बिहार का इतिहास

बिहार का इतिहास

प्राचीन बिहार
प्रगतिहासिक कालीन बिहार
>बिहार के दक्षिणी भाग में आदिमानव के निवास के साक्ष्य मिले हैं।
>सबसे पुराने अवशेष आरंभिक पूर्व प्रस्तर युग के हैं जो अनुमानतः 100,000 ई० पू० काल के है। इनमें पत्थर की कुल्हाड़ियों के फल चाकू और खुरपी के रूप में प्रयोग किए जाने वाले पत्थर के टुकड़े हैं।
>ऐसे अवशेष मुंगेर और नालन्दा जिलों में उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। मध्यपाषाण युग (100,000 से 40,000 ई० पू०) के अवशेष मुंगेर में मिले हैं।
 यही से परवर्ती पाषाण युग (40,000 से 10,000 ई०पू०) के अवशेष भी मिले हैं जो पत्थर के छोटे टुकड़ों से बने हैं।
>मध्य पाषाण युग (9000 से 1000 ई०पू०) के अवशेष सिंहभूम, रांची, पलामू, धनबाद और संथाल परगना, जो अब झारखंड में है, से प्राप्त हुए हैं। ये छोटे आकार के पत्थर के बने सामान हैं जिनमें तेज धार और नोक है।
>नव पाषाण युग के अवशेष उत्तर बिहार में चिरांद (सारण जिला) और चेचर (वैशाली जिला) से प्राप्त हुए हैं। इनका काल सामान्यत: 2500 ई०पू० से 1500 ई०पू० के मध्य
निर्धारित किया गया है। इनमें न केवल पत्थर के अत्यन्त सूक्ष्म औजार प्राप्त हुए हैं, बल्कि हड्डी के बने सामान भी मिले हैं।
>ताम्र पाषाण युग में पश्चिम भारत में सिंध और पंजाब में हड़प्पा संस्कृति का विकास हुआ। बिहार में इस युग के परवर्ती चरण के जो अवशेष चिराद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर (पटना) से प्राप्त हुए हैं उनसे आदिमानव के जीवन के साक्ष्य और उसमें आनेवाले क्रमिक परिवर्तनों के संकेत मिलते हैं।
>उत्खनन में प्राप्त मृदभांड और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े भी तत्कालीन भौतिक संस्कृति पर प्रकाश डालने में सहायक सिद्ध हुए हैं।
ऐतिहासिक काल में बिहार
>उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई०पू०) में आयों का प्रसार पूर्वी भारत में आरंभ हुआ।
>लोहे का उपयोग भारत में 1000 से 800 ई०पू० के मध्य आरंभ हुआ। लगभग इसी समय आयों बिहार में विस्तार भी आरंभ हुआ।
>800 ई०पू० के आस पास रची गयी ‘शतपथ ब्राह्मण’ में गांगेय घाटी के क्षेत्र (बिहार का क्षेत्र भी इसमें शामिल था) में आयों द्वारा जंगलों को जलाकर और काटकर साफ करने की चर्चा मिलती है।
>छठी शताब्दी ई०पू० में उत्तर भारत में विशाल, संगठित राज्यों का अभ्युदय हुआ।
>जिन सोलह महाजनपदों और लगभग दस गणराज्यों की चर्चा इस काल में बौद्ध ग्रंथों में मिलती है, उनमें से तीन महाजनपद-अंग, मगध और लिच्छवी गणराज्य बिहार के क्षेत्र में स्थित थे। इनके संबंध में विस्तृत जानकारी अंगुत्तर निकाय में मिलती है।
> प्रो० आर० डेविस की पुस्तक बुद्धिस्ट इंडिया’ के अनुसार 16 महाजनपद थे –
1. काशी, 2. कौशल, 3. अग, 4. मगध, 5. वज्जि, 6. मल्ल, 7. चेदी, 8. वत्स, 9.कुरु,10. पांचाल,11. मत्स्य,12. सुरसेन,13. अस्सक (अश्मक)14. अवन्ति, 15. गांधार और 16. कंबोज ।
>गंगा नदी के उत्तर में लिच्छवियों का गणराज्य था जो विभिन्न गणराज्यों का महासघ था। इसकी सीमाएँ वर्तमान वैशाली और मुजफ्फरपुर जिलों तक फैली हुई थीं और इसकी राजधानी वैशाली थी।
> अंग का राज्य वर्तमान मुंगेर और भागलपुर जिलों के क्षेत्र में फैला था। इसकी राजधानी चम्पा(वर्तमान चम्पानगर) भागलपुर के समीप थी।
>मगध के अधीन वर्तमान पटना, नालंदा और गया जिलों के क्षेत्र थे। इसकी राजधानी  गिरिव्रज अथवा राजगृह (वर्तमान राजगीर) थी।
आर्यों के आगमन के पूर्व बिहार
> पुरापाषाण काल के औजार बिहार के गया, मुगेर, पटना आदि स्थानों से मिले हैं। इन स्थानों से पुरा पाषाण युग के चाकू, खुरपी, कुल्हाड़ी, आदि के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
>मुंगेर के भीम बांध से पुरापाषाण युग के औजार मिले हैं।
> गया के जेठियन से पुरापाषाण युग के कुल्हाड़ी, चाकू, आदि प्राप्त हुए हैं।
> सोनपुर और सारण के चिरांद से हड़प्पायुगीन काले और लाल मृदभांड के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
> ऐसे अवशेष भागलपुर, राजगीर व वैशाली से भी प्राप्त हुए हैं। ये सामग्रियां 1000 ई०पू० की हैं जो बिहार में ताम्र पाषाण युगीन सभ्यता के प्रमाण हैं।
>बिहार उत्तर पाषाण युग में सांस्कृतिक रूप से विकसित अवस्था में था। लोगों ने गुफाओं से निकलकर कृषि कार्य शुरू किया तथा पशुओं को पालने लगे। लोग इस समय तक मृदभांड बनाना, खाना पकाना और संचय करना आदि सीख गये थे।
>ऋग्वेद के अनुसार आर्यों के आगमन के पूर्व बिहार में सभ्यता-संस्कृति का विकास हो चूका  था। ऋग्वेद में बिहार क्षेत्र के लिए ‘कीकट’ एवं ‘व्रात्य’ शब्दों का उल्लेख हुआ है।
> वाल्मीकि रामायण में ‘मलद’ और ‘करूना’ शब्द संभवतः बक्सर क्षेत्र के लिए प्रयुक्त हुआ है। राम ने यहां राक्षसी ताड़का का वध किया था।
> वायुपुराण में गया क्षेत्र में “असुरों के राज्य’ होने की चर्चा की गई है
बिहार में आर्यों का आगमन
> कुछ इतिहासज्ञों के अनुसार आर्य भारत में ईरान से आये तथा ऋग्वैदिक काल (1500 ई०पू०-1000 ई०पू०) में वे पंजाब-हरियाणा क्षेत्र में बसे ।
> ऋग्वेद में बिहार के लिए कीकट क्षेत्र और अमित्र शासक प्रेमगंद का उल्लेख है तथा उसमें अंग और मगध क्षेत्र में जाने की इच्छा व्यक्त की गयी है।
> वैसे तो कुछ आर्य ऋग्वैदिक काल में भी बिहार आ चुके थे, किन्तु मुख्य रूप से आर्यों ने उत्तर वैदिक काल में, खासकर अथर्ववेद की रचना के दौरान, बिहार में प्रवेश किया।
> आर्यों के सांस्कृतिक वर्चस्व का प्रारंभ ब्राह्मण ग्रंथों की रचना के समय हुआ।
