प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
Science ( विज्ञान ) लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वन संरक्षण हेतु क्या कदम आवश्यक हैं? अथवा, हमें वन तथा वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए ?
उत्तर⇒ वनों का संरक्षण निम्नलिखित कारणों से करना चाहिए—
(i) वनों से हमें फल, मेवे, सब्जियाँ तथा औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
(ii) हमें वनों से इमारती लकड़ी तथा जलाने वाली लकड़ी (ईंधन) प्राप्त होती है ।
(iii) वन पर्यावरण में गैसीय संतुलन बनाने में सहयोग देते हैं।
(iv) वृक्षों के वायवीय भागों से पर्याप्त मात्रा में जल का वाष्पन होता है जो वर्षा के एक स्रोत का कार्य करते हैं।।
(v) ये मृदा अपरदन एवं बाढ़ पर नियंत्रण करने में सहायक होते हैं।
(vi) वन वन्य जीवों का आश्रय प्रदान करते हैं।
(vii) ये धन प्राप्ति के अच्छे स्रोत हैं।
हमें वन्य जीवों को निम्न कारणों से संरक्षित करना चाहिए—
(i) वन्य प्राणी स्थलीय खाद्य श्रृंखला की निरन्तरता के लिए उत्तरदायी है।
(ii) ये प्राणियों की प्रजाति (स्पीशीज) को बनाये रखने में उत्तरदायी हैं जिससे विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ सुरक्षित रह सकें तथा उनका अध्ययन सरलता से किया जा सके।
(iii) वन्य प्राणियों से हमें अनेक बहुमूल्य उत्पाद; जैसे-ऊन, अस्थियाँ, सींग, दाँत, तेल, वसा तथा त्वचा आदि प्राप्त होती है जिनका उपयोग हम अनेकों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते हैं।
प्रश्न 2. जल संरक्षण के कोई दो उपाय लिखिए।
उत्तर⇒ जल संरक्षण के उपाय निम्नलिखित हैं—
(i) राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजनाओं द्वारा ।
(ii) वर्षा के जल का हारवेस्टिंग ।
(iii) वाहित मल का उपचार ।
(iv) उर्वरकों का सही उपयोग आदि ।
प्रश्न 3. जैविक आवर्धन क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न होता है? क्यों?
उत्तर⇒ हमारी आहार श्रृंखला में कुछ रासायनिक पदार्थ जो कि अजैव निम्नीकृत होते हैं, मिट्टी के माध्यम से पौधों में प्रवेश कर जाते हैं और हर उस जीव में प्रवेश कर जाते हैं जो पौधों पर आश्रित है।
क्योंकि ये पदार्थ अजैव निम्नीकृत है, यह प्रत्येक पोषी स्तर पर उत्तरोत्तर संग्रहित होते जाते हैं और यह ही जैविक आवर्धन कहलाता है।
जैविक आवर्धन का प्रभाव आहार श्रृंखला के उपरी भाग में भयावह होता है क्योंकि सबसे अधिक संग्रहित रासायनिक पदार्थ वहीं पहुँचता है क्योंकि मनुष्य आहार श्रृंखला में शीर्षस्थ है। अतः, हमारे शरीर में यह रासायन सर्वाधिक मात्रा में संचित होता है।
प्रश्न 4. अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हेतु पाँच कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर⇒ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हेतु पाँच कार्य इस प्रकार हैं—
(i) विद्युत उपकरणों का व्यर्थ उपयोग नहीं करना
(ii) रोशनी के लिए CFL’s का प्रयोग करना
(iii) स्कूल आने-जाने के लिए अपने वाहन की जगह सरकारी वाहनों का प्रयोग करना
(iv) नहाने में कम-से-कम पानी का उपयोग करना
(v) पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित जागरूकता अभियान में भाग लेना।
प्रश्न 5. बाघ-संरक्षण योजना क्या है ? इसे कब लागू किया गया था?
