिमी बंगाल के समान
आर्द्र है तथा इसका पश्चिमी भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश के समान उपोष्ण है।
>राज्य के अक्षांशीय विस्तार के आधार पर यह उपोष्ण जलवायु में स्थित है।
>बिहार के पूर्वी भाग में आर्द्र जलवायु तथा पश्चिमी भाग में अर्द्ध शुष्क जलवायु है।
>बंगाल की खाड़ी के निकट रहने के कारण राज्य की जलवायु पर खाड़ी से आने वाले
चक्रवातों का विशेष प्रभाव पड़ता है।
>ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान के क्षेत्र में विकसित होने वाले निम्न दाब का विस्तार पूर्व में विहार,
झारखंड से उड़ीसा तक हो जाता है। इस निम्न दाब की ओर बंगाल की खाड़ी से चलने वाली हवाओं के मार्ग में स्थित होने से बिहार राज्य में वर्षा होती है।
>बिहार का पश्चिमी प्रदेश न केवल उत्तर-पश्चिम मानसूनी हवाओं की खाड़ी की शाखाओं के क्षेत्र में स्थित है, बल्कि अरब सागर की शाखाओं के मार्ग में भी स्थित रहने के कारण अपेक्षाकृत अधिक वर्षा उपलब्ध कराता है।
>बिहार राज्य न केवल सर्दियों में चलने वाली भूमध्य सागरीय अवदाब की पूर्वी सीमा है,
बल्कि ग्रीष्मकालीन पश्चिम से आनेवाली गर्म ‘लू’ की भी पूर्वी सीमा है। इस गर्म लू से बिहार का उत्तर-पूर्वी भाग एवं समस्त मैदानी भाग प्रभावित रहता है।
>एक ऋतु से दूसरी ऋतु में होने वाला वायु मार्ग परिवर्तन भी बिहार की जलवायु की एक प्रधान विशेषता है।
>बिहार राज्य की जलवायु मानसूनी प्रकार की है। समुद्र से दूर होने के कारण यहाँ के मौसम
में विषमता है। तापमान व वर्षा की दृष्टि से राज्य की जलवायु विशिष्ट प्रकार की है।
>यहाँ वर्ष में तीन प्रमुख मौसम होते है—1. ग्रीष्म ऋतु (मार्च से मध्य जून तक) 2. वर्षा ऋतु (मध्य जून से मध्य अक्टूबर तक) 3. शरद ऋतु (मध्य अक्टूबर से फरवरी तक) ।
ग्रीष्म ऋतु
>राज्य में ग्रीष्म ऋतु, जो मार्च में शुरू होती है, मध्य जून तक रहती है। अप्रैल माह से दिन
का तापमान काफी बढ़ जाता है।
>यहाँ मई माह में तापमान सर्वाधिक रहता है, मई का औसत तापमान 32° से० रहता है।
>मानसूनी हवाओं के आगमन से मध्य जून में तापमान कुछ कम हो जाता है।
> बहुधा बंगाल की खाड़ी से चक्रवातीय तूफानों के मई जून से पहुँचने पर तूफानी वर्षा  से
जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
>राज्य में धूल भरी आंधियों के अलावा चलनेवाली ‘गर्म हवा’ (लू) इसकी मुख्य विशेषता
है। लू की चपेट में गंगा के दक्षिणी मैदान के क्षेत्र रहते हैं।
> ये हवायें 8-16 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से बहती हैं। पठारी भाग में इनका ताप कम
हो जाता है और ये मंद पड़ जाती हैं।
> राज्य के गया जिला में सर्वाधिक तापमान रहता है।
> बिहार में इस मौसम का आरंभ मानसून के आगमन के साथ होता है।
> वर्षा मध्य जून से शुरू हो जाती है, लेकिन जुलाई अगस्त माह अत्यधिक वर्षा वाले माह
माने जाते हैं। बिहार में वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून का उपहार है।
>राज्य में वर्षा की मात्रा उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती चली जाते
>दक्षिण-पश्चिम मानसून का उद्भव हिन्द महासागर से होता है— जो अरब सागर होता।
लगभग मध्य जून में बिहार में पहुँचता है।
> मध्य अक्टूबर तक राज्य के मैदानी भागों में पर्याप्त वर्षा होती है। इसके बाद दक्षिण-पि
मानसून प्रवाह शिथिल हो जाता है और मंदगति से हवा विपरीत दिशा में बहने लगती।
इसे मानसून का लौटना (Retreat of Monsoon) कहा जाता है।
> इसके साथ ही मैदानी भागों में ठंढी पछुआ व उत्तरी हवा का बहना प्रारंभ हो जाता है, जो
शरद् ऋतु के आगमन का संकेत माना जाता है।
शीत ऋतु
> राज्य में मानसून के समाप्त होते ही आर्द्रता और रात में भरपूर ओस पड़ने से तापमान
कम होने लगता है। इसी समय पश्चिम से ठंडी हवाएँ चलनी शुरू होती हैं, जिसे पछुआ बयार कहते हैं।
> मध्य अक्टूबर के बाद ही राज्य में शीत (शरद ऋतु आ पहुँचती है। सम्पूर्ण बिहार में नवम्बर का तापमान 19-6° से० से 22-2° से० तक पाया जाता है जबकि जनवरी माह का औसत न्यूनतम तापमान 7.5° से० से 10.5° से० तक रहता है।
> दिसंबर-जनवरी माह में भूमध्य सागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले चक्रवातीय तूफान मौसम
बदल डालते हैं। इस कारण प्रायः घनघोर वर्षा होती है जिससे दिसंबर जनवरी माह में ठण्ड
अत्यन्त बढ़ जाती है। यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभप्रद होती है।
> कोपेन ने अपने जलवायु विभाजन में बिहार के उत्तरी भाग को CWg और दक्षिणी भाग
को AW जलवायु के अन्तर्गत माना है।
> यार्नवेट ने बिहार के अधिकांश भाग को CA’W में और उत्तरी संकीर्ण क्षेत्र को CB’W
में माना है।
> ट्रिवार्या ने लगभग आधे उत्तरी भाग को CA’W और आधे दक्षिणी भाग को AW जलवायु विभागों में प्रदर्शित किया है।
बिहार में कृषि जलवायु क्षेत्र
> कृषि जलवायु की दृष्टि से बिहार राज्य को चार भागों में विभाजित किया जा सकता
1. पश्चिमोत्तर का मैदान, 2. पूर्व का मैदान भाग भाग, 3. दक्षिण-पश्चिम का मैदान और
4. दक्षिण का पठारी क्षेत्रहो ने
कृषि-जलवायु क्षेत्र
(Agro Climatic Zone)
1.पश्चिमोत्तर का मैदान
2. पूर्व का मैदानी भाग
3. दक्षिण-पश्चिम का मैदान
4.दक्षिण का पठारी क्षेत्र
जिले
1.प० चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सिवान, सारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, मधुवनी, शिवहर, दरभंगा, समस्तीपुर और गोपालगंज
2.पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, बेगूसराय, मुंगेर, खगड़िया, भागलपुर, अररिया, किशनगंज
3.गया, नवादा औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, पटना, नालंदा, रोहतास, भोजपुर, बक्सर
4.बांका, जमुई, कैमूर (भभुआ), लखीसराय, शेखपुरा
बिहार के जलवायु प्रदेश
>जलवायु की क्षेत्रीय विशेषताओं के आधार पर बिहार को मुख्य रूप से चार जलवायु प्रदेशों
में बाँटा जा सकता है- 1. उत्तर-पश्चिमी गिरिपाद प्रदेश, 2. उत्तर-पूर्वी प्रदेश, 3. रोहतास
का पश्चिमी निम्न पठारी प्रदेश और 4. मध्यवर्त्ती प्रदेश ।
>हिमालय के गिरिपाद के निकट स्थित बिहार के उत्तरी भाग यानि उत्तर-पश्चिमी गिरिपाद प्रदेश में 1,400 मिमी० से अधिक वर्षा होती है। यह क्षेत्र जुलाई में अधिक वर्षा प्राप्त करता है, जबकि उत्तरी बिहार के अन्य क्षेत्रों के लिए अगस्त उच्च वर्षा का महीना है।
>अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इस आर्द्र प्रदेश में ग्रीष्म काल की अवधि छोटी और शीत काल की
अवधि लंबी होती है।
> राज्य का उत्तर-पूर्वी प्रदेश सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करता है तथा इस क्षेत्र में वर्षा ऋतु की
अवधि भी लंबी होती है। यह क्षेत्र नार्वेस्टर तथा दक्षिण-पश्चिमी मानसून दोनों से वर्षा प्राप्त करता है।
>मई महीने में नार्वेस्टर से होने वाली वर्षा जूट की खेती के लिए उत्तम होती है।
>अरब सागरीय मानसून शाखा से प्रभावित रोहतास का पश्चिमी निम्न पठारी प्रदेश 1200
मिमी० तक वर्षा प्राप्त करता है।
> नार्वेस्टर वर्षा से प्रायः वंचित तथा धूल भरी आँधियों और लू से प्रभावित इस प्रदेश (क्षेत्र)
में सबसे गर्म महीना मई होता है।
>दक्षिण की तुलना में इसके उत्तरी भाग में वर्षा कम होती है। मध्यवर्ती प्रदेश गंगा के दोनों ओर का क्षेत्र है, जहाँ वर्षा कम होती है। यह क्षेत्र उच्चतम तापांतर का क्षेत्र है।
> ग्रीष्मकालीन धूल भरी आँधियों और लू से प्रभावित इस प्रदेश (क्षेत्र) के लिए उच्च औसत
तापमान का महीना जून है।
बिहार में वर्षा का वितरण
> बिहार राज्य में वर्षा के वितरण में प्रायः असमानता पायी जाती है।
> बिहार के मैदानी भाग में जहाँ 100-150 सेमी० वर्षा होती है, वहाँ राज्य के उत्तर-पश्चिमी
और उत्तर-पूर्वी भाग के छोटे क्षेत्रों में 200 सेमी० से अधिक वर्षा पायी जाती है।
> बिहार में सबसे कम वर्षा पटना के पश्चिम त्रिकोणीय भूखंड पर होती है, जबकि सर्वाधिक
वर्षा राज्य के उत्तर-पूर्व में स्थित किशनगंज जिले में होती है।
> किशनगंज क्षेत्र में होने वाली ऊँची औसत वर्षा का संबंध पूर्व-मानसून में ‘नारवेस्टर’ से होने वाली वर्षा से है तथा कुछ हिमालय की ऊँचाई और उससे इसकी निकटता से भी है।
दक्षिण-पश्चिमी मानसून वर्षा
> बिहार में होने वाली वर्षा मुख्यतः बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसून
हवाओं की देन है। इन हवाओं से बिहार की कुल वार्षिक वर्षा की 80% वर्षा प्राप्त होती है।
> मानसून के आगमन की अनिश्चित तिथि तथा इससे प्राप्त होने वाली वर्षा की अनिश्चित अवधि और मात्रा से बिहार की कृषि काफी प्रभावित होती है।
मानसून की वापसी
> प्रायः अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से बिहार में मानसून का प्रभाव कम होने लगता है।
> मानसूनी हवाओं का वेग तथा उनका प्रवाह सिमटने के परिणामस्वरूप उस समय बिहार का
उत्तर-पूर्वी भाग जहाँ मात्र 100 मिमी० तक वर्षा प्राप्त करता है वहाँ इसके उत्तर-पश्चिम भाग में इस अवधि में कुल 25 मिमी० से भी कम वर्षा प्राप्त होती है।
> सामान्यतया इस अवधि में बिहार का अधिकांश क्षेत्र 25 मिमी० से 100 मिमी० तक वर्षा प्राप्त करता है। बिहार में शरदकालीन धान के तैयार होने तथा रबी की फसल के लिए आवश्यक आर्द्रता बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न होने वाले चक्रवातों के प्रभाव से उपल्ब्ध होती है।
> उस अवधि में हथिया नक्षत्र की वर्षा बिहार की कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एवं निर्णायक
भूमिका अदा करती है।
शीतकालीन वर्षा
> बिहार में होने वाली शीतकालीन वर्षा भूमध्य सागरीय अवदाबों से संबंधित है, जिनके
आगमन से ही जनवरी-फरवरी महीनों की कुल वर्षा मात्र एक-दो दिनों में उपलब्ध हो जाती है।
> बिहार में गंगा के उत्तरी मैदान में इन महीनों (जनवरी-फरवरी) में होने वाली वर्षा की मात्रा
पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती है, जबकि गंगा का दक्षिणी मैदान, जो कुल
मिमी० शीतकालीन वर्षा प्राप्त करता है, से दक्षिण-पूर्व की ओर वर्षा की मात्रा बढ़कर
मिमी० तक हो जाती है।
ग्रीष्मकालीन वर्षा
> बिहार में ग्रीष्मकालीन वर्षा अल्प मात्रा में मार्च से मई तक होती है। इस अवधि में बिहार
में 50 मिमी० से 200 मिमी० तक वर्षा होती है।
> ग्रीष्मकालीन वर्षा जहाँ राज्य के पूर्वी भाग में 150 मिमी० तक हो जाती है, वहीं पश्चिमी
भाग में इसकी मात्रा काफी कम होती है। ग्रीष्म ऋतु में चक्रवाती हवाओं के कारण पूर्णिमा
जिले का उत्तर-पूर्वी भाग विशेष आर्द्र रहता है।
>ग्रीष्मकालीन वर्षा खासकर मई महीने में होने वाली वर्षा आम, लीची एवं भदई फसलों के
लिए विशेष रूप से लाभदायक व महत्वपूर्ण होती है।
बिहार की अपवाह प्रणाली / नदी प्रणाली
> बिहार राज्य के मुख्य जल संसाधन–बिहार राज्य में जल संसाधन के अनेक प्राकृतिक सा
जिनमें मुख्य हैं— (i) नदियाँ और अपवाह तन्त्र (ii) जलप्रपात एवं जलकुंड (iii) वेटलैंडस्।
> नदियों और उसके अपवाह तन्त्रों को, उद्गम के आधार पर दो वर्गों में रखा जा सकता है-
(1) हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली नदियाँ और (2) पठारी क्षेत्र के दक्षिणी भाग से निकलने
वाली नदियाँ ।
>हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली नदियों में सरयू (घाघरा), गण्डक, बूढ़ी गंडक, बागमती कमला, कोसी, बलान तथा महानंदा प्रमुख हैं। ये सभी चिरस्थायी नदियाँ गंगा के उत्तरी
मैदानी भाग में वहती हुई गंगा में मिल जाती हैं। इनमें से अधिकांश नदियाँ बाढ़ की विभीषिका के लिए कुख्यात हैं।
> पठारी क्षेत्र की नदियों में सोन, उत्तरी कोयल, चानन, पुनपुन, फल्गू, कर्मनाशा, संकरी,
पंचाने आदि प्रमुख हैं। ये नदियाँ राज्य के दक्षिणी भागों से होती हुई गंगा या इसकी सहायक नदियों में मिल जाती हैं। ये मुख्यतः बरसाती नदियाँ हैं।
>बिहार के अपवाह-तंत्र में अनेक छोटी-छोटी नदियाँ हैं, जो धरातलीय बनावट के अनुसार
प्रवाहित होती हैं।
> इन नदियों ने न केवल बिहार के धरातलीय स्वरूप को विकसित करने में निर्णायक योगदान दिया है बल्कि ये नदियाँ सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती हैं, जल परिवहन का मार्ग प्रस्तुत करती हैं तथा साथ ही साथ मत्स्य प्राप्ति और अन्य व्यवसाय में सहायक भी होती हैं।
> ये नदियाँ जल विद्युत् का स्रोत होती हैं और अन्य प्रकार से भी राज्य के प्राकृतिक संसाधनों को समृद्ध बनाती हैं।
> बिहार में बहने वाली जिन नदियों का उद्गम-स्थल मध्य प्रदेश रहा है, वे हैं— सोन व पुनपुन।
> पड़ोसी देश नेपाल बिहार की चार प्रमुख नदियों का उद्गम-स्थल है। बागमती और कमला नदी नेपाल में हिमालय की महाभारत श्रेणी से, सरयू नदी नाम्पा (नेपाल) से तथा कोसी नदी पूर्वी नेपाल की सप्तकौशिकी से निकलती हैं।
> झारखंड राज्य का छोटानागपुर-संथाल परगना क्षेत्र जिन नदियों का उद्गम स्थल रहा है,
वे हैं—स्वर्ण रेखा, बराकर, फल्गू, संकरी, पंचाने।
> ये नदियाँ छोटानागपुर के पठारी भाग
से-दामोदर नदी पलामू जिले से, उत्तरी- दक्षिणी
कोयल नदी राँची की पहाड़ियों से तथा अजय नदी संथाल परगना के राजमहल पहाड़ी क्षेत्रों
से निकलती हैं।
> उपर्युक्त सभी नदियों को जलप्रवाह, स्थिति व दिशा के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में
बाँटा जा सकता है-
★प्रथम वर्ग- इस वर्ग में सरयू, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, बलान, कोसी
एवं महानंदा नदियों को रखा जा सकता है, जो गंगा नदी में उत्तर से आकर मिलती हैं।
★द्वितीय वर्ग- इस वर्ग में सोन, पुनपुन, उत्तरी कोयल, चानन, फल्गू, सकरी, पंचाने
एवं कर्मनासा नदियाँ आती हैं, जो गंगा में दक्षिण से आकर मिलती हैं।
★ तृतीय वर्ग- इस वर्ग में दामोदर, बराकर, स्वर्ण रेखा, दक्षिणी कोयल, संख व अजय
आदि ऐसी नदियाँ हैं जो राज्य के दक्षिणी भाग में प्रवाहित होती हैं।
> बिहार की जल प्रवाह प्रणाली में गंगा तथा उसकी सहायक नदियों का विशेष योगदान है।
बिहार में गंगा के उत्तरी मैदान की नदियाँ
> गंगा के उत्तरी मैदान की प्रमुख नदियाँ घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी तथा महानंदा हैं। चूँकि इन नदियों का उद्गम स्थल हिमालय का पर्वतीय प्रदेश है, इसलिए इन नदियों में वर्ष भर जल प्रवाहित होता है।
> ये नदियाँ बरसात के समय काफी मिट्टियाँ और रेत लाती हैं, जिससे उपजाऊ उत्तरी मैदान का निर्माण होता है।
> हिमालय से निकलकर तेज गति से बहने वाली ये नदियां उत्तर बिहार में भयंकर बाढ़ लाया करती हैं। इन नदियों में घाघरा, गंडक, वागमती और कोसी अपनी मार्ग परिवर्तन के लिए कुख्यात हैं।
>गंगा नदी बिहार के अपवाह तंत्र का मुख्य आधार है। गंगोत्री इसका उद्गम स्रोत है ।
हरिद्वार के पास यह समतल भूमि पर बहना आरंभ करती है और चौसा के निकट यह
बिहार के मैदान में प्रवेश करती है तथा मैदान को दो भागों में बांटते हुए यह बंगाल मे प्रवेश कर जाती है।
> गंगा में उत्तर दिशा से मिलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं-
घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, बलान, कोसी और महानंदा ।
> बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा के पास ही घाघरा (सरयू) नदी गंगा नदी से मिलती है
> गंगा में दक्षिण दिशा से मिलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं— कर्मनाशा, सोन, पुनपुन, हरोहा
फल्गू तथा किऊल |
> गंगा की ढाल बहुत कम है अतः वर्षा के दिनों में अधिक जलग्रहण के कारण इसका पानी तटबंधों को पार कर दोनों ओर फैल जाता है, जो बाढ़ की समस्या उत्पन्न करता है। इसका प्रकोप उत्तर बिहार में अधिक रहता है।
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गंगा
> गंगा उत्तराखंड के उत्तर काशी जिले के 5611 मीटर ऊँचे गंगोत्री ग्लेशियर से भगीरथी
नाम से निकलती है।
> बिहार तक पहुँचते-पहुँचते गंगा नदी में धौली, पिण्डार, अलकनंदा, मंदाकिनी, रामगंगा यमुना, गोमती और घाघरा नदियाँ मिल जाती हैं।
> गंगा भोजपुर और सारण जिलों की सीमा बनाती हुई बिहार में प्रवेश करती है। यहीं गय
में उत्तर से आने वाली सरयू (घाघरा) और दक्षिण से आने वाली सोन नदियाँ मिलती हैं।
> दक्षिण से बहकर गंगा में मिलने वाली नदियों में चौसा के पास कर्मनाशा, बक्सर के पा
ढोरा, थोड़ा पूर्व में काव, छेर, बनास, मनेर के पास सोन, फतुहा के समीप पुनपुन,
 गढा के पास फल्गू, मोहिनी, धनऊन, किऊल, थोड़ा पूर्व में मुहाने, भागलपुर के निकट
 बडुआ चानन, कहलगाँव के पास धोधा, गेरुआ, काआ और थोड़ा दक्षिण पूर्व में गुमानी
नदियां आकर मिलती हैं।
>पटना से आगे सारण और वैशाली जिलों की सीमा बनाती गण्डक नदी गंगा में सोनपुर में
 मिलती है। कुछ आगे बहने पर गंगा से मुंगेर के उत्तर में वागमती, कुरसेला के पास कोसी,
मनिहारी के निकट काली कोसी तथा थोड़ा पूर्व में बहने पर पनार और महानंदा उत्तर से
आकर मिलती हैं।
>इसका उद्गम स्थल नाम्पा (नेपाल) में है। उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में तीव्र गति से बहती हुई सरयू नदी सीवान जिले के समीप बिहार में प्रवेश करती है और छपरा के निकट यह गंगा नदी से मिल जाती है।
>कुछ दूरी तक यह बिहार तथा उत्तर प्रदेश की सीमा का निर्धारण भी करती है। हिन्दू और
बौद्ध धर्म ग्रंथों में सरयू को अत्यन्त पवित्र नदी माना गया है।
>नदी के तीव्र प्रवाह से बहने के कारण सरयू नदी को घाघरा या घग्घर नदी के नाम से भी
संबोधित किया जाता है।
>इस नदी की लंबाई लगभग 1180 किमी है। पूरे वर्ष जल से भरी रहने के कारण इसे
सदानीरा कहा जाता है।
गण्डक
>नेपाल में इसे सप्त गण्डकी के नाम से पुकारते हैं। इसकी मुख्य धारा का नाम काली गण्डक
और नारायण गण्डकी या नारायणी है। नेपाल के तराई भाग में इसे शालग्रामी भी कहा जाता है।
> गण्डक नदी अपनी सात सहायक नदियों के साथ मध्य हिमालय में नेपाल की उत्तरी सीमा
और तिब्बत में विस्तृत हिमालय की अन्नपूर्णा पहाड़ियों के समीप मानंगमोट और कुतांग
के समीप से निकलती हैं।
>यह नदी नेपाल की सीमा को पार कर भारत में प्रवेश करती है तथा कुछ दूर उत्तर प्रदेश
और बिहार की सीमा के साथ-साथ बहती है।
> गण्डक नदी पटना के सामने तथा उत्तर बिहार के हाजीपुर और सोनपुर नामक दो प्रसिद्ध
नगरों के मध्य बहती हुई मुजफ्फरपुर तथा सारण जिलों की सीमा बनाती हुई गंगा में मिल
जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 425 किमी है।
बूढी गण्डक
>इस नदी का बहाव गण्डक के समान
उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर है।
यह नदी सोमेश्वर श्रेणियों के पश्चिमी भाग से निकलकर बिहार के उत्तरी-पश्चिमी जिले
प० चम्पारण में प्रवेश करती है तथा मुजफ्फरपुर, दरभंगा और मुंगेर जिलों में बहती हुई गंगा में मिल जाती है।
> इसकी सहायक नदियाँ हरहा, कापन, मसान, वाणगंगा, पंडई मनियरी, करहहा, उरई, तेलावे,
प्रसाद, तियर आदि हैं।
बागमती
> यह हिमालय की महाभारत श्रेणियों से नेपाल में निकलती है। यह बिहार की खतरनाक नदियों में से एक है। इस नदी का बहाव गण्डक के समान उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर है।
>समस्तीपुर जिले के रोसड़ा नगर से लगभग दो मील दूर पश्चिमोत्तर में सिंघिया नामक गाँव
के निकट यह बूढ़ी गंडक नदी से संगम करती है।
> यह हेरियासराय (दरभंगा) के दक्षिण 6 मील दूर स्थित हायाघाट रेलवे स्टेशन के पास से दो भागों में विभक्त हो जाती है।
> इसकी दाहिनी धारा बूढ़ी गंडक से जा मिलती है जबकि दायीं धारा को करेह नदी के नाम
से जाना जाता है। यह कमला नदी से मिलकर कोसी में जा मिलती है।
>बागमती नदी बाढ़ के दिनों में अक्सर अपना प्रवाह मार्ग बदल लेती है। यह मुजफ्फरपुर
समस्तीपुर, दरभंगा और मधुवनी जिलों में काफी क्षति पहुँचाती है।
> इसकी सहायक नदियाँ साल बकेया, लाखनदेई, चकनाहा, जमुने, सिपरी धार, छोटी बागमती कोला आदि हैं।
कमला
> यह नदी भी नेपाल में हिमालय की महाभारत श्रेणियों से निकलती है तथा नेपाल की तरह
से होती हुई जयनगर की सीमा से बिहार में प्रवेश करती है।
> पहले यह नदी जीवछ कमला कहलाती थी, परन्तु अब यह बलान नदी से मिलकर बहरे
लगी है। यह मिथिला की प्रसिद्ध नदी है और पुण्य प्राप्ति की दृष्टि से गंगा के बाद मिथिला में इसी का स्थान है। इस क्षेत्र में इस नदी को कमला माई भी कहा जाता है।
> यह दरभंगा प्रमंडल में प्रवाहित होकर कोसी से मिल जाती है।
> इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ सोनी, ढोरी और बलान हैं।
> वर्षा के समय यह नदी काफी बाढ़ लाती है। धारा परिवर्तन इसका स्वभाव रहा है, अतः
इसकी बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र में काफी क्षति होती है।
कोसी
> पूर्वी नेपाल में हिमालय की उच्च पर्वत श्रेणियों के मध्य सप्त कौशिकी क्षेत्र से निकलती है।
> इस क्षेत्र से जल की सात धाराएं (सुत कोसी, भोटिया कोसी, तांबा कोसी, लिखू कोसी ,
दूध कोसी, अरूण कोसी और तांबर कोसी) बहती हैं, जिससे इसका नाम सप्त कौशिक
पड़ा है।
> कोसी का वास्तविक नाम ‘कौशिकी’ है तथा इसका महत्व गंगा, यमुना, सरस्वती, कृष्णा
कावेरी और नर्मदा के समान है।
> हिमालय से निकलकर कोसी नदी की धारा नेपाल के पर्वतीय प्रदेश से बहती हुई भारत
नेपाल सीमा को पार कर चतरा गद्दी (धरान) के निकट वराह क्षेत्र से बिहार में प्रवेश करती है।
>बराह क्षेत्र में आकर कोसी की धारा का तीव्र वेग हालांकि मंद पड़ जाता है परंतु इसके