> शतपथ ब्राह्मण, ऐतेरेय अरण्यक, वाजसनेयी संहिता, सांख्यायन अरण्यक, कौशीतकी अरण्यक, पंचविंश ब्राह्मण, अरण्यक ग्रंथों, गोपथ ग्रंथों, महाभारत आदि में वर्णित घटनाओं से तत्कालीन बिहार के विषय में काफी जानकारी मिलती है।
>गया, राजगीर, पुनपुन आदि क्षेत्रों को पुराणों-वायुपुराण, पद्मपुराण आदि में पवित्र क्षेत्रो की श्रेणी में रखा गया है।
>वाराहपुराण में कीकट को एक अपवित्र प्रदेश बताया गया है।
>विदेह में आर्यों के बसने के बाद शतपथ ब्राह्मण की रचना हुई क्योंकि इसमें ही विदेश का सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है।
> विदेह माधव द्वारा अपने पुरोहित गौतम राहुगण की अग्नि का पीछा करते हुए वर्तमान गंडक नदी (सदानीरा नदी) तक पहुंचने की बात शतपथ ब्राह्मण में ही कही गयी है।
महाजनपद काल में बिहार
>छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत के 16 महाजनपदों में से तीन- वज्जि (लिच्छवी गणराज्य),मगध और अंग बिहार के क्षेत्र में थे।
>वज्जि महाजनपद आठ राज्यों का एक संघ था. जिसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवी, मिथिला के विदेह तथा कुंडग्राम के ज्ञातृक विशेष रूप से विख्यात थे।
>वैशाली उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित आधुनिक बसाढ़ है।
>मिथिला की पहचान नेपाल की सीमा में स्थित जनकपुर धाम नामक नगर से की जाती है। यहाँ पहले राजतंत्र था परंतु बाद में गणतंत्र स्थापित हो गया।
>अन्य चार राज्यों में संभवतः उग्र, भोग, इक्ष्वाकु तथा कौरव थे। जैन साहित्य में ज्ञातृकों के साथ इनका उल्लेख हुआ है। साथ ही इन्हें एक ही संस्थागार का सदस्य कहा गया है। बुद्ध के काल में यह आठजनों (अट्टकुल) का एक शक्तिशाली संघ था।
>वज्जि संघ में 8 जातियां थी जिनमें विदेह, लिच्छवि, ज्ञातृक और वज्जि प्रसिद्ध थी। इनमें उग्र, भोग, कौरव और इक्ष्वाकु भी थे।
>लिच्छवी क्षत्रिय थे। संभवतः वे आर्यों से अलग किसी अन्य जाति से संबंध रखते थे।
>मिथिला के विदेह वज्जिसंघ में सदस्य थे। किसी समय विदेह में वैशाली भी शामिल था।
>वैशाली के कुंडग्राम की ज्ञातृक जाति के लोग भी संघ के सदस्य थे। 24वें तीर्थंकर महावीर जैन ज्ञातृक ही थे।
>हात्थिग्राम के उग्र जाति भी संघ के सदस्य थे।
> भोगनगर की जाति भोग, अयोध्या या विदेह से आकर इक्ष्वाकु जाति तथा हस्तिनापुर से आयी कौरव जाति के लोग संघ के सदस्य बने थे।
> वज्जिसंघ के प्रधान एवं लिच्छवी सरदार चेतक या चेटक की बेटी का विवाह ज्ञातृक कुल में हुआ था, जहां महावीर पैदा हुए।
>चेटक की पुत्री चेल्हना का विवाह मगध नरेश बिंबिसार के साथ हुआ।
> वैशाली में प्रसिद्ध नर्तकी ‘आम्रपाली’ थी, जो ‘वैशाली की नगरवधू’ के पद पर आसीन हुई थी। आम्रपाली का कथित संबंध तत्कालीन मगध नरेश अजातशत्रु के साथ था।
> अपने प्रवास के दौरान भगवान बुद्ध ने आम्रपाली के निवास पर भोजन किया था। आम्रपाली ने बौद्धसंघ को एक उद्यान समर्पित किया था।
> मगध सम्राट अजातशत्रु ने वज्जिसंघ में फूट डलवाई और उस पर आक्रमण करके वज्जिसंघ को पराजित कर दिया तथा मगध साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया।
> वैशाली नगर के संस्थापक विशाल के वैशाल या वैशालिका राजवंश का प्रारंभ मनु के पुत्र नमनेदिष्ट से होता है।
>इस (वैशाली) राजवंश का उल्लेख मूल विष्णुपुराण , गरुड़ पुराण,वायुपुराण एवं भागवत पुराण के अलावा कुछ अन्य स्रोतों  भी मिलता है।
  इस राजवंश में कुल 33 शासक हुए जिनमें मनु- पुत्र नमनेदिष्ट प्रथम राजा थे।
>वैशाली नगर की स्थापना करने वाले विशाल इस राजवंश के 24 वे राजा थे, जबकि सुमति या प्रगति इस राजवंश के आखिरी राजा हुए।
>महात्मा गौतम बुद्ध के समय में उत्तर भारत की राजनीति में चार शक्तिशाली राजतंत्रों (कोशल, बस, अवन्ति एवं मगध) का वर्चस्व था, जिनमें एक मगध था।
> मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है।
>मगध महाजनपद में वर्तमान पटना और गया जिले शामिल थे।
>मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पूर्व में चपा से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी।
> मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह या गिरिज थी। यह 5 पहाड़ियों के बीच में स्थित थी। नगर के चारों ओर पत्थर की सुदृढ़ प्राचीर बनवायी गयी थी।
>कालांतर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई।
> मगध राज्य ने समकालीन शक्तिशाली राजतंत्री ने कोशल, वत्स व अवंति को अपने राज्यमें मिला लिया और मगध का शासन क्षेत्र पूरे देश में विस्तृत हो गया।
>मगध साम्राज्य के गौरव का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार था। वह महात्मा बुद्ध का मित्र एवं  संरक्षक था।
बिम्बिसार एक महान विजेता था । उसने अपने पड़ोसी राज्य अंग पर आक्रमण कर उसे जीता तथा अपने साम्राज्य में मिला लिया।
>बिम्बिसार वृद्धावस्था में अपने पुत्र अजातशत्रु द्वारा मारा गया।
>अजातशत्रु घोर साम्राज्यवादी था। उसने वज्जिसंघ को परास्त कर उसका राज्य मगध में मिला लिया। इसके पश्चात् उसने मल्लों के संघ को भी विजित किया।
>अभिज्ञान चिंतामणि के अनुसार कीकट और मगध समानार्थी हैं।
>मगध तथा अंग एक दूसरे के पड़ोसी महाजनपद थे तथा दोनों को पृथक करती हुई चंपा नदी बहती थी।
>अंग का प्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है।
> अंग महाजनपद उत्तरी बिहार के भागलपुर तथा मुंगेर जिले वाले क्षेत्र में स्थित था।
> इस राज्य की स्थापना अंग नामक राजकुमार ने की थी। इसकी राजधानी चपा वर्तमान भागलपुर के निकट स्थित थी।
> महाभारत तथा पुराणों में चंपा के प्राचीन नाम मालिनी का उल्लेख मिलता है।
