नाजीवाद एवं हिटलर का उदय Rise of Nazism and Hitler
नाजीवाद एवं हिटलर का उदय Rise of Nazism and Hitler
वाइमर गणराज्य का जन्म
♦ बीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जर्मनी एक ताकतवर साम्राज्य था। उसने ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ मिलकर मित्र राष्ट्रों (इंग्लैण्ड, फ्रांस और रूस) के खिलाफ पहला विश्व युद्ध (1914-1918) लड़ा था।
♦ फ्रांस और बेल्जियम पर कब्जा करके जर्मनी ने शुरुआत में सफलताएँ हासिल कीं लेकिन सन् 1917 में जब अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों में शामिल हो गया तो इस खेमे को काफी ताकत मिली और आखिरकार नवम्बर, 1918 में उन्होंने केन्द्रीय शक्तियों को हराने के बाद जर्मनी को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
♦ साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय और सम्राट के पद त्याग ने वहाँ की संसदीय पार्टियों को जर्मन राजनीतिक व्यवस्था को एक नये साँचे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया। इसी सिलसिले में वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई और संघीय आधार पर एक लोक तान्त्रिक संविधान पारित किया गया।
♦ नई व्यवस्था में जर्मन संसद यानी राइखस्टाग के लिए जन-प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा। प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए औरतों सहित सभी वयस्क नागरिकों को समान और सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान किया गया। लेकिन यह नया गणराज्य खुद जर्मनी के ही बहुत सारे लोगों को रास नहीं आ रहा था। इसकी एक वजह तो यही थी कि पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद विजयी देशों ने उस पर बहुत कठोर शर्तें थोप दी थीं।
युद्ध का असर
♦ द्वितीय विश्व युद्ध ने पूरे महाद्वीप को मनोवैज्ञानिक और आर्थिक, दोनों ही स्तरों पर तोड़ कर रख दिया। यूरोप पहले कर्ज देने वालों का महाद्वीप कहलाता था जो युद्ध खत्म होते-होते कर्जदारों का महाद्वीप बन गया। विडम्बना यह थी कि पुराने साम्राज्य द्वारा किए गए अपराधों का हर्जाना नवजात वाइम: गणराज्य से वसूल किया जा रहा था। इस गणराज्य को युद्ध में पराजय के अपराधबांध और राष्ट्रीय अपमान का बोझ तो ढोना ही पड़ा, हर्जाना चुकाने को वजह से आर्थिक स्तर पर भी वह अभंग हो चुका था।
♦ वाइमर गणराज्य के हिमायतियों में मुख्य रूप से समाजवादी, कैथोलिक और डेमोक्रैट खेमे के लोग थे । रूढ़िवादी / पुरातनपंथी राष्ट्रवादी मिश्रकों की आड़ में उन्हें तरह-तरह के हमलों का निशाना बनाया जाने लगा। ‘नवम्बर के अपराधी’ कहकर उनका खुलेआम मजाक उड़ाया गया। इस मनोदशा का तीस के दशक के शुरुआती राजनीतिक घटनाक्रम पर गहरा असर पड़ा।
♦ पहले महायुद्ध ने यूरोपीय समाज और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी गहरी छाप छोड़ दी थी। सिपाहियों को आम नागरिकों के मुकाबले ज्यादा सम्मान दिया जाने लगा।
♦ राजनेता और प्रचारक इस बात पर जोर देने लगे कि पुरुषों को आक्रामक, ताकतवर और मर्दाना गुणो वाला होना चाहिए।
♦ मीडिया में खन्दकों की जिन्दगी का महिमा मण्डन किया जा रहा था लेकिन सच्चाई यह थी कि सिपाही इन खन्दकों में बड़ी दयनीय जिन्दगी जी रहे थे। वे लाशों को खाने वाले चूहों से घिरे रहते थे। वे जहरीली गैस और दुश्मनों की गोलाधारी का बहादुरी से सामना करते हुए भी अपने साथियों को पल-पल मरते देखते थे।
राजनीतिक रेडिकलवाद (आमूल परिवर्तनवाद) और आर्थिक संकट
♦ मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय ( टमतेंपस समे) में हुई शान्ति सन्धि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी । इस सन्धि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश, तकरीबन 10% आबादी, 13% भू-भाग, 75% लौह भण्डार और 26% कोयला भण्डार फ्रांस, पोलैण्ड, डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े।