बराबर रास्ता बदलते रहने के कारण उत्तरी बिहार का प्रभावित क्षेत्र तबाह होता रहता है
यही कारण है कि इस नदी को ‘बिहार का शोक’ या ‘विहार का अभिशाप’ कहते हैं।
> यह सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया तथा पूर्णिया जिले से होती हुई खगड़िया के पास
गंगा से मिल जाती है।
> गंगा के उत्तरी सहायक नदियों में सबसे अधिक लंबाई (120 किमी) इसी कोसी नदी की है  गंगा में मिलने से पूर्व कोसी स्वयं अपना डेल्टा बनाती है, जो इसकी अनूठी विशेषता है।
महानदी
> उत्तरी बिहार के मैदान की यह सबसे पूर्वी नदी है जो हिमालय से उतरने के बाद पूर्णिया
और कटिहार से होकर बहते हुए कटिहार के दक्षिण-पूर्व  में मिल जाती है।
बिहर में गंगा के दक्षिणी मेदान की प्रमुख नदियाँ
सोन
>सोन अथवा सोनभद्र नदी का उद्गम गोडवाना क्षेत्र में स्थित मैकाल पर्वत के अमरकटक
नामक स्थान से हुआ है।
>सोन नदी के उद्गम को अरीय अपवाह प्रतिरूप का एक बढ़िया उदाहरण माना जाता है, क्योंकि अमर कंटक से सोन के साथ अन्य दिशाओं में नर्मदा भी निकलती है।
> यह कैमूर के पठार के दक्षिण से बिहार में प्रवेश कर गंगा सोन के दोआब में बिहार को
सबसे ऊपजाऊ मैदान बनाती है। इस नदी की कुल लंबाई 780 किमी है।
>सोन (शोणभद्र) नदी झारखण्ड के पलामू तथा बिहार के रोहतास, औरंगाबाद, भोजपुर, पटना जिलों की पश्चिम सीमा बनाती हुई प्रवाहित होती है और पटना से 16 किलोमीटर दूर दानापुर में गंगा में मिल जाती है।
पुनपुन
>यह नदी छत्तीसगढ़ के पठारी भाग से निकलती है। मौसमी नदी होने के कारण यह ग्रीष्मकाल में सूख जाती है, लेकिन वर्षा ऋतु में अत्यधिक जल के साथ बहती है।
> यह गया और पटना जिलों में बहती हुई फतुहा नामक स्थान के निकट गंगा में मिल जाती है।
> ऐसा माना जाता है कि पुनपुन नदी में स्नान तथा पिण्डदान करने से पूर्वजों की आत्मा को
शान्ति मिलती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
> पुनपुन की सहायक नदियों में दरघा और मनोहर नदियाँ प्रमुख हैं।
कर्मनाशा
> यह नदी विंध्याचल की पहाड़ियों से निकलती है। अपने मार्ग पर बहती हुई यह नदी बिहार और उत्तर प्रदेश के बीच सीमा भी बनाती है।
>उत्तर-पूर्व की ओर बहने के बाद चौसा के निकट गंगा से मिल जाती है।
> बिहार में इस नदी को अपवित्र तथा अशुभ माना जाता है।
अजय
> यह नदी जमुई जिले के चकाई नामक स्थान से लगभग 5 किमी दक्षिण में बटपाड़ नामक स्थान से निकलती है।
> यह पूर्व व दक्षिण में प्रवाहित होती हुई प० बंगाल में प्रवेश करती है और गंगा में विलीन
हो जाती है। इस नदी को अजमावती या अजमती के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
गंगा में मिलनेवाली बिहार की नदियाँ
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फल्गु
>पितृपक्ष के दौरान तीर्थ यात्री गया में फल्गू नदी में स्नान कर पिण्डदान करते हैं।
>यह नदी झारखण्ड के उत्तरी छोटानागपुर पठार से छोटी छोटी सरिताओं के रूप में निकलकर सहायक नदी से मिलकर विशाल रूप धारण कर लेती है। निरंजना नदी या लीलाजन नामक मुख्य धारा के रूप में बोधगया के निकट मोहना नामक सहायक नदी से मिलकर विशाल रूप धारण कर लेती है।
संकरी
> यह नदी झारखण्ड के उत्तरी छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र से निकलती है।
> यह हजारीबाग (झारखण्ड), गया, नवादा, पटना और मुंगेर (बिहार) जिलों में बहने के
उपरान्त किउल और मोरहर नदियों के साथ गंगा में विलीन हो जाती है।
किउल
> किउल नदी का उद्गम केंद्र हजारीबाग जिले (झारखंड) के खमरडीहा के निकट है।
> इसमें कई धारायें समाहित होती हैं, जैसे- फल्गू, हरोहर, पंचाने, संकरी आदि ।
नदियों के किनारे अवस्थित प्रमुख नगर
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जल प्रपात
> नदी का ढाल अकस्मात् तीव्र हो अथवा उर्ध्वाधर हो और जल वेग से नीचे गिरे तो इस
अवस्था को जलप्रपात कहते हैं। जलप्रपातों का निर्माण उन नदियों के मार्ग में होता है. जिनके तल में कठोर तथा मुलायम शैलों की परतें क्रमवत् स्थिर हों।
> बिहार के कई स्थानों पर विभ्रंश घाटियों तथा कठोर चट्टानों से निर्मित अवशिष्ट श्रेणियाँ और पहाड़ियाँ हैं जो जल प्रपातों को जन्म देती हैं।
> बिहार में गया, रोहतास और नवादा जिलों में अनेक स्थानों पर जलप्रपात मिलते हैं।
> ककोलत जलप्रपात नवादा जिले में नवादा शहर से 16 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
> यह प्रपात कई चरणों में कोडरमा के पठार से उतरता है और इसकी कुल ऊँचाई 47 मीटर
(160 फीट) है, पर मुख्य प्रपात 24 मीटर (80 फीट) है।
> कर्मनाशा नदी पर (बक्सर जिला में) एक जलप्रपात है। इसके अतिरिक्त कैमूर जिले में
दुर्गावती जलप्रपात 90 मीटर (300 फीट) ऊँचा है तथा यह खादरकोह में गिरता है।
> इसी के निकट फुलवरिया नदी पर जिआर खुंड का एक छोटा जलप्रपात है।
बिहार के प्रमुख झरने / जल प्रपात
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जलकुण्ड
> ऊँचे-नीचे प्रदेश में परागम्य शैलों का ढाल मिल जाता है और चूँकि उसमें उपस्थित जल
समानांतर तल ही बनाएगा, अतः भू-पृष्ठ उभरी पारगम्य शैल से जल स्वतः बाहर निकल
पड़ता है। इस प्रकार भूमि से रिसते जल को सोत या जलकुण्ड कहते हैं।
> बिहार में प्राकृतिक रूप से गर्म हुए जल के अनेक कुण्ड हैं, जिनके जल का तापमान 30 से 70 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है।
> इन गर्म जलधाराओं का संबंध मृत ज्वालामुखियों या भू-गर्भ में स्थित रेडियो सक्रिय खनिजों से है। रासायनिक विश्लेषण करने पर इनमें पर्याप्त मात्रा में खनिज, लवण, गंधक आदि मिलते हैं। यह जल त्वचा के रोग में रोगी को लाभान्वित करता है।
>बिहार में सर्वाधिक विख्यात एवं ऐतिहासिक गर्म जल कुंड एवं झरने राजगीर में हैं, जिनमें
सतधरवा या सप्तधारा, सूर्यकुड, मखदुमकुड तथा नानक कुड प्रमुख हैं। इन सभी कुंडों में
पानी 70° सेंटीग्रेड से अधिक गर्म रहता है।
> राजगीर का प्रमुख गम जलकुड ब्रह्मकुड है, जिसमें 7 मीटर चौकोर स्थान में लगभग 1 मीटर
की गहराई में स्वच्छ गर्म जल स्रावित होता है। इसका तापमान 87° सेंटीग्रेड है।
>मुंगेर जिले के खड़गपुर पहाड़ियों में अनेक कुड है, जिनमें सीता कुड, रामेश्वरकुंड, लक्ष्मण
कुड, ऋषिकुंड आदि प्रमुख हैं। इनका पानी 58° सेंटीग्रेड से भी अधिक गर्म पाया जाता
है। यहाँ लक्ष्मण कुंड का पानी सर्वाधिक गर्म (लगभग 62° सेंटीग्रेड) है।
बिहार के प्रमुख जिले व जलकुण्ड
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वेटलैंड्स
> निम्नतलीय जल आच्छादित क्षेत्रों को वेटलैंड्स कहा जाता है। चौर, भांगर, मॉन, टाल आदि वेटलैंड्स हैं।
>बिहार में गंगा नदी के उत्तरी मैदानी भाग के लगभग 57000 वर्ग हेक्टेयर क्षेत्र वेटलैंड्स के
रूप में चिह्नित हैं।
>पर्यावरणीय दृष्टि से वेटलैंड्स के महत्व-
(a) यह वर्षा के अतिरिक्त जल का संचयन कर बाढ़ से सुरक्षा करता है। (b) भूगर्भीय
जल के तल का संतुलन बनाए रखता है। (c) यह कई प्रकार की विलुप्त हो रही जलीय
वनस्पतियों तथा जीव जंतुओं के आवासीय क्षेत्र हैं। (d) बिहार के वेटलैंड्स शरद ऋतु में
आनेवाले प्रवासी पक्षियों का वास स्थल है। (e) घरेलू तथा औद्योगिक इकाइयों से प्रदूषित
जल को प्राकृतिक रूप से परिशोधन कर विषैले तत्वों की मात्रा को कम या समाप्त करते हैं।
बिहार में वेटलैंड्स
> राज्य के वेटलैंड्स मुख्यतः इसके उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में अवस्थित हैं।
>राज्य के लगभग 16 जिलों में वेटलैंड्स विस्तृत हैं। इन जिलो में सारण, वैशाली, समस्तीपुर, खगड़िया, बेगूसराय, दरभंगा, सहरसा, कटिहार आदि प्रमुख हैं।
 बिहार की मिट्टियांँ
>मिट्टी कृषि एवं वनस्पति के उत्पादन  का मूल  स्रोत है। चट्टानों के टूटने फुटने तथा उसमें भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप जो तत्व एक अलग रूप ग्रहण करता है, वह अवशेष ही मिटटी कहलाता है।
>मैदानी भाग, जहाँ गंगा के विशाल मैदान का मध्यवर्ती भाग विस्तृत है, में प्रवाही या अपोढ़
प्रकार की मिटटी मिलती है। बिहार में यह मिट्टी विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला की चट्टानों से उत्पन्न हुई है।
> बिहार में मिट्टी निर्माण के जनक शैल, स्थलाकृति और वनस्पति में न केवल अंतर पाया जाता है बल्कि यहाँ जलवायु की परिस्थितियाँ भी भिन्न हैं।
गंगा का उत्तरी मैदान
– बिहार में जलोढ़ या अपोढ़ मिट्टी की प्रधानता है, क्योंकि यहाँ का 90% क्षेत्र जलोढ
मिट्टी का बना है। बिहार में पर्वतपदीय मिट्टी का निर्माण स्थानीय चट्टानों की तलछट से हुआ है।
>यह भाबर के मैदान का क्षेत्र है। यह मिट्टी पश्चिमी चम्पारण के उत्तर पश्चिमी भाग में पायी जाती है।
तराई मिट्टी
>तराई क्षेत्र में दलदली मिट्टी बिहार की उत्तरी सीमा के साथ पश्चिम में चम्पारण की पहाड़िय
से लेकर पूर्व में किशनगंज तक फैली है। इस अम्लीय मिट्टी का रंग हल्का भूरा या पीला
है तथा यह गन्ना, धान और पटसन की खेती के लिए अनुकूल है।
नवीन जलोढ़ मिट्टी या भांगर मिट्टी
>तराई के दक्षिण में नवीन जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र प्रारम्भ होता है, जिसे यहाँ ‘भागर’ कहते हैं।
> इस मिट्टी का विस्तार पूर्णिया और सहरसा जिलों के कोसी क्षेत्र में अधिक है तथा दरभंगा
और मुजफ्फरपुर के बाद चम्पारण के उत्तरी पश्चिमी भाग में संकीर्ण होती हुई भांगर की
पट्टी समाप्त होती है।
> इस मिट्टी में चूना और क्षारीय तत्व नहीं है। यह मिट्टी गाढ़े भूरे रंग की या काली होती है, इसलिए इसे करैल या केवाल मिट्टी भी कहा जाता है। सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो पर इस मिट्टी में धान, जूट और गेहूँ की अच्छी फसले होती हैं।
बल सुन्दरी मिट्टी
>बिहार के उत्तरी मैदान में भांगर क्षेत्र के बाद बल सुन्दरी मिट्टी का क्षेत्र है। यह मिट्टी गहरे भूरे रंग की है तथा इसकी प्रकृति क्षारीय है।
> पूर्णिया के दक्षिणी भाग से प्रारम्भ होकर सहरसा, दरभंगा और मुजफ्फरपुर के दक्षिणी भाग को घेरता हुआ सम्पूर्ण सारण जिले तथा चम्पारण के शेष दक्षिणी पश्चिमी भाग में विस्त
इस मिट्टी को पुरानी जलोढ़ भी कहते हैं, जिसमें चूने के तत्वों की प्रधानता (30% से अधिक) है। यह क्षेत्र आम, लीची और केले के बागों के लिए प्रसिद्ध है।
खादर मिट्टी
> यह नवीन जलोढ़ मिट्टी है, जिसका विकास बाढ़ के मैदान में हुआ है। बाढ़ द्वारा लायी गयी मिट्टी के कारण इसमें उर्वरता बढ़ती जाती है।
>यह मिट्टी गंगा की घाटी, गंडक और बूढ़ी गंडक की निचली घाटी, कोसी और महान
की घाटी में पायी जाती है। यह गहरे भूरे रंग की होती है तथा इसमें कही बालू की मात्रा तो कहीं चीका की मात्रा अधिक मिलती है।
गंगा का दक्षिणी मैदान
> गंगा के दक्षिण में ताल, पुरानी जलोढ़ और बलथर मिट्टी का क्षेत्र है।
ताल की मिट्टी
> गंगा के दक्षिणी भाग में 8 से 10 किमी की चौड़ी पटटी में मोटे कणों वाली धूसर रंग की
मिट्टी पायी जाती है।
>धूसर रंग की इस मिट्टी को ताल मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का निर्माण वर्षा ऋतु के बाद आई बाढ़ के द्वारा बारीक व मोटे कणों वाली मिट्टी के निक्षेपण से होता है। यह अत्यधिक उर्वर मिट्टी है तथा जल सूखने के बाद इस भूमि पर रबी की अच्छी फसल होती है।
पुरानी जलोढ करेल-केवाल मिट्टी
>पुरानी जलोढ़ मिट्टी को ही करैल कैवाल मिट्टी कहते हैं। करेल कैवाल मिट्टी का क्षेत्र गंगा
के दक्षिणी मैदानी भाग में शाहाबाद से लेकर गया, पटना, मुंगेर होता हुआ भागलपुर तक
विस्तृत है।
>पुरानी जलोढ़ मिट्टी के साथ भारी चिकनी मिट्टी के मिश्रण के साथ स्थानीय रूप को मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का रंग पीला व गहरा होता है। यह मिट्टी सोन घाटी के पश्चिमी भाग में शाहाबाद जिले में पाई जाती है। इस मिट्टी में शारीय और अम्लीय गुण बहुत संतुलित रूप से मिलते हैं।
बरबर  मिट्टी
>बिहार के मैदानी भाग में गंगा के मैदान की दक्षिणी सीमा पर जहाँ छोटानागपुर का पहाड़ी
भाग प्रारम्भ होता है, बलथर मिट्टी का संकीर्ण क्षेत्र स्थित है।
>इसमें रेल और कंकड़ की बहुलता रहती है। इस मिट्टी का रंग पीला और लाल है।
>इस मिट्टी में होने वाली प्रधान फसलें मक्का, अरहर, कुल्ची, चना तथा ज्वार बाजरा है।
यह मिट्टी कैमूर पठार और गंगा सोन दोआब के संधि स्थल पर भी पायी जाती है।
>पश्चिम में कैमूर पठार से पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों तक इस बलथर मिट्टी का संकीर्ण
क्षेत्र स्थित है। इसमें लोहा का अंश अधिक होने के कारण इसका रंग लाल होता है तथा इसमें जल संग्रह करने की क्षमता कम होती है।
लाल बालुई मिट्टी
>यह पठारी मिट्टी है, जो कैमूर एवं रोहतास के पठारी भाग में मिलती है।
>इसमें बालू की मात्रा अधिक होती है तथा इसकी उर्वरा शक्ति बहुत कम है। इस मिट्टी में मोटे अनाज उगाये जाते हैं।
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बिहार में वन व वनस्पति
> बिहार में चूँकि वर्ष के तीन-चार महीने में ही 80% से अधिक वर्षा हो जाती है, जबकी वर्ष की शेष आठ-नौ महीने की अवधि में वर्षा अपेक्षाकृत नगण्य होती है, इसलिए, की प्राकृतिक वनस्पति में पर्णपाती यानि पतझड़ किस्म के वन अधिक पाये जाते हैं।
> इस प्रकार के वनों के वृक्ष ग्रीष्म काल के आरंभ होते ही अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं, जिससे वे गर्मी की शुष्कता को झेलने में समर्थ हो जाते हैं।
> वर्तमान बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के मात्र 6.87% भाग पर (हिन्दुस्तान,19 मार्च, 2010 के अनुसार) वन पाये जाते हैं, जबकि झारखंड राज्य के निर्माण के पूर्व यहाँ (अविभाजित बिहार में) 16.87% भाग पर वन पाये जाते थे।
> चंपारण और पूर्णिया जिलों को छोड़कर गंगा के उत्तरी मैदान की प्राकृतिक वनस्पति आकृति  योग्य भूमि, झीलों और ताल क्षेत्र में छिटपुट रूप से उपलब्ध होने वाले बबूल, शीशम और  बाँस के रूप में उपलब्ध है।
>राज्य में गंगा के दक्षिणी मैदान में राजगीर आदि पहाड़ी क्षेत्रों में सीमित वन क्षेत्र उपलब्ध है।
> बिहार में सामान्यतया मानसूनी वन मिलते हैं। परन्तु इसके तराई क्षेत्र में उपोष्ण पर्णपती
(पतझड़) वन भी मिलते हैं।
> राज्य विभाजन के बाद बिहार की 6473 वर्ग किमी भूमि (हिन्दुस्तान, 19 मार्च, 2010 के  अनुसार) वनाच्छादित है।
> ये वन मुख्यतः पश्चिमी चम्पारण, मुंगेर, बांका, जमुई, नवादा, नालंदा, गया, रोहतास कैमूर, औरंगाबाद आदि जिलों में हैं, जहाँ लगभग 3,700 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। शेष जिलों में वन अवक्रमित हैं।
> यहाँ वनों से केन्द्र पत्तियाँ, लाख, गोंद, साल के बीज और इमारती लकड़ी मिलती है।
>राज्य वन विकास निगम महुआ, करन्ज और कुसुम के बीज एकत्रित करता है।
>राज्य में 12 आरक्षित वन हैं।
> प्रदेश में मानूसनी पर्णपाती वन पाए जाते हैं, जिन्हें वर्षा की अधिकता एवं न्यूनता के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. आर्द्र पर्णपाती वन और 2. शुष्क पर्णपाती वन ।
1. आर्द्र पर्णपाती वन
> ये वन विशेष रूप से किशनगंज जिले के उत्तर-पूर्वी भाग में, हिमालय की तराई के दलदली भाग और सोमेश्वर की पहाड़ियों पर मिलते हैं। इस क्षेत्र में 120 सेमी से अधिक वर्षा होती है
>अत्यंत घनी वनस्पति वाले ऐसे वनों में मुख्यतः साल के वृक्ष उगते हैं, जो गर्मी के मौसम से पूर्व अपने पत्ते गिरा देते हैं, परंतु वर्षा के पूर्व इनमें नयी पत्तियाँ आ जाती हैं और ये वन पुनः हरे-भरे हो जाते हैं।
> ऐसे वनों में साल वृक्षों के अतिरिक्त सेमल, चंपा, अशोक, केन, घउरा, आम, जामुन करंज आदि के वृक्ष भी मिलते हैं।
2.शुष्क पर्णपाती वन
> इस प्रकार के वन / वनस्पति 120 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
> ये वन घने नहीं होते, अतः इनमें वृक्षों के बीच फासला अधिक होने के कारण धूप जमींन पर आसानी से पहुँचती है। ऐसे वन में वृक्षों की ऊँचाई कम होती है तथा पतझड़ की  अवधि लंबी होती है।
>ऐसे वनस्पति प्रदेश कैमूर की पहाड़ी तथा छोटानागपुर की उत्तरी ढलानों और छिटपुट
पहाड़ियों पर मिलते हैं। साथ ही, रक्सौल, अररिया और पूर्णिया जिले में कुछ विरल वन
पाये जाते हैं।
>इन वनों में मध्य कोटि के साल, बांस, खैर, पलाश (अमलतास), शीशम, महुआ तथा केन
के साथ-साथ आम व जामुन के वृक्ष और बेर की झाड़ियाँ भी मिलती हैं।
उत्तरी उप-हिमालय के तराई वन
>उत्तरी उपहिमालयी प्रदेश में तराई वनों का बाहुल्य है। नेपाल की सीमा से लगे बिहार के
तराई क्षेत्र में आर्द्र पर्णपाती (उपोष्ण पर्णपाती) वन पाए जाते हैं।
>उच्च भूमि और पहाड़ी ढालों पर, जहाँ वर्षा का औसत 160 सेमी० से अधिक रहता है
साल, शीशम, सेमल, तून और खैर के सघन वन पाये जाते हैं।
>पश्चिमी चंपारण जिले में सोमेश्वर तथा दून की पर्वत श्रेणियों की ढालों पर तथा पूर्णिया
और अररिया जिले के उत्तरी तराई क्षेत्र में यह वन पाया जाता है।
>अधिक नमी वाली दलदली और निम्न भूमि वाले क्षेत्रों में ऊँची घासों की बहुलता है।
> तराई क्षेत्रों में सवाई घास तथा नरकट और झाउ की घनी झाड़ियाँ पायी जाती हैं।
> सहरसा और पूर्णिया के उत्तरी सीमान्त क्षेत्रों में साल-वनों की पट्टी विस्तृत है।
बिहार में वनों का वितरण
> राज्य में वनों का वितरण समरूप नहीं है। रोहतास जिला में सर्वाधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि
कई क्षेत्रों में वनों का पूर्ण अभाव है। वन क्षेत्र वाले विभिन्न जिलों का व्यौरा इस प्रकार है-
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बिहार के वन और वनोत्पाद
> राज्य में अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण वन-उत्पाद उपलब्ध हैं, जिनके एकत्रीकरण एवं विपणन का दायित्व बिहार राज्य वन विकास निगम का है।
>वन उत्पाद की विक्री से राज्य को राजस्व की प्राप्ति होती है तथा इसके संग्रहण एवं वितरण
से रोजगार का सृजन होता है।
>बिहार में कुछ मुख्य वन उत्पाद हैं- तेल युक्त वीज (जैसे— कपास, साल, हर्रा महुआ इत्यादि); साल एवं केन्दु पत्ता, गोंद, तानिन, जड़ी-बूटी, लाख या लाह (यह कुसुम एवं पलास वृक्षों पर लाख के कीड़ों का पालन करके इसका है। इसका अधिकतर उत्पाद अब झारखण्ड में चला गया है, परन्तु दक्षिणी बिहार के उत्पादन किया जाता है ।इसका अधिकतर उत्पाद अब झारखण्ड मे चला गया है, परंतु दक्षिणी बिहार के झारखण्ड सीमा से सटे वनों में यह उपलब्ध है), बांस, तसर (यह भागलपुर के वन उपवन में पाए जानेवाले अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले रेशम के कीड़ों से मिलता है।तथा सबाई घास (जो साहेबगंज एवं भागलपुर में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है) आदि।
बिहार के वन-आधारित उद्योग
> राज्य में वन पर आधारित अनेक उद्योग स्थापित हैं जिनमें आरा मिलों की संख्या  एक
हजार से अधिक है।
> इसके अतिरिक्त सिजनिंग प्लान्ट एवं गत्ता उद्योग (समस्तीपुर, दरभंगा), प्लाई वुड निर्माण
(बेतिया, पटना, मुजफ्फरपुर), कत्था (बेतिया) तथा माचिस एवं बीड़ी उद्योग प्रमुख है।
> ये उद्योग सरकारी राजस्व में भी योगदान करते हैं।
पर्यावरण संरक्षण में वनों का महत्व
> पर्यावरणीय संतुलन को बनाये रखने और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की आपूर्ति बनाये रखने में वनों का विशेष महत्व है।
> इसके अतिरिक्त वनों के अनेक आर्थिक उपयोग हैं। जलावन से लेकर भवन निर्माण
कामों तक लकड़ी की आपूर्ति वनों के माध्यम से ही होती है।
> मिट्टी के कटाव को रोकने, बाढ़ से बचाव, तापमान नियंत्रण, वर्षा को सामान्य रखने और
वायु प्रदूषण पर काबू पाने में वनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
> इन्हीं वनों में वन्य प्राणियों, जो पर्यावरण के एक महत्वपूर्ण अंग हैं, का निवास रहता है।
>औद्योगिक विकास, रेल एवं सड़क मार्गों का निर्माण, भवन निर्माण आदि के क्रम में वनों का निरंतर हास हुआ है। इससे कई समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
> बिहार में वनों का विनाश बहुत तेजी से हुआ है। पूरे राज्य में वर्षा में कमी आ रहे है।
मिट्टियों का कटाव बढ़ा है और शुद्ध बोई गयी भूमि में भी कमी आयी है।
> वन कटने से सबसे बुरा प्रभाव वन में रहने वाले प्राणियों पर पड़ा है। उनकी संख्या तेजी
रही है। इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्या बढ़ी है तथा सूखे की समस्या उत्पन्न हुई।
>इन पर्यावरणीय समस्याओं को दूर करने के लिए सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों को राज़्य
सरकार ने प्रोत्साहन दिया है। इसका उद्देश्य वनों का विस्तार करना है।
> सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम में तीन मुख्य उपाय शामिल हैं:
(i) ऊसर भूमि पर मिश्रित वृक्षारोपण; (ii) जिन क्षेत्रों में वनों का ह्रास हुआ है, वहाँ पुनः वन लगाना तथा (iii) आश्रय पट्टी का विकास ।
> इसके साथ-साथ कृषि वानिकी के कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसके अंतगत
निजी भूमि और खेतों की मेंड़ों पर वृक्षारोपण का काम हो रहा है।
> लकड़ियों की बढ़ती हुई मांग तथा कागज उद्योग के विकास की संभावना को ध्यान में रखते हुए बिहार के वन क्षेत्रों में बांस के अतिरिक्त यूकेलिप्टस तथा टीक के वृक्षों को वनराेपन कार्यक्रम के अंतर्गत प्राथमिकता दी जा रही है।
> वन प्राणियों की सुरक्षा हेतु कई अभयारण्य और सुरक्षित क्षेत्र बनाये गये हैं।