> दीघनिकाय केअनुसार इस नगर के निर्माण की योजनाविख्यात वास्तुकार महागोविंद ने प्रस्तुत की थी।
>प्राचीन काल में चंपा नगरी अपने वैभव और व्यापार के लिए विख्यात थी।
>ह्वेनसांग ने इस स्थान (चंपा) को ‘चेनन्पो’ कहा है।
>तितुक्षी अंग का पहला आर्य राजा था। यहां कुल 25 राजा हुए ।
>अंग के तीन अंतिम राजाओं में प्रथम दधिवाहन थे जिनकी पुत्री चंदना महावीर के जैन धर्म को स्वीकार करने वाली प्रथम महिला थी।
>वत्स राजा ने चंपा पर आक्रमण किया।
>अंग के दूसरे राजा द्रधवर्मन ने अपनी पुत्री का विवाह उदयन के साथ किया।
>अंग का पड़ोसी राज्य मगध था। जिस तरह काशी तथा कोशल में सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा था उसी प्रकार अंग तथा  मगध के बीच भी दीर्घकालीन संघर्ष चला।
>अंग के शासक ब्रह्मदत्त ने मगय के राजा  भाटिय  को पहले पराजित कर मगध राज्य के कुछ भाग को जीत लिया गया। लेकिन बाद में अंग का राज्य में मिला लिया गया।
>ब्रह्मदत्त इस वंश का अंतिम शासक था जिसे हराकर बिम्बिसार ने अग पर अधिकार कर लिया।
>अंग के प्रमुख शहर चंपा, अस्सरपुर, आशन एवं भाछिय थे।
>महापरिनिर्वाण सूत्र में चंपा के अलावा अन्य पांच महानगरियों के नाम राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी और बनारस दिये गये हैं।
>बुद्धकाल में गंगा घाटी में लगभग 10 गणराज्य थे।
>इनमें अलकप्प के बुली, वैशाली के लिचड़वी और मिथिला के विदेह बिहार के अंतर्गत आते हैं।
बिहार के प्राचीन गणराज्य
अलकप्प के बुली
>अलकप्प के बुली गणराज्य आधुनिक बिहार राज्य के शाहाबाद, भोजपुर (आरा) और मुजफ्फरपुर जिलों के बीच स्थित था।
>बुली लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।
>महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार बुद्ध की मृत्यु (487 ई.पू.) के पश्चात् उन्होंने उनके अवशेषों का एक भाग प्राप्त किया तथा उस पर स्तूप का निर्माण करवाया था।
वैशाली के लिच्छवी
> बुद्धकाल के सबसे बड़े तथा शक्तिशाली राज्य वैशाली के लिच्छवी गणराज्य की स्थापना सूर्यवंश के संस्थापक इक्ष्वाकु के पुत्र विशाल ने की थी।
>ईसा पूर्व सातवीं सदी के आसपास वैशाली का राजतंत्र गणतंत्र में परिवर्तित कर दिया गया।
>कालांतर में वज्जि महासंघ की राजधानी वैशाली (बसाढ़) बनायी गयी, जिसकी सीमाए वर्तमान वैशाली और मुजफ्फरपुर जिलों तक फैली हुई थी।
>लिच्छवी वजिसंघ में सर्वप्रमुख थे।
> महावग्ग जातक में वैशाली को एक धनी, समृद्धशाली तथा घनी आबादी वाला नगर कहा गया है। यहाँ अनेक सुंदर भवन, चैत्य तथा विहार थे।
>एकपण्ण जातक से स्पष्ट होता है कि वैशाली नगर चारों ओर से तीन दीवारों से घिरा हुआ था। प्रत्येक दीवार एक दूसरे से एक योजन दूर थी और उसमें पहरे के मीनारों वाले तीन द्वार बने हुए थे।
> लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निवास हेतु महावन में प्रसिद्ध कट्टागारशाला का निर्माण करवाया था, जहाँ रहकर बुद्ध ने उपदेश दिये थे।
>लिच्छवी लोग अत्यन्त स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रेमी थे। उनकी शासन व्यवस्था संगठित थी।
>बुद्धकाल में अपनी समृद्धि की पराकाष्ठा पर स्थित लिच्छवी का राजा चेटक था, जिसकी कन्या (पुत्री) चेल्हणा का विवाह मगध नरेश विम्बिसार के साथ हुआ था। इस संबंध में ‘ललित विस्तार में उल्लेख मिलता है।
> महावीर की माता त्रिशला चेटक की बहन थी।
> विम्बिसार के काल में लिच्छवी लोग काफी शक्तिशाली थे। महात्मा बुद्ध ने उनकी एकता, शक्ति और गणराज्य की काफी प्रशंसा की।
> जैन साहित्य में पता चलता है कि अजातशत्रु के विरुद्ध चेटक ने मल्ल, काशी तथाके साथ मिलकर एक सम्मिलित मोर्चा बनाया था।
>कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी उनका (वज्जियों का वर्णन है।
>पाणिनि ने ब्रिज नाम लिखा है पर लिच्छवियों का उल्लेख नहीं किया है।
>कात्यायन और पतंजलि ने भी ब्रिजों का वर्णन किया है जिनका सार्वभौमिक राज्य था।
>चन्द्रगुप्त प्रथम ने कुमार देवी, जो लिच्छवी राजकुमारी थी. से विवाह किया।
>लिच्छवियों का उल्लेख हालांकि रामायण, महाभारत और बौद्धिक साहित्यों में नहीं हुआ किन्तु पालि धर्मग्रंथों में उनका नाम अनेक बार आया है।
>जैन साहित्यों में भी लिच्छवियों का वर्णन है।
>लिच्छवी वज्जियों का हिस्सा थे। नेपाल की वंशावली के अनुसार लिच्छवी लोग सूर्यवंशी थे।
>रॉकहिल के अनुसार शाक्य और लिच्छवी एक ही जाती की दो शाखाएं थीं।
>मनु के अनुसार लिच्छवी लोग व्रात्यक्षत्रिय थे।
>बी. ए. स्मिथ के अनुसार लिच्छवी लोग तिब्बत से आये थे, परंतु इससे अनेक विद्वान सहमत नहीं है
मिथिला के विदेह
> बिहार के भागलपुर तथा दरभंगा जिलों के भू भाग में विदेह गणराज्य स्थित था।
>प्रारंभ में यह राजतंत्र था। यहाँ के राजा जनक अपनी शक्ति एवं दार्शनिक ज्ञान के लिए विख्यात थे।
>मिथिला के विदेहों का वर्णन वेदों, ब्राह्मणों, रामायण और महाभारत में आता है।
>उस समय उनका राज्य राजतंत्रात्मक शासन के अधीन था। लेकिन बुद्ध काल में यह संघ राज्य बन गया।
>विदेह लोग भी वज्जिसंघ के सदस्य थे। उनकी राजधानी मिथिला या जनकपुर में स्थित थी
> बुद्ध के समय मिथिला एक प्रसिद्ध व्यापारिक नगर था, जहाँ श्रावस्ती के व्यापारी अपना माल लेकर आते थे।
>इन दिनों इस क्षेत्र में आठ छोटे-बड़े गणराज्यों का उद्भव हुआ।
>शक्तिशाली गणतंत्रों से घिरे होने के कारण ही इन सभी ने मिलकर ‘वज्जि महासंघ की  स्थापना की जो बाद में ‘लिच्छवि संघ के नाम से विख्यात हुआ।
> विदेह राजवंश का प्रारंभ इक्ष्वाकु के पुत्र निमि विदेह से माना जाता है, जो सूर्यवंशी थे।
>दूसरे राजा मिथि जनक विदेह थे, जिसने मिथिला की स्थापना की। इसके बाद सभी राजऔं  के नाम में ‘जनक’ शब्द जुड़ने लगा।
