परमाणु की संरचना Structure of the Atom

परमाणु की संरचना Structure of the Atom

 

पदार्थों में आवेशित कण

♦ परमाणु विभाज्य है और आवेशित कणों से बना है। इसी कारण दो वस्तुओं को आपस में रगड़ने से उनमें विद्युत आवेश उत्पन्न हो जाता है।
♦ परमाणु में उपस्थित आवेशित कणों का पता लगाने में कई वैज्ञानिकों ने योगदान दिया। 19वीं शताब्दी तक यह जान लिया गया था कि परमाणु साधारण और अविभाज्य कण नहीं है, बल्कि इसमें कम से कम एक अवपरमाणुक कण इलेक्ट्रॉन विद्यमान होता है, जिसका पता जे जे थॉमसन ने लगाया था।
♦ इलेक्ट्रॉन के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होने के पहले ई. गोल्डस्टीन ने सन् 1886 में एक नये विकिरण की खोज की, जिसे उन्होंने ‘केनाल रे’ का नाम दिया। ये किरणें धनावेशित विकिरण थीं, जिसके द्वारा अन्ततः दूसरे अवपरमाणुक कणों की खोज हुई। इन कणों का आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर, किन्तु विपरीत था। इनका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा लगभग 2000 गुणा अधिक होता है। उनको प्रोटॉन नाम दिया गया।
♦ सामान्यत: इलेक्ट्रॉन को e¯ के द्वारा और प्रोटॉन को p+ के द्वारा दर्शाया जाता है।
♦ प्रोटॉन का द्रव्यमान 1 इकाई और इसका आवेश +1 लिया जाता है। इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान नगण्य और आवेश – 1 माना जाता है।
परमाणु की संरचना
जे.जे. थॉमसन पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने परमाणुओं की संरचना से सम्बन्धित पहला मॉडल प्रस्तुत किया।
थॉमसन का परमाणु मॉडल
थॉमसन ने परमाणुओं की संरचना से सम्बन्धित एक मॉडल प्रस्तुत किया, जो क्रिसमस केक की तरह था। इनके अनुसार परमाणु एक धनावेशित गोला था, जिसमें इलेक्ट्रॉन क्रिसमस केक में लगे सूखे मेवों की तरह थे।
थॉमसन ने प्रस्तावित किया कि
(i) परमाणु धन आवेशित गोले का बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें धँसे होते हैं।
(ii) ऋणात्मक और धनात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं। इसलिए परमाणु वैद्युतीय रूप से उदासीन होते हैं।
यद्यपि थॉमसन के मॉडल से परमाणु के उदासीन होने की व्याख्या हो गई किन्तु दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों के परिणामों को इस मॉडल के द्वारा समझाया नहीं जा सका।
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल
♦ अरनेस्ट रदरफोर्ड ने यह जानने के लिए कि इलेक्ट्रॉन परमाणु के भीतर कैसे व्यवस्थित हैं, एक प्रयोग किया। इस प्रयोग में तेज गति से चल रहे एल्फा कणों को सोने की पन्नी पर टकराया गया। उन्होंने सोने की पन्नी इसलिए चुनी क्योंकि वे बहुत पतली परत चाहते थे। सोने की यह पन्नी 1000 परमाणुओं के बराबर मोटी थी।
♦ एल्फा कण द्विआवेशित हीलियम कण होते हैं अतः ये धनावेशित होते हैं। चूँकि इनका द्रव्यमान 4u होता है इसलिए तीव्र गति से चल रहे इन एल्फा कणों में पर्याप्त ऊर्जा होती है।
♦ यह अनुमान था कि एल्फा कण सोने के परमाणुओं में विद्यमान अवपरमाणुक कणों के द्वारा विक्षेपित होंगे। चूँकि एल्फा कण प्रोटॉन से बहुत अधिक भारी थे, इसलिए उन्होंने इनके अधिक विक्षेपण की आशा नहीं की थी। लेकिन एल्फा कण–प्रकीर्णन प्रयोग ने आशा के बिल्कुल विपरीत परिणाम दिया। इससे निम्नलिखित परिणाम निकले
(i) तेज गति से चल रहे अधिकतर एल्फा कण सोने की पन्नी से सीधे निकल गए।
(ii) कुछ एल्फा कण पन्नी के द्वारा बहुत छोटे कोण से विक्षेपित हुए।
(iii) आश्चर्यजनक रूप से प्रत्येक 12000 कणों में से एक कण वापस आ गया।
इस प्रयोग के आधार पर रदरफोर्ड ने निम्न परिणाम निकाले
(i) परमाणु के भीतर का अधिकतर भाग खाली है क्योंकि अधिकतर एल्फा कण बिना विक्षेपित हुए सोने की पन्नी से बाहर निकल जाते हैं।