♦ जर्मनी की रही-सही ताकत खत्म करने के लिए मित्र राष्ट्रों ने उसकी सेना भी भंग कर दी। युद्ध अपराधबोध अनुच्छेद (War Guilt Clause) के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके बदले में उस पर छ: अरब पौण्ड का जुर्माना लगाया गया।
♦ खनिज संसाधनों वाले राईनलैण्ड पर भी बीस के दशक में ज्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही कब्जा रहा । बहुत सारे जर्मनों ने न केवल इस हार के लिए बल्कि वर्साय में हुए इस अपमान के लिए भी वाइमर गणराज्य को ही जिम्मेदार ठहराया।
♦ रेडिकल ग्रुप की विद्रोही गतिविधियों के बाद आखिरकार सन् 1923 में जर्मनी ने कर्ज और हर्जाना चुकाने से इनकार कर दिया। इसके जवाब में फ्रांसीसियों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्जा कर लिया। यह जर्मनी के विशाल कोयला भण्डारों वाला इलाका था।
♦ जर्मनी ने फ्रांस के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध के रूप में बड़े पैमाने पर कागजी मुद्रा छापना शुरू कर दिया। जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी कि उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेजी से गिरने लगा। अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 353000 मार्क, अगस्त में 4621000 मार्क तथा दिसम्बर में 98860000 मार्क हो गई। इस तरह एक डॉलर में खरबों मार्क मिलने लगे। जैसे-जैसे मार्क की कीमत गिरती गई, जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगीं।
♦ जर्मनी को इस संकट से निकालने के लिए अमेरिकी सरकार ने हस्तक्षेप किया। इसके लिए अमेरिका ने डॉव्स योजना बनाई। इस योजना में जर्मनी के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए हर्जाने की शर्तों को दोबारा तय किया गया।
मन्दी के साल
♦ सन् 1924 से सन् 1928 तक जर्मनी में कुछ स्थिरता रही लेकिन यह स्थिरता मानो रेत के ढेर पर खड़ी थीं। जर्मन निवेश और औद्योगिक गतिविधियों में सुधार मुख्यतः अमेरिका से लिए गए अल्पकालिक कर्जों पर आश्रित था।
♦ जब सन् 1929 में वॉल स्ट्रीट एक्सचेन्ज (शेयर बाजार) धराशायी हो गया तो जर्मनी को मिल रही यह मदद भी रातों-रात बन्द हो गई। कीमतों में गिरावट की आशंका को देखते हुए लोग धड़ाधड़ अपने शेयर बेचने लगे। 24 अक्टूबर को केवल एक दिन में 1.3 करोड़ शेयर बेच दिए गए। यह आर्थिक महामन्दी की शुरुआत थी।
♦ सन् 1929 से सन् 1932 तक के अगले तीन सालों में अमेरिका की राष्ट्रीय आय केवल आधी रह गई। फैक्ट्रियाँ बन्द हो गईं थीं, निर्यात गिरता जा रहा था, किसानों की हालत खराब थी और सट्टेबाज बाजार से पैसा खींचते जा रहे थे। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई इस मन्दी का असर दुनिया भर में महसूस किया गया।
♦ इस मन्दी का सबसे बुरा प्रभाव जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ा। सन् 1932 में जर्मनी का औद्योगिक उत्पादन सन् 1929 के मुकाबले केवल 40% रह गया था।
♦ जैसे-जैसे रोजगार खत्म हो रहे थे, युवा वर्ग आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होता जा रहा था। चारों तरफ गहरी हताशा का माहौल था।
♦ आर्थिक संकट ने लोगों में गहरी बेचैनी और डर पैदा कर दिया था।
♦ राजनीतिक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुजर रहा था। वाइमर संविधान में कुछ ऐसी कमियाँ थीं जिनकी वजह से गणराज्य कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था।
हिटलर का उदय
♦ अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज में गहराते जा रहे इस संकट ने हिटलर के सत्ता में पहुँचने का रास्ता साफ कर दिया।
♦ सन् 1889 में ऑस्ट्रिया में जन्मे हिटलर ने वाइमर गणराज्य की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक अस्थिरता का लाभ उठाकर नाजीवादियों के प्रभाव में वृद्धि की ।