उत्तर⇒ लगातार बाघों की घटती संख्या को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर नामक परियोजना की शुरूआत की है। इस सुरक्षा परियोजना के फलस्वरूप लगातार भारतीय वनों में बाधों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज बाघों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण इन बाधों को एक उचित, विस्तृत वन क्षेत्र नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए वनों के विस्तार और विकास के लिए लगातार प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि इन स्वछंद बाघ को मक्त स्वतंत्र विस्तृत वातावरण मिल सके। बाघ-संरक्षण योजना को 1973 ई. में लाग किया गया।
प्रश्न 6. अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं ?
उत्तर⇒ प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए निम्न उपाय हैं—
(i) विद्युत को कम-से-कम इस्तेमाल कर सकते हैं तथा इसके अपव्यय को रोक सकते हैं।
(ii) तीन ‘Rs’ के नियमों का पालन करके हम प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम कर सकते हैं।
(iii) हमें आहार को व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
(iv) जल को व्यर्थ होने से रोकना चाहिए।
(v) खाना पकाने के लिए भी लकड़ी की जगह गैस का इस्तेमाल करना चाहिए।
प्रश्न 7. जैव विविधता का क्या आधार है ?
उत्तर⇒ जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या पर है। परंतु जीवों के विभिन्न स्वरूप भी महत्त्वपूर्ण हैं। ‘
प्रश्न 8. जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत क्या हैं ?
उत्तर⇒ जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत-गंदे पानी की पाइप, पोखर एवं सीवर आदि हैं।
जल प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नांकित हैं—
(i) सीवर का पानी नदियों, झरनों व तालाबों में मिलने से
(ii) उद्योगों से
(iii) प्रदूषित जल को साफ करने वाले साधनों से
(iv) भूमि का भराव
(v) पीड़कनाशी
(vi) तेल भंडार के रिसने से अधिक मात्रा में हानिकारक धातुएँ; जैसे-आर्सेनिक, केडमियम, पारा तथा मिलावटी तत्व जैसे क्लोराइड एवं नाइट्रेट्स का जल के ऊपर पाया जाना ।
प्रश्न 9. संयुक्त वानिकी प्रबंधन क्या है ?
उत्तर⇒ इसका आशय सहभागिता का विकास करना है जो स्थानीय समुदायों तथा जनजातियों व वन विभाग के बीच होता है। यह सहभागिता परस्पर विश्वास तथा संयुक्त कार्य एवं उत्तरदायित्व वनों के प्रति परियोजना तथा विकास को निभाने का होता है। संयुक्त वानिकी प्रबन्धन के अन्तर्गत प्रयोगकर्ता तथा स्वामी संसाधनों का प्रबन्धन करते हैं तथा व्यय को भी बराबर-बराबर वहन करते हैं।
प्रश्न 10. जल संग्रहण की किसी एक पुरानी और पारम्परिक पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर⇒ जल संग्रहण की एक पुरानी और पारम्परिक पद्धति है-‘खादिन’। यह भारत के राजस्थान राज्य में कृषि के उपयोग हेतु प्रचलित एक पारम्परिक जल-संरक्षण की विधि है। खादिन वास्तव में एक लम्बी बाँध संरचना है जिसका निर्माण ढालू कृषि क्षेत्र के आर-पार किया जाता है। वर्षा का जल खादिन में इकट्ठा होता है जिसका उपयोग सिंचाई इत्यादि के लिए किया जाता है।
प्रश्न 11. क्या होगा यदि वायु में CO2 की मात्रा बढ़ जाये?
उत्तर⇒ वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से प्रभाव—
(i) फसल पैदावार के क्रम में परिवर्तन।
(ii) मानसून वर्षा का समय बदल जाएगा।
(iii) हिमपिण्ड (ध्रवों पर) पिघलने लगेंगे तथा पृथ्वी के निम्न धरातल वाला क्षेत्र बाढ़ के कारण जलमग्न हो जाएगा।
प्रश्न 12. मृदा प्रदूषण के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ कोई भी ऐसा पदार्थ जो भूमि संस्थान में सामान्य या असामान्य रूप से उपस्थित होकर भूमि की उपजाऊ क्षमता को प्रभावित करता है, भूमि प्रदूषण : कहलाता है।
आधुनिक कृषि, उर्वरक आदि प्रदूषण का कारण हैं। बहित मल, Co2 की बढ़ती मात्रा, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, स्वतः चल निर्वातक, रेडियोधर्मी पदार्थ, कीटाणुनाशक, कवकनाशी आदि अन्य प्रदूषक हैं।
प्रश्न 13. कोयला और पेट्रोलियम को किस प्रकार लंबे समय तक बचाया जा सकता है?