>विदेह राजवंश के 25 वें राजा सिरध्वज जनक थे, जिनकी पुत्री सीता का विवाह अयोग नरेश दशरथ के पुत्र राम से हुआ।
> इस वंश के प्रारंभिक चरण में कुल 53 राजा हुए थे।
> विदेह राजवंश के द्वितीय चरण में कुल 15 राजा हुए, जिनमें जनक विदेह का नाम सर्वाधिकमहत्वपूर्ण है।  इनके दरबार में विद्वानों की एक प्रतियोगिता हुई जिसमें याज्ञवल्क्य विजयी हुए। इसकी जानकारी वृहदारण्यक उपनिषद् से मिलती है।
>इस राजवंश में करल जनक आखिरी राजा हुए।
> इसके बाद मगध के राजा महापद्म नंद ने इसे अपने राज्य में मिला लिया।
मगध साम्राज्य का उत्कर्ष एवं विस्तार
>वर्तमान बिहार की राजधानी पटना एवं गया जिलों के क्षेत्र में स्थित मगय प्राचीन भारत का एक प्रमुख राज्य था। यह बुद्धकाल में एक शक्तिशाली व संगठित राजतंत्र बन गया।
>मगध राज्य का प्रारंभिक इतिहास महाभारत में वर्णित है।
>मगध साम्राज्य पर शासन करने वाले प्रथम राजवंश के विषय में पुराणों तथा बौद्ध ग्रंथों में भिन्न भिन्न विवरण मिलते हैं।
>पुराणों के अनुसार मगध का राजवंश वृहद्रय वंश से प्रारम्भ होता है।
A. बृहद्रथ वंश
>बृहद्रय ने मगध में वृहद्रथ वंश की स्थापना की थी। बृहद्रय के पिता का नाम चेदिराज वस्तु था।
>इस वंश के राजाओं में सर्वाधिक प्रसिद्ध वृहद्रथ का पुत्र जरासंध हुआ।
>जरासंध इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था। उसने काशी कोशल, चेदी, मालवा, विदेह, अंग, बंग, कलिंग, कश्मीर और गान्धार के राजाओं को भी पराजित किया।
>जरासंध को भीम ने इन्द्ध युद्ध में पराजित करके उसका वध कर दिया था। इसके बाद उसका पुत्र सहदेव शासक बना।
>बृहद्रथ वंश का अंतिम राजा रिपुंजय था।
>रिपुंजय की हत्या उसके मंत्री पुलक ने कर दी एवं अपने पुत्र को राजा बना दिया।
>बाद में एक दरबारी महीय ने पुलक और उसके पुत्र को मारकर अपने पुत्र विम्बिसार को गद्दी पर बैठाया।
>वृहद्रथ की राजधानी को वसुमति या गिरिव्रज अथवा कुशाग्रपुर के नाम से जाना जाता था।
B. हर्यक वंश
>बौद्ध ग्रंथों के अनुसार भगध का प्रथम वंश हर्यक वंश (जिसका कहीं कहीं हर्यक या हरयान वंश के रूप में भी उल्लेख हुआ है) और प्रथम शासक बिम्बिसार था। वस्तुतः एक राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का उत्कर्ष सर्वप्रथम मगध सम्र विम्बिसार के शासन काल में हुआ।
बिम्बिसार (544-492 ई० पू०)
>बौद्धग्रंथ महावंश के अनुसार हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार ने पन्द्रह वर्ष की आयु में सिंहासन प्राप्त किया और आधी शताब्दी से अधिक समय तक मगध पर शासन किया। उसी के अधीन मगध का साम्राज्य विस्तार आरंभ हुआ।
> उसकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी।
कूटनीतिक सम्बन्ध और साम्राज्य विस्तार
> बिम्बिसार एक महत्वाकाक्षी शासक था और योग्य कूटनीतिज्ञ भी अपनी राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उसने वैवाहिक संबंधों की नीति अपनाई।
> उसकी पहली पत्नी कोशलदेवी कोशल की राजकुमारी थी। इस विवाह में दहेज के रूप में बिम्बिसार को काशी का क्षेत्र प्राप्त हुआ। साथ ही कोशल का शासक प्रसेनजीत उसका मित्र हो गया।
> उसकी दूसरी पत्नी चेल्लना (चेल्हना) वैशाली के लिच्छवी शासक परिवार की राजकुमारी थी। इस विवाह से वज्जियों के साथ संबंध सुदृढ हुए।
> उसकी तीसरी पत्नी पंजाब की मद्र राजकुमारी क्षेमा थी।
> पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं को सुरक्षित कर लेने के बाद बिम्बिसार ने अपनेअंग के राज्य पर चढ़ाई कर वहाँ के शासक ब्रह्मदत्त का वध कर दिया।
>अंग की राजधानी चम्पा में उसने अपने पुत्र अजातशत्रु को शासक नियुक्त किया।
>अवन्ति के शासक चड प्रद्योत महासेन के साथ हुआ उसका युद्ध अनिणीत रहा। अंततःदोनों ने मैत्री कर ली।
>प्रधोत के उपचार के लिए बिम्बिसार ने अपने निजी चिकित्सक जीवक को उज्जैन भेजा।
>विम्बिसार का कूटनीतिक सम्पर्क गांधार के शासक से भी रहा।
>बिम्बिसार ने बुद्ध और कूटनीति से मगध के क्षेत्रों का विस्तार किया और अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि कीप्रतिष्ठा में वृद्धि की।
>बिम्बिसार ने अपने बड़े पुत्र दर्शक को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था। जो अजातशत्रु को पसंद नहीं था। अतः उसने पिता को कैद कर खुद को राजा घोषित किया।
>बौद्ध स्रोतों में अजातशत्रु को अपने पिता का हत्यारा कहा गया है, परन्तु जैन स्रोत  इससे सहमत नहीं।
> विम्बिसार का निधन लगभग 492 ई० पू०मे हुआ।
 >इतिहास में बिम्बिसार को ऐसा प्रथम शासक माना जाता है जिसने स्थायी सेना रखी। प्रकार उसे सेनिय’ अथवा ‘सेनिया’ भी कहा जाता है।
>उसने सेना में पहली बार हाथी का प्रयोग किया।
अजातशत्रु (492-460 ई० पू०)
>अजातशत्रु हर्यक वंश का था और उसका नाम ‘कुणिक’ भी था। वह अपने पिता बिम्बिसार की भाति साम्राज्यवादी था। इसके समय में कोशल से मगध का संघर्ष छिड़ गया।
>बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी कोशल देवी की भी दुःख से मृत्यु हो गयी।
> बहन कोशल देवी की मृत्यु से प्रसेनजीत बड़ा क्रोधित हुआ और मगध को दिये गये का
के अनेक ग्रामों को पुनः अपने अधिकार में ले लिया, जो दोनों राज्यों में संघर्ष का कारण बना।
कोशल के साथ संघर्ष
>कोशल और मगध के बीच संघर्ष में प्रसेनजीत पराजित हुआ तथा उसने भागकर श्राव में शरण ली।
>दूसरी बार युद्ध में अजातशत्रु पराजित हुआ तथा प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया।
>अजातशत्रु के समय में काशी का प्रांत अंतिम रूप से मगध में मिला लिया गया।