विहार के वन्यजीव अभयारण्य
>बिहार के वनों में शेर, हाथी, लंगूर, वार्किंग हिरण, भालू, बाघ, तेंदुआ, नीलगाय और साभर जैसे वन्यजीव पाए जाते हैं। यह प्रदेश प्राकृतिक दृष्टि से बेहद समृद्ध है। यहाँ कई उधान और अभयारण्य भी हैं।
भीम बाँध वन्य जीव अभयारण्य
> मुंगेर जिले में स्थित इस अभयारण्य की स्थापना सन् 1976 में की गई थी। इस अभयारण्य में तेंदुआ, भालू, सांभर, जंगली सूअर, भेड़िया, लंगूर, बंदर, नीलगाय, मगरमच्छ, मोर, साँप जैसे जीव पाए जाते हैं। यह 631.99 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
गौतम बुद्ध वन्य जीव अभयारण्य
> इस अभयारण्य की स्थापना सन् 1976 में गया में की गई थी। यह 25.83 वर्ग किमी क्षेत्र
में फैला है। इसमें चीता, सांभर, तेंदुआ, हिरण और चीतल पाए जाते हैं।
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य
> इस अभयारण्य को 1990 में बिहार सरकार की ओर से डॉल्फिन अभयारण्य के रूप में
मान्यता प्रदान की गई थी। भागलपुर जिले में स्थित यह अभयारण्य 50 किमी क्षेत्र में फैला
हुआ है तथा इसमें बड़ी संख्या में गैंगेटिक डॉल्फिन निवास करती हैं।
वाल्मीकिनगर वन्यजीव अभयारण्य
> पश्चिम चम्पारण के वाल्मीकिनगर में स्थित ‘वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान’ नामक अभयारण्य को
दूसरी बाघ परियोजना के नाम से जाना जाता है। 840 वर्ग किमी में फैले इस अभयारण्य
में 2008 में हुई गणना के मुताबिक बाघों की संख्या केवल 7 है। 2002 में इस राज्य में
कुल 54 बाघ थे, जिनमें 33 इसी राष्ट्रीय उद्यान में थे। 2005 में यहाँ 35 वाघ होने की सूचना थी।
संजय गाँधी जैविक उद्यान
> गैंडा प्रजनन की दृष्टि से यह उद्यान देश में प्रथम स्थान रखता है। यह पटना में स्थित है
और इसमें विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों को संरक्षित करके रखा गया है।
इसमें 11 कमरों का एक साँप घर भी है, जो आकर्षण का केन्द्र माना जाता है।
परमान डॉल्फिन अभयारण्य
> अररिया में स्थित इस अभयारण्य की खोज सन् 1995 में सूदन सहाय नामक व्यक्ति ने
की थी। परमान नदी के ऊपरी भाग में 15 डॉल्फिन मछलियाँ पाई गई थीं।
बिहार के पक्षी विहार
> कांवर पक्षी विहार : बेगूसराय में कांवर झील में स्थित इस विहार को सन् 1989 में पक्षी
विहार के रूप में मान्यता मिली थी। 63.11 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस पक्षी विहार में रूस, मंगोलिया और साइबेरिया से हजारों किमी की दूरी तय कर लाखों की संख्या में पक्षी पहुँचते हैं। कांवर पक्षी विहार की गणना विश्व में वेटलैण्ड के रूप में होती है। यहाँ कुछ दुर्लभ किस्म के पक्षी चीन हिमालय के ऊपरी भागों और श्रीलंका से भी आते हैं।
> नागी पक्षी विहार : जमुई जिले में स्थित इस पक्षी विहार को 1987 में पक्षी विहार के रूप
में मान्यता मिली थी। यह 7.91 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
> वक्सर पक्षी बिहार : 25 वर्ग किमी में फैले इस पक्षी विहार में अक्टूबर महीने में लालशर
नामक पक्षी कश्मीर से यहाँ प्रवास पर आते हैं और मार्च में पुनः कश्मीर की वादियों में लौट जाते हैं। यह पक्षी विहार बक्सर जिले में स्थित है
> गोगाबिल पक्षी विहार: 217.99 एकड़ में फैला यह पक्षी विहार कटिहार जिले में है। 1990 ई० में इसे पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली। इसमें धनुषाकार झील है, जिसका नाम गोगाबिल है।
>कुशेश्वर पक्षी विहार : दरभंगा जिला के कुशेश्वर स्थान के पास 29.23 वर्ग किमी में फैले इस पक्षी विहार को उत्तर भारत का सबसे बड़ा पक्षी बिहार माना जाता है। यहाँ साइबेरियाई पक्षी अक्टूबर के महीने में आते हैं।
> नक्टी पक्षी विहार : जमुई जिले में स्थापित इस पक्षी विहार का क्षेत्रफल 3.32 वर्ग किमी है। इसे एक पक्षी विहार के रूप में 1987 ई० में मान्यता मिली।
बिहार राज्य की वन नीति
> राष्ट्रीय वन नीति के अनुरूप ही बिहार राज्य वन नीति वन क्षेत्रों के विस्तार पर बल देती है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य राज्य में वन क्षेत्र को बढ़ा कर 33% करना है।
> राज्य के विभाजन के बाद अधिकतर वन क्षेत्र झारखण्ड राज्य में चला गया है।
> राज्य में अब वन क्षेत्र का प्रतिशत घटकर केवल 7.1 प्रतिशत ही रह गया है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि राज्य में वन क्षेत्र के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए ठोस उपाय किए जाएँ।
> एक-तिहाई भू-भाग को वन क्षेत्र के अन्तर्गत लाने के लिए वन नीति में दोहरी व्यूह रचना की व्यवस्था है।
सामाजिक वानिकी
> सामाजिक वानिकी का उद्देश्य वनों का विस्तार करना है, ताकि पर्यावरणीय संतुलन बना रहे।
> इसके अलावा इसका उद्देश्य जलावन के लिए लकड़ी की आपूर्ति करना भी है।
> सामाजिक वानिकी के कार्यक्रम में तीन मुख्य उपाय शामिल हैं— (i) ऊसर भूमि पर मिश्रित
वृक्षारोपण (ii) जिन क्षेत्रों में वनों का ह्रास हुआ है वहाँ पुनः वन लगाना; तथा (iii) आश्रय
पट्टी का विकास।
> सामाजिक वानिकी के साथ कृषि वानिकी के कार्यक्रम को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
बिहार में भूमि संसाधन एवं कृषि संसाधन
> बिहार की अर्थव्यवस्था में भूमि संसाधन को काफी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
> बिहार की कुल कृषि योग्य भूमि 80 प्रतिशत से अधिक है, जिसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र 65
प्रतिशत के लगभग है। यह राज्य देश के कुल 8 से 10% तक खाद्यान्न उत्पन्न करता है।
> बिहार में केवल 7.1% क्षेत्र में वनों का विस्तार है तथा 86% से अधिक लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। बिहार में औसत जोतों का आकार 0.4 हेक्टेयर से कम है।
> बिहार के मैदानी भाग की भूमि उपयोग के प्रतिरूप देखने पर प्रतीत होता है कि यहाँ भूमि
सुधार और बेहतर जल प्रबंधन से भूमि संसाधन का उपयोग विकास में किया जा सकता है।
विहार में भूमि-उपयोग
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बिहार में जैविक कृषि
> बिहार में जैविक कृषि (organic farming) प्रगति पर है। बिहारी ब्रांड केंचुए (earth
worm) की मांग देश भर में जोर पकड़ने लगी है।
>वर्मी कम्पोस्ट के व्यावसायिक उत्पादन पर अनुदान देनेवाला बिहार देश का पहला राज्य है।
> बिहार में बेगूसराय को वर्मी कम्पोस्ट का जनक माना जाता है। वर्ष 2002 में कृषि वैज्ञानिक डॉ० आर० के० सोहाने की पहल पर वर्मी कम्पोस्ट की पहली इकाई बेगूसराय जिले के खोदाबंदपुर में लगी थी।
>वर्ष 2006 में जब बिहार सरकार ने राज्य में वर्मी कम्पोस्ट प्रोत्साहन योजना शुरू करके इसे
बढ़ावा देना आरंभ किया तो समस्तीपुर जिला का कोठिया राज्य का पहला जैविक ग्राम
बन गया।
>वर्तमान में राज्य में जैविक ग्रामों की संख्या 38 है।
(स्रोत: हिन्दुस्तान, पटना, 22 जनवरी, 2011)
बिहार के कृषि प्रदेश
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> बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है तथा यहाँ कृषि योग भूमि 80% से अधिक है, jismeim
शुद्ध बोया गया क्षेत्र 65% से अधिक है।
>राज्य की 86% जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है।
>कृषि की प्रधानता सबसे अधिक गंगा के उत्तरी मैदानों में देखी जाती है, जहाँ 65% से 80% भू-भाग पर कृषि कार्य किया जाता है।
> बिहार में चावल प्रधान भोजन है, इसलिए धान की खेती राज्य के सभी जिलों में होती है,
जबकि राज्य में उत्पादन की दृष्टि से चावल के बाद दूसरी फसल है गेहूँ।
गेहूँ
> गेहूँ बिहार की प्रमुख रबी फसल है जो नवम्बर-दिसम्बर में बोयी और मार्च-अप्रैल में काटी जाती है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम रहती है।
> गेहूँ के उत्पादन में बिहार का देश में छठा स्थान है। राज्य में लगभग 26.5 लाख हेक्टेयर
पर गेहूँ की खेती होती है।
धान
> बिहार में लोगों का मुख्य भोजन चावल है, जो धान की फसल से प्राप्त होता है। धान ऊँचे
तापमान, उर्वर मिट्टी और 125 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।
> पश्चिम में बूढ़ी गण्डक और पूर्व में कोसी नदी के मध्य विस्तृत उत्तरी मैदान धान की कृषि
का आदर्श क्षेत्र माना जाता है। यहाँ 54 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है।
> जलवायु की विभिन्नताओं के फलस्वरूप बिहार में ग्रीष्मकालीन, शरदकालीन और शीतकालीन धान की फसलें उगायी जाती हैं। बिहार में इन्हें अगहनी, गरमा एवं भदई फसलों के रूप में जाना जाता है। बिहार में अगहनी धान की खेती सबसे अधिक भूमि पर होती है।
जौ
> जौ भारत की प्राचीनतम कृषि उपज है। बिहार में जौ की खेती अत्यंत प्राचीन काल से की जाती रही है। जौ की खेती कम वर्षा और उष्ण जलवायु में होती है ।
> यह रबी की फसल है जो अक्टूबर-नवम्बर में बोयी जाती है।
> इसके उत्पादन में पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण अग्रणी हैं। इसके अतिरिक्त गोपालगंज, सीवान, वैशाली, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, गया तथा रोहतास में भी जौ की खेती होती है।
मक्का
> धान और गेहूँ के बाद मक्का बिहार का तीसरा प्रमुख फसल है। यह राज्य के 8 प्रतिशत से
भी अधिक भागों में बोया जाता है। यह आर्द्र जलवायु में पैदा होने वाली फसल है। इसके
लिए भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त है।
> मक्का खरीफ की फसल है जो जून-जुलाई महीनों में बोयी जाती है और सितम्बर-अक्टूबर
में काट ली जाती है। मक्का की कृषि के लिए हल्की और चिकनी मिट्टी अच्छी रहती है।
बिहार की बलसुन्दरी मिट्टी इसकी खेती के लिए उत्तम है।
> बिहार में मक्का सारण, गोपालगंज, चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, सहरसा, मुंगेर तथा भागलपुर में प्रमुख रूप से बोया जाता है। बेगूसराय को बिहार में ‘भक्का का घर’ कहा जाता है।
मडुआ (रागी)
> मोटे अनाजों में यह काफी महत्वपूर्ण है। यह कम समय में तैयार होनेवाली फसल है। इसकी
बुआई अप्रैल-मई में की जाती है एवं कटाई जून-जुलाई में होती है।
> देश में बिहार मडुआ का सबसे अधिक उत्पादन करता है। बिहार के दरभंगा जिले में मडुआ सर्वाधिक उत्पादित होता है।
> इसकी खेती मुख्यतः दरभंगा, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, समस्तीपुर और वैशाली में होती है
बार-बाजरा
>ज्वार एवं बाजरा निर्धनों के लिए खाद्यान्न तथा पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह मई के प्रारम्भ में बोई जाती है और अगस्त में काट ली जाती है।
>इसकी खेती साधारण उपजाऊ मिट्टी एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है।
इसकी खेती मई के आरंभ में की जाती है।
>बिहार में सर्वाधिक ज्वार शाहाबाद में होती है। ज्वार का उत्पादन रोहतास जिला में एवं
बाजरा का उत्पादन मुख्यतः रोहतास, चंपारण, पटना, गया और मुंगेर जिले में होता है।
दलहनी फसलें
>दाल भोजन का मुख्य अवयव है। इस फसल समूह में चना, अरहर, खेसारी, मूंग, मसूर,
उड़द, मटर आदि आते हैं।
>बिहार में लगभग 12-13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन की खेती होती है।
>इन फसलों में अधिकांश रबी व खरीफ की फसलों के साथ सम्मिलित कर मिश्रित फसलों
के रूप में उत्पादित की जाती हैं।
अरहर
>अरहर को खरीफ की फसल के साथ उगाया जाता है और रबी की फसल के साथ काटा
जाता है।
>अरहर के पौधे कम उपजाऊ मिट्टी में अच्छी फसल देते हैं। इसी कारण बिहार के किसान
सीमांत भूमि या बाँध आदि के निकट की ऊँची जमीन पर इसकी बुआई करते हैं।
>इसकी खेती के लिए सिंचाई और उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती।
>बिहार में इसकी खेती लगभग 83 हजार हेक्टेयर भूमि पर होती है।
>इसकी खेती सारण, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, बेगूसराय, मुंगेर, भोजपुर
एवं रोहतास आदि जिलों में विशेष रूप से की जाती है।
चना
>चना बिहार में गेहूँ के बाद दूसरा प्रमुख रवी फसल है। चने का उपयोग दाल के अतिरिक्त
सत्तू, वेसन आदि कई अन्य रूपों में भी किया जाता है। चने की फसल के लिए मटियार
दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। बालूयुक्त चिकनी मिट्टी में भी इसका उत्पादन अच्छा
होता है। बिहार में प्रतिवर्ष 1.4 से 2 हेक्टेयर भूमि में इसकी उपज होती है।
>राज्य में चना को मिश्रित फसल के रूप में गेहूँ, जौ, तीसी एवं सरसों के साथ बोया जाता है।
खेसारी
>खेसारी (खंदसारी) एक निम्न कोटि का दलहन है। यह बिहार के दलहन उत्पादक क्षेत्र की दृष्टि से सबसे अधिक क्षेत्र में बोया जाता है।
>इसे गरीब आदमी दाल के रूप में और धनी व्यक्ति मवेशी के चारे के रूप में प्रयोग करते हैं।
यह पटना, गया और शाहाबाद जिलों में मुख्य रूप से उगायी जाती है।
>खेसारी का दाल के रूप में सेवन करने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके
सेवन से गठिया आदि हड्डी के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अतः सरकार ने इसके सेवन पर
प्रतिबन्ध लगा दिया है।
मूंग
>मूंग को गेहूँ काटने के बाद बोया जाता है, जो धान की बोआई से पहले तैयार हो जाता है। इसकी खेती मुख्य रूप से बिहार के मैदानी भाग में की जाती है।
>मुंगेर, शेखपुरा, भागलपुर, सहरसा, सुपौल तथा पूर्णिया इसके प्रमुख उत्पादक जिले हैं।
मसूर
> दलहन फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। मसूर का उत्पादन पटना जिले में सर्वाधि
होता है। इसकी खेती रवी के मौसम में होती है।
> इसके प्रमुख उत्पादक जिले नालंदा, पटना, गया, जहानाबाद, मुंगेर एवं औरंगाबाद है
अन्य दलहनी फसलें
> अन्य दलहनी फसलों में उड़द और कुलथी प्रमुख हैं। ये दोनों ही भदई फसलें हैं।
> इनकी खेती भागलपुर एवं कटिहार जिलों में होती है।
तिलहनी फसलें
> बिहार में तिलहन खाद्य फसल होते हुए भी व्यापारिक महत्व की फसल है।
> इसके अन्तर्गत तीसी, राई, सरसों, तिल और सरगुज्जा आदि फसलें आती हैं।
> इसके अतिरिक्त रेंडी (अरंडी) भी तिलहन समुदाय की फसल है, जो व्यापारिक दृष्टि
महत्त्वपूर्ण है।
राई व सरसों
> बिहार में उत्पादित की जाने वाली तिलहन फसलों में राई और सरसों का स्थान प्रमुख
> बिहार में भोजन बनाने में इसके तेल का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है।
> यह फसल राज्य के लगभग सभी जिलों में थोड़ी-बहुत मात्रा में उगायी जाती है, लेकिन
मैदानी भाग में इसकी उपज अधिक होती है। तिरहुत व पटना क्षेत्र में प्रमुखता से सरसों उगाई जाती है।
> प्रति हेक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से पूर्णिया जिला राज्य का सबसे प्रमुख जिला है।
तीसी (अलसी)
> अलसी गहरी नमीयुक्त भारी चिकनी मिट्टी में उत्पादित होती है। इसका प्रमुख उत्पादन के
गंगा का मैदानी भाग है।
> बिहार में तीसी का उत्पादन पटना, तिरहुत, कोसी और भागलपुर मण्डलों में होता है।
> दरभंगा जिला में सर्वाधिक प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। सर्वाधिक उत्पादक जिलों में
शाहाबाद, गया प्रमुख हैं।
तिल
> तिलहन के अन्तर्गत तिल एक प्रमुख फसल है, जिसका प्रयोग खाद्य पदार्थ के अतिरिक
तेल एवं सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के रूप में होता है।
> तिल दो प्रकार का होता है— (1) काला और (2) सफेद । बिहार में काला व सफेद दोन
ही प्रकार का तिल उगाया जाता है।
गया, चम्पारण और शाहाबाद जिलों में तिल प्रमुखता से उत्पादित होता है।
रेंड़ी
> रेंडी अथवा अरन्डी भारत की प्रमुख तिलहन फसल है।
> इसकी खेती कम उपजाऊ भूमि व ऊँची नीची भूमि में भी होती है। रेड़ी का प्रयोग जलाने साबुन उद्योग व चिकनाहट के लिए होता है।
> बिहार में भागलपुर, मुंगेर, पटना, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और सारण जिलों में इसकी खेती अधिक होती है।
 नगदी अथवा व्यावसायिक फसले
गन्ना
बिहार भारत प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में एक है।
>गन्ना यहाँ की नकदी फसल है, जिसका सर्वाधिक उपयोग चीनी उद्योग में किया जाता है।
>गन्ने  लिए अधिक वर्षा, भुरभुरी दोमट मिट्टी यथा—मटियारी व चूनायुक्त मिट्टी तथा 26 सेटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है।
> बागमती तथा कोसी नदियों के पश्चिमी क्षेत्र में खनिज लवण युक्त मिट्टी में चूने के तत्व उपलब्ध है।
> बिहार में गन्ना का सर्वाधिक सघन क्षेत्र, जहाँ कूल गन्ना क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक
भाग स्थित है, पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सारण एवं सीवान जिलों में सीमित है।
>बिहार में गन्ने की सामान्य खेती कोसी नदी के पश्चिमी भाग, गंगा के दक्षिण में भोजपुर,
औरंगाबाद, पटना, नालंदा, मुंगेर एवं भागलपुर जिलों में की जाती है।
>संपूर्ण बिहार में लगभग 1.3 लाख हेक्टेयर भूमि में गन्ने की कृषि होती है।
जूट
>जूट का उपयोग कम गुणवत्ता वाले कपड़ा, टाट, बोरी, रस्सी, गलीचे आदि में होता है।
>जूट उत्पादन के क्षेत्र में बिहार भारत का द्वितीय सर्वाधिक बड़ा राज्य है। यहाँ इसके उत्पादन हेतु पर्याप्त वर्षा हो जाती है और नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ कॉप मिट्टी विस्तृत क्षेत्र में उपलब्ध है।
>बिहार में पूर्णिया में सर्वाधिक जूट पैदा की जाती है। उसके उपरान्त कटिहार सहरसा,
चम्यारण, दरभंगा, सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिलों में भी जूट उत्पादित की जाती है।
>पूर्णिया जिला अकेला ही कुल जूट उत्पादन का 70 प्रतिशत जूट उत्पन्न करता है।
>गर्मी के मौसम की प्रथम भारी वर्षा के बाद अप्रैल मई के महीनों में जूट की बुआई की
जाती है, जबकि इसकी कटाई अक्टूबर माह में की जाती है। अनुकूल परिस्थिति में इसके
पौधे 10 फीट तक लंबे हो जाते हैं।
तम्बाकू
>बिहार भारत का छठवाँ सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक राज्य है।
> 1508 ई० में एक पुर्तगाली यात्री तम्बाकू के पौधे को उत्तरी अमरीका से यूरोप और फिर
यूरोप से भारत लाया था।
>तबाकू की खेती बिहार के लगभग 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर की जाती है, जिसमें लगभग
17 हजार टन तबाकू का उत्पादन होता है। इसकी खेती गंडक नदी से बिहार के पूर्वी सीमा
तक नदी के कगार पर होती है।
>तम्बाकू प्रमुख उत्पादक जिले हैं- वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, पूर्णिया, गोपालगंज
आदि।
अन्य फसलें
>बिहार में उपर्युक्त फसलों के अतिरिक्त आलू, प्याज, मिर्च, मेस्ता आदि की भी कृषि की
जाती है। इन सभी फसलों का बिहार की कृषि में अहम योगदान होता है।
आलू
>बिहार के हर जिले में आलू पैदा किया जाता है, लेकिन पटना जिला आलू उत्पादन में अग्रणी
> नालन्दा, गया, पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, सारण, शाहाबाद, दरभगा, चम्पारण आदि जिलों में
भी यह बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है।
मेस्ता
> मेस्ता की पैदावार अधिकांशतः बिहार के मैदानी भागों में होती है।
>इसके लिए उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा व उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है
>पूर्णिया, सहरसा, चम्पारण, सारण, पटना, मुंगेर, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा  तथा गया जिलों में मेस्ता उगाया जाता है।
बिहार की मुख्य फसलें तथा उनके उत्पादक क्षेत्र
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देश के कृषिगत फसलों के उत्पादन में बिहार का स्थान
> कृषि प्रधान राज्य बिहार में धान, गेहूँ, मक्का, चना, जूट और गन्ना का उत्पादन किया
है। इन फसलों के उत्पादन में बिहार ने देशभर में अपना विशेष स्थान बनाया है।
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बिहार मे पशुपालन
> बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य की अर्थव्यवस्था में पशुधन का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि
राज्य की प्रचलित और पारम्परिक कृषि व्यवस्था मूलतः पशुओं पर आधारित है। पशुओं
का उपयोग कृषि कार्य में न केवल हल खींचने के लिये किया जाता है, बल्कि माल ढोने,
सिंचाई करने, दौनी करने और खेती की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए गोबर (खाद) के
लिए भी इनकी आवश्यकता पड़ती है।
>पौष्टिक भोजन के लिए दूध, मांस तथा ऊन प्राप्त करने के उद्देश्य से भी पशुधन का काफी
महत्व है। बिहार के प्रमुख पशुधन में गाय, बैल, भैंस, घोड़ा, खच्चर, सुअर, गधा, भेंड़, बकरी और कुक्कुट (मुर्गा-मुर्गी और बत्तख) सम्मिलित हैं।
>राज्य में प्रति 30 व्यक्तियों पर एक पशु मिलता है, जबकि देश में प्रति 20 व्यक्तियों पर एक पशु की उपलब्धता का औसत है।
>बिहार के ग्रामों में प्रति 5 व्यक्तियों के मध्य एक गाय-बैल पाले जाने का औसत है।
>राज्य के गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुवनी, पूर्णिया आदि जिलों में पशुधन का
घनत्व बहुत अधिक है।
>अधिक मात्रा में तथा वसायुक्त दूध देने के कारण व्यावसायिक दृष्टि से गाय की तुलना
में भैंस का अधिक महत्व है। राज्य में दूध का 60 प्रतिशत उत्पादन भैस से होता है ।
> राज्य के दुधारु पशुओ में गाय का महत्वपूर्ण स्थान है ।गाये प्रधानतः  मैदानी बिहार मे पायी जाति है।
> बिहार के पशुधन में छोटे कद के चौपाये, जैसे—बकरी, भेंड़ एवं सुअर का भी विशेष महत्व है। बकरी एवं भेड़ से दूध, मांस एवं चमड़ा उपलब्ध होता है।