उत्तर⇒ कोयला पेट्रोलियम का उपयोग मशीनों की दक्षता पर भी निर्भर करता है । यातायात के साधनों में अतिरिक्त दहन-इंजन का प्रयोग होता है। लंबे समय तक इसके उपयोग के लिए शोध किया जा रहा है कि इनमें ईंधन का पूर्ण दहन किस प्रकार सुनिश्चित किया जा सकता है। यह भी प्रयत्न किया जा रहा है कि इनकी दक्षता भी बढ़े तथा वायु प्रदूषण को भी कम किया जा सके और इन्हें लंबे समय तब बचाया जा सके।
प्रश्न 14. वायु ऊर्जा के क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर⇒ वायु ऊर्जा के लाभ निम्न हैं—
(i) वायु ऊर्जा एक गैर-परम्परागत ऊर्जा साधन है।
(ii) यह एक प्रदूषण रहित ऊर्जा का स्वरूप है।
(iii) यह दूरगामी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
(iv) यह विश्वसनीय एवं मूल्य रहित है।
(v) पवन चक्कियों को खुले स्थानों पर स्थापित किया जा सकता है जो समुद्र के किनारे या उनसे दूर हों।
प्रश्न 15. प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास में जनसंख्या-वृद्धि का कितना हाथ
उत्तर⇒ जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ अनेक आवश्यकताएँ भी उभर कर सामने आ रही हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संपदाओं की कमी हो रही है। प्राकृतिक संपदाएँ अधिक मात्रा में होते हुए भी सीमित हैं जबकि जनसंख्या चरम सीमा पर पहुँच गई है। बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए भी प्राप्त संसाधन सीमित दायरे में हैं। यदि जनसंख्या वृद्धि का यह भूचाल अधिकं बढ़ता ही गया तो प्राकृतिक संसाधन से प्राप्त संपदाएं अपना संतुलन बनाए रखने में समर्थ नहीं होंगी।
प्रश्न 16. वनों के कटने से क्या हानि होती है ?
उत्तर⇒ यदि वृक्षों के कटने की दर उनकी वृद्धि से अधिक हो तो वृक्षों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जाएगी। वृक्ष वाष्पण की क्रिया से बड़ी मात्रा में जल मुक्त करते हैं । इससे वर्षा वाले बादल आसानी से बनते हैं। जब वन कम हो जाते हैं तब उस क्षेत्र में वर्षा कम होती है। इससे वृक्ष कम संख्या में उग पाते हैं। इस प्रकार एक दुष्चक्र आरंभ हो जाता है और वह क्षेत्र रेगिसतान भी बन सकता है । वृक्षों के बहुत अधिक मात्रा में कटने से जैव पदार्थों से समृद्ध मिट्टी की सबसे ऊपरी परत वर्षा के पानी के साथ बहकर लुप्त होने लगती है।
प्रश्न 17. ‘ग्रीन-हाउस प्रभाव’ से हमारे ऊपर क्या असर पड़ेगा?