वज्जि संघ के साथ संघर्ष
> कोशल से निपटने के बाद अजातशत्रु ने वज्जिसघ की ओर ध्यान दिया।
>वैशाली वज्जिसंघ का प्रमुख राज्य था, जहाँ के शासक लिच्छवि नरेश थे
>दोनों राज्यों के बीच बिम्बिसार के समय से जारी मनमुटाव अजातशत्रु के समय संघर्ष में बदल गया।
> लिच्छवि राजकुमारी चेल्हना बिम्बिसार की पत्नी थी, जिससे उत्पन्न दो पुत्रों हल्ल और बेहल्ल को उसने अपना हाथी और रत्नों का एक हार दिया था। बाद में मनमुटाव
कारण जब अजातशत्रु ने उनसे वह उपहार वापस मांगा तो दोनो भाई हल्ल और बेहल अपने नाना लिच्छवि नरेश चेटक के पास जाकर रहने लगे। फलतः अजातशत्रु क्रोधित हो गया।
>बज्जि से युद्ध करने के लिए गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर एक सैनिक छावनी का निर्माण हुआ जहाँ से वैशाली पर अभियान में सुविधा हो।
>यह क्षेत्र पाटलिग्राम कहलाया जो बाद में पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात हुआ और मगध के विस्तृत साम्राज्य की राजधानी बना।
>16 वर्षों तक चले इस युद्ध में छल से भी काम लिया गया। भगवती सूत्र के अनुसार, अजातशत्रु ने अपने मंत्री वस्सकार की सहायता से वज्जि संघ के सदस्यों में फूट डालकर उनकी शक्ति को कमजोर कर दिया। तत्पश्चात् उसने वैशाली पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इस प्रकार गंगा नदी के दोनों ओर मगध का आधिपत्य स्थापित हो गया।
>परन्तु अभी भी अवन्ति का राज्य मगध का प्रबल शत्रु बना हुआ था।
>मज्झिम निकाय के अनुसार अवन्ति नरेश प्रद्योत के द्वारा आक्रमण किये जाने की आशका को ध्यान में रखते हुए अजातशत्रु ने राजगीर की सुरक्षा हेतु किलाबदी कराई, जिनकी दीवारों के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं।
मल्ल पर अधिकार
>लिच्छवियों को पराजित करने के बाद  अजातशत्रु ने मल्ल संघ पर आक्रमण कर उसे परास्त किया।इस प्रकार पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े भू भाग पर उसका अधिकार हो गया।
>भास के अनुसार अजातशत्रु ने वैवाहिक संबंध के द्वारा वत्स को अपना मित्र बना लिया।
>अजातशत्रु की धार्मिक नीति उदार थी।
>बौद्ध तथा जैन दोनों ही ग्रन्थ उसे अपने अपने मत का अनुयायी मानते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले वह जैन धर्म से प्रभावित था, परन्तु बाद में बौद्ध हो गया।
>भरहुत स्तूप की एक वेदिका के ऊपर अजातशत्रु का भगवान बुद्ध की वन्दना करने संबंधीलेख-‘अजातशत्रु भगवती वन्दते उत्कीर्ण मिलता है, जो उसके बौद्ध होने का पुरातात्विक प्रमाण है।
>अपने शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् अजातशत्रु ने उनके अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया था।
>उसके शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था।
>सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार लगभग 32 वर्षों तक शासन करने के बाद अजातशत्रु लगभग460 ई० पू० में अपने पुत्र उदायिन (उदयन) द्वारा मार डाला गया।
>उल्लेखनीय है कि अजातशत्रु के मगध सम्राट रहते हुए 487 ई० पू० में महात्मा बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया तथा महावीर का निधन 468 ई० पू० में पावापुरी में हुआ।
उदयभद्र या उदायिन (लगभग 459-444 ई० पू०)
>उदयभद्र अथवा उदायिन (उदयन) अजातशत्रु के बाद 459 ई० पू० में मगध का राजा बना।
>बौद्ध ग्रंथों में उदयभद्र को पितृहता बताया गया है, जबकि जैन ग्रंथों में उसे पितृभक्त कहा गया है। जैन ग्रंथों में उसकी माता का नाम पद्मावती मिलता है।
>उदायिन अपने पिता अजातशत्रु के शासन काल में चपा का राज्यपाल या उपराजा था।
>जैन मतानुसार पिता के निधन के बाद उसे कुलीनों व अमात्यों ने राजा बनाया।
>उसके जीवनकाल की सबसे बड़ी और प्रमुख घटना पाटलिपुत्र नगर की स्थापना रही।
>उदायिन ने गंगा और सोन नदियों के संगम पर इस नगर को बसाया तथा उसने राजगृह से मगध की राजधानी को हटाकर पाटलिपुत्र में स्थापित किया।
> उदाधिन जैन मत का अनुयायी था। उसने पाटलिपुत्र के मध्य में एक जैन चैत्यगृह निर्माण करवाया था।
>वह नियमित रूप से व्रत करता था तथा आचार्यों के उपदेश सुनता था। उपदेश सुनने दौरान ही एक दिन मगध के प्रतिद्वंद्वी राज्य अवन्ति के राजा पोलक ने पोखे में उदाधि को उनके पुत्रों द्वारा मरवा दिया।
हर्यक वंश का अंत
>बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उदायिन के तीन पुत्र थे। इनके नाम क्रमशः अनिरुद्ध, मुंडक, नागदशक थे। इन्हें भी पितृहंता कहा गया है।
> उदायिन के इन तीनों पुत्रों ने मगध पर शासन किया। अंतिम राजा नागदशक प्रसिद्ध हुई जिसे पुराण में ‘दर्शक’ कहकर पुकारा गया है।
>ये तीनों राजा अत्यंत विलासी और निर्बल थे। इनके काल में राज्य के चारों ओर हत्याएं षडयंत्र, भ्रष्टाचार फैल गया।
> व्यापक असंतोष फैल जाने के कारण राज्य में विद्रोह हुआ और इन पितृहंताओं को सिंहासन से हटाकर शिशुनाग नामक योग्य अमात्य को राजा बनाया गया।
C. शिशुनाग वंश (412-344 ई० पू०)
>412 ई० पू० में काशी के गवर्नर शिशुनाग को मगध का राजा बनाया गया।
>शिशुनाग योग्य व्यक्ति था और नागवंश से संबंधित था।
> हालांकि महावंश के अनुसार शिशुनाग को एक लिच्छवि राजा की वेश्या पत्नी से उत्पन्न कहा गया है, किंतु पुराणों के अनुसार वह क्षत्रिय था।
>शिशुनाग ने जन सहयोग से 412 ई० पू० में शिशुनाग वंश की स्थापना की।
>शिशुनाग के समय मगध की दो राजधानियाँ थी-गिरिव्रज और वैशाली। उसने मगध की सीमाओं का और अधिक विस्तार किया।
>उसकी सर्वश्रेष्ठ सफलता अवन्ति पर विजय थी। उस समय अवन्ति का राजा अवन्तिक था। अवन्ति पर इस विजय के साथ इन दोनों राज्यों के मध्य लगभग एक शताब्दी पुर प्रतिद्वंद्विता समाप्त हुई।
