नियन्त्रण एवं समन्वय Control and Coordination

नियन्त्रण एवं समन्वय   Control and Coordination

 

सजीवों में अपने अनुरक्षण के लिए केवल पोषण, श्वसन एवं उत्सर्जन जैसे प्रक्रम ही नहीं होते, बल्कि इसके अतिरिक्त विभिन्न क्रियाओं जैसे वृद्धि, पाचन, इत्यादि को नियन्त्रित करने जैसे प्रक्रम भी शरीर के विशिष्ट अंगों द्वारा किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, किसी खतरे का आभास होते ही व्यक्ति ही नहीं जीव-जन्तु भी पीछे की ओर हटते हैं। जीव-जन्तुओं में उनके विभिन्न क्रिया-कलापों के नियन्त्रण एवं समन्वय के लिए जिस तन्त्र का प्रयोग होता है, उसे तन्त्रिका तन्त्र कहा जाता है।
जन्तु – तन्त्रिका तन्त्र
♦  जन्तुओं में नियन्त्रण तथा समन्वय तन्त्रिका तथा पेशी ऊतक द्वारा किया जाता है।
♦ आकस्मिक परिस्थिति में गरम पदार्थ को छूना हमारे लिए खतरनाक हो सकता है। ऐसी परिस्थितियों को पहचान कर इसके अनुरूप अनुक्रिया करने के लिए तथा हमारे पर्यावरण से सभी सूचनाओं का पता लगाने के लिए कुछ तन्त्रिका कोशिकाओं में विशिष्टीकृत सिरे होते हैं। ये ग्राही प्राय: हमारी ज्ञानेंद्रियों में स्थित होते हैं, जैसे—आन्तरिक कर्ण, नाक, जिह्वा आदि। रस संवेदी ग्राही स्वाद का पता लगाते हैं जबकि घ्राणग्राही गन्ध का पता लगाते हैं।
♦ तन्त्रिका तन्त्र के अन्तर्गत, तन्त्रिका कोशिकाएँ सारे शरीर में फैली रहती हैं। ये वातावरणीय परिवर्तनों की सूचनाएँ संवेदी अंगों से प्राप्त करके विद्युत आवेगों के रूप में इनका द्रुत गति से प्रसारण करती हैं और शरीर के विभिन्न भागों के बीच कार्यात्मक समन्वय स्थापित करती हैं।
♦ मनुष्य का तन्त्रिका तन्त्र तीन भागों में विभक्त है
(i) केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र
(ii) परिधीय तन्त्रिका तन्त्र
(iii) स्वायत्त या स्वाधीन तन्त्रिका तन्त्र
♦ केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र तन्त्रिका तन्त्र का वह भाग, जो सम्पूर्ण शरीर तथा स्वयं तन्त्रिका तन्त्र पर नियन्त्रण रखता है, केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र कहलाता है। मनुष्य का केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र दो भागों से मिलकर बना होता है— मस्तिष्क और मेरुरज्जू ।
♦ मस्तिष्क मनुष्य का मस्तिष्क अस्थियों के खोल क्रेनियम में बन्द रहता है, जो इसे बाहरी आघातों से बचाता है। सेरीब्रम, थैलमस, हाइपोथैलमस, मेड्यूला ऑब्लोगेटा, आदि मानव मस्तिष्क के भाग हैं। सेरीब्रम मानव मस्तिष्क का सबसे विकसित भाग है। यह बुद्धिमता, स्मृति, इच्छा-शक्ति, चिन्तन इत्यादि का केन्द्र है।
♦ परिधीय तन्त्रिका तन्त्र परिधीय तन्त्रिका तन्त्र मस्तिष्क एवं मेरुरज्जू से निकलने वाली तन्त्रिकाओं का बना होता है। इन्हें कपाल एवं मेरुरज्जू तन्त्रिकाएँ कहते हैं।
♦ स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र कुछ मस्तिष्क एवं कुछ मेरुरज्जू तन्त्रिकाओं का बना होता है। यह शरीर के सभी आन्तरिक अंगों व रुधिर-वाहिनियों को तन्त्रिकाओं की आपूर्ति करता है। स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र की अवधारणा को सबसे पहले लैंगले ने सन् 1921 में प्रस्तुत किया। इसके दो भाग होते – अनुकम्पी तत्रिका तन्त्र एवं परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र।