उत्तर⇒ ग्रीन-हाउस प्रभाव’ से हमारे ऊपर निम्नांकित असर पड़ेगा—
(i) अत्यधिक ग्रीन हाउस प्रभाव होने से पृथ्वी की सतह तथा उसके वायुमंडल का ताप बहुत अधिक बढ़ जाएगा। वायुमंडल का ताप अत्यधिक बढ़ जाने से मानव तथा जंतुओं का जीवन कष्टदायक हो जाएगा तथा पेड़-पौधों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।
(ii) वायुमंडल का ताप अत्यधिक बढ़ने से पर्वतों की बर्फ शीघ्रता से पिघल जाएगी, जिससे नदियों में बाढ़ आ सकती है तथा जान-माल की हानि हो सकती है।
(iii) कार्बन डाइऑक्साइड के अणु अवरक्त विकिरणों का शोषण कर सकते हैं। वायुमंडल में CO2 की परत अवरक्त मिश्रण का अवशोषण कर लेती है तथा उन्हें पृथ्वी के पर्यावरण से नहीं जाने देती। फलस्वरूप वायुमंडल का ताप बढ़ जाता है।
Science ( विज्ञान ) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु पाँच कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर⇒अकेले व्यक्ति के रूप में हम निम्न के प्रबंधन में योगदान दे सकते हैं –
(i) वन एवं वन्य जंतु- वन संरक्षण एवं वन्य जंतुओं के संरक्षण के प्रति । लोगों में जागरूकता जगा सकते हैं व अपने क्षेत्र के उन क्रियाकलापों में भाग ले सकते हैं जो इनसे संबंधित हों। इन मसलों पर कार्य कर कमीटियों की सहायता कर भी हम इनके प्रबंधन में योगदान दे सकते हैं।
(ii) जल संसाधन – अपने घर तथा कार्य स्थल पर जल का अपव्यय रोककर तथा वर्षा के जल को अपने घर में संग्रहित करके।
(ii) कोयला एवं पेट्रोलियम- विधुतको रोककर व कम-से-कम बिजली का उपयोग करके हम इनके प्रबंधन में योगदान दे सकते हैं।
(iv) मिट्टी-मिट्टी के कटाव पर रोक लगना चाहिए।
(v) पहाड़ – अनियमित रूप में पहाड कटाव कम होना चाहिए।
2. प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास में जनसंख्या वृद्धि का कितना हाथ है ?
उत्तर⇒जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ आवश्यकताओं भी उभर कर सामने आ रही हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परकृतिक संपदाओं की कमी हो रही है। प्राकृतिक संपदाएँ अधिक मात्रा में सिमित हैं जबकि जनसंख्या चरम सीमा पर पहुँच गई है। बढ़ती हुई जनसँख्याओ आवश्यकताओं की पर्ति करने के लिए भी प्राप्त संसाधन सीमित दायरे सख्या वृद्धि का यह भूचाल अधिक बढ़ता ही गया तो प्राकृतिक ससाधना से प्राप्त संपदाएँ अपना संतूलन बनाए रखने में समर्थ नहीं होंगी ।
3. जैविक आवर्धन क्या है ? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जावक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न होता है ? क्यों
उत्तर⇒हमारी आहार श्रृंखला में कल रासायनिक पदार्थ जो कि अजैव निम्नीकृत होते हैं, मिट्टी के माध्यम से पौधों में प्रवेश कर जाते हैं और हर उस जीव में प्रवेश कर जाते हैं जो पौधों पर आश्रित है।
क्योंकि ये पदार्थ अजैव निम्नीकत है, यह प्रत्येक पोषी स्तर पर उत्तरोत्तर संग्रहित होते जाते हैं और यह ही जैविक आवर्धन कहलाता हैं।जैविक आवर्धन का प्रभाव आहारशंखला के ऊपरी भाग में भयावह होता है क्योंकि सबसे अधिक संग्रहित रासायनिक पदार्थ वहीं पहँचता है क्योंकि मनुष्य श्रृंखला में शिर्सस्थ है। अतः हमारे शरीर में यह रसायन सर्वाधिक मात्रा में संचित होता है।
4. “चिपको आंदोलन’ क्या है ?