> पुराणों के अनुसार प्रद्योत वंश की सेना नष्ट हुई और अवन्ति का क्षेत्र मगध साम्राज्य शामिल हो गया। शिशुनाग ने वत्स और कौशाम्बी पर भी विजय प्राप्त की।
>शिशुनाग की मृत्यु 394 ई० पू० में हो गयी।
>उसके बाद उसका पुत्र कालाशोक (काकवर्ण) मगध की गद्दी पर बैठा। महावंश में  उसे कालाशोक और पुराणों में काकवर्ण कहा गया है।
> कालाशोक ने अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया। इसके बाद पाटलिपुत्र मगध की राजधानी रही।
> कालाशोक के शासनकाल में वैशाली में बौद्ध धर्म की ‘द्वितीय संगीति’ का आयोजन 383 ई० पू० में हुआ।
> इसमें बौद्ध संघ में विभेद उत्पन्न हुआ और वह दो सम्प्रदायों में विभाजित हो गया। विभाजित घटक स्थविर और महासाधिक कहलाये।
> परंपरागत नियमों में विश्वास करने वाले स्थविर कहलाये और जो बौद्धसंघ में कुछ नियमों को समाविष्ट होने के पक्षधर रहे वे महासांधिक कहलाये।
> इन्हीं दोनों सप्रदायों से बाद में क्रमशः हीनयान और महायान की उत्पत्ति हुई।
> बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार राजधानी के समीप घूमते हुए काकवर्ण की हत्या महापद्मनंद नामक व्यक्ति ने चाकू मार कर कर दी। कालाशोक की मृत्यु 366 ई० पू० में हो गयी।
>महाबोधिवश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे। इन पुत्रों ने सम्मिलित रूप से मगध पर 22 वर्षों तक शासन किया।
>कालाशोक के दसों पुत्रों में नंदिवर्धन का नाम सबसे महत्वपूर्ण है।
>नंदिवर्धन या महानंदिन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था। कालाशोक के उत्तराधिकारियों का शासन अंतिम रूप से 344 ई० पू० में समाप्त हो गया।
D. नंदवंश (344-321 ई० पू०)
>महापद्मनंद ने शिशुनाग वंश का अंत करके मगध साम्राज्य पर 344 ई० पू० में अधिकार
>पुराण में उसे महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहा गया है।
>पुराणों के अनुसार, नन्दवंश का प्रथम राजा महापद्मनन्द था। पालि ग्रन्थों के अनुसार महापद्म का नाम उग्रसेन था। पुराणों के अनुसार उग्रसेन का नाम
महापद्मनन्द इसलिए पड़ा क्योंकि उसके पास दस पद्म सेना अथवा इतनी ही सम्पत्ति थी।
>प्रायः सभी ग्रंथों में उसे नाई जाति का बताया गया है।
>यूनानी लेखक कर्टियस ने सिकंदर के समकालीन नंद सम्राट घनानंद के विषय में लिखा है।कि घनानंद का पिता महापद्मनंद नाई जाति का था।
>अपनी सुंदरता के कारण वह रानी का प्रिय पात्र बन गया तथा उसके प्रभाव से राजा का विश्वासपात्र बना. फिर धोखे से उसने राजा की हत्या कर दी। उसके बाद राजकुमारों के संरक्षण के बहाने कार्य करते हुए सिहासन पर अधिकार कर लिया। अंत में उसने राजकुमारों की भी हत्या कर दी। इस प्रकार महापद्मनंद मगध का सम्राट बना।
>महाबोधिवेश में कालाशोक के जिन दस पुत्रों का उल्लेख हुआ है वे अवयस्क थे तथा महापद्मनंद उनका संरक्षक बना। मौर्यों के उत्कर्ष के पूर्व मगध साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार उसी ने किया।
>महापद्मनंद मगध के सिंहासन पर बैठने वाले सभी राजाओं में सर्वाधिक शक्तिशाली राजा साबित हुआ।
>उसे कलि का अंश, सर्वक्षत्रांतक’ तथा दूसरे परशुराम का अवतार कहा गया है।
>उसने तत्कालीन सभी प्रमुख राजवंशों को परास्त किया और एकछत्र राज्य की स्थापना की।
>उसने जिन राजवंशों पर विजय हासिल की उनमें-इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, कलिंग, अश्मक, हैहय, मैथिल, वीतिहोत्र, कुरू, शूरसेन आदि दस राज्य शामिल है।
>पुराणों के अनुसार इन राजवंशों में इक्ष्वाकु ने 24 वर्ष, काशी ने 24 वर्ष, पाचाल ने 27 वर्ष, हैहय ने 28 वर्ष, कलिंग ने 32 वर्ष, शूरसेन ने 23 वर्ष, मैथिल ने 28 वर्ष तथा वीतिहोत्र ने 20 साल तक शासन किया था।
>भारतीय इतिहास में पहली बार महापद्मनंद ने मगध जैसे एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसकी सीमाएं गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गयी।
>विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय पताका फहराने वाला पहला मगध का शासक महापद्मनंद ही हुआ। इस विशाल साम्राज्य में एकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था की स्थापना की गयी।
>नंद वंश में कुल 9 राजा हुए, संभवतः इस कारण भी उस वंश को नंदवंश कहा जाता है
> महाबोधिवंश के अनुसार नंद वंश के 9 शासक थे-
1. उग्रसेन (महापद्मनंद)
2. पंडूक
3. पंडुगति
4. भूतकाल
5. राष्ट्रपाल
6. गोविषाणक
7. दसिधक या दर्शसिद्धक
8. कैवर्त
9. घननन्द (घनानंद )
> नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था, जो सिकन्दर का समकालीन था।
> उसे यूनानी लेखकों ने अग्रमीज यानी उग्रसेन या महापद्मनंद का पुत्र कहा है।
>मद्दशाल उसका सेनापति था।
>घनानंद का साम्राज्य काफी विशाल था जो उत्तर में हिमालय से दक्षिण में गोदावरी तथा पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था।
>पूर्वी दक्षिणापथ में कलिंग भी इसके अधीन था।
> नंद साम्राज्य उस समय शक्तिशाली अवस्था में था। कहा जाता है कि नंद वंश के सैन्य बल विशेषकर हस्तिसेना के कारण ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी का तट पार करने इंकार कर दिया और सिकंदर का भारतीय अभियान अधूरा ही रहा।
>नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद के पुत्र घनानंद के शासनकाल में भारत पर सिकंदर आक्रमण (327 ई० पू०) हुआ था।
> घनानंद एक लालची शासक था जिसे टर्नर के अनुसार धन बटोरने का व्यसन था। उससे 80 करोड़ की धनराशि गंगा के अन्दर एक पर्वत गुफा में छिपाकर रखी थी।