> भेड़ शुष्क जलवायु के पशु हैं जो चारे पर ही जीते हैं और ये विशेष रूप से दक्षिणी-पठार
के समीपवर्ती जिलों रोहतास, गया, नालंदा आदि में पाये जाते हैं।
> देशी सूअर का पालन राज्य में हरिजनों (खासकर डोम जाति के लोगों) एव मुसहरों द्वारा
किया जाता है। मुर्गी तथा बतख का पालन राज्य के सभी क्षेत्रों में प्रचलित है।
> ये मुख्यतः पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, अररिया तथा पटना जिलों में पायी जाती है।
> बिहार में दो हजार से अधिक मुर्गीपालन केंद्रों की स्थापना की गयी है।
पशुपालन के क्षेत्र में बिहार सरकार के कार्यक्रम
> राज्य में ‘बिहार पशुधन विकास एजेन्सी’ (BLDA) का गठन हुआ है।
> 5 लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला दुग्ध प्रसंस्करण प्लांट तथा 30 MT (मेट्रीक टन
प्रतिदिन की क्षमता वाला दुग्ध पाउडर प्लांट की स्थापना नालंदा में की जा रही है।
>अनुमण्डल स्तर पर 100 पैथोलॉजिकल लैवोरेटरी की स्थापना की जा रही है।
>राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत फोडर (चारा) ब्लॉक प्लांट की स्थापना हो रही।
>पटना, मुजफ्फरपुर, किशनगंज और पूर्णिया में 4 कुक्कुट प्रजनन फार्म (निम्न इन्पुट
टेक्नोलॉजी पक्षियों के लिए) स्थापित किये जा रहे हैं।
मत्स्यपालन
> बिहार में गंगा तथा उसकी सहायक नदियों से मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। इसके अलावा
छोटी-छोटी नदियों, तालावों, तालों, पोखरों आदि में भी मत्स्यपालन होता है।
> बिहार में अनेक जलाशय, ताल, तलैया (तालाब, पोखर), मौन, चौर आदि हैं, जो लगभग 1.38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हैं, परंतु इनमें से मात्र 10% तालाब और पोखर ही वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधित हैं।
> बिहार में मझौले और छोटे आकार के 29 जलाशय (रिजर्वोयर) हैं। परंतु इतने विशाल जल
संसाधन के बावजूद राज्य में मात्र 27,000 हेक्टेयर जल क्षेत्र का विकास मछली पालन के
लिए किया गया है।
> बिहार सरकार 1975 से मछलियों के अंडों का उत्पादन तथा मत्स्यपालन को प्रोत्साहित कर रही है। वर्ष 2008-09 में 161.60 लाख रुपये खर्च करके 393 लाख अंगुलिकाओं का
उत्पादन कर उन्हें किसानों में वितरित किया गया।
> राज्य के प्रमुख मछलियों में रोहू, कतला, भाखुर एवं मांगुर हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ
बोआरी, टेंगरा, सौराठी, वंसपत्ता, झींगा मछली, बचवा, पर्च, लोच, पयास, सिल्वर कावं कबई, सींगी, गरई आदि मछलियाँ भी काफी लोकप्रिय हैं। सम्प्रति राज्य में मत्स्यपालन उद्योग के रूप में अपनाया जा रहा है।
>1991 में बिहार में मछली का उत्पादन 1.60 लाख मीट्रिक टन था।
> वर्ष 2008-09 में (NABARD के अनुसार) राज्य में मत्स्य उत्पादन 2.61 लाख टन
अनुमानित थी, जबकि राज्य में मछली की मांग करीब 4.56 लाख टन है।
>वर्ष 2008-09 में राज्य में मछली का उत्पादन 35,000 टन बढ़ा।
>यहाँ प्रति व्यक्ति मछली की खपत 0.08 से 0.13 किलोग्राम वार्षिक है जो राष्ट्रीय औसत
खपत 3.5 किलोग्राम वार्षिक से बहुत कम है। लेकिन विहार राज्य में मत्स्यपालन के विकास
की पर्याप्त संभावनाएँ हैं।
> फिलहाल राज्य में मछली का वार्षिक आयात (आंध्र प्रदेश से) करीब 250 करोड़ रुपये का है।
 बिहार र्में जीरा (मत्स्य बीज) उत्पादन
>गत वर्ष बिहार में 600 मिलियन बीज की मांग के विरुद्ध कुल जीरा (बीज) उत्पादन 347
मिलियन था।
>बीज मांग की पूर्ति हेतु जीरा का आयात राज्य में मुख्य रूप से प० बंगाल से होता है।
बिहार
ऋण आवश्यकता
>मत्स्यपालन सेक्टर (क्षेत्र) की क्षमता विकास हेतु वर्ष 2007-08 में लगभग 112.44 करोड़
रुपये कुल ऋण आवश्यकता का अनुमान किया गया।
मत्स्यपालन के विकास में राज्य सरकार का योगदान
>बिहार सरकार ने राज्य में मत्स्यपालन विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
>मत्स्यपालन को राज्य में कृषि का दर्जा प्रदान किया गया है, फलतः यह क्षेत्र भी कृषि के
लिए उपलब्ध सारी सुविधाओं का उपयोग कर सकता है।
>राज्य सरकार की ओर से 1010 किसानों को काकीनाड़ा, आंध्र प्रदेश में मत्स्यपालन का
प्रशिक्षण दिलवाया गया ताकि आंध्र प्रदेश की तरह विहार भी ‘फिश फार्मिंग’ (मत्स्य कृषि)
के क्षेत्र में अग्रणी बन सके।
>राज्य सरकार ने 3 मई, 2006 को ‘बिहार मत्स्य जलकर प्रबंधन कानून’ को सरकारी तालाबों व जलाशयों की पट्टेदारी (लीजिंग) की स्पष्ट नीति के साथ लागू किया है।
>सरकारी जलकरों (वाटर बॉडीज) की बंदोबस्ती को ‘बिहार वाटर बॉडीज मैनेजमेंट एक्ट- 2006’ के दायरे में लाया गया है।
> इस कानून के अनुसार जलकरों की पट्टेदारी की व्यवस्था दो प्रकार की होती है-
1.सहयोगी संस्थाओं के लिए 5 वर्ष की अल्प अवधि के लिए और
2.प्रशिक्षित या दक्ष व्यक्ति / मछुआरे अथवा मछुआरा स्वयं सहायता समूहों के लिए 10
वर्ष की दीर्घ अवधि के लिए।
बिहार में मछुआरा सहयोगी संस्थाएँ
>बिहार में 590 फिशरमेन को-ऑपरेटिव्स (मछुआरा सहयोगी संस्थाएँ) हैं।
> इनमें से केवल 243 को-ऑपरेटिव्स फिलहाल क्रियाशील हैं।
संभाव्यता
> 1.38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले तालाव, जलाशय, कृत्रिम झील, आदि के रूप में राज्य में
मत्स्यपालन हेतु अपार जल संसाधन उपलब्ध हैं।
> राज्य में करीब 28,780 जलकर या तालाब तथा 43,000 तालाव एवं जलाशय हैं, जिनमें
अधिकतर राज्य मत्स्य विभाग के अधीन हैं। इसके अलावा छोटे एवं मझोले आकार के 29
कृत्रिम झील हैं।
> भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के अनुसार बिहार में मछली के उत्पादन को 30 से 35 गुना तक बढ़ाया जा सकता है।
मत्स्यपालन हेतु राज्य में उपलब्ध जल संसाधनों का विवरण
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>राज्य से होकर गुजरने वाली प्रमुख नदियाँ हैं- गंगा, कोसी, सोन, वागमती, गंडक और
पुनपुन जो प्रग्रहण मात्स्यिकी की संभावनाओं के स्रोत हैं।
> राज्य में वार्षिक मत्स्य उत्पादन 2.61 लाख टन अनुमानित है, जबकि एक अनुमान  के
अनुसार मछली की मांग करीब 4.56 लाख टन है। इस कमी को पूरा करने के लिए मुख्यतः
आंध्र प्रदेश से मछली आयात की जाती है।
बिहार में जल संसाधन
>जल का संसाधन के रूप में सर्वोपरि महत्व पेयजल, सिंचाई तथा जल विद्युत् उत्पादन में
है। इसके अतिरिक्त उद्योग, मत्स्यपालन, यातायात, मनोरंजन एवं अन्य जीवों के
के लिए जल संसाधन आवश्यक है।
> विहार राज्य में जल संसाधन अनेक नदियों के प्रवाह प्रदेश में भूमिगत तथा धरातलीय
के बीच घनिष्ठ अंतर्संबंध पाया जाता है।
> गंगा के उत्तरी भाग में घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, अधवारा, कमला, कोसी और
महानंदा नदियों के आठ प्रधान प्रवाह प्रदेश हैं।
>कर्मनाशा, सोन, पुनपुन, किऊल, हरोहर, बडुआ चंदन तथा चीर के सात प्रधान प्रवाह
प्रदेश के साथ ही गंगा में मिलने वाली अन्य छोटी नदियों के प्रवाह क्षेत्र दक्षिणी बिहार के मैदान में स्थित हैं।
> राज्य की जल संसाधन क्षमता का मूल्यांकन राज्य भूमिगत जल संगठन एवं भूसवेक्षण
विभाग द्वारा किया गया है। संपूर्ण राज्य के धरातलीय तथा भूमिगत जल संसाधन
वर्तमान वितरण असमान है।
> राज्य के जलोढ़ मैदान में कुल वर्षा का 20 से 22 प्रतिशत जल भूमिगत जल भंडार की
आपूर्ति का स्रोत है।
>केंद्रीय भूमिगत जल समिति के अनुसार दरभंगा जिले में 20 मीटर प्रति किलोमीटर उत्तर
पश्चिम से दक्षिण-पश्चिम औसत जलीय प्रवणता का अनुमान लगाया गया है।
> इस भाग के वार्षिक जलापूर्ति की मात्रा 886 करोड़ वर्ग मीटर निश्चित की गयी है भविष्य में विकास के लिए उपलब्ध है।
> सीवान जिले में 248 करोड़ वर्ग मीटर भूमिगत जल प्रतिवर्ष उपयोग के लिए उपल
है। यहाँ 229 मध्यम से भारी नलकूपों तथा 1600 छिछले नलकूपों का निर्माण किया जा
सकता है।
> बिहार के मैदानी क्षेत्र में जहाँ सिंचाई की गहनता की उच्चतम सीमा प्रतिवर्ष शुद्ध
भूमि के 140 प्रतिवर्ष अर्थात् ढाई गुना से अधिक सिंचाई का विकास करना है वहाँ भूमिग
जल का अधिकाधिक उपयोग वांछनीय है।
> विभिन्न मौसमों में होने वाली वर्षा को तालाबों, आहर तथा पाइन में संग्रह कर बिहार के
कृषक उसका उपयोग कृषि फसलों की सिंचाई के रूप में करते आ रहे हैं।
>गंगा के मैदान में भूमिगत जल सिंचाई की आपूर्ति का मुख्य स्रोत है।
बिहार में जल प्रबंधन और सिंचाई
>बिहार के शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 96 प्रतिशत भाग सिंचित है।
>बिहार के उन सभी भागों में जहाँ औसत सालाना वर्षा 1200 मिली मीटर से कम है, सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है। उत्तरी बिहार की पूरे वर्ष प्रवाहित होने वाली नदियों मे
मैदान को, अपेक्षाकृत कम तथा साल के अधिकांश महीनों में लगभग सूखी रहने वा
क्षेत्र में सिंचाई के लिए आवश्यक जल हमेशा उपलब्ध रहता है। लेकिन बिहार के दक्षिण
नदियों के कारण, सिंचाई की अधिक जरूरत है।
>बिहार के 28 जिले बाढ़ पीड़ित है। यह सभी जिले मुख्य तौर पर गंगा के उत्तरी मैदान में
पड़ते हैं। शेष बिहार के 3-4 जिलों के कुछ हिस्से साल-दो साल पर सूखे से पीड़ित हो जाते
है. जैसे- औरंगाबाद, गया, नवादा इत्यादि।
बिहार में सिचाई
>बिहार राज्य सिचाई आयोग (भारत-2003) के अनुसार बिहार में कुल सिंचाई क्षमता 102.50 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 53.53 लाख हेक्टेयर वृहत् एवं मध्यम सिंचाई  परियोजनाओं द्वारा तथा 45.97 हेक्टेयर सिचाई योजनाओं द्वारा सींची जा सकती है।
>बिहार में नहर, तालाब, नलकूप और कुओ द्वारा सिंचाई की जाती है। सिंचाई के साधनों
में नहर और नलकूपों का महत्वपूर्ण स्थान है। कुओं और तालाबों से अल्प क्षेत्र ही सिंचित
किया जाता है।
>बिहार राज्य में नहरें सिचाई का मुख्य साधन हैं। यहाँ की कुल सिंचित भूमि का लगभग
37 प्रतिशत से अधिक भाग नहरों से सींचा जाता है।
>नलकूपों से लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई की जाती है।
>कुओं, तालाबों और अन्य साधनों से संयुक्त रूप से लगभग 30 प्रतिशत भूमि की सिंचाई होती है ।
बिहार में सिंचाई के साधन
>बिहार में सिंचाई का सर्वप्रमुख साधन नहरें हैं, जो सदा प्रवाही नदियों के क्षेत्रों में, जहाँ जमीन की दाल मंद है, विशेष रूप से प्रयोग में लायी जाती है। जिन क्षेत्रों में मौसमी नदियाँ प्रवाहित होती है, वहीं बरसाती नहर का निर्माण कर सिंचाई की जाती है।
> सिचाई का दूसरा साधन कुआँ है। वस्तुतः विद्युत् शक्ति के प्रसार के साथ ही बिहार में
सिचाई के साधन के रूप में कुएँ का महत्व अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है।
बिहार में सिंचाई के प्रमुख साधन
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>विहार में विद्युत् चालित पंप का सर्वप्रथम उपयोग 1945-46 में डेहरी-सासाराम क्षेत्र में
किया गया था। पुनः 1946 में बिहारशरीफ तथा बिहटा के इलाके में विद्युत् चालित पंपों से सिंचाई आरंभ की गयी।
>सिंचाई के अन्य साधनों में तालाब, पाईन, आहर तथा चौर भी उल्लेखनीय हैं।
नहरे
>विहार में नहरों द्वारा सिंचाई अति महत्वपूर्ण साधन है। यहाँ के उत्तरी भाग में धरातलीय स्वरूप, मुलायम जलोढ़ चट्टानों की उपस्थिति, विस्तृत कृषि क्षेत्र तथा नियतवाहिनी नदियों द्वारा जल की आपूर्ति के कारण सिंचाई हेतु नहरों के विकास में विशेष सहायता मिलती है।
> बिहार में दो प्रकार की नहरें हैं : 1. नित्यवाही या सदावाही नहरें और 2. अनित्यवाही नहरें।
1. नित्यवाही या सदावाही नहरें
> ये वे नहरें हैं जो वर्षपर्यंत जल से परिपूर्ण रहती हैं।
> इन नहरों का उद्गम या तो सतत्वाहिनी नदियों से अथवा बाँधों पर निर्मित कृत्रिम जलाशयों
से होता है। उत्तरी विहार की अधिकांश नहरें इसी प्रकार की हैं।
2. अनित्यवाही नहरें
> ये मौसमी नहरें हैं जो सीधी नदियों से निकाली गयी हैं। वर्षा ऋतु में नदियों में बाढ़ के अतिरिक्त जल से ये नहरें प्रवाहित होती हैं।
> बिहार में अनित्यवाही नहरों की अपेक्षा नित्यवाही नहरें अधिक उपयोगी हैं,क्योंकि जब
सिंचाई की आवश्यकता महसूस होती है इनके जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा
सकता है। ऐसी नहरें परिवहन की दृष्टि से भी उपयोगी हैं।
> बिहार की कुल सिंचित भूमि का 73 प्रतिशत दक्षिणी मैदान में तथा लगभग 24 प्रतिशत
उत्तरी मैदान में नहरों द्वारा सिंचित होता है।
> बिहार में इन नहरों के द्वारा कुल कृषि भूमि का 38.6 प्रतिशत भाग सिंचित होता है।
> इन नहरों से सिंचित भूमि का 81 प्रतिशत से अधिक भोजपुर, बक्सर, रोहतास, कैमूर
पश्चिमी चंपारण, पटना, औरंगाबाद, जहानाबाद, गया, मुंगेर, दरभंगा, सहरसा तथा मधेपुरा
जिलों में आता है।
बिहार की प्रमुख नहरें
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बदुआ जलाशय
> इसकी स्थापना सन् 1765 में बदुआ नदी पर हुई। यह भागलपुर जिले में स्थित है।
चन्दन जलाशय
> इसकी स्थापना सन् 1972 में चन्दन नदी पर हुई।
> यह भागलपुर जिले में स्थित है।
तालाव
> बिहार में सिंचाई के लिए तालाब का उपयोग लगभग सभी जिलों में किया जाता है।
> प्राचीन समय से ही गड्ढेनुमा प्राकृतिक धरातल तथा कृत्रिम तालाब या पोखर को खोदकर जल एकत्रित कर बिहार में सिंचाई की जाती रही है।
>उत्तर बिहार के मैदान में तालाब द्वारा सिचित जिलों में गोपालगंज जिला का नाम विशेष
रूप से उल्लेखनीय है।
कुत्री
> बिहार प्राचीन समय से कुओं द्वारा सिंचाई करता रहा है। यहाँ के मैदानी भाग की मुलायम
 मिट्टी वाली भूमि में कुओं की खुदाई आसानी से हो जाती है।
>गंगा के मैदान में भूमिगत जल का स्तर भी पर्याप्त ऊँचा है। यहाँ कई स्थानों पर केवल
7 फीट (लगभग) की गहराई तक जमीन को खोदने पर ही पानी का स्रोत निकल आता
है। बिहार में कच्चे तथा पक्के दोनों प्रकार के कुओं से सिंचाई की जाती है।
>नलकूपों को छोड़कर कुआँ से की जाने वाली सिंचाई में उट्ठाकुंडी या रहट का प्रयोग किया
जाता है।
>संपूर्ण बिहार में कुआँ से सर्वाधिक सिंचाई सारण, सीवान तथा गोपालगंज जिलों में की
जाती है, हालाँकि बिहार के अन्य जिलों में भी कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है।
नलकूप
>बिहार में नलकूप 15 से 100 मीटर तक या
इससे भी अधिक गहरे होते हैं।
>नलकूप आधुनिक युग का कुआँ है, जिसमें भूमि के अन्दर काफी गहराई से जल की
स्थायी संतृप्त सीमा तक खोखला पाइप (लोहे या प्लास्टिक) डालकर डीजल या विद्युत् चालित
इंजन की सहायता से जल निकाला जाता है, इसलिए इन्हें बिजली के कुओं (बोरिंग) के
नाम से भी पुकारा जाता है।
> बिहार में पिछले दो दशकों में चम्पारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुवनी, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, बेगूसराय, सारण और वैशाली में नलकूपों का काफी विस्तार किया गया है।
> बिहार में भूमिगत जल को शक्ति विद्युत् चालित नलकूपों द्वारा खींचकर सिंचाई के लिए
उपयोग में लाने का प्रथम प्रयास 1944-45 के आसपास डेहरी सासाराम में किया गया
था। बिहार में विद्युत् के प्रसार के साथ ही नलकूपों की सिंचाई का महत्व तथा उपयोग
का प्रचलन बढ़ता गया।
>वस्तुतः सिंचाई के साधनों में बिहार में राजकीय नहरों के बाद नलकूपों का ही स्थान है।
>दक्षिण बिहार में नालंदा, रोहतास, कैमूर, पटना, गया, मुंगेर तथा भोजपुर जिलों में नलकूपों द्वारा प्रमुख रूप से सिंचाई की जाती है।
> यहाँ कुल सिंचित भूमि का 89 प्रतिशत नलकूपों द्वारा सिंचित होता है।
>उत्तर बिहार में सारण, सिवान, गोपालगंज, पश्चिमी तथा पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, बेगूसराय तथा सहरसा जिलों में नलकूपों द्वारा सिंचाई की जाती है।
अन्य साधन
> बिहार में सिंचाई के एक अन्य साधन पईन, आहर तथा चौर हैं।
>पईन (पाईन) नदियों, नालों या नहरों से सिंचाई के लिए मिट्टी खोदकर बनायी गई एक
कृत्रिम नाला-प्रणाली है।
>गया, पटना, मुंगेर और भागलपुर जिलों में पईन निर्माण कर सिंचाई के लिए प्रयोग में लाया जाता है। थोड़ी मात्रा में शाहाबाद, कैमूर, बक्सर, भागलपुर और दरभंगा के क्षेत्रों में भी
पईन द्वारा सिंचाई की जाती है।
> बिहार में तीन प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएँ हैं। इनमें कोसी परियोजना एवं विद्युत्गृह
सोन वैराज योजना और गंडक परियोजना को
 शामिल हैं। इन तीनों परियोजनाओं को कमांड
एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम (CADP) में 1974 में लाया गया था। ये तीनों परियोजनाएं राज्य
सरकार की हैं।
1.कोसी परियोजना एवं विद्युत्गृह
> कोसी परियोजना उत्तरी बिहार की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजना है, जो 86 करोड़ रुपए
की लागत से पूरी हुई है।
> इस परियोजना के निर्माण से पूर्व इस प्रदेश की लगभग 3200 हेक्टेयर कृषि भूमि कोसी
नदी के अनिश्चित प्रवाह पथ तथा भयंकर बाढ़ों से प्रभावित थी।
> कोसी परियोजना की स्थापना 1953 में की गयी थी। इस परियोजना के लिए नेपाल और
भारत के बीच अप्रैल में 1954 में आपसी सहमति हुई थी।
> 1965 में यह परियोजना बनकर तैयार हुई। 1966 में इसमें कुछ संशोधन किया गया। इस
परियोजना के अन्तर्गत हनुमान नगर अवरोधक बाँध, पुश्ते बाँध बनाए गए हैं।
> कोसी परियोजना से पूर्वी कोसी नहर, पश्चिमी कोसी नहर और राजपुर नहर बनाई गई
हैं। इस योजना से 3.14 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई संभव है।
> इस परियोजना के अन्तर्गत कटैया (वीरपुर के पास) नामक स्थान पर एक जल-विद्युत् गृह
स्थापित किया गया है।
हनुमान नगर अवरोधक बाँध (कोसी वराज)
> नेपाल में हिमालय की तराई में चतरा गार्ज से लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण कोसी नदी पर
1149 मीटर लंबा तथा 72 मीटर ऊँचा अवरोधक बाँध भीमनगर के समीप बनाया गया है, जो हनुमान नगर कोसी वराज के नाम से प्रसिद्ध है।
> इसके समीप दायीं ओर भारदा तक 2458 मीटर एवं बायीं ओर भीमनगर तक 1895 मीटर
दो लंबे तटबंधों का निर्माण किया गया है।
> हनुमान नगर अवरोधक बाँध के दोनों किनारों पर जल निःसरण हेतु ऐसे यंत्रों की
व्यवस्था है जिससे दायें किनारे पर जल का अधिकतम प्रवाह 11.9 हजार किलोलीटर
तथा बायें किनारे पर 28.9 हजार किलोलीटर प्रति मिनट होता है।
बाढ़ तटबंध
> हनुमान नगर अवरोधक बाँध से दोनों ओर बिहार के मैदानी क्षेत्र में नदी के समानांतर मिट्टी
का तटबंध कोसी के निरंतर परिवर्तित मार्ग को स्थिर रखने के लिए निर्मित किया गया है।
दायें किनारे पर भारदा से घोंघेपुर तक तटबंध की लंबाई लगभग 124 किलोमीटर है।
> निर्मली को बाढ़ से सुरक्षित रखने के लिए एक वृत्ताकार बाँध भी निर्मित किया गया है
 तथा इस अवरोधक बाँध से उत्तर की ओर 13 किलोमीटर लंबी एक नियंत्रणात्मक बाँध का
निर्माण भारदा से भिकुंडी तक किया गया है।
>वायें किनारे पर भीमनगर से कोपरिया तक तटबंध की लंबाई 146 किलोमीटर है। साथ ही भीमनगर से बाँधजोरा तक 32 किलोमीटर लंबा एक अभिवाह बाँध बनाया गया है, जिसके फलस्वरूप अवरोधक बाँध के पार्श्व में 41 किलोमीटर का एक जलमग्न क्षेत्र निर्मित हो गया है।
>इन बाँधों के अतिरिक्त महादेव, मरु, डलवा तथा निर्मली तटबंध बनाये गये हैं, जो नदी
ट के क्षय एवं अपरदन के अतिरिक्त लगभग 2.65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षा
प्रदान करते हैं
>परन्तु,तटबंधों के मध्य में स्थित लगभग 300 गाँवों की लगभग एक लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रतिवर्ष बाढ़ से प्रभावित रहती है।
नहर व्यवस्था
कोसी नदी के पूर्व तथा पश्चिमी किनारों पर नहरों का निर्माण कर बिहार के सहरसा,सुपौल, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, दरभंगा, मधुबनी तथा खगड़िया की एवं नेपाल के
सप्तरी जिले की लगभग 26 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान की जा रही है।
>कोसी परियोजना की नहरों को तीन प्रधान वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—
(क) पूर्वी कोसी नहर क्रम, (ख) पश्चिमी कोसी नहर क्रम और (ग) राजपुर नहर क्रम।
(क) पूर्वी कोसी नहर क्रम
> हनुमान नगर अवरोधक बाँध को बायें किनारे से निकाली जानेवाली पूर्वी कोसी नहर क्रम
के नाम से जानी जाती है, जो पूर्णिया, अररिया, सुपौल तथा सहरसा जिले की 5.69 लाख
हेक्टेयर कृषि भूमि को प्रतिवर्ष सिंचित करती है।
> प्रमुख पूर्वी कोसी नहर की कुल लंबाई यद्यपि 43.5 किलोमीटर ही है, पर अपनी शाखाओं
जैसे— मुरलीगंज, जानकीनगर, पूर्णिया, अररिया तथा अन्य दूसरी जल वितरक प्रशाखाओं सहित इसकी कुल लंबाई 3,038 किलोमीटर हो जाती है।
> पूर्वी कोसी नहर क्रम के अंतर्गत फुलकाहा वितरक शाखा शामिल है, जो मुख्य पूर्वी नहर
तथा बिहार-नेपाल सीमा के बीच फैली लगभग 12000 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है।
(ख) पश्चिमी कोसी नहर
>पश्चिमी कोसी नहर क्रम का मुख्य उद्देश्य बिहार के दरभंगा एवं बेगूसराय जिले की लगभग 3 लाख 10 हजार हेक्टेयर तथा नेपाल के सप्तरी जिले की 28 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान करना है। इस काम के लिए 113 किलोमीटर लंबी नहरों का विकास
किया गया है।
>इस क्रम की मुख्य शाखा हनुमान नगर अवरोधक बाँध के दायीं ओर से निकाली गयी है।
>इन नहरों के अतिरिक्त नेपाल के बाघजोरा के चतरा नामक नहर निकालकर बेगूसराय जिले की 85,890 हेक्टेयर भूमि तथा दाहिने किनारे पर पश्चिमी कोसी नहर द्वारा सप्तरी  जिले के 28,300 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।