पादपों में समन्वय
♦ पादपों में न तो तन्त्रिका तन्त्र होता है और न ही पेशियाँ ।
♦ पादप दो प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं- एक वृद्धि पर आश्रित होती है और दूसरी इससे मुक्त।
♦ पादप सूचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संचारित करने के लिए विद्युत-रसायन साधन का उपयोग करते हैं साथ ही जल की मात्रा में परिवर्तन करके वे अपनी आकृति में परिवर्तन करते हैं, जैसा कि छुई-मुई के पौधे को छूने पर होता है।
♦ पादप प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं। जिस ओर से उन्हें प्रकाश मिलता है, वे उस और वृद्धि करते हैं।
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ और हॉर्मोन
♦ अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में नलिकाएँ नहीं होती हैं अतः वे नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ कहलाती हैं। इनके स्राव हॉर्मोन कहलाते है। हॉर्मोन की चिरसम्मत परिभाषा के अनुसार, ‘हॉर्मोन अन्त:स्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित रुधिर में मुक्त किए जाने वाले रसायन हैं, जो दूरस्थ लक्ष्य अंग तक पहुँचाए जाते हैं। परन्तु इस परिभाषा को अब रूपान्तरित किया गया है जिसके अनुसार, ‘हॉर्मोन सूक्ष्म मात्रा में उत्पन्न होने वाले अपोषक रसायन है, जो अन्तरकोशिकीय सन्देशवाहक के रूप में कार्य करते हैं इस नई परिभाषा के अन्तर्गत सुनियोजित अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से स्रावित हॉमोन के अतिरिक्त कई नये अणु भी सम्मिलित हो जाते हैं।
मानव अन्तःस्रावी तन्त्र
♦ अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ और शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हॉर्मोन स्रवित करने वाले ऊतक/ कोशिकाएँ मिलकर अन्तःस्रावी तन्त्र का निर्माण करते हैं। पीयूष ग्रन्थि, पिनियल ग्रन्थि, थायरॉइड, एड्रीनल, अग्न्याश्य, पैराथायरॉइड, थाइमस और जनन ग्रन्थियाँ (नर में वृषण और मादा में अण्डाशय) हमारे शरीर के सुनियोजित अन्तःस्रावी अंग हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य अंग जैसे कि जठर-आन्त्रीय मार्ग, यकृत, वृक्क, हृदय आदि भी हॉर्मोन का उत्पादन करते हैं।
हाइपोथैलेमस
♦ हाइपोथैलेमस, डाइनसिफेलॉन (अग्रमस्तिष्क पश्च) का आधार भाग है और यह शरीर के विविध प्रकार के कार्यों का नियन्त्रण करता है। इसमें हॉर्मोन का उत्पादन करने वाली कई तन्त्रिका स्रावी कोशिकाएँ होती हैं, जिन्हें न्यूक्ली कहते हैं। ये हॉर्मोन पीयूष ग्रन्थि से स्रावित होने वाले हॉर्मोन के संश्लेषण और स्राव का नियन्त्रण करते हैं।