> उसने वस्तुओं के अलावा पशुओं के चमड़े, वृक्षों की गोंद तथा खनन योग्य की पत्थरों पर भी कर लगाकर अधिक से अधिक धन का संचय किया।
> घनानंद अपनी असीम शक्ति और सम्पति के बावजूद राज्य की आम जनता का विश्ववास नहीं जीत सका। बल्कि राज्य की प्रजा उससे घृणा करती थी।
> अपने शासनकाल में घनानंद ने जनमत की घोर उपेक्षा की तथा उस काल के एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था।
> वह छोटी-छोटी वस्तुओं के ऊपर बड़े-बड़े कर लगाकर जनता से बलपूर्वक धन वसूल करता था। परिणामस्वरूप जनता नंदों के शासन के खिलाफ हो गयी। चारों तरफ घृणा असंतोष का वातावरण बन गया।
> इस स्थिति का लाभ उठाकर चाणक्य ने चंन्द्रगुप्त मौर्य की मदद से घनानंद की हत्या करके मगध की जनता को अत्याचारी नंदवंश के शासन से मुक्ति दिलायी।
>नंदवश का शासन 321 ई० पू० में समाप्त हुआ।
> नंदवंश के शासन काल में मगध आर्थिक रूप से अत्यंत समृद्ध था, जिसकी चर्चा दूर-दूर तक होती थी।
> सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी नंदों के अतुल सम्पत्ति की रोचक कहानी सुनी थी। ह्वेनसांग के अनुसार पाटलिपुत्र में 5 स्तूप थे, जो नंद राजा के 7 बहुमूल्य पदार्थों द्वारा संचित कोषागारों का प्रतिनिधित्व करते थे।
>मगध की आर्थिक संपन्नता के कारण राजधानी पाटलिपुत्र शिक्षा-साहित्य का केंन्द्र बन गया।
>व्याकरण के महान विद्वान व आचार्य पाणिनि महापद्मनंद के मित्र थे।
>पाणिनि ने पाटलिपुत्र में शिक्षा भी पायी थी।
>वर्ष, उपवर्ष, वररुचि, कात्यायन जैसे विद्वान भी नंदों के शासन काल में हुए थे।
>नंद शासक जैन धर्म को मानते थे तथा उन्होंने अपने शासन में अनेक जैन मंत्रियों को नियुक्त किया था। कल्पक इन मंत्रियों में पहला था।
>शक्टार तथा स्थूलभद्र घनानंद के जैन मतावलंबी अमात्य थे।
>नंद शासकों के काल में मगध साम्राज्य राजनीतिक व सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हुआ ।
>मगध साम्राज्य के उत्कर्ष के कई कारण थे। इस क्षेत्र में लोहे की अनेक खानें थीं जो अच्छे हथियारों के निर्माण में सहायक थीं। यहाँ नये अस्त्र-शस्त्र का विकास भी हो रहा था जिनमें महाशिलाकंटक और रथमूसल अत्यंत उपयोगी थे।
>मगध क्षेत्र में कच्चा लोहा और तांबा जैसे खनिज पदार्थों की बहुलता थी।
>मगध का राज्य मध्य-गांगेय घाटी के केन्द्र में स्थित था। यह क्षेत्र अत्यधिक उर्वर और समृद्ध था । कृषि की सम्पन्न अवस्था के कारण शासकवर्ग के लिए आर्थिक संसाधनों की प्राप्ति भी आसान थी जो साम्राज्य-विस्तार के लिए अनिवार्य थे।
>इस क्षेत्र में व्यापार भी समृद्ध अवस्था में था और इस कारण अतिरिक्त आर्थिक संसाधन भी उपलब्ध थे।
>मगध के क्षेत्र में हाथी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे जिनकी सहायता से विरोधी शासकों के दुर्गों और नगरों पर अधिकार आसान था।
>मगध की दोनों राजधानियों राजगृह और पाटलिपुत्र प्राकृतिक और भौगोलिक दृष्टि से सुरक्षित थीं। राजगृह पहाड़ियों से घिरी थी ।
>तक्षशिला से प्राप्त आहत सिक्कों से स्पष्ट होता है कि सिकंदर के समय में सिक्के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में काफी प्रचलित थे।
>ईसा पूर्व 5 वीं शताब्दी के अंत तक मगध साम्राज्य पूरे उत्तरापथ के व्यापार का नियंता बन गया। मगध की आर्थिक संपन्नता से साम्राज्यवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया।
E. मौर्य वंश (321-184 ई० पू० )
> मगध के सिंहासन से नंदवंश के अंतिम सम्राट घनानंद का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना 323-321 ई० पू० में की।
>चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक इस वंश के महान शासक थे। इन्होंने राज्य विस्तार के साथ-साथ जनकल्याण वाले साम्राज्य की स्थापना की।
> मौर्य काल में राजनीतिक एकीकरण से निरापद व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला तथा चतुर्दिक आर्थिक विकास हुआ।
चन्द्रगुप्त मौर्य (321-298 ई० पू० )
> चंद्रगुप्त मौर्य के जन्म के विषय में ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में परस्पर विरोधी विवरण हैं।
> विविध प्रमाणों की आलोचनात्मक समीक्षा के बाद जो तर्क निर्धारित होता है, उसके अनुसार चन्द्रगुप्त मोरिय वंश का क्षत्रिय था। मोरिय शाक्यों की शाखा भी पिप्पलिवन में राज्य करती थी।
> मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ कहा गया है। कुछ विद्वानों के अनुसार ‘वृषल’ शूद्र को कहा जाता है।
> चंद्रगुप्त एक साधारण कुल में (345 ई० पू० में) पैदा हुआ था। इसके बावजूद बचपन से ही उसमें उज्ज्वल भविष्य के सभी संकेत मौजूद थे।
> बौद्धग्रंथ ‘महावंश’ की टीका के अनुसार चंद्रगुप्त का पिता मोरिय नगर का प्रमुख था।
> जब चन्द्रगुप्त अपनी माता के गर्भ में था तभी उसके पिता की किसी सीमांत युद्ध में मृत्यु हो गयी और उसकी माता अपने भाइयों द्वारा पाटलिपुत्र में सुरक्षा के उद्देश्य से पहुँचा दी गयी।
> चंद्रगुप्त का जन्म पाटलिपुत्र में ही हुआ। जन्म के बाद उसे एक गाय पालने वाले के  सुपुर्द कर दिया गया। गो-पालक ने गोशाला में अपनेद पुत्र की भांति उसका लालन-पालन किया।
> चंद्रगुप्त जब कुछ बड़ा हुआ तो गोपालक ने उसे एक शिकारी के हाथों बेच दिया। उसका बचपन मयूर पालकों, शिकारियों, चरवाहों आदि के मध्य व्यतीत हुआ
> चंद्रगुप्त बचपन से ही काफी प्रतिभाशाली था। उसने अपने समकक्ष लड़कों के बीच प्रमुखता हासिल कर ली। वह प्रायः बालक मंडली के बीच उत्पन्न विवादों का हल एक राजा की तरह किया करता था।
>एक दिन जब वह राजकीलम नामक खेल में व्यस्त था तभी उस रास्ते से जाते हुए चाणक्य ने अपनी सूक्ष्मदृष्टि से बालक चंद्रगुप्त के भविष्य का अनुमान लगा लिया।