(ग)राजपुर नहर क्रम
>हनुमान नगर के बायें किनारे से निकाली जाने वाली इस नहर क्रम का विस्तार पूर्वी कोसी
नहर क्रम और पूर्वी बाढ़ तटबंध के मध्यवर्ती क्षेत्र में विस्तृत है।
> राजपुर नहर व्यवस्था के अंतर्गत एक शाखा नहर राजपुर तथा चार उपशाखा नहर मधेपुरा,
गम्हरिया, सहरसा तथा सुपौल सहित इसकी कुल लंबाई 366 किलोमीटर है। इस नहर
व्यवस्था से तटबंध निर्माण के फलस्वरूप सहरसा तथा बेगूसराय जिले की बाढ़ से मुक्त
लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होती है।
>सिंचाई तथा बाढ़ नियंत्रण की सुविधाओं के अतिरिक्त बाँध के समीप कटैया नामक
 विद्युत्गृह में पाँच-पाँच हजार किलोवाट बिजली उत्पादन करने वाली चार इकाइयाँ हैं।
स्थान पर 20 हजार किलोवाट क्षमता वाले जल विद्युत् गृह का निर्माण किया गया है। इस
विद्युतगह् में  पाँच पाँच हज़ार किलोवाट बिजली उत्पादन करने वाली चार ईकाई है।
2. सोन परियोजना
> सोन नदी विंध्याचल की पहाड़ियों की उत्तर-पूर्वी ढाल से गुजरती हुई बिहार में प्रवेश क
है। बिहार में डेहरी के समीप इसका जलसंग्रहण क्षेत्र लगभग 26,608 वर्गमील है।
> इस नदी पर 1968-74 ई० के बीच पहला एनीकट निर्मित किया गया था, जो “नहरों
(खासकर रबी फसलों की सिंचाई के लिये भोजपुर, रोहतास, गया, औरंगाबाद तथा पर
जिलों को) जल उपलब्ध कराता था। बाद में डिहरी के समीप बने पहले एनीकट से लगभग
12 किलोमीटर दक्षिण इंद्रपुरी नामक स्थान पर एक नया तथा अत्यंत मजबूत बाँध वनवाळ
गया। यद्यपि इस स्थान पर नदी की कुल चौड़ाई 3,81,000 मीटर है परंतु वराज की कुल चौड़ाई मात्र 1412 मीटर ही रखी गयी ।
> सोन बराज के बायीं ओर 59 स्लिपवे तथा 8 भूमिगत स्लूइजवे तथा दायीं ओर 4 भूमिगत
स्लूइज वे हैं । इसके अतिरिक्त वराज पर 6.7 मीटर चौड़ी एक सड़क भी निर्मित की गयी है।
> बराज के दोनों किनारों को निर्मित कर न केवल पश्चिमी तथा पूर्वी सोन नहरों को पर्यान
जल की सुविधा दी गयी है बल्कि सोन की नहरों में आंतरिक परिवहन व्यवस्था भी सु
करायी गयी है।
3.गंडक परियोजना
> गंडक परियोजना भारत तथा नेपाल सरकार की संयुक्त योजना है।
> गंडक योजना के लिये भारत तथा नेपाल के बीच दिसम्बर 1959 में समझौता हुआ। परंतु
इस संदर्भ में 1960 में कार्य प्रारंभ किया गया। गंडक योजना यद्यपि बिहार में स्थापित है,
परंतु इससे बिहार के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश तथा नेपाल भी लाभान्वित होते हैं।
>इस योजना के अंतर्गत बिहार के भैंसालोटन नामक स्थान में गंडक नदी पर भारत-नेपाल
सीमा के समीप सड़क पुल के साथ 837.8 मीटर लंबा बराज (1969-70 में) निर्मित किया
गया है। इसका लगभग आधा भाग बिहार में तथा आधा भाग नेपाल में पड़ता है।
>बराज के दोनों किनारों से दो मुख्य नहरें अर्थात् पश्चिमी तथा पूर्वी नहरें 1972-73 मे खोदी गयीं। इन दोनों नहरों द्वारा सम्मिलित रूप से भारत तथा नेपाल की हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है।
>पश्चिमी नहर वस्तुतः नेपाल में प्रारंभ होती है जबकि पूर्वी नहर बिहार में प्रारंभ होती है।
> पश्चिमी नहर का निर्माण विहार में सिवान जिले की 5.6 लाख हेक्टेयर तथा उत्तर प्रदेश
के गोरखपुर एवं देवरिया जिलों में 3.2 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के उद्देश्य से किया
गया है। पश्चिमी तट से ही एक और नहर निकाली गयी है जो नेपाल के भैरवा जिला
सिंचाई की सुविधा प्रदान करती है।
> पश्चिमी मुख्य नहर की कुल लंबाई 192 किलोमीटर है जिसका कुछ नेपाल में तथा बड़ा
हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार के सिवान तथा गोपालगंज जिले में पड़ता है।
>पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर एवं दरभंगा जिले के लगभग 6.8 लाख हेक्टेयर
तथा नेपाल के लगभग 40 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा प्रदान करने
वाली प्रमुख नहर की कुल लंबाई 238 किलोमीटर है।
>इसके अतिरिक्त इस योजना के अंतर्गत दो विद्युत् उत्पादन गृहों को भी निर्मित किया
है। एक विद्युत् गृह बिहार में तथा दूसरा नेपाल क्षेत्र में प्रमुख पश्चिमी नहर के 12वें किमी
 स्थित है।
> फिलहाल राज्य के अंतर्गत 18 वृहत् परियोजनाएँ अपने निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं- (i) पश्चिमी कोसी नहर (ii) अपर क्यूल जलाशय (iii) दुर्गावती जलाशय योजना
(iv) अजय बराज (v) बटेश्वर स्थान फेज I आदि।
>इसके अतिरिक्त अंतर्राज्यीय योजनायें भी चल रही हैं :
(i) छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार के अंतर्गत बाणसागर परियोजना (सोन नदी पर),
(ii) कदवन जलाशय योजना, (iii) कनहर जलाशय योजना, (iv) जमनिया पंप नहर योजना,
(v) ऊपरी महानंदा सिंचाई योजना आदि ।
>राज्य की सिंचाई कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है— बड़े सिंचाई कार्य और छोटे
 सिंचाई कार्य । 1978-79 से योजना आयोग ने सिंचाई परियोजनाओं का यह नया वर्गीकरण
आरंभ किया है।
>बड़ी सिंचाई योजनाएँ : इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती हैं, जिनके नियंत्रण में 10,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य क्षेत्रफल हों।
> मध्यम सिंचाई योजनाएँ : इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती हैं, जिनके नियंत्रण में
2,000 से 10,000 हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्रफल हो ।
> छोटी सिंचाई योजनाएँ : इनमें वे परियोजनाएँ शामिल की जाती हैं, जिनके नियंत्रण में 2,000
हेक्टेयर तक क्षेत्रफल हो ।
बिहार में उद्योग धंधे
> राज्य के मुख्य उद्योगों में मुजफ्फरपुर और मोकामा में भारत वैगन लिमिटेड का रेलवे वैगन
प्लांट तथा बरौनी में भारतीय तेल निगम का तेलशोधक कारखाना काफी लाभदायक है।
> बरौनी का एच०पी०सी०एल और अमझोर का पाइराइट्स फॉस्फेट एंड केमिकल्स लिमिटेड
(पी०पी०सी०एल) राज्य के प्रमुख उर्वरक संयंत्र हैं।
>सीवान, भागलपुर, पंडौल, मोकामा और गया में पाँच बड़ी कताई मिलें हैं।
>उत्तर व दक्षिण बिहार में 13 चीनी मिलें निजी क्षेत्र की तथा 15 चीनी मिलें सार्वजनिक क्षेत्र की हैं, जिनकी कुल पेराई क्षमता 45,000 टी.पी.डी. है।
> गोपालगंज, पश्चिमी चम्पारण, भागलपुर और रीगा (सीतामढ़ी जिला) में शराब बनाने के
में कारखाने हैं।
>पश्चिमी चम्पारण, मुजफ्फरपुर और बरौनी में चमड़ा प्रसंस्करण के उद्योग हैं।
> कटिहार और समस्तीपुर में तीन बड़े पटसन के कारखाने हैं।
>हाजीपुर में दवाएँ बनाने का कारखाना है, जबकि औरंगाबाद और पटना में खाद्य
प्रसंस्करण और वनस्पति बनाने के कारखाने हैं।
>बंजारी में कल्याणपुर सीमेंट लिमिटेड नामक सीमेंट कारखाने का बिहार के औद्योगिक नक्शे में महत्वपूर्ण स्थान है।
बिहार के प्रमुख उद्योग एवं उनकी अवस्थिति
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बिहार के प्रमुख उद्योग एवं संबंधित स्थान
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भारत वर्ग.
>भारत सरकार ने रेल के वैगन और दूसरे इंजीनियरिंग सामान बनाने के लिए इस कारखाने को मोकामा में स्थापित किया है।
बरौनी तेलशोधक कारखाना
>यह बेगूसराय जिला के बरौनी में स्थित है और इसकी स्थापना सन् 1964 में तत्कालीन
सोवियत संघ की सहायता से की गई थी ।
>सन् 1983 में इस कारखाने की पेट्रोलियम शोधन क्षमता 33 लाख टन थी।
>वर्तमान में यह कारखाना भारतीय तेल निगम के अधीन आता है और यहाँ के पेट्रोलियम
की आपूर्ति असम के तेल क्षेत्रों से की जाती है।
बिहार में सार्वजनिक प्रबंधन में राज्य सरकार के अधीन उद्योग
>बिहार स्टेट स्कूटर्स लिमिटेड : फतुहा में स्थापित इस कारखाने का मुख्यालय पटना में है। इसके अधिकांश शेयर बिहार सरकार के पास हैं।
> बिहार स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉपोरेशन लिमिटेड : इसका मुख्यालय पटना में है। इसके
अंतर्गत भागलपुर की स्पिन सिल्क फैक्ट्री, विक्रमगंज की चावल मिलें, इन्सुलेटर और
इलेक्ट्रिकल इंस्ट्रूमेंट्स फैक्ट्री हैं।
>बिहार स्टेट हैण्डलूम, पावरलूम, हैण्डीक्राफ्ट्स डवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड : बिहार में
हथकरघा, पावरलूम और दस्तकारी सामानों का उत्पादन और वितरण के लिए बिहार सरकार
ने निगम की स्थापना की है।
बिहार में कृषि पर आधारित उद्योग
चीनी उद्योग
> चीनी उद्योग राज्य का सबसे पुराना उद्योग है।
> बिहार में चीनी का पहला कारखाना 1840 ई० में बेतिया में डचों द्वारा प्रारंभ किया गया था।
> वर्तमान में देश में चीनी उत्पादन हेतु बिहार में 28 चीनी मिलें हैं, हालांकि इनमें अधिकांशतः
जर्जर एवं बीमार हो चुकी हैं तथा कुछ बंद भी हो गयी हैं, जिन्हें पुनर्जीवित करके राज्य
में चीनी उद्योग की स्थिति को ठीक करने की कोशिश की जा रही है।
> सम्प्रति बिहार राज्य चीनी निगम की लौरिया और सुगौली इकाइयाँ हिन्दुस्तान पेट्रोलियम
कार्पोरेशन लि० (एच पी सी एल) को जनवरी 2009 में 60 वर्षों की लीज (पट्टे) पर दे
दी गई। लीज की अवधि को 30 वर्ष के लिए बढ़ाया भी जा सकता है।
> विहार में चीनी उद्योग के प्रमुख केंद्र डालमियानगर, मीरगंज, सीवान, समस्तीपुर, मझोलिया, बिहटा, गोपालगंज, सिघवलिया, बेतिया और छपरा हैं। गुरारू, महाराजगंज, हरिनगर, वारसलीगंज, लोहट, मोतीपुर, हसनपुर, सासामुसा आदि में भी चीनी मिलें स्थित हैं।
>सन् 2000 में राज्य के विभाजन के बाद वर्तमान बिहार में यह सबसे बड़ा उद्योग है।
>40 वर्ष पूर्व बिहार राज्य को चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा स्थान प्राप्त था।लेकिन उत्पादन में कमी आने के कारण इसका स्थान घट कर अब 7वाँ रह गया है।
इस्त्र उद्योग
>वस्त्र उद्योग के अंतर्गत सामान्यतया (1) सूती वस्त्र उद्योग (2) ऊनी वस्त्र उद्योग
(3) रेशमी वस्त्र उद्योग (4) कृत्रिम रेशा वस्त्र उद्योग आते हैं।
सूती वस्त्र उद्योग
> बिहार राज्य में सूती वस्त्र उद्योग गया और फुलवारीशरीफ में केन्द्रित है।
> ओवरा (औरंगाबाद) में बने दरी और कालीनों का विदेशों में निर्यात किया जाता है।
> सूती वस्त्र की अन्य छोटी-छोटी मिले मुजफ्फरपुर, मुगर, भागलपुर, किशनगंज, बिहार और मधुबनी में है।
> बिहार में होजरी तैयार करने की छोटी-बड़ी 40 फैक्ट्रियाँ हैं। वे अपने उद्योगों के लिए
कानपुर और अहमदाबाद से मँगाते हैं।
रेशमी वस्त्र उद्योग
>बिहार राज्य में केवल तसर तथा अण्डी रेशम का उत्पादन होता है।
> रेशमी वस्त्र उद्योग का विकास भागलपुर एवं आसपास के क्षेत्र में हुआ था।
> भागलपुर में मुख्य रूप से तसर से रेशमी वस्त्रों का उत्पादन होता है।
जूट उद्योग
> भारत में विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले उद्योगों में जूट उद्योग प्रमुख है।
>स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में जूट उद्योग के 110 कारखाने थे, जो अधिकांश पश्चिमी द
और बिहार में केंद्रित थे, लेकिन जूट उत्पादित करने वाला 2/3 भाग पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चला गया था ।
> पूर्णिया, कटिहार, सहरसा और दरभंगा के 1.5 लाख हेक्टेयर भूमि में 8.3 लाख टन जूट
का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त समस्तीपुर में भी जूट मिल की स्थापना हुई है।
> बिहार में जूट के तीन बड़े कारखाने पूर्णिया, कटिहार और दरभंगा में स्थित है। इसमें
रामेश्वर जूट मिल्स, कटिहार तथा मोतीलाल जूट मिल्स, दरभंगा विशेष उल्लेखनीय है।
तम्बाकू उद्योग
> राज्य के
>तम्बाकू उद्योग में पूर्णिया, सहरसा, दरभंगा और मुंगेर का महत्वपूर्ण स्थान है।
> सिगरेट के अतिरिक्त बीड़ी उद्योग का भी विकास राज्य के विभिन्न जिलों में हुआ है। दो
निर्माण में मुंगेर, पटना एवं गया का प्रमुख स्थान है।
> सिगरेट बनाने के कारखानों में से एक इम्पीरियल टोबैको कम्पनी (अब इंडियन टॉड
कंपनी-ITC) का सिगरेट कारखाना मुंगेर जिले के दिलावरपुर नामक स्थान पर है।
> इसके अतिरिक्त राज्य में बीड़ी बनाने के 250 छोटे-बड़े उद्योग हैं। झाझा, लखीसराय, जमुई
है।
> उत्तरी बिहार के महनार, दलसिंहसराय, शाहपुर तथा अयोध्यागंज बाजार में बीड़ी
बिहारशरीफ, मानपुर, आरा, बक्सर आदि स्थानों पर भी बीड़ी बनाने का कार्य होता है।
उल्लेखनीय केन्द्र हैं।
चावल और दाल मिल
> बिहार में नगरीय क्षेत्रों में चावल की आपूर्ति के लिए कारखाने स्थापित किए गए हैं।
>चावल से भूसा अलग करने के लिए विद्युत्चालित मिलों के आगमन ने इसे औद्योगिक रूप दे दिया है। बिहार में सबसे अधिक चावल मिलें चंपारण एवं भोजपुर जिलों में हैं।
> बिहार की प्रमुख चावल मिलें हैं :
★ पूर्वी चंपारण में : रक्सौल, आदापुर, मलातु, घोड़ासहन, सिकटा, कोटवा आदि ।
★ पश्चिमी चंपारण में: नरकटियागंज, भैरवगंज, चनपटिया, रामनगर आदि ।
★ सीमामढ़ी में : सीतामढ़ी, वैरगनियाँ, जनकपुर रोड आदि ।
★ मधुबनी में : मधुबनी, जयनगर, घोघरडीहा, झंझारपुर, लौकहा आदि ।
★ दरभंगा में : दरभंगा, उशराही, कतरास आदि।
★ अररिया में : जोगबनी, फारबिसगंज आदि ।
★ किशनगंज में : किशनगंज, ठाकुरगंज, आदि।
★ रोहतास में : नोखा, विक्रमगंज, दिनारा, नासरीगंज आदि ।
>इनके अतिरिक्त वक्सर, गया, मुंगेर, दाऊदनगर, नवीनगर, सासाराम, भानपुर, मानपुर आदि स्थानों पर चावल-दाल की मिलें हैं।
आटा चक्की मिल
>बिहार में गेहूँ से आटा, मैदा व सूजी और दलिया बनाने के कारखाने हैं, जिन्हें आटा-चक्की मिल कहा जाता है। इन मिलों के बदौलत आज बिहार में सत्तू और वेसन उद्योग काफी लोकप्रिय और लाभप्रद है।
> पटना और गया में सर्वाधिक आटा चक्की मिले हैं। इनके अतिरिक्त शाहाबाद, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मुंगेर और भागलपुर में स्थित हैं।
तेल मिल
> बिहार में लगभग 500 तेल मिलें हैं, जिनमें से अधिकांश पटना, गया, शाहाबाद, बेगूसराय
और मुंगेर में केन्द्रित हैं।
> बिहार में तीसी, राई, सरसों, तिल, रेंडी आदि तिलहन फसलें उगायी जाती हैं, जिनकी पेराई
करके तेल निकाला जाता है।
वनस्पति उद्योग
> बिहार में वनस्पति घी के उत्पादन में डालमियानगर का प्रमुख स्थान है।
> इसकी उत्पादन क्षमता 18,500 टन है। इसके अतिरिक्त बिहारशरीफ राजगीर मार्ग पर एक मिल की स्थापना की गयी है। 1972 में स्थापित इस कारखाने में प्रतिदिन घी का उत्पादन 2.4 लाख टन है।
बिहार में वन्य पदार्थों पर आधारित उद्योग
> वन्य पदार्थों पर आधारित विहार में तीन प्रकार के उद्योग हैं:
(क) लकड़ी उद्योग, (ख) कागज और लुग्दी उद्योग और (ग) लाख उद्योग।
> इन तीनों उद्योगों की अपनी-अपनी महत्ता है।
कागज व
लकड़ी उद्योग
> बिहार के वनों से प्राप्त लकड़ी से राज्य में लकड़ी चीरने के कारखाने, प्लाईवुड बनाने के
कारखाने प्रगति कर रहे हैं।
> बिहार में नेपाल और भारत सीमा के निकट नरकटियागंज, जोगबनी, गोपालगंज, पं० चम्पारण, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, पटना, भागलपुर तथा कटिहार में लकड़ी के कारखाने हैं।
 कागज लुग्दी उद्योग
> बिहार में वनों से बांस, सवाई घास और मुलायम लकड़ी आसानी से मिल जाती है, जिनके आधार पर यहाँ कागज और लकड़ी उद्योग विकसित हुए हैं।
> बिहार का ठाकुर पेपर मिल्स लिमिटेड कारखाना जो समस्तीपुर में है और दरभंगा में अशोक पेपर मिल प्रसिद्ध है।
> इन कारखानों में चीनी मिलों से प्राप्त गन्ने की खोई (छिलके) तथा स्थानीय रूप में की भूसी से कागज व लुग्दी तैयार की जाती है। अन्य छोटे कारखाने बरौनी, पटना आदि में स्थित हैं।
> ईख की खोई, सवाई घास तथा बांस पर आधारित लुग्दी उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा
उद्योग डालमियानगर में स्थित है
> यहाँ का रोहतास कागज उद्योग सर्वोत्तम श्रेणी का कागज, टीशू पेपर, मुद्रण पत्र, टिकट बोर्ड, सिम्पलैक्स बोर्ड, लुग्दी बोर्ड आदि का उत्पादन करता है।
लाख उद्योग
> वन्य पदार्थों पर आधारित उद्योगों में लाख उद्योग का प्रमुख स्थान है।
> लाख विशेष वृक्षों के कीड़ों से प्राप्त होने वाला एक लसीला पदार्थ है, जो जमकर ठोस हो
जाता है और लाह अथवा लाख कहलाता है।
>उन विशेष वृक्षों में पलाश, बैर, कुसुम आदि प्रमुख हैं। इस उद्योग का विकास गया है
पूर्णिया में हुआ है।
रबर उद्योग
> बिहार में आरा से तीन किलोमीटर दूर जमीरा में 1971 में अलका रबर कारखाने में
स्थापना की गयी। 10 लाख रुपये की लागत से बने इस कारखाने में 1972 में उत्पादन प्रारंभ हुआ।
>यह प्रतिदिन 100 साइकिल एवं रिक्शा टायर तैयार करता है।
> कुछ साइकिल और रिक्शा के टायरों के उत्पादन करने वाले लघुस्तरीय कारखाने पटना,
गया तथा मुजफ्फरपुर में भी स्थित हैं।
प्लाईवुड उद्योग
> देशभर में बनने वाली कुल प्लाई का बड़ा हिस्सा बिहार में बनता है।
> बिहार का हाजीपुर स्थित प्लाईवुड कारखाना देशभर में प्रसिद्ध है।
अन्य प्रमुख उद्योग
काँच उद्योग
> बिहार में वैदिककाल में भी काँच की चूड़ियाँ पहनने का प्रचलन था।
> इस उद्योग के लिए बालू सिलिका, सोडा एश, चूना पत्थर, सोडियम सल्फेट, पोटेशियम
कार्बोनेट, शोरा, सुहागा, बोरिक एसिड, शीशा, सुरमा, संखिया, बेरियम ऑक्साइड आदि
पदार्थ कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
> बिहार में (अब झारखंड) राजमहल की पहाड़ियों में मंगल घाट तथा पत्थर घाट क्षेत्र में
तथा निकटवर्ती क्षेत्र में इसका कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।
> बिहार में वरौनी, भवानी नगर, पटना तथा हाजीपुर में काँच उद्योग से सम्बन्धित कारखाने है।
रासायनिक खाद कारखाना
> बरौनी तेल शोधशाला से प्राप्त नेप्था पर आधारित एक खाद के कारखाने की स्थापना बरौनी में की गयी है जो प्रतिवर्ष 152,000 टन नाइट्रोजन का उत्पादन करता है।
>इसमें अमोनिया का आधा भाग यूरिया में परिवर्तित कर दिया जाता है और शेष अमोनिया का उपयोग चट्टानी फास्फेट को नाइट्रिक एसिड के साथ शोधित करके नाइट्रोफास्फेट उत्पादन के लिए किया जाता है।
>डालमिया नगर के रोहतास उद्योग का रसायन संयंत्र कास्टिक सोडा, तरल क्लोरीन, क्लोरीन
गैस, हाइड्रोजन गैस, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, ब्लीचिंग पाउडर, बेरियम लवण तथा सोडियम
सल्फाइट का उत्पादन करता है।
इंजीनियरिंग उद्योग
>बिहार में इंजीनियरिंग उद्योग का प्रारंभ मुजफ्फरपुर में आर्थर बटलर कम्पनी की स्थापना के साथ हुई। वर्तमान में यहाँ भारत वैगन लिमिटेड का रेलवे वैगन संयंत्र स्थित है।
चमड़ा उद्योग
>बिहार के पश्चिमी चम्पारण, मुजफ्फरपुर और बरौनी में चमड़ा प्रसंस्करण उद्योग है।
>बिहार के दीघा और मोकामा में बाटा कम्पनी के बड़े कारखाने हैं।
सीमेंट उद्योग
> बंजारी में कल्याणपुर सीमेंट लिमिटेड
कारखाना स्थापित है।
       व्यक्तिगत  प्रबंध के उद्योग
रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड (डालमियानगर)
>विहार राज्य के व्यक्तिगत प्रबंध के उद्योगों में यह प्रमुख है।
>इसकी 24 चीनी मिलें, 7 सीमेंट कारखाने, तीन जूट कारखाने और एक रेलवे वैगन का
कारखाना है। काफी समय तक यह बंद रहा। पर अब यह आंशिक रूप से क्रियाशील हो
गया है।
अन्य उद्योग
1 उपर्युक्त उद्योगों के अतिरिक्त बिहार में कई अन्य छोटे-छोटे उद्योग हैं, जिनका उत्पादन
वृहत् स्तर पर न होकर स्थानीय मांगों की पूर्ति पर आधारित है। ऐसे उद्योगों के अंतर्गत
देशी शराब, हथकरघा, तेलघानी,गुड़-खांडसारी, बेकरी, साबुन आदि आते हैं।
> गन्ने का रस, जई, गेहूँ, महुआ आदि से शराब बनाने के मुख्य कारखाने मुंगेर, मीरगंज,
पंचरुखी, मढ़ौरा, पटना आदि में है।
> हथकरघा उद्योग के अंतर्गत धोती साड़ी, दरी, चादर, पर्दे, कंबल, तौलिया, रूमाल आदि का
निर्माण होता है। ये उद्योग मुख्यतः पटना, गया, मधुवनी, बिहारशरीफ, भागलपुर, मुंगेर
तथा दाउदनगर में हैं।
> इनके अतिरिक्त लघु स्तर पर तेलघानी, गुड़, खांडसारी, साबुन इत्यादि उद्योगों का विकास
भी राज्य के विभिन्न जिलों में हुआ है।
राज्य में स्थापित विभिन्न कुटीर उद्योग
1. हस्तकरघा वस्त्र उद्योग, 2. वीड़ी उद्योग, 3. साबुन उद्योग, 4. चमड़ा उद्योग, 5. धातु के
फर्नीचर, सामान व ताले बनानेवाले कारखाने, 6. टोकरी, चटाई, फर्नीचर निर्माण उद्योग,
7. प्लास्टिक, नायलोन के सामान बनानेवाले उद्योग, 8. अल्युमिनियम व स्टील के बर्तन
बनानेवाले उद्योग आदि।
>इनमें कुछ उद्योग आर्थिक मदद के अभाव में संकटग्रस्त हैं।
>बिहार में 10,212 लघुस्तरीय उद्योग की इकाइयाँ पंजीकृत हैं।
>इसके अलावा राज्य सरकार 104 तरह के लघु उद्योग को विकसित करने के लिए आर्थिक सहायता भी देती है।
बिहार के उद्योगों के विकास हेतु संस्थाएँ
बिहार राज्य वित्त निगम
> बिहार राज्य वित्त निगम द्वारा मुख्य रूप से लघु प्रक्षेत्र के उद्योगों की स्थापना करने हेतु
वित्तीय सहायता दी जाती है।
बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम
> बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम का मुख्य उद्देश्य राज्य के औद्योगिक विकास हेतु
आधारभूत संरचना प्रदान करना है।
औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार
>पटना, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा में औद्योगिक आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश
से औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार कार्य कर रहा है। पंडौल (मधुवनी), बेगूसराय, हाजी
आदि में औद्योगिक प्रांगण (इंडस्ट्रियल एरिया) स्थापित हैं।
>बिहार में राज्य शासन के कुछ औद्योगिक उपक्रम
1.बिहार स्टेट हैण्डलूम, पावरलूम एण्ड हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