♦ नाजी राजनीतिक खेमा सन् 1930 के दशक के शुरुआती सालों तक जनता को बड़े पैमाने पर अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर पाया था, लेकिन महामन्दी के दौरान नाजीवाद ने एक जन आन्दोलन का रूप ग्रहण कर लिया।
♦ नाजी प्रोपेगैण्डा में लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी। सन् 1929 में नाजीवादी पार्टी को जर्मन संसद (राइखस्टाग) के लिए हुए चुनावों में महज 2.6 फीसदी वोट मिले थे। सन् 1932 तक आते-आते यह देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी और उसे 37 फीसदी वोट मिले।
♦ हिटलर जबर्दस्त वक्ता था, उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना, वर्साय सन्धि में हुई नाइंसाफी के प्रतिशोध और जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था। उसका वादा था कि वह बेरोजगारों को रोजगार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा। उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी ‘साजिशों’ का मुँहतोड़ जवाब देगा।
♦ हिटलर ने राजनीति की एक नई शैली रची थी। वह लोगों को गोल बन्द करने के लिए आडम्बर और प्रदर्शन की अहमियत समझता था। हिटलर के प्रति भारी समर्थन दर्शाने और लोगों में परस्पर एकता का भाव पैदा करने के लिए नात्सियों ने बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जन सभाएँ आयोजित कीं। स्वास्तिक छपे लाल झण्डे, नात्सी 1 सैल्यूट और भाषणों के बाद खास अन्दाज में तालियों की गड़गड़ाहट— ये सारी चीजें शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा थीं।
♦ नाजीवादियों ने अपने धुआँधार प्रचार के जरिए हिटलर को एक मसीहा, एक रक्षक, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश किया, जिसने मानो जनता को तबाही से उबारने के लिए ही अवतार लिया था।
लोकतन्त्र का ध्वंस
♦ 30 जनवरी, 1933 को राष्ट्रपति हिण्डनबर्ग ने हिटलर को चान्सलर का पद सम्भालने का न्यौता दिया। यह मन्त्रिमण्डल में सबसे शक्तिशाली पद था। तब तक नाजीवादी पार्टी रूढ़िवादियों को भी अपने उद्देश्यों से जोड़ चुकी थी।
♦ सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतान्त्रिक शासन की संरचना और संस्थाओं को भंग करना शुरू कर दिया।
♦ फरवरी माह में जर्मन संसद भवन में हुए रहस्यमय अग्निकाण्ड से उसका रास्ता और आसान हो गया। 28 फरवरी, 1933 को जारी किए गए अग्नि अध्यादेश के जरिए अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सभा करने की आजादी जैसे नागरिक अधिकारों की अनिश्चितकाल के लिए निलम्बित कर दिया गया। इसके बाद हिटलर ने अपने कट्टर शत्रु कम्युनिस्टों पर निशाना साधा। ज्यादातर कम्युनिस्टों को रातों-रात कन्सन्ट्रेशन कैम्पों में बन्द कर दिया गया।
♦ 3 मार्च, 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग ऐक्ट) पारित किया गया। इस कानून के जरिए जर्मनी बाकायदा तानाशाही स्थापित कर दी गई। इस कानून ने हिटलर को संसद के हाशिए पर धकेलने और केवल अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का निरंकुश अधिकार प्रदान कर दिया। नाजीवादी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और टेण्ड यूनियनों पर पाबन्दी लगा दी गई। अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना और न्यायपालिका पर राज्य का पूरा नियन्त्रण स्थापित हो गया। पूरे समाज को नाजीवादियों के हिसाब से नियन्त्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। दण्ड की आशंका से मुक्त पुलिस बलों ने निरंकुश और निरपेक्ष शासन का अधिकार प्राप्त कर लिया था।
पुनर्निर्माण
♦ हिटलर ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी अर्थशास्त्री ह्यालमारशाख्त को सौंपी। शाख्त ने सबसे पहले सरकारी पैसे से चलाए जाने वाले रोजगार संवर्धन कार्यक्रम के जरिए सौ फीसदी उत्पादन और सौ फीसदी रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया। मशहूर जर्मन सुपर हाइवे और जनता की कार-फॉक्स वैगन इस परियोजना की देन थी।