♦ हाइपोथैलेमस से स्रावित होने वाले हॉर्मोन दो प्रकार के होते हैं— मोचक हॉर्मोन (जो पीयूष ग्रन्थि से हॉर्मोन के स्राव को प्रेरित करते हैं) और निरोधी हॉर्मोन (जो पीयूष ग्रन्थि से हॉर्मोन को रोकते हैं)। उदाहरणार्थ हाइपोथैलेमस से निकलने वाला गोनेडोट्रॉफिन मुक्तकारी हॉर्मोन के स्राव पीयूष ग्रन्थि में गोनेडोट्रॉफिन हॉर्मोन के संश्लेषण एवं स्राव को प्रेरित करता है। वहीं दूसरी ओर हाइपोथैलेमस से ही स्रावित सोमेटोस्टेटिन हॉर्मोन, पीयूष गन्थि से वृद्धि हॉर्मोन के स्राव का रोधक है। ये हॉर्मोन हाइपोथैलेमस की तन्त्रिका कोशिका से प्रारम्भ होकर, तन्त्रिकाक्ष होते हुए तन्त्रिका सिरों पर मुक्त कर दिए जाते हैं। ये हॉर्मोन निवाहिका परिवहन – तन्त्र द्वारा पीयूष ग्रन्थि तक पहुँचते हैं और अग्र पीयूष ग्रन्थि के कार्यों का नियमन करते हैं। पश्च पीयूष ग्रन्थि का तन्त्रिकीय नियमन सीधे हाइपोथैलेमस के अधीन होता है।
पीयूष ग्रन्थि
♦ पीयूष ग्रन्थि एक सेला टर्सिका नामक अस्थिल गुहा में स्थित होती है और एक वृन्त द्वारा हाइपोथैलेमस से जुड़ी होती है।
♦ आन्तरिकी के अनुसार, पीयूष ग्रन्थि एडिनोहाइफोईसिस और न्यूरोहाइफोईसिस नामक दो भागों में विभाजित होती है।
♦  एडिनोहाइफोइसिस दो भागों का बना होता है- पार्स डिस्टेलिस और पार्स इण्टरमीडिया। पार्स डिस्टेलिस को साधारणतया अग्र पीयूष ग्रन्थि कहते हैं, जिससे वृद्धि हॉमोन या सीमेटो ट्रॉपिन (GH). प्रोलैक्टिन (PRL) या मेमोट्रॉपिन, थायरॉइड प्रेरक हॉर्मोन (TSH) एड्रिनोकार्टीकोट्रॉपिक हॉर्मोन (ACTH) या कॉर्टीकोटॉपिन, ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH) और पुटिका प्रेरक हॉर्मोन का स्राव करता है।
♦ पार्स इण्टरमीडिया एक मात्र हॉर्मोन लेनोसाइट प्रेरकहॉर्मोन (MSH) या मेलेनोट्रॉपिन का स्राव करता है।
♦  पश्च पीयूष ग्रन्थि, यह हाइपोथैलेमस द्वारा उत्पादित किए जाने वाले हॉर्मोन ऑक्सीटॉसिन और वेसोप्रेसिन का संग्रह और स्त्राव करती है। ये हॉर्मोन वास्तव में हाइपोथैलेमस द्वारा संश्लेषित होते हैं और तन्त्रिकाक्ष होते हुए पश्च पीयूष ग्रन्थि में पहुँचा दिए जाते हैं।
♦ वृद्धिकारी हॉर्मोन (GH) के अति स्राव से शरीर की असामान्य वृद्धि होती है। जिसे जाइगेटिज्म (अतिकायकता) कहते हैं और इसके अल्प स्राव से वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है, जिसे पिटयूटरी बौनापन (ड्वपफज्म) कहते हैं।
♦ प्रोलैक्टिन हॉर्मोन स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि और उनमे दुग्ध निर्माण का नियन्त्रण करता है।
♦ थायरॉइड प्रेरक हॉर्मोन थायरॉइड ग्रन्थियों पर कार्य कर उनसे थायरॉइड हॉर्मोन के संश्लेषण और स्राव को प्रेरित करता है ।
♦ एड्रिनोकार्टीकोट्रॉपिक हॉर्मोन (ACTH) एड्रीनल वल्कुट पर कार्य करता है। इस ग्लूकोकार्टिकाइड्स नामक, स्टीरॉइड हॉर्मोन के संश्लेषण और स्रावण के लिए प्रेरित करता है । ल्यूटिनाइजिंग और पुटिका प्रेरक हॉर्मोन जननांगों की क्रिया को प्रेरित करते हैं और लिंगी हॉर्मोन का उत्पादन करते हैं। अतः गोनेडोट्रॉपिन कहलाते हैं।
♦ नरों में ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन, एण्ड्रोजन नामक हॉर्मोन के संश्लेषण और स्राव के लिए प्रेरित करता है। इसी तरह नरों मे पुटिका प्रेरक हॉर्मोन और एण्ड्रोजन शुक्रजनन को नियन्त्रित करता है।