> चाणक्य ने एक हजार कर्षापण देकर चंद्रगुप्त को खरीद लिया और उसे लेकर तक्षशिला आ गया ।
> तक्षशिला तत्कालीन शिक्षा का विख्यात केंद्र था। वहाँ सभी आवश्यक कलाओं व विधाओ की विधिवत् शिक्षा प्राप्त करके चंद्रगुप्त सभी विद्या में निपुण हो गया। यहाँ उसने युद्ध कला की बेहतर शिक्षा पायी।
> चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने घनानंद के विरुद्ध सिकन्दर का उपयोग करने की कोशिश की तथा इसी संदर्भ में संभवतः चंद्रगुप्त सिकंदर से मिला था। परंतु सिकन्दर ने उनकी कोई मदद नहीं की।
>सिकंदर की अकाल मृत्यु 323-322 ई० पू० में बेबीलोन में हो गयी।
>ऊपरी सिंधु घाटी के प्रमुख यूनानी क्षत्रप फिलिप द्वितीय की हत्या 325 ई० पू० में ही हो गयी थी इसी समय चंद्रगुप्त ने अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु व्यापक योजनायें बना ली।
>चाणक्य ने जिस कार्य हेतु चंद्रगुप्त को तैयार किया था उसके दो उद्देश्य थे- पहला यूनानियों के विदेशी शासन से देश को मुक्त कराना, दूसरा नंदों के घृणित एवं अत्याचारपूर्ण शासन का अंत करना ।
> चंद्रगुप्त ने सबसे पहले एक सेना तैयार किया, स्वयं को राजा बनाया और इसके उपरांत सिकंदर के क्षत्रप के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया।
मगध की ओर प्रस्थान
> 317 ई० पू० तक उसने सम्पूर्ण सिंध और पंजाब के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया तथा वहाँ का एकछत्र शासक बन गया।
>इसके बाद चंद्रगुप्त तथा चाणक्य घनानंद का नाश करने हेतु मगध की ओर प्रस्थान कर गये।
> बौद्ध तथा जैन मतों के अनुसार चंद्रगुप्त ने सर्वप्रथम नंद साम्राज्य के मध्य भाग पर हमला किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली।
> अपनी भूल का अहसास होने पर उसने दूसरी बार सीमांत प्रदेशों की विजय करते हुए नंदों की राजधानी पर हमला किया। घमासान युद्ध हुआ, घनानंद मारा गया। अब चंद्रगुप्त भारत के एक विशाल साम्राज्य मगध का शासक बन गया।
>सिकंदर की मृत्यु के बाद उसका सेनापति सेल्युकस निकेटर उसके पूर्वी प्रदेशों का उत्तराधिकारी हुआ ।
>सिकंदर द्वारा जीते गये भारत के प्रदेशों को पुनः अपने अधिकार में लेने के लिए सेल्युकस ने 305 ई० पू० के लगभग भारत पर पुनः चढ़ाई की।
>सिंधु नदी पार करके सेल्युकस ने चंद्रगुप्त से हार युद्ध किया। जिसमें वह चंद्रगुप्त से गया। इसके बाद दोनों के बीच संधि हुई तथा एक वैवाहिक संबंध भी स्थापित हुआ।
>चंद्रगुप्त तथा सेल्युकस के बीच हुई संधि के तहत्-
★सेल्युकस ने चंद्रगुप्त को आरकोसिया (कान्धार) और पेरोपनिसडाई (काबुल) के प्रान्त तथा एरिया (हेरात) एवं जड्रोसिया की क्षत्रपियों के कुछ भाग दिये।
★चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 भारतीय हाथी उपहार में दिया।
★कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों नरेशों के बीच एक वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने की संधि के तहत सेल्युकस ने अपनी एक पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया।
> सेल्युकस ने मेगास्थनीज नामक अपना एक राजदूत चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र भेजा (305 ई० पू० में), जो बहुत दिनों तक पाटलिपुत्र में रहा।
>मेगास्थनीज ने भारत पर ‘इण्डिका’ नामक एक पुस्तक की रचना की थी।
>अब चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य पारसीक साम्राज्य की सीमा को स्पर्श करने लगा तथा उसके अन्तर्गत अफगानिस्तान का एक बड़ा भाग भी सम्मिलित हो गया ।
>चन्द्रगुप्त के कान्धार पर आधिपत्य की पुष्टि वहाँ से प्राप्त हुए अशोक के लेख से होती है।
> इसी समय से भारत तथा यूनान के बीच राजनीतिक सम्बन्ध प्रारम्भ हुआ जो विन्दुसार तथा अशोक के समय में भी बना रहा।
पश्चिम भारत की विजय
> चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र तक का प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल कर लिया।
> रूद्रदामन के गिरनार अभिलेख (150 ई० पू०) के अनुसार इस प्रदेश में पुष्यगुप्त वैश्य चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था, जिसने वहाँ सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था।
> सौराष्ट्र के दक्षिण में सोपारा तक चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा विजित व शासित था।
दक्षिण विजय
> दक्षिण में चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी कर्नाटक तक विजय प्राप्त की।
> जैन स्रोतों के अनुसार चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में जैन धर्म स्वीकार कर लिया तथा उसी स्थान पर (मैसूर के निकट) तपस्या के लिए गया जो उसके साम्राज्य में था। इससे यह प्रमाणित होता है कि श्रवणबेलगोला तक उसका अधिकार था ।
साम्राज्य का विस्तार
> मगध साम्राज्य के उदय की जो परम्परा विम्बिसार के काल में प्रारंभ हुई थी, वह चन्द्रगुप्त के समय में पराकाष्ठा पर पहुंच गयी।
> उसका विशाल साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में वर्तमान उत्तरी कर्नाटक तक तथा पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तथा सोपारा तक का संपूर्ण प्रदेश उसके साम्राज्य के अधीन था।
> हिंदूकुश पर्वत भारत की वैज्ञानिक सीमा थी । यूनानी लेखकों ने हिंदूकुश को ‘इंडियन काकेशस’ कहा है। यहीं पर चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को पराजित किया था।
> इस पूरे विशाल मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी
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