परमाणु एवं अणु Atoms and Molecules

परमाणु एवं अणु  Atoms and Molecules

 

पदार्थ की विभाज्यता
♦ पदार्थ की विभाज्यता के मत के बारे में भारत में बहुत पहले, लगभग 500 ईसा पूर्व विचार व्यक्त किया गया था।
♦ भारतीय दार्शनिक महर्षि कणाद ने प्रतिपादित किया था कि यदि हम द्रव्य (पदार्थ) को विभाजित करते जाएँ तो हमें छोटे-छोटे कण प्राप्त होते जाएँगे तथा अन्त में एक सीमा आएगी जब प्राप्त कण को पुनः विभाजित नहीं किया जा सकेगा अर्थात् वह सूक्ष्मतम कण अविभाज्य रहेगा। इस अविभाज्य सूक्ष्मतम कण को उन्होंने परमाणु कहा।
♦ एक अन्य भारतीय दार्शनिक पकुधा कात्यायाम ने इस मत को विस्तृत रूप से समझाया तथा कहा कि ये कण सामान्यतः संयुक्त रूप में पाए जाते हैं, जो हमें द्रव्यों के भिन्न-भिन्न रूपों को प्रदान करते हैं।
♦ यूनानी दार्शनिक डेमोक्रीटस और लक्रेसियस के विचार उपरोक्त भारतीय दार्शनिकों जैसे ही थे।
♦ पदार्थ की विभाज्यता सम्बन्धी विचारों की वैधता सिद्ध करने के लिए 18वीं शताब्दी तक कोई अधिक प्रयोगात्मक कार्य नहीं हुए थे। 18वीं शताब्दी के अन्त तक वैज्ञानिकों ने तत्वों एवं यौगिकों के बीच भेद को समझा तथा स्वाभाविक रूप से यह पता करने के इच्छुक हुए कि तत्त्व कैसे तथा क्यों संयोग करते हैं? जब तत्व परस्पर संयोग करते हैं, तब क्या होता है?
रासायनिक संयोजन के नियम
लेवोशिए एवं जोजफ एल प्राउस्ट ने बहुत अधिक प्रायोगिक कार्यों के पश्चात् रासायनिक संयोजन के दो नियम प्रतिपादित किए—द्रव्यमान संरक्षण का नियम एवं स्थिर अनुपात का नियम । द्रव्यमान संरक्षण का नियम इस नियम के अनुसार किसी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान का न तो सृजन किया जा सकता है और न ही विनाश । इस नियम के प्रतिपादक लेवोशिए थे।
स्थिर अनुपात का नियम इस नियम के अनुसार किसी भी यौगिक में तत्त्व सदैव एक निश्चित द्रव्यमानों के अनुपात में विद्यमान होते हैं। इस नियम के प्रतिपादक प्राउस्ट थे।
द्रव्यमान संरक्षण के नियम और स्थिर अनुपात के नियम के अतिरिक्त रासायनिक संयोग से सम्बन्धित एक और नियम का प्रतिपादन जॉन डाल्टन द्वारा किया गया था, जिसे गुणित अनुपात का नियम कहते हैं।
गुणित अनुपात का नियम इस नियम के अनुसार जब दो तत्त्व परस्पर संयोग कर दो या दो से अधिक यौगिक बनाते हैं तब उनमें से एक तत्त्व के विभिन्न भार जो दूसरे तत्त्व के एक निश्चित भार से संयोग करते हैं, परस्पर सरल अनुपात में होते हैं।
जॉन डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त डाल्टन ने द्रव्यों की प्रकृति के बारे में एक आधारभूत सिद्धान्त प्रस्तुत किया । डाल्टन ने द्रव्यों की विभाज्यता का विचार प्रदान किया जिसे उस समय तक दार्शनिकता माना जाता था। ग्रीक दार्शनिकों के द्वारा द्रव्यों के सूक्ष्मतम अविभाज्य कण, जिसे परमाणु नाम दिया था, उसे डाल्टन ने भी परमाणु नाम दिया। डाल्टन का यह सिद्धान्त रासायनिक संयोजन के नियमों पर आधारित था। डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त ने द्रव्यमान के संरक्षण के नियम एवं निश्चित अनुपात के नियम की युक्तिसंगत व्याख्या की।
डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त के अनुसार सभी द्रव्यं चाहे तत्त्व, यौगिक या मिश्रण हो, सूक्ष्म कणो से बने होते हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं। डाल्टन के सिद्धान्त की विवेचना निम्न प्रकार से कर सकते हैं
(i) सभी द्रव्य परमाणुओं से निर्मित होते हैं।