♦ मादाओं में ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन पूर्ण विकसित पुटिकाओं से अण्डोत्सर्ग को प्रेरित करता है और ग्राफियन पुटिका के बचे भाग से कॉपर्स ल्यूटियम बनाता है।
पिनियल ग्रन्थि
♦ पिनियल ग्रन्थि अग्रमस्तिष्क के पृष्ठीय (ऊपरी ) भाग में स्थित होती है।
♦ पिनियल ग्रन्थि मेलेटॉनिन हॉर्मोन स्त्रावित करती है। मेलेटॉनिन हमारे शरीर की दैनिक लय ( 24 घण्टे) के नियमन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। उदाहरण के लिए, यह सोने-जागने के चक्र एवं शरीर के तापक्रम को निर्यात्रत करता है। इन सबके अतिरिक्त मेलेटॉनिन उपापचय, वर्णकता, मासिक चक्र प्रतिरक्षा क्षमता को भी प्रभावित करता है।
थायरॉइड ग्रन्थि
♦ थायरॉइड ग्रन्थि श्वास नली के दोनों ओर स्थित दो पालियों से बनी होती है।
♦ दोनों पालियाँ संयोजी ऊतक के पतली पल्लीनुमा इस्थमस से जुड़ी होती है। प्रत्येक थायरॉइड ग्रन्थि पुटकों और भरण ऊतकों की बनी होती है। प्रत्येक थायरॉइड पुटक एक गुहा को घेरे पुटक कोशिकाओं से निर्मित होता है। ये पुटक कोशिकाएँ दो हॉर्मोन, टेट्राआयडोथायरॉनीन्स (T4) अथवा थायरॉक्सिन तथा ट्राई आइडोथायरॉनीन (T3) का संश्लेषण करती हैं। थायरॉइड हॉर्मोन के सामान्य दर से संश्लेषण के लिए आयोडीन आवश्यक है। हमारे भोजन में आयोडीन की कमी से अवथायरॉइडता एवं थायरॉइड ग्रन्थि की वृद्धि हो जाती है, जिसे साधारणतया गलगण्ड कहते हैं।
♦ गर्भावस्था के समय अवथायरॉइडता के कारण गर्भ में विकसित हो रहे बालक की वृद्धि विकृत हो जाती है। इससे बच्चे की अवरोधित वृद्धि (क्रिटेनिज्म) या वामनता तथा मन्दबुद्धि, त्वचा असामान्यत, मूक बधिरता आदि हो जाती हैं। वयस्क स्त्रियों में अवथायरॉडता मासिक चक्र को अनियमित कर देता है।
♦  थायरॉइड ग्रन्थि के कैन्सर अथवा इसमें गाँठों की वृद्धि से थायरॉइड हॉर्मोन के संश्लेषण की दर असामान्य रूप से अधिक हो जाती है। इस स्थिति को थायरॉइड अतिक्रियता कहते हैं, जो शरीर की कार्यिकी पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
♦ थायरॉइड हॉर्मोन आधरीय उपापचयी दर के नियमन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। ये हॉर्मोन लाल रुधिर कणिकाओं के निर्माण की प्रक्रिया में भी सहायता करते हैं। थायरॉइड हॉर्मोन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के उपापचय को भी नियन्त्रित करते हैं। जल और विद्युत अपघट्यों का नियमन भी थायरॉइड हॉर्मोन प्रभावित करते हैं। थायरॉइड ग्रन्थि से एक प्रोटीन हॉर्मोन, थाइरोकैल्सिटोनिन (TCT) का भी स्राव होता है, जो रुधिर में कैल्शियम स्तर को नियन्त्रण करता है।
थाइमस ग्रन्थि
♦ थाइमस हृदय तथा महाधमनी के ऊपरी भाग में स्थित ग्रन्थि एक पालीयुक्त रचना है। थाइमस ग्रन्थि प्रतिरक्षा तन्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह ग्रन्थि थाइमोसिन नामक पेप्टाइड हॉर्मोन का स्राव करती है।
अधिवृक्क ग्रन्थि
♦ हमारे शरीर में प्रत्येक वृक्क के अग्र भाग में स्थित एक जोड़ी अधिवृक्क ग्रन्थियाँ होती हैं। ग्रन्थियाँ दो प्रकार के ऊतकों से निर्मित होती हैं।