(ii) बहुत कम कण अपने मार्ग से विशेषित होते हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि परमाणु में धनावेशित भाग बहुत कम है।
(iii) बहुत कम एल्फा कण 180° पर विक्षेपित हुए थे, जिससे यह संकेत मिलता है कि सोने के परमाणु का पूर्ण धनावेशित भाग और द्रव्यमान, परमाणु के भीतर बहुत कम आयतन में सीमित है। प्राप्त आँकड़ों के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि नाभिक की त्रिज्या परमाणु की त्रिज्या से 105 गुणा छोटी है।
अपने प्रयोगों के आधार पर रदरफोर्ड ने परमाणु का नाभिकीय मॉडल प्रस्तुत किया, जिसके निम्नलिखित लक्षण थे
(i) परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है जिसे नाभिक कहा जाता है। एक परमाणु का लगभग सम्पूर्ण द्रव्यमान नाभिक में होता है।
(ii) इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं।
(iii) नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में काफी कम होता है।
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियाँ
♦ गोलाकार कक्ष में चक्रण करते हुए इलेक्ट्रॉन का स्थायी हो पाना सम्भावित नहीं है।
♦ कोई भी आवेशित कण गोलाकार कक्ष में त्वरित होगा। त्वरण के दौरान आवेशित कणों से ऊर्जा का विकिरण होगा। इस प्रकार स्थायी कक्ष में घूमता हुआ इलेक्ट्रॉन अपनी ऊर्जा विकिरित करेगा और नाभिक से टकरा जाएगा। अगर ऐसा होता, तो परमाणु अस्थिर होता जबकि हम जानते हैं कि परमाणु स्थायी होते हैं।
बोर का परमाण्विक मॉडल
रदरफोर्ड के मॉडल की कमियों को दूर करने के लिए, नील्स बोर ने परमाणु की संरचना के बारे में निम्नलिखित अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं
(i) इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते हैं, जिन्हें इलेक्टॉन की विविक्त कक्षा कहते हैं।
(ii) जब इलेक्ट्रॉन इस विविक्त कक्षा में चक्कर लगाते हैं, तो उनकी ऊर्जा का विकिरण नहीं होता है। इन कक्षाओं (या कोशों) को ऊर्जा-स्तर कहते हैं।
(iii) ये कक्षाएँ K, L, M, N….. या संख्याओं 1, 2, 3, 4….. के द्वारा दिखाई जाती हैं।
न्यूट्रॉन
♦ सन् 1932 में जे चैडविक ने एक और अवपरमाणुक कण को खोज निकाला, जो अनावेशित और द्रव्यमान में प्रोटॉन के बराबर था। अन्ततः इसका नाम न्यूट्रॉन पड़ा।
♦ हाइड्रोजन को छोड़कर ये सभी परमाणुओं के नाभिक में होते हैं। सामान्यत: न्यूट्रॉन को ‘n’ से दर्शाया जाता है।
♦ परमाणु का द्रव्यमान नाभिक में उपस्थित प्रोट्रॉन और न्यूट्रॉन के द्रव्यमान के योग के द्वारा प्रकट किया जाता है।
विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन का वितरण
परमाणुओं की विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों के वितरण के लिए बोर और बरी ने कुछ नियम प्रस्तुत किए।
(i) इन नियमों के अनुसार किसी कक्षा में उपस्थित अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या को सूत्र 2n² से दर्शाया जाता है, जहाँ, ‘n’ कक्षा की संख्या या ऊर्जा स्तर है। इसलिए इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या पहले कक्ष या K कोश में 2×1² = 2 होगी, दूसरे कक्ष या L कोश में 2×2² = 8 होगी, तीसरे कक्ष या M कोश में 2 x 3² =18, होगी एवं इसी प्रकार चौथे कक्ष या N कोश में 2×4²= 32 होगी।
(ii) सबसे बाहरी कोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है।
(iii) किसी परमाणु के दिए गए कोश में इलेक्ट्रॉन तब तक स्थान नहीं लेते हैं तब कि उससे पहले वाले भीतरी कक्ष पूर्ण रूप से भर नहीं जाते। इससे स्पष्ट होता है, कि कक्षाएँ क्रमानुसार भरती हैं।
संयोजकता
♦ किसी परमाणु की सबसे बाहरी कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को संयोजकता- इलेक्ट्रॉन कहा जाता है।
