‘बहुत हो गया… अब और नहीं’, आरबीआई गवर्नर क्यों दिया ये संकेत
Repo Rate Cut: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति ने इस बार की समीक्षा बैठक में नीतिगत ब्याज दर रेपो में 0.50% या 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती करते हुए इसे 5.5% पर लाने का फैसला किया है. लेकिन, इसके बाद आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने साफ कर दिया कि अब दरों में और कटौती की गुंजाइश नहीं है.
रेपो रेट तीन साल के न्यूनतम स्तर पर
ताजा कटौती के बाद रेपो दर पिछले तीन वर्षों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. फरवरी से लेकर अब तक आरबीआई एक प्रतिशत की कुल कटौती कर चुका है.
अब आंकड़े तय करेंगे दिशा: गवर्नर का साफ संदेश
संजय मल्होत्रा ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “मौजूदा हालात को देखते हुए अब मौद्रिक नीति के पास सीमित गुंजाइश है. रेपो रेट में आगे और कटौती संभव नहीं है, जब तक आंकड़े इसके पक्ष में न हों.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौद्रिक नीति का हर अगला कदम आर्थिक आंकड़ों पर आधारित होगा.
मुद्रास्फीति कम, लेकिन सतर्कता जारी
आरबीआई ने मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान को घटाकर 3.7% कर दिया है, जो हाल के वर्षों का सबसे कम आंकड़ा है. फिर भी गवर्नर ने मौसम और वैश्विक कीमतों से जुड़ी अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए सावधानी बरतने की बात कही है.
नीतिगत रुख ‘उदार’ से बदलकर ‘तटस्थ’
एक बड़ा बदलाव यह भी हुआ कि आरबीआई ने मौद्रिक नीति के रुख को ‘उदार’ से बदलकर ‘तटस्थ’ कर दिया है. इसका सीधा अर्थ है कि अब ब्याज दरें किसी भी दिशा में जा सकती हैं, ऊपर भी या नीचे भी. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि अर्थव्यवस्था कैसे प्रदर्शन करती है.
दर में कटौती से अर्थव्यवस्था को क्या फायदा?
आरबीआई गवर्नर ने उम्मीद जताई कि ब्याज दर में कटौती से आर्थिक वृद्धि को तेजी मिलने की संभावना है. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा, “इसका प्रभाव वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी छमाही में जाकर दिखेगा.” संजय मल्होत्रा ने कहा कि इस बार कटौती का प्रभाव बैंकों और ग्राहकों के बीच अधिक तेजी से दिखेगा.
सीआरआर में भी बड़ी राहत
आरबीआई ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में पूरे 1% की कटौती की है. इससे बैंकिंग व्यवस्था में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी आएगी, जिससे उधारी और कर्ज वितरण को गति मिलेगी.
7-8% की आकांक्षी वृद्धि दर
आरबीआई गवर्नर ने भारत की संभावित विकास दर को लेकर सकारात्मक संकेत देते हुए कहा कि देश की आकांक्षी वृद्धि दर 7-8% सालाना है. साथ ही उन्होंने यह भी दोहराया, “मुद्रास्फीति के खिलाफ जारी जंग में आरबीआई को सफलता मिली है.”
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जंग नहीं, स्थिरता और आंकड़ों पर नजर
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने साफ किया कि नीतिगत फैसले जल्दबाजी में नहीं, बल्कि स्थिरता, डेटा और दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखकर लिए जाएंगे. अब सभी की निगाहें भविष्य के आर्थिक संकेतकों और बाजार की चाल पर टिकी रहेंगी.
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