फ्रांसीसी क्रान्ति The French Revolution
फ्रांसीसी क्रान्ति The French Revolution
अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में फ्रांसीसी समाज
♦ अठारहवीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा था।
♦ एस्टेट, क्रान्ति – पूर्व फ्रांसीसी समाज में सत्ता और सामाजिक हैसियत को अभिव्यक्त करने वाली श्रेणी थी।
♦ प्रथम एस्टेट के अन्तर्गत पादरी वर्ग, दूसरे एस्टेट के अन्तर्गत कुलीन वर्ग एवं तीसरे एस्टेट के अन्तर्गत अन्य लोग आते थे।
♦ तीसरा एस्टेट भी तीन वर्गों में विभाजित था। इसके प्रथम वर्ग के अन्तर्गत बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी वकील आदि आते थे, इसके दूसरे वर्ग के अन्तर्गत किसान और कारीगर तथा अन्तिम वर्ग के अन्तर्गत छोटे किसान, भूमिहीन मजूदर आदि आते थे।
♦ केवल तीसरे एस्टेट के लोग (जनसाधारण) ही कर अदा करते थे।
♦ वर्गों में विभाजित फ्रांसीसी समाज मध्यकालीन सामन्ती व्यवस्था का अंग था। ‘प्राचीन राजतन्त्र’ पद का प्रयोग सामान्यतः सन् 1789 से पहले के फ्रांसीसी समाज एवं संस्थाओं के लिए होता था।
♦ पूरी आबादी में लगभग 90% किसान थे, लेकिन जमीन के मालिक किसानों की संख्या बहुत कम थी। लगभग 60% जमीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट्स के अमीरों का अधिकार था।
♦ प्रथम दो एस्टेट्स, कुलीन वर्ग एवं पादरी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार जन्म से प्राप्त थे। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार था राज्य को दिए जाने वाले करों में छूट।
♦ कुलीन वर्ग को कुछ अन्य सामन्ती विशेषाधिकार भी हासिल थे। वह किसानों से सामन्ती कर वसूल करता था। किसान अपने स्वामी की सेवा, स्वामी के घर एवं खेतों में काम करना, सैन्य सेवाएँ देना अथवा सड़कों के निर्माण में सहयोग आदि करने के लिए बाध्य थे।
♦ चर्च भी किसानों से करों का एक हिस्सा, टाइद (Tithe, धार्मिक कर) के रूप में वसूलता था। ऊपर से तीसरे एस्टेट के तमाम लोगों को सरकार को तो कर चुकाना ही होता था। इन करों में टाइल (Taille, प्रत्यक्ष कर) और अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल थे।
♦ टाइद, चर्च द्वारा वसूल किया जाने वाला कर था, जो कृषि उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था।
♦ टाइल, सीधे राज्य को अदा किया जाने वाला कर था।
♦ अप्रत्यक्ष कर, नमक और तम्बाकू जैसी रोजाना उपभोग को वस्तुओं पर लगाया जाता था। इस प्रकार राज्य के वित्तीय कामकाज का सारा बोझ करों के माध्यम से जनता वहन करती थी।
♦ फ्रांस की जनसंख्या सन् 1715 में 2.3 करोड़ थी जो सन् 1789 में बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई। परिणामतः अनाज उत्पादन की तुलना में उसकी माँग काफी तेजी से बढ़ी। अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य-पावरोटी की कीमत में तेजी से वृद्धि हुई। अधिकतर कामगार कारखानों में मजूदरी करते थे और उनकी मजदूरी मालिक तय करते थे। लेकिन मजदूरी महँगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी। फलस्वरूप, अमीर-गरीब की खाई चौड़ी होती गई।
♦ सूखे या ओले जैसे प्रकोपों की स्थितियों में जीविका संकट प्राचीन राजतन्त्र के दौरान फ्रांस में काफी आम हो गए थे।
एक नये वर्ग का उदय
♦ अठारहवीं सदी में फ्रांस में एक नये आमाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्यवर्ग कहा गया, जिसने फैलते समुद्र पारीय व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर सम्पत्ति अर्जित की थी। तीसरे एस्टेट में इन सौदागरों एवं निर्माताओं के अलावा प्रशासनिक सेवा वकील जैसे पेशेवर लांग भी शामिल थे। ये सभी पढ़े-लिखे थे और इनका मानना था कि समाज के किसी भी समूह के पास जन्म से विशेषाधिकार नही होने चाहिए। किसी भी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार उसको योग्यता ही होनी चाहिए।
♦ स्वतन्त्रता, समान नियमों तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित समाज की यह परिकल्पन्न जॉन लॉक और ज्या जाकरूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की थी।
♦ अपने टूट्रीटाजेज ऑफ गवर्नमेन्ट में लॉक ने राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धान्त का खण्डन किया था। रूसो ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबन्ध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा।