उत्तर⇒ चिपको आंदोलन’ हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखला में गढवाल के ‘रेनी’ नामक गाँव में एक घटना से 1970 के प्रारंभिक दशक में हुआ था। यह विवाद लकड़ी के ठेकेदार एवं स्थानीय लोगों के बीच प्रारंभ हआ क्योंकि गाँव के समीप के वृक्ष काटने का अधिकार उसे दे दिया गया था । एक निश्चित दिन ठेकेदार के आदमी वृक्ष काटने के लिए आए जबकि वहाँ के निवासी पुरुष वहाँ नहीं थे। बिना किसी डर के वहाँ की महिलाएँ फौरन वहाँ पहुँच गईं तथा उन्होंने पेड़ों को अपनी बाँहों में भरकर (चिपक कर) ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोका। अंतत: ठेकेदार को अपना काम बंद करना पड़ा।
5. जल संग्रहण पर प्रकाश डालें।
उत्तर⇒जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर दिया जाता है जिससे कि ‘जैव-मात्रा’ उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका प्रमुख उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधों एवं जंतुओं का उत्पादन इस प्रकार करना जिससे पारिस्थितिक असंतुलन पैदा न हो। जल संभर प्रबंधन न केवल जल संभर समुदाय का उत्पादन एवं आय बढ़ाता है वरन् सूखे एवं बाढ़ को भी शांत करता है तथा निचले बाँध एवं जलाशयों का सेवा काल भी बढ़ाता है। यथा छोटे-छोटे गड्ढे खोदना, झीलों का निर्माण, साधारण जल संभर व्यवस्था की स्थापना. मिट्टी के छोटे बाँध बनाना, रेत तथा चूने के पत्थर के संग्रहक बनाना तथा घर की छतों से जल एकत्र करना। इससे भूजल स्तर के संग्रहक बनाना तथा नदी भी पुनः जीवित हो जाती है।
जल संग्रहण (water harvesting) भारत में बहुत पुरानी संकल्पना है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र के बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तरप्रदेश में बंधिस, बिहार में आहर तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्म के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस (Tank), केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कहा इत्यादि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं।
6. वन एवं वन्य जीवन के संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए ।
उत्तर⇒ वन एक प्राकृतिक एवं राष्ट्रीय संपदा है। वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण पर्यावरण की दृष्टि से ‘प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा स्वयं मानव के अस्तित्व की रक्षा के लिए अति आवश्यक है। वन एवं वन्य जीवन के संरक्षण के लिए उपाय निम्नलिखित हैं –
(i)स्वस्थाने संरक्षण (In Situ Conservation) – इस विधि में किसी विशेष क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों का उनके प्राकृतिक एवं स्वाभाविक आवास में संरक्षण (Conservation) एवं परिरक्षण (Protection) किया जाता है। उदाहरण –
वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, जीवमंडल रिजर्व आदि।
(ii) बाह्यस्थाने संरक्षण (Ex. Situ Conservation)- इस विधि में प्रजाति को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर ले जाकर संरक्षण, परिरक्षण एवं संवर्द्धन कराया जाता है। उदाहरण-वनस्पति उद्यानों एवं चिड़ियाघरों में दुर्लभ वन्य-जीवों को लाकर उनका संरक्षण।
(iii) अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण।
(iv) वनोपज में वृद्धि।
(v) उचित वन प्रबंधन।
7. जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जा सकते है ? आप ऐसा क्यों सोचते है ?
उत्तर⇒जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। वे हैं –
(i) वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोग अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर रहते हैं।
(ii) सरकार का वन विभाग जिनके पास वनों का स्वामित्व है तथा वे वनों से प्राप्त संसाधनों का नियंत्रण करते हैं।
(iii) उद्योगपति जो तेंदु पत्ती का उपयोग बीड़ी बनाने से लेकर कागज मिल तक विभिन्न वन उत्पादों का उपयोग करते हैं, परंतु वे वनों के किसी भी एक क्षेत्र पर निर्भर नहीं करते।
(iv) वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी जो प्रकृति का संरक्षण इसकी आद्य अवस्था में करना चाहते हैं। हमारे विचार से इनमें से वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने का अधिकार स्थानीय निवासियों को मिलना चाहिए। यह विकेंद्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं ।
8. बड़े समतल भू-भाग में जल-संग्रहण स्थल की परंपरागत पद्धति क्या है ?
उत्तर⇒बड़े समतल भू-भाग में जल-संग्रहण स्थल मुख्यतः अर्द्धचंद्राकार मिट्टी के गड्ढे अथवा निचले स्थान, वर्षा ऋतु में पूरी तरह भर जाने वाली नालियाँ/प्राकृतिक जल मार्ग पर बनाए गये ‘चेक डैम’ हैं जो कंक्रीट अथवा छोटे कंकड़ पत्थरों द्वारा बनाए जाते हैं। इन छोटे बाँधों के अवरोध के कारण इनके पीछे मानसून का जल तालाबों में भर जाता है। केवल बड़े जलाशयों में जल पूरे वर्ष रहता है। परंतु छोटे जलाशयों में यह जल 6 महीने या उससे भी कम समय तक रहता है, उसके बाद यह सूख जाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य जल-भौम स्तर में सुधार करना है। भौम जल वाष्प बनकर उड़ता नहीं बल्कि आस-पास में फैल जाता है, बड़े क्षेत्र में वनस्पति को नमी प्रदान करता है। इससे मच्छरों के जनन की समस्या भी नहीं होती।
9. संपोषित विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन किस प्रकार होना चाहिए ?