♦ किसी परमाणु का बाह्यतम कक्ष अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉन रख सकता है। जिन तत्त्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कक्ष पूर्ण रूप से भरे होते हैं वे रासायनिक रूप से अक्रिय होते हैं। दूसरे शब्दों में, उनकी संयोजन-शक्ति या संयोजकता शून्य होती है। इन अक्रिय तत्त्वों में से हीलियम परमाणु के बाह्यतम कक्ष में दो (2) इलेक्ट्रॉन होते हैं और अन्य में आठ (8) होते हैं।
♦ सक्रिय तत्त्वों के परमाणुओं की संयोजन-शक्ति अर्थात् अपने समान या अन्य किसी तत्त्व के परमाणुओं से मिलकर अणु बनाने की प्रवृत्ति, अपने बाह्यतम कक्ष को पूर्ण रूप से भरने का प्रयास माना जाता है।
♦ आठ इलेक्ट्रॉन वाले सबसे बाहरी (बाह्यतम) कक्ष को अष्टक माना जाता है। परमाणु अपने अन्तिम कक्ष में अष्टक प्राप्त करने के लिए क्रिया करते हैं। यह आपस में इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी करने, उनको ग्रहण करने या उनका त्याग करने से होता है।
♦ परमाणु के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों के अष्टक बनाने के लिए जितनी संख्या में इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी या स्थानान्तरण होता है, वही उस तत्त्व की संयोजकता-शक्ति अर्थात् संयोजकता होती है। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन, लीथियम या सोडियम प्रत्येक के परमाणुओं के बाह्यतम कक्ष में एक-एक इलेक्ट्रॉन होता है। अतः यह एक इलेक्ट्रॉन का त्याग कर सकते हैं। इसलिए उनकी संयोजकता एक (1) कही जाती है।
♦ यदि किसी परमाणु के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या उसकी क्षमता के अनुसार लगभग पूरी है तो संयोजकता एक अन्य प्रकार से प्राप्त की जाती है। उदाहरण के लिए, क्लोरीन परमाणु के बाह्यतम कक्ष में सात (7) इलेक्ट्रॉन होते हैं और इसकी संयोजकता सात (7) हो सकती है किन्तु बाह्यतम कक्ष में अष्टक बनाने के लिए क्लोरीन के लिए 7 इलेक्ट्रॉनों का त्याग करने की अपेक्षा एक (1) इलेक्ट्रॉन प्राप्त करना अधिक आसान है। अतः इसकी संयोजकता, अष्टक (8) में से सात (7) घटाकर प्राप्त की जाती है और इस तरह क्लोरीन की संयोजकता एक (1) है।
परमाणु संख्या तथा द्रव्यमान संख्या
परमाणु संख्या किसी तत्त्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को परमाणु संख्या कहते हैं।
द्रव्यमान संख्या किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूटॉनों की संख्याओं का योग उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहलाती है अर्थात् द्रव्यमान संख्या = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या।
समस्थानिक
♦ एक ही तत्त्व के परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान लेकिन द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है, समस्थानिक कहलाते हैं।
♦ हाइड्रोजन परमाणु के तीन समस्थानिक प्रोटियम, ड्यूटीरियम और ट्राइटियम होते हैं।
♦ बहुत से तत्त्वों में समस्थानिक का मिश्रण भी होता है। किसी तत्त्व का प्रत्येक समस्थानिक शुद्ध पदार्थ होता है।
♦ समस्थानिकों के रासायनिक गुण सभान लेकिन भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं।
♦ प्रकृति में क्लोरीन दो समस्थानिक रूपों में पाया जाता है, जिनके द्रव्यमान 35 और 37 होते हैं और जो 3:1 के अनुपात में होते हैं।
समस्थानिकों के अनुप्रयोग
♦ यूरेनियम के एक समस्थानिक का उपयोग परमाणु भट्टी (atomic reactor) में ईंधन के रूप में होता है।
♦ कैन्सर के उपचार में कोबाल्ट के समस्थ निक का उपयोग होता है।
♦ घेंघा रोग के इलाज में आयोडीन के समस्थानिक का उपयोग होता है।
समभारिक
अलग-अलग परमाणु संख्या वाले तत्त्वों को जिनकी द्रव्यमान संख्या समान होती है, समभारिक कहा जाता है।
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