♦ मॉण्टेस्क्यू ने द स्पिरिट ऑफ द लॉज नामक रचना में सरकार के अन्दर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही। जब संयुक्त राज्य अमेरिका में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से खुद को आजाद घोषित कर दिया तो वहाँ इसी मॉडल की सरकार बनी। फ्रांस के राजनीतिक चिन्तकों के लिए अमेरिकी संविधान और उसमें दी गई व्यक्तिगत अधिकारों की गारण्टी प्रेरणा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी।
♦ दार्शनिकों के इन विचारों पर कॉफी हाउसों व सैलॉन की गोष्ठियों में गर्मागर्म बहस हुआ करती और पुस्तकों एवं अखबारों के माध्यम से इनका व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। पुस्तकों एवं अखबारों को लोगों के बीच जोर से पढ़ा जाता ताकि अनपढ़ भी उन्हें समझ सकें। इसी समय लुई XVI द्वारा राज्य के खर्चों को पूरा करने के लिए फिर से कर लगाए जाने की खबर से विशेषाधिकार वाली व्यवस्था के विरुद्ध गुस्सा भड़क उठा।
क्रान्ति की शुरुआत
♦ प्राचीन राजतन्त्र के तहत फ्रांसीसी सम्राट अपनी मर्जी से कर नहीं लगा सकता था। इसके लिए उसे एस्टेट्स जेनराल (प्रतिनिधि सभा) की बैठक बुला कर नये करों के अपने प्रस्तावों पर मंजूरी लेनी पड़ती थी।
♦ एस्टेट्स जेनराल एक राजनीतिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे। लेकिन सम्राट ही यह निर्णय करता था कि इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाए। इसकी अन्तिम बैठक सन् 1614 में बुलाई गई थी।
♦ फ्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने 5 मई, 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई। प्रतिनिधियों की मेजबानी के लिए वर्साय के एक आलीशान भवन को सजाया गया।
♦ पहले और दूसरे एस्टेट ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने-सामने की कतारों में बिठाए गए। तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए। तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे। किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था। फिर भी लगभग 40000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाई गई, जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे।
♦ एस्टेट्स जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था। इस बार भी लुई XVI इसी प्रथा का पालन करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ था। परन्तु तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी कि अब की बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा। यह एक लोकतान्त्रिक सिद्धान्त था जिसे मिसाल के तौर पर रूसों ने अपनी पुस्तक द सोशल कॉन्ट्रैक्ट में प्रस्तुत किया था। जब सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए। तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को सम्पूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए। उन्होंने अपने आप को नेशनल असेम्बली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जाएगा तब तक असेम्बली भंग नहीं होगी। उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबेसिए ने किया।
♦ मिराब्यो का जन्म कुलीन परिवार में हुआ था लेकिन वह सामन्ती विशेषाधिकारों वाले समाज को खत्म करने की जरूरत से सहमत था। उसने एक पत्रिका निकाली और वर्साय में जुटी भीड़ के समक्ष जोरदार भाषण भी दिए।
♦ आबेसिए मूलत: पादरी थे और उसका ‘तीसरा एस्टेट क्या है?’ शीर्षक से एक अत्यन्त प्रभावशाली प्रचार-पुस्तिका (पैम्फलेट) लिखी।
♦ जिस वक्त नेशनल असेम्बली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ्रांस आन्दोलित हो रहा था। कड़ाके की ठण्डे के कारण फसल मारी गई थी और पावरोटी की कीमतें आसमान छू रही थीं। बेकरी मालिक स्थिति का फायदा उठाते हुए जमाखोरी में जुटे थे। बेकरी की दुकानों पर घण्टों के इन्तजार के बाद गुस्साई औरतों की भीड़ ने दुकान पर धावा बोल दिया। दूसरी तरफ सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था।
♦ क्रुद्ध भीड़ ने 14 जुलाई को बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया।