(ii) परमाणु अविभाज्य सूक्ष्मतम कण होते हैं जो रासायनिक अभिक्रिया में न तो सृजित होते हैं न ही उनका विनाश होता है।
(iii) दिए गए तत्त्व के सभी परमाणुओं का द्रव्यमान एवं रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं।
(iv) भिन्न-भिन्न तत्त्वों के परमाणुओं के द्रव्यमान एवं रासायनिक गुणधर्म भिन्न-भिन्न होते हैं।
(v) भिन्न-भिन्न तत्त्वों के परमाणु परस्पर छोटी पूर्ण संख्या के अनुपात में संयोग कर यौगिक निर्मित करते हैं।
(vi) किसी भी यौगिक में परमाणुओं की सापेक्ष संख्या एवं प्रकार निश्चित होते हैं।
परमाणु एवं अणु
♦ किसी तत्त्व का सूक्ष्मतम कण जो स्वतन्त्र अवस्था में नहीं पाया जाता, परमाणु कहलाता है।
♦ दो सदृश या असदृश तत्त्वों के परमाणु परस्पर संयोग कर अणु का निर्माण करते हैं।
♦ अणु स्वतन्त्र अवस्था में रह सकता है।
♦ परमाणु अत्यन्त छोटे होते हैं। परमाणु त्रिज्या को नैनोमीटर में मापा जाता है।
♦ परमाणु अणु एवं आयन बनाते हैं। ये अणु अथवा आयन अत्यधिक संख्या में पुंजित होकर वह द्रव्य बनाते हैं, जिसे हम देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं अथवा छू सकते हैं।
तत्त्वों के अणु
किसी तत्त्व के अणु एक ही प्रकार के परमाणुओं द्वारा निर्मित होते हैं। उदाहरणस्वरूप—ऑक्सीजन अणु दो ऑक्सीजन परमाणुओं से मिलकर बनता है।
यौगिकों के अणु
भिन्न-भिन्न तत्त्वों के परमाणु एक निश्चित अनुपात में परस्पर जुड़कर यौगिकों के अणु निर्मित करते हैं। जैसे— जल में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के परमाणु क्रमश: 1: 8 के अनुपात में जुड़े रहते हैं।
आयन
♦ धातु एवं अधातु युक्त यौगिक आवेशित कणों से बने होते हैं। इन आवेशित कणों को आयन कहते हैं।
♦ आयन आवेशित कण होते हैं तथा इन पर ऋण अथवा धन आवेश होता है।
♦ ऋण आवेशित कण को ऋणायन (anion) तथा धन आवेशित कण को धनायन (cation) कहते हैं। उदाहरणस्वरूप सोडियम क्लोराइड में सोडियम धनायन के रूप में एवं क्लोरीन ऋणायन के रूप में विद्यमान रहते हैं।
विभिन्न तत्त्वों के परमाणुओं के आधुनिक प्रतीक
♦ डाल्टन ऐसे प्रथम वैज्ञानिक थे, जिन्होंने तत्त्वों के प्रतीकों का प्रयोग अत्यन्त विशिष्ट अर्थ में किया। जब उन्होंने किसी तत्त्व के प्रतीक का प्रयोग किया, तो यह प्रतीक उस तत्त्व की एक निश्चित मात्रा की ओर इंगित करता था अर्थात् यह प्रतीक तत्त्व के एक परमाणु को प्रदर्शित करता था।
♦ बर्जिलियस ने तत्त्वों के ऐसे प्रतीकों का सुझाव दिया, जो उन तत्त्वों के नामों के एक या दो अक्षरों से प्रदर्शित होता था।
♦ प्रारम्भ में तत्त्वों के नामों की व्युत्पत्ति उन स्थानों के नामों से की गई, जहाँ वे सर्वप्रथम पाए गए थे। उदाहरणस्वरूप, कॉपर (copper) का नाम साइप्रस (cyprus) से व्युत्पन्न हुआ।
♦ कुछ तत्त्वों के नामों को विशिष्ट रंगों से लिया गया। उदाहरणस्वरूप, स्वर्ण (gold) का नाम अंग्रेजी के उस शब्द से लिया गया, जिसका अर्थ होता है पीला।
♦ आजकल इण्टरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एण्ड एप्लाइड केमिस्ट्री (IUPAC) तत्त्वों के नामों को स्वीकृति प्रदान करती है।
♦ अधिकतर तत्त्वों के प्रतीक उन तत्त्वों के अंग्रेजी नामों के एक या दो अक्षरों से बने होते हैं।
♦ किसी प्रतीक के पहले अक्षर को सदैव बड़े अक्षर (capital letter) में तथा दूसरे अक्षर को छोटे अक्षर (small letter) में लिखा जाता है।
उदाहरणार्थ
(i) हाइड्रोजन, H
(ii) एल्युमीनियम Al न कि AL
(iii) कोबाल्ट Co न कि CO.