♦ ग्रन्थि के बीच में स्थित ऊतक अधिवृक्क मध्यांश और बाहरी ओर स्थित ऊतक अधिवृक्क वल्कुट कहलाता हैं। अधिवृक्क मध्यांश दो प्रकार के हॉर्मोन का स्राव करता है। जिन्हें एड्रिनेलीन या एपिनेलीन और नॉर-एड्रिनेलीन या नॉर-एपिनेलीन कहते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप में कैटेकॉलमीनस कहते हैं।
♦ एड्रिनेलीन और नॉर एड्रिनेलीन किसी भी प्रकार के दबाव या आपातकालीन स्थिति में अधिकता में तेजी से स्रावित होते हैं, इसी कारण ये आपातकालीन हॉर्मोन या युद्ध हॉर्मोन या फ्रलाइट हॉर्मोन कहलाते हैं।
अग्न्याशय
♦ अग्न्याशय एक संयुक्त ग्रन्थि है, जो अन्तःस्रावी और बहिःस्रावी दोनों ही रूप में कार्य करती है ।
♦  अन्तःस्रावी अग्न्याशय ‘लैंगरहैंस द्वीपों’ से निर्मित होता है।
♦ साधारण मनुष्य के अग्न्याशय में लगभग 10 से 20 लाख लैंगर स द्वीप होते हैं, जो अग्न्याशयी ऊतकों का 1 से 2% होता है।
♦ प्रत्येक लैंगरहैंस द्वीप में मुख्य रूप से दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें α और β- कोशिकाएँ कहते हैं। α – कोशिकाएँ ग्लूकोगॉन का तथा β- कोशिकाएँ इन्सुलिन हॉर्मोन का स्राव करती हैं।
वृषण
♦ नर में उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में एक जोड़ी वृषण स्थित होते हैं। वृषण प्राथमिक लैंगिक अंग के साथ ही अन्तःस्रावी ग्रन्थि के रूप में भी कार्य करता है। वृषण शुक्रजनक नलिका और भरण या अन्तराली ऊतक का बना होता है। लेडिंग कोशिकाएँ या अन्तराली कोशिकाएँ अन्तरनलिकीय स्थानों में उपस्थित होती हैं और एण्ड्रोजन या नर हॉर्मोन तथा टेस्टोस्टेरॉन नामक दो प्रमुख हॉर्मोन का स्राव करती हैं।
अण्डाशय
♦  मादाओं के उदर में अण्डाशय का एक युग्म होता है। अण्डाशय एक प्राथमिक मादा लैंगिक अंग है, जो प्रत्येक मासिक चक्र में एक अण्डे को उत्पादित करते हैं। इसके अतिरिक्त अण्डाशय दो प्रकार के स्टीरॉइड हॉर्मोन समूहों का भी उत्पादन करते हैं, जिन्हें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन कहते हैं।
♦ अण्डाशय अण्डपुटक और भरण ऊतक का बना होता है। एस्ट्रोजन का संश्लेषण एवं स्राव प्रमुख रूप से परिवर्धित हो रहे अण्डाशयी पुटकों द्वारा होता है। अण्डोत्सर्ग के पश्चात् विखण्डित पुटिका, कॉर्पस ल्यूटियम में बदल जाता है, जो कि मुख्यतया प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन का स्राव करता है ।
♦ एस्ट्रोजन स्त्रियों में द्वितीयक लैंगिक अंगों की वृद्धि तथा क्रियाओं का प्रेरण, अण्डाशयी पुटिकाओं का परिवर्धन द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का प्रकटन, स्तन ग्रन्थियों का परिवर्धन इत्यादि अनेक क्रियाएँ करते हैं।
♦ एस्ट्रोजन स्त्रियों के लैगिंक व्यवहार का नियामक भी है।
♦ प्रोजेस्टेरॉन प्रसवता में सहायक होते हैं। प्रोजेस्टेरॉन दुग्ध ग्रन्थियों पर भी कार्य करके दुग्ध संग्रह कूपिकाओं के निर्माण और दुग्ध के स्राव में सहायता करते हैं।
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