♦ देहाती इलाकों में गाँव-गाँव यह अफवाह फैल गई कि जागीरों के मालिकों ने भाड़े पर लठैतों-लुटेरों के गिरोह बुला लिए हैं जो पकी फसलों को तबाह करने निकल पड़े हैं। कई जिलों में भय से आक्रान्त होकर किसानों ने कुदालों और बेलचों से ग्रामीण किलों (बींजमंन) पर आक्रमण कर दिए। उन्होंने अन्न भण्डारों को लूट लिया और लगान सम्बन्धी दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया।
♦ कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए, बहुतों ने तो पड़ोसी देशों में जाकर शरण ली। अपनी विद्रोही प्रजा की शक्ति का अनुमान करके, लुई XVI ने अन्ततः नेशनल असेम्बली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा।
♦ 4 अगस्त, 1789 की रात को असेम्बली ने करों, कर्त्तव्यों और बन्धनों वाली सामन्ती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया। पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया गया। धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गई। इस प्रकार कम से कम 20 अरब लिव्रे की सम्पत्ति सरकार के हाथ में आ गई।
फ्रांस संवैधानिक राजतन्त्र बन गया
♦ नेशनल असेम्बली ने सन् 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य था सम्राट की शक्तियों को सीमित करना। एक व्यक्ति के हाथ में केन्द्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में विभाजित एवं हस्तान्तरित कर दिया गया। इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतन्त्र की नींव पड़ी।
♦ सन् 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेम्बली को सौंप दिया।
♦ नेशनल असेम्बली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी। सर्वप्रथम नागरिक एक निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे, जो पुन: असेम्बली के सदस्यों को चुनते थे। सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं था। 25 वर्ष से अधिक उम्र वाले केवल ऐसे पुरुषों को ही सक्रिय नागरिक (जिन्हें मत देने का अधिकार था) का दर्जा दिया गया था, जो कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे। शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
♦ निर्वाचक की योग्यता प्राप्त करने तथा असेम्बली का सदस्य होने के लिए लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरूरी था।
♦ संविधान ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ के साथ शुरू हुआ था। जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार और कानूनी बराबरी के अधिकार को ‘नैसर्गिक एवं अहरणीय’ अधिकार के रूप में स्थापित किया गया अर्थात् ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से प्राप्त थे और इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता।
♦ राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे।
♦ क्रान्तिकारी पत्रकार ज्याँ-पॉल मरा (Jean-Paul Marat) ने अपने अखबर लामि द पप्ल ( जनता का मित्र) में नेशनल असेम्बली द्वारा तैयार किए गए संविधान पर यह टिप्पणी की थी। ‘जनता के प्रतिनिधित्व का कार्यभार अमीरों को सौंप दिया गया है। गरीबों और शोषितों की दशा केवल शान्तिपूर्ण तरीकों से कभी नहीं सुधर सकती। यह इस बात का अकाट्य प्रमाण है कि मानाढ्य वर्ग कानून को कैसे प्रभावित करता है। फिर भी ये कानून तभी तक चलेंगे जब तक लोग इन्हें मानेंगे। जिस तरह उन्होंने कुलीनों द्वारा लादे गए जुए को उतार फेंका है एक दिन यही हश्र अमीरों का करेंगे।
राजनीतिक प्रतीकों के मायने
♦ अठारहवीं सदी में ज्यादातर स्त्री-पुरुष पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए महत्त्वपूर्ण विचारों का प्रचार करने के लिए छपे हुए शब्दों के बजाय अक्सर आकृतियों एवं प्रतीकों का प्रयोग किया जाता था। ले बार्बिए ने अपनी पेन्टिंग में अधिकारों के घोषणापत्र को लोगों तक पहुँचाने के लिए अनेक प्रतीकों का प्रयोग किया। ये प्रतीक और उनके अर्थ इस प्रकार थे ।
अपनी पूँछ मुँह में लिए साँप सनातनता का प्रतीक। अँगूठी का कोई ओर-छोर नहीं होता।
राजदण्ड शाही सत्ता का प्रतीक।
त्रिभुज के अन्दर रोशनी बिखेरती आँख सर्वदर्शी आँख ज्ञान का प्रतीक है। सूर्य की किरणें अज्ञान रूपी अँधेरे को मिटा देंगी।
छड़ों का बछदार गट्ठर अकेली छड़ को आसानी से तोड़ा जा सकता है पर पूरे गट्ठर को नहीं । एकता में ही बल है।
टूटी हुई हथकड़ी और जन्जीर दासों को बाँधने के लिए जन्जीरों का प्रयोग होता था। टूटी हुई हथकड़ी उनकी आजादी का प्रतीक है।
लाल फ्राइजियन टोपी दासों द्वारा स्वतन्त्र होने के बाद पहनी जाने वाली टोपी।