परमाणु द्रव्यमान
♦ डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त की सबसे विशिष्ट संकल्पना परमाणु द्रव्यमान की थी। उनके अनुसार प्रत्येक तत्त्व का एक अभिलाक्षणिक परमाणु द्रव्यमान होता है ।
♦ प्रारम्भ में परमाणु द्रव्यमान को amu द्वारा संक्षेप में लिखते थे, लेकिन आजकल IUPAC के नवीनतम अनुमोदन द्वारा इसको ‘u’ – यूनीफाइड द्रव्यमान द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
♦ किसी तत्त्व के सापेक्षिक परमाणु द्रव्यमान को उसके परमाणुओं के औसत द्रव्यमान का कार्बन – 12 परमाणु के द्रव्यमान के 1 / 12वें – भाग के अनुपात द्वारा परिभाषित किया जाता है।
                                                      कुछ तत्त्वों के परमाणु द्रव्यमान
रासायनिक सूत्र लिखना
♦ किसी यौगिक का रासायनिक सूत्र उसके संघटक का प्रतीकात्मक निरूपण होता है। भिन्न-भिन्न यौगिकों के रासायनिक सूत्र सरलतापूर्वक लिखे जा सकते हैं। इसके लिए तत्त्वों के प्रतीकों एवं उनकी संयोजन क्षमताएँ ज्ञात होनी चाहिए।
♦ किसी तत्त्व की संयोजन शक्ति (अथवा क्षमता) उस तत्त्व की संयोजकता कहलाती है।
♦ किसी एक तत्त्व के परमाणु दूसरे तत्त्व के परमाणुओं के साथ किस प्रकार से संयुक्त होकर एक रासायनिक यौगिक का निर्माण करते हैं? इसको ज्ञात करने के लिए संयोजकता का उपयोग किया जाता है।
♦ रासायनिक सूत्र लिखते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए
♦ आयन की संयोजकता अथवा आवेश सन्तुलित होना चाहिए।
♦ जब एक यौगिक किसी धातु एवं अधातु के संयोग से निर्मित होता है तो धातु के नाम अथवा उसके प्रतीक को रासायनिक सूत्र में पहले लिखते हैं। उदाहरणार्थ कैल्शियम ऑक्साइड (CaO), सोडियम क्लोराइड (NaCl), आयरन सल्फाइड (FeS), कॉपर ऑक्साइड (CuO) इत्यादि, जहाँ पर ऑक्सीजन, क्लोरीन, सल्फर अधातुएँ हैं तथा उन्हें दाईं तरफ लिखतें हैं, जबकि कैल्शियम, सोडियम, आयरन एवं कॉपर धातुएँ हैं तथा उन्हें बाईं तरफ लिखते हैं।
♦ बहुपरमाणुक आयनों द्वारा निर्मित यौगिकों में आयन को पहले कोष्ठक में रखते हैं। तत्पश्चात् अनुपातों को दर्शाने वाली संख्या को लिखते हैं। यदि बहुपरमाणुक आयन की संख्या 1 हो तो कोष्ठक की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के लिए NaOH |
सरल यौगिकों के सूत्र
♦ दो भिन्न-भिन्न तत्त्वों से निर्मित सरलतम यौगिकों को द्विअंगी यौगिक कहते हैं।
♦ आण्विक यौगिकों के रासायनिक सूत्र लिखते समय हम पहले संघटक तत्त्वों के प्रतीक लिखकर उनकी संयोजकताएँ लिखते हैं जैसा कि निम्न उदाहरणों में दर्शाया गया है। तत्पश्चात् संयोजित परमाणुओं की संयोजकताओं को आपस में बदलकर अणु सूत्र लिखते हैं।
उदाहरण