2.बिहार स्टेट कन्स्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
3.बिहार स्टेट स्कूटर्स लिमिटेड, पटना
4. बिहार स्टेट फूड एण्ड सिविल सप्लाइज कॉर्पोरेशन, पटना
5. बिहार फोरेस्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
6. बिहार स्टेट फाइनेन्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
7.बिहार स्टेट डेयरी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
8.बिहार स्टेट शुगर कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
9. बिहार स्टेट स्मॉल स्केल इण्डस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
10. बिहार स्टेट लेदर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
11. बिहार स्टेट टेक्स्ट वुक पब्लिशिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड, पटना
बिहार में खनिज संसाधन
> बिहार में प्राचीन भारत का मगध एवं वैशाली जैसा ऐतिहासिक क्षेत्र अवस्थित है जहाँ खनन आधारित उत्पादन के विकास के प्रचुर प्रमाण हैं। प्रारंभ में इस क्षेत्र में उपलब्ध शोरा जैसे खनिज तत्व के कारण ही विदेशी व्यावसायिक शक्तियाँ आकर्षित हुई।
> भौगोलिक परिस्थिति के कारण बिहार के विभिन्न जिलों में अनेक प्रकार की खनिज संपदा पायी जाती हैं।
> राज्य के विभाजन के पश्चात् प्रमुख खनिज उत्पाद जैसे—कोयला, वाक्साईट, क्वाट्जईट, अवरख, ताँबा, अयस्क, ग्रेफाइट इत्यादि का भण्डार झारखण्ड राज्य में चला गया है। इसके बावजूद बिहार में अनेक मूल्यवान खनिज अब भी उपलब्ध हैं।
> वर्तमान बिहार में प्रधान रूप से चूना पत्थर, पायराइट, चीनी मिट्टी, क्वार्ट्ज, फेल्सपार, सोना, स्लेट, सजावटी ग्रेनाइट तथा शोरा प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं।
> बिहार राज्य देश में पायराइट का एकमात्र उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ सोना का भी भण्डार है।
> बिहार में उपलब्ध खनिजों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है ।
(i) धात्विक खनिज (Metallic Minerals) : वाक्साईट (खड़गपुर की पहाड़ियाँ), सोना (जमुई-करमटिया) इत्यादि ।
(ii) अधात्विक खनिज (Non-Metallic Minerals) : चूना पत्थर (रोहतास), पायराइट (रोहतास), अवरख (जमुई), चीनी मिट्टी (भागलपुर-वांका), क्वार्ट्ज (जमुई, गया
एवं नवादा), स्लेट (मुंगेर), शोरा (बेगूसराय, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, सारण एवं पूर्वी चम्पारण) ।
(iii) गर्म पानी के सोते : मुंगेर एवं राजगीर ।
बिहार में खनिज सम्पदा
> नवम्बर 2000 में राज्य के विभाजन के कारण अधिकांश खनिज संपदाओं के झारखंड में चले जाने के बाद बिहार के मुंगेर, भागलपुर और वाँका जिले में उपलब्ध ताँबा, शीशा, जस्ता, सोना, कीमती पत्थर, अभ्रक, टीन और दुर्लभ धातुओं जैसे खनिज संपदाओं का महत्व और भी बढ़ गया है।
> भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के मुंगेर जिले के खड़गपुर पहाड़ियों में सतह से 100 मीटर नीचे तक करीब 44.9 करोड़ टन क्वार्टजाइट का पता लगाया गया, जिसमें सिलिका की मात्रा 97 से 99 प्रतिशत है। इसका उपयोग काँच उद्योग में किया गया  है और आजकल इसका उपयोग सिलिका की ईंट बनाने में व्यापक रूप से हो रहा है।
>राज्य के बाँका, भागलपुर एवं जमुई जिलों से गुजरने वाले इसातू वेलबभान बहु-धात्विक पट्टी में उप-धातु ताँबा, शीशा और जस्ता का पता लगाया गया है।
>बाँका जिला के पिंडारा, धाबा एवं बिहारवाड़ी क्षेत्रों में 6.9 लाख टन उप-धातु, अयस्क का आकलन किया गया है।
अभ्रक 
>यह एक अधात्विक खनिज है, अतः यह बिजली का कुचालक है। अत्यधिक ताप सहन  करने में समर्थ इस खनिज का उपयोग बिजली के साथ अन्य उद्योगों में भा होता है।
> झारखंड के गिरिडीह व कोडरमा से पूर्व में बिहार के नवादा और जमुई जिले तक अभ्रक  की 145 किमी० लम्बी और 32 किमी० चौड़ी एक पेटी पायी जाती है।
>विश्व की सर्वोत्कृष्ट कोटि का रूबी अवरख (अभ्रक) उत्पादन करने वाला क्षेत्र बिहार और झारखंड के 4640 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
> बिहार में प्रमुख अभ्रक क्षेत्र हैं- नवादा, जमुई, मुंगेर, भागलपुर और गया।
एस्बेस्टस
> यह एक चमकीला तथा रेशेदार खनिज है जो धारवाड़ क्रम की चट्टानों में पाया जाता है।
> भवन निर्माण के कार्य में लाया जानेवाला यह खनिज बिहार में मात्र मुंगेर जिला में ही मात्रा में पाया जाता है।
क्वार्ट्ज
> इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों, जैसे- सीसा, सीमेंट, रिफेक्ट्री बिजली उद्योग इत्यादि में होता है।
> यह मुख्य रूप से मुंगेर जिले के धारवाड़ युग की पहाड़ियों में पाया जाता है।
गंधक
> गंधक हालांकि एक महत्वपूर्ण खनिज है पर बिहार में इसका अभाव है। अभी तक इसकी प्राप्ति ताँबा अयस्क तथा पायराइट खनिज प्रस्तर से होती है।
> वर्तमान समय में व्यावसायिक स्तर पर पायराइट्स का खनन रोहतास जिले के अमझोर नामक स्थान पर होता है तथा इससे गंधक का अम्ल तैयार किया जाता है।
गैलेना
> गैलेना लेड धातु का एक प्रमुख अयस्क है। राज्य में इस खनिज के बड़े निक्षेप बाँका जिला के अवरखा क्षेत्र में मिलने की पुष्टि की गई है।
> इस खनिज का उपयोग आणविक संयंत्र निर्माण, पेन्ट तथा अन्य रसायन उद्योग में किया  जाता है।
चीनी मिट्टी
> यह फेल्सपार के विघटन से प्राप्त होने वाली उजली मिट्टी है। इसका उपयोग तापसह उद्योग कागज, उर्वरक, वस्त्र, कॉस्मेटिक, कीटनाशक, सीमेंट एवं वर्तन उद्योग में होता है।
> यह खनिज बिहार के भागलपुर और मुंगेर जिले में मिलता है।
चूना पत्थर
>यह सीमेंट का प्रमुख कच्चा माल है। परंतु इसका उपयोग इस्पात उद्योग के धमन भट्ठी के अलावा चीनी, सूती वस्त्र, उवर्रक जैसे अनेक उद्योगों में भी उपयोग होता है।
>देश में सबसे उच्च कोटि का चूना पत्थर रोहतास और कैमूर जिले में फैले कैमूर के पठार में पाया जाता है। चूनाइट्टन, रामडिहरा, बऊलिया और बंजारी आदि प्रमुख चूना-पत्थर  के उत्पादक क्षेत्र हैं।
टिन 
>यह कैसिटेराइट नामक खनिज संस्तर से प्राप्त होता है। इसका उपयोग अनेक मिश्र धातुओं के निर्माण में होता है।
>यह बिहार के गया जिले के देवराज और कुर्कखंड नामक स्थानों पर मिलता है।
डोलोमाइट
> यह धवन भट्ठियों और रिफेक्ट्री उद्योग में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
>यह बिहार के रोहतास जिला में पाया जाता है।
पाइराइट्स
> पायराइट्स गंधक का स्रोत है। पायराइट्स में गंधक का अंश 47 प्रतिशत है। इसका उपयोग सुपर फॉस्फेट, कठोर रबर तथा पेट्रोलियम उद्योग में होता है।
> यह मुख्यतः ऊपरी विंध्य समूह, अमझोर की पहाड़ियों, किसीसिमाकोह, मनकोह आदि में पाया जाता है।
> रोहतास जिले के अमझोर में लगभग 109 वर्ग किलोमीटर में पायराइट्स पाया जाता है। यहाँ इसका अनुमानित संचित भंडार करीब 40 करोड़ टन है। अमझोर में आयरन पायराइट्स का एक कारखाना भी है।
फेल्सपार
> यह मुख्यतः पेगमैटाइट में क्वार्ट्ज के साथ पाया जाता है तथा इसका उपयोग सिरामिक, शीशा और रिफेक्ट्री उद्योग में होता है।
> यह मुंगेर जिले में पाया जाता है। जहाँ रेलमार्ग की सुविधा है, उन्हीं क्षेत्रों में व्यावसायिक स्तर पर इसका खनन संभव हो पाया है।
बॉक्साइट
> लैटेराइट के साथ बिहार में वॉक्साइट के भंडार उपलब्ध हैं।
> यह रोहतास जिले के बंजारी में मिलता है।
यूरेनियम
> इसका उपयोग महत्वपूर्ण रिएक्टरों को संचालित करने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है। यह खनिज बिहार के गया क्षेत्र में पाया जाता है।
रेह
>यह एक क्षारीय मिट्टी है जो ग्रामीण अंचलों में शोरा उत्पादक क्षेत्रों के समीपवर्ती क्षेत्रों में पायी जाती है।
>उत्तर-पश्चिमी बिहार के अतिरिक्त यह पटना, गया और मुंगेर जिलों के कुछ स्थानों में भी पायी जाती है।
शोरा
> बिहार प्राचीन काल से ही शोरा का महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र रहा है।
> ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस रसायन के निर्यात की शुरुआत की थी।
> यह नोनिया मिट्टी के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है। बिहार में इसके मुख्य उत्पाद क्षेत्र सारण, बेगूसराय, समस्तीपुर, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण और मुजफ्फरपुर जिले है
> बिहार का शोरा, मुख्यतः विस्फोटक, अन्य रासायनिक पदार्थ, उर्वरक इत्यादि के निर्माण हेतु किया जाता है।
स्लेट
> यह मुंगेर और जमुई जिलों में खड़गपुर की पहाड़ियों में पाया जाता है।
सीसा
> यह गैलेना नामक खनिज संस्तर से प्राप्त होता है। इसका उपयोग अनेक रूपों में किए जाता है।
> यह भागलपुर जिले के कुछ स्थानों पर पाया जाता है।
सोडियम लवण
> यह सारण, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर और पश्चिमी चंपारण जिलों में प्रचुरता से उपलब्ध  है। साथ ही यह नवादा, गया, मुंगेर में भी पाया जाता है।
सोना 
> यह मुंगेर जिले के करमटिया में मिलता है।
सैंडस्टोन
> सैंडस्टोन का उपयोग मुख्य रूप से भवन निर्माण हेतु सजावटी पत्थर तथा शीशा उद्योग में किया जाता है।
> रोहतास के कैमूर पहाड़ियों पर उच्च सिलिका प्रतिशत वाला सैंडस्टोन का प्रचुर भण्डार है।
सोप स्टोन
> सोपस्टोन का प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधन एवं पेन्ट उद्योग में किया जाता है।
> सोपस्टोन का बड़ा भण्डार जमुई जिला के शंकरपुर क्षेत्र में पाया गया है।
बिहार में आधारभूत संरचना
> ‘बिहार में आधारभूत संरचना’ का तात्पर्य, कुछ बुनियादी सुविधाओं, जैसे- बिजली, पानी (सिंचाई, पेयजल) तथा सड़क, पुल, स्कूल, कालेज, अस्पताल आदि की सुविधा से है।
> राज्य में विकास के लिए सड़क, सिंचाई और बिजली की स्थिति का मजबूत होना जरूरी है।
>1999 में बुनियाद सुबिधाओ का सूचकांक 81.33 था। जबकि पंजाब मे यह 187.57 था। राज्य के विभाजन (झारखंड बनने) से यह सूचकांक और नीचे गिरा।
बिजली (ऊर्जा)
> बिजली उत्पादन और वितरण व्यवस्था को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है
> स्वतंत्रता के पूर्व विहार में विद्युत् आपूर्ति मुख्यतः निजी ताप गृहों से होती थी।
> स्वतंत्रता के बाद 1948 में विद्युत् आपूर्ति) अधिनियम पारित हुआ, जिसके अन्तर्गत राज्य स्तर पर बिजली के समेकित विकास हेतु बिहार राज्य विद्युत् पर्षद् (Bihar State Electricity Board—BSEB) का गठन 1 अप्रैल, 1958 को हुआ। अन्य राज्यों में विद्युत् पर्षद का गठन 1949 से होने लगा था।
> स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विलम्ब से विद्युत् पर्षद का गठन होने तथा अपने संयंत्र स्थापना में पिछड़ जाने से बिहार में परियोजना लागत में भारी वृद्धि हुई और प्रारंभ से ही उत्पादन वितरण एवं विद्युत् माँग का अंतराल बना रहा।
> आनुपातिक हिस्सेदारी में बिहार बिजली बोर्ड को कम-से-कम 4900 मेगावाट बिजली पैदा  करना चाहिए था, परंतु यह मात्र 300 मेगावाट विजली ही पैदा कर पाता है।
> 1951 में बिहार में पूरे देश का 8.7 प्रतिशत विद्युत् उत्पादन होता था, जो 1995 में घटकर  पूरे देश के उत्पादन का 2.2 प्रतिशत रह गया।
> 2000 में राज्य के विभाजन के बाद अधिकतर विद्युत् केन्द्र झारखंड में चले गये तथा बिहार  में मात्र 36 प्रतिशत विद्युत् उत्पादन क्षमता रह गयी है।
> विहार में प्रति व्यक्ति मात्र 16.7 वाट विद्युत् उपलब्ध है, जबकि पंजाब में 146 वाट है।
> बिहार में प्रति व्यक्ति वार्षिक आवश्यकता 116 यूनिट है।
> बिहार में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत केवल 140.8 किलोवाट (राष्ट्रीय औसत प्रति व्यक्ति 354.7 किलोवाट) है।
> वर्ष 2002-03 तक राज्य के 45,103 गाँवों में से 39.3% (17,717) गाँव में ही बिजली  थी, जो 2004-05 तक 47% तक पहुँच गयी।
> बिहार में विद्युत् ऊर्जा के दो मुख्य स्रोत हैं ताप-विद्युत् एवं जल-विद्युत् ।
बिहार की ताप विद्युत् परियोजनाएँ
बरौनी ताप संयंत्र
>बिहार राज्य विद्युत् पर्षद का दूसरा बड़ा संयंत्र वरौनी में स्थापित है। इसकी कुल उत्पादन क्षमता 500 MW (मेगावाट) है। इसकी 750 MW की क्षमता विस्तार की प्रक्रिया आरंभ है
> इस संयंत्र के द्वारा उत्तरी विहार को विद्युत् की आपूर्ति की जाती है। फिलहाल इस संयंत्र में उत्पादन क्षमता का प्रयोग 15% से 20% तक ही हो पाता है।
काँटी (मुजफ्फरपुर) ताप संयंत्र
> मुजफ्फरपुर का ताप संयंत्र कांटी नामक स्थान पर स्थापित है।
> यह बिहार राज्य विद्युत् पर्षद की तीसरी बड़ी इकाई है, जिसकी उत्पादन क्षमता 390 MW है, परन्तु अभी तक इसकी 30% से अधिक क्षमता का प्रयोग नहीं हो पाया है।
> इसकी 585 MW की क्षमता विस्तार की प्रक्रिया प्रारंभ है।
पटना ताप संयंत्र
>पटना जं० (रेलवे स्टेशन) से दक्षिण तथा मीठापुर कृषि फार्म के उत्तर-पश्चिम में करविगहिया स्थापित एक अत्यंत छोटा परन्तु बहुत ही पुराना ताप संयंत्र है, जो अब राज्य विद्युत् पषद के अधीनस्थ है। इसकी कुल उत्पादन क्षमता 13.5 MW है।
>इसके अतिरिक्त तेनुघाट ताप विद्युत् परियोजना की स्थापना स्वतंत्र निकाय के रूप में की गई है, परन्तु यह परियोजना अभी तक मूर्त रूप में स्थापित नहीं हो सकी है।
कहलगाँव ताप विद्युत् परियोजना
>राष्ट्रीय ताप विद्युत् निगम (NTPC) के अधीन भागलपुर के कहलगाँव नामक स्थान पर रूस की सहायता से बनाई गई इस ताप विद्युत् घर में 1992 से उत्पादन कार्य शुरू है।
> NTPC की इस परियोजना के प्रारंभ से ही तकनीकी गड़बड़ी पैदा होने से विद्युत् उत्पादन में कमी आई है तथा क्षमता के 30% से अधिक विद्युत् उत्पादन नहीं हो पाया है।
नवीनगर ताप विद्युत् गृह
>एन०टी०पी०सी०, वी०एस०ई०डी० और बिहार सरकार के संयुक्त प्रयास से नवीनगर (औरंगाबाद) में स्थापित 1980 मेगावाट (MW) की ताप विद्युत् गृह की कुल क्षमता 3300 मेगावाट तक बढ़ाने की प्रक्रिया जारी है।
औरंगाबाद ताप विद्युत् परियोजना
> राज्य सरकार द्वारा 1320 मेगावाट के औरंगाबाद में बिजलीघर के प्रस्ताव को दिसम्बर, 2009 में मंजूरी प्रदान की गई। हरियाणा की ट्राइटोन इनर्जी लिमिटेड कंपनी के सहयोग से औरंगाबाद जिले के कोचर गाँव के वारुण में स्थापित होने वाले इस बिजलीघर में 660-660 मेगावाट की दो यूनिटें होंगी। इसके निर्माण पर 6,573 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होने का आकलन किया गया है। इस परियोजना के बिजलीघर की पहली यूनिट 39 माह में तथा दूसरी यूनिट उसके तीन माह के बाद पूरी होने की संभावना है।
जल विद्युत् परियोजना
> राज्य में जल विद्युत् परियोजनाओं का विकास पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत दामोदर घाटी निगम की स्थापना के साथ हुआ। 1953 में तिलैया (अब झारखंड में) में राज्य का पहला जल विद्युत् संयंत्र काम करने लगा था।
> तीसरी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत उत्तर बिहार के प्रचुर जल संसाधनों के विद्युत् उत्पादन में उपयोग हेतु कोसी परियोजना का कार्यान्वयन हुआ। कोसी नदी पर भीमनगर के पास स्थित कोसी बैराज के समीप कटैया में जल विद्युत् संयंत्र लगाये गये।
> कोसी जल विद्युत् परियोजना वर्तमान बिहार राज्य की एकमात्र जल विद्युत् परियोजना है। इस बहुउद्देशीय परियोजना का निर्माण नेपाल तथा भारत के सहयोग से 1965 में किया गया।
>इस परियोजना का रख-रखाव राज्य सरकार के अधीनस्थ है तथा यह सुपौल जिले में कोसी
नदी पर स्थापित है।
कटैया जल विद्युत् गृह 
> पूर्वी कोसी नहर पर सुपौल जिलान्तर्गत हनुमान नगर, वीरपुर के कटैया नामक स्थान पर 6 करोड़ रुपए की लागत से यह जल-विद्युत् गृह स्थापित किया गया है।
>इस परियोजना की उत्पादन क्षमता 20 मेगावाट है।
लघु जल विद्युत् परियोजनाएँ
>बिहार में तीन मेगावाट का त्रिवेणी पनबिजली घर के अतिरिक्त श्रीखिन्डा (रोहतास), अगनूर, ढेलाबाग जयनगरा एवं नासरीगंज में एक-एक मेगावाट क्षमता की तीन लघु जल विद्युत् परियोजनाएँ पूर्ण हो चुकी हैं, जबकि राज्य की सबसे बड़ी 125 मेगावाट की डागमारा पनबिजलीघर की कुल क्षमता का विस्तार 225 मेगावाट तक होने वाला है।
> बिहार स्टेट हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (बी एच पी सी) के तत्वावधान में रोहतास  जिलान्तर्गत श्रीखिन्डा में निर्मित पनबिजली परियोजना का निर्माण फ्रांस के सहयोग से किया गया है, जबकि इसके लिए नाबार्ड ने वित्तीय सहायता प्रदान की है।
ग्रामीण विद्युतीकरण
> बिहार में कुल 45,337 गाँव हैं, जिनमें से 20,006 गाँवों का विद्युतीकरण (जनवरी, 2008 तक) हो चुका है।
> ग्रामीण विद्युतीकरण के अंतर्गत 10,450 गाँवों में विद्युतीकरण हेतु आधारभूत संरचना का निर्माण हो चुका है (जनवरी, 2008 तक) ।
 राज्य सभी को बिजली मिलने की संभावना
> वर्तमान में राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण एवं अन्य योजनाओं के अंतर्गत कुल 39,60  चयनित गाँवों के विद्युतीकरण का लक्ष्य निर्धारित है।
>राज्य में ए आर पी योजना 12 मई, 2004 से तथा राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना अप्रैल 2005 से शुरू हुई।
> वर्ष 2009 तक सभी गाँवों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
> पॉवर ग्रिड एवं एन० एच० पी० सी० द्वारा 14,166 गाँवों में मूलभूत संरचना का निर्माण एवं राज्य विद्युत् बोर्ड द्वारा राज्य योजना एवं अन्य योजनाओं के अंतर्गत 1,114 गाँवों को  ऊर्जान्वित कर दिया गया है।
> एन०एच पी०सी० द्वारा राज्य में 52,798 बी०पी०एल० परिवारों को सर्विस कनेक्शन
उपलब्ध करा दिया गया है।
पानी
> सिंचाई सुविधाओं के अभाव के कारण राज्य में कुल बुवाई क्षेत्र के 57% में ही सिंचाई होतीम है, जो मानसून से प्राप्त जल पर निर्भर है। राज्य में 75-80% वर्षा मानसून के दौरान ही होती है।
> राज्य की 63% सिंचाई ट्यूबवेल से होती है तथा 30% सिंचाई नहरों से, जबकि 7% सिंचाई की जरूरत अन्य स्रोतों से पूरी होती है।
>पेयजल की समस्या न केवल शहरों में बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों, खासकर दक्षिण बिहार के विभिन इलाकों में बढ़ती जा रही है। ग्रीष्म काल में, जब नदियों के जल तथा भूमि जल का स्तर नीचे चला जाता है, तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है।
सड़क
> बिहार में सड़कों की कुल लंबाई, भूतल परिवहन मंत्रालय के अनुसार, 87,545 किलोमीट है। बिहार में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर मात्र 124 किलोमीटर लम्बी सड़कें हैं, जबकी राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 211 किलोमीटर प्रति लाख व्यक्ति है।
>राज्य के 59.57% गाँव पक्की सड़कों से जुड़े हैं। बिहार की 77.5% सड़कें पक्की हैं।
> वित्तीय वर्ष 2006-07 में 773 किमी और 2007-08 में (जनवरी 2008 तक) 360 किमी राष्ट्रीय उच्च पथों का उन्नयन पूर्ण किया जा चुका है तथा 870 किमी में कार्य प्रगति में है, जिसे शीघ्र पूरा कर लिये जाने की संभावना है।
>राज्य में 1054 किमी सड़क नये राज्य उच्च पथ (हाईवे) घोषित किये गये हैं (2007-08 में)
बिहार  में सड़कों की अद्यतन स्थिति
> बिहार में सड़कों की कुल लम्बाई : 81,680 किमी०
>प्रति लाख की आबादी पर : 89.29 किमी०
>राष्ट्रीय उच्च पथ : 3,740 किमी०
> ग्रामीण सड़कों की लम्बाई : 63,261.63 किमी०
>पक्की सड़कों की लम्बाई : 27,400 किमी०
>कच्ची सड़कों की लम्बाई : 35,861.63 किमी०
>सड़क विहीन गाँवों की संख्या : 26 हजार
>2008-09 में सड़कों के निर्माण पर अनुमानित व्ययः 1899.46 करोड़ रु०
> प्रति हजार गाँवों में पक्की सड़कों से जुड़े गाँव: 221
> प्रति हजार गाँवों में पक्की सड़कों से नहीं जुड़े गाँव : 779
>राष्ट्रीय उच्च पथ के मामले में बिहार मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश से काफी नीचे है। इन राज्यों में औसतन 5,000 किमी० से लम्बी सड़कें हैं, जबकि बिहार में 3,740 किमी० सड़क (रा० उ० पथ) है।
पथ निर्माण / उन्नयन / नवीकरण
>वर्ष 2011-12 में बिहार का योजना आकार 24,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 3,875 करोड़ रुपये यानि कुल व्यय का 16.15% पथ निर्माण पर व्यय होना प्रस्तावित है।
> वर्ष 2009-10 में बिहार सरकार द्वारा कुल बजट का 24.68% सिर्फ सड़क पर खर्च करने की योजना थी, जिसमें मुख्यमंत्री सड़क योजना से 950 किमी सड़क का निर्माण, सभी पुराने राज्य उच्च पथों (2178 किमी) को दो लेन में बदलना, 1054 किमी नये एस. एच. का निर्माण व मरम्मत शामिल था।
> वर्ष 2009 तक राज्य के सभी 7700 किमी० मुख्य जिला पथों का निर्माण पूरा करने का
लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त नाबार्ड योजना के तहत पाँच जिलों में 534 किमी० सड़कों पर
334 करोड़ और 12वें वित्त आयोग के अंतर्गत 325 किमी० सड़क पर 92 करोड़ रुपये
खर्च किये जा रहे हैं। वर्ष 2007-08 के लिए कुल आवंटन 2370 करोड़ रुपये था।
> 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के अंतर्गत राज्य की सड़कों के सुधार पर कुल 12000 करोड़ रुपये खर्च होने हैं।
रेल
> स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत जो नई लाइनें बिछायी गईं उनमें 7.38% बिहार में बिछीं।
>गेज के मामले में 7.12% और देश में जितने रेल रूट का विद्युतीकरण हुआ है, उसका 12.8% बिहार में है।
> भारत में सबसे बड़ा रेलवे पुल डेहरी-ऑन-सोन (सोन नदी पर), बिहार में है।
> भारत में रेलवे वर्कशॉप की सम्पूर्ण सुविधा का विकास 8 फरवरी, 1862 को मुंगेर जिलान्तर्गत जमालपुर (बिहार) में हुआ।