♦ विदेश नीति के मोर्चे पर भी हिटलर को फौरन कामयाबियाँ मिलीं। सन् 1933 में उसने ‘लीग ऑफ नेशन्स’ से पल्ला झाड़ लिया। सन् 1936 में राईनलैण्ड पर दोबारा कब्जा किया और एक जन, एक साम्राज्य, एक नेता के नारे की आड़ में सन् 1938 में ऑस्ट्रिया को जर्मनी में मिला लिया। इसके बाद उसने चेकोस्लोवाकिया के कब्जे वाले जर्मन भाषी सुडेन्टनलैण्ड प्रान्त पर कब्जा किया और फिर पूरे चेकोस्लोवाकिया को हड़प लिया। इस दौरान उसे इंग्लैण्ड का भी खामोश समर्थन मिल रहा था क्योंकि इंग्लैण्ड की नजर में वर्साय की सन्धि के नाम पर जर्मनी के साथ बड़ी नाइन्साफी हुई थी। घरेलू और विदेशी मोर्चे पर जल्दी-जल्दी मिली इन कामयाबियों से ऐसा लगा कि देश की नियति अब पलटने वाली है।
♦ लेकिन हिटलर कहीं नहीं रुका। युद्ध के लिए तैयारी पर खर्च न करने की सलाह के कारण शाख्त को उनके पद से हटा दिया गया। हिटलर ने आर्थिक संकट से निकलने के लिए युद्ध का विकल्प चुना। वह राष्ट्रीय सीमाओं का विस्तार करते हुए ज्यादा से ज्यादा संसाधन इकट्ठा करना चाहता था। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सितम्बर, 1939 में उसने पोलैण्ड पर हमला कर दिया। इसकी वजह से फ्रांस और इंग्लैण्ड के साथ भी उसका युद्ध शुरू हो गया।
♦ सितम्बर, 1940 में जर्मनी ने इटली और जापान के साथ एक त्रिपक्षीय सन्धि पर हस्ताक्षर किए। इस सन्धि से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में हिटलर का दावा और मजबूत हो गया।
♦ सन् 1940 के अन्त में हिटलर अपनी ताकत के शिखर पर था। अब हिटलर ने अपना सारा ध्यान पूर्वी यूरोप को जीतने के दीर्घकालिक सपने पर केन्द्रित कर दिया। जून, 1941 में उसने सोवियत संघ पर हमला किया। यह हिटलर की एक ऐतिहासिक बेवकूफी थी। इस आक्रमण से जर्मन पश्चिमी मोर्चा ब्रिटिश वायुसैनिकों की बमबारी की चपेट में आ गया जबकि पूर्वी मोर्चे पर सोवियत सेनाएँ जर्मनों को नाकों चने चबवा रही थीं।
महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
♦ 1 अगस्त, 1914 पहला विश्व युद्ध शुरू।
♦ 9 नवम्बर, 1918 जर्मनी ने घुटने टेक दिए, युद्ध समाप्त।
♦ 9 नवम्बर, 1918 वाइमर गणराज्य की स्थापना का ऐलान।
♦ 28 जून, 1919 वर्साय की सन्धि
♦ 30 जनवरी, 1933 हिटलर जर्मनी का चान्सलर बना।
♦ 1 सितम्बर, 1939 जर्मनी का पोलैण्ड में घुसना। दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत।
♦ 22 जून, 1941 जर्मन सेना ने सोवियत संघ में प्रवेश किया।
♦ 23 जून, 1941 यहूदियों का कत्लेआम शुरू।
♦ 8 दिसम्बर, 1941 अमेरिका भी दूसरे विश्व युद्ध में कूद पड़ा।
♦ 27 जनवरी, 1945 सोवियत फौज ने औषवित्स को मुक्त कराया।
♦ 8 मई, 1945 यूरोप में मित्र राष्ट्रों की विजय
♦ सोवियत संघ सेना ने स्तालिनग्राद में जर्मन सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। सोवियत संघ सैनिकों ने पीछे हटते जर्मन सिपाहियों का आखिर तक पीछा किया और अन्त में वे बर्लिन के बीचो-बीच जा पहुँचे, इस घटनाक्रम ने अगली आधी सदी के लिए समूचे पूर्वी यूरोप पर सोवियत वर्चस्व स्थापित कर दिया।
♦ अमेरिका इस युद्ध में फँसने से लगातार बचता रहा। अमेरिका पहले विश्व युद्ध की वजह से पैदा हुई आर्थिक समस्याओं को दोबारा नहीं झेलना चाहता था। लेकिन वह लम्बे समय तक युद्ध से दूर भी नहीं रह सकता था।
♦ जब जापान ने हिटलर को समर्थन दिया और पर्ल हार्बर पर अमेरिकी ठिकानों को बमबारी का निशाना बनाया तो अमेरिका भी दूसरे विश्व युद्ध में कूद पड़ा। यह युद्ध मई, 1945 में हिटलर की पराजय और जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिकी परमाणु बम गिरने के साथ खत्म हुआ।
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