हाइड्रोजन क्लोराइड का सूत्र हाइड्रोजन की संयोजकता 1 है, इसी तरह क्लोराइड की संयोजकता भी एक है। यदि हम इन दोनों की संयोजकताओं को आपस में बदलकर लिखें तो हमें हाइड्रोजन क्लोराइड का रासायनिक सूत्र HCI प्राप्त होगा।
हाइड्रोजन सल्फाइड के सूत्र हाइड्रोजन की संयोजकता 1 है तथा सल्फाइड की संयोजकता 2 है, इन दोनों को आपस में बदलकर लिखने पर हमें हाइड्रोजन सल्फाइड का रासायनिक सूत्र H2S प्राप्त होगा।
कार्बन टेट्राक्लोराइड का सूत्र कार्बन की संयोजकता 4 है तथा क्लोरीन की संयोजकता 1 है, इन दोनों को आपस में बदलकर लिखने पर हमें कार्बन टेट्राक्लोराइड रासायनिक सूत्र CCl4 प्राप्त होगा।
मैग्नीशियम क्लोराइड का सूत्र ज्ञात करने के लिए पहले हम धनायन का संकेत (Mg) लिखते हैं इसके पश्चात् ऋणायन क्लोराइड CCI¯ लिखते हैं। तत्पश्चात् इनके आवेशों को आपस में बदलकर हम सूत्र प्राप्त करते हैं। मैग्नीशियम क्लोराइड का सूत्र मैग्नीशियम का आवेश +2 तथा क्लोरीन का आवेश -1 है, इन्हें आपस में बदलकर हमें यह सूत्र MgCl2 प्राप्त होगा।
बहुपरमाणुक आयनों वाले यौगिक
सोडियम नाइट्रेट का सूत्र सोडियम (Na) का आवेश +1 तथा नाइट्रेट (  NO3 ) का आवेश -1 है, इन्हें आपस में बदलकर लिखने पर हमें इसका NaNO 3 सूत्र प्राप्त होगा।
आण्विक द्रव्यमान एवं मोल संकल्पना
आण्विक द्रव्यमान
किसी पदार्थ का आण्विक द्रव्यमान उसके सभी संघटक परमाणुओं के द्रव्यमानों का योग होता है । इस प्रकार यह अणु का वह सापेक्ष द्रव्यमान है जिसे परमाणु द्रव्यमान इकाई (u) द्वारा व्यक्त किया जाता है।
उदाहरण जल का सापेक्ष आण्विक द्रव्यमान=हाइड्रोजन का परमाणु द्रव्यमान + ऑक्सीजन का परमाणु द्रव्यमान अर्थात् 2+16=18 u l
सूत्र इकाई द्रव्यमान
किसी पदार्थ का सूत्र इकाई द्रव्यमान उसके सभी संघटक परमाणुओं के परमाणु द्रव्यमानों का योग होता है। सूत्र द्रव्यमान का परिकलन उसी प्रकार से किया जाता है जिस प्रकार से आण्विक द्रव्यमान का परिकलन किया जाता है। अन्तर केवल इतना होता है कि यहाँ पर उस पदार्थ के लिए सूत्र इकाई का उपयोग होता है जिसके संघटक आयन होते हैं। उदाहरणार्थ सोडियम क्लोराइड (इकाई सूत्र NaCl) । इसके इकाई सूत्र परिकलन निम्न प्रकार से करते हैं द्रव्यमान का 1x23u + 1 x 35.5u = 58.5u
मोल संकल्पना
♦ किसी पदार्थ के एक मोल में कणों (परमाणु, अणु अथवा आयन) की संख्या निश्चित होती है जिसका मान 6.022 x 1023 होता है । यह मान प्रायोगिक विधि से प्राप्त किया गया है। इसको आवोगाद्रो स्थिरांक अथवा आवोगाद्रो संख्या कहते हैं जिसको N से निरूपित करते हैं। यह नाम इतालवी वैज्ञानिक ऐमीडीओ आवोगाद्रो (Amedeo Avogadro) के सम्मान में रखा गया है।
♦ 1 मोल (किसी पदार्थ का ) =6.022 x 1023
♦ 6.022 x 1023 आवोगाद्रो स्थिरांक है जोकि 12 ग्राम में विद्यमान कार्बन – 12 के परमाणुओं की संख्या है।
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