>जमालपुर वर्कशॉप, मुंगेर (बिहार) में निर्मित प्रथम लोकोमोटिव का नाम था- CA 764 ‘लेडी कर्जन’, जिसका निर्माण 1899 में हुआ था।
> 2003 में जब भारतीय रेल ने अपनी 150वीं वर्षगाँठ मनाया उस समय रेल मंत्री थे-नीतीश कुमार (बिहार के वर्तमान मुख्य मंत्री)।
>  किसी  बड़ी  रेल दुर्घटना के बाद  आपने पद से इस्तिफा देने वाले देश के  दूसरे रेल मंत्री हैं- नीतीश कुमार (इसके पूर्व इस वजह से इस्तीफा देने वाले प्रथम व्यक्ति / रेल मंत्री थे लाल बहादुर शास्त्री) ।
> विश्व की अब तक की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना जून 1981 में हुई थी, बिहार में मानसी- सहरसा रेल खंड पर बदला घाट और धमारा घाट रेलवे स्टेशन के बीच । एक सवारी गाड़ी के नदी में गिर जाने के कारण हुई इस दुर्घटना में 800 से अधिक लोग मारे गये।
प्रस्तावित योजनाएँ
> छपरा जिले के गरखा में एक नई माल डिब्बा पुनर्निर्माण इकाई स्थापित होगी। इस परियोजना  पर 40 करोड़ रुपये खर्च होगी।
> जमालपुर (मुंगेर) स्थित देश के सबसे बड़े इंटीग्रेटेड रेल कारखाने के आधुनिकीकरण पर 82 करोड़ रुपये खर्च किये जाएँगे।
> बदहाली की मार झेल रहे मोकामा और मुजफ्फरपुर स्थित भारत वैगन फैक्ट्रियों का रेलवे द्वारा अधिग्रहण किया गया है।
> इनके अतिरिक्त बक्सर-आरा-मोकामा तीसरी लाइन का निर्माण, बरौनी-कटिहार-गुवाहाटी रेलखंड के विद्युतीकरण की योजना की स्वीकृति, राज्य के ‘बी’ और ‘डी’ श्रेणी के सभी  हाई लेवल (उच्च स्तरीय) प्लेटफार्मों पर फुट ओवर ब्रिज का निर्माण, एक दर्जन स्टेशनो की लम्बाई बढ़ाने के साथ-साथ पटना जंक्शन पर लिफ्ट-एस्केलेटर लगाने की योजना, नई लाइन परियोजना (कुरसेला-बिहारीगंज, गया-डाल्टनगंज,मुजफ्फरपुर-दरभंगा,जलालढ़ किशनगंज) आदि भी प्रस्ताव में शामिल है।
बिहार में परिवहन व्यवस्था
>सड़क परिवहन राज्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण परिवहन साधन है। स्वतंत्र सेवा के अलावे  रेलवे की पूरक सेवा के रूप में भी सड़क परिवहन राज्य में कार्य करता है
> बिहार राज्य की परिवहन व्यवस्था में सड़क परिवहन और रेल परिवहन महत्वपूर्ण हैं, जबकि वायु और जल परिवहन का सीमित विकास हुआ है।
सड़क परिवहन
> प्राचीन काल से ही बिहार उत्तर भारत के अनेक राज्यों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ था।
> मध्य काल में मुगल शासकों तथा शेरशाह ने परिवहन योग्य सड़कों का निर्माण करवाया।
> अंग्रेजों ने इन सड़कों को अधिक विस्तृत किया ।
>सम्प्रति सड़क मार्गों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
1. राष्ट्रीय राजमार्ग 2. प्रांतीय राजमार्ग 3. स्थानीय राजमार्ग
> शेरशाह सूरी ने बिहार से गुजरने वाली सड़क यानि ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण कराया था, जिसे आजकल राष्ट्रीय राजमार्ग-2 (एन एच-2) कहा जाता है। यह भारत का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग है, जो बिहार से होकर गुजरता हैं
>दिल्ली से होकर पंजाब और बंगाल को मिलाने वाली यह सड़क भारत की महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्गों में से एक है।
> 1947 में बिहार की सड़कों की कुल लम्बाई 1315 मील अर्थात् 2104 किलोमीटर थी, जो  1995 में 67,116 किलोमीटर हो गई।
> वर्तमान में बिहार में सड़कों की कुल लम्बाई 81,680 किलोमीटर है।
> मार्च, 2001 तक बिहार में 13,412.80 किलोमीटर पक्की सड़कें थीं। इनमें 2,461,73 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग, 10,951.70 किलोमीटर प्रांतीय राजमार्ग तथा प्रमुख जिला सड़कें शामिल थीं। उस समय ग्रामीण सड़कों की लम्बाई-15,000 किलोमीटर थी।
>प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का उद्देश्य 500 तक की जनसंख्या वाले सभी गाँवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना है।
>देश के चार महानगरों को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों से सम्बद्ध स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना  प्रारम्भ की गई है। इनमें से दिल्ली और कोलकाता को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या – 2 बिहार से होकर गुजरती है जो स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अन्तर्गत शामिल है।
>इसी प्रकार पूर्व पश्चिम कॉरीडोर के अन्तर्गत बिहार से गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या और 31 सम्मिलित हैं।
बिहार से गुजरनेवाले राष्ट्रीय उच्च पथ
>ग्रैंड-ट्रंक रोड (एन० एच०-2)– कोलकाता से शुरू होकर बिहार व उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों से गुजरते हुए यह सड़क दिल्ली तक चली गयी है। बिहार में यह पटना को छोड़कर बरही, शेरघाटी, डेहरी ऑन सोन, सासाराम, औरंगाबाद, मोहनिया आदि जगहों से गुजरती है।
>बरही-बस्तियारपुर-गुवाहाटी उच्च पथ (एन० एच०-31)— यह सड़क ग्रैंड-ट्रंक रोड, बरही से निकलकर नवादा, बिहारशरीफ, बख्तियारपुर तक जाकर पूरब मुड़ती है और राजेन्द्र पुल मोकामा को पार करती हुई बेगूसराय, खगड़िया, पूर्णिया होती हुई गुवाहाटी तक जाती है।
>मोहनियाँ-पटना-बख्तियारपुर उच्च पथ ( एन० एच०-30 )— यह सड़क मोहनियाँ में ग्रैंड- टंक रोड से फूटकर विक्रमगंज, आरा, दानापुर, पटना तथा फतुहा होती हुई बख्तियारपुर में एन० एच० 31 से मिल जाती है।
>लखनऊ-गोरखपुर-बरौनी उच्च पथ (एन० एच०-28)— यह सड़क लखनऊ से गोरखपुर होती हुई बिहार में मोतिहारी के निकट प्रवेश करती है और मुजफ्फरपुर होती हुई बरौनी में एन० एच० 31 से मिल जाती है। इसकी लम्बाई 259 किमी० है। इसकी एक शाखा मोतिहारी होकर इसे रक्सौल से जोड़ती है जिसे एन० एच०-28A कहा जाता है।
प्रस्तावित नये राष्ट्रीय राजमार्ग
>कुछ समय पूर्व सरकार ने 2411 किलोमीटर लम्बे 14 और नये राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण का निर्णय लिया जिसके निर्माण के पश्चात् देश में कुल राष्ट्रीय राजमार्ग की लम्बाई होगी–51,996 किलोमीटर ।
> इन नये राजमार्गों में 415 किलोमीटर से अधिक लम्बे मार्ग के साथ बिहार प्रथम स्थान पर है।
> इन 14 नये राष्ट्रीय राजमार्ग में 11 राज्य सम्मिलित हैं। इन प्रस्तावित / निर्माणाधीन राष्ट्रीय राजमार्गों में से 5 सड़कें— एन एच-81, 82, 83, 84 और 85 बिहार से होकर गुजरती है।
स्थानीय सड़कें
> स्थानीय सड़कें जिला मुख्यालय को छोटे-छोटे नगरों, कस्बों को आपस में जोड़ती है। ये कच्ची तथा पक्की दोनों होती हैं तथा ऐसे सड़कों में कई जगह ईंट का सोलिंग पाया जाता है
> ये सड़कें प्रायः प्रत्येक वर्ष बाढ़ के समय टूट जाती हैं तथा इन पर वर्षा के समय वाहन  परिचालन काफी कठिन होता है।
रेल परिवहन
> बिहार में रेल परिवहन का शुभारम्भ 1860-62 में तब हुआ था जब यहाँ ईस्ट इंडिया  कंपनी ने गंगा के किनारे से कलकत्ता (कोलकाता) तक जाने की मुख्य लाइन बिछाई थी।
> यह रेलवे लाइन राजमहल (झारखण्ड), भागलपुर, मुंगेर, पटना, आरा और बक्सर होती हुई  मुगलसराय तक बनायी गई थी। इसके बाद किऊल से होकर झाझा और आसनसोल जाने  वाली लाइन बनाई गई, जो बाद में मुख्य लाइन का भाग बनी।
> 19वीं शताब्दी के अन्त तक पटना गया शाखा लाइन बना ली गई थी। इसके बाद किउल गया शाखा को मुगलसराय तक बढ़ाया गया था।
>स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में रेलों के विकास में तीव्र गति से वृद्धि की गई तथा इसे सुव्यवस्थित करने के लिए 1952 ई० में सरकार ने सभी मुख्य लाइनों को अपने अधीन ले लिया और उनका पुनर्गठन किया।
> यहाँ पूर्वोत्तर रेलवे (उत्तरी बिहार), पूर्व-मध्य रेलवे (दक्षिणी बिहार), दक्षिणी-पूर्वी रेलवे  (बिहार का पठारी भाग) एवं उत्तर-पूर्व सीमान्त रेलवे (उत्तर-पूर्वी बिहार में) द्वारा रेल परिवहन का संचालन व नियंत्रण किया जाता है।
>पूर्व-मध्य रेलवे का मुख्यालय बिहार के हाजीपुर में है।
>रेल परिवहन की दृष्टि से बिहार (राज्य) का देश में पाचवाँ स्थान है।
>वर्तमान में बिहार राज्य में रेलमार्ग की कुल लम्बाई 5,400 किलोमीटर है।
>कुछ महत्वपूर्ण स्थानों को जोड़ने वाले रेलमार्गों, जैसे- मुजफ्फरपुर-समस्तीपुर-बरौनी- कटिहार, मुजफ्फरपुर-छपरा-सिवान, दरभंगा-समस्तीपुर,समस्तीपुर-हसनपुर-खगड़िया और मानसी-सहरसा को बड़ी लाइन में बदला गया है। दानापुर, राजेन्द्रनगर टर्मिनल, पटना, गया, मुजफ्फरपुर, बरौनी, कटिहार और समस्तीपुर राज्य के मुख्य रेलवे जंक्शन हैं।
निर्माणाधीन रेलवे पुल
> बिहार में तीन बड़े रेलवे पुल का निर्माण किया जा रहा है।
> इनमें से दो गंगा नदी पर मुंगेर और पटना में तथा एक कोसी नदी पर निर्मली में बनेगा। गंगा पर बनने वाला एक रेल महासेतु दीघाघाट (पटना) को सोनपुर से जोड़ेगा तथा दूसरा रेल-सड़क पुल मुंगेर में बनेगा जिससे दक्षिण और उत्तर बिहार तथा उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के बीच सम्पर्क उपलब्ध हो जाएगा।
> तीसरा महासेतु 323 करोड़ रुपये की लागत से कोसी नदी पर बनेगा जो निर्मली और भप्टियाही को जोड़ेगा। इस रेल महासेतु की आधारशिला तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 6 जून, 2003 को निर्मली (सुपौल) में रखी गयी थी।
> बिहार के इन तीनों रेल पुल का निर्माण राष्ट्रीय रेल विकास परियोजना के अन्तर्गत किया जा रहा है।
बायु परिवहन / उड्डयन
>राज्य में सभी पुराने जिला मुख्यालयों में हवाई पट्टियों के अलावा पटना में अंतर्राष्ट्रीय हवाई है। अड्डा है। पटना हवाई अड्डा का नाम जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा हैं 
> पटना बिहार का वह मुख्य हवाई अड्डा है जहाँ से इण्डियन एयरलाइन्स, सहारा एयरलाइन्स, जेट लाइट, जेट, किंगफिशर आदि की नियमित विमान सेवाएँ उपलब्ध हैं।
> पटना से नई दिल्ली, कोलकाता, वाराणसी, राँची और लखनऊ के लिए नियमित विमान सेवा उपलब्ध है।
>पटना जिला के बिहटा नामक स्थान में वायु सेना का हवाई अड्डा (एयर फील्ड) है।
>बिहार के छोटे हवाई अड्डों में भागलपुर का मारफारी हवाई अड्डा शामिल है।
> 12 नवंबर, 2002 को महात्मा बुद्ध की धर्मस्थली गया और कोलंबो (श्रीलंका) के बीच विमान सेवा शुरू होने के साथ ही विहार स्थित हवाई अड्डे से अंतर्राष्ट्रीय विमानन सेवा का प्रारंभ हो गया था। श्रीलंका एयरलाइंस के विमान के गया हवाई अड्डे पर उतरते ही इसे ‘इंटरनेशनल एयरपोर्ट’ का दर्जा हासिल हो गया था।
>गया को वर्ष 2008 के आरंभ में विधिवत् रूप से अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बना दिया गया  है, जो कोलंबो और बैंकाक से बोधगया आने वाले यात्रियों । विदेशी पर्यटकों को सुविधा व सेवा प्रदान करता है। इस प्रकार अब बिहार में पटना और गया अर्थात् दो अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन हैं।
> यहाँ पटना उड्डयन क्लब और ग्लाइडिंग क्लब के केन्द्र स्थापित हैं।
>जनवरी से दिसम्बर 2008 के दौरान राज्य में हवाई यात्रा करने वालों की संख्या दो लाख में ऊपर रही। इनमें से सर्वाधिक 1 लाख 23 हजार लोग इंडियन एयरलाइन्स से पटना आये और गये।
> पटना का सीधा वायु सम्पर्क काठमांडू (नेपाल) और मुंबई से भी है।
जल परिवहन
> गंगा नदी की विशाल जलधारा होने के कारण यहाँ नौका वहन संभव है।
> बिहार में जल परिवहन को हालांकि कोई विशेष स्थान प्राप्त नहीं है, फिर भी भागलपुर जाने के लिए बरारीघाट महादेवपुरघाट पर गंगा पार करने हेतु स्टीमर सेवा उपलब्ध है। हालांकि महादेवपुर घाट के निकट गंगा नदी पर पुल बन जाने के बाद इस स्टीमर सेवा का उपयोग कम हो गया है। मोकामा-बरौनी के लिए भी स्टीमर सेवा उपलब्ध है।
> सोन नहर से निकलने वाली आरा नहर की संपूर्ण लम्बाई तक नाव और इसके 83 किमी० तक स्टीमर जल यातायात व्यवस्था को बनाए रखते हैं।
> व्यावसायिक (व्यापारिक) जल परिवहन अथवा माल ढुलाई के उद्देश्य से गायघाट (पटना) में एक जेट्टी बनाया गया है, जो कोलकाता-वाराणसी जलमार्ग पर सामानों को लाने-ले जाने वाले जलयानों के ठहराव व आवागमन तथा सामानों के उतारने-चढ़ाने (लोडिंग-अनलोडिंग) में सहयोग करती है।
> राज्य स्तर की आर्थिक परिवहन व्यवस्था में भले ही गंगा नदी का जल परिवहन अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं होता, फिर भी दियारा क्षेत्र के लोगों की स्थानीय यातायात की आपूर्ति इसी परिवहन मार्ग से होती है।
> राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1, जो इलाहाबाद से हल्दिया तक विस्तृत है, बिहार से होकर जाती है। लेकिन गंगा के तलछट के भर जाने से गर्मी के मौसम में गंगा के जलस्तर में काफी कमी आ जाती है।
>बांग्लादेश से जल समझौता होने के कारण जल का अधिकांश भाग बांग्लादेश को दे दिया। जाता है, जिससे गर्मी में गंगा नदी में जल का अभाव हो जाता है। जल की कमी के कारण इसमें बड़े-बड़े जलपोत नहीं चल पाते हैं।
>राज्य में घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक तथा कोसी आदि नदियाँ नौकागम्य हैं तथा स्थानीय रूप से यातायात की सुविधायें इनसे उपलब्ध हैं।
>दक्षिण बिहार की नदियों में सोन तथा पुनपुन नदी कुछ दूर तक नौकागम्य हैं। इनमें से सोन नदी में जल परिवहन दूर तक संभव है।
बिहार में संचार व्यवस्था
>बिहार में जन संचार के अनेक साधन है— आकाशवाणी, दूरदर्शन, डाक-तार, टेलीफोन तथा समाचार पत्र ।
आकाशवाणी
> बिहार में आकाशवाणी अर्थात् रेडियो जनसंचार का मुख्य साधन है।
> विहार में पहला रेडियो स्टेशन पटना में स्थापित हुआ।
>पटना रेडियो स्टेशन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत का पहला रेडियो स्टेशन था, जिसका उद्घाटन सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। >बिहार के प्रमुख शहर पटना, दरभंगा, भागलपुर तथा सासाराम में आकाशवाणी केन्द्र स्थापित हैं। इनके अतिरिक्त सहरसा आदि स्थानों पर ट्रांसमिशन केन्द्र स्थापित हैं।
>इन आकाशवाणी केन्द्रों से हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में समाचारों के नियमित प्रसारण के अतिरिक्त हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका आदि भाषाओं में मनोरंजक,ज्ञानवर्द्धक एवं सुरुचिपूर्ण कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है।
> इनके अतिरिक्त आकाशवाणी पटना से विज्ञापन सेवा विविध भारती (मीडियम वेव पर फतुहा से तथा एफ एम चैनल पर प्रसारण) के अतिरिक्त एफ एम पर ‘ज्ञान वाणी’ का भी प्रसारण होता है।
> अब सासाराम तथा पूर्णिया में भी आकाशवाणी केन्द्र की स्थापना हो चुकी है।
> पटना आकाशवाणी केन्द्र के नियमित समाचार-वाचक रहे हैं- राम रेणु गुप्त, कृष्ण कुमार भार्गव, अनंत कुमार आदि ।
> दिल्ली में बिहार के जिन समाचार वाचकों ने अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है, वे हैं— रामानुज प्रसाद सिंह, राजेन्द्र कुमार सिन्हा, संजय वनर्जी, श्रीमती क्लेयर नाग, सुधांशु रंजन आदि ।
>विगत वर्षों में विहार में आकाशवाणी, पटना के प्रसारणों में ‘लोहा सिंह’ नाटक सर्वाधिक लोकप्रिय रहा है।
> प्रसार भारती द्वारा संचालित आकाशवाणी के कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब स्रोताओं में अपनी पैठ बनाने के लिए कई निजी रेडियो चैनल / एफ एम चैनल बिहार में अपना प्रसारण आरंभ कर चुके हैं, जिनमें पटना से प्रसारित ‘98.3 एफ एम रेडियो मिर्ची’ शामिल है।
दूरदर्शन
> एक छोटे से ट्रांसमीटर और मेकशिफ्ट स्टूडियो के सहारे देश में पहली बार 15 सितम्बर, 1959 को प्रयोग के तौर पर दूरदर्शन का प्रसारण शुरू हुआ था।
> बिहार में जनसंचार के लिए दूरदर्शन का उपयोग सन् 1975 में उपग्रह के माध्यम से आरंभ हुआ। बिहार में दूरदर्शन केन्द्र का शुभारम्भ 14 अगस्त, 1978 ई० को 1 किलोवाट शक्ति वाले ट्रांसमीटर के साथ मुजफ्फरपुर में हुआ।
>100 वाट लघु शक्ति एवं 10 वर्ग किमी सेवा वाले ट्रांसमीटर के साथ पटना में दूरदर्शन केन्द्र की स्थापना 1982 ई० में हुई।
>पटना में रंगीन प्रसारण की सुविधा 1982 से प्रारंभ हुई।
>पटना दूरदर्शन केन्द्र की शुरूआत 13अक्टूबर, 1990 को हुई थी।
> अभी पटना, गया, भागलपुर, दरभंगा तथा अनेक शहरों में केवल टीवी सेवा का निरंतर विस्तार  हो रहा है।
>बिहार में दूरदर्शन के उच्च शक्ति के 5 ट्रांसमीटर हैं। यहाँ के मुख्य दूरदर्शन केन्द्रों में पटना, कटिहार एवं मुजफ्फरपुर है। राज्य में निम्न शक्ति के 26 ट्रांसमीटर कार्यरत हैं।
> बिहार में दूरदर्शन के अतिरिक्त निजी टीवी चैनलों की संख्या एवं लोकप्रियता में इन दिनों
काफी वृद्धि हुई है। बिहार में और खासकर राजधानी पटना में पी टी एन, इनविजर ई टी वी बिहार, सहारा समय, स्टार टी वी, जी टी वी, सोनी, एन डी टी वी साधना  महुआ, इंडिया टी वी, कलर्स आदि अनेक चैनल के कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं। इनमें अनेक चैनल के समाचार चैनल और मनोरंजन चैनल अलग-अलग है तथा इनका प्रसार अपने दर्शकों के लिए चौबीसों घंटे (अहर्निश) उपलब्ध है। वर्ष 2008 में भोजपुरी भाषियों के लिए ‘महुआ’ चैनल आरंभ हुआ है।
डाक-तार
> राज्य की राजधानी पटना तथा देश के प्रमुख नगरों के मध्य द्रुत डाक सेवा (Speed Post ) की व्यवस्था होने के साथ-साथ राज्य के अंदर क्षेत्रीय द्रुत डाक सेवा से राज्य के सभी जिलो  के मुख्यालय पटना से जुड़े हुये हैं।
> विदेश डाक व्यवस्था के अंतर्गत बिहार विश्व के 166 देशों के साथ संचार संबंध बनाए  हुए है।
> राष्ट्रीय टेलेक्स सेवा की सुविधा राज्य के प्रधान नगरों में उपलब्ध है, जहाँ से देश के किसी  भी भाग में अभिदाता एक-दूसरे को सीधे मुद्रित संदेश भेज सकता है।
दूरभाष
> संचार के महत्वपूर्ण साधन के रूप में दूरभाष (टेलीफोन) का व्यवहार अधिक लोकप्रिय रहा है। राज्य के सभी प्रकार के नगर परस्पर दूरभाष से जुड़े हुए हैं। साथ ही, देश के अन्य भागों से भी राज्य के दूरभाष केन्द्रों द्वारा सीधा संपर्क बना हुआ है।
>व्यक्ति संभाषण, प्रशासकीय कार्य, वाणिज्य व्यापार सभी में इसका व्यापक स्तर पर उपयोग किया जा रहा है।
> 1994-95 में देश में कुल टेलीफोन एक्सचेंज 20,000 थे, जिनमें 92 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज में परिवर्तित किये जा चुके हैं।
>अविभाजित बिहार में कुल टेलीफोन एक्सचेंजों की संख्या 743 थी।
>सेलफोन (मोबाइल) के आगमन से दूरसंचार के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है। बिहार भी इसके  आकर्षण व प्रभाव से पृथक् नहीं है।
>कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट आदि के आगमन के कारण इस युग को सूचना क्रान्ति का युग कहा जा रहा है। बिहार भी इस क्षेत्र में किसी से बहुत पीछे नहीं है।
> आज न केवल राजधानी पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर आदि राज्य के बड़े शहरों में बल्कि  सुदूर देहात व ग्रामीण क्षेत्रों में भी एयरटेल, रिलायंस मोबाइल, एयर सेल, टाटा इंडिकॉम आदि जैसी प्रसिद्ध मोबाइल कम्पनियों के टावर और नेटवर्क (संचार व्यवस्था) देखने के मिलते हैं।
समाचार पत्र व पत्रिकाएँ
> इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खूब लोकप्रियता के बावजूद समाचार पत्र-पत्रिकाएँ संचार के प्रमुख एवं सशक्त साधन हैं। राज्य से अनेक पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं।
> उपलब्ध ऑकड़ों के अनुसार राज्य से करीब 72 दैनिक, 203 साप्ताहिक, दो अर्द्ध साप्ताहिक 24 पाक्षिक, 49 मासिक, 6 त्रैमासिक प्रकाशित होती हैं। राज्य के प्रमुख दैनिक पत्रों में हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, दैनिक जागरण, कौमी तंजीम, आज प्रभात  खबर, राष्ट्रीय सहारा, बिजनेस स्टैण्डर्ड, द टेलीग्राफ, आई नेक्स्ट, विहार टाइम्स सन्मार्ग, फिर वही संध्या प्रहरी, प्रत्यूष नवविहार आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
बिहार में समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ
> बिहार का प्रथम हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘बिहार बन्धु’ था। इसका प्रकाशन 1874 ई० में पटना से हुआ था।
> बिहार का प्रथम अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द बिहार हेराल्ड था। इसका प्रकाशन 1875 ई० में  गुरु प्रसाद सेन द्वारा किया गया।
> बिहार का प्रथम उर्दू दैनिक समाचार – पत्र नुरुल अनवार था। इसका प्रकाशन 1876 ई० में आरा से मोहम्मद हाशिम द्वारा किया गया था।
                       अभ्यास
1.बिहार राज्य अवस्थित है निम्न देशान्तरों (Longitude) के मध्य-
(a) लगभग 84° पूर्व से 88° पूर्व
(c) लगभग 80° पूर्व से 88° पूर्व
(b) लगभग 80° पूर्व से 84° पूर्व
(d) इनमें से कोई नहीं
                               (38वी BPSC. 1993)
[ध्यातव्य-झारखंड राज्य के गठन से पूर्व बिहार की भौगोलिक स्थिति 21°58°10 से 27°3115″ ऊतरी अक्षाश तक तथा 83°19’50” से 88°1740″ पूर्वी देशान्तर के मध्य था। ]
[ बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद वर्तमान भौगोलिक स्थिति है- 24 2010″ से 73115″ उत्तरी अक्षांश तक तथा 83°19’50” पूर्व से 88°17’40” पूर्वी देशान्तर के मध्य ]
2.बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल है-
(a) लगभग 170 वर्ग किमी
(b) लगभग 172 वर्ग किमी
(c) लगभग 174 वर्ग किमी
(d) लगभग 178 वर्ग किमी
                   (40वी BPSC, 1995)
[ध्यातव्य- सम्मिलित बिहार का क्षेत्रफल 1,73,877 वर्ग किमी था। लेकिन झारखण्ड राज्य गठन के बाद बिहार का क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किमी रह गया है।]
3. किस देश की सीमा बिहार राज्य से जुड़ती है?