नीला- सफेद-लाल फ्रांस के राष्ट्रीय रंग।
डैनों वाली स्त्री कानून का मानवीय रूप ।
विधि पट कानून सबके लिए समान है और उसकी नजर में सब बराबर हैं।
फ्रांस में राजतन्त्र का उन्मूलन और गणतन्त्र की स्थापना
♦ क्योंकि सन् 1791 के संविधान से सिर्फ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे। लोग राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमा कर सरकारी नीतियों और अपनी कार्य योजना पर बहस करते थे। इनमें से जैकोबिन क्लब सबसे सफल था, जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेण्ट ऑफ सेण्ट जेकब के नाम पर पड़ा, जो अब इस राजनीतिक समूह का अड्डा बन गया था।
♦ जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर जैसे- जूता बनाने वाले, पेस्टी बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मजदूर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्पयेर था।
♦ जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लम्बी पतलून पहनने का निर्णय किया। ऐसा उन्होंने समाज के फैशनपरस्त वर्ग, खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस (घुटन्ना) पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया। यह ब्रीचेस से पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के ऐलान का उनका तरीका था। इसलिए जैकोबिनों को ‘सौंकुलॉत’ के नाम से जाना गया जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बिना घुटन्ने वाले। सौंकुलात पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतन्त्रता का प्रतीक थी। लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी।
♦ सन् 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से नाराज पेरिस वासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनाई। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और खुद राजा को कई घण्टों तक बन्धक बनाए रखा। बाद में असेम्बली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। नये चुनाव कराए गए। 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों चाहे उनके पास सम्पत्ति हो या नहीं को मतदान का अधिकार दिया गया।
♦ नवनिर्वाचित असेम्बली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितम्बर, 1792 को इसने राजतन्त्र का अन्त कर दिया और फ्रांस को एक गणतन्त्र घोषित किया।
♦ लुई XVI को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई। 21 जनवरी, 1793 को प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। जल्द ही रानी मेरी एन्तोएनेत का भी वही हश्र हुआ।
आतंक राज
♦ सन् 1793 से सन् 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है।
♦ रोबेस्पेयर ने नियन्त्रण एवं दण्ड की सख्त नीति अपनाई। उसके हिसाब से गणतन्त्र के जो भी शत्रु थे कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रान्तिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया। यदि न्यायालय उन्हें ‘दोषी’ पाता तो गिलोटिन पर चढ़ाकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था।
♦ गिलोटिन दो खम्भों के बीच लटकते आरे वाली मशीन थी जिस पर रखकर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। इस मशीन का नाम इसके आविष्कारक डॉ. गिलोटिन के नाम पर पड़ा।
♦ रोबेस्पेयर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे। अन्ततः जुलाई, 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया।
डिरेक्ट्री शासित फ्रांस
♦ जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के सम्पन्न तबके के पास सत्ता आ गई। नये संविधान के तहत सम्पतिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका डिरेक्ट्री, को नियुक्त किया। इस प्रावधान के जरिए जैकोबिनों के शासन काल वाली एक व्यक्ति केन्द्रित कार्यपालिका से बचने की कोशिश की गई, लेकिन डिरेक्टरों का झगड़ा अकसर विधान परिषदों से होता और तब परिषद् उन्हें बर्खास्त करने की चेष्टा करती।
♦ डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
♦ सरकार के स्वरूप में उपरोक्त सभी परिवर्तनों के दौरान स्वतन्त्रता। विधि सम्मत समानता और बन्धुत्व प्रेरक आदर्श बने रहे। इन मूल्यों ने आगामी सदी में न सिर्फ फ्रांस बल्कि बाकी यूरोप के राजनीतिक आन्दोलन को भी प्रेरित किया।
क्या महिलाओं के लिए भी क्रान्ति हुई ?