उत्तर⇒अकसर ही पर्यावरणीय समस्याओं से हम रू-बरू होते हैं। यह अधिकतर वैश्विक समस्याएँ हैं । इनके समाधान में हम अपने-आपको असहाय पाते हैं। इनके लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं विनियम हैं तथा हमारे देश में भी पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक कानून हैं। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य कर रहे हैं।
संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से (निःशेषण से) उत्पन्न समस्याओं के विषय में जागरूकता हमारे समाज में अपेक्षाकृत एक नया आयाम है। इसी का उदाहरण है ‘गंगा सफाई योजना’ जो करीब 1985 में प्रारंभ की गई क्योंकि गंगा के जल को गणवत्ता बहत कम हो गयी थी। प्राकतिक संसाधनों का प्रबंधन दीर्घकालिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हए करना होगा जिससे कि ये अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके। इस प्रबंधन में इस बात का भी सनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इनका वितरण सभी वर्गों में समान रूप से हो। सबसे मुख्य बात है कि संपोषित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अपशिष्टों के सरक्षित निपटाने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
10. कुछ ऐसे सरल विकल्पों को लिखें जिनसे ऊर्जा की खपत में अंतर पड़ सकता है ?
उत्तर⇒कुछ ऐसे सरल विकल्प जिनसे ऊर्जा की खपत में अंतर पड़ सकता है, निम्नलिखित हैं –
(i) बस तथा अन्य पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग कम कर पैदल/साइकिल से चलना चाहिए।
(ii) अपने घरों में बल्ब की अपेक्षा फ्लोरोसेंट ट्यूब का प्रयोग करना।
(iii) लिफ्ट का प्रयोग न कर सीढ़ियों का प्रयोग करना।
(iv) सर्दी में अतिरिक्त स्वेटर पहनना, न कि हीटर अथवा सिगड़ी का प्रयोग करना।
11. क्या आपके विचार से संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए ? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन-सी ताकतें कार्य कर सकती हैं ?
उत्तर⇒संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए हमारे विचार से संसाधनों के प्रबंधन में दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए संसाधनों का वितरण सभी वर्गों में समान हो। संसाधनों के समतामूलक वितरण को आज मानव के कल्याण का अनिवार्य अंग माना जाता है। संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण के अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय पहलू पर ध्यान देना होगा।
संसाधन जैसे-वन संसाधन के समान वितरण के विरुद्ध निम्नलिखित ताकतें काम कर सकती हैं –
(i) वनवासी या स्थानीय लोग।
(ii) वन विभाग
(iii) उद्योगपति
(iv) वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी।
12. हिमाचल प्रदेश में ‘कुल्ह’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर⇒लगभग 400 वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली (व्यवस्था) का विकास हुआ। इन्हें ‘कुल्ह’ कहा जाता है। झरनों से बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गाँवों तक ले जाया जाता है। इस कुल्ह से प्राप्त जल का प्रबंधन क्षेत्र के सभी गाँवों की सहमति से किया जाता था। कृषि के मौसम में जल सर्वप्रथम दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे। कुल्ह की देख-रेख एवं प्रबंधन के लिए दो अथवा तीन लोग रखे जाते थे जिन्हें गाँव वाले वेतन देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इन कुल्ह से जल का भूमि में अंत:स्रवण भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता था।
13. अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं ?
उत्तर⇒अकेले व्यक्ति के रूप में विभिन्न उत्पादों की खपत कम करने के लिए हम निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं-
(i) विद्युत के अपव्यय को रोककर व इसका निम्नतम उपयोग कर।
(ii) रोशनी के लिए CFL’s का प्रयोग करके।
(iii) आने-जाने के लिए अपने वाहन की जगह सरकारी वाहनों का प्रयोग करके या जाने योग्य रास्तों पर पैदल या साइकिल का प्रयोग करके ।
(iv) जल का निम्नतम प्रयोग करके।
(v) पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित जागरूकता अभियान में भाग लेकर।
14. गंगाजल में कोलिफॉर्म का संपूर्ण गणना स्तर (1993-1994 ग्राफ द्वारा दर्शाएँ।
उत्तर⇒
15. निम्न से संबंधित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले सप्ताह में किये हैं –
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।
उत्तर⇒(a) हमने पिछले सप्ताह अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया है—
(i) विद्युत उपकरणों का व्यर्थ उपयोग नहीं किया है।
(ii) रोशनी के लिए CFL’s का प्रयोग किया है।
(iii) आने-जाने में पैदल या साइकिल से यात्रा की है।
(iv) कागजों का दुरुपयोग कम किया है।
(v) एयर कंडीशनर व फ्रिज का उपयोग कम किया है।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है ।
(i) कंप्यूटर पर प्रिंटिंग के लिए अधिक कागजों का प्रयोग करके।
(ii) पंखे का उपयोग ज्यादा किया।
(iii) आहार को व्यर्थ करके।
(iv) गर्मी में बार-बार नहाकर।
(v) टी०वी० का प्रयोग छुट्टियों में अत्यधिक किया।
16. अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं ? अथवा, पर्यावरण मित्र बनाने के लिए आप अपनी आदतों में कौन से परिवर्तन ला सकते हैं ?
उत्तर⇒ अपने आवास को पर्यानुकूलित बनाने के लिए निम्नलिखित परिवर्तन किये जा सकते हैं –
1. आवास में तथा उसके निकट जल का संग्रह नहीं किया जाना चाहिए जिससे जल में यदि कचरा उपस्थित हो तो सड़ने न पाए। मच्छर तथा जीवाणु जल को अपना आश्रय स्थल न बना लें।
2. पेय जल में कूड़ा-कचरा न डालें और न अन्य किसी को डालने दें।
3. जल के रिसाव को रोकना चाहिए।
4. जितने जल की आवश्यकता हो, उतना ही जल टोंटी से लें। व्यर्थ ही जल को न बहने दें।
5. जल का मितव्ययता से प्रयोग करें।
6. स्नान का जल, रसोई का प्रयोग किया हुआ जल व्यर्थ सीवर में न जाने दें वरन् उसका रसोई वाटिका में पौधों की सिंचाई हेतु प्रयोग करें।
7. आवास, गली एवं निकटवर्ती सड़क को साफ रखें। आवासीय कचरे को कूड़ेदान में एकत्र करें तत्पश्चात् उसका यथोचित स्थान पर निपटान करें।
8. आवश्यकतानुसार ही विद्युत का उपयोग करें। जरूरत न रहने पर पंखें. बल्ब, टी.वी. आदि बंद रखें।
17. मृदा अपरदन क्या है ? इसके कारण एवं प्रभाव क्या हैं ? उन विधियों का वर्णन करें जिनसे इसे रोका जा सके।
उत्तर⇒जल की तीव्रता तथा वायु की तीव्रता के कारण भूमि की ऊपर की परत के विनाश को मृदा अपरदन कहते हैं। – मृदा क्षरण के कारण—इसके मुख्य कारक वायु, जल तथा पेड़-पौधों द्वारा निरन्तर पृथ्वी से पोषक तत्वों का अवशोषण है। इस प्रक्रिया के कारण मृदा में निम्नलिखित हानियाँ दिखाई देती हैं –
1. मदा का अपरदन
2. मृदा की उर्वरा शक्ति का ह्रास।
उपक्त दोनों हानियाँ मानव के स्वार्थ द्वारा अधिक वनोन्मूलन तथा अल्पतम वृक्षारोपण के कारण हैं।
मृदा अपरदन पर निम्न प्रकार से नियंत्रण किया जा सकता है ।
1. भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदा पर अनुकूलित फसलों का प्रबन्धन करना।
2. क्षरित मृदा के पुनःस्थापन हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करना ।
3. मृदा की ऊपरी परत के स्थानान्तरण की सुरक्षा हेतु उचित व्यवस्था करना जो निम्न प्रकार से की जा सकती है-
फसल चक्रण – इस प्रक्रिया में एक ही खेत में बदल-बदलकर फसलों दन करना। खाद्यान्न फसलों के उत्पादन के पश्चात भिन्न-भिन्न कल का फसला का उत्पादन एकान्तर क्रम में करना हो का द्वास न होने पाए। नाइट्रोजन तत्व की मात्रा को ही मृदा की उर्वरता कहते हैं।
एक फसल के उत्पादन के पश्चात् लम्बी अवधि के पश्चात् दूसरी फसल को उगाना जिससे मृदा को उर्वरता संचित करने हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है। प्रत्येक फसल में भिन्न-भिन्न प्रकार के खरपतवार होते हैं । फसल चक्रण से खरपतवारों का प्रकोप कम हो जाता है। फसल चक्रण से जटिल पीड़कों तथा रोगों का भय कम होता है।
मिश्रित खेती में दो या दो से अधिक भिन्न प्रकार की विशेषताओं वाली फसलों को एक ही भूमि पर बारी-बारी से उगाना ।
रैखिक खेती से भी भमि की उर्वरा शक्ति कम नहीं होती। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेती से भी मृदा अपरदन में ह्रास होता है।
18. मनुष्य पर विभिन्न गैसों के हानिकारक प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर⇒गैसीय प्रदूषकों के हानिकारक प्रभाव –
(i) सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)- सल्फर डाइऑक्साइड वायु की जलवाष्प में घुलकर सल्फ्यूरिक अम्ल बना देती है जो फेफड़ों तथा इमारतों को हानि पहुँचाता है।
(ii) हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S)- यह सजीवों तथा पौधों को हान पहुँचाता है। लेड पेंटिंग काली हो जाती है।
(iii) कार्बन मोनोऑक्साइड (Co)-यह रक्त के लाल वर्णक से मिलकर ऑक्सी हीमोग्लोबिन के स्थान पर कार्बोक्सी हीमोग्लोबीन बनाती है। इससे फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन संवहन में बाधा होती है। इसके अधिक सेवन से मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है।
(iv) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)- इसकी अधिकतम मात्रा से ग्रीन हाउस प्रभाव होगा, जिससे कमरे का ताप बढ़ जायेगा।
(v) नाइट्रोजन के ऑक्साइड – नाइट्रोजन के ऑक्साइड फोटो रासायनिक धूम कोहरा बनाते हैं, जिससे आँखों में जलन होती है तथा पौधों को हानि पहुँचती है।
19. कृषि वानिकी से आपका क्या तात्पर्य है ? इसके लाभ बताइए।
उत्तर⇒ कृषि वानिकी सामाजिक वानिकी का ही परिवर्तित रूप है। कृषि वानिकी एक तंत्र है जिसमें भूमि का उपयोग वर्षानुवर्षीय उद्देश्य युक्त उसी भूमि का किया जाता है जिस पर वार्षिक कृषि एवं जन्तुओं को पाला जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है जिससे जीवन के आधार को बने रहने में लाभ मिल सके। यह एक सत्य है कि प्राचीन भूमि का उपयोग कृषि वानिकी तथा पशुपालन में किया जाता है।
कृषि वानिकी के निम्नलिखित लाभ हैं –
1. यह जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति करती है।
2. यह पर्यावरण को संरक्षित करती है। .
3. इससे पशुओं के लिए चारा प्राप्त होता है, ईंधन, फसलें तथा इमारती लकड़ी प्राप्त होती है।
4. यह कार्यक्रम रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
5. कृषि वानिकी फार्म में अधिक उत्पादन पर बल देती है तथा खेतों में नाइट्रोजन डालकर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ावा देती है।
6. कॉफी तथा कोको उत्पादन के लिए कृषि वानिकी बहुत उपयोगी है। कृषि वानिकी में बहुफसली कृषि की जाती है । इससे उत्पन्न होने वाले वृक्ष छाया देते हैं तथा वृक्षों के नीचे के स्थानों पर नकदी फसल उगाते हैं। कृषि वानिकी, सामाजिक वानिकी तथा सामुदायिक वानिकी बहुत ही सामान्य है।