(a) नेपाल
(b) भूटान
(c) चीन
(d) बंगलादेश
                                  [46वीं BPSC,2004 )
4. हाल ही में बिहरसे कौन-सा नया राज्य बना है ?
(a) वनांचल
(b) विदर्भ
(c) झारखण्ड
(d) छत्तीसगढ़
                                  [45वीं BPSC,2002)
5. पुराना बिहार का कितना प्रतिशत जमीन लेकर झारखण्ड राज्य बना है ?
(a) 38.40%
(b) 45.85%
(c) 42.85%
(d) 51.72%
                                   [44वीं BPSC,2001)
6. झारखण्ड बनने के पश्चात् बिहार में लगभग कितने जिले रह गए हैं?
(a) 65
(b) 37
(c) 60
(d) 62
                                   [45वीं BPSC,2002)
[ ध्यातव्य – झारखंड बनने के बाद बिहार में 37 जिले थे। जहानाबाद से अलग करके अरवल
को नया जिला बनाने से बिहार में जिलों की कुल संख्या-38 हो गयी है।]
7. बिहार की सीमा से लगने वाली भारत के राज्यों की संख्या है-
(a) पाँच
(b) चार
(c) छः
(d) सात
                          (43वीं BPSC,1999)
[ध्यातव्य- झारखण्ड निर्माण के पश्चात् विहार की सीमा से लगने वाली भारत के राज्य संख्या मात्र तीन है— (i) झारखण्ड (ii) पश्चिम बंगाल एवं (iii) उत्तर प्रदेश ।]
8. बिहार के भौतिक विभागों में आप निम्नलिखित में से कौन-सा सम्मिलित नहीं करेंगे?
(a) छोटानागपुर पठार
(c) दक्षिणी गंगा मैदान
(b) उत्तरी गंगा मैदान
(d) पूर्वी गंगा मैदान
                           (46वीं BPSC,2002)
9. बिहार की सोमेश्वर श्रेणी है—
(a) पारसनाथ पहाड़ी से पुरानी
(b) राजमहल की पहाड़ी से पुरानी
(c) खड़गपुर पहाड़ी से पुरानी
(d) इन सभी में नयी
(42वीं BPSC,1998)
10. गंगा के मैदान की पुरानी कछारी मिट्टी कहलाती है—
(a) भावर
(b) भांगर
(c) खादर
(d) खोण्डोलाइट
                                  (47वीं BPSC,1996)
11. बिहार का तराई प्रदेश विस्तृत है-
(a) छोटानागपुर पठार के उत्तरी कगार के समानान्तर
(b) भारत-नेपाल सीमा के समानान्तर
(c) रोहतास पठार के पूर्वी कगार के समानान्तर
(d) राजमहल पहाड़ियों की पश्चिमी सीमा के समानान्तर
                               (41वीं ,BPSC,1996)
12. छोटानागपुर पठार-
(a) एक अग्रगम्भीर है
(b) एक गर्त है
(c) एक पदस्थली है
(d) एक समप्राय भूमि है
(40 वीं BPSC,1995)
13. ‘पट’ (PAT) अंचल अवस्थित है—
(a) बिहार में
(b) झारखण्ड में
(c)मध्यप्रदेश
(d) मेघालय
                 (44वीं BPSC, 2001)
14. सूची-1 (कृषि जलवायविक क्षेत्रों) को सूची-II (विहार के प्रतिशत क्षेत्रफल) से सहसम्बन्धित कीजिए तथा सूचियों के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए-
15. आम्र वर्षा (Mango Shower) है-
(a) आमों की बौछार
(b) आम का टपकना
(c) बिहार एवं बंगाल में मार्च अप्रैल में होने वाली वर्षा
(d) आम की फसल
                            (43वी BPSC, 1999)
16. बिहार में निम्नलिखित में से कौन से समूह की नदियाँ गंगा अथवा उसकी सहायक नदियों में उत्तर की ओर से आकर मिलती है?
(a) घाघरा, कोसी, पुनपुन
(b) कोसी, महानन्दा, कर्मनाशा
(c) गण्डक, कमला, वागमती
(d) सोन, कोसी, उत्तरी कोयल
                      (46वी BPSC, 2004)
17. निम्नलिखित में से कौन से समूह की नदियाँ बिहार और उत्तर प्रदेश के बीच की सीमा रेखा बनाती है ?
(a) कमला, सोन और बागमती
(b) बूढी गण्डक, कोसी और गंगा
(c) कर्मनाशा, गण्डक और घाघरा
(d) उत्तरी कोयल, अजय और पुनपुन
                        (47वींBpSC,2001)
18. निम्न नदियों में सबसे अधिक नदीपथ परिवर्तन किया है-
(a) सोन नदी
(b) गंडक नदी
(c) कोसी नदी
(d) गंगा
                             (44 वींBpSC,2001)
19. सोन, नर्मदा तथा महानदी निकलती है-
(a) पलामू पहाड़ से
(b) अमरकन्टक से
(c) पूर्वी घाट से
(d) अरावली से
                              (44वी BPSC, 2001)
20. त्रिवेणी नहर में किस नदी से पानी आता है ?
(a) सोन
(b) कोसी
(c) गंडक
(d) मयूराक्षी
(45वीं BPSC, 2002)
21. पूर्व में बंगाल का दुःख (Sorrow of Bengal) कही जाने वाली बिहार से उद्गम वाली नदी है-
(a) बराकर
(b) दामोदर
(c) मयूराक्षी
(d) सुवर्णरेखा
                                  (43वीं BPSC,1999)
22. बिहार में दामोदर प्रवाहित होती है-
(a) एक कार्स्ट प्रदेश में
(b) एक कछारी क्षेत्र में
(c) एक भ्रंश घाटी में
(d) इनमें से कोई नहीं
(42वीं BPSC, 1998)
[ध्यातव्य- वर्तमान में दामोदर नदी झारखण्ड राज्य में है जो भ्रंश (Rift) घाटी में प्रवाहि होती है। भ्रंश घाटी में प्रवाहित होने वाली भारत की अन्य नदियाँ हैं— नर्मदा और ताप्ती॥
23. बिहार में भांगर मिट्टी मिलती है-
(a) गया बोधगया पूर्वी चम्पारण भागलपुर क्षेत्र में
(b) पूर्णिया-सहरसा-दरभंगा-मुजफ्फरपुर क्षेत्र में
(c) गया-नालन्दा-बोधगया सासाराम क्षेत्र में
(d) पूर्वी चम्पारण नालन्दा-गया-सासाराम क्षेत्र में
                    (46 वीं BPSC ,2004)
24. बिहार में क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में कुल वन क्षेत्र हैं-
(a) 32 प्रतिशत
(b) 21 प्रतिशत
(c) 19 प्रतिशत
(d)31 प्रतिशत
25. बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्र का वनाच्छादित प्रतिशत है लगभग-
(a) 17%
(b) 23%
(c) 27%
(d)33%
42वीं BPSC, 1998)
[ध्यातव्य- अविभाजित बिहार (झारखण्ड राज्य बनने से पूर्व) बिहार में कुल वन क्षेत्र 29,277- वर्ग किमी था, जो बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 17 प्रतिशत था। झारखण्ड के गठन के बाद वर्तमान में मात्र 6764.14 वर्ग किमी ही वन क्षेत्र है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.1 प्रतिशत है।]
26. छोटानागपुर के जंगल हैं-
(i) सदाबहार
(ii) पतझड़
(iii) सवाना
(iv) कांटेदार
अपना उत्तर निम्नलिखित कूटों से चुनें
(a) (i) एवं (ii) दोनों
(b) केवल (ii)
(c) (ii) एवं (iii) दोनों
(d) केवल (iv)
                      (42वीं BPSC, 1996)
27. छोटानागपुर में प्रारम्भिक स्तर पर अर्थव्यवस्था आधारित थी-
(a) कृषि पर
(b) वनों पर
(c) खानों पर
(d)उधोगों पर
28. निम्नलिखित में से किस अखबार का प्रकाशन पटना से होता था ?
(a) इंडियन नेशन
(b) पंजाब केशरी
(c) प्रभाकर
(d) डॉन
(45वीं BPSC, 2002)
29. बिहार की मुख्य खाद्यान्न फसलें हैं ?
(a) चावल, गेहूँ एवं मक्का
(b) गन्ना, चाय एवं जी
(c) मूंगफली, कॉफी एवं जौ
(d) इनमें से कोई नहीं (45वीं BPSC, 2002)
30.बिहार के क्षेत्रफल में कुल बोयी गई भूमि का प्रतिशत…..है 
(a) 60
(b) 40
(c) 80
(d) 70
[48वीं- 52वीं BPSC, 2008)
31.बिहार की शस्य गहनता कितनी है?
(a) 108%
(b) 118%
(c)128%
(d) 138%
32. बिहार में कृषि का स्वरूप क्या है ?
1. जीवनदायी
(a) केवल 1
2. व्यावसायिक
(b) 2 एवं 3
निर्यातोन्मुखी
(c) केवल 2
आत्म-निर्भर
(d)केवल 4
33.बिहार की कुल श्रमशक्ति में कृषि श्रमिकों का अनुपात है—
(a) 40.18
(b) 48.18
(c) 29.17
(d)46.18
34. छोटानागपुर पठार की मुख्य फसल क्या है ?
(i) चावल
(ii) मकई
(iii) दलहन
(iv)गेहूँ
अपना उत्तर निम्नलिखित कूटों से चुनें
(a) केवल (i)
(b) केवल (i) एवं (iii)
(c) केवल (ii) एवं (iv)
(d) केवल (ii) एवं (iii)
(41वीं BPSC, 1996]
35.बिहार में पटसन-उद्योग की पट्टी स्थित है –
(i) उत्तर-पश्चिमी विहार मैदान में
(ii) मध्य-दक्षिण बिहार मैदान में
(ii) उत्तर-पूर्वी बिहार मैदान में
(iv) दामोदर घाटी प्रदेश में
अपना उत्तर निम्नलिखित कूटों से चुनें-
(a) (i) एवं (ii) दोनों ही
(b) केवल (ii)
(c) (ii) एवं (iii) दोनों ही
(d) (i) एवं (iii) दोनों ही
[47वीं BPSC, 2005]
36.बिहार में कृषि योग्य भूमि का कितना प्रतिशत भाग सिंचित है?
(a) 50% से अधिक
(b) 40% से 50%
(c) 30% से 40%
(d) 30% से कम
37. बिहार में उत्पाद की दृष्टि से चावल के बाद दूसरी फसल है—
(a) गेहूँ
(b) मक्का
(c) चना
(d) आलू
38. आजादी के बाद बिहार में सिंचित क्षेत्र बढ़ा है लगभग-
(c) पाँच गुना
(a) दो गुना
(b) चार गुना
(d) दस गुना
[42वीं BPSC, 1998]
39. बिहार एवं उत्तर प्रदेश राज्यों की संयुक्त सिंचाई परियोजना है-
(a) दामोदर वैली परियोजना
(b) कोशी परियोजना
(c) सोन वैरेज परियोजना
(d) गंडक परियोजना 
[48वीं BPSC, 2008]
(ध्यातव्य- उपर्युक्त प्रश्न में दिया गया कोई विकल्प यद्यपि प्रश्न के सापेक्ष समीचीन नहीं अपितु गंडक परियोजना से उत्तर प्रदेश के कुछ भागों को भी सिंचाई का लाभ प्राप्त होता है।]
40. बिहार में सिंचाई के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है ?
(a) बिहार के कुल रोपित क्षेत्रफल (Sown area) का लगभग 46 प्रतिशत सिंचित है।
(b) बिहार के कुछ सिंचित क्षेत्रफल का लगभग 30 प्रतिशत नहरों तथा 39 प्रतिशत नल द्वारा सिंचित है।
(c) नहरों द्वारा सिंचित सर्वाधिक क्षेत्रफल भोजपुर, औरंगाबाद, पश्चिम चम्पारण, रोहतास तथा मुंगेर जिलों में मिलता है।
(d) नलकूपों द्वारा सिंचित सर्वाधिक क्षेत्रफल समस्तीपुर, सीतामढ़ी, वेगूसराय, मुजफ्फरपुर गोपालगंज तथा खगड़िया जिलों में मिलता है।
[47वीं BPSC, 20056)
41. भारत का (सार्वजनिक क्षेत्र का) प्रथम उर्वरक संयंत्र कहाँ लगा था ?
(a) नांगल
(b) सिन्दरी
(c) अल्वाये
(d) ट्राम्बे
(39 वी BPSC,1994)
42. बिहार में तेल शोधक कारखाना है-
(a) सिंहभूम में
(b) रूद्रसागर में
(c) वरौनी में     
(d) रांची में
43. बिहार में भारी मशीन निर्माण प्लांट स्थित है-
(a) जमशेदपुर में
(b) बोकारो में
(c) वरौनी में
(d) रांची में ( वर्तमान में झारखण्ड में )
(42वीं BPSC,1998)
44. मूरी जाना जाता है-
(a) बाक्साइड खनन हेतु
(b) अल्युमिना प्लान्ट हेतु
(c) अल्कोहल प्लान्ट हेतु
(d) स्पंज-लौह हेतु
[42वीं BPSC, 1998)
45. विहार में मैथन उत्पादन करता है-
(a) ताप शक्ति
(b) जल शक्ति
(c)अन्नू
(d) सौर शक्ति
( 42वीं BPSC, 1998)
46. कोयले पर चलने वाले तीन थर्मल पावर स्टेशन जो विहार में स्थित हैं, इस प्रकार हैं-
(a) चन्द्रपुरा, पंचाट, बरौनी
(b) बोकारो, पंचाट, चन्द्रपुरा
(c) बरौनी, चन्द्रपुरा, सन्तालडीह
(d) बोकारो, चन्द्रपुरा, सन्तालडीह
(43वीं BPSC, 1999)
ध्यातव्य–वर्तमान में इनमें से केवल बरौनी थर्मल पावर स्टेशन ही बिहार में है। बरौनी बिजली घर को अभी तक चित्रा और मुगमा कोयला खदान से कोयले की आपूर्ति की जाती थी, लेकिन अब इसे रानीगंज कोयला खदान से कोयला प्राप्त होगा।
47. विहार में सूची I (उद्योगो) को सूची II (नगरों) से सहसंबंधित कीजिए तथा सूचियों के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
         (46 वीं BPSC ,2004)
48.टाटा लौह इस्पात कारखाने में लौह अयस्क की पूर्ति होती है-
(a) बैलाडिला से
(b) क्योंझर से
(c) मयूरभंज से
(d) सिंहभूम से
(43वी BPSC,1999)
49. भारत में निम्नलिखित के उत्पादन में बिहार का एकाधिकार है-
(a) चूना पत्थर
(b) कोयला
(c) पाइराइट
(d) ग्रेफाइट
[ध्यातव्य- • पाइराइट्स का भण्डार बिहार के रोहतास जिले में है।
50. देश के कुल खनिज उत्पादन का कितना प्रतिशत बिहार में प्राप्त होता है ?
(a) लगभग 36%
(b) लगभग 60%
(c) लगभग 16%
(d) इनमें से कोई नहीं
(41वीं BPSC, 1996)
51. भारत में बिहार अग्रणी उत्पादक है-
(a) शीशा का
(b) मैंगनीज का
(c) अभ्रक का
(d) चूना-पत्थर का
                         (42वीं BPSC, 1998]
[ध्यातव्य — झारखंड बनने के पहले बिहार अभ्रक का अग्रणी उत्पादक था, पर अब पाइराइट्स का अग्रणी उत्पादक है।]
52. भारत का कौन-सा राज्य सर्वाधिक अभ्रक (Mica) उत्पादन करता है?
(a) मध्य प्रदेश
(b) बिहार
(c) उड़ीसा
(d) चूना-पत्थर का
(d) जम्मू कश्मीर
                                (47वीं BPSC, 2005)
ध्यातव्य- झारखण्ड राज्य बनने से पूर्व बिहार भारत का ही नहीं विश्व में अग्रणी अभ्रक उत्पादन क्षेत्र था, लेकिन झारखण्ड के गठन के बाद महत्वपूर्ण अभ्रक उत्पादन क्षेत्र इस नये राज्य के हिस्से में चला गया है।]
53. बिहार में लौह-अयस्क प्राप्त होता है-
(a) लोहरदगा जिले में
(b) दुमका जिले में
(c) सिंहभूमि में
(d) सिंहभूम से
[41वीं BPSC. 1996)
[ध्यातव्य — सिंहभूम जिला लौह अयस्क का प्रमुख उत्पादक स्थल है, जो अब झारखण्ड राज्य में है।]
54. भारत में खनिज उत्पादन में समृद्ध राज्य पहचानिये।
(a) राजस्थान
(b) मध्य प्रदेश
(c) बिहार
(d) उड़ीसा
(39वीं BPSC, 1994]
ध्यातव्य- बिहार से झारखंड अलग हो जाने के कारण वर्तमान में झारखंड राज्य खनिज उत्पादन में समृद्धतम राज्य है।]
55. निम्न में कौन या कौन-कौन से खनिज बिहार में मिलते हैं?
(i) कोयला
(ii) लौह
(iii) मैंगनीज
(iv) पेट्रोलियम
(a) केवल i
(b) केवल i व ii
(c) केवल i व iii
(d)केवल i, ii व iv (44वीं BPSC, 2001)
56. कोयडा उत्पादन में राज्यवार घटना क्रम है-
(a) विहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल
(b) मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, विहार
(d) विहार, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश
(c) पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार
                         (43वींBPSC,1998)
[ध्यातव्य राज्य के विभाजन से पूर्व विहार सर्वाधिक कोयला उत्पादक राज्य था ।लेकिन झारखण्ड बनने के बाद कोयला उत्पादक सभी क्षेत्र झारखण्ड राज्य में चला गया है। अत: वर्तमान में  क्रमशः झारखण्ड, प० बंगाल और मध्य प्रदेश प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य हैं।।
57. 1 जनवरी, 2003 को विहार में कोयले के भण्डार थे (मिलियन टन में)-
(a) 260
(b) 360
(c) 160
(d) 210
(47वी BPSC, 2005)
ध्यातव्य- वर्तमान बिहार में प्रमाणित कोयला भण्डार शून्य है, किन्तु 1 जनवरी, 2003 को सम्भावित भण्डार 160 मि० टन था।
58. बिहार में कोयले का अनुमानित भंडार है-
(a) 1260 करोड़ टन
(b) 303 करोड़ टन
(c) 25310 करोड़ टन
(d) 16 करोड़ टन
(48-52वीं BPSC,2008)
59. बिहार में सूची I (खनिजों) को सूची II (प्राप्ति स्थानों) से सहसंबंधित कीजिए तथा के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
60. विहार में राष्ट्रीय मार्गों की कुल लम्बाई है-
(a) 1913 किलोमीटर
(b) 1088 किलोमीटर
(c) 1313 किलोमीटर
(d) 1371 किलोमीटर                                          (45वीं BPSC,2002)
[ध्यातव्य- वर्तमान में बिहार में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 3,740 किमी है।]
61. बिहार से होकर जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग है-
(a) राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 3
(c) राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 22
(b) राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8
(d) राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 23
(43 वीं BPSC ,1999
[ध्यातव्य- वर्तमान में यह राष्ट्रीय राजमार्ग (संख्या-23) झारखण्ड राज्य से होकर गुजरती है।)
62. सूची-I (राष्ट्रीय राजमार्गों के लक्षणों) को सूची-II (राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या) से सहसम्बन्धित कीजिए तथा सूचियों के नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए-
[47वीं BPSC, 2005]
63. पूर्वी मध्य रेलवे क्षेत्र का मुख्यालय कहाँ स्थित है ?
(a) पटना
(b) मुजफ्फरपुर
(c) रायपुर
(d) हाजीपुर (बिहार में)
[48वीं- 52वीं BPSC, 2008, 53वीं- 55वीं BPSC, 2011)
64. भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में बिहार का क्रम क्या है ?
(a) दूसरा
(b) चतुर्थ
(c) ग्यारहवाँ
(d) नवम
[46वीं BPSC, 2004)
ध्यातव्य- बिहार का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किमी है, जो सम्पूर्ण भारत के क्षेत्रफल का लगभग 2.86 प्रतिशत है। बिहार क्षेत्रफल की दृष्टि से क्रमशः राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के बाद भारत का 12 वाँ सबसे बड़ा राज्य है। अतः प्रश्न में ‘वारहवाँ’ विकल्प में नहीं होने के कारण इस प्रश्न का सही उत्तर किसी विकल्प के रूप में नहीं दिया जा सकता है।
65. बिहार के निम्न जिले में सबसे बड़ा जिला है-
(a) पटना
(b) गया
(c) दरभंगा
(d) समस्तीपुर
[44वीं BPSC, 2001)
[ध्यातव्य – दिये गए विकल्पों में गया जिले का क्षेत्रफल सर्वाधिक (4,976 वर्ग किमी) है। शेष जिलों में पटना का क्षेत्रफल 3,202 वर्ग किमी० दरभंगा का क्षेत्रफल 2,279 वर्ग किमी तथा समस्तीपुर का क्षेत्रफल 2,578 वर्ग किमी है। जबकि जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला पटना है।]
66. इनमें सबसे बड़ा नगर है-
(a) धनबाद
(b) गया
(c) जमशेदपुर
(d) राँची
[43वीं BPSC, 1999]
ध्यातव्य– दिये गये विकल्पों में जमशेदपुर (जनसंख्या की दृष्टि से) सबसे बड़ा नगर है, अब झारखण्ड राज्य में चला गया है। वर्तमान विहार में जनसंख्या की दृष्टि से पटना सबसे बड़ा नगर है।]
67. बिहार में कितने विश्वविद्यालय हैं?
(a) 9
(b) 11
(c) 12
(d) 13
(46वीं BPSC, 2004]
68. विहार के विविध भौगोलिक पक्षों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर मनन कीजिए:
I. बिहार में कुल सिंचित भूमि में लगभग 37 प्रतिशत नहरों द्वारा सिंचित होती है।
II. बिहार में उत्तरी गंगा मैदान 33,620 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है।
III. किशनगंज और पश्चिमी चम्पारण बिहार में सर्वोच्च वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं।
IV. बिहार में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 2,461 किलोमीटर है।
इन कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) I और II
(b) II और III
(c) II और IV
(d) I, III और IV
[46वीं BPSC, 2004)
[ ध्यातव्य – उत्तरी गंगा का मैदान 56,980 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है अतः कथन II असत्य है, जबकि कथन I, III और IV सत्य है। स्मरण रहे कि वर्तमान में बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लम्बाई 3,740 किलोमीटर है।]
69. बिहार के विविध भौगोलिक पक्षों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर मनन कीजिए-
I. बिहार के घरेलू उत्पादन में कृषि का योगदान लगभग 67 प्रतिशत है।
II. बिहार में रेशम उद्योग 1,50,000 से अधिक लोगों को स्वरोजगार (Self Employment ) प्रदान करता है।
III. बिहार में प्रतिवर्ष लगभग 47 लाख एकड़ भूमि बाढ़ग्रस्त हो जाती है, जबकि 10 लाख एकड़ सदैव जलाक्रांत (Waterlogged) बनी रहती है।
IV. बिहार के 85 से 90 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में प्रत्येक के पास 5 एकड़ से कम जमीन है
इनमें से कौन-से कथन सही हैं?
(a) II तथा IV
(b) I तथा ll
(c) ll तथा lll
(d) III तथा IV
(47 वीं BPSC,2005)
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