♦ महिलाएँ शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में इतने अहम परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भागीदारी क्रान्तिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगी।
♦ महिलाओं ने अपने हितों की रक्षा करने और उन पर चर्चा करने के लिए खुद के राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले । फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए। उनमें ‘द सोसाइटी ऑफ रेवोल्यूशनरी एण्ड रिपब्लिकन विमेन’ सबसे मशहूर क्लब था। उनकी एक प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए।
♦ मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आन्दोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा। मताधिकार का संघर्ष उन्नीसवीं सदी के अन्त एवं बीसवीं सदी के प्रारम्भ तक अन्तर्राष्ट्रीय मताधिकार आन्दोलन के जरिए जारी रहा। अन्ततः सन् 1946 में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया।
दास प्रथा का उन्मूलन
♦ फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रान्तिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था।
♦ दास – व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुरू हुआ।
♦ बोर्दे और नान्ते जैसे बन्दरगाह फलते-फूलते दास व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए।
♦ अठारहवीं सदी में फ्रांस मे दास प्रथा की ज्यादा निन्दा नहीं हुई। नेशनल असेम्बली में लम्बी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा को प्रदान किए जाएँ या नहीं। परन्तु दास – व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नेशनल असेम्बली में कोई कानून पारित नहीं किया गया। लेकिन अन्ततः सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया पर यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा।
♦ सन् 1804 में नेपोलियन ने दास प्रथा पुनः शुरू कर दी । बागान मालिकों को अपने आर्थिक हित संभालने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतन्त्रता मिल गई। फ्रांसीसी उपनिवेशों से अन्तिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन सन् 1848 में किया गया।
क्रान्ति और रोजाना की जिन्दगी
♦ सन् 1789 से बाद के वर्षों में फ्रांस के पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों के जीवन में ऐसे अनेक परिवर्तन आए। क्रान्तिकारी सरकारों ने कानून बना कर स्वतन्त्रता एवं समानता के आदर्शों को रोजाना की जिन्दगी में उतारने का प्रयास किया।
♦ बास्तील के विध्वन्स के बाद सन् 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था – सेन्सरशिप की क्रान्ति और रोजाना समाप्ति।
♦ प्राचीन राजतन्त्र के अन्तर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियों किताब, अखबार, नाटक को राजा के सेन्सर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था, परन्तु अब अधिकारों के घोषणा-पत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया।
नेपोलियन बोनापार्ट
♦ सन् 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की। पुराने राजवंशों को हटा कर उसने नये साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी।
♦ नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था। उसने निजी सम्पत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलाई।
♦ शुरू-शुरू में बहुत सारे लोगों को नेपोलियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतन्त्रता दिलाने की उम्मीद थी पर जल्दी ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे।
♦ आखिरकार सन् 1815 में वाटरलू में उसकी हार हुई।
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