पुस्तकालय की उपयोगिता
पुस्तकालय की उपयोगिता
शारीरिक स्वास्थ्य के लिये जिस प्रकार मनुष्य को संयमित और सन्तुलित भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञानार्जन परमावश्यक है। जिस इन्द्रिय का जो कार्य है, यदि उससे न लिया जाये तो उसकी क्रियाशीलता प्रायः समाप्त-सी हो जाती है। यह देखा गया है कि संन्यासी निरन्तर बारह वर्षों के मौन के पश्चात् जब बोलना प्रारम्भ करते हैं, तो उन्हें प्रारम्भ में कुछ कठिनाई का अनुभव होता है। इतनी स्पष्टता और शीघ्रता से वे नहीं बोल पाते, जितना पहले बोलते थे। इसी प्रकार मस्तिष्क को क्रियाशील और गतिशील रखने के लिए शुद्ध ज्ञान एवं नवीन विचारों की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान और शुद्ध विचार हमें अज्ञानान्धकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाशपूर्ण लोक में ले जाते हैं। ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की विधिवत् उपासना के लिए दो आराधना मन्दिर हैं – एक विद्यालय और दूसरा पुस्तकालय । विद्यालय में हम गुरुजनों की पवित्र वाणी से तथा पाठ्य पुस्तकों के सहारे से शिक्षा ग्रहण करते हैं, परन्तु फिर भी विद्यालय में हमारी ज्ञान-वृद्धि एक निश्चित सीमा तक ही होती है। दूसरे प्रकार के ज्ञान के लिए सरस्वती के दूसरे आराधना मन्दिर में बैठकर मौन उपासना करनी पड़ती है। वह साधनास्थल पुस्तकालय है, जहाँ विद्यार्थी विस्तृत व्यापक ज्ञान प्राप्त करता है, जहाँ सरस्वती के अनन्त वरद पुत्रों की कृतियों का संग्रह होता है, जहाँ उसे सभी प्रकार के ग्रन्थ सरलता और सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं जिनके अध्ययन से मानव अपने जीवन के अशान्त, संघर्षमय क्षणों में शान्ति प्राप्त करता है I
पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं और कई प्रकार के हो सकते हैं। प्रथम प्रकार के पुस्तकालय वे हैं, जो हमारे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में होते हैं। सामूहिक जन-कल्याण की दृष्टि से इन पुस्तकालयों का कार्य क्षेत्र सीमित होता है। कॉलेज में छात्र तथा अध्यापक ही इस पुस्तकालय से लाभान्वित होते हैं, परन्तु फिर भी इन पुस्तकालयों का अपना विशेष महत्त्व होता है। छात्रों की शिक्षा के प्रसार और उनकी ज्ञान वृद्धि में इन पुस्तकालयों से पर्याप्त सहायता प्राप्त होती है। वे छात्र जो किसी न किसी प्रकार भोजन तो प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु उनकी निर्धनता विवश कर देती है उन्हें पुस्तकें आदि न खरीदने के लिए, वह पुस्तकालय उनकी शिक्षा को अग्रसर करने में अमूल्य सेवा प्रदान करता है।
दूसरे प्रकार के पुस्तकालय व्यक्तिगत पुस्तकालय होते हैं। विद्या-प्रेमी धनवान लोग हजारों रुपया व्यय करके प्राचीन तथा अर्वाचीन साहित्य एकत्रित करते हैं और अपनी ज्ञान-पिपासा को शान्त करते हैं । इन पुस्तकालयों से वह और उनके निकटतम व्यक्ति लाभ उठाते हैं। प्रत्येक ज्ञान-पिपासु एवं परिष्कृत रुचि वाला व्यक्ति अपनी-अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार व्यक्तिगत पुस्तकालय रख सकता है।
तीसरे प्रकार के पुस्तकालय राजकीय पुस्तकालय होते हैं। इनकी व्यवस्था स्वयं सरकार करती है। ये पुस्तकालय बड़े भव्य भवनों में होते हैं। इनकी आर्थिक दशा बहुत सुन्दर होती है, परन्तु जन साधारण को इन पुस्तकालयों से कोई विशेष लाभ नहीं होता, ये उनकी सीमित पहुँच के बाहर होते हैं।
चौथे प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक पुस्तकालय होते हैं। इन पुस्तकालयों से सभी लाभ उठाते हैं चाहें वे बड़े हों या छोटे । व्यक्ति अपनी इच्छानुसार पुस्तकालय से पुस्तक निकलवाकर पढ़ सकता है। किसी पाठक पर किसी बात का प्रतिबन्ध नही होता । यदि पाठक पुस्तक घर ले जाना चाहता हो तो उसे एक निश्चित शुल्क देकर उस पुस्तकालय का सदस्य बनना पड़ेगा, तब एक निश्चित अवधि के लिए चाहे वह रात-दिन के लिए हो या पन्द्रह दिन के लिए वह उस पुस्तक को घर ले जा सकता है। सार्वजनिक पुस्तकालयों में वाचनालय का भी प्रबन्ध होता है। यदि ये सार्वजनिक वाचनालय न हों तो साधारण जनता पुस्तकालयों से अधिक लाभान्वित नहीं हो सकती । क्योंकि बहुत-से व्यक्तियों को अखबार पढ़ने की सनक होती है, ऐसे व्यक्ति इसी बहाने से पुस्तकालय तक पहुँच जाते हैं।
पाँचवें प्रकार के पुस्तकालय चल-पुस्तकालय होते हैं विदेशों में ऐसे पुस्तकालय अधिक संख्या में होते हैं । इन पुस्तकालयों का स्थान गाड़ी में होता है। स्थान-स्थान पर जाकर ये पुस्तकालय जनता को नवीन साहित्य का रसास्वादन कराते हैं । इस प्रकार देश का प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्रीय साहित्य की विभिन्न गतिविधियों से परिचित होता रहता है ।
पुस्तकालयों की दृष्टि से इंगलैंड, अमेरिका और रूस सबसे आगे हैं । इंगलैंड के ब्रिटिश म्यूजियम में पुस्तकों की संख्या पचास लाख है। पुस्तकों के अतिरिक्त, यहाँ ११००० देशी तथा विदेशी पत्र-पत्रिकायें आती हैं। अमेरिका में वाशिंगटन कांग्रेस पुस्तकालय विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय माना जाता है । इस पुस्तकालय में चार करोड़ से भी अधिक पुस्तकें हैं । यहाँ १४०० समाचार-पत्र तथा २६००० पत्रिकायें आती हैं। इस पुस्तकालय में ढाई हजार के लगभग कर्मचारी काम करते हैं। रूस का सबसे बड़ा पुस्तकालय ‘लेनिन पुस्तकालय’ मास्को में है। इसमें १६० भाषाओं की पुस्तकें हैं। इनमें मुद्रित पुस्तकों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ है तथा दो करोड़ पाँच लाख पृष्ठों की पाण्डुलिपियाँ हैं। इस पुस्तकालय में नित्य तीन हजार से चार हजार तक व्यक्ति में पढ़ने जाते हैं। पुस्तकालय की अलमारियाँ ११७ मील का स्थान घेरे हुए हैं। इस पुस्तकालय में १८०० वेतन भोगी कर्मचारी हैं। रूस का दूसरा विशाल पुस्तकालय “साल्तिकोफश्चेड्रिन” सार्वजनिक पुस्तकालय है। भारतवर्ष में कलकत्ते के राष्ट्रीय पुस्तकालय में दस लाख पुस्तकें हैं। भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण पुस्तकालय बड़ौदा का केन्द्रीय पुस्तकालय है, इसमें एक लाख ३१ हजार पुस्तकें हैं।
पुस्तकालयों से अनेक लाभ हैं। ज्ञान की वृद्धि में पुस्तकालय से जो सहायता मिलती है वह किसी अन्य साधन द्वारा नहीं । वास्तव में शिक्षक तो विद्यार्थियों का केवल पथ-प्रदर्शन ही करते हैं और पुस्तकालय उन्हें ज्ञान तक पहुंचाता है। किसी विषय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उस विषय पर एक-दो पुस्तक पढ़ने से कोई विशेष लाभ नहीं होता, जब तक कि उसी विषय की अधिक से अधिक पुस्तकों का अनुशीलन न किया जाये। यह कार्य पुस्तकालय में ही अच्छी प्रकार सम्पन्न होता है। वहीं एक विषय पर अनेक पुस्तकें पढ़ने को मिलती हैं। ज्ञान-वृद्धि के अतिरिक्त पुस्तकालयों से ज्ञान का प्रसार भी सरलता से होता है। पुस्तकालय के सम्पर्क में रहने से मनुष्य कुवासनाओं और प्रलोभनों से बच जाता है। श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन और मनन द्वारा पाठक इस लोक के साथ-साथ परलोक को भी सुधार लेते हैं।
पुस्तकालय मनुष्य को सत्संग की सुविधा प्रदान करता है । पुस्तक पढ़ते-पढ़ते कभी मनुष्य मन ही मन प्रसन्न हो उठता है और कभी खिलखिलाकर हँस पड़ता है। श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से हमें मानसिक शान्ति प्राप्त होती है । उस समय संसार की समस्त चिन्ताओं से पाठक मुक्त हो जाता है। कबीर की वैराग्यपूर्ण वाणी पढ़ते समय पाठक के हृदय में अवश्य ही संसार की असारता नृत्य करने लगेगी। इसी प्रकार, जब वह गोस्वामी तुलसीदास, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि महाकवियों काव्यानन्द में निमग्न होगा, तब निःसन्देह ही उसे परमानन्द प्राप्त हो सकेगा। अतः पुस्तकालय हमारे लिये नित्य जीवन साथियों की योजना करता है, जिसके साथ आप बैठकर बातों का आनन्द ले सकते हैं, चाहे वह शेक्सपीयर हो या कालीदास, न्यूटन हो या प्लेटो, अरस्तु हो या शंकराचार्य ।
आधुनिक युग में यद्यपि मनोरंजन के अनेक साधन हैं, शाम को सिनेमाघरों पर ऐसी भीड़ लगी रहती है जैसे किसी समय मन्दिरों पर लगी रहती थी। कोई खेल में ही मस्त है, कोई किसी दुर्व्यसन में ही आनन्द ले रहा है, कोई रेडियो पर ही कान लगाए बैठा रहता है, परन्तु ये सब मनोरंजन के साधन पुस्तकालय के सामने नगण्य हैं, क्योंकि पुस्तकालय से मनोरंजन के साथ-साथ पाठक का आत्मपरिष्कार एवं ज्ञान-वृद्धि होती है। पुस्तकालय में बैठकर बिना पैसा व्यय किये ही हम समाचार-पत्रों से देश-विदेश के समाचार प्राप्त कर लेते हैं । पुस्तकालयों में भिन्न-भिन्न रसों की पुस्तकों के अध्ययन से हम समय का सदुपयोग भी कर लेते हैं। अपने रिक्त समय को पुस्तकालय में व्यतीत करना समय की सबसे बड़ी उपयोगिता है।
व्यक्तिगत हित के अतिरिक्त, पुस्तकालयों से समाज का भी हित होता है । भिन्न-भिन्न देशों कीं नवीन एवं प्राचीन पुस्तकों के अध्ययन से विभिन्न देशों की सामाजिक परम्पराओं मान्यताओं और व्यवस्थाओं का परिचय प्राप्त होता है जिससे हम अपनी सामाजिक कुरीतियों को सुधारने के लिये प्रयत्नशील होते हैं। जनता अपने अधिकारों से परिचित हो जाती है। समाज के विभिन्न अंगों में समानता का व्यवहार होने लगता है। जनता-जनार्दन में देश प्रेम की भावनायें उमड़ने लगती हैं ।
पुस्तकालय वास्तव में ज्ञान का अमित भण्डार है। देश की शिक्षित जनता के लिये उन्नति का सर्वोत्तम साधन पुस्तकालय है। भारतवर्ष में भी अच्छे पुस्तकालयों की संख्या पर्याप्त नहीं है। भारत सरकार इस दिशा में प्रयत्नशील है।
वास्तव में, पुस्तकें, मनुष्य की सच्ची मित्र, सद्गुरु और जीवन-पथ की संरक्षिका हैं।
देश की अशिक्षित जनता को सुशिक्षित बनाने के लिये सार्वजनिक पुस्तकालय की बड़ी आवश्यकता है। भारत सरकार ने ग्राम पंचायतों की देख-रेख में गाँव-गाँव में ऐसे पुस्तकालयों की व्यवस्था की है। गाँव की निर्धन जनता अपने ज्ञान प्रसार के लिए पुस्तकें नहीं खरीद सकती। उस अज्ञानान्धकार को दूर करने के लिए शासन का यह पदन्यास प्रशंसनीय है। जिन लोगों पर लक्ष्मी की अटूट कृपा है, उन्हें इस प्रकार के पुस्तकालय जनहित के लिए खुलवाने चाहिएँ । पुस्तकालय का महत्त्व देवालयों से अधिक है क्योंकि पुस्तकालय ही हमें देवालय में जाने योग्य बनाते हैं ।
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