परमाणु परीक्षण
परमाणु परीक्षण
आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने हमारे जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित किया है। जब हम विज्ञान के शब्दार्थ को लें, तो इसका शाब्दिक अर्थ है-विशेष ज्ञान । मनुष्य आदिकाल से ही नए-नए आविष्कारों को करता आया है, आज हम विज्ञान के युग में रह रहे हैं, विज्ञान ने जितने आविष्कार किए है, उनसे के हमारा जीवन सुखमय बना है, तो दुःखमय भी। इसने हमें जहाँ विकास के लिए नए-नए साधन प्रदान कराए हैं, वहीं इसने हमारे विनाश के लिए भी अनेक द्वार खोल दिए हैं।
विज्ञान हमें जो-जो प्रदान किए हैं, उनमें परमाणु शक्ति भी है, परमाणु शक्ति से सम्पन्न विश्व के आज अनेक देश हो रहे हैं। इससे वैज्ञानिक शक्ति सम्पन्नता सभी देशों में बढ़ गयी है। आज संसार के विकसित देश ही अपितु विकासशील देश भी इस होड़ में लग गए हैं। इस होड़ में हमारा देश भी पीछे नहीं है, यही नहीं पाकिस्तान, जर्मनी, जापान जैसे छोटे-छोटे आकार-प्रकार वाले देश भी परमाणु परीक्षण करने में लगे हुए हैं। इससे विश्व की सामरिक शक्ति और सामरिक स्वरूप का पता चलता है। इस तरह आज संसार में युद्ध की आशंकाओं के बादल उमड़ने-धुमड़ने लगे हैं I
भारत ने हाल में ही राजस्थान के पोखरण क्षेत्र में पाँच परमाणु परीक्षण किए हैं। जहाँ तक पोखरण परमाणु परीक्षण का प्रश्न है, तो यह पहला अवसर नहीं था अब भारत ने परमाणु परीक्षण किया। इसके पहले 18 मई 1974 को देश के पहले परमाणु विस्फोट का परीक्षण किया गया था, इस क्रम में अन्य परीक्षणों की भी तैयारी थी, परन्तु अमरीका की कड़ी कार्रवाई के भय से उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उन परीक्षणों को स्थगित कर दिया। इसके बाद राजीव गाँधी के दौर में भी अमरीका के सामने बार-बार यह शिकायत दर्ज की गयी कि पाकिस्तान परमाणु हथियारों के बनाने की योजना बना रहा है। अतएव भारत को भी परमाणु परीक्षण करना चाहिए। इसके बाद नरसिंह राव सरकार ने तो 1995-96 में परीक्षण को स्वीकृति दे दी थी, परन्तु योजना के लीक हो जाने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय दबावों के चलने से इस योजना को कार्यान्वित नहीं किया जा सका। अतः यह मानना तो गलत होगा कि परमाणु परीक्षण भाजपा सरकार का पहला निर्णय था । विगत सरकारों ने भी इस ओर प्रयास किया, परन्तु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हो पायी ।
यदि परीक्षण का निर्णय गलत था, तो अन्य सरकारों के द्वारा यह प्रयास किया ही क्यों गया। अब यदि भाजपा को अपने इस प्रयास में सफलता प्राप्त हुई तो जहाँ हमारे वैज्ञानिक इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं वहीं भाजपा भी अपनी इच्छा शक्ति व अन्तर्राष्ट्रीय दबावों के आगे न झुकने के लिए सराहना की पात्र है। अब रहा प्रश्न इसके नकारात्मक पहलुओं का कि इससे भारत को क्या नुकसान होगा तो राष्ट्रीय सुरक्षा व राष्ट्रीय सम्मान के लिए थोड़ा बहुत कष्ट तो हर देश को उठाना पड़ा है। 1996 में चीन अग्नि परीक्षा से गुजरा। जापान ने उसके विरुद्ध प्रतिबन्ध लगाये, परन्तु मात्र चार माह में वह प्रतिबन्ध वापस ले लिये गये। अमरीका ने भी चीन के प्रति कड़ा रुख अपनाया, परन्तु अमरीका ने भी उसे व्यापार के मामले में कृपा पात्र देश का दर्जा दे दिया। इससे चीन को विभिन्न कोषों से रकम न मिलने का खतरा तो दूर की बात, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी हुआ। इसी प्रकार भारत के विरुद्ध लगाये जाने वाले प्रतिबन्ध लम्बे समय तक जारी रहेंगे अथवा भारत को बहुत बड़ी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा, ऐसा नहीं है। परमाणु परीक्षण से उपजा दूसरा नकारात्मक पहलू भारत-पाक सम्बन्ध है। भारत व पाकिस्तान के सम्बन्ध मधुर तो पहले भी नहीं थे और इनमें मधुरता आने की बहुत अधिक सम्भावना भी नहीं थी ।
हाल ही में उपजी कटुता का कारण भारत है भी नहीं। परमाणु परीक्षण पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया संयत नहीं थी। कश्मीर में अघोषित युद्ध से भारत का चिन्तित होना आवश्यक था। कश्मीर में निरन्तर पाक पोषित आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अतएव भारत के गृहमंत्री एल. के. आडवाणी और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला की चेतावनी सर्वथा उचित थी । आखिर परमाणु परीक्षण से अपनी सेना और देश की जनता को इतना आत्मबल तो प्राप्त होना ही चाहिए कि भारत विरोधी शक्तियों को चेताया जा सके और उन्हें अघोषित युद्ध अथवा आतंकवाद से रोका जा